Thursday 30 April 2020

Kitani daaroo theek rajegi ? :कितनी दारू ठीक रहेगी ?

खरी खरी - 620 : कितनी दारू ठीक रहेगी ?

        (देश की अधिकांश शराब की दुकानें और देशी ठेके मजदूरों की बदौलत ही गुलजार रहती हैं । मजदूर दिवस पर मंथन करें कि आख़िर शराब पीने की मजबूरी क्या है ? भले ही आजकल दारू के ठेके बंद हैं परन्तु लौकडाउन खुलते ही ये ठेके फिर गुलजार हो जाएंगे । आज 01 मई 2020, देश में लौकडाउन का 38/40वां दिन है । घर में रहिए । जिम्मेदार नागरिक बनिए । हालात बिगड़ते जा रहे हैं । सहयोग करिए और कर्म वीरों को नमन करिए । मजदूर दिवस पर आज देश ही नहीं विश्व के सभी मजदूर परेशान हैं । निराश न हों । कोरोना हारेगा और मानव जीतेगा । मजदूर दिवस की सभी मजदूरों को शुभकामना ।)

    कुछ दिन पहले (जब कोरोना का दौर नहीं था )  सायँकालीन सैर के समय कुछ दारूबाज रोज की तरह पार्क में दारू गटकाते हुए मिल गए । ''सार्वजनिक स्थान पर यह प्रतिबंधित कर्म क्यों कर रहे हो ?'' कुछ हिम्मत के साथ जब यह सवाल पूछा तो बोले, "जाएं तो जाएं कहां ? घर में पी नहीं सकते, कार्यस्थल पर भी मनाही है और यहां सुनसान में आपको आपत्ति है ?" "पीते ही क्यों हो ? दारू अच्छी चीज नहीं है । स्वास्थ्य, धन, सम्मान, घर -परिवार सब बरबादी ही बरबादी होती है दारू से ।" बहुत देर तक बहस हुई । वे सवा सेर मैं मात्र छटांग भर । अंत में एक बोला, "सर आप हमारे भले के लिए कह रहे हैं , छोड़ने की कोशिश करेंगे ।" दूसरा बोला, "सर कम से कम कितनी दारू ठीक रहेगी ? कई डाक्टर -वैद्य भी तो पीते हैं ।"

      मैंने पुलिस नहीं बुलाई क्योंकि ऐसा करने से पुलिस लाभान्वित होती रही है । समझा कर हृदय परिवर्तन का लक्ष्य था सो समझाया, "शराब हर हाल में नुकसान दायक है । मैं आपको शराब छोड़ने के लिए ही कहूंगा ।" तीसरा बोला, "सर एक पैग तो चलेगा, ज्यादा ठीक नहीं ।" मैने कहा, "एक पैग के बाद ही अगला पैग लगाते हैं आप लोग । एक पैग के बाद बंद करो तब ना ।" वे सुनते रहे । छै लोग थे । बिना नमकीन के बोतल समापन की ओर थी । कुछ सुन रहे थे, कुछ मसमसा रहे थे और कुछ डौन हो चुके थे । मैंने उन्हें चार 'D' की बात समझायी और चला आया । 

    क्या है ये चार 'D' ?  चार डी दारू के चार पैग की दास्तान है जिससे एक- एक कर चार पैग दारू पीने के परिणाम सामने आते हैं । एक पैग- Delighted खुश, दूसरा पैग- Dejected उदास,  तीसरा पैग- Devilish राक्षस और चौथा पैग - Dead drunk मृतप्राय लंबा लेट गया जमीन पर । चार पैग का क्रमशः अंजाम है खुश, उदास, राक्षस और मृत प्रायः । मुझे दूर तक उनकी आवाज सुन रही थी । एक कह रहा था, "भइ बात सही कह गया ये बंदा । अब दारू कम करनी पड़ेगी ।"

