Saturday 30 November 2019

Ye Bazar mein naheen mileinge :ये बाजार में नहीं मिलेंगे

खरी खरी - 527 : ये बाजार में नहीं मिलेंगे !

तुम्हारी कुंठा अहंकार ने
दूर रखा तुम्हें सदाचार से,
पैसे से यदि मिल जाएं तो
ये चीजें ले आना बाजार से ।

खुशी नींद भूख स्वास्थ्य
संतोष सुमति ले आना,
कुछ दुआ आशीर्वाद देशप्रेम
कुछ संस्कार संस्कृति ले आना ।

मित्रता दोस्ती स्नेह सभ्यता
रिश्तेदार घर परिवार पड़ोस ले आना,
थोड़ा ज्ञान थोड़ी मुस्कान
थोड़ा शिष्टाचार भी ले आना ।

खूब दौड़ -भाग कर लो
तुम ढूंढते रह जाओगे,
परंतु ये सभी वस्तुएं
किसी बाजार में न पाओगे ।

कोई कितना ही मोल देदे
ये बाजार में नहीं मिलते,
मानव संवेदना स्रोत इनका
ये किसी दुकान में नहीं बिकते ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.12.2019

Friday 29 November 2019

Jara yaad inhein bhee Kar lo जरा याद इन्हें भी कर लो

मीठी मीठी - 388 : जरा याद इन्हें भी करलो


       26 नवम्बर 2008 को मुम्बई आतंकी हमले में 166 निर्दोष लोग मारे गए । इसके अलावा 9 आतंकवादी भी मारे गए और एक (कसाब)जिंदा पकड़ा गया जिसने आतंक का पूरा भेद खोला । इन आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान 9 पुलिस कर्मी भी मारे गए जिनमें से निम्न कविता में वर्णित शहीदों को मरणोपरांत शांति काल में दिया जाने वाला वीरता का सबसे बड़ा सम्मान 'अशोकचक्र' 26 जनवरी 2009 को राजपथ पर राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया । कर्तव्यपथ पर अपने प्राण न्योछावर करनेर वाले इन सभी बहादुरों के जज्बे को हम सलूट करते हुए इन वीरों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

27.11.2019

Thursday 28 November 2019

Jaagar naheen marj dava : जागर नहीं मर्ज दवा

बिरखांत - 293 :  जागर नहीं है मर्ज की दवा (ii, समापन )

          (  पिछले लेख,28.11.2019 से आगे)

... आरम्भ में ढोल- तासे की आवाज मंद होती है जो धीरे-धीरे जोर पकड़ती हुई कड़कीली हो जाती है | तब वह क्षण आता है जब ढोल- तासे के शोर में कुछ भी सुनाई नहीं देता | सारा वातावरण गुंजायमान हो जाता है और इसके साथ ही डंगरिया नाचने लगता है | सौंकार और पंच- कचहरी हाथ जोड़कर स्वागत करते हैं | महिलाएं चावल और फूल चढ़ाती हैं | इसके बाद सौंकार अपनी समस्या देव के सम्मुख रखता है | उत्तर में समस्या पनपने के इने- गिने परम्परागत कारण देव द्वारा बताये जाते हैं जैसे- देव पूजा न करने से देवता रुष्ठ हो गए हैं, बुजर्गों का हंकार (श्राप) है, पांच या सात पीढ़ी की बुढ़िया लगी हा,  पुरखों ने बेईमानी की थी, कई पीढ़ी के पुरखों ने फलाने का हक़ मारा था, भूत- मसाण –हवा का प्रकोप है आदि | भूत- मसाण- हवा की जागर में तो महिलाओं को भी पंच-कचहरी के सामने लोटते –लुड़कते हुए देखा जा सकता है |

