Friday 31 December 2021

Duniya ke saath : दुनिया के साथ

बिरखांत- 421 : दुनिया के साथ हैपी न्यू ईयर


 


     जी हां, आपको भी ‘हैपी न्यू ईयर’, नव वर्ष की बधाई | भारत का नव वर्ष तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (मार्च द्वितीय सप्ताह) माना जाता है परन्तु उस दिन बहुत कम लोगों को हैपी न्यू ईयर या नव वर्ष की बधाई कहते हुए सुना गया है | हमारे देश में मुख्य तौर से प्रति वर्ष तीन नव वर्ष मनाये जाते हैं | पहला 1 जनवरी को जिसकी पूर्व संध्या 31 दिसंबर को मार्केटिंग के बड़े शोर-शराबे के साथ मनाई जाती है | 1 जनवरी का शुभकामना संदेश भी बड़े जोर-शोर से भेजा जाता है | आज भी यही हो रहा है | वाट्सैप, फेसबुक सहित सभी सोशल मीडिया में इस तरह के संदेशों का सैलाब आया है कि संभाले नहीं संभल रहा | यह नव वर्ष भारत सहित अंतरराष्ट्रीय जगत में सर्वमान्य हो चुका है |


 


      दुनिया के साथ चलना ही पड़ता है | जो नहीं चलेगा वह पीछे रह जाएगा ।  कम्प्यूटर क्रान्ति इसका एक उदाहरण है | हमने माशा, रत्ती, तोला, छटांग, सेर और मन की जगह मिलि, सेंटी, डेसी,/ डेका, हेक्टो, किलो, क्विंटल और टन अपनाया है तो विश्व के साथ जनवरी 1 को नव वर्ष मानने में हिचक नहीं होनी चाहिए | घर में हमने अपने बच्चों को हिन्दी महीनों/दिनों के नाम बताने भी छोड़ दिये हैं । 29, 39, 49, 59, 69, 79, 89 और 99 को हिंदी में क्या कहते हैं, हमारे अधिकांश बच्चे नहीं जानते | अपने बच्चों से आज ही पूछ कर देखिये | हम कोई भी भाषा सीखें परन्तु अपनी मातृभाषा तो नहीं भूलें | हमारे देश का वित्त नववर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है | दूसरे नव वर्ष को विक्रमी सम्वत कहते हैं जो ईसा पूर्व 57 से मनाया जता  है | 2022 में वि.स. 2078 है जो 21 मार्च 2021 को आरम्भ हुआ था | तीसरा नव वर्ष साका वर्ष है जो 78 ई. से आरम्भ हुआ तथा इसका वर्तमान वर्ष 1943 है |


 


      भारत एक संस्कृति बहुल देश है जहां कई संस्कृतियाँ एक साथ फल-फूल रहीं हैं | यहां लगभग प्रत्येक राज्य में अलग अलग समय पर नव वर्ष मनाया जाता है | अनेकता में एकता का यह एक विशिष्ट उदाहरण है | हमारे देश ‘भारत’ का नाम अंग्रेजी में ‘इंडिया’ है | कई लोग कहते हैं कि हमारे देश का नाम सिर्फ और सिर्फ ‘भारत’ होना चाहिए | पड़ोसी देशों के नाम अंग्रेजी में भी वही हैं जो वहां की अपनी भाषा में हैं | ‘इंडिया’ शब्द ‘इंडस’ से आया | ‘इंडस’ शब्द ' इंदु ' फिर ‘हिंदु’ से आया और ‘हिंदु’ शब्द ‘सिन्धु’ से आया ( इंडस रिवर अर्थात सिन्धु नदी ) | ग्रीक लोग इंडस के किनारे के लोगों को  ‘इंदोई’ कहते थे |


 


