Monday 31 August 2020

Ek the Pranav Da : एक थे प्रणव दा

स्मृति - 507 : एक थे प्रणव दा

     देश के 13वें राष्ट्रपति, भारत रत्न प्रणव मुखर्जी, प्रणव दा, ( राष्ट्रपति कार्यकाल 25.07.2012 से 25.07.2017 ) का कल 31 अगस्त 2020 को आर आर अस्पताल दिल्ली में निधन हो गया । वे कई दिन से अस्पताल में कौमा में थे । बाद वे कोराेना संक्रमित भी हो गए । उनका जन्म 11 दिसंबर 1935 को मिराती गांव, जिला बीरभूम, पश्चिम बंगाल में हुआ ।  84 वर्षीय प्रणव दा काफी दिनों से अस्वस्थ थे । उनकी पत्नी सुभ्रा का निधन 18 अगस्त 2015 को हुआ था । वर्तमान में वे अपने परिजनों सहित 10 राजाजी मार्ग में रहते थे । पुत्री सर्मिष्ठा और पुत्र अभिजीत उनके साथ थे ।  कलाम साहब भी इसी बंगले में रहते थे । प्रणव दा की चर्चा वर्ष 2015 में प्रकाशित मेरी पुस्तक 'लगुल' ( कुमाउनी, हिन्दी और अंग्रेजी में एक साथ ) में भी देश के सभी राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के साथ है । प्रणव दा देश के वित्त मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे एवम् राज्य सभा के सदस्य रहे । 

    प्रणव दा ने वर्ष 2017 में अपने विदाई संबोधन में कहा था - ' सभी प्रकार की हिंसा से समाज मुक्त हो तथा सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है जो सदियों से हमारी सामूहिक चेतना का अंग रही है । मेरे पास उपदेश देने के लिए कुछ नहीं है । संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ है, संसद मेरा मंदिर और भारत की जनता की सेवा मेरी अभिलाषा रही है । हमारे लिए समावेशी समाज का निर्माण विश्वास का एक विषय होना चाहिए । गांधी जी भारत को एक ऐसे समावेशी राष्ट्र के रूप में देखते थे जहां आबादी का हर वर्ग समानता के साथ रहता हो ।'

     मृदुभाषी, कर्मठ, विद्वान, कुशल राजनीतिज्ञ प्रणव दा का कार्यकाल इतिहास भरा रहा । वे संविधान ज्ञाता, अच्छे वक्ता, विनम्र होने के साथ ही प्रजातंत्र की अच्छी समझ रखते थे । उनके कार्यकाल में 26/11 के दोषी कसाब, संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और 1993 मुम्बई धमाके के दोषी याकूब मेनन की फांसी पर मुहर लगी । उनके पास 37 क्षमा याचिकाएं आई । अधिकांश में उन्होंने न्यायालय की सजा को बरकरार रखा । प्रणव दा ने राष्ट्रपति भवन में लोगों का पहुंचना आसान बनाया और विदेश जाने के बजाय मेजबान बनने में रुचि दिखाई । उन्हें कांग्रेस का ' संकट मोचक ' और राजनीति का 'अजातशत्रु ' कहा जाता था । प्रणव दा को 26 जनवरी 2019 को देश का सर्वोच्च अलंकरण ' भारत रत्न ' घोषित किया गया जो उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 08 अगस्त 2019 को प्रदान किया । अद्भुत व्यक्तित्व के धनी,  विपक्ष सहित जन जन के प्रिय प्रणव दा को विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल


01.09.2020

Sunday 30 August 2020

Transgender : ट्रांसजेंडर

मीठी मीठी -505 : फिरेंगे ट्रांसजेंडर्स (किन्नर) के दिन

      शादी -ब्याह, जन्मदिन, नामकरण आदि शुभ अवसरों पर एक मोटी रकम ऐंठने वाले और नहीं देने पर गाली-गलौज करके नग्न होने की धमकी देने वाले किन्नरों के दिन अब धीरे -धीरे बदलने की उम्मीद है । संविधान द्वारा तीसरे लिंग के रूप में स्वीकारे जा चुके परंतु समाज और परिवार का बहिष्कार झेल रहे किन्नरों को अकादमिक सत्र 2017-18 से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्व- विद्यालय (इग्नू) ने स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रमों में मुफ्त शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति दे रखी है । अब किन्नर फीस माफी के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और कर भी रहे हैं । विगत 5 वर्षों में 814 ट्रांसजेंडर ने यहां से शिक्षा अर्जित की है ।

     भलेही आजतक या आये दिन किन्नरों ने समाज को आतंकित किया हो परन्तु इनमें कुछ खुद्दार भी हैं जो भीख नहीं मांगते और समाज में एक सम्मानजनक स्थिति में जीये या जी रहे हैं । आतंकित इसलिए कि ये जो इनाम-बख्शीस मिले उसे स्वीकारने के बजाय हजारों रुपए मांगते हैं । नहीं देने पर उधम मचाते हैं । कुछ वर्ष पहले सबनम मौसी के नाम से विख्यात किन्नर 1998 में  मध्यप्रदेश से पहली किन्नर विधायक चुनी गईं । कटनी म प्र की किन्नर कमला जान 2000 में महापौर बनी । किन्नर आशा देवी गोरखपुर से मेयर बनीं और मानवी बंधोपाध्याय पश्चिम बंगाल के नादिया, कृष्णनगर महिला कॉलेज की प्रधानाचार्या बनी । इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल में जोयता मंडल पहली ट्रांसजेंडर जज बनी ।

     कार्य कठिन है परन्तु किन्नरों को यदाकदा सही राह दिखाई जा सकती है, पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकता है,और उन्हें कार्य दिया जा सकता है। विकसित देशों में भारत की तरह किन्नर भीख नहीं मांगते या बस-ट्रेन अथवा सड़क के चौराहों पर लोगों को परेशान नहीं करते बल्कि उन्हें काम दिया जाता है और लोग उनके प्रति सहिष्णुता और सदभावना दिखाते हैं । निजी क्षेत्र में भी इन्हें कार्य दिए जाने की आवश्यकता है । वर्ष 2011 की सेंसस के अनुसार देश में 4.9 लाख ट्रांसजेंडर थे । जहां तक इनाम - बख्शीस का प्रश्न है इन्हें जो भी राशि मिले उसे खुशी से स्वीकारना चाहिए । किसी को आतंकित कर लिया हुआ धन इनाम या बख्शीश नहीं कहालता ।।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

31.08.2020

Saturday 29 August 2020

Riya Riya Riya : रिया रिया रिया

खरी खरी - 687 : रिया रिया रिया !

रिया रिया रिया !
अठत्तर दिन से
ये क्या हो रिया ?
ये कैसी मीडिया
जो रिया के ही
गीत गा रिया ?
ध्यान क्यों नहीं
रिया से हट रिया ?
देश में बाड़ आ रिया
कोरोना बड़ रिया
रुजगार नहीं मिल रिया
महंगाई बड़ रिया
छात्र परेशान हो रिया
किसान रो रिया
जीडीपी घट रिया
इन पर कोई
नहीं बोल रिया
तेरे को किसने मुन दिया
जो तू हर बखत
रिया रिया बोल रिया ?
अब बहुत हो लिया
बंद कर रिया रिया ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.08 2020

Major Dhyanchand khel diwas : मेजर ध्यान चंद खेल दिवस

मीठी मीठी - 506 : मेजर ध्यान चंद स्मरण दिवस

        हर साल 29 अगस्त हुणि  हमार देश में हॉकी जादूगर मेजर ध्यान चंद ज्यूक जन्मदिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाई जांच । "लगुल " किताब बै उनार बार में एक लेख यां उद्धृत छ । ध्यान चंद ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.08.2020