      (मजदूर दिवस पर सभी दारू पीने वाले मजदूरों को/मितुरों को इस उम्मीद के साथ शुभकामना  कि आपकी मजदूरी, परिवार और स्वास्थ्य दोनों सकुशल रहेंगे यदि आप दारू छोड़ दें तो । दारू छोड़ना कोई असम्भव कार्य भी नहीं है । बस एक बार दृढ़ प्रतिज्ञ होकर ठान लीजिए । मां के गर्भ से तो हम दारूबाज नहीं थे, दुनिया में आने पर ऐसे यार/दोस्त मिले जिन्होंने हमें दारुबाज/नशेड़ी बना दिया ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.05.2020

Wednesday 29 April 2020

Patthar kyon ? :पत्थर क्यों

खरी खरी -  619 : कर्मवीरों पर पत्थर क्यों ?

        आज कोरोना लौकडाउन का 37वां दिन है । विश्व में कोरोना संक्रमितों की संख्या 32.19 लाख से अधिक हो चुकी है जबकि 2.28 से अधिक रोगी मृत हो चुके हैं । हमारे देश में संक्रमितों की संख्या 32 हजार से अधिक हो चुकी है और एक हजार से अधिक इस क्रूर के ग्रास हो चुके हैं । यह बहुत ही दुखद है और देश के लिए अपूरणीय क्षति है । हमें लौकडाउन का सम्मान करते हुए घर में रहना चाहिए ।

         जहां एक ओर देश इस त्रासदी से लड़ रहा है वहीं कुछ सिरफिरे उन कोरोना कर्म वीरों पर पत्थर फेंक रहे हैं जो अपना घर -परिवार त्यागकर सड़क से अस्पताल तक हर रूप में कोराना से लड़ रहे हैं । समाचारों में बताया जाता है कि अमुक जगह पुलिस पर पत्थर मारे गए और अमुक जगह कोरोना रोगी को लाने गए स्वास्थ्य कर्मियों को पत्थर मारे गए । यह बहुत पीड़ा दायक है । आखिर ये पत्थर मारने वाले कौन हैं जो बजाय कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाने के उन्हें पत्थर क्यों मार रहे हैं ? राग हिन्दू - मुस्लिम भी कोरोना को रोकने में अड़चन पैदा करेगा । इस राग से देश को बचाना है । ये जो भी हैं ये इंसान नहीं हैं । ऐसी हरकत नरपिशाच ही करते हैं । सरकारों को इन सिरफिरों को सख्त से सख्त दंड देना चाहिए । कुछ सिरफिरों को छोड़कर सम्पूर्ण राष्ट्र कोरोना से लड़ने वाले इन कर्मवीरों को हार्दिक शुभकामना दे रहा है और 'नमन' कहते हुए उनका मनोबल बढ़ा रहा है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.04.2020

Tuesday 28 April 2020

PPE kits : पी पी ई किट

खरी खरी - 618 : पी पी ई किट्स पहनना साहसी कार्य

       चीन द्वारा उत्पन्न वैश्विक संकट कोविड -19 (कोरोना वायरस ) से विश्व में 31.37 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं जिनमें से 2.17 लाख मृत हो चुके हैं । भारत में इस रोग का पहला केस 30 जनवरी 2020 को पहचान में आया । आज देश में 31 हजार से अधिक लोग ग्रसित हैं जबकि एक हजार से अधिक मृत हो चुके हैं । आज देश में  लौकडाउन का 36/40वां है । देश को बचाने के लिए हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम घर में रहें, केवल बहुत जरूरी कार्य के लिए बाहर निकलें । घूमना या धर्म स्थलों में जाना जरूरी कार्य नहीं है ।