      जो भी हो यदा कदा यह प्रश्न बना रहता है कि एक देश के दो नाम क्यों ? देश में कुछ लोग ‘इंडिया’ को अमीर और ‘भारत’ को गरीब भी मानते हैं अर्थात इंडिया मतलब ‘शहरीय भारत’ और भारत मतलब ‘ग्रामीण भारत’ | हमारा देश सिर्फ ‘भारत’ ही पुकारा जाय तो अच्छा है | हमारे संविधान के आमुख में भी लिखा है “वी द पीपल आफ इंडिया दैट इज ‘भारत’...” अर्थात हम भारत के लोग... |  हम भारतीय हैं, ‘वसुधैव कुटम्बकम’ हमारा विश्व दर्शन है | इसलिए सबके साथ 1 जनवरी को मुस्कराते हुए नव वर्ष की बधाई जरूर कहिये | सभी को नव वर्ष की शुभकामना । नव वर्ष के आगमन पर जब कुछ लोग आज पटाखे छोड़कर नए साल 2022 का स्वागत कर रहे थे तब देश नए ओमीक्रोन की चिंता से चिंतित था परन्तु नेताओं की चुनाव पूर्व रैलियां बदस्तूर जारी हैं।  देश की सीमाओं पर डटे हुए सैनिकों एवम् सैन्य परिवारों को भी नववर्ष की शुभकामना । जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।

      नववर्ष की एक दूसरे को शुभकामना देते समय आज बहुत दुख भी होता है । दुख का कारण है कोरोना (कोविएड - 19) से हुई देश में  विगत 22 महीनों में अब तक 4.81 लाख से अधिक लोगों की असामयिक मृत्यु ।  वर्ष 30 जनवरी 2020 को हमारे देश में इस संक्रमण का पहला केस हुआ था । इस क्रूर संक्रमण से जिनके परिजन चले गए वे उस घटना को कभी भी भूल नहीं सकेंगे क्योंकि संक्रमण के कारण परिवार के लोग जाने वाले पर हाथ भी नहीं लगा सके । विगत 22 महीनों में  हमारे देश में 3.48 करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हुए जबकि पूरे विश्व में यह संख्या 28.7 करोड़ से अधिक थी जिनमें से 54.49 लाख से अधिक लोग काल कवलित हो गए । सभी दिवंगतों को विनम्र श्रद्धांजलि । हम परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि सभी प्रभावित परिवारों को अपने परिजन के चले जाने के दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे । पतझड़ के बाद बसंत जरूर आता है । इसी आशा और विश्वास के साथ पुनः सभी को नववर्ष की शुभकामना । कोरोना के नए वेरिएंट ' ओमी क्रोन ' का खतरा बढ़ रहा है। वैक्सीन और मास्क रूपी कवच से स्वयं और दूसरों को बचाने में हम सबका सहयोग करना नितांत आवश्यक है। 

पूरन चन्द्र कांडपाल


01.01.2022


Thursday 30 December 2021

Date Hain vatan ke liye : डटे हैं वतन के लिए।

मीठी मीठी -684 : डटे हैं वतन के लिए -40०C पर

       आजादी के बाद वर्ष 1947 - 48, 1962, 1965, 1971 और 1999 में हमारी सेना ने बड़े शौर्य के साथ दुश्मन का डटकर मुकाबला किया । वर्ष 1989 से जम्मू -कश्मीर में छद्म युद्ध लगातार हो रहा है जिससे हमारे सैकड़ों सुरक्षा प्रहरी वतन की माटी को अपने लहू से सिंचित कर गए । देश के कुछ अन्य भागों में भी हमारे सुरक्षाकर्मियों ने अपना बलिदान दिया है । हमारी सेना और अन्य सुरक्षा प्रहरियों ने भी दुश्मन की हर गोली का बड़ी मुस्तैदी से मुहतोड़ जबाब दिया और प्रत्येक शहीद के बलिदान का तुरंत बदला लिया । आतंकवाद के नाग का सिर कुचलना अभी बाकी है जिसकी देश को दरकार है । अब तक देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सभी अमर शहीदों को नए साल की पूर्व संध्या पर विनम्र श्रद्धांजलि के साथ नमन । हम नव वर्ष पर अपने सैन्य भाइयों और उनके परिवारों को भी हार्दिक शुभकामना देते हैं जो -40० C पर भी वतन की रक्षा में डटे हैं ।