Thursday 27 August 2020

Kau suaa,kaath kau : कौ सुआ, काथ कौ ।

मीठी मीठी - 504 : कौ सुआ, काथ कौ

     कुमाउनी कि अस्सी सालों कि कथा जात्रा कैं एकबटै बेर मंपापुर रामनगर  (उत्तराखंड ) में रौणी हिंदी व कुमाउनीक वरिष्ठ साहित्यकार और " दुदबोलि " क संपादक मथुरादात्त मठपाल ज्यू द्वारा संपादित किताब " कौ सुआ, काथ कौ " बेई डाक द्वारा देहरादून बै मंगै । य किताब में 100 कुमाउनी लेखकोंक 100 कहानि छीं । कहानियोंक क्रम वरिष्ठता बै कनिष्ठता कि ओर छ अर्थात वरिष्ठतम लेखक (जन्म 1901 ) कि कहानि सबूं है पैली छ और कनिष्ठतम लेखक (जन्म 1989 ) कि कहानि आंखिर में छ । 55उं  क्रम में म्येरि लेखी कहानि ' पंचोंक फैसाल'  कैं य संग्रह में जागि मिलि रै जो म्यर कुमाउनी कहानि संग्रह  ' भल करा रौ च्यला त्वील ' बै यां उद्धृत छ । मठपाल ज्यू रचित कहानि  ' लिकरू पंडितौ  बिरखांत ' 44 उं क्रम में छ ।

       किताब ऐगे, आब माठ -माठु कै पढ़ी जालि । य संग्रह में कएक यास लेखक छीं जनुकैं हाम नि जाणन । कुमाउनी साहित्य प्रेमियोंल य किताब जरूर पढ़ण चैंछ।  454 पृष्ठोंकि य किताबक मूल्य ₹ 445/- छ परन्तु लेखक हुणक वज़ैल प्रकाशकल थ्वाड़ छूट लै दी । प्रकाशक - समय साक्ष्य, देहरादून, उत्तराखंड ।  संपर्क - 0135 2658894 । आदरणीय मठपाल ज्यू कैं य अद्भुत साहित्य श्रम करणक लिजी भौत भौत बधै।  ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
28.08.2020

Wednesday 26 August 2020

Ek muhalle ka 15 August : एक मुहल्ले का 15 अगस्त

बिरखांत- 335 : एक मुहल्ले का 15 अगस्त

       कुछ हम-विचार लोगों ने मोहल्ले में 15 अगस्त मनाने की सोची | तीन सौ परिवारों  में से मात्र छै लोग एकत्र हुए | (जज्बे का कीड़ा सबको नहीं काटता है ) | चनरदा (लेखक का चिरपरिचित जुझारू किरदार ) को अध्यक्ष बनाया गया | बाकी पद पाँचों में बट गए | संख्या कम देख एक बोला, “इस ठंडी बस्ती में गर्मी नहीं आ सकती | यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह रहो और मर जाओ |  यहां किसी को 15 अगस्त से क्या लेना-देना | दारू की मीटिंग होते तो मेला लग गया होता | चलो अपने घर, हो गया झंडा रोहण |” दूसरा बोला, “रुको यार | छै तो हैं, धूम-धड़ाके से नहीं मानेगा तो छोटा सा मना लेंगे और मुहल्ले के मैदान के बीच एक पाइप गाड़ कर फहरा देंगे तिरंगा |”  सबने अब पीछे न हटने का प्रण लिया और योजना तैयार कर ली | अहम सवाल धन का था सो चंदा इकठ्ठा  करने मन को बसंती कर, इन मस्तों की टोली चल पड़ी |