          इस समय देश के कर्मवीर इस रोग को हराने में जुटे हैं । अस्पताल में रोगी से संपर्क करने वाले प्रत्येक कर्मवीर को पी पी ई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट ) किट पहननी अनिवार्य है । सिर से लेकर पैर तक पूरे शरीर को ढकने के लिए कई परतों में यह किट पहनी जाती है जिसमें एडल्ट डाईपर भी शामिल है । इस किट से शरीर को हवा नहीं मिलती और असहजता पैदा होती है । जीवन को जोखिम में डालने वाले ये कर्मवीर इस किट को बड़ी हिम्मत और सही तरीके से पहनते हैं । थोड़ी सी असावधानी खतरनाक हो सकती है । ये कर्मवीर इस अवस्था में भी बड़े धैर्य और साहस से अपना कर्तव्य निभाते हैं ।

    हम इन कर्मवीरों को सलाम कहते हैं, नमन करते हैं और सलूट करते हैं । इनका कर्म व्यर्थ न जाय इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम कोरोना को हराने के लिए घर में रहें तथा लौकडाउन का सम्मान करें । अभी भी कुछ लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे और धार्मिक स्थानों व मंडियों में जा रहे हैं तथा सड़कों पर घूम रहे हैं । सबसे बड़ा धर्म देश है । देश को बचाएं और घर में रहें तथा प्रत्येक कर्मवीर को घर बैठे शुभकामना दें ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.04.2020

Monday 27 April 2020

Niboo mirch : निबू मिर्च

खरी खरी -617 : नीबू-मिर्च वाले पड़ोसी

(आज कोरोना लौकडाउन का 35/40वां दिन, ये दिन भी जाएगा गुजर, गुजर गए 34 दिन । विश्व में कोरोना संक्रमित संख्या 30.64 लाख और ग्रास हुई संख्या 2.11 लाख तथा हमारे देश में संक्रमित संख्या 29 हजार से अधिक व ग्रास हुई संख्या पौने नौ सौ हो गई है । घर में रहें, लौकडाउन का सम्मान करें । कोरोना से लड़ने वाले कर्मवीरों को जयहिंद ।)

सात मिर्च, एक नीबू
दोनों पड़ोसियों ने,
अपने अपने दरवाजे पर
आमने-सामने लटकाई  ।

आपस में एक दूसरे की
नजर जीने में टकराई,
अचानक टकराने पर
नजर नहीं मिलाई ।

न मुलाकात, न जज्बात
न कभी बात, न नजर मिले,
शायद इसी लिए ही
नीबू -मिर्च लटकाई ।

दोनों ही जग से कहते हैं
पड़ोस से मिलकर रहना,
जरूरत पड़ने पर पड़ोस ही
काम आएगी मेरे भाई ।

कोरोना ने कुछ तो सिखाया
ऊंच नीच सब एक दिखाया
धर्म संप्रदाय सब समझाया
पर कइयों के समझ न आया।

अब न नफ़रत न लगे नजर
सिर्फ एक कोरोना का डर
दुनिया में कैसा ढाया कहर
तू रह चौकन्ना आठों पहर ।

आज लौकडाउन का दौर
सब बैठे हैं चुप अपनी ठौर
जीने का सीख अब नया तौर
पतझड़ जाए, आए नई बौर।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.04.2020

Sunday 26 April 2020

Andhshraddha ki samajh : अंधश्रद्धा की समझ

खरी खरी - 616 : अंधश्रद्धा की समझ

      अंधविश्वासियों ने हमेशा विज्ञान का लाभ तो लिया परन्तु लोगों को किसी न किसी तरह अंधविश्वास में जकड़े रखा । आज भी गंगा सहित देश की नदियों में अंधश्रद्धा से वशीभूत लोग  दूध बहा रहे हैं और जमकर धार्मिक विसर्जन कर रहे हैं । काश !  यह दूध नदियों और मूर्तियों में बहने के बजाय किसी कुपोषित बच्चे के मुंह में जाता तो देश से कुपोषण दूर होता और देश का IMR (शिशु मृत्यु दर) कम होती । भारतमाता को अंधविश्वास से मुक्त करके ही हम विश्वगुरु बन सकते हैं । विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है ।