     जागर आयोजन का आदेश अक्सर ‘गणतुओं’ (पुछारियों) द्वारा उचेंण (मुट्ठी भर चावल तथा एक फूल) खोलने के बाद दिया जाता है | समस्या के पनपते ही उचेंण एक कपड़े के टुकड़े में बाँध दी जाती है जिसे गणतुआ (स्वयम्भू आत्मज्ञानी स्त्री या पुरुष ) समस्या का कारण बताता है और जागर आयोजन की सलाह देता है | प्रथम जागर में एक निश्चित अवधि, दो- तीन सप्ताह या अधिक दिनों में समस्या समाप्त होने के बाद पूजा करने का संकेत दिया जाता है | यदि निश्चित अवधि में समस्या का निवारण नहीं हुआ तो पुन: जागर आयोजित की जाती है | कुल मिलाकर इसमें पहली जागर की बात दोहराई जाती है साथ ही एक सप्ताह की निश्चित अवधि या जितना शीघ्र हो सके पूजा आयोजन का आदेश दिया जाता है | पूजा के लिए आवश्यक सामग्री मंगाई जाती है जिसमें एक या अधिक बकरियां, मुर्गे और शराब का होना जरूरी है | यह पूजा रात को किसी सुनसान जंगल या गधेरे में होती है जहां मांस- मदिरा मिश्रित उन्माद में ये लोग रात्रि पिकनिक मनाते हैं |

     जागरों के आयोजन तथा पूजा में अथाह धन फूंकने के बाद भी संकट का निवारण नहीं होता तो पुन: जागर आयोजन किया जाता है जिसमें डंगरिया दो टूक शब्दों में कहता है, “तुम्हारे भाग्य का दुःख है भोगना ही पड़ेगा |” एक लम्बे अंतराल तथा धन की बरबादी के बाद डंगरिये के ये शब्द सुनकर निराशा ही हाथ लगती है | कई बार तो उस रोगी की मृत्यु भी हो जाती है जिसके ठीक होने के लिए जागरों का आयोजन किया जाता है |

     उत्तराखंड में लोक विश्वास का रूप लिए हुए यह अंधविश्वास अपनी जड़ जमाये हुए है जिसका शिकार महिलाएं तथा गरीब ही अधिक होते हैं | अशिक्षा और अन्धविश्वास की क्यारी में उपजी यह प्रथा विरोध करने वालों को नास्तिक कहने में देर नहीं करती | कई जागरों और पूजा के पश्चात वांच्छित परिणाम नहीं मिलने का कारण डंगरियों से पूछना उन्हें ललकारने जैसा है | ऐसा जोखिम यहां कोई उठाने को तैयार नहीं | लकीर के फ़कीर बन कर सब मूक दर्शक बने रहते हैं | डंगरियों का डर समाज में इस तरह घर कर गया है कि लोग इनकी खुलकर भर्त्सना भी नहीं कर सकते | लोग सोचते हैं यदि इनसे तर्क करेंगे तो कहीं ये कुछ उलटा-पुल्टा न कर दें | अधिकांश डंगरिये- जगरिये निरक्षर या कम पढ़े लिखे होते हैं | ये भ्रम और अन्धविश्वास फैलाने में दक्ष होते हैं | सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि शिक्षित समाज भी इन्हें देखकर  मसमसाते अवश्य रहता है परन्तु खुलकर विरोध नहीं करता |

     अच्छा तो यह होता कि लोग रोगी को चिकित्सक या वैध के पास ले जाते | कैसी भी जटिल समस्या क्यों न हो उससे जूझने के लिए स्वयं को तैयार करते, असफलता से पुनः लड़ते, साहस- धैर्य- बुद्धि से समस्या का समाधान ढूंढते, भाग्य के भरोसे न बैठकर परिश्रम करते, स्वयं में बदलाव लाते, क्रोध- अव्यवहारिकता- स्वार्थ तथा चमत्कार की आशा को त्यागकर सहिष्णु, आशावादी, व्यवहारिक, निःस्वार्थी तथा कर्म में विश्वास करने वाले बनते | साथ ही इस सत्य को भी समझते कि दुःख- सुख एक दूसरे से जुड़े रहते हैं |अंत में एक बात और- जागर समर्थक समाज में ज्ञान वर्धक एवं कर्म की ओर अग्रसर करने वाले आयोजनों का कोई अर्थ नहीं होता | यदि गांव में रामलीला, भगवत प्रवचन, कोई सांस्कृतिक समारोह, देशप्रेम की बात तथा जागर अलग- अलग स्थानों में एक ही रात्रि या दिन में आयोजित हो रहे हों तो सबसे अधिक उपस्थिति या भीड़ जागर में ही होती है | शिक्षा और कर्म के खरल में सफलता की बूटी हमें स्वयं तैयार करनी होगी |

