Monday 30 April 2018

Kitanee daaru theek : कितनी दारू ठीक रहेगी ?

खरी खरी - 228 : कितनी दारू ठीक रहेगी ?

    कल सायँकालीन सैर के समय कुछ दारूबाज रोज की तरह पार्क में दारू गटकाते हुए मिल गए । ''सार्वजनिक स्थान पर यह प्रतिबंधित कर्म क्यों कर रहे हो ?'' कुछ हिम्मत के साथ जब यह सवाल पूछा तो बोले, "जाएं तो जाएं कहां ? घर में पी नहीं सकते, कार्यस्थल पर भी मनाही है और यहां सुनसान में आपको आपत्ति है ?" "पीते ही क्यों हो ? दारू अच्छी चीज नहीं है । स्वास्थ्य, धन, सम्मान, घर -परिवार सब बरबादी ही बरबादी होती है दारू से ।" बहुत देर तक बहस हुई । वे सवा सेर मैं मात्र छटांग भर । अंत में एक बोला, "सर आप हमारे भले के लिए कह रहे हैं , छोड़ने की कोशिश करेंगे ।" दूसरा बोला, "सर कम से कम कितनी दारू ठीक रहेगी ? कई डाक्टर -वैद्य भी तो पीते हैं ।"

      मैंने पुलिस नहीं बुलाई क्योंकि ऐसा करने से पुलिस लाभान्वित होती रही है । समझा कर हृदय परिवर्तन का लक्ष्य था सो समझाया' "शराब हर हाल में नुकसान दायक है । मैं आपको शराब छोड़ने के लिए ही कहूंगा ।" तीसरा बोला, "सर एक पैग तो चलेगा, ज्यादा ठीक नहीं ।" मैने कहा, "एक पैग के बाद ही अगला पैग लगाते हैं आप लोग । एक पैग के बाद बंद करो तब ना ।" वे सुनते रहे । छै लोग थे । बिना नमकीन के बोतल समापन की ओर थी । कुछ सुन रहे थे, कुछ मसमसा रहे थे और कुछ डौन हो चुके थे । मैंने उन्हें चार 'D' की बात समझायी और चला आया । 

    क्या है ये चार 'D' ?  चार डी दारू के चार पैग की दास्तान है जिससे एक- एक कर चार पैग दारू पीने के परिणाम सामने आते हैं । एक पैग- Delighted खुश, दूसरा पैग- Dejected उदास,  तीसरा पैग- Devilish राक्षस और चौथा पैग - Dead drunk मृतप्राय लंबा लेट गया ।चार पैग का क्रमशः अंजाम है खुश, उदास, राक्षस और मृत प्रायः । मुझे दूर तक उनकी आवाज सुन रही थी । एक कह रहा था, "भइ बात सही कह गया ये बंदा । अब दारू कम करनी पड़ेगी ।"

(आज 1 मई मजदूर दिवस है। सभी दारू पीने वाले मजदूरों को/मितुरों को इस उम्मीद के साथ मजदूरी और स्वास्थ्य मुबारक कि आज से आप दारू छोड़ देंगे । धन्यवाद ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.05.2018
मजदूर दिवस

Sunday 29 April 2018

Kewal ek bachchaa : केवल एक बच्चा क्यों ?

मीठी मीठी -104 : केवल एक ही बच्चा क्यों ?

     वर्ष 1962 में एक नारा था 'बस दो या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे ।' जनसंख्या नियंत्रण नहीं हुआ और आगे चलकर नारा आया 'हम दो हमारे दो ।' आजकल बिना कोई नारे के नई पीढ़ी बस एक बच्चे के बाद विराम लगाने लगी हैं । मुझे लगता है कि एक बच्चे वाला विचार कई मायने में ठीक नहीं है । सबसे पहले इससे कुछ वर्षों बाद जनसँख्या संतुलन बिगड़ जाएगा । दूसरी बात यह है कि परिवार - समाज से कई रिश्ते लुप्त हो जाएंगे जैसे - भाई, भाबी, चाचा, चाची, मौसी - मौसा, देवर, जेठ, देवरानी, जेठानी, साली, साला आदि । मित्र, सहेली, यार, दोस्त की जगह या अहमियत अलग है । रिश्ते अपनी जगह बहुत महत्वपूर्ण हैं जिनकी जगह भरी नहीं जा सकती ।

