Saturday 31 August 2019

Hamari bhasha : हमरि भाषा

मीठी मीठी - 339 : हमरि भाषा भौत भलि

     हमरि भाषा कुमाउनी-गढ़वाली लगभग 1100 वर्ष पुराणि छ । यैक संदर्भ हमर पास मौजूद छीं । कत्यूरी और चंद राजाओं क टैम में य राजकाज कि भाषा छी । आज लै करीब 400 लोग  कुमाउनी में लेखनी जनर के न के साहित्य कुमाउनी पत्रिका "पहरू" में छपि गो । भाषा संविधान क आठूँ अनुसूची में आजि लै नि पुजि रइ । प्रयास चलि रौछ । सबूं हैं निवेदन छ कि भाषा कैं व्यवहार में धरो । हमार चार साहित्यकार छीं जनूकैं साहित्य अकादमी भाषा पुरस्कार लै प्रदान हैगो ।

     "पहरू" मासिक कुमाउनी पत्रिका लिजी डॉ हयात सिंह रावत (संपादक मोब 9412924897) अल्मोड़ा दगै संपर्क करी जै सकूं । कीमत ₹ 20/- मासिक । य पत्रिका डाक द्वारा घर ऐ सकीं । विगत 10 वर्ष बटि म्यर पास उरातार य पत्रिका पूजैं रै । मी येक आजीवन सदस्य छ्यूँ । बाकि बात आपूं हयातदा दगै करि सकछा । उत्तराखंडी भाषाओं कि त्रैमासिक पत्रिका "कुमगढ़ " जो काठगोदाम बै प्रकाशित हिंछ वीक लै आपूं सदस्य बनि सकछा ।  मी येक लै आजीवन सदस्य छ्यूँ । संपादक दामोदर जोशी 'देवांशु' मो.9411309868, मूल्य ₹ 25/-। पिथौरागढ़ बै कुमाउनी मासिक पत्रिका " आदलि  कुशलि " छपैं रै । येक संपादक डॉ सरस्वती कोहली ( 9756553728 ) दगै संपर्क करी जै सकूं । मूल्य ₹ 30/- छ ।

     कुमाउनी भाषा में कविता संग्रह, कहानि संग्रह, नाटक, उपन्यास, सामान्य ज्ञान, निबंध, अनुच्छेद, चिठ्ठी, खंड काव्य, गद्य, संस्मरण, आलेख सहित सबै विधाओं में साहित्य उपलब्ध छ । बस एक बात य लै कूंण चानू कि आपणि इज और आपणि भाषा ( दुदबोलि, मातृभाषा ) कैं कभैं लै निभुलण चैन ।

हमरि भाषा भौत भलि, 


करि ल्यो ये दगै प्यार ।


बिन आपणि भाषा बलाइए, 


नि ऊंनि दिल कि बात भ्यार।।

पूरन चन्द्र काण्डपाल


01.09.2019

Friday 30 August 2019

Puraskaar ke yathaarth hakdaar : पुरस्कार के यथार्थ हकदार

खरी खरी - 483 : पुरस्कार के यथार्थ हकदार

      आज से 10 साल पहले वर्ष 2009 में ईमानदारी के पहरुओं, राष्ट्रहित के चिंतकों तथा सार्थक दृष्टिकोण के समर्थकों को समर्पित मेरी पुस्तक "यथार्थ का आईना " जिसमें मैंने राष्ट्र हित के 101 मुद्दों की लघु चर्चा उनके समाधान के साथ की थी। इस पुस्तक में लघु लेखों के रूप में मेरे द्वारा उठाए गए वे मुद्दे हैं जो अगस्त 1989 से 2004 की अवधि में विभिन्न समाचार पत्रों में छपे थे और प्रासंगिक होने के कारण इन्हें मैंने 2009 में पुस्तक का आकार दिया ।