           स्वयं की रसीदें काट कर अच्छी शुरुआत की | चंदा प्राप्ति के लिए संध्या के समय प्रथम दरवाजा खटखटाया और टोली के एक व्यक्ति ने 15 अगस्त की बात बताई, “सर कार्यक्रम में झंडा रोहण, बच्चों की प्रतियोगिता एवं जलपान भी है | अपनी श्रधा से चंदा दीजिए |” सामने वाला चुप परन्तु घर के अन्दर से आवाज आई, “कौन हैं ये ? खाने का नया तरीका ढूंढ लिया है | ठगेंगे फिर मौज-मस्ती करेंगे |” चनरदा बोले, “नहीं जी ठग नहीं रहे, स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद करेंगे, बच्चों में देशप्रेम का जज्बा भरेंगे, भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देंगे जी |” फिर अन्दर से आवाज आई, “ ये अचनाक इन लोगों को झंडे के फंडे की कैसे सूझी ? अब शहीदों के नाम पर लूट रहे हैं | ले दे आ, पिंड छुटा इन कंजरों से, अड़ गए हैं दरवाजे पर |” बीस रुपए का एक नोट अन्दर से आया, रसीद दी और “धन्यवाद जी, जरूर आना हमारे फंडे को देखने, भूलना मत | 15 अगस्त, 10 बजे, मुहल्ले के मैदान में” कहते हुए चनरदा टोली के साथ वहाँ से चल पड़े

         खिसियाई टोली दूसरे मकान पर पहुँची और वही बात दोहराई | घर की महिला बोली, “वो घर नहीं हैं | लेन-दें वही करते हैं |” दरवाजा खटाक से बंद | टोली उल्टे पांव वापस | टोली के अंतिम आदमी ने पीछे मुड़ कर देखा | उस घर का आदमी पर्दे का कोना उठाकर खाली हाथ लौटी टोली को ध्यान से देख रहा था | टोली तीसरे दरवाजे पर पंहुची | बंदा चनरदा के पहचान का निकला और रसीद कटवा ली | चौथे दरवाजे पर अन्दर रोशनी थी पर दरवाजा नहीं खुला | टोली का एक व्यक्ति बोला, “यार हो सकता है सो गए हों या बहरे हों |” दूसरा बोला, “अभी सोने का टैम कहां हुआ है | एक बहरा हो सकता है, सभी बहरे नहीं हो सकते |” तीसरा बोला, “चलो वापस |” चौथा बोला, “यार जागरण के लिए नहीं मांग रहे थे हम | यह तो बेशर्मी की हद हो गई, वाह रे हमारे राष्ट्रीय पर्व |” पांचवे को निराशा में मजाक सूझी| बोला, “यह घोर अन्याय है | खिलाफत करो | इन्कलाब जिंदाबाद |” हंसी के फव्वारे के साथ टोली आगे बढ़ गई |

       इस तरह 10 दिन चंदा संग्रह कर तीन सौ परिवारों में से दो सौ ने ही रसीद कटवाई और कार्यक्रम- पत्र मुहल्ले में बांटा गया | 15 अगस्त की पावन बेला आ गई | मैदान में एक छोटा सा शामियाना दूर से नजर आ रहा था | धन का अभाव इस आयोजन में स्पष्ट नजर आ रहा था | लौह पाइप पर राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए बंध चुका था | देशभक्ति गीतों की गूंज ‘हम लाये हैं तूफ़ान से., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें., छोड़ो कल की बातें.. दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी | टोली के छै व्यक्ति थोड़ा निराश थे पर हताश नहीं थे | इस राष्ट्र-पर्व के प्रति लोगों की उदासीनता का रोना जो यह टोली रो रही थी उसकी सिसकियाँ देशभक्ति गीतों की गूंज में दब कर रह गई थी |

           टोली का एक व्यक्ति बोला, “इस बार जैसे-तैसे निभ जाए तो आगे से ये सिरदर्दी भूल कर भी मोल नहीं लेंगे |”  चनरदा ने उसे फटकारा, “ चुप ! ऐसा नहीं कहते, तिरंगा मुहल्ले में जरूर फहरेगा और हर कीमत पर फहरेगा |” निश्चित समय की देरी से ही कुछ लोग बच्चों सहित आए | अतिथि भी देर से ही आए और चंद शब्द मंच से बोल कर चले गए | प्रतियोगिताएं शुरू हुईं | सभी पुरस्कार चाहते थे इसलिए निर्णायकों पर धांधली, बेईमानी और भाईबंदी करने के आरोप भी लगे | कुर्सी दौड़ में महिलाओं ने रेफ्री की बिलकुल नहीं सुनी | सभी जाने-पहचाने थे इसलिए किसी से कुछ कहना नामुमकिन हो गया था | जलपान को भी लोगों ने अव्यवस्थित कर दिया | अध्यक्ष चनरदा ने सबको सहयोग के लिए आभार प्रकट किया |

        कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखने के बाद अचानक एक व्यक्ति मंच पर आया और उसने चनरदा के हाथ से माइक छीन लिया | यह वही व्यक्त था जिसने चंदे में मात्र बीस रुपए दिए थे | वह बोला, “माफ़ करना बिन बुलाये मंच पर आ गया हूं | उस दिन मैंने आप लोगों को बहुत दुःख पहुंचाया | मैं आपके जज्बे को सलाम करता हूं | आप लोगों ने स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और देशप्रेम की बुझती हुई मशाल को हमारे दिलों में पुनर्जीवित किया है | मैं पूरे सहयोग के साथ आपके सामने खड़ा हूं | यह मशाल जलती रहनी चाहिए | हर हाल में निरंतर जलती रहनी चाहिए |”

        समारोह स्थल से सब जा चुके थे | हिसाब लगाया तो आयोजन का खर्च चंदे से पूरा नहीं हुआ | सात लोगों ने मिलकर इस कमी को पूरा किया | स्वतन्त्रता दिवस सफलता से मनाये जाने की खुशी इन्हें अवश्य थी परन्तु अंत: पीड़ा से पनपी एक गूंज भी इनके मन में उठ रही थी, ‘सामाजिक कार्य करो, समय दो, तन-मन-धन दो और बदले में बुराई लो, कडुवी बातें सुनो, निंदा-आलोचना भुगतो और ‘खाने-पीने’ वाले कहलाओ | शायद यही समाज सेवा का पुरस्कार रह गया है अब |’ तुरंत एक मधुर स्वर पुन: गूंजा, ‘यह नई बात नहीं है | ऐसा होता आया है और होता रहेगा | समाज के चिन्तक, वतन को प्यार करने वाले, देशभक्ति से सराबोर राष्ट्र-प्रेमियों की राह, व्यर्थ की आलोचना से मदमाये चंद लोग कब रोक पाए हैं ?” ( इस बार गली - मुहल्ले और गांव में  कोरोना संक्रमण के कारण 15 अगस्त केवल प्रतीक के तौर पर या संदेश भेज कर ही मनाया गया । )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.08.2020

Tuesday 25 August 2020

Rapid promotion : रैपिड प्रोमोशन

खरी खरी - 686 : रैपिड प्रोमोसन (द्रुत प्रोन्नति)

    आजकल सोसल मीडिया और कई मंचों पर कुछ लोग चिकनी -चुपड़ी, रंग-पुताई से भरपूर, विशेषण युक्त शब्दावली से बहुत ही द्रुत प्रोन्नति (रैपिड प्रोमोसन ) दे रहे हैं । बानगी देखिए -

अभी एक भी गीत नहीं गाया -
सुर सम्राट, लोक गायक !

अभी संगीत का पता भी नहीं-
संगीतज्ञ, संगीत सम्राट !

अभी कविता का ककहरा नहीं सीखा-
जन कवि, कवि शिरोमणि !

अभी लेखन ने पुस्तक रूप नहीं धरा-
विख्यात लेखक, प्रसिद्ध साहित्यकार !

रंगमंच में पहला कदम-
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी !

मंच संचालन की वर्णमाला ज्ञात नहीं-
कुशल एवं श्रेष्ठ मंच संचालक !

कला  औऱ अदाकारी से अनभिज्ञ-
सुप्रसिद्ध अदाकार, उत्कृष्ट कलाकार !

समाज की कोई सेवा नहीं-
जाने-माने समाज सेवी !

राजनीति में मुहल्ले में भी नहीं-
लोकप्रिय राजनेता, जन-नेता !

