Monday 30 December 2019

Aap date rahein -40C० : आप डटे रहें - 40C ०

खरी खरी -543 : आप डटे हैं -40०C पर भी, शुभकामना

      विगत 1989 से जम्मू-कश्मीर में छद्म युद्ध लगातार हो रहा है जिससे हमारे सैकड़ों सुरक्षा प्रहरी  वतन की माटी को अपने लहू से सिंचित कर गए । देश के कुछ अन्य भागों में भी हमारे सुरक्षाकर्मियों ने अपना बलिदान दिया है । हमारी सेना और अन्य सुरक्षा प्रहरियों ने भी दुश्मन की हर गोली का बड़ी मुस्तैदी से मुहतोड़ जबाब दिया और प्रत्येक शहीद के बलिदान का तुरंत बदला लिया । आतंकवाद के नाग का सिर कुचलना अभी बाकी है जिसकी देश को दरकार है । अब तक देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सभी अमर शहीदों को नए साल की पूर्व संध्या पर विनम्र श्रद्धांजलि के साथ नमन । हम नव वर्ष पर अपने सैन्य भाइयों को भी हार्दिक शुभकामना देते हैं जो -40० C पर भी वतन की रक्षा में डटे हैं ।

     नववर्ष 2019 की पूर्व संध्या पर भलेही आज हम नए साल का स्वागत कर रहे हैं और एक - दूसरे को बधाई- शुभकामना दे रहे हैं परन्तु दिल से हम मातृभूमि के लिए अपना बलिदान देने वाले इन वीर सपूतों के प्रति नतमस्तक होकर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और इस दुख के दौर में इन शहीद परिवारों के दुख -दर्द में सहानुभूतिपूर्वक शामिल हो रहे हैं -

'शहीदों की चिंताओं में 


लगेंगे हर बरस मेले, 


वतन पर मिटने वालों का 


बस एक यही निशां होगा ।' 

इस गमगीनअंधेरे में 


एक दीप जलाते हैं,


सभी  मित्रों  को  नववर्ष


की शुभकामना देते हैं ।

जयहिन्द, 


जय हिंद की सेना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल


31.12 .2019


Sunday 29 December 2019

Mujhe pata naheen shrangar : मुझे पता नहीं श्रृंगार

खरी खरी -542 : "मुझे नहीं पता श्रंंगार।"

         उत्तराखंड के पर्वतीय भाग में ग्रामीण महिलाओं के लिए विज्ञान कोई बदलाव नहीं लाया । वह कहती है, "मेरे लिए कुछ भी नहीं बदला । मैं जंगल से घास -लकड़ी लाती हूँ,  हल चलाती हूँ, दनेला (दन्याइ) लगाती हूँ, निराई-गुड़ाई करती हूँ,  खेत में मोव (गोबर की खाद) डालती हूँ,  दूर-दूर से पीने का पानी लाती हूँ,  पशुपालन करती हूँ और घर -खेत-आँगन का पूरा काम करती हूँ । मुझे पता नहीं चलता कि कब सूरज निकला और कब रात हुई । मुझे नहीं पता श्रंगार क्या होता है ।"

      वह चुप नहीं होती, बोलते रहती है, ''गृहस्थ के सुसाट -भुभाट, रौयाट - बौयाट में मुझे पता भी नहीं चलता कि मेरे हाथों- एड़ियों में खपार (दरार) पड़ गये हैं और मेरा मुखड़ा फट सा गया है । मेरे गालों में चिरोड़े पड़ गए हैं । सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चों को तो मैं बिलकुल भी समय नहीं दे पाती । सिर्फ उनके लिए रोटी बना देती हूँ बस । अब कुछ बदलाव कहीं-कहीं पर दिखाई देता है वह यह कि खेत बंजर होने लगे हैं । नईं- नईं बहुएं आ रही हैं जो पढ़ी लिखी हैं । वे यह सब काम नहीं करती । हम भी बेटियों को पढ़ाकर ससुराल भेज रहे हैं जो वहाँ यह सब काम नहीं करेंगीं । लड़कों के लिए यहाँ रोजगार नहीं है और वे बहू संग नौकरी की तलाश में निकल गए हैं । सरकार - दरबार से कहती हूं कि तुम ढूंढते रहो उजड़ते गाँवों से पलायन के कारण... पर गांव तो खाली हो गए हैं । यहां वे ही रह गए है जिनका कोई कहीं ले जाने वाला नहीं है ।"