      दो दशक बाद भी ये लेख प्रासंगिक हैं ।  इन मुद्दों में फरवरी 2003 में छपा एक मुद्दा है "विवादों के घेरे में पुरस्कार "। इस लेख का एक अनुच्छेद यहां उद्धृत है - "हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार अक्सर विवाद के घेरों में फंस जाते हैं । चाहे ये केंद्र द्वारा दिए दिए जाते हों या राज्यों द्वारा । यह तो पुरस्कार देने वाले ही जानते होंगे कि पुरस्कार से नवाजने का मापदंड क्या है ?  कार्यानुभव, योग्यता, वरीयता, क्षेत्र में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, चाटुकारिता आदि कुछ प्रचलित मापदंड देखे गए हैं ।"

     आज भी हमारे इर्द - गिर्द दिए जाने वाले सरकारी पुरस्कार विवादित होते है चाहे वे पद्म पुरस्कार हों, खेल पुरस्कार हों, विज्ञान पुरस्कार हों, साहित्य पुरस्कार हों या कोई अन्य पुरस्कार ही क्यों न हों । कई बार तो वास्तविक दावेदार को न्यायालय के द्वार भी खटखटाने पड़ते हैं जैसा कि कुछ वर्ष पहले एक अर्जुन पुरस्कार न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दिया गया । 

     हम केवल इतना कहना चाहते हैं कि पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव में पुरस्कार का हकदार है । यदि वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो यह उस पुरस्कार का अपमान तो है ही, उसकी चयन समिति भी प्रश्नों के घेरे में रहती है । योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है । इस तरह पुरस्कृत व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का कंटक सदैव सालते रहता है ।  पुरस्कार यदि यथार्थ व्यक्ति को नहीं मिलेगा तो यह पुरस्कार का उसी तरह अनादर है जैसे ' आदर के चने भले बेआदर की दाल बुरी ।' अपात्र को दिया जाने वाला पुरस्कार 'बेआदर की दाल' है । यह लेख किसी निजी संस्था या व्यक्ति द्वारा दिए गए पुरस्कारों को नहीं, बल्कि पुरस्कार देने वाले कुछ सरकारी संस्थानों एवम्  सरकारी पुरस्कार लेने वाले सभी अपात्रों को समर्पित है । 

पूरन चन्द्र कांडपाल

31.08.2019

Thursday 29 August 2019

We chaar din : वे चार दिन

बिरखांत  -279 : वे चार दिन 

      कुछ समय पहले एक समाचार पत्र में  'वे चार दिन' के बारे में एक लेख छपा था । शायद कुछ मित्रों ने  पढ़ा भी हो । सूक्ष्म में बताता हूं, कालम की लेखिका कहती है, “गुहाटी (असम) के कामाख्या मंदिर की देवी को आषाढ़ के महीने में चार दिन तक राजोवृति होने से मंदिर चार दिन बंद कर दिया जाता है |  फिर चार दिन बात रक्त-स्रवित वस्त्र भक्तों में बांट दिया जाता है | बताया जाता है कि इस दौरान ब्रहमपुत्र भी लाल हो जाती जिसके पीछे अफवाहें हैं कि पानी  के लाल होने के पीछे पुजारियों का हात होता है |” 

     लेखिका ने ‘रजोवृति के दौरान देवी पवित्र और महिला अपवित्र क्यों?'  इस बात पर सवाल उठाते हुए अपने बचपन की घटनाओं की चर्चा की है कि जब वे इस क्रिया से गुजरती थी तो उनकी मां उन्हें अछूत समझती थी | लेखिका ने लेख में कई सवाल पूछे हैं | कहना चाहूंगा कि यहां सवाल स्वच्छता का होना चाहिए न कि महिलाओं की अपवित्रता का | महिला को अपवित्र कहना हमारी अज्ञानता है ।

     उत्तराखंड में यह स्तिथि होने पर महिलायें  पहले गोठ (पशु निवास) या ' छूत कुड़ी' में रहती थी | बाद में चाख के कोने (मकान का प्रथम तल में बाहर का कमरा) में रहने लगी, परन्तु रहती थी अछूत की तरह | शिक्षा के प्रसार से आज बदलाव आ गया है |  बेटियों का विवाह बीस  से पच्चीस या इससे भी अधिक उम्र में हो रहा है | अब न लोगों को छूत लगती है, न किसी के बदन में कांटे बबुरते हैं और न किसी महिला में ‘देवी’ या ‘देवता’ औंतरता (प्रकट) है | घर –मकान- वातावरण सब पहले जैसा ही है, सिर्फ अब  छूत नहीं लगती | 