     स्वभाव से मजबूर मैंने एक बच्चे वाले कई आधुनिक मम्मी- पापा से यह सवाल किया । सभी ने लगभग एक ही उत्तर दिया, "बस एक ही पल - पढ़ जाय तो बहुत अच्छा । एक ही ने जान आफत कर रखी है । अपने बस की बात नहीं दूसरे बच्चे के बारे में सोचने की ।" इनमें कुछ के पास पुत्र था तो कुछ के पास पुत्री । नाना -नानी या दादा -दादी भलेही बिन मांगे सलाह देते हैं पर इनकी सुने कौन ? जनरेसन गैप का ठप्पा भी लगा है उनपर ।

      अंत में सौ बातों की एक बात यह है कि एकल संतान के माता-पिता को इस मुद्दे पर जरूर सोचना चाहिए । घर में दो बच्चे होने चाहिए भलेही दोनों बेटी हों या बेटे । अकेला एक बच्चा समाजिकता के अभाव से भी ग्रसित हो जाता है । स्कूल में भलेही उसे साथी मिलते हों परन्तु घर में तो वह इकलौता है । यह डरने की बात नहीं है कि आप दूसरे बच्चे को सुख - सुविधाएं नहीं दे पाएंगे । हां पुत्र की भूख (सन सिंड्रोम ) के खातिर परिवार नहीं बढ़ना चाहिए जैसा कि अभी भी कहीं - कहीं देखने को मिलता । परिवार में दो बच्चे अर्थात 'हम दो हमारे दो' को चरितार्थ रखना चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.04.2018

Saturday 28 April 2018

AIIMS एम्स दिल्ली

खरी खरी - 227 : एम्स (AIIMS) में आये दिन बखेड़ा

     देश की राजधानी स्थित एम्स (आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस अर्थात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) के रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल कल तीन दिन के बाद 28 अप्रैल 2018 को समाप्त हो गई । रेजिडेंट्स डाक्टर ऐसोसिएसन एम्स प्रशासन से आर पी सेंटर के प्रमुख डा. अतुल कुमार को हटाने की मांग कर रहे थे ।  बताया जा रहा है कि 25 अप्रैल की सुबह डा. कुमार ने एक जूनियर डाक्टर को थप्पड़ जड़ दिया था । ऐसोसिएसन ने डा. कुमार द्वारा सार्वजनिक माफी मांगने, उन्हें प्रमुख के पद से हटाने और पुलिस में मामला दर्ज करने की तीन प्रमुख मांग रखी थीं ।

     एम्स की इस बेमियादी हड़ताल से करीब 350 सर्जरी रद्द हो गई और ओपीडी के लगभग 6700 कार्ड अनदेखे रह गए । एम्स में बड़ी मुश्किल से कई महीनों के बाद चिकित्सा का नम्बर आता है । भुक्तभोगी इस हड़ताल से परेशान रहे और विलाप करते रहे । उन्हें डॉक्टरों के प्रति बहुत गुस्सा रहा ।

     अक्सर सरकारी अस्पतालों में आये दिन हड़ताल का नजारा देखने को मिलता है । किसी न किसी कारण से डॉक्टर, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ, सुरक्षा स्टाफ या सफाई स्टाफ अस्पतालों में हड़ताल करते रहते हैं जिससे अंततः रोगियों को ही खामियाजा भुगतना पड़ता है । रोगियों की समस्या को समझते हुए सरकार/प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन संस्थानों में किसी भी हालात में हड़ताल न हो ।  देश के कोने -कोने से आये रोगी अपना मन मसोस कर कह रहे हैं, 'अंधेर नगरी चौपट राजा ।' किसी भी प्रकार की हिंसा निन्दनीय है । इस मुद्दे को फिलहाल सुलझाने में तीन दिन लग गए और दुःखित- व्यथित रोगियों को राहत मिलने की उम्मीद है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.04.2018