          इस वेदना की कथा अनंत है | “पढ़े लिखे अंधविश्वासी बन गए लेकर डिग्री ढेर/ अन्धविश्वास के मकड़जाल में फसते न लगती देर/, पण्डे ओझा गुणी तांत्रिक बन गए भगवान्/ आँख मूंद विश्वास करे जग त्याग तथ्य विज्ञान |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.11.2019

Jagar naheen maraj dava I :जागर नहीं मर्ज दवा - I

बिरखांत -292 :  जागर नहीं है मर्ज की दवा (i)

     देवताओं की भूमि कहा जाने वाला प्रदेश उत्तराखंड प्राकृतिक सौन्दर्य, स्वच्छ वातावरण तथा अनगिनत देवालयों के लिए प्रसिद्ध है | यहां के निवासी परिश्रम, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, त्याग, देशप्रेम तथा जुझारूपन के लिए भी जाने जाते हैं | साक्षरता में भी अब यह प्रदेश अग्रणीय हो रहा है | रोजगार के अभाव में पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा | इस पहाड़ी राज्य में पहाड़ से भी ऊँची रुढ़िवादी परम्पराएं यहां के निवासियों को आज भी घेरे हुए है |

     ऐसी ही एक परम्परा है ‘जागर’ जिसे यहां ‘जतार’ या ‘जागरी’ के नाम से भी जाना जाता है | पूरे राज्य में यह परम्परा भिन्न-भिन्न नाम से समाज को अपने मकड़जाल में फंसाए हुए है | सभी जाति- वर्ग का गरीब- अमीर तबका इस रूढ़िवाद में जकड़ा हुआ है जिसे इस जकड़ का तनिक भी आभास नहीं है |

     इस तथाकथित समस्या समाधान के लिए आयोजित की जाने वाली ‘जागर’ में मुख्य तौर से तीन व्यक्तियों का त्रिकोण होता है | पहला है ‘डंगरिया’ जिसमें दास द्वारा ढोल या हुड़के की ताल- थाप पर देवता अवतार कराया जाता है जिसे अब ‘देव नर्तक’ कहा जाने लगा है | दूसरा है ‘दास’ जिसे ‘जगरिया’ अथवा ‘गुरु’ भी कहा जाता है | यह व्यक्ति जोर- जोर से बिजेसार (ढोल) अथवा हुड़का (डमरू के आकार का स्थानीय वाद्य ) बजाकर वातावरण को कम्पायमान कर देता है |  इसी कम्पन में डंगरिये में देवता अवतरित हो जाता है | देवता अवतार होते ही डंगरिया भिन्न- भिन्न भाव- भंगिमाओं में बैठकर अथवा खड़े होकर नाचने लगता है | इस दौरान ‘दास’ कोई लोकगाथा भी सुनाता है | लोक चलायमान यह गाथा जगरियों को पीढ़ी डर पीढ़ी कंठस्त होती है | वीर, विभत्स, रौद्र तथा भय रस मिश्रित इस गाथा का जगरियों को पूर्ण ज्ञान नहीं होता क्योंकि सुनी- सुनाई यह कहानी उन्हें अपने पुरखों से विरासत में मिली होती है | यदि इस गाथा में कोई श्रोता शंका उठाये तो जगरिया उसका समाधान नहीं कर सकता | उसका उत्तर होता है “ बुजर्गों ने इतना ही बताया |”