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.12.2019

Saturday 28 December 2019

Mahakautik Indirapuram 2019 : महकौतिक इंदिरापुरम 2019

मीठी मीठी - 400 : महाकौतिक इंदिरापुरम


    28 दिसम्बर 2019  हुणि 9 दिनक इंदिरापुरम महाकौतिकक आठूं दिन छी ।  य शानदार और कुशलताल आयोजित एवम् सुव्यवस्थित कौतिक में एक शानदार कुमाउनी-गढ़वाली कवि सम्मेलन लै आयोजित करिगो । एक दर्जन है ज्यादा उत्तराखंडी कवियोंल कएक  गणमान्य  मैंसों, पत्रकारों, राजनीतिज्ञों, कवियों, साहित्यकारों और सुधि दर्शकोंक सानिध्य में आपणि भाषा में काव्यपाठ करौ जमें आमंत्रित कवि  छी सर्वश्री पूरन चन्द्र कांडपाल, दिनेश ध्यानी, जयपाल सिंह रावत, पायास पोखड़ा, रमेश हितैषी, कवि सम्मेलनक सूत्रधार बी पी जुयाल, ओ पी सेमवाल, डा केदारखंडी, जगदम्बा चमोला, जगत कुमाउनी, सुश्री उपासना सेमवाल और प्रदीप खुदेड । सबै कवियोंल भौत भाल कविताओं ल  श्रोताओं कैं खुशि करौ । कवि सम्मेलन कि अध्यक्षता पूरन चन्द्र कांडपालल करी और मंच संचालन सूत्रधार बी पी जुयाल और ओ पी सेमवालल करौ ।


     य महाकौतिक (मेघा इवेंट, उत्तराखंड ट्रेड फेयर) क आयोजन उत्तराखंडी समाज कि पर्वतीय सांस्कृतिक संस्था (पं)  ल करौ जैक मुखिया छीं सुप्रसिद्ध संगीत निदेशक राजेन्द्र चौहान । चौहान ज्यूल य कौतिक में सबूं कैं पुर उत्तराखंडक दर्शन कराईं जमें उत्तराखंडक व्यंजनों समेत वांकि चीजों क आगन्तुकोंल खूब लुत्फ उठा। आपण किस्मक गाजियाबाद में आयोजित  हुणी  य 9ऊं  म्यल छी । य म्यल में उत्तराखंडक कृषि उत्पादों कि भलि बिक्री हैछ । उत्तराखंडी व्यंजनों कि भरमारक लै आगंतुकोंल जमि बेर आनंद ले । य म्यल में रोजाना सांस्कृतिक कार्यक्रम लै आयोजित करी गईं जमें नईं  - नईं कलाकारों और गायकों कैं लै आपणि कला प्रदर्शन क मौक मिलौ  । कएक संदेशात्मक नाट्य मंचन लै य आयोजन में करी गईं ।


      य सफल आयोजनक श्रेय चौहान ज्यू कि संगठित टीम कैं जांछ जमें उनरि घरावाइ प्रसिद्ध गायिका कल्पना चौहान लै छीं । भाषा, साहित्य, संस्कृति, गीत, संगीत और लोक जीवनक य महाकुंभक सफल आयोजन करणक लिजी  राजेन्द्र चौहान ज्यू और उनरि टीम कैं भौत भौत बधै और शुभकामना ।