बर्फीला सियाचीन हो या थार का तप्त मरुस्थल,


नेफा लेह लद्दाख कारगिल रण कच्छ का दलदल ।


हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम सारी मही में तेरा नाम


दुश्मन के गलियारे में भी होती तेरी चर्चा आम ।

     नववर्ष 2022 की पूर्व संध्या पर भलेही आज हम नए साल का स्वागत कर रहे हैं और एक - दूसरे को बधाई- शुभकामना दे रहे हैं परन्तु दिल से हम मातृभूमि के लिए स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक अपना बलिदान देने वाले इन वीर सपूतों के प्रति नतमस्तक होकर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और विनम्रता के साथ सभी शहीद परिवारों का बड़ी आत्मीयता से सहानुभूतिपूर्वक सम्मान करते हैं । 

'शहीदों की चिंताओं में 


लगेंगे हर बरस मेले, 


वतन पर मिटने वालों का 


बस एक यही निशां होगा ।' 

इस गमगीनअंधेरे में 


एक दीप जलाते हैं,


सभी  मित्रों  को  नववर्ष


की शुभकामना देते हैं ।

जयहिन्द, 


जय हिंद की सेना ।

( स्मरण रहे बाहरी दुश्मन को तो हमारी सेना अवश्य परास्त कर देगी लेकिन कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन के वेश में दस्तक दे रहे दुश्मन को हमने मास्क और वैक्सीन रूपी अमोघ हथियार से परास्त करना है। )

पूरन चन्द्र कांडपाल


31.12 .2021


Wednesday 29 December 2021

Doha : दोहा

मीठी मीठी -  683  : कुमाउनी दोहे 


                             ( 8 दोहा, 8 बात )

कविता मन कि बात बतैं,


कसै उठी हो उमाव ।


बाट भुलियां कैं बाट बतैं,


ढिकाव जाई कैं निसाव ।।

द्वि आंखर हँसि बेर बलौ,


बरसौ अमृत धार ।


गुस्सम निकई कड़ू आंखर,


मन में लगूनी खार ।।

लालच जलंग पाखंड झुटि,


राग- द्वेष  अहंकार ।


अंधविश्वास अज्ञान भैम,


डुबै दिनी मजधार ।।

धरो याद इज बौज्यू कैं,


शिक्षक सिपाइ शहीद ।


दुखै घड़िम लै भुलिया झन


धरम करम उम्मीद ।।

याद धरण उ मनखी चैंछ,


मदद हमरि करी जैल ।


हमूल मदद जो कैकि करि,


उकैं भुलण चैं पैल ।।

देश प्रेम जति घटते जां,


कर्म संस्कृति क नाश ।


निहुन कभैं भल्याम वां,


सुख शांति हइ टटास ।।

तमाकु सुड़ति शराब नश,


गुट्क खनि धूम्रपान ।


चुसनी माठु माठु ल्वे वीक,


बैमौत ल्ही ल्हिनी ज्यान ।।

आपणि भाषा भौत भलि,


करि लियो ये दगाड़ प्यार ।


बिन आपणि भाषा बलाइए,


नि ऊंनि दिल कि बात भ्यार। 

पूरन चन्द्र काण्डपाल


30.12.2021


कविता संग्रह 'मुकस्यार'


Tuesday 28 December 2021

Jaimala mein bewade : जयमाला में बेवड़े

खरी खरी - 985 :  जयमाला में बेवड़े दोस्त

        हम सब कहते हैं कि ज़माना बदल गया है | पहले के जमाने में ऐसा होता था, वैसा होता था | सत्य तो यह है कि ज़माना नहीं बदलता बल्कि वक्त गुजरने के साथ कुछ परिवर्तन होते रहता है |  कई शादियों में निमंत्रण निभाया और तरह तरह का बदलाव देखा | धीर-धीरे कैमरे को खुश करने के लिए बहुत कुछ बदलाव हो रहा है | कई बार वर-वधू को दुबारा पोज देने के लिए कहा जाता है | मस्ती के दौर में दोस्त उनसे मुस्कराने की फर्मायस करते हैं | आखिर कोई कितनी देर तक मुस्कराने की एक्टिंग कर सकता है, यह तो मेकअप से लथपथ बेचारी दुल्हन ही जानती है |