भाषण में माफियागिरी-
विद्वान वक्ता !

       मित्रो विशेषण जरूर लगाइए परन्तु ईमानदारी से खपने लायक हों, पचने लायक हों । इतनी अतिशयोक्ति भी मत करिए कि पीतल को सोना कह दो । बच्चे के चेहरे पर दाड़ी मत उगाइये, भद्दी लगेगी । आत्मप्रशंसा और स्वमुग्धा से हम आगे बढ़ने के बजाय पीछे रपट सकते हैं । अतः विशेषण देख-परख कर ही चस्पाइये ताकि पढ़ने, सुनने और समझने वालों को ये शब्द शिष्ट, सहज और सत्य लगें । अंत में यही कहूंगा -

'हम तो बदनाम हो गए
खरी खरी सुनाने में,
कह दो हम से कुछ भी बेझिझक
कुछ नहीं धरा मसमसाने में ।'

( कुछ छूट गया है तो जोड़ने का सुझाव शिरोधार्य है । आजकल कोरोना के कारण जमीन में होने वाले आयोजन वेबीनार में हो रहे हैं जो अच्छी सामाजिकता का परिचायक है ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.08.2020

Monday 24 August 2020

। Kya kahati hai rail ? क्या कहती है रेल ?

मीठी मीठी - 502 : क्या कहती है रेल ?

चलते रहूं विश्राम न पाऊं

मैं सबको मंजिल पहुँचाऊँ,

उत्सव त्यौहार दिन हो रात

जाड़ा गर्मी या बरसात ।

जीवन नाम है चलते रहना

दुःख संकट में नहीं घबराना,

लक्ष्य एक हो मंजिल पाना

बस आगे ही बढ़ते जाना ।

रुकावटें तो आती रहती

दृढ संकल्प हो वे झुक जाती,

रेल हमें बस यही सिखाती

जीने की है राह दिखाती ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

25.08.2020

Sunday 23 August 2020

Yamuna ka santaap : यमुना का संताप

खरी खरी - 685 : यमुना का संताप

स्वच्छ हुई नहीं
गंदगी बढ़ती गई,
पर्त कूड़े की तट
मेरे चढ़ती गई,
बढ़ा प्रदूषण रंग
काला पड़ गया,
जल सड़ा तट-तल
भी मेरा सड़ गया ।

व्यथित यमुना रोवे
अपने हाल पर,
पुकारे जन को
मेरा श्रृंगार कर,
टेम्स हुई स्वच्छ
हटा कूड़ा धंसा,
काश ! कोई तरसे
देख मेरी दशा ।

आह ! टेम्स जैसा
मेरा भाग्य कहां ?
उठी स्वच्छता की
गूंज संसद में वहां,
क्या कभी मेरे लिए
भी यहां खिलेगी धूप ?
कब मिलेगा मुझे
मेरा उजला स्वरूप ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.08.2020

Saturday 22 August 2020

Roti aur Bhagwan : रोटी और भगवान

खरी खरी - 684 : रोटी और भगवान

     अक्सर हम सब देखते हैं कि जब भी कुछ घरों में रोटी और भगवान की फ़ोटो/तस्वीर फालतू हो जाती है तो उसको वे चौराहे पर या पार्क के कोने पर या किसी पेड़ के नीचे फेंक देते हैं । उसके बाद कुत्ते या आवारा पशु उस स्थान पर आते हैं । इन पशुओं का मन हुआ तो रोटी खाते हैं अन्यथा वहीं इर्द-गिर्द मल-मूत्र करके चल पड़ते हैं ।

     रोटी की बात करें तो जिसके लिए पूरी दुनिया दौड़ रही है, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते, जिसके लिए हम दर-दर की ठोकरें खाते हैं उसे लोग इस तरह क्यों फैंक देते हैं ? पहले तो रोटी उतनी ही बने जितनी चाहिए । यदि बच भी जाये तो उसका सदुपयोग अगले भोजन में कर लें । हम सुबह रोटी लेकर कार्यस्थल पर खाते रहे हैं तब तो यह बासी नहीं होती । फिर भी रोटी फैंकने के बजाय किसी गौशाला तक पहुंचा दी जाय ।