पूरन चन्द्र काण्डपाल

29.12. 2019


Friday 27 December 2019

Jaimala mein bewade dost : जयमाला में बेवड़े दोस्त

खरी खरी - 542 :  जयमाला में बेवड़े दोस्त 

        हम सब कहते हैं कि ज़माना बदल गया है | पहले के जमाने में ऐसा होता था, वैसा होता था | सत्य तो यह है कि ज़माना नहीं बदलता बल्कि वक्त गुजरने के साथ कुछ परिवर्तन होते रहता है | इस बीच कई शादियों में निमंत्रण निभाया और तरह तरह का बदलाव देखा | धीर-धीरे कैमरे को खुश करने के लिए बहुत कुछ बदलाव हो रहा है | कई बार वर-वधू को दुबारा पोज देने के लिए कहा जाता है | मस्ती के दौर में दोस्त उनसे मुस्कराने की फर्मायस करते हैं | आखिर कोई कितनी देर तक मुस्कराने की एक्टिंग कर सकता है, यह तो मेकअप से लथपथ बेचारी दुल्हन ही जानती है |

     अब बात आजकल की जयमाला की कर लें | इस सीन में आजकल जो हो रहा है वह भी बहुत अटपटा है । जयमाला मंच के इस सीन में दूल्हा दोस्तों से घिरा है ( कुछ बेवड़े भी लेकिन होश में ) और दुल्हन भाइयों और सहेलियों से घिरी है | दुल्हन को कैमरे से पहले इशारा मिला कि जयमाला दूल्हे को पहनाओ | ज्योंही वह एक कदम आगे बढाकर जयमाला पहनाने लगी तो दूल्हे के दोस्तों ने दूल्हे को ऊपर उठा लिया | दुल्हन पहला चांस मिस हो गया और वह टैंस हो गयी जबकि कैमरा ऐक्सन में है | तुरंत भाइयों के हाथों में उठी हुयी दुल्हन ने दूसरा प्रयास किया और जैसे –तैसे दोस्तों द्वारा ऊपर उठाये गए, पीछे की ओर टेड़ा तने हुए दूल्हे के गले में जयमाला ठोक दी जैसे घर में घुसे हुए तैंदुवे के गले में बड़ी मुश्किल से रस्सी डाल दी हो | 

      इसी तरह दूल्हे को भी दो बार प्रयास करने पर सफलता मिली | दुल्हन का आर्टिफीसियल जेवर भी हिल गया और मेकअप का डिजायन भी बिगड़ गया | एक शादी में तो इस धक्कामुक्की में दूल्हे की माला भी टूट गयी | दोनों ओर के कबड्डी खिलाड़ियों से कहना चाहूंगा कि ये ऊपर उठाने का फंडा बंद करो और दोनों को ही असहज होने से बचाओ | ऐसा न हो कि गर्दन को माला से बचाने के चक्कर में दोनों में से एक गिर जाय | एक जगह तो दूल्हा - दुल्हन के लिए रखा हुआ सोफ़ा ही मंच पर पलट गया । दूल्हा नीचे गिरने से बाल - बाल बच गया । ये दूल्हे को ऊपर उठाने का भद्दा रिवाज पता नहीं कहां से ले आए लोग ?  प्यार से नजाकत के साथ उन्हें एक –दूसरे के पास ले जाकर मुस्कराते हुए मधुर मिलन से माल्यार्पण करना बहुत रोचक लगेगा | इस क्षण को अविस्मरणीय बनाओ | बेचारों का टेनसन भरा मुर्गा खेल मत कराओ | इस भौंडी हरकत से दोनों तरफ के अभिभावक बहुत असहज महसूस करते हैं और दुखी होते हैं । शराबियों को तो जयमाला मंच से दूर रखना चाहिए ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