     सत्य तो यह है कि वहम (भ्रम), पाखण्ड, आडम्बर, मसाण और अंधविश्वास के बेत से महिलाओं को दबा- डरा कर रखने की परम्परा का न आदि है न अंत | बात- बात में बहू को देख सास में ‘देवी’ औंतरना फिर गणतुओं, जगरियों, डंगरियों और बभूतियों द्वारा बहू को प्रताड़ित किया जाना एक सामान्य सी बात थी (है) | 

      ऋतुस्राव (रजस्वला अर्थात पीरियड या मासिक  ) के वे चार दिन न तो कोई छूत है और न अपवित्रता | यह एक प्रकृति प्रदत क्रिया है जो यौवन के आरम्भ होने या उससे पहले से उम्र के पैंतालीसवे पड़ाव तक सभी महिलाओं में होती है और इसका नियमित होना स्त्री के स्वस्थ शरीर का परिचायक है । इस दौरान स्वच्छता सर्वोपरि है बस |  इसमें छूत या अस्पर्श जैसी कोई बात नहीं है । स्कूल जाने वाली छात्राओं तक को अब इस प्रक्रिया से जानकारी दी जाने लगी है जो एक अच्छी बात है । अब फिल्म और विज्ञापन से यौवन में कदम रखने वाली लड़कियों को बताया जाता है कि यह उत्तम स्वास्थ्य का प्रतीक है और इसे कुछ अनहोनी या समस्या समझना हमारी जानकारी की कमी समझा जाएगा । इस दौरान स्वच्छता का ध्यान अति आवश्यक है । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल

30.08.2019

Wednesday 28 August 2019

Rashtreey khel diwas mejar dhyanchand : राष्ट्रीय खेल दिवस मेजर ध्यानचंद जन्म दिन

मीठी मीठी - 338 : मेजर ध्यान चंद स्मरण दिवस ( राष्ट्रीय खेल दिवस)


        हर साल 29 अगस्त हुणि  हमार देश में हॉकी जादूगर मेजर ध्यान चंद ज्यू क जन्मदिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाई जांच । "लगुल " किताब बै उनार बार में एक लेख यां उद्धृत छ । ध्यान चंद ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि  और सबूं कैं  राष्ट्रीय खेल दिवस कि शुभकामना ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

29.08.2019

Tuesday 27 August 2019

Mobile prem rog : मोबाइल प्रेम रोग

खरी खरी - 482 : मोबाइल का प्रेम रोग

      आजकल आप कहीं भी नज़र डालिए - घर, बाहर, मैट्रो, रेल , बस, पार्क, कोई भी समारोह, राह में चलते हुए या सैर करते हुए, आपको अधिकतर लोग मोबाइल फोन से चिपके हुए मिलेंगे या कान में लीड डाल कर दुनिया से कटकर घूमते हुए मिलेंगे या मोबाइल की ओर देखकर अपने आप हंसते हुए मिलेंगे । बताया जाता है कि देश के अधिकतर शहरी युवक - युवतियों के पास स्मार्ट फोन है । कुछ लोग तो फोन में लाइक या चैटिंग या गीत - संगीत देखने - सुनने में इतने दीवाने हो गए हैं कि उन्हें समय पर खाने या सोने का भी होश नहीं है । कई बार तो लोग सड़क पर चलते हुए एक दूसरे से या किसी वाहन से टकरा जाते हैं । बच्चों या परमेश्वरी से बात करने का समय नहीं है । घर में चार वयस्क हैं चारों अपने अपने फोन में तल्लीन हैं, कोई किसी से बात नहीं कर रहा । तल्लीनता सेंड या फारवर्ड में है या वीडियो देखने में है या बहस - चैटिंग में हम खोए हुए हैं ।