      भगवान तो बेचारे अनाथ हैं । टूट गए, पुराने हो गए या खंडित हो गए उनको तो लावारिश होना ही है । पता नहीं लोग जिस फोटो-मूर्ती पर रात-दिन नाक रगड़ते हैं, उसकी पूजा करते हैं उसे इस तरह गंदगी में क्यों छोड़ देते हैं । यह हमारे देश की कैसी धार्मिक शिक्षा है ?  किसी ने तो उन्हें ऐसा करने को कहा है । किसी भी मूर्ति-फोटो को इस तरह आवारा पशुओं के बीच उसका निरादर करते हुए छोड़ने के बजाय उसे भू-विसर्जन कर देना चाहिए अर्थात किसी पेड़ के नीचे या साफ जगह पर  उसे तोड़कर जमीन में दबा देना चाहिए । जल-विसर्जन में भी वह मिट्टी में ही मिलेगी । अंधविश्वास - जड़ित प्रथा-परम्परा की जंजीरों से हमें अपने को मुक्त करना है तभी हम अपनी अगली पीढ़ी के लिए जलस्रोतों और नदियों को बचा पाएंगे तथा श्रद्धा का भी सम्मान कर सकेंगे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

23.08.2020

Friday 21 August 2020

Ganesh ji ki Aarti ke shabd : गणेश जी की आरती के शब्द

खरी खरी - 683 :  गणेश जी की आरती के शब्द

         आज पुनः गणेश जी की आरती के शब्दों की बात करते हैं । हमारे समाज में चिरकाल से गणेश जी की एक आरती प्रचलन में है, "जय गणेश जय गणेश श्रीगणेश देवा..."। इस आरती की इन पंक्तियों में बदलाव होना चाहिए -

" अंधन को आंख देत, कोडिन को काया;
    बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।"

आरती में तीन शब्द अप्रिय हैं, कलुषित हैं  और अप्रासंगिक हैं ।

          मेरे विचार से आरती इस प्रकार से हो -

" सूरन को आंख देत, रोगिन को काया;
   नारी को मातृत्व देत, सबजन को छाया ।" 

      अंधे व्यक्ति को सूर कहते हैं, सूर कहना उचित है ।  कोड़ की बात न हो, कोड़ रोग का भी उपचार होता है । प्रत्येक रोग से सभी को दूर रखने की बात हो । बांझ शब्द किसी भी विवाहिता के लिए कटु शब्द है । यहां मातृत्व की बात करें । पुत्र देत न कहें । पुत्र देत कहने से हम अपनी पुत्रियों का अपमान करते हैं । माया तो मांगनी ही नहीं चाहिए । कर्म करें, उच्च चरित्र रखें, जीओ और जीने दो का सिद्धांत अपनाएं और स्वस्थ जीवन जीएं । जिस ' छाया ' शब्द  का मैंने प्रयोग किया है उसका अर्थ है भगवान की छत्र छाया सब पर बनी रहे । मुझे उम्मीद है सभी मित्र इस बदलाव पर अवश्य मंथन करेंगे और इन तीन शब्दों ( अंधन, कोडिन  और बांझ  ) से आहत होने वाले व्यक्तियों को इन अप्रिय शब्दों से बचाएंगे तथा इनकी जगह ' सूरन '  'रोगिन ' और 'मातृत्व ' शब्द प्रयोग करेंगे । इस आशय में एक ऑडियो भी पहले प्रेषित किया है ।

         आज 22 अगस्त, गणेश उत्सव की शुभकामना । त्यौहार घर में ही मनाएं ।  देश में कोरोना से करीब 29 लाख से अधिक संक्रमित हैं और 55 हजार इस संक्रमण के ग्रास बन गए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक  को ढककर चलें, केवल दिखाने के लिए मास्क लटकाकर न चलें । हाथ धोते रहना, मास्क ठीक से लगाए रखना, देह दूरी और भीड़ से बचाव; ये चार बातें ही तो याद रखनी हैं ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
22.08.2020