Friday 27 April 2018

Andhbhakti karobaar : अंधभक्ति का कारोबार

खरी खरी - 226 : अंधभक्ति का कारोबार

    हमारे देश में पहले जैसी निःस्वार्थ जनहित की भक्ति नहीं है बल्कि आज भक्ति का अरबों रुपये का कारोबार है जिसमें कई प्रकार की कानूनी या गैरकानूनी छूट है । 50 मीटर जमीन के भुगतान पर 5000 मीटर तक कब्जाया जाता है सिर्फ नेताओं की मेहर होनी चाहिए । मेहर होती है क्योंकि बाबाओं के पास वोट बैंक है । पाकिस्तान से आकर चाय की दुकान से तांगा चलाते हुए एक ढोंगी बाबा 400 आश्रमों का मालिक बनते हुए ₹.15000 करोड़ का स्वामी बन गया । नेता सिर झुकाते गए और वोट लेते गए ।

     पिछले कुछ ही वर्षों में  कई कथित संत पाखण्ड में सवार होकर जमीन हड़पते हुए अपना साम्राज्य गढ़ गए । इन्होंने ताबीज, अगरबत्ती, साबुन, दवाइयां, तथा धार्मिक सामान जैसे माला, फोटो, कड़े और पत्र- पत्रिकाएं बेचीं । इस कारोबार में सबसे अधिक अंधविश्वास की बिक्री हुई ।  पहले संत कुटिया में रहते थे परन्तु आज के ढोंगी बाबा पंचतारा महलों में रहते, हवाई यात्रा करते हुए ऐयासी पर उतर आए और जो कुकृत्य वे कर रहे हैं वह सबके सामने है । इनके अंधभक्त हिंसा पर उतर आते हैं । मथुरा के जवाहर बाग में दो दर्जन लोग मारे गए थे । जोधपुर में 21 अप्रैल 2018 से हाइ अलर्ट के साथ एक हफ्ते के लिए धारा 144 लगानी पड़ी ।

     अतः हमें इस तथाकथित भक्ति के कारोबार से सचेत रहना होगा । भगवान से मिलाने और भवसागर से पार करने के इनके झांसे को आज हमें समझने की आवश्यकता है । जिस पीड़िता का चीर हरण इस पाखण्डी ने किया उसका परिवार भी इस ढोंगी का अनन्य भक्त था । ऐसे ही देश में कई लोग अंधभक्ति के शिकार हैं । सत्य तो यह है कि किसी को भी इन आश्रमों या बाबाओं के पास जाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए । योगेश्वर श्रीकृष्ण के संदेश का स्मरण करते हुए हमें स्वयं को कर्म के सुमार्ग पर गतिमान रहना चाहिए अन्यथा ये स्वयं को भगवान का एजेंट बताने वाले ढोंगी बाबा भगवान के नाम पर आपकी लूट-खसूट करते रहेंगे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.04.2018

Thursday 26 April 2018

Teri himmat : तेरी हिम्मत तेरे साथ रहे !!!

खरी खरी - 225 : तेरी हिम्मत तेरे साथ रहे !!!

     तू जो भी है एक लड़की है । हम तुझे प्रणाम करते हैं । एक विशाल जयहिन्द कहते हैं । हमें तुझ पर गर्व है । तेरी हिम्मत पर गर्व है । यदि तू भी उसी तरह डर जाती जिस तरह अन्य महिलाएं/लड़कियां डर जाती हैं तो यह ढोंगी-पाखंडी- नरपिशाच -संत रूपी शैतान जेल नहीं गया होता । एक अथाह हिम्मत है तुझ में । तू हिम्मत का समंदर है, तू हिम्मत का विशाल हिमालय है । तूने तो जीते जी मृत्यु को डरा दिया । तेरी इस अनुपम हिम्मत की जितनी भी सराहना करूं वह कम है । तेरे जन्मदाताओं को भी नमन जिन्होंने ऐसी पुत्री को जन्म दिया जो टूटने और बिखरने के कगार से वापस आई । इस भारत की बेटी पर भारतमाता को गर्व है ।