         इसे हम फोन तल्लीनता नहीं कहेंगे बल्कि यह एक लत है या एक रोग की गिरफ्त है । कुछ साल पहले जब मोबाइल नहीं था तो ऐसी हालत नहीं थी बल्कि व्यक्ति समाज या परिवार से मिलता था । जुड़ा तो वह अब भी है परन्तु उन मित्रों से जुड़ा है जो हवा में हैं । गुलदस्ता, चाय कप, मॉडल, मूर्ति, भगवान के चित्र, कार्टून, पेड़, पहाड़, दृश्य, पोर्न, अश्लील चुटकुले आदि फारवर्ड करना सबसे बड़ा या प्राथमिक कार्य मोबाइल में हम करने लगे हैं । हम क्या कर रहे हैं हमें नहीं मालूम ? फोन का सदुपयोग भी है जो बहुत कम होता है जबकि फोन है ही सदुपयोग के लिए या जानकारी बढ़ाने के लिए । जब दो घंटे लगातार फोन के प्रयोग से निजात मिले तो स्वयं से इस मोबाइल फोन में बिताए गए समय का हिसाब तो मांगना चाहिए ।

       जो लोग इस वास्तविकता को समझते हैं कि वे फोन रोग या लत से ग्रस्त हो चुके हैं उन्हें फोन के नोटिफिकेशन बंद करने चाहिए । किसी को कोई खास बात करनी होगी तो आपको फोन तो आ ही सकता है । रात्रि में या दिन में कुछ घंटे फोन का स्वीच आफ करें । फोन का एक अनुशासन बनाएं और उस पर अटल रहें । लगातार फोन का प्रयोग हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र ( Immune system )  को कमजोर कर देता है जो बहुत खतरनाक बात है । अपने रोग देने वाले फोन को हमने स्वयं अपना शत्रु बना दिया है । क्या इसी शत्रुता के लिए या स्वयं को रोगी बनाने के लिए हमने स्मार्ट फोन खरीदा था ?

पूरन चन्द्र कांडपाल
28.08.2019

Monday 26 August 2019

Alag thakuli ni bajau : अलग थकुली नि बजे

खरी खरी - 481 : अलग थकुली नि बजौ 


 

देशा का मिलि गीत कौ

अलग थकुली नि बजौ .

 

एकै उल्लू भौत छी

पुर बगिच उजाड़ू हूँ

सब डवां में उल्लू भै गयीं

बगिचौ भल्याम कसी हूँ.

गिच खोलो भ्यार औ

भितेर नि मसमसौ, देशा क ....

 

समाओ य देशें कें

हिमाल धात लगूंरौ

बचौ य बगीचे कें

जहर यमे बगैँ रौ 

उंण नि द्यो य गाड़ कें

बाँध एक ठाड़ करौ, देशा क ..... 

 

उठो आ्ब नि सेतो

यूं उल्लू तुमुकें चै रईं

इनू कें दूर खदेड़ो

जो म्या्र डवां  में भै  रईं

यकलै यूं नि भाजवा

दग डै जौ दौड़ी बे जौ . देशा क .....

 

शहीदों कें याद करो 

घूसखोरों देखि नि डरो  

कामचोरों हूँ काम करौ

हक़ आपण मागि बे रौ

अंधविश्वास क गव घोटो

अघिल औ पिछाड़ी नि रौ. 

देशा क मिलि गीत कौ

अलग थकुली नि बजौ.

 

पूरन चन्द्र कांडपाल

27.08.2019

(मुकस्यार  कुमाउनी कविता संग्रह 2011 बै )

 

Sunday 25 August 2019

Deshbhakti ki paribhasha : देशभक्ति की परिभाषा

खरी खरी - 480 : देशभक्ति की परिभाषा

    कुछ दिन पहले  विभांशु दिव्याल का ' बतंगड़ बेतुक ' कालम में देशभक्ति के बारे में एक लेख पढ़ा । बहुत ही तथ्य पूर्ण एवं समरस लेख था । आजकल कुछ लोग देशभक्ति के प्रमाण पत्र भी देने लगे हैं । जो उनके मन कैसी नहीं बोलेगा वह देशभक्त नहीं है । ऐसे कुछ लोग सड़क पर गुटका थूकते हैं, कूड़ा डालते हैं, हुड़दंग मचाते हुए भारत माता की जय - वन्देमातरम कहते हैं और वे स्वयं को देश भक्त कहते हैं । इस बार प्रधानमंत्री ने स्वछता रखने वालों और छोटा परिवार रखने वालों को देशभक्त कहा है जिसकी सराहना होनी चाहिए और उनकी बात का अनुपालन होना चाहिए ।