      आज ( लॉकडाउन का 34/40वां दिन ) पूरा विश्व कोरोना संक्रमण से दुखित है जहां 29.9 लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं और 2.06 लाख से अधिक लोग इस रोग के ग्रास बन चुके हैं । हमारा देश भी इस त्रासदी को झेल रहा है । देश में 27 हजार से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हैं और आठ सौ से अधिक इसके ग्रास बन चुके हैं । चिकित्सा वैज्ञानिक और अनगिनत हाथ सामूहिक रूप से इस रोग से लड़ रहे हैं । देश में कई तथाकथित धर्मगुरु ऐसी महामारी में इसका अंधविश्वास के तरीकों से उपचार बताते हैं । हम चाहे किसी भी धर्म या संप्रदाय के हों हमें केवल और केवल चिकित्सकों के ही निर्देश को मानते हुए लौकडाउन का सम्मान करना है और सोसल डिस्टैंस बनाए रखना है ।

     हमारे देश में टेलीविजन के सैकड़ों चैनलों में प्रतिदिन अंधविश्वास परोसा जाता है जिसके कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण को धक्का लगता है । समाज को आज भी शनि- राहु - केतु की डोर से उलझाये रखा गया है । हमें ऐसे तथाकथित गुरु - चेलों से बचना है जो सत्य स्वीकारने को तैयार  नहीं हैं । कहते हैं -

जाका गुरु भी अन्धत्वा, चेला निरा निरंध ।
अंध ही अंधा ठेलिया, दोऊं कूप पड़न्त ।।

    अंधश्रद्धा से वशीभूत लोग भारतमाता को कहां ले जाना चाहते हैं यह हमने समझना - सोचना है । भगवान तो प्रतीक के बतौर केवल एक बूंद दूध- जल की श्रद्धा से सन्तुष्ट हो जाते हैं फिर यह मूर्ति के ऊपर से होता हुआ दूध नाली में क्यों बह रहा है ? मंथन करेंगे तो उत्तर अवश्य मिलेगा । आपके द्वारा किसी कुपोषित बच्चे को दिया गया दूध हमारे देश को ताकत देगा और भारत का IMR सुधरेगा ।  जयहिन्द ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.04.2020

Saturday 25 April 2020

Apne gurdon ki bhee suno : अपने गुर्दों की भी सुनो

खरी खरी - 615 : अपने गुर्दों की भी सुनो

(आज कोरोना लौकडाउन का 33/40वां दिन है । कोरोना रोग से विश्व में कल तक 29.2 लाख लोग संक्रमित हो गए हैं और 2.03 लाख से अधिक इसके ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी 26 हज़ार से अधिक ग्रसित और आठ सौ से अधिक ग्रास बन चुके हैं । घर में रहें, लौकडाउन का सम्मान करें, अफवाहों पर ध्यान न दें, कर्मवीरों की जयकार करें । हारेगा कोरोना, जीतेंगे हम ।)

     स्वास्थ्य जागृति के लिए वर्षों से मैं जनहित में कुछ न कुछ लिखते रहता हूं । कुछ ही दिन पहले आटिज्म, क्षय रोग, मोटापा, डिप्रेशन और मधुमेह के बारे में कुछ शब्द लिखे थे । कोरोना रोग के बारे में भी जब से इसने मानव पर आक्रमण किया है कुछ न कुछ लिखते आ रहा हूं । कई मित्रों ने इन लेखों पर बहुत रुचि दिखाई और मेरे शब्दों को साझा भी किया । इसी क्रम में आज गुर्दों (kidney) की चर्चा करते हुए आप से पूछना चाहता हूँ कि आप कितना नमक खाते हैं ?