     ‘जागर’ आयोजन का तीसरा कोण है ‘सौंकार’ अर्थात जो व्यक्ति अपने घर  में जागर आयोजन करवाता है | ‘सौंकार’ शब्द ‘साहूकार’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है धनवान या ऋण देनेवाला | जागर आयोजन करने वाला व्यक्ति अक्सर गरीब होता है परन्तु जागर में उसे ‘सौंकार’ फुसलाने के लिए कहा जाता है ताकि वह इस अवसर पर खुलकर धन खर्च करे |

     ‘जागर’ आयोजन का कारण है आयोजक किसी तथाकथित समस्या से ग्रस्त है जिसका समाधान जागर में करवाना है | बीमार पड़ने, स्वास्थ्य कमजोर रहने, कुछ खो जाने, परिजन का आकस्मिक निधन हो जाने, पशुधन सहित चल- अचल सम्पति का नुकसान होने, पुत्र-पुत्री के विवाह में विलम्ब होने, संतान उत्पति में देरी अथवा संतान नहीं होने, संतान का स्वच्छंद होने, संतान उत्पति पर जच्चा को बच्चे के लिए दूध उत्पन्न नहीं होने, विकलांग शिशु क जन्म लेने, तथाकथित ऊपर की हवा (मसाण –भूत, छल- झपट ) लगने, किसी टोटके का भ्रम होने, दुधारू पशु द्वारा दूध कम देने, जुताई के बैलों की चाल में मंदी आने, तथाकथित नजर (आँख) लगने, परीक्षा में असफल होने, नौकरी न लगने, परिजन के शराबी- नशेड़ी- जुआरी बनने, सास- बहू में तू- तड़ाक होने अथवा मनमुटाव होने, परिवार- पड़ोस में कलह होने, पलायन कर गए परिजन का पत्र अथवा मनीआर्डर न आने अथवा आशानुसार उसके घर न आने जैसी आए दिन की समस्याएं जो वास्तव में समस्या नहीं बल्कि जीवन की सीढ़ियां हैं जिनमें हमें चलना ही होता है, जागर आयोजन का प्रमुख कारण होती हैं | वर्षा नहीं होने, आकाल पड़ने अथवा संक्रामक रोग फ़ैलने पर सामूहिक जागर का आयोजन किया जाता है जिसका अभिप्राय है रुष्ट हुए देवताओं को मनाना परन्तु ऐसा कम ही देखने को मिला है जब जागर के बाद इस तरह के संकट का निवारण हुआ हो |

     व्यक्तिगत जागर पर विहंगम दृष्टिपात करने पर स्पष्ट होता है कि उपरोक्त में से किसी भी समस्या के पनपते ही समस्या-ग्रस्त (दुखिया) व्यक्ति डंगरिये तथा जगरिये से सलाह- मशवरा करके जागर आयोजन की तिथि निश्चित करता है | पूरा गांव जागर वाले घर में एकत्रित हो जाता है | समस्या समाधान की उत्सुकता सबके मन में बनी रहती है | दास- डंगरिये को भोजन कराया जाता है | (अब शराब भी पिलाई जाती है ) | धूप- दीप जलाकर तथा गोमूत्र छिड़क कर स्थान को पवित्र किया जाता है | डंगरिये को आसन लगाकर बैठाया जाता है | ठीक उसके सामने जगरिया और उसका साथी तासा (रौटी) वाला बैठता है | डंगरिये को भंगड़ी (सुल्पे में तम्बाकू के ऊपर छोटे छोटे जलते हुए कोयले रखे जाते हैं ) दी जाती है जिसे वह धीरे- धीरे कश लगाकर पीते रहता है | पंच- कचहरी (वहाँ मौजूद जन समूह ) में धूम्रपान का सेवन खुलकर होता हे | नहीं पीने वाला भी मुफ्त की बीड़ी- सिगरेट पीने लगता है | इसी बीच जगरिया अद्वायी (गाथा) सुनाने लगता है | शेष भाग अगली बिरखांत  293 में...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.11.2019