        विभांशु जी के शब्दों के अनुसार देशभक्ति चीखने - चिल्लाने में नहीं, शिष्ट भाषा और व्यवहार में प्रकट होती है। खुद बेहतर इंसान बनना देशभक्ति है, नफरत मिटाना और लोगों में इंसानियत जगाना देशभक्ति है । जाति, धर्म की कट्टरता से लड़ना, आपसी सौहार्द पैदा करना, अंधश्रद्धा को त्यागना, विवेक से कार्य करना, अंहकार छोड़ना, दूसरों को अपने जैसा इंसान समझना और उनका सम्मान करना देशभक्ति है । उन्माद से बचना और बचाना, उन्माद पर नियंत्रण रखना तथा सबके कल्याण की कामना करना देशभक्ति है ।  यदि हमारे अंदर इस देशभक्ति की कमी है तो सबसे पहले इस कमी को दूर करते हुए हमें स्वयं में देशभक्ति जगानी होगी तभी हम किसी को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने का हक रखते हैं । जयहिंद ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
26.08.2019

Saturday 24 August 2019

Dukh ke karan : दुःख के कारण

खरी खरी - 479 :  दुख के कारण

     जीवन में दुःखों के लिए जिम्मेदार कौन है ?

भगवान, गृह-नक्षत्र, भाग्य, रिश्तेदार, पड़ोसी या सरकार ? इनमें से कोई नहीं । सिर्फ हम जिम्मेदार हैं ।

1. हमारा सरदर्द, फालतू विचार से ।

2.पेट दर्द, गलत खाने से ।

3. हमारा कर्ज, जरूरत से ज्यादा खर्चे से ।

4.हमारा दुर्बल /मोटा /बीमार शरीर, गलत जीवन शैली से ।

5. हमारे कोर्ट केस, हमारे अहंकार से ।

6. हमारे फालतू विवाद, ज्यादा व व्यर्थ बोलने से ।

         उपरोक्त कारणों के सिवाय हमार दुख के कई अन्य कारण भी हैं । हम बेवजह दोषारोपण दूसरों पर करते रहते हैं  या भगवान को दोष देते हैं । यदि हम इन कष्टों के कारणों पर बारिकी से विचार करें तो पाएंगे कि कहीं न कहीं हमारी मूर्खताएं, स्वछंदता, या अकड़ ( ईगो ) ही इनके पीछे है। हम जन्माष्टमी जरूर मनाते हैं परन्तु कर्म - संस्कृती जिसका संदेश योगेश्वर श्रीकृष्ण ने दिया उस पर तनिक भी मंथन नहीं करते । मनुष्य के गिले- शिकवे सिर्फ़ साँस लेने तक हैं , बाद में तो सिर्फ़ पछतावे ही रह जाते हैं । इन बिंदुओं पर मंथन करें और यथार्थ को समझते हुए स्वयं में बदलाव लाएं ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

25.05.2019

Friday 23 August 2019

गीता की बात श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : Geeta ki baat shrikrishna janmashtami

खरी खरी - 478 : 'गीता' की बात भी हो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर

      कुछ लोगों ने कल  (23 अगस्त 2019 ) और कुछ आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मना रहे हैं । इस महोत्सव में श्रीकृष्ण के कर्म संदेश की चर्चा प्रमुखता से होनी चाहिए थी जो नहीं हुई । 'गीता' के कर्म संदेश का मूल अर्थ यह नहीं है कि बिना फल या परिणाम का लक्ष्य बनाये हम कर्म करते जाएं । "कर्मण्डे वा....कर्मणी"  का भाव यह है कि हम कर्म करें और जो भी प्रतिफल मिले उसकी चिंता न करते हुए उसे स्वीकार करें । हम जो भी कर्म करेंगे उसका फल हमें भोगना पड़ेगा । इसलिए कर्म करने से पहले सोच लेना उचित होगा । खैर लोग अपने अपने हिसाब से व्याख्या करते हैं ।