Giradaa : गिरदा

मीठी मीठी - 501 :आज 22 अगस्त, गिरदा कि पुण्य तिथि 

     जनकवि गिरीश चन्द्र तिवारी, "गिरदा" कि आज पुण्यतिथि   छ । उनर जन्म 10 सितम्बर 1945 हुणि ज्योलि, अल्माड़ में हौछ और निधन 22 अगस्त 2010  हुणि हौछ  ।  उनार बार में एक लघु लेख "लगुल" किताब में छ, जो याँ उधृत छ । गिरदा कैं विनम्र श्रद्धांजलि । 'ततुक नि लगा उदेख, घुनन मुनइ नि टेक।'

पूरन चन्द्र काण्डपाल

22.08.2020

Thursday 20 August 2020

Facebook whatsep ke naam : फेसबुक वॉट्सएप के नाम

खरी खरी-682 : फेसबुक- व्हाट्सेप के नाम

फेसबुक -वॉट्सएप रंगीन देखा,
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |

कभी ‘वाह-वाह’ कभी ‘जय-जय’
व्यर्थ तारीफ़ शब्द लय -लय,
जिस न झुकाया सिर घर- मंदिर
वह देवी- देवता भेजते देखा |

कट-पेस्ट के लम्बे थान देखे
घूम- फिर कर वही ज्ञान देखे
छोटा ज्ञान पल्ले नहीं पड़ता
लम्बा ज्ञान बरसते देखा |

मस्ती देखी चैटिंग देखी
अन्धविश्वास के सैटिंग देखी
नाम बदल कर कई ग्रुप में
झूठा प्रोफाइल बहते देखा |

शराब गुटखा नशा धूम्रपान
मध्यम गति से लेते जान
हमने पार्क में बाल -बाला को
व्हाट्सेप नशे पर मरते देखा |

राजनीति को ढलते देखा
झूठनीति को फलते देखा
राजनीति कोई कहीं कर रहा
यहां कईयों को लड़ते देखा |

जिसको अपने मोबाइल में
जब भार्या ने हंसते देखा
क्रोध यों मडराया तिय पर
शब्द शोला बरसते देखा |

प्यार की आह भी भरते देखे
व्यंग्य बाण भी चलते देखे,
दूसरों की लेख -कविता पर
नाम अपना चस्पाते देखा |

चुटकुलों की बौछार भी देखी
बदलती बयार भी देखी,
पति-पत्नी एक दूजे के पूरक
पति को हरदम दबते देखा |

कभी किसी को जुड़ते देखा
कभी किसी को कुड़ते देखा
कभी तंज- भिड़ंत भी देखी
व्यर्थ बहस उकसाते देखा |

रात रात भर जगते देखा
घंटों वक्त गंवाते देखा
स्पोंडिलाइटिस कई लोगों को
मोबाइल से होते देखा |

चलते-चलते पढ़ते देखा
सैल्फी खीचते गिरते देखा
अश्लीलता का खुलकर तांडव
बदनाम मोबाइल होते देखा |

ऊंट –गधे के सुर में सुर
रखते जाते खुर में खुर
नहीं थी सूरत नहीं था सुर
झूठी प्रशंसा करते देखा |

कुछ शब्दों की धार भी देखी
शब्द पिरोती हार भी देखी
मान-मर्यादा के पथिकों को
राह गरिमा की चलते देखा |

कोरोना संक्रमण आते देखा
कई लोगों को मरते देखा,
ढीठ नहीं रखे कभी देह दूरी
बिना मास्क के घूमते देखा ।

क्या वे उस पथ चलते होंगे ?
जिस पथ चल- चल कहते होंगे !
ज्ञान बघारने वाले जन की
कथनी- करनी में अंतर देखा |

फेसबुक -वॉट्सएप रंगीन देखा
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.08.2020