      जी हां, हम उस बेटी की बात कर रहे हैं जो 15 अगस्त 2013 को स्वतंत्रता दिवस के दिन एक शैतान के पाप का शिकार बनी । एक बड़ा जयहिन्द दिल्ली के कमला नगर थाने को जिसने पीड़िता का बयान दर्ज किया, मेडिकल कराया और  FIR लिखकर जोधपुर भेजी । 31 अगस्त को वह शैतान इंदौर से गिरफ्तार किया गया । तब से 44 गवाहों की मदद से जोधपुर न्यायालय में सुनवाई हुई । 5 वर्ष बाद 25 अप्रैल 2018 को अंततः उस शैतान को आंखरी सांस लेने तक की सश्रम जेल हुई । इस ढोंगी बाबा ने उस नाबालिग छात्रा से दुष्कर्म किया जिसे वह भगवान समझती थी ।

     इस जघन्य अपराध में एक नारी रूपी पूतना ने भी शैतान का साथ दिया जिसे उसके सहयोगी संग 20- 20 साल की सजा हुई है । पूरे देश को इस न्याय से बड़ी राहत मिली और न्याय पर भरोसा मजबूत हुआ । हम नारी शक्ति से विनम्र निवेदन करते हैं कि इन स्वयं को भगवान का एजेंट बताने वाले, गुरुओं के नाम पर कलंक लगाने वाले नरपिशाचों के पास न जाए । भगवान कृष्ण के संदेश 'कर्म' की राह पर चलें । इनकी नीयत, मंसा, लूट और बिजनेस को समझें । इनके भंवर में जो एकबार फंसता है तो फिर वह बाहर नहीं आ सकता । वोट के खातिर हमारे नुमाइंदे इनके चरण चाटते हैं और इन्हें धर्म के नाम पर कुछ भी अवैध करने की छूट देते- दिलाते हैं । हे भारत की नारी, ताक में बैठे इन शैतानों से सावधान !!!

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.04.2018

Wednesday 25 April 2018

बहुगुणा : बहुगुणा हेमवतीनंदन

बहुगुणा जी का स्मरण

      आज 25 अप्रैल 2018 को कंस्टीट्यूसन क्लब नई दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत हेमवतीनंदन बहुगुणा जी का स्मरण किया गया । इस शताब्दी समारोह को पूर्व रक्षामंत्री ak अंटोनी, प्रकाश करात, हरिकेश बहादुर, क्रांति कुमार, आर नाडार, za फैजान, pc चाको और सुनील नेगी जी ने संबोधित किया । यहां मुझे रिश्ते-नाते याद आये । बहुगुणा जी की पुत्री और पुत्र इस सभा में नहीं थे वैसे भी अब वे दोनों पिता वाले राजनैतिक दल में नहीं हैं । बहुगुणा जी ने विभिन्न तरीके से देश की सेवा की । उन्हें उनके 100वें जन्मदिन पर विनम्र श्रद्धांजलि । पूरन चन्द्र काण्डपाल ।

Avaidh dharmik nirmaan : अवैध धार्मिक निर्माण और न्यायालय

बिरखांत-209 : अवैध धार्मिक निर्माण और न्यायालय

        भगवान महावीर जैन, भगवान् गौतम बुद्ध और गुरु नानक देव जी, हिन्दू धर्म से अलग हुए तीन पंथों की नींव डालने वाले महमनीषियों को हम जानते हैं  | महावीर जैन का जन्म 599 ई.पू. हुआ और 72 वर्ष की आयु में 527 ई.पू. में महाप्रयाण हुआ | ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत पर सत्य, अहिंसा एवं कर्म पर चलने तथा लालच, झगड़ा, छल-कपट और क्रोध से दूर रहने का उन्होंने संदेश दिया | भगवान् बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में तथा 80 वर्ष की आयु में 483 ई.पू. में देहावसान हुआ | उन्होंने भी अहिंसा एवं उच्च चरित्र का उपदेश दिया और अंगुलीमाल जैसे मानव हत्यारे का हृदय परिवर्तन कर उसे संत बनाया | गुरुनानक देव जी का जन्म 1469 ई. में हुआ और 70 वर्ष की आयु में 1539 ई. में उनका देहावसान हुआ | उन्होंने ‘ईमानदारी से कमाओ, बाँट कर खाओ और परमात्मा को याद करते हुए जनहित में कर्म करते जाओ’ का संदेश दिया |