Abara kutte : अबारा कुत्ते

खरी खरी - 526 : आबारा कुत्तों से परेशान हैं लोग

        देश के हर शहर में आबारा कुत्तों से लोग दुःखी हैं जिनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है । एक समाचार के अनुसार देश में लगभग साड़े चार करोड़ से अधिक आबारा कुत्ते हैं और प्रतिवर्ष बीस हजार लोग कुत्तों के काटने से रेबीज रोग के शिकार होते हैं जबकि कुत्तों के काटने के लगभग दो करोड़ केस होते हैं । यह भयावह स्तिथि महानगरों में अधिक है जिसका विवरण सरकारी और निजी अस्पतालों में देखा जा सकता है ।

      स्थानीय निकाय आबारा कुत्तों की संख्या को रोकने में असहाय लगते हैं । श्वान बंध्याकरण निराशाजनक है तभी यह संख्या बढ़ रही है । अबारा कुत्तों को जहां-तहां पोषित किये जाने से भी इनकी संख्या बढ़ रही है । जिस व्यक्ति को कुत्ते ने काटा है वही जानता है कि उसे कितनी पीड़ा होती है और किस तरह उपचार कराना पड़ता है । समाज चाहे तो आबारा श्वान नियंत्रण में सहयोग कर सकता है । आबारा कुत्तों को भोजन देने से बेहतर है कुत्तों को घर में पाला जाए । इस विषय में किसी प्रकार के अंधविश्वास के भंवर में न पड़ा जाय । यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है । अबारा कुत्ते तो गंदगी करते हैं, पालतू कुत्तों को भी श्वान मालिक बीच सड़क या किसी के भी घर के आगे बेझिझक शौच कराते हैं और मना करने पर 'तुझे देख लूंगा' की धमकी देते हैं । हम भारत माता की जय या वन्देमातरम तो बोलते हैं परन्तु इस भारत माता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझते । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.11.2019

Monday 25 November 2019

Bachcho ko mobail lat : बच्चों को मोबाइल लत

खरी खरी - 525 : बच्चों को मोबाइल की लत से बचाओ

      मोबाइल फोन आज हमारी अभिन्न आवश्यकता बन गया है । हमने अपने स्वार्थ के कारण अपने बच्चों को मोबाइल का शिकार बना दिया है । आरम्भ से ही हम उसके मुंह में दूध की बोतल और हाथ पर मोबाइल थमा रहे हैं । अब बच्चे बिना मोबाइल हाथ में लिए खाना मुंह में नहीं डालने देते । अभिभावक बच्चों को मोबाइल गेम्स लगाकर खाना खिलाने लगे हैं । लगातार मोबाइल प्रयोग से बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है । बच्चे बिना मोबाइल के रोने लगते हैं अर्थात वे मोबाइल की लत के शिकार हो गए हैं ।

      चिकित्सकों का कहना है कि मोबाइल से इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडीयेशन निकलता है जो बच्चों की त्वचा और मस्तिष्क एवम् तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है जिससे कई बार बच्चों को चक्कर आना, जी मिचलाना या उल्टी आना देखा गया है । नजर की कमजोरी और आंख की अन्य समस्या भी लगातार मोबाइल प्रयोग से आने लगी है ।

         मोबाइल जनित सभी समस्याओं का निदान है कि बच्चों को मोबाइल नहीं दिया जाय । बच्चों को दोस्तों के बीच  पार्क में खेलने का समय दिया जाय । उन्हें अन्य खिलौने भी दिए जा सकते हैं । अभिभावकों को भी बच्चों के सामने मोबाइल कम प्रयोग करना चाहिए जिससे उन्हें मोबाइल देखने को न मिले । यदि हमने अपनी भावी पीढ़ी को बचाना है, तंदुरुस्त रखना है, उनकी आंखें बचानी हैं, उनका मस्तिष्क बचाना है तो हमें उनके सामने मोबाइल प्रयोग नहीं करने का संकल्प लेना ही होगा । बड़े बच्चों को बहुत कम समय के लिए मोबाइल दिया जा सकता है । मोबाइल में गेम्स, कामेडी, मनोरंजन आदि बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
26.11.2019