     अब बात एक जयमाला की कर लें | इस सीन में जो हो रहा है वह भी बहुत अटपटा है । जयमाला मंच के इस सीन में दूल्हा दोस्तों से घिरा है ( कुछ बेवड़े भी लेकिन होश में ) और दुल्हन भाइयों और सहेलियों से घिरी है | दुल्हन को कैमरे से पहले इशारा मिला कि जयमाला दूल्हे को पहनाओ | ज्योंही वह एक कदम आगे बढाकर जयमाला पहनाने लगी तो दूल्हे के दोस्तों ने दूल्हे को ऊपर उठा लिया | दुल्हन का पहला चांस मिस हो गया और वह टैंस हो गयी जबकि कैमरा ऐक्सन में है | तुरंत भाइयों के हाथों में उठी हुई दुल्हन ने दूसरा प्रयास किया और जैसे –तैसे दोस्तों द्वारा ऊपर उठाये गए, पीछे की ओर टेड़ा तने हुए दूल्हे के गले में जयमाला ठोक दी जैसे घर में घुसे हुए तैंदुवे के गले में बड़ी मुश्किल से रस्सी डाल दी हो |

      इसी तरह दूल्हे को भी दो बार प्रयास करने पर सफलता मिली | दुल्हन का आर्टिफीसियल जेवर भी हिल गया और मेकअप का डिजायन भी बिगड़ गया | एक शादी में तो इस धक्कामुक्की में दूल्हे की माला भी टूट गयी | दोनों ओर के जयमाला मंच पर कबड्डी खिलाड़ियों से कहना चाहूंगा कि ये ऊपर उठाने का फंडा बंद करो और दोनों को ही असहज होने से बचाओ | ऐसा न हो कि गर्दन को माला से बचाने के चक्कर में दोनों में से एक गिर जाय | एक जगह तो दूल्हा - दुल्हन के लिए रखा हुआ सोफ़ा ही मंच पर पलट गया । दूल्हा नीचे गिरने से बाल - बाल बच गया । ये दूल्हे को ऊपर उठाने का भद्दा रिवाज पता नहीं कहां से ले आए लोग ?

      प्यार से नजाकत के साथ दूल्हा - दुल्हन को एक –दूसरे के पास ले जाकर मुस्कराते हुए मधुर मिलन से माल्यार्पण करना बहुत रोचक लगेगा | देखनेवाले भी रोमांचित होंगे और यह मिलन का क्षण अविस्मरणीय बन जाएगा | बेचारों का टेनसन भरा मुर्गा खेल मत कराओ | इस भौंडी हरकत से दोनों तरफ के अभिभावक बहुत असहज महसूस करते हैं और दुखी होते हैं । बेवडों को तो जयमाला मंच से दूर रखना चाहिए । ये बेवड़े तथाकथित दोस्त या रिश्तेदार ही होते हैं । ये निमंत्रण पर आते हैं , बहुत अच्छी बात है परन्तु भद्दा तमाशा क्यों करते हैं, इन्हें स्वयं से जरूर पूछना चाहिए। असहजता की चुभन से दूल्हा - दुल्हन दुखी होते हैं परन्तु इस अवसर पर चुप रहने के सिवाय उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं होता।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.12.2021

