Sunday 31 December 2017

Nav varsh 6 shaheed : नव वर्ष 6 शहीद

खरी- खरी - 150 : नव वर्ष पर 6 शहीदों को सलूट

      2017 के अंतिम दिन 31 दिसम्बर को हमारे 6 जवान ( 5 जवान सी आर पी एफ के, पुलवामा जम्मू-कश्मीर में और 1 जवान सेना का, नौशेरा पंजाब में ) देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे गए । सीमा पर पड़ोसी देश द्वारा पूरे वर्ष भर गोलीबारी होती रही और उग्रवाद का नाग सरहद के आसपास आज भी फनफना रहा है ।  

     ऐसा विगत 1989 से लगातार हो रहा है जिससे हमारे सैकड़ों सुरक्षा प्रहरी  वतन की माटी को अपने लहू से सिंचित कर गए । हमारी सेना ने भी दुश्मन की हर गोली का बड़ी मुस्तैदी से मुहतोड़ जबाब दिया और प्रत्येक शहीद के बलिदान का तुरंत बदला लिया । उग्रवाद के नाग का सिर कुचलना अभी बाकी है जिसकी देश को दरकार है । अब तक देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सभी अमर शहीदों को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि ।

     नववर्ष 2018 का भलेही आज हम स्वागत कर रहे हैं और एक - दूसरे को बधाई- शुभकामना दे रहे हैं परन्तु दिल से हम मातृभूमि के लिए अपना बलिदान देने वाले इन वीर सपूतों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और इस दुख के दौर में इन शहीद परिवारों के दुख -दर्द में शामिल हो रहे हैं -

'शहीदों की चिंताओं में 
लगेंगे हर बरस मेले, 
वतन पर मिटने वालों का 
बस एक यही निशां होगा ।' 

जयहिन्द, 
जय हिंद की सेना ।

इस गमगीनअंधेरे में 
एक दीप जलाते हैं,
सभी  मित्रों  को  नववर्ष
की शुभकामना देते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

शहीदों पर भी लिखो

तुम गजल लिखो या
गीत प्रीत के खूब लिखो,
एक पंक्ति तो कभी 
शहीदों पर लिखो,
लौट नहीं आये जो
कभी गीत लिखो उनपर,
देह-प्राण न्यौछावर
कर गए राष्ट्र की धुन पर ।

'जयहिन्द'

जो हमारे कल के लिए अपना आज दे गए उनके परिजनों का सम्मान करते हुए सभी मित्रों को नव वर्ष की शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.01.2018

Rock garden : रॉक गार्डन नेक चंद

मीठी मीठी - 61: रॉक गार्डन में जिंदा हैं नेकचंद

     चंडीगढ़ में सुखना झील के नजदीक स्थित विश्वप्रसिद्ध रॉक गार्डन के सृजक (निर्माता) पद्मश्री नेक चंद जी भलेही अब इस दुनिया में नहीं हैं परन्तु जो अमूल्य निधि वे इस धरा में बना कर छोड़ गए उससे वे अमर हो गए । 30 दिसम्बर 2017 को नेक चंद जी की इस अद्भुत सृजनता को देखने का अवसर मिला तो वास्तव में देखता ही रह गया ।

     नेक चंद जी का जन्म 15 दिसम्बर 1924 को हुआ । युवा होकर वे चंडीगढ़ में सरकारी नौकरी पर एक रोड इंस्पेक्टर नियुक्त हुए । वर्ष 1957 से वे बिना किसी को बताये चुपचाप एक जंगल की अन -उपजाऊ जमीन में लोगों द्वारा फैंकी गई वस्तुओं से सृजनता करते हुए उन्हें सजीव आकृति या वस्तु काआकार देने लगे । यह कार्य वे प्रतिदिन सरकारी नौकरी करने के बाद करते थे । 1975 में सरकार को उनके इस कार्य का पता चला । लोगों में इस सृजन की लोकप्रियता देख सरकार ने नेक चंद जी को इस कार्य का इंचार्ज बनाते हुए  उन्हें कुछ मजदूर भी दे दिए और उनकी सृजन यात्रा जारी रही ।