      हमारे शरीर में दो गुर्दे हैं जिनका मुख्य कार्य शरीर की गंदगी बाहर करना है । जितना भी तरल पदार्थ हम पीते हैं गुर्दे उसका तत्व छानकर हमारे पोषण में लगा देते हैं तथा शेष तरल को मूत्र के रूप में बाहर कर देते हैं । उत्सर्जन तंत्र ( Excretory system) में गुर्दों का बहुत महत्वपूर्ण कार्य है । यदि हमारे गुर्दे ठीक से काम नहीं करेंगे तो हमारे रक्त की स्वच्छता नहीं हो पाएगी और हम अनेक बीमारियों के शिकार हो जाएंगे । अक्सर हम सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति की किडनी फेल हो गई है या अमुक व्यक्ति डायलिसिस पर है ।

     गुर्दे खराब होने या गुर्दे में स्टोन (पथरी) बनने के लिए हमारा खानपान जिम्मेदार है जिसमें अधिक नमक या अधिक मसाले होते हैं । एक व्यक्ति को प्रतिदिन 3 से 4 ग्राम ही नमक लेना चाहिए । इससे अधिक नमक हर हाल में हानिकारक है । उत्तराखंड में अधिकतर लोग अनभिज्ञता के कारण अधिक नमक खाते हैं । अधिक नमक से रक्तचाप भी बढ़ता है । सलाद में बिलकुल नमक नहीं लेना चाहिए बल्कि भोजन की मेज पर नमक होना ही नहीं चाहिए । यदि आपके परिवार में चार व्यक्ति हैं तो 1 किलो नमक 2 महीने के लिए काफी है । इसलिए मित्रो अपने नाजुक गुर्दों की सुनते हुए नमक कम खाओ और अपने गुर्दों की हिफाजत करो ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.04.2020

Aao manthan karein :आओ मंथन करें

खरी खरी - 614 : आओ मंथन करें ...

      आज से 9 वर्ष पहले 2011 में मेरी पुस्तक ' उजाले की ओर ' प्रकाशित हुई । उसके पृष्ठ आवरण पर 10 बातें लिखी हैं । मुझे लगता है ये 10 बातें आज भी उतनी ही सत्य और मंथनीय हैं जितनी तब थीं । इस पुस्तक में भी मैंने 'यथार्थ का आईना '( 2009 में प्रकाशित )की ही तरह राष्ट्रहित के 101 मुद्दे उनके समाधान  सहित बहुत ही लघु रूप में लिखे हैं ।

      आज कोरोना लौकडाउन का 32/40वां दिन है । दुनिया में कोरोना संक्रमितों की संख्या 28 लाख पार कर गई है और 1.97 लाख लोग कोरोना के ग्रास बन गए हैं । हमारे देश में भी 23 हजार से अधिक संक्रमित हैं और सात सौ से अधिक लोग क्रूर कोरोना के शिकार हो चुके हैं । घर में रहना और निर्देश पालन करना तथा परेशानियों को राष्ट्रहित में सहना आज के वक्त की मांग है तभी हम इस बीमारी को भगा सकते हैं । कोरोना कर्मवीरों को जयहिंद, साधुवाद, नमन ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
25.04.2020

Thursday 23 April 2020

kyaa yah sach naheen hae ? :क्या यह सच नहीं है ?

खरी खरी - 613 : क्या यह सच नहीं ?


      आज से 11 वर्ष पहले 2009 में मेरी पुस्तक ' यथार्थ का आईना ' प्रकाशित हुई । उसके पृष्ठ आवरण पर 11 बातें लिखी हैं । मुझे लगता है ये 11 बातें आज भी उतनी ही सत्य हैं जितनी तब थीं । इस पुस्तक में मैंने राष्ट्रहित के 101 मुद्दे उनके समाधान  सहित बहुत ही लघु रूप में लिखे हैं । 

           आज कोरोना लौकडाउन का 31/40 वां दिन है । दुनिया में संक्रमित लोगों की संख्या 27 लाख पार कर गई है और 1.9 लाख लोग कोरोण के ग्रास बन गए हैं । हमारे देश में भी 22 हजार से अधिक संक्रमित हैं और पौने सात सौ लोग क्रूर कोरोना के शिकार हो चुके हैं । घर में रहना और निर्देश पालन करना तथा परेशानियों को राष्ट्रहित में सहना आज के वक्त की मांग है तभी हम इस बीमारी को भगा सकते हैं । कोरोना कर्मवीरों को जयहिंद, साधुवाद, नमन ।