Monday 27 December 2021

Apni apni samajh : अपनी अपनी समझ

खरी खरी - 984 : अपनी अपनी समझ

     प्रसिद्ध अंग्रेज साहित्यकार विलियम शेक्सपीयर ने कहा है, ' क्या अच्छा है और क्या बुरा है यह किसी व्यक्ति के सोचने - समझने पर निर्भर करता है।' ठीक कहा लेखक ने । यदि जेबकतरा जेबतराशी को गलत समझता तो वह किसी की जेब नहीं काटता । जेब तो शरीफ व्यक्ति की ही कटती है।  कुछ वर्ष पहले की दो घटनाएं हैं । समाचारों के अनुसार दोनों ही घटनाएं समाज का ध्यान खींचती हैं । पहली घटना में एक पारिवारिक कीर्तन में गायकों पर करीब डेड़ करोड़ रुपये के नोट बरसाए गए । नोट वर्षा की घटनाएं पहले भी देखी गई है । दूसरी घटना सूरत, गुजरात की है जहां एक व्यक्ति ने 236 गरीब जोड़ों को शादी के सूत्र में बांधने का खर्च उठाया और उन्हें जीने की राह दिखाई । दोनों ही जगह नोट खर्च हुए । एक ने कीर्तन में गायकों पर वर्षाए तो दूसरे ने पुण्य की पराकाष्ठा का स्पर्श किया । अपनी अपनी समझ का सवाल है । धन की शोभा उचित भोग से है, 'भोगो भूषयते धनम्' ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.12.2021

Sunday 26 December 2021

Anfhvishwaas ka grahan : अंधविश्वास का ग्रहण

खरी खरी - 983 : अंधविश्वास के ग्रहण को भी समझें

       यह बहुत अच्छी बात है कि सोसल मीडिया पर कई लोग ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे हैं, हमें शिक्षित बना रहे हैं परन्तु इसका विनम्रता से क्रियान्वयन भी जरूरी है | जब भी हमारे सामने कुछ गलत घटित होता है, गांधीगिरी के साथ उसे रोकने का प्रयास करने पर वह बुरा मान सकता है | बुरा मानने पर दो बातें होंगी – या तो उसमें बदलाव आ जाएगा और या वह अधिक बिगड़ जाएगा | गांधीगिरी में बहुत दम है | इसमें संयम और शान्ति की जरुरत होती है और फिर मसमसाने के बजाय बोलने की हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी | 

      हमारा देश वीरों का देश है, राष्ट्र प्रहरियों का देश है, किसानों का देश है,  सत्मार्गियों एवं कर्मठों का देश है,  सत्य-अहिंसा और सर्वधर्म समभाव का देश है तथा ईमानदारी के पहरुओं और कर्म संस्कृति के पुजारियों का देश है | इसके बावजूद भी हमारे कुछ लोगों की अन्धश्रधा -अंधभक्ति और अज्ञानता से कई लोग हमें सपेरों का देश कहते हैं, तांत्रिकों- बाबाओं का देश कहते हैं क्योंकि हम अनगिनत अंधविश्वासों से डरे हुए हैं, घिरे हुए हैं और सत्य का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं | 

      हमारे कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सूर्य घूमता है जबकि सूर्य स्थिर है | हम सूर्य- चन्द्र ग्रहण को राहू-केतू का डसना बताते हैं जबकि यह चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के कारण होता है | हम अंधविश्वासियों को सुनते हैं परन्तु खगोल शास्त्रियों या वैज्ञानिकों को नहीं सुनते । हम बिल्ली के रास्ता काटने या किसी के छींकने से अपना रास्ता या लक्ष्य बदल देते हैं | हम किसी की नजर से बचने के लिए दरवाजे पर घोड़े की नाल या भूतिया मुखौटा टांग देते हैं |

      हम कर्म संस्कृति से हट कर मन्नत मांगते हैं,  गले या बाहों पर गंडा-ताबीज बांधते हैं, हम वाहन पर जूता लटकाते हैं और दरवाजे पर नीबू-मिर्च टांगते हैं, सड़क पर जंजीर से बंधे शनि के बक्से में सिक्का डालते हैं, नदी और मूर्ती में दूध डालते हैं और हम बीमार होने पर  या घर में शिशु के न आने पर या किसी भी समस्या का निदान के लिए डाक्टर के पास जाने के बजाय झाड़ -फूक वाले तांत्रिकों अथावा अंधविश्वास का जाल फैलाए सैयादों के पास जाते हैं | 

