Thursday 13 July 2017

Uttarakhand mein 'Baisi': उत्तराखंड में 'बैसि'

बिरखांत -166 : उत्तराखंड में 'बैसि:

        उत्तराखंड में सौण (सावन) में कुछ लोग बैसी करनीं | चनरदा बतूरईं, “कुमाउनी में लेखी एक कहानी किताब छ ‘भल करौ च्यला त्वील’ ( लेखक पूरन चन्द्र काण्डपाल -२००९) | य किताब में एक कहानी छ ‘बैसी में ल्हे बद्यल’ |” चनरदा ल कहानि शुरू करी, “उत्तराखंड में बैसि क मतलब छ बाइस दिन तक गौं कि धुणी में रोज जागर | (जागर क मतलब जां डंगरी (डा. एस एस बिष्ट ज्यू क अनुसार ‘देव नर्तक’ ) नाचनी और दास नचूनीं | य दौरान जो लोग बैसी करनीं ऊँ यकोई खानी और दुकोई नानीं | नियम क अनुसार बाईस दिन तक भक्ति करनी और आपण घर कि बिलकुल लै बात नि करन | इनार घरा क लोग लै इनुहें मिलु हैं नि औंन | बाईस दिन तक यूं दाड़ी लै नि बनून | पर आब समय  कैं आग लैगो, य बैसी लै दिखावै कि रैगे |”  

    चनरदा ल कहानि अघिल खसकै, “एक आदिम ल मैंकैं आपण गौं कि बैसि कि पुरि कहानि बतै | द्वि डंगरियां कूण पर गौं वाल बैसि क लिजी मानि गाय | हरेक घर बटि द्वि हजार रुपै मांगी गाय और य लै बतै दे कि जो ज्यादै द्याल भगवान् वीक उतुक्वे ज्यादै भल करल | जो नि दी सकछी वील लै करज गाड़ी बेर रुपै जम करीं | 

     उ आदिम ल एक दिन कि कहानि बतै, “एक दिन मी धोपरि कै धुणी में आयूं | उता वां सिरफ द्वि डंगरी छी | उनू दिना चौमासि टिमाटर, कोपी, बीन और सगीमर्च कि फसल है रैछी | गौं क मैंस जै क पास जतू साग-पात हौय दनादनी बेचै रौछी | गौं बै द्वि रुपै किलो माल खरीदी बेर पांच-छै गुण ज्यादै कीमत पर माल शहर हूं जां रौछी | मील द्विए डंगरियां हूं हाथ जोड़ि बेर कौ, “अहो आदेश”| बैसि में भैटियां हूं नमस्कार करण क य ई तरिक छ | उनूल जवाब दे ‘अहो आदेश’| ऊँ गेरू धोति लपेटि बेर आसन बिछै बेर भै रौछी | उनूल मि हूं इशार करनै कौ ‘भैटो भगत’ | ‘जो आदेश’ कौनै मि भै गोयूं | यूं द्विए मि कैं पच्छाण छी लै | एकै ल मि हूं पुछौ, “कतू डाल टिमाटर न्हैगीं और भौ क्ये चलि रौ ? फलाण क कतू न्हैगीं ? अमकाण क कतू न्हैगीं ? और नईं-ताजि क्ये हैरीं गौं में ? मी ल उनुकें सब बता और थ्वाड़ देर भै बेर मि नसि आयूं ?

           बैसि में भक्ति करण क त नाम छी, पर इनर ध्यान चौबीस घंट घर-गौं कि तरफ छी | चालिस घरों बै द्वि-द्वि हजार कनै  इनूल अस्सी हजार  रुपै इकठठ करीं और राशन, साग, घ्यूं, तेल, फल, इनण, दै, दूद, धूप, बत्ती यों सब भेट-घाट चड़ाव में ऐ गाय | आखिरी दिन इनूल भनार करौ | लोग आईं और खै-पी बेर न्है गईं | य ई गौं में उ साल दर्जा दस और बार क इमत्यान में क्वे लै नान पास नि हौय | बिना बैसि करिये केवल एक दिन भनार करि बेर मेल-मिलाप करण सही बात है सकीं ।

     अगर गौं वाल हरेक परिवार बै एक्कै हजार रुपै लै इक्कठ करि बेर यूं नना लिजी अंगरेजी, गणित और विज्ञान क ट्यूशन धरना तो यूं सबै नना कि जिन्दगी बनि जानि | गौं में पुस्तकालय हुनौ या एक अखबार हुनौ तो नना क ज्ञान बढ़न | पर यस सुझाव गौं में कैक समझ में नि ऐ सकन | यकैं ऊँ भल काम नि समझन | बैसि करि बेर डंगरियों क प्रचार हुंछ | उनर रुजगार, रुतवा और कद बढूं | उनू कैं गौं क नना क पास-फेल सै क्ये लै मतलब न्हैति | अघिल बिरखांत में क्ये और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
06.07.2017

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