 

पूरन चन्द्र कांडपाल

24.04.2020

Wednesday 22 April 2020

Bhoot la bhajan ni paay : भूतल भाजन नि पाय

बिरखांत - 313 : भूतल भाजण नि पाय

      वर्ष 1995 में म्यर पैलउपन्यास  ‘जागर’ हिंदी अकादमी दिल्ली क सौजन्य ल प्रकाशित हौछ जो बाद में ‘प्यारा उत्तराखंड’ अखबार में किस्तवार छपौ लै | जैल लै य देखौ वील यकैं भल बता | एक दिन महानगर दिल्ली में रत्ते पर उपन्यासक एक पाठक रेशम म्यार पास ऐ बेर बला, “कका आज दिन में तीन बजी हमार घर भूत कि जागर छ, म्येरि घरवाइ पर भूत नाचें रौ  | एक कम्रक मकान छ, बैठणक लिजी जागि न्हैति ये वजैल केवल आपूं कैं और एकाध सयाण झणी कैं बलूं रयूं | डंगरि आल, दास नि अवा | डंगरि बिना ढोल- हुड़क कै हात –पात जोड़ि बेर नाचि जांछ | आपूं जरूर अया |” तीन वर्ष पैली रेशमक ब्या हौछ | पांच लोगोंक य परिवार में इज- बौज्यू, एक भै, रेशम और वीकि घरवाइ छी | परिवार एक भौ लिजी लै तरसि रौछी |

       मि ठीक तीन बजे वां पुजि गोय | वां यूं पाँचोंक अलावा पड़ोसक द्वि जोड़ि दम्पति और डंगरिय मौजूद छी | धूप-दीप जगै बेर, डंगरिय कैं दुलैंच में बैठा और रेशमक बौज्यू जोड़ी हाथों कैं मुनाव पर टेकि बेर गिड़गिड़ाने कौं राय, “हे ईश्वर- नरैण, य म्यार घर में कसि हलचल हैगे ? को छ य जो म्येरि ब्वारि पर लैरौ | गलती हैगे छ त मिकैं डंड दे भगवन, यैक पिंड छोड़ |” डंगरिय कापण फैगोय और ब्वारि लै हिचकौल –हिनौल खेलें फैगेइ | ब्वारिक उज्यां चै बेर रेशमक बौज्यू जोरल बलाय, “हम सात हाथ लाचार छ्यूं, तू जो लै छै येकैं छोड़, मिकैं पकड़, मिकैं खा |” ऊँ डंगरियक उज्यां चानै बलाय, “तू देव छै, द्यखा आपणि करामात |” य बीच ब्वारि भैटी- भैटिये ख्वारक खोली बाव हलूनै डंगरियक तरफ सरकि गेइ | डंगरियल जसै उकैं बभूत लगूण चा उ बेकाबू घोड़िक चार बिदकि गेइ, यस लागें रय कि उ डंगरिय पर झपट पड़लि | डंगरिय डरनै बचाव मुद्रा में ऐ बेर म्ये उज्यां चां फै गोय  |

      य दृश्य देखि सब दंग रै गाय | रेशम म्येरि तरफ देखि बेर बलाय, “य त हद हैगे | यैक क्वे गुरु गोविन्द नि रय | यस डंगरिय नि मिल जो ये पर साव सेर पड़ो | परिवार कि परेशानी देखि म्यार मन में एक विचार आ और मि उठि बेर भ्यार जाणी द्वारक नजीक भैटि गोय | मील गंभीर मुखड़ बनूनै जोरल कौ, “बिना गुरुकि अन्यारि रात नि हुण चैनि ! बता तू कोछै ? को गाड़- गध्यार बै ऐ रौछे ? खोल आपण गिच | आदि-आदि..” म्येरि भाव- भंगिमा और बोल सुणि बेर सबै समझें फैगाय कि मि उ डंगरिय है ठुल डंगरिय छ्यूं | म्यार उज्यां चै बेर रेशम क बौज्यू बलाय, “परमेसरा बाट बते दे, म्यर इष्ट –बदरनाथ बनि जा |” मील उनुकैं इशारल चुप करा |