     इन तीनों ही महामनीषियों ने हिन्दू समुदाय में व्याप्त अंधविश्वास, कुरीतियां, आडम्बर और दिखावा से कुपित होकर नए पंथ की स्थापना की | लगभग 2500 वर्षों से इन्हीं के तरह कई संतों ने हमारी कमियों को उजागर किया, हमें कई बार जगाया परन्तु हम नहीं बदले | आज हमारे ही बीच से आर्य समाज के अनुयायी भी अंधविश्वास और रूढ़िवाद को मिटाने में बहुत संघर्ष के साथ जुटे हैं |

     अंधविश्वास ने हिन्दू धर्म को बहुत नुकसान पहुँचाया है | मंदिरों में महिला और दलित प्रवेश पर पाबंदी, पूजालयों में पशु बलि, मूर्तियों का दूध- तेल अभिषेक, वर्षा कराने के नाम पर विशालकाय यज्ञ, स्वर्गलोक की कल्पना, गंडे -ताबीज और तंत्र के माध्यम से लूट, जल-स्रोतों में शव, शव-राख और अन्य वस्तुओं का विसर्जन आदि जैसे कई अंधविश्वासों के सांकलों में समाज आज भी बंधा है जिसे कुछ को छोड़ सभी के मूक समर्थन प्राप्त है |

     धर्म के नाम पर हमारी इन विसंगतियों को देश का सर्वोच्च न्याय मंदिर भी जानता है | दो वर्ष पहले एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की खिचाई इसलिए की क्योंकि इन्होने अदालत के उस निर्देश का पालन नहीं किया जिसमें कहा गया था कि वे सार्वजनिक सड़कों और फुटपाथों पर बने अवैध धार्मिक निर्माण/ढांचों को हटाने की दिशा में उठाये गए क़दमों की जानकारी दें | न्यायालय वर्ष 2006 में दायर उन याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था जिसमें सार्वजनिक स्थानों एवं सड़क के किनारे से पूजास्थल समेत अनाधिकृत ढांचों को हटाने का पहले ही आदेश दिया था |

     आज कोई भी व्यक्ति धर्माचार्य बन कर तंत्रिकता और अंधविश्वास को पोषित करता है | गुटखा मुंह में डाले अपने तथाकथित प्रवचन में चोरी से बिजली का कनकसन लेकर चोरी नहीं करने का संदेश देता है तथा अंधविश्वास फैलाता है | समय की मांग है कि एक आर एम पी (रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर) की तरह  इनके लिए भी शिक्षा का स्तर और योग्यता सुनिश्चित की जानी चाहिए तथा इसी आधार पर इन्हें लाइसेंस दिया जाना चाहिए जिससे देश और समाज का हित हो तभी दुनिया हमें सपेंरों का देश कहना बंद करेगी |

     हम देखते हैं किसी भी सड़क के किनारे पेड़ के नीचे एक गेरू लगे पत्थर को तीन पत्थरों से ढक कर उसी शाम वहाँ पर एक दिया जलाकर मंदिर तैयार हो जाता और दूसरे दिने वहां एक चरसिया व्यक्ति गेरुवे वस्त्र पहन कर बैठ जाता है जिसे लोग तुरंत बाबा कहने लगते हैं | यह बाबा कौन है कोई नहीं पूछता | हमें इस मुहीम में मुंह खोलना चाहिए और किसी भी धर्म की मान- मर्यादा को ठेश पहुँचाने वालों को सामूहिक तौर से बेनकाब करना चाहिए | धर्माचार्यों से भी विनम्र अपील है कि वे समाज में व्याप्त अन्धविश्वास के विरोध में जनजागृति कर राष्ट्र –हित में योगदान दें | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.04.2018

Tuesday 24 April 2018

Dhartee garam : धरती गरम हो गई, इसे बचाओ

खरी खरी - 224 :धरती गरम हो गई है, जीओगे कैसे ?