        श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर आजकल ज्ञान की बात से अधिक मनोरंजन पर ध्यान दिया जाता है । एक बानगी देखिए - एक फिल्मी गीत है, 'हम-तुम चोरी से , बंधे एक डोरी से ...।' इस गीत पर जन्माष्टमी पर पैरोडी बना दी गई, 'बृज की छोरी से, राधिका गोरी से, मैया करा दे मेरा ब्याह...।' तीन कलाकार- एक राधा, दूसरा कृष्ण और तीसरा यसोदा ।  गीत में कृष्ण बना कलाकार यसोदा के कलाकार से कह रहा है और राधा बना कलाकार नाच रहा है तथा लोग सिटी बजा कर इस भौंडे नृत्य-गान में मस्त हैं । कृष्ण की पत्नी रुकमणी जी थी । राधा तो कृष्ण की अनन्य भक्त थी फिर यह फिल्मी पैरोडी पर लोगों ने आपत्ति क्यों नहीं की ? यह क्या हो रहा है, क्या संदेश जा रहा है, किसी को कोई मतलब नहीं ? पैरोडी गाने वाले के साथ गुटका मुंह में उड़ेले कलाकार वाद्य बजा रहे हैं औऱ श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाया जा रहा है ।

      काश ! मंच से श्रीकृष्ण के बहाने नशामुक्ति और स्वच्छता अभियान का भी उद्घोष बीच -बीच में होता तो कोई तो बदलता । कर्म - संस्कृति और संस्कारों की बात होती तो समाज में कुछ परिवर्तन आता । लकीर के फकीर बनकर हमने उत्सव जरूर मनाया, पैरोडियाँ सुनी, रासलीला देखी, माखन चोरी मंचित हुई परन्तु गीता के 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में से एक की भी चर्चा नहीं हुई । कहीं कहीं पर तो - "कन्हैया तेरो जन्मदिन ऐसो मनायो, कटिया डाल के बिजली ल्हीनी जगमग भवन बनायो " भी होता है । चोरी की बिजली से टेंट सजाया जाता है ।

     गीता के प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक का प्रथम शब्द है "धर्म'' और अंतिम अध्याय के अंतिम श्लोक का अंतिम शब्द है "मम।" इन दोनों को जोड़ें तो शब्द बनता है "धर्ममम'' अर्थात मेरा धर्म है केवल 'कर्म', वह कर्म जो जनहित में हो, समाज हित में हो और देश हित में हो । योगेश्वर श्रीकृष्ण के इस संदेश का मंथन आज के परिवेश में नितांत आवश्यक है । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पुनः शुभकामनाएं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.08.2019

Thursday 22 August 2019

Missing spark syndrome : मिसिंग स्पार्क सिंड्रोम

खरी खरी - 477 : मिसिंग स्पार्क सिंड्रोम

       21 अगस्त 2019 को मैंने " मिसिंग टाइल सिंड्रोम " की चर्चा की थीं । आज पति - पत्नी संबंधित एक नए विषय को छूने का प्रयास है । जब किसी भी उम्र में पति - पत्नी के संबंध में सिथिलता या उदासीनता आने लगती है या एक दूसरे की परवाह या सम्मान कम होने लगता है, आपसी हंसी - मजाक कम होने लगती है, ' आइ लव यू '  कहना तो दूर,  नाश्ता - लंच - डिनर भी अकेले होने लगता है, छोटी छोटी बातों में एक दूसरे की तीक्ष्ण आलोचना होने लगती है, झूठ बोलने के बेवजह आरोप लगने लगते हैं, सोने का समय भी अलग अलग होने लगता है, एक दूसरे के साथ बिताया जाने वाला वक्त भी मोबाइल में बीतने लगता है, यहां तक कि रात्रि शयन भी अलग अलग कमरे में होने लगता है, तो समझिए दाम्पत्य जीवन को ' मिसिंग स्पार्क ' नाम की बीमारी ने घेर लिया है ।  ये सभी उक्त लक्षण ' मिसिंग स्पार्क ' बीमारी के हैं जिसे " मिसिंग स्पार्क सिंड्रोम " भी कहते हैं । ऐसे में जीवन में निराशा या सदमा या डिप्रेशन भी दस्तक से सकता है ।