     मि रेशमकि घरावाइक उज्यां चै बेर बलायूं, “तू बलाण क्यलै नि रयै ? नि बलालै मि बुलवे बेर छोडुल | मसाण- भूतक इलाज छ म्यार पास |” उ नि बलाइ | मील रेशम उज्यां चै बेर जोरल कौ, “धुणि हाजिर कर दे सौंकार |”  रेशम-  “परमेसरा यां धुणि कां बै ल्यूं ?”  मि - “धुणि न्हैति तो स्टोव हाजिर कर दे |” रेशम तुरंत रस्या बै स्टोव, पिन और माचिस ल्ही बेर आ | म्यार इशार पर वील स्टोव जला | मि - “चिमट हाजिर कर दे सौंकार |” उ भाजि बेर गो और रस्या बै चिमट ल्ही आ | सबै समझें रौछी कि म्ये में द्याप्त औंतरी गो पर य बात निछी | डरल म्येरि हाव साफ़ है रैछी | मील ठान रैछी, अगर रेशम कि घरवाइ म्ये पर झपटली तो मि द्वार खोलि बेर भ्यार कुतिकि जूल |

      मील स्टोवक लपटों में चिमट लाल करनै रेशम कि घरवाइ उज्यां चै बेर कौ, “जो लै भूत, प्रेत,  पिसाच, मसाण, छल, झपट तू य पार लै रौछे, अगर त्ये में हिम्मत छ तो पकड़ य लाल चिमट कैं, नतर मि खुद य चिमट कैं त्यार गिच में टेकि द्युल |” मी उकैं डरूणक लिजी कौं रौछी | लाल चिमट देखि रेशम कि घरवाइक हिलण बंद है गोय और उ ख्वार में साड़ी पल्लू धरनै सानी कै उतै बै पिछाड़ि खसिकि गेइ | आब मी बेडर है बेर जोरल बलाय, “जो लै तू य पर लै रौछिये आज त्वील य धुणि –चिमटक सामणि येक पिंड छोड़ि है | आज बै येक रुमन- झुमन, रुण –चिल्लाण, चित्त-परेशानी, शारीरिक- मानसिक क्लेश, रोग -व्यथा सब दूर हुण चैनी |” यतू कै बेर मील स्टोव कि हाव निकाल दी |

      जागर ख़तम है गेछी | उ डंगरियल मिकैं आपू है ठुल डंगरी समझि मुनव झुकै बेर म्यार उज्यां चानै हात जोड़नै कौ, “धन्य हो महाराज |” रेशम आपणि घरवाइ कैं अघिल ल्या और मिहूं बै उकैं बभूत लगवा | बभूत लगूनै मील उहैं कौ, “आज बै तू निरोग छै, निश्चिंत छै और बेडर छै | खुशि रौ, आपू कैं व्यस्त धर, कुछ पढ़ –लिख, खालि नि रौ और एक परमात्मा में विश्वास धर | भूत एक भैम छ,  कल्पना छ | खालि भैटि बेर बेकाराक, उल-जलूल विचार मन में पनपनी | येकै वजैल खालि दिमाग भूतक घर कई जांछ | जिन्दगीक एक मन्त्र छ कि कर्म करते रौ, व्यस्त रौ और भगवान में विश्वास धरो | यतू कै बेर मि चड़क उठूं और नसि आयूं  |