     वर्ष में दो त्यौहार लकड़ी जलाने के- होली और लोहड़ी परंतु पौध रोपण का एक भी त्यौहार नहीं है यहां । सब बेलपत्री और आम की टहनी मंगाते हैं पूजा में । आज तक किसी ने पूजा के दौरान एक पौध रोपने की बात नहीं कही । ये तो होना ही था । धरती से सब कुछ लेते जाओ, इसे कुछ देने की सोच भी तो  करो । वर्ष के 365 दिनों में 5 पेड़ तो रोपो ।

    सालगिरह के दिन, पत्नी के जन्मदिन, बच्चों के जन्मदिन, कोई त्योहार या तिथि के दिन एक पौधा तो रोपो । अब भी जागें तो अच्छा है वर्ना कब मिजाज बिगड़ेगा इस गरम होती धरती का कह नहीं सकते । सहन करने की भी एक सीमा होती है । जिस दिन धरती का धैर्य टूटेगा उस दिन सबकुछ धरा रह जायेगा सिर्फ हम ही नहीं होंगे । अपनी नहीं तो अपनी भावी पीढ़ी की तो चिंता करो ।इसलिए इस चिंतन का गंभीर मंथन करें और पौध रोप कर धरती का श्रृंगार करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.04.2018

Monday 23 April 2018

Riti riwaj k thyakdaar : रीति रिवाज क ठ्यकदार

खरी खरी - 223 : रीत- रिवाज क ठ्यकदार

मै -बाबू कि स्याव नि करि
बार दिन के क्वड़ करें रईं,
न्यूतपट बोलचाल न्हैति
फिर लै मुंडन करें रईं,
क्वड़ पांच-सात दिन क लै
है सकूं पर को मानल ?
जै हुणी यौ बात कौला
उई गुरकि बेर आंख ताणल  ।

जसिक्ये आठ घंट के ब्या
दिन में आदू घंट में है सकूं,
उसिक्ये बार दिन क पिपव लै
पंछां-सतां दिन है सकूं ,
पर रीत -रिवाज क ठ्यकदार
यौ बदलाव में टांग अड़ाल,
क्ये न क्ये नुक्त लगै बेर
आपणी मन कसि कराल ।

गौं में ब्या-काज लै
बाड़ मुश्किलल निभै रईं,
क्वे कैकि मदद निकरन
भै बेर धूं देखैं रईं,
न्यूति बलै बेर लै खाण हैं
नि ऐ दिन ऐंठी रौनी,
उनार दिलों में हमेशा
अन्यसा क किल घैटिये रौनी ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.04.2018

Bhagwsti pd nautiyal : भगवती प्रसाद नौटियाल

मीठी मीठी - 103 : भगवती प्रसाद नौटियाल जी का स्मरण

    गढ़वळि और हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार 86 वर्षीय भगवती प्रसाद नौटियाल जी का 14.04.2018 को देहरादून में अस्वस्थ रहने के बाद निधन हो गया । उनकी स्मृति में कल 22.04.2018 को DPMI न्यू अशोक नगर नई दिल्ली में एक श्रद्वांजलि सभा का उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली,  DPMI तथा उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली द्वारा किया गया । श्रद्धांजिल सभा में कई गणमान्य व्यक्तियों के अलावा दिवंगत नौटियाल जी की पुत्री डा. कुसुम नौटियाल तथा पुत्र वीरेंद्र नौटियाल जी भी मौजूद थे । सभा को डा. विनोद बछेती सहित साहित्य, समाज, राजनीति और पत्रकारिता से जुड़े कई व्यक्तियों ने संबोधित किया । सभा का संचालन उ.लो.सा.मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी जी ने किया । 