       इस बीमारी का इलाज किसी डाक्टर या वैद्य या तांत्रिक या ज्योतिषि  या किसी जगरिये - डंगरिये के पास नहीं है बल्कि इस रोग का उपचार स्वयं पति - पत्नी के पास है । रोग के जो भी ऊपर लक्षण बताए आप उनको अपने रिलेशन या संबंध में न आने दें । इस संबंध में इगो ( अकड़ ) रूपी जंग नहीं लगने दें । यदि यह जंग लग गया तो छूटेगा नहीं । कुछ छोटी छोटी बातें हैं यदि अमल करी जाएं तो हम ' मिसिंग स्पार्क सिंड्रोम ' से बच सकते हैं । भले ही इसमें दोनों का रोल है परन्तु मैं पति परमेश्वरों को कुछ सलाह देना चाहूंगा । आप जमी हुई बर्फ को पिघलाने में पहल करें क्योंकि दिन में तीन बार आपको उनके द्वारा भोजन परोसा जा रहा है । अपने मस्तिष्क के रिमोट को कूल में लाइए और किचन में जाने का शुभ अवसर ढूंढिए । हिम्मत के साथ उनके कंधे में हाथ रखते हुए प्यार से पूछिए, " क्या बन रहा जी या क्या हो रहा है जी ..." फिर अपने हिसाब से दृश्य को आगे बढ़ाते जाइए । बताने की जरूरत नहीं है । पहल तो बेचारे पति परमेश्वर को ही करनी पड़ेगी । आपकी पहल से निनानाबे फीसदी बर्फ पिघल जाएगी ।

      मेरे एक मित्र ने मेरी राय पर ऐसा ही किया । पत्नी गुस्से में थी ।  वह अवसर को भाप नहीं पाया । जैसे ही उसने किचन में जाकर पत्नी के कंधे में हाथ रखा, पत्नी ने उसे धक्का मारते हुए कहा "छोड़ो उथां जौ, मिकैं नि चैन ह पोताड़ - पातड़ " ( हटो उधर जाओ, मुझे नहीं चाहिए यह झूठा दिखावा ) । मित्र ने पुनः प्रयास किया और उसे सफलता मिली । एक - दूसरे की बात सुनकर, मोबाइल से दूरी रखकर और गृहकार्य में हाथ बंटाते कर हम स्पार्क को मिस होने से बचा सकते हैं । स्पार्क को यहां चिंगारी या करंट न समझें इसे एक छिपी हुई मिठास समझें ।  घर - गृहस्थी तो ऐसे ही चलती है और चलते आ रही है । जहां बर्फ नहीं पिघलती, जहां  छिपी हुई मिठास लुप्त होने लगती है वहां जीवन बहुत दुखद है, कूल की जगह शूल है । इसलिए जितनी जल्दी हो सके बर्फ पिघलाने में ही समझदारी है । अब अधिक सोचने के बजाय किचन की ओर बढ़ने में ही परमानंद है । बढ़िये ...

पूरन चन्द्र कांडपाल

23.08.2019

Wednesday 21 August 2019

Paththar yudhy bagwaal : पत्थर युद्ध बग्वाल

बिरखांत -278 : पत्थर युद्ध : बग्वाल

     उत्तराखंड में पुरातन परम्पराएं आज भी  जड़ जमाये हैं | बड़ी मुश्किल से पशु-बलि प्रथा अब कम हो रही है लेकिन चोरी-छिपकर खुकरी- बड्याठ अब भी चल रहे हैं | देवालयों में रक्तपात बहुत ही घृणित कृत्य हैं परन्तु जिन लोगों ने इसे उद्योग बना रखा है उनके बकरे बिक रहे हैं | जेब किसी की कटती है और पिकनिक कोई और मनाता है | हम किसी से शिकार मत खाओ नहीं कह सकते परन्तु देवता- मसाण- हंकार के नाम पर किसी की जेब काटना जघन्य पाप ही कहा जाएगा | मांसाहार के लिए बुचड़ के दुकानें गुलज़ार तो हैं ही |