Sunday 24 November 2019

Samvidhan diwas : संविधान दिवस

मीठी मीठी - 387 : संविधान दिवस 


      26 नवम्बर 1949 हुणि भारतक संविधान कैं संविधान सभाल स्वीकार करौ । संविधान लेखण में 2 साल 11 महैण 18 दिन लागीं । 'लगुल ' किताब बै संविधान दिवसक बार में एक लेख यां उद्धृत छ । सबूं कैं संविधान दिवस कि बधै और शुभकामना ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

26.11.2019

Saturday 23 November 2019

Gharwai ki bhakti :घरवाइकि भक्ति

खरी खरी - 524 : घरवाइकि भक्ति

कौसल्या केकई सुमित्रा
दसरथाक छी राणी तीन,
उं बारि बारि कै
बजूंछी दसरथ क बीन ।

अच्याल यूं तीनोंक रोल
घरवाइ एकलै निभै दीं,
कौसल्या सुमित्रा कम
केकई जरा ज्यादै
बनि बेर  दिखै दीं ।

जभणि क्वे मंथरा कि
नजर लै जालि घरवाइ पार,
समझो घर में चलक ऐगो
बिगड़ि गो घरबार ।

भ्यार भलेही सबूं हैं
बागै चार गुगौ,
घर आते ही भिजाई
बिराउ जास बनि जौ ।

घरवाइक सामणि फन फन
नि करो, मुनव कनौ,
खांहूँ नि लै बनै सकना
चहा तब लै बनौ ।

साग-पात सौद पत्त ल्हीहूँ
उ दगै बाजार जौ,
समान उ आफी ख़रीदलि
तुम झ्वल पकड़ि
पिछाड़ि बै ठाड़ हैरौ ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.11.2019

Friday 22 November 2019

kumauni shabd sanrachana :कुमाउनी शब्द संरचना

मीठी मीठी - 386 :  'कुमाउनी शब्द संरचना ' - डॉ चंद्रशेखर पाठक

     नौकुचियाताल (भीमताल , उत्तराखंड ) राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन में डॉ चंद्रशेखर पाठक ज्यू रचित किताब 'कुमाउनी शब्द संरचना ' भेंट स्वरूप प्राप्त हैछ । 112 पन्नों कि य किताब 'नवारुण' वसुंधरा गाजियाबाद बै प्रकाशित है रै । इग्यार अध्यायों में रचित य किताब कएक प्रकारल उपयोगी छ । कुमाउनी में लेखी य किताब में शब्द परिभाषा, शब्द - अर्थ, कुमाउनी शब्दोंक वर्गीकरण, शब्द संरचना कि पद्धति, पदबंध, वाच्य, पक्ष, वृत्ति, काल और कुमाऊनी - हिंदीक क्रिया शब्द भौत विस्तृत रूप में लेखि रईं ।

      किताब लेखण में डॉ पाठक ज्यूल भौत मेहनत करि रैछ । किताब में वर्णित सामग्रीक सबै संदर्भों और लेखकोंक आभार लै उनूल व्यक्त करि रौछ । पाठक ज्यू लेखैं  रईं - "अंत में उं सबै पुस्तकों और उनार लेखकों कैं नमन करूं जनरि ज्ञान राशिक आलोक लि पुस्तकक प्रणयन में जाने -अनजाने सहयोग प्राप्त भेौछ । य पुस्तक निश्चित रूपलि अध्येताओं, जिज्ञासुओं, छात्र -छात्राओं और शोधकर्ताओं लिजिक उपयोगी सिद्ध होेलि, यसि आशा मेरि छ ।" वास्तव में डॉ पाठक ज्यूक श्रम -साधना कैं नमन करनू जो उनूल हमरि भाषाक जिज्ञासुओंक लिजी एक संदर्भ ग्रंथ प्रस्तुत करौ । पाठक ज्यू कैं भौत -भौत बधै और शुभकामना । संपर्क मोब.9412104971.

पूरन चन्द्र कांडपाल
23.11.2019

Thursday 21 November 2019

khoob gali do yaro : खूब गाली दो यारो

बिरखांत -291 : खूब गाली दो यारो !!