28.12.2019

Thursday 26 December 2019

Andhvishwas ke grahan : अंधविश्वास के ग्रहण

खरी खरी - 541 : अंधविश्वास के ग्रहणों को भी समझें

       यह बहुत अच्छी बात है कि सोसल मीडिया पर कई लोग ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे हैं, हमें शिक्षित बना रहे हैं परन्तु इसका विनम्रता से क्रियान्वयन भी जरूरी है | जब भी हमारे सामने कुछ गलत घटित होता है, गांधीगिरी के साथ उसे रोकने का प्रयास करने पर वह बुरा मान सकता है | बुरा मानने पर दो बातें होंगी – या तो उसमें बदलाव आ जाएगा और या वह अधिक बिगड़ जाएगा | गांधीगिरी में बहुत दम है | इसमें संयम और शान्ति की जरुरत होती है और फिर मसमसाने के बजाय बोलने की हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी |

      हमारा देश वीरों का देश है, राष्ट्र प्रहरियों का देश है, सत्मार्गियों एवं कर्मठों का देश है, सत्य-अहिंसा और सर्वधर्म समभाव का देश है तथा ईमानदारी के पहरुओं और कर्म संस्कृति के पुजारियों का देश है | इसके बावजूद भी हमारे कुछ लोगों की अन्धश्रधा-अंधभक्ति और अज्ञानता से कई लोग हमें सपेरों का देश कहते हैं, तांत्रिकों- बाबाओं के देश कहते हैं क्योंकि हम अनगिनत अंधविश्वासों से डरे हुए हैं, घिरे हुए हैं और सत्य का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं |

      हमारे कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सूर्य घूमता है जबकि सूर्य स्थिर है | हम सूर्य- चन्द्र ग्रहण को राहू-केतू का डसना बताते हैं जबकि यह चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के कारण होता है | हम अंधविश्वासियों को सुनते हैं परन्तु खगोल शास्त्रियों या वैज्ञानिकों को नहीं सुनते । हम बिल्ली के रास्ता काटने या किसी के छींकने से अपना रास्ता या लक्ष्य बदल देते हैं | हम किसी की नजर से बचने के लिए दरवाजे पर घोड़े की नाल या भूतिया मुखौटा टांग देते हैं |

      हम कर्म संस्कृति से हट कर मन्नत मांगने, गले या बाहों पर गंडा-ताबीज बांधते हैं, हम वाहन पर जूता लटकाते हैं और दरवाजे पर नीबू-मिर्च टांगते हैं, सड़क पर जंजीर से बंधे शनि के बक्से में सिक्का डालते हैं, नदी और मूर्ती में दूध डालते हैं और हम बीमार होने पर डाक्टर के पास जाने के बजाय झाड़-फूक वाले के पास जाते हैं |

       वर्ष भर परिश्रम से अध्ययन करने पर ही हमारा विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होगा, केवल परीक्षा के दिन तिलक लगाने, दही-चीनी खाने या धर्मंस्थल पर माथा-नाक टेकने से नहीं | हम सत्य एवं  विज्ञान को समझें और अंधविश्वास को पहचानने का प्रयास करें | अंधकार से उजाले की ओर गतिमान रहने की जद्दोजहद करने वाले एवं दूसरों को उचित राह दिखाने वाले सभी मित्रों को ये पक्तियां समर्पित हैं-

‘पढ़े-लिखे अंधविश्वासी
बन गए
लेकर डिग्री ढेर,
अंधविश्वास कि मकड़जाल में
फंसते न लगती देर,
पंडित बाबा गुणी तांत्रिक
बन गए भगवान्
आंखमूंद विश्वास करे जग,
त्याग तत्थ – विज्ञान ।

       सोसल मीडिया में मित्रों द्वारा मेरे शब्दों पर इन्द्रधनुषी प्रतिक्रियाएं होती रहती हैं | सभी मित्रों एवं टिप्पणीकारों तथा पसंदकारों का साधुवाद तथा हार्दिक आभार |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.12.2019

Wednesday 25 December 2019

Gantuon ke tukke : गंतुओ के तुक्के।

बिरखांत – 298 : गणतुवों (पुछारियों) के तुक्के

   अंधविश्वास की जंजीरों में बंधा हमारा समाज गणतुवों या पुछारियों के झांसे में बहुत जल्दी आ जाता है | लोग अपनी समस्या समाधान के लिए गणतुवों के पास आते हैं या भेजे जाते हैं | कभी- कभार उनका तुक्का लग जाता है तो उनके श्रेय का डंका पिटवाया जाता है | तुक्का नहीं लगने पर भाग्य- भगवान्- किसमत –नसीब -करमगति कह कर वे पल्ला झाड़ देते हैं |