   परम्परा के नाम पर उत्तराखंड में आज भी मानव –रक्त बहाया जाता  है  | प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के दिन जिला चम्पावत में वाराहीधाम देवीधुरा के खोलीखाड़- दूबाचौड़ मैदान में पत्थरों की बारिश होती है । भलेही इस वर्ष इसे फलों की वर्षा का रूप देने की कोशिश हुई फिर भी पत्थर वर्षा हुई फिर भी कई लोग घायल हो गए । एक दूसरे पर पत्थर बरसाने वाले चार खामों के लोग बड़े जोश से मैदान में कूद पड़ते हैं | इस पत्थरबाजी को बग्वाल भी कहा जाता है | अपराह्न में मदिर के पुजारी की शंख बजाते ही पत्थरबाजी शुरू होती है जो कुछ मिनट तक पत्थरों की वर्षा से कई लोगों का खून बहने लगता है | जब पुजारी को यकीन हो जाता है कि एक व्यक्ति के खून के बराबर रक्तपात हो चुका है तो वे युद्ध बंद करा देते हैं  | इस युद्ध में दर्शकों सहित कई व्यक्ति घायल होते हैं जिनका बाद में उपचार किया जाता है |

     यह परम्परागत पाषाण युद्ध वर्षों से चला आ रहा है | इसी प्रकार का पत्थर युद्ध जिला अलमोड़ा के ताड़ीखेत ब्लाक स्तिथ सिलंगी गाँव में भी वर्षों पहले बैशाख एक गते (१४ अप्रैल ) को प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता था जिसमें स्थानीय लोगों की दो टीमें ‘महारा’ और ‘फर्त्याल’ भाग लेती थीं | सूखे गधेरे में एक स्थान (खइ ) तय किया जाता था जिसे पत्थरों की वर्षा के बीच हाथ में ढाल लेकर पत्थरबाज छूने जाते थे | जो इस स्थान पर पहले पहुँच जाय उसे विजेता माना जाता था | यहाँ भी कई लोग घायल होते थे जिनका उपचार किया जाता था या खाट में डाल कर रानीखेत अस्पताल में ले जाया जाता था |

     पत्थरबाजी से खून बहाने को ‘देवी को खुश करने’ की बात मानी जाती थी | लगभग 20वीं सदी के 5वें दसक ( 60 - 65 वर्ष पहले ) के दौरान नव-युवकों ने इस पाषण युद्ध को बंद करवा दिया और उस स्थान पर झोड़े  (खोल दे देवी, खोल भवानी, धारमा केवाड़ा ...आदि ) गाये जाने लगे | अब झोड़े भी बंद हो गए हैं क्योंकि कौतिक एक नजदीकी स्थान पर होने लगा है, झोड़े वहीं होने लगे हैं | पत्थरमार युद्ध बंद होने से न कोई रोग फैला और न कोई अनहोनी हुई जैसा कि पुरातनपंथी भय दिखाकर प्रचारित करते थे |

   चम्पावत की इस पत्थरबाजी के खून –खराबे में भाग लेने वाले जोश से सराबोर खामों को आपस में मिल-बैठ कर सर्वसम्मति से इस पाषाण युद्ध को बंद करवाना चाहिए | इसकी जगह कोई खेल की टूर्नामेंट आरम्भ की जानी चाहिए जिसमें चार खामों की चार टीम या अन्य स्थानीय टीमें भाग लें और साथ में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करायें | पुरस्कार के लिए ट्रॉफी रखें |  ऐसा करने से उत्तराखंड में खेलों को प्रोत्साहन भी मिलेगा | हमें समय के साथ बदलना चाहिए।

      देश में पत्थरबाजी की कोई प्रतियोगिता नहीं होती | बग्वाल का जोश खेलों में परिवर्तित होना चाहिए | ‘देवी नाराज हो जायेगी’ का डर ग्राम सिलंगी में भी था जो एक भ्रम था | रुढ़िवाद को सार्थक कदम उठाकर और सबको साथ लेकर समाप्त करते हुए खेल भावना युक्त नूतन परम्परा आरम्भ करने की पहल होनी चाहिए | दुनिया चांद में पहुंच गई है और हम देवी को रक्त चढ़ाने की सोच से नहीं उबर सके । मंथन जरूर करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.08.2019