    कुछ मित्रों को बुरा लगेगा और लगना भी चाहिए | अगर बुरा लगा तो शायद अंतःकरण से महसूस भी करेंगे | सोशल मीडिया में अशिष्टता, गाली और भौंडापन को हमने ‘अशोभनीय’ बताया तो कई मित्र अनेकों उदाहरण के साथ इस अपसंस्कृति के समर्थक बन गए | तर्क दिया गया कि रंगमंच में, होली में तथा कई अन्य जगह पर ये सब चलता है | चलता है तो चलाओ भाई | हम किसी को कैसे रोक सकते हैं | केवल अपनी बात ही तो कह सकते हैं |

       दुनिया तो रंगमंच के कलाकारों, लेखकों, गीतकारों और गायकों को शिष्ट समझती है | उनसे सदैव ही संदेशात्मक शिष्ट कला की ही उम्मीद करती है, समाज सुधार की उम्मीद करती है | मेरे विचार से जो लोग इस तरह अशिष्टता का अपनी वाकपटुता या अनुचित तथ्यों से समर्थन करते हैं वे शायद शराब या किसी नशे में डूबी हुई हालात वालों की बात करते हैं अन्यथा गाली तो गाली है |

     सड़क पर एक शराबी या सिरफिरा यदि गालियां देते हुए चला जाता है तो उसे स्त्री-पुरुष- बच्चे सभी सुनते हैं | वहाँ उससे कौन क्या कहेगा ? फिर भी रोकने वाले उसे रोकने का प्रयास करते हैं परन्तु मंच या सोशल मीडिया में तो यह सर्वथा अनुचित, अश्लील और अशिष्ट ही कहा जाएगा | क्या हमारे कलाकार या वक्ता किसी मंच से दर्शकों के सामने या घर में मां- बहन की गाली देते हैं ? यदि नहीं तो सोशल मीडिया पर भी यह नहीं होना चाहिए ।

     हास्य के नाम पर चुटकुलों में अक्सर अत्यधिक आपतिजनक या द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग भी खूब हो रहा है, यह भी अशिष्ट है | अब जिस मित्र को भी हमारा तर्क ठीक नहीं लगता तो उनसे हम क्षमा ही मांगेंगे और कहेंगे कि आपको जो अच्छा लगे वही बोलो परन्तु अपने तर्क के बारे में अपने शुभेच्छुओं और परिजनों से भी पूछ लें | यदि सभी ने आपकी गाली या अशिष्टता का समर्थन किया है तो हमें जम कर, पानी पी पी कर गाली दें | हम आपकी गाली जरूर सुनेंगे क्योंकि जो अनुचित है उसे अनुचित कहने का गुनाह तो हमने किया ही है ।

     आजकल अनुचित का खुलकर विरोध नहीं किया जाता | लोग डरते हैं और मसमसाते हुए निकल लेते हैं | हम गाली का जबाब भी गाली से देने में विश्वास नहीं करते | कहा है -

“गारी देई एक है,
पलटी भई अनेक;
जो पलटू पलटे नहीं,
रही एक की एक |”

     साथ ही हम मसमसाने में भी विश्वास नहीं करते - 

“मसमसै बेर क्ये नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौ बाट में जो दव
हिम्मत ल उकें फोड़णी चैनी |”

(मसमसाने से कुछ नहीं होता, निडर होकर मुंह खोलने वाले चाहिए, रास्ते में जो चट्टान अटकी है उसे हिम्मत से फोड़ने वाले चाहिए) | इसी बहाने अकेले ही चट्टान तोड़कर सड़क बनाने वाले पद्मश्री दशरथ माझी का स्मरण भी कर लेते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.11.2019

Wednesday 20 November 2019

Yamuna ka santaap : यमुना का संताप

खरी खरी - 523 : यमुना का संताप

स्वच्छ हुई नहीं
गंदगी बढ़ती गई,
पर्त कूड़े की तट
मेरे चढ़ती गई,
बढ़ा प्रदूषण रंग
काला पड़ गया,
जल सड़ा तट-तल
भी मेरा सड़ गया ।