     कुछ महीने पहले दिल्ली महानगर में ऐसी ही एक घटना घटी | मेरे एक परिचित का उपचाराधीन मानसिक तनाव ग्रस्त युवा पुत्र अचानक दिन में घर से बिन बताये चला गया | इधर -उधर ढूंढने के बावजूद जब वह देर रात तक घर नहीं आया तो थाने में उसकी रिपोट लिखाई गई | इस तरह परिवार का पहला दिन रोते-बिलखते बीत गया | दूसरे दिन प्रात: किसी मित्र के कहने पर पीड़ित माता- पिता गणत करने वाली एक महिला (पुछारिन) के पास गये | पुछारिन बोली, “आज शाम से पहले तुम्हारा बेटा  घर आ जाएगा | वह सही रास्ते पर है, सही दिशा पर चल रहा है | तुम बिलकुल भी चिंता मत करो |”

     उसी रात थाने से खबर आती है कि आपके बताये हुलिये के अनुसार एक लाश अमुक अस्पताल के शवगृह (मोरचुरी) में है  | परिजन वहां गए तो मृतक वही था जो घर से गया था | चश्मदीदों ने बताया कि यह व्यक्ति उसी दिन (अर्थात गणत करने के पहले दिन ) रात के करीब साड़े नौ बजे दुर्घटनाग्रस्त होकर बेहोशी हालत में पुलिस द्वारा अस्पताल लाया गया | उसकी मृत्यु लगभग तभी हो गयी थी | दस-ग्यारह घंटे पहले मर चुके व्यक्ति को पुछारिन ने बताया कि ‘वह सही दिशा में चल कर घर की ओर आ रहा है’ |

       उलझाने के इस धंधे के लोग किस तरह समाज को बरगलाते हैं, यह एक उदाहरण है | यदि पुछारिन के पास कुछ भी ज्ञान होता तो वह कह सकती थी ‘वह व्यक्ति घोर संकट में है या परेशान है, अड़चन में फंसा है |’ पोस्टमार्टम और अंत्येष्टि के बाद पुछारिन को जब यह दुखद समाचार भिजवाया गया तो उसने ‘भाग्य -भगवान्- किसमत- नसीब- करम -परारब्ध- ब्रह्मलेख’ आदि शब्दों को दोहरा दिया | यदि वह व्यक्ति जीवित आ जाता तो यह पुछारिन महिमामंडित हो जाती जबकि उससे आज ‘तूने तो ऐसा बताया था’ कहने वाला कोई नहीं है | 

     सच तो यह है कि दोषी हम हैं जो इस प्रकार के तंत्रों के जाल में फंसते हैं और कभी सही तुक्का लगने पर इनकी वाह-वाही का डंका पीटते हैं, इनको महिमा मंडित करते हैं | कब जागेगा तू इंसान ? किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को महिमामंडित नहीं करने से हम समाज में सुधार ला सकते हैं | चर्चा तो होनी चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.12.2019

Tuesday 24 December 2019

Atal jayanti : अटल जयंती

मीठी मीठी - 398 : आज अटल जी की जयंती

         आज 25 दिसम्बर हमार 10उं प्रधानमंत्री, भारत रत्न, अटल बिहारी वाजपेयी ज्युकि जयंती छ । उनार बार में पुस्तक  "लगुल'' बै लेख याँ उधृत छ । अटल ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल


25.12.2019

Monday 23 December 2019

Devi aa gaee : देवी आ गई

खरी खरी -540 : उसको ' देवी ' आ गई ?