    दिवंगत नौटियाल जी का जन्म 10 मई 1931 को गौरिकोट पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखंड में हुआ । वे एक जाने-माने शिक्षाविद, चिंतक, समीक्षक और साहित्यकार थे ।  उन्होंने हिंदी तथा गढ़वळि की अनेक पुस्तकों की समीक्षा की । उनकी पुस्तक 'हिंदी पत्रकारिता की दो शताब्दियाँ और दिवंगत प्रमुख पत्रकार' काफी चर्चित रही । उन्हें उत्तराखंड भाषा संस्थान का साहित्य सम्मान सहित अनेक पुरस्कारों से सुशोभित किया गया । 'गढवाली - हिंदी - अंग्रेजी' त्रिभाषीय शब्दकोश तथा गढ़वाली भाषा का व्याकरण साहित्य को उनकी विशिष्ट देन है । सभी आगन्तुकों ने दिवंगत नौटियाल जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की । साहित्य के ऐसे पुरोधा भलेही दुनिया से कूच कर जाते हैं लेकिन वे अपने कृतित्व के कारण हमेशा जीवित रहते हैं, अमर रहते हैं । नमन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.04.2018

Alag thakuli : अलग थकुली

खरी खरी - 222 : अलग थकुलि नि बजौ

देशा का मिलि गीत कौ
अलग थकुलि  नि बजौ ।

शहीदों कैं याद करो
घूसखोरों देखि नि डरो
कामचोरों हैं काम करौ
हक आपण मांगि बे रौ
अंधविश्वास गव घोटो
अघिल औ पिछाड़ि नि रौ
देशा का...

हमूकैं लडूणियां
ताक लगै बेर चै रईं
जात-धरमा नाम पर
आग लगूं हैं भै रईं
इनूं कणी घुत देखौ
आपसी भैचार बड़ौ
देशा का...

समाओ य देशै कैं
हिमाल धात लगूंरौ
बचौ य बगीचै कैं
जहर यमें बगैंरौ
उंण नि द्यो य गाड़ कैं
बांध एक ठाड़ करो
देशा का...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.04.2018

Saturday 21 April 2018

Balatkaar : कैसे रुके बलात्कार ?

खरी खरी -221 :  'आखिर कैसे रुके बलात्कार ?'

   कानून निर्णताओं से विनम्र सवाल है  कि दुष्कर्म की सजा पाए अपराधी क्यों फांसी पर लटकाए नहीं जाते ? 2012 के निर्भया कांड के चार आरोपी जिन्हें मृत्यु दंड दिया जा चुका है उन्हें कब फांसी होगी ?  न्याय को क्रियान्वित करने में देरी से दुष्कर्मियों के हौंसले बुलंद हैं । उन्हें डर नहीं है । रेप केस का निपटारा शीघ्रता से हो और अपराधी को शीघ्र मृत्युदंड मिले ।

     इस बीच देश में कठुआ, सूरत सहित कएक जगहों पर छोटी छोटी बच्चियों के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले मीडिया के द्वारा दिखाए-बताए जा रहे हैं। अब तो अखबार इन खबरों से भरे रहते हैं । कोई दिन ऐसा नहीं जब ये दिल दहला देने वाली खबरें नहीं छप रहीं हों । आज का सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि इन नरपिशाचों पर लगाम कब लगेगी ? कुर्सी पर बैठे नीतिनियन्ताओं को इस विषय पर गंभीरता से मंथन करने की नितांत आवश्यकता है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.04.2018