व्यथित यमुना रोवे
अपने हाल पर,
पुकारे जन को
मेरा श्रृंगार कर,
टेम्स हुई स्वच्छ
हटा कूड़ा धंसा,
काश ! कोई तरसे
देख मेरी दशा ।

आह ! टेम्स जैसा
मेरा भाग्य कहां ?
उठी स्वच्छता की
गूंज संसद में वहां,
क्या कभी मेरे लिए
भी यहां खिलेगी धूप ?
कब मिलेगा मुझे
मेरा उजला स्वरूप ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.11.2019

Tuesday 19 November 2019

Maran baad yaad : मरण बाद याद

खरी ख़री - 522 : मरण बाद याद

मैंसा क मरण बाद
काबिलियत याद ऐं,
वीक ज्यौंन छन
दुनिय चुप रैं ,
गौरदा गिरदा शेरदा क
बार में लै यसै हौ,
उनार जाण बाद
लोगों कैं य महसूस हौ ।

के बात नि हइ
क्वे त उनुकैं याद करें रईं,
उनरि याद में कभतै त
गिच खोलें रईं,
अणगणत हुनरदार
चुपचाप यसिके गईं,
शैद दुनिय कि रीत यसी छ
जानै जानै य बात कै गईं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.11.2019

Monday 18 November 2019

Indira Gandhi : इंदिरा गांधी

मीठी मीठी - 385  : आज इंदिरा गांधी क जन्मदिन

     देशकि तिसरि और पैल महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी क आज 19 नवम्बर हुणि जन्मदिन छ । देश कैं प्रत्येक क्षेत्र में समृद्धशाली बनूण और देश कैं एकजुट धरण में उनर नाम सर्वोपरि छ । 1971 क भारत -पाक युद्ध 93000 पाक सेनाल उनरै नेतृत्व में घुन टेकीं और दुनियक नक्स में बांग्लादेश बनौ । "लगुल" किताब में लै उनरि चर्चा छ । पुस्तक ''महामनखी" बटि उनार बार में मुणि एक नान लेख उधृत छ ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

19.11.2019


Sunday 17 November 2019

sikhon se seekh : सिक्खों से सीख

मीठी मीठी -384 : सिक्खों से सीख

         मैं एक भारतीय हूँ और सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ परन्तु सिक्ख धर्म जिसकी स्थापना गुरु नानक देव जी (1468 - 1539 ) ने ई.1499  में की, हमें बहुत कुछ सिखाता है क्योंकि इसकी निम्न विशेषता है -

1. पूजा मूर्ति की नहीं बल्कि पवित्र पुस्तक 'गुरु ग्रंथ साहब' की होती है । शबद - कीर्तन में कानफोडू शोर नहीं होता ।

2. किसी तरह का आडम्बर -पाखंड नहीं है । शादी -विवाह अक्सर किसी भी रविवार को होती है ।

3. पाठी (पुजारी) किसी भी जाति का हो सकता है।

4. लंगर व्यवस्था निरंतर है । दान स्वेच्छा से दान पात्र में ।

5. कही भी आपदा होने पर सिक्खों को सबसे पहले पहुंचते देखा गया हैं ।

6. राशि -कुंडली- अंधविश्वास, पशु बलि आदि कुछ भी नहीं ।

7. किसी गुरुद्वारे में मन्नत नहीं मांगी जाती । स्वच्छता का विशेष ध्यान होता है ।

8. सभी अन्य धर्मों का सम्मान सिखाया जाता है ।

9. प्रत्येक अमीर गरीब साथ बैठकर लंगर छकते हैं ।

10. कोई किसी भी गुरुद्वारे में निःशुल्क रैन-बसेरा कर सकता है ।

(पुनः संपादित -साभार सोसल मीडिया मित्र धीरज कुमार । उक्त बिंदुओं पर मंथन कर हम बहुत कुछ अपना सकते हैं ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.11.2019