     शादी में महिला संगीत और कीर्तन भी दो विधाएं आजकल देखादेखी खूब रंग में हैं | महिला संगीत में स्थानीय भाषाओं को सिनेमा के गीतों ने रौंद दिया है | ‘चिकनी चमेली..., बदतमीज दिल...., आंख मारे ...जैसे सिने गीतों की भरमार है | कैसेट- सी डी या डीजे लगाओ और आड़े- तिरछे नाचो, हो गया महिला संगीत | कहाँ गये वे ‘बनड़े’ जैसे परम्परागत गीत ? कीर्तन में भी पैरोडी संग नृत्य हो रहा है | सिनेमा के गीत की धुन में शब्दों का लेप लगा कर माता रानी को रिझाने का एक निराला अंदाज बन गया है | ' बृज की छोरी से राधिका गोरी से ...'  (सिने गीत ' हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से ...) । पता नहीं ये कौन लोग हैं जो कृष्ण की अनन्य भक्त राधा का कीर्तन में कृष्ण से ब्याह कराना चाहते हैं ? लोग तालियां बजाते है या नाचने लगते हैं ।

      आजकल हरेक कीर्तन में कुछ महिलाओं में ‘देवी’ आ जाती है जो आयोजकों से हाथ जुड़वा कर ही थमती है | पता नहीं दूसरे के घर में बिन बुलाये ये ‘देवी’ आ कैसे जाती है ? आना ही है तो अपने घर में आ और अपने घरवालों को राह दिखा, दूसरे के घर में यह सबके सामने तमाशा क्यों ? कीर्तन में यह शोभा भी नहीं देता जबकि ‘देवी’ वाली अमुक आंटी चर्चा में आकर भविष्य में गणतुवा भी बन सकती है | जिस कीर्तन में अपनी ही संस्कृति की झलक हो उसे उत्तम कीर्तन कहा जाएगा |

      इधर आजकल सांस्कृतिक आयोजन में कुछ कलाकार मंच से गायन की ‘जागर’ विधा गाते हैं तो दर्शकों में बैठी कुछ महिलाओं को 'देवी ' आ जाती है ।  चप्पल पहने, बिन हाथ-मुंह धोये दर्शकों के समूह में यह ‘देवी’ पता नहीं क्यों आ जाती है ? गीत - संगीत थमते ही देवी चली भी जाती है क्योंकि यह सब गीत - संगीत का असर होता है । लोग इनके आगे हाथ जोड़कर महिमा मंडन करने लगते हैं और गायक भी स्वयं को धन्य समझने लगता है । हमने यह जरूर सुना - देखा है कि कुछ लोग  ' जागर ' में अपने घर पर देवी या देवता नचाते है परन्तु इसकी एक श्रद्धा - मर्यादा वे जरूर अपनाते हैं । आयोजनों में इस तरह किसी स्त्री या पुरुष में  देवी - देवता नाचना और उसका महिमामंडन करना एक अनुचित परम्परा को प्रोत्साहन देना है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.12.2019

Sunday 22 December 2019

Lok utsav dusar din : लोक उत्सव दुसर दिन

मीठी मीठी - 397 : लोक -उत्सवक  दिल्ली में दुसर दिन


       गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी भाषा अकादमी, कला - संस्कृति - भाषा विभाग, दिल्ली सरकार द्वारा सेंट्रल पार्क राजीव चौक नई दिल्ली में द्वि दिनी लोक - उत्सव आयोजनक 22  दिसंबर 2019 हुणि  दुसर दिन लै भौत गिड़दम रौछ । ठीक 2 बजी कार्यक्रम शुरू हौछ । आयोजनक शुभारंभ अकादमीक उपाध्यक्ष, कवि और गायक हीरा सिंह राणा ज्यू एवं अकादमीक सचिव डॉ जीतराम भट्ट ज्यू समेत सबै सदस्योंल दी जगै बेर करौ । गणेश वंदना में दर्शकोंल लै भागीदारी निभै ।