      य क्वे सोची समझी योजना नि छी | सबकुछ अचानक हौछ | कएक लोग मिकैं भूत साधक समझण फै गाय | भूत हय नै, साधुल कैकैं ? य एक भैम -रोग छ जो यौन वर्जना, डर, फिकर, आक्रामक इच्छाओं कि पुर नि हुणल  कुंठाग्रस्त बनै द्युछ और दबाव देखूण पर भावावेश में य रूप प्रकट है जांछ  | मनखी है क्वे ठुल भूत नि हुन | आज क्वे यसि जागि न्हैति जां मनखी नि पुजि रय | रेशम कि कहानि हमूकैं य बतै छ कि वीकि घरवाइ पर क्वे भूत नि छी | अंधविश्वास कि सुणी- सुणाई बातों क घ्यर में उ कुंठित है गेछी | अघिल साल उनार घर एक भौ जन्म है गोछी | हमुकैं फल कि इच्छा नि करण चैनि और कर्म रूपी पुज में व्यस्त रौण चैंछ | अंधविश्वासक अन्यार कर्मयोगक उज्यावक सामणि कभै लै नि टिकि सकन | ( य कहानि म्येरि किताब ‘उत्तराखंड एक दर्पण -2007’ क आधार पर उधृत ) |

(कोरोना लौकडाउनक आज 30/40उं दिन छ । भ्यार झन जया । चौक्कन रया ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.04.2020

Tuesday 21 April 2020

Prithwi Diwas : पृथ्वी दिवस

खरी खरी - 612 : पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल

      अमेरिका के सीनेटर गेलार्ड नेल्सन के प्रयासों से 1970 से लगातार पिछले 50 वर्षों से प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है । इस दिन दिनोदिन पृथ्वी की बिगड़ती दशा की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाता है क्योंकि इस दौरान प्रदूषण बढ़ता ही गया और जलवायु परिवर्तन से संकट गहराता गया । आज विश्व का औसत तापमान 1.5 डिग्री से.बढ़ गया है और हमारी राजधानी तो अप्रैल में ही 40 डिग्री से. तापमान पार कर गई है ।

     हम न जल बचा रहे हैं और न जंगल । हर साल वनमहोत्सव में रोपित अधिकांश पौधे देखभाल नहीं होने के कारण समाप्त हो जाते हैं । हम में से कई लोग रोज सूर्य को जल चढ़ाते हैं जिससे करोड़ों लीटर जल बह कर बर्बाद होता है । यदि यह जल नीचे न गिरा कर  किसी पौधे के ऊपर डाला जाए तो सूर्य को भी चढ़ जाएगा और पौधा भी जीवित रहेगा । इतना सा काम यदि हम नहीं कर सके तो फिर कागज में पृथ्वी दिवस मनाने का कोई औचित्य नहीं है ।

     इसी तरह जहां शवदाह के लिए CNG या विद्युत प्लांट बने हैं वहाँ शवदाह लकड़ी में नहीं होना चाहिए । दिल्ली के निगम बोधघाट पर सब यमुना को मैली करते हैं, प्रदूषण फैलाते हैं जबकि वहां 6 CNG प्लांट सही हालात में हैं । पृथ्वी बचाने के लिए कई मिथ तोड़ने हैं और नई परंपरा अपनानी है तभी हम अपने बच्चों के लिए इस धरती को बचा पाएंगे और इसे हराभरा रख पाएंगे । पुरातन परम्पराओं को बचाने के बहाने पृथ्वी को बचाने की बात हम क्यों भूल रहे हैं ? जब पृथ्वी बचेगी तभी परम्पराएं भी बचेंगी ।

        (आज देश में  कोरोना लौकडाउन का 29/40 दिन है । हमने पृथ्वी का बहुत दोहन किया । दोहन की एक सीमा होती है । यदि हम नहीं रुके तो धर्ती हमें क्षमा नहीं करेगी । जल, जंगल और जमीन का दोहन नए नए दुखों का कारण बन रहा हा । घर में रहें और कोरोना को बढ़ने से रोकें ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल


22.04.2020


पृथ्वी दिवस