       वर्ष भर परिश्रम से अध्ययन करने पर ही हमारा विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होगा । केवल परीक्षा के दिन तिलक लगाने, दही-चीनी खाने या धर्मंस्थल पर माथा- नाक टेकने से नहीं | हम सत्य एवं  विज्ञान को समझें और अंधविश्वास को पहचानने का प्रयास करें | अंधकार से उजाले की ओर गतिमान रहने की जद्दोजहद करने वाले एवं दूसरों को उचित राह दिखाने वाले सभी मित्रों को ये पक्तियां समर्पित हैं - 

 ‘पढ़े-लिखे अंधविश्वासी 

बन गए लेकर डिग्री ढेर,

अंधविश्वास कि मकड़जाल में

फंसते न लगती देर,

पंडे बाबा गुणी तांत्रिक

बन गए भगवान,

आंखमूंद विश्वास करे जग,

त्याग तत्थ – विज्ञान ।

     बदलाव की बयार को कोई थाम नहीं सकता। महिलाओं का शोषण शिक्षा के प्रकाश से अब कुछ कम होने लगा है।  सोसल मीडिया में मित्रों द्वारा मेरे शब्दों पर इन्द्रधनुषी प्रतिक्रियाएं होती रहती हैं | सभी मित्रों एवं टिप्पणीकारों तथा पसंदकारों का साधुवाद तथा हार्दिक आभार | 

पूरन चन्द्र काण्डपाल

27.12.2021

Saturday 25 December 2021

Pakshiyon ko Dana : पक्षियों को दाना

बिरखांत – 420 : पक्षियों को दाना

     अक्सर लोग पक्षियों को दाना- पानी डाल कर पुण्य कमाने की बात करते हैं | प्रकृति का एक नियम है कि यहाँ सबके लिए प्राकृतिक तौर पर भोजन- पानी उपलब्ध है | चिड़िया किसी से कुछ नहीं मांगती, खुद अपने लिए दाना- दुनका चुग लेती है | बाज किसी से नहीं मांगता, अपना शिकार ढूंढ लेता है | चील, उल्लू, चमगादड़ से लेकर कबूतर, गौरैया और हमिंग बर्ड तक सब अपना- अपना भोजन ढूंढ ही लेते हैं | इनकी संख्या प्रकृति से ही संतुलित रहती है बसर्ते लोग इनका शिकार न करें | यदि कभी –गौरैया कम हुयी है तो वह भोजन की कमी से नहीं बल्कि मनुष्य द्वारा दवा के नाम पर शिकार हुयी है | गिद्ध कम हुए तो किसी ने मारे नहीं बल्कि दवाओं के जहर से मृत पशु को खाने से मर गए | केवल आपदा को छोड़कर कर कुदरत में संख्या संतुलन हमेशा बना रहता है |

     शहरों में विशेषतः महानगरों में कबूतरों को देखा- देखी दाना- पानी डालने की होड़ सी लग गयी है | फलस्वरूप इनकी संख्या तेजी से बढ़ गयी है | इतिहास में भलेही कबूतर कभी डाक पहुंचाने का काम करते होंगे परन्तु आज कबूतर मनुष्य को बीमारी फैला रहे हैं | इनसे प्यार- दुलार मनुष्य के लिए दुखदायी हो सकता है | कबूतरों द्वारा घरों के आस-पास डेरा जमाये जाने से लोग दमा, ऐलर्जी और सांस सम्बन्धी लगभग दर्जनों बीमारियों के चपेट में आ सकते हैं | कबूतर के बीट जिसमें से बहुत दुर्गन्ध आती है, और हवा में फ़ैली उनके सूक्ष्म पंखों (माइक्रोफीदर्स) से जानलेवा श्वसन बीमारियाँ हो सकती हैं |

     दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित ‘पटेल चैस्ट इन्स्टीट्यूट दिल्ली’ के अनुसार कबूतर की बीट से ‘सेंसिटिव निमोनाइटिस’ होता है जिसमें बीमार को खांसी, दमा, सांस फूलने की समस्या हो सकती है | कबूतरों के पंखों से ‘फीदर डस्ट’ निकलती है जो कई बीमारियों की जड़ है | यह समस्या कबूतरों के सौ मीटर दायरे तक गुजरने वाले व्यक्ति पर पड़ सकती है | इसके बीट और फीदर डस्ट से करीब दो सौ किस्म की ऐलर्जी होती है | इनके पंखों की धूल से धीरे- धीरे फेफड़े जाम होने लगते हैं और छाती में दर्द या जकड़न होने लगती है |

     पर्यावरणविदों का मानना है कि कबूतरों की संख्या बढ़ने और इनसे जनित रोग लगाने के लिये इंसान ही जिम्मेदार है | जगह- जगह पुण्य के नाम पर दाना डालने से कबूतरों की प्रजनन शक्ति बढ़ रही है जो पर्यवरण  के लिए बेहद खतरनाक है | उनका मानना है कि पक्षियों को दाना खुद ढूढ़ना चाहिए और वे ढूंढ़ते भी हैं  | जब पक्षी अपना भोजन खुद ढूंढ रहा होता है तो उसकी प्रजनन क्षमता संतुलित रहती है | कबूतरों के लिए रखे गये पानी से भी कई बीमारियाँ फैलती हैं |

     अतः पक्षियों को अपना काम स्वयं करने दें तथा पर्यावरण के प्राकृतिक संतुलन में दखल न दें | कुछ लोग पेड़ों के तने के पास चीटियों को भी आटा डालते हैं | इससे पेड़ उखड़ते है क्योंकि चीटियाँ आटे को जमीन में ले जाती और बदले में मिट्टी बाहर लाती हैं | ऐसे पेड़ हल्के तूफ़ान से ही गिर जाते हैं  | चीटियाँ हमारे दिए भोजन की मोहताज नहीं हैं | वे अपना भोजन खुद तलाश लेती हैं | अबारा कुत्तों को भी लोग बड़े दया भाव से खाना डालते हैं परिणाम यह होता है कि वे भोजन की खोज में नहीं जाते और एक ही स्थान पर उनकी संख्या बढ़ते रहती है जिससे कुत्ते काटने के केस बढ़ते जा रहे हैं | कबूतर, चीटी या कुत्ते के बजाय किसी जनहित संस्था, वृक्ष रोपण, अनाथालय या असहाय की मदद पर खर्च करके भी पुण्य कमाया जा सकता है |

पूरन चन्द्र काण्डपाल

26.12.2021

Friday 24 December 2021

Krishmas : क्रिसमस

मीठी मीठी - 681 : क्रिसमस पर रोपिये एक पौधा

होली दिवाली दशहरा
पितृपक्ष नवरात्री,
ईद क्रिसमश बिहू पोंगल
गुरुपूरब लोहड़ी ।   

पौध रोपित एक कर
पर्यावरण को तू बचा,    
उष्म धरती हो रही
शीतोष्णता इसकी बचा ।

हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं ,
बड़े होकर वे रहेंगे कहां?

जल विहीन वायु विहीन
पृथ्वी रहने लायक तो रहेगी नहीं ।
धरा में हरियाली लाओ
सभी त्यौहारों पर एक पेड़
जरूर लगाओ पृथ्वी बचाओ ।

क्रिसमस की शुभकामना ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
25.12.2021

Chunavi mudde : चुनावी मुद्दे

खरी खरी - 982 : चुनावी मुद्दे बनाम अशिष्ट भाषा (व्यंग्य)

   चुनाव के मौसम में टेलीविजन ऐंकर के अगल - बगल  दो दलों के दो कंडीडेट हैं तथा सामने जनता बैठी है ।