         दुसार दिन लै लोक उत्सव में उत्तराखंडक लोकजीवन एवम् साहित्यक प्रदर्शन लै करिगो और उत्तराखंडी भाषाओं कि जानकारी, साहित्य एवम् इतिहास लै बताइगो । लोक संस्कृतिक कएक कार्यक्रम लै हईं जमें नान -ठुल सबै कलाकारोंल भागीदारी निभै । आयोजन स्थल में दर्शकों कि भौत ठुल गिड़दम देखण में आछ जनूल कार्यक्रमक खूब आनंद ले । य मौक पर कएक पत्रकार, साहित्यकार, कवि, राजनीतिज्ञ, व्यवसाई, मातृशक्ति और नानतिन लै मौजूद छी । आयोजन कैं राणा ज्यूल संबोधित करौ । राणा ज्यूल दिल्ली सरकारक भाषा अकादमी बनूणक लिजी आभार व्यक्त करौ ।  कार्यक्रम संचालन करते हुए डॉ भट्ट ज्यूल सबै दर्शकों कैं उत्तराखंड कि सांस्कृतिक झलक बतूनै धन्यवाद दे । सबै दर्शकोंल दिल्ली में हमरि भाषा अकादमी बनण पर भौत खुशि जतै ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

23.12.2019

Saturday 21 December 2019

Lok utsav Central Park Rajiv Chowk : उत्सव सेंट्रल पार्क

मीठी मीठी - 396 : सेंट्रल पार्क राजीव चौक में लोक -उत्सव


       गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी भाषा अकादमी, कला - संस्कृति - भाषा विभाग, दिल्ली सरकार द्वारा सेंट्रल पार्क राजीव चौक नई दिल्ली में द्वि दिनी लोक - उत्सवक आयोजन 21 दिसंबर 2019 हुणि 2 बजी शुरू हौछ जो 22 दिसंबर 2019 हुणी लै जारी रौल ।  आयोजनक शुभारंभ दिल्ली सरकारक उप - मुख्यमंत्री और अकादमीक अध्यक्ष मनीष सिसोदिया ज्यू और अकादमीक उपाध्यक्ष, कवि और गायक हीरा सिंह राणा ज्यू एवं अकादमीक सचिव डॉ जीतराम भट्ट ज्यू समेत सबै सदस्यों ल दी जगै बेर करौ ।

        य लोक उत्सव में उत्तराखंडक लोकजीवन एवम् साहित्यक प्रदर्शन लै करिगो और उत्तराखंडी भाषाओं कि जानकारी, साहित्य एवम् इतिहास लै बताइगो । लोक संस्कृतिक कएक कार्यक्रम लै हईं जमें नान -ठुल सबै कलाकारोंल भागीदारी निभै । आयोजन स्थल में दर्शकों कि भौत ठुल गिड़दम देखण में आछ जनूल कार्यक्रमक खूब आनंद ले । य मौक पर कएक पत्रकार, साहित्यकार, कवि, राजनीतिज्ञ, व्यवसाई, मातृशक्ति और नानतिन लै मौजूद छी । आयोजन कैं सिसोदिया ज्यू और राणा ज्यूल संबोधित करौ । राणा ज्यूल दिल्ली सरकारक भाषा अकादमी बनूणक लिजी आभार व्यक्त करौ ।  कार्यक्रम संचालन करते हुए डॉ भट्ट ज्यूल सबै दर्शकों कैं उत्तराखंड कि सांस्कृतिक झलक बतूनै धन्यवाद दे । य सफल आयोजनक लिजी अकादमीक सचिव समेत पुरी टीम कैं धन्यवाद । 