Thursday 19 April 2018

Mahangaaee : महंगाई मिटाने का वायदा

बिरखांत-208 : मंहगाई रोकना भी एक वायदा था आपका

     जब हम आपस में आम बातचीत करते हैं तो बातों - बातों में कुछ  प्रश्न अपने आप आ ही जाते हैं, “और भइ क्या कर रहे हो ? क्या हो रहा है ? जिन्दगी कैसी चल रही है ? आदि- आदि | इस का उत्तर भी बहुत ही साधारण होता है, “बस भाई सब ठीक- ठाक है, गुजारा हो ही रहा है, चल रही है दाल-रोटी |” लेकिन यह उत्तर आज उस तरह का नहीं रहा | रोटी- दाल गरीब से दिनोदिन दूर हो रहे हैं ।  उत्तर भारत के जंगलों में तो टिम्बर माफियों ने आग लगाई बता रहे हैं परन्तु लोग पूछ रहे हैं कि इस दाल में आग किन माफियों ने आग लगाई ? दाल में लगी आग को बुझाने के लिए हमारा केंद्र- राज्य तंत्र तमाशबीन क्यों बन गया ?

     एक गरीब या आम आदमी को ज़िंदा रहने कि लिए पानी के अलावा मात्र छै वस्तुएं चाहिए – आटा, चावल, दाल, चीनी, चाय और नमक | सब्जी, दूध, घी- तेल, फल की बात नहीं कर रहा जो उससे बहुत दूर हैं | वर्तमान में इन छै वस्तुओ के दाम आम लोगों की पहुंच से दूर हैं । एक गरीब को रोटी जरूर चाहिए परन्तु रोटी खाने के लिए सब्जी नहीं चाहिए क्योंकि वह नमक के पानी में ही रोटी डुबो कर गुजारा कर लेता है और नमक के पानी के साथ ही चावल भी खा लेता है | जिन्दा रहने के लिए जरूरी उक्त छै वस्तुओं के दाम दिनोदिन बढ़ते ही जा रहे हैं जबकि महंगाई रोकने के वायदे पर ही 2014 मई में नई सरकार आयी थी |

     सब्जियों के दामों में उतार- चढ़ाव कुछ हद तक गरीब भी सह लेता है या वह सब्जी खरीदता ही नहीं | प्याज- टमाटर अधिक नहीं तो कम से भी गुजारा हो जाता है परन्तु जिन्दा रहने के लिए जरूरी इन छै वस्तुओं का तो कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं | सरकार ने इन छै वस्तुओं पर एक अट्ठनी कम करने के बजाय उलटे 16 रु की नमक की थैली भी 18 रु की कर दी है |  इन वस्तुओं के बढ़ते दामों पर नियंत्रण कौन करेगा ? ये वे गरीब हैं जो न बोल सकते हैं और न जलूस निकाल सकते हैं और शायद ये वोट बैंक पर भी असर नहीं डालते | बीपीएल कार्ड धारकों के अलावा इनकी संख्या करोड़ों में हैं | इन छै वस्तुओं के अभाव में यदि कोई गरीब मर भी जाए तो किसी को क्या फरक पढ़ना है | हमें ओडिशा का कालाहांडी क्षेत्र अभी भूला नहीं है जहां आम की गुठलियां और चूहे खाकर लोग जीवित रहे हैं |

     प्रातः या सायंकालीन सैर में अक्सर वरिष्ठ नागरिकों को देश की वर्तमान ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा करते देखा –सुना जाता है | सब एक स्वर- सुर में इस बढ़ती मंहगाई को सरकार की असफलता बताते हैं | कानों पर टकराने वाले चर्चा के कुछ शब्द हैं, “इस महंगाई का आभास हमें चुनाव के दौरान लग गया था जब हमने करोड़ों रुपये के बजट की बड़ी- बड़ी रैलियां देखी थी | उन रैलियों पर जो खर्च हुआ उसकी भरपाई तो होनी ही है |” ये शब्द सत्य प्रतीत होते हैं अन्यथा रातों- रात दालों के दाम क्यों बढ़ गए ?

      कौन रोकेगा दाल सहित अन्य वस्तुओं के दामों को ? आखिर किसने दी व्यापारियों को दाम बढ़ाने की यह खुली छूट ? गिर्दा कह गया, ‘काली रात का अंत तो जरूर होगा’ | (ततुक नि लगा उदेख, घुनन मुनइ नि टेक....) | निराशा से बाहर आकर उम्मीद करते हैं कि हमारा तंत्र देर में ही सही कभी तो जागेगा | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.04.2018