ऐंकर- आज के इस 'ठूँ - ठां' कार्यक्रम में हमारे साथ हैं  'खुर्ची पार्टी'  के डोरेमल जी और 'घुर्ची पार्टी' से हैं  टोरेमल जी । ये दोनों बारी बारी से आपके सामने जनहित के मुद्दे रख कर आपसे वोट मांगेंगे । पहले खुर्ची पार्टी के डोरेमल जी बोलेंगे -

डोरेमल - देखिए , घुर्ची पार्टी के पास कोई कार्यक्रम नहीं है । ये जनता को धोखा देते आये हैं । इस बार भी धोखा देंगे ।

टोरेमल - अबे जुबान संभाल के बोल बे लुच्चे । नाली के कीड़े, कुत्ते की दुम, मोटी खाल वाले । अबे हम कभी गाली नहीं देते । गाली देना तुम्हारा चरित्र है बंदर की पूंछ ।

डोरेमल- अबे चुप बे टुच्चे । तुम्हारा चाल, चरित्र, चेहरा सब जानती है जनता । चोर, बेईमान, दगाबाज, लुटेरे कहीं के । जनता बताएगी तुझे ।

टोरेमल- अबे चुप बे लुच्चे । पाखंडी, डपोरशंख, क्यों जोर से भौंकता है ? जनता सिखाएगी तेरे को सबक ।

ऐंकर - ( हल्की आवाज में ) मजा आ रहा है । काश ! इनकी जुबान फिसले । इनका 'स्लिप ऑफ टंग' हो । कुछ बढ़िया गाली देते तो हमारे चैनल की टीआरपी और ज्यादा बढ़ती । (अब ऐंकर जोर से बोला)  भाई डोरे जी और भाई टोरे जी, देखो जनता आप दोनों को देख रही है । गाली- गलौज में कृपया पार्लियामेंट्री भाषा बोलने की कोशिश करें ।

डोरेमल - ये क्या बोलेगा ? भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं ये लोग । ये खा गए देश को । लूट डाला इन्होंने । चुपचाप अपना घर भर रहे हैं ये ।

टोरेमल - अबे भ्रष्ट मुझे आकंठ डूबा बता रहा है । तेरी पार्टी तो सिर तक डूब गई है भ्रष्टाचार में । आंखों में धूल झोंक कर जनता का खून चूस लिया तुमने । इस बार एक भी सीट नहीं मिलेगी तुमको ।

ऐंकर - (हंसते हुए ) इससे पहले मैं ब्रेक  में जाऊं, जनता से बहुत जल्दी एक छोटा सा कॉमेंट ले लेते हैं । जनता बताए, आप किस पार्टी को वोट दोगे ?

जनता - इन दोनों द्वारा एक - दूसरे को दी गई गाली सुनकर हमारा दिमाग घूम गया है । आपकी टीआरपी जरूर बढ़ गई ऐंकर साब । मुद्दे की बात तो एक भी नहीं हुई । शिक्षा, रोजगार, पानी, सड़क, बिजली और स्वास्थ्य पर तो ये दोनों कुछ बोले ही नहीं । समझ में नहीं आ रहा है कि किस गाली पर किस को वोट दें ?  ऐंकर साब ये तो बता देते ईवीएम मशीन में नोटा का बटन भी है क्या ?

ऐंकर - मुझे डायरेक्टर ने ब्रेक लेने को कहा है । ब्रेक के बाद मिलते हैं । इस दौरान ऐंकर ने अपनी पसंद के दल के कंडिडेट को खूब मौका दिया जबकि दूसरे को दबा के इंट्रैप्ट किया ।

जनता - कान पक गए इनकी ये बेमुद्दे की चिल्लापौं सुनकर । एक भी बात नहीं कही इन्होंने कि ये हमारे लिए क्या करेंगे ।बंद करो ये टीवी...खां म खां सिर दर्द हो गया यार...

(टेलीविजन बंद हो जाता है।)

प्रजातंत्र में वोट देना बहुत जरूरी  । वोट देना हमारा संवैधानिक अधिकार है । सोच समझकर मतदान, यही कहता है संविधान।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.12. 2021