पूरन चन्द्र कांडपाल

22.12.2019

Friday 20 December 2019

Bhagwan bhi surakshit naheen : भगवान भी सुरक्षित नहीं

बिरखांत-297 : भगवान भी नहीं सुरक्षित

   कल अपने चिर परिचित चनरदा वही अपने अल्लहड़ अंदाज में मिले | उनके हाथ में कई वर्षों के समाचार पत्रों की वे कतरनें थी जिनमें मंदिरों में चोरी की खबरें छपी थी | चनरदा बताने लगे, “अरे साब इधर-उधर की तो खूब पढ़ते-लिखते हो ज़रा इन कतरनों को भी देखो | देश का कोई ऐसा मंदिर नहीं होगा जहां से आजतक कभी न कभी, कुछ न कुछ चोरी नहीं हुआ होगा | इन वर्षों में कर्णप्रयाग के चंडिका मंदिर से आठ छत्र; हल्द्वानी गौजाजाली मन्दिर से घंटे, कलश, नाग, त्रिशूल, नथ, हार, मुकुट, माला ,दीपक स्टैंड, लोटा और नकदी; केदारनाथ से मुकुट; दिल्ली के प्रशांत विहार बालाजी मंदिर से करीब बीस लाख मूल्य की वस्तुएं, जहांगीरपुरी से राम-जानकी-लक्षमण की मूर्ति |

      इसी तरह दिल्ली के भजनपुरा, वैशाली, सूरजमल पार्क, जगतपुरी, पांडव नगर, महरौली, वेलकम, आन्दंद विहार, दिलशाद गार्डन, सप्तऋषि गार्डन सहित पिलखुवा, सिरोही आदि स्थानों के मंदिरों में भी चोरी हुई | आए दिन धार्मिक स्थलों में अपराधिक घटनाएं होती रहती हैं | इन कुकृत्यों को अंजाम देने वालों में यदा कदा यहां के सेवादारों अथवा ‘उपासकों’ की मिलीभगत भी होती है |

     पूजा स्थलों की प्रत्येक वस्तु शक्ति का प्रतीक मानी जाती है | आस्था एवं शक्ति की प्रतीक जब ये मूर्तियां चोरी हो जाती हैं या धर्मस्थलों का खजाना लूटा जाता है या किसी महिला के साथ यहां अमानवीय कृत्य होता है तो मन में प्रश्न उठने लगता है कि भगवान ने स्वयं को या वहां की वस्तुओं को या उस महिला को बचाते हुए इन राक्षसों को दण्डित क्यों नहीं किया ? उस नरपिशाच पर स्वयं वह मूर्ति ही गिर जाती, पंखा या कोई अन्य वस्तु गिर जाती, उसे ठोकर ही लग जाती |

      ‘यह कलियुग है’ कह कर लोग अपनी श्रधा पर कोई खरोंच नहीं लगने देते लेकिन धर्मस्थलों में भगवान का इन नरपिशाचों पर प्रहार नहीं करना श्रधालुओं को अखरता जरूर है | धर्मस्थलों के परिसर की कोई दुर्घटना या धर्मस्थल की यात्रा के दौरान की दुर्घटना अन्य स्थानों की दुर्घटना से कहीं अधिक अखरती है | इन सब घटनाओं से मन में कबीर के भजन “मोको कहां ढूंढें रे बन्दे’ का स्मरण हो आता है | कबीर ने भगवान के मूरत-तीरथ, जप-तप, व्रत-उपवास, काबा-कैलाश, क्रियाक्रम, जोग-संन्यास में नहीं होने की बात कही है | उनका मानना है कि एक अच्छे- सच्चे इंसान के मन में ही भगवान वास करते हैं | सत्य भी यही है भगवान पूजा स्थलों में नहीं होते |

        पूजा स्थल तो केवल भगवान् का स्मरण करने की एक जगह है जहां ईश्वर स्मरण के साथ अन्य आगंतुकों से भी मिलाप हो जाता है |” ( ये चनरदा कौन हैं ? चनरदा लेखक का वर्षों पुराना वह कर्म पुजारी किरदार है जो किसी धर्म-संप्रदाय-जाति-मजहब का न होकर सबसे पहले एक इंसान है, एक भारतीय है और समाज में व्याप्त विषमता, वैमनस्यता, असमाजिकता, जुगाड़बाजी, चाटुकारिता, अन्धविश्वासऔर असहिष्णुता पर गांधीगिरी के साथ अपना मुंह खोलने की हिम्मत से सराबोर है | )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.12.2019