     नेक चंद जी ने इस सृजनता को साकार रूप देते हुए कांच, चूड़ी के टुकड़े, कप- प्लेट -बोतल और घड़े के टुकड़े, बिजली के टूटे हुए सामान,पत्थर आदि को कलात्मक रूप दे दिया । इन आकृतियों को उन्होंने ऊंट, हाथी, भालू , मानव आदि कई रूपों में प्रस्तुत कर दिया । 1997 में इस सृजन को नेक चंद फाउंडेसन बना दिया गया जो अब चंडीगढ़ टूरिज़्म के अंतर्गत है । राष्ट्र ने नेकचंद के इस नेक कार्य हेतु उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया ।

      40 एकड़ क्षेत्र में फैले हुए इस सृजन स्थल में 5000 आकृतियां हैं । यहां प्रतिदिन लगभग पांच हजार लोग आते हैं जो ₹ 30/- के टिकट(बच्चों-विद्यार्थियों के लिये ₹ 10/-) से प्रवेश पाते हैं । इस सृजनता को अवश्य देखना चाहिए । नेक चंद जी 12 जून 2015 को इस दुनिया से चल बसे परन्तु इन सजीव कलाकृतियों ने उन्हें अमर कर दिया । बेकार- बेजान वस्तुओं में प्राण फूंकने वाले इस महान कलाकार को विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.12. 2017

Mahngaayee : महंगाई

खरी खरी - 149 : मंहगाई पर भी ब्रेक लगाओ हजूर

     एक अच्छे ड्राइवर का ध्यान सिर्फ एक्सलेटर पर ही नहीं होना चाहिए । ब्रेक, गेर और पहियों की हवा पर भी होना चाहिए तभी गाड़ी ठीक से चलेगी । गरीब को जिन्दा रहने के लिए कम से कम छै चीजें चाहिए- आटा, चावल, दाल, चीनी, चाय और नमक । दूध, घी-तेल, सब्जी के बिना भी वह जी लेता है । नमक के पानी में डुबाकर भी वह रोटी खा लेता ।

     सत्ता परिवर्तन का एक मुख्य मुद्दा मंहगाई भी था । तब की रु 34/-  वाली चने की और रु 65/-  वाली अरहर की दाल आज क्रमशः रु 120/-  से रु 150/- के बीच पहुँच गयी है। उक्त छै वस्तुओं के दाम कम करने के बजाय बहुत आगे निकल गए । हजूर ज़रा मंहगाई पर भी ब्रेक लगाओ तभी हमें 'हैप्पी न्यू ईयर' की बधाई दोगे आप 01 जनवरी 2018 को ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 
30.12. 2017

Kavi list : कवि लिस्ट

मीठी मीठी - 60 : हमरि भाषा क "छिलुक" जगूणी

    24 दिसम्बर 2017 हैं जो कुमाउनी - गढ़वाली कवियों ल काव्य पाठ करौ और "छिलुक" उपन्यास पर वार्ता करी उनौर नाम मुणि छ ताकि भविष्य में लोग आपण हिसाब ल उनु दगै संपर्क करि सकण । भलेही कोशिश करि रैछ फिर लै यूं नाम वरीयता क्रम में न्हैति-

1.सर्व श्री ललित केशवान
2.दिनेश ध्यानी
3.ओम प्रकाश आर्य
4.गिरिश चन्द्र भावुक
5.डॉ केदारखंडी
6.नीरज बवाड़ी
7.प्रदीप खुदेड़
8.सु.लक्ष्मी पाल
9.सु. अमिता रावत
10.रमेश परदेशी
11.पृथ्वी पाल रावत
12.भाष्कर जोशी
13.अनूप रावत
14.अनूप नेगी
15.पयास पोखड़ा
16.मनोज भट्ट ,ऋषिकेश
17.प्रकाश मिलनसार
18.सुरेन्द्र सिंह रावत
19.वीरेन्द्र जुयाल
20.गोविंद पोखरियाल
21.जगत कुमाउनी
22.डॉ सतीश कालेश्वरी
23.सुधाकर जोशी
24.शंकर ढौडियाल
25.जगदीश सिंह
26.डॉ जलंधरी
27.बीर सिंह राणा
28.देवेश आदमी
29.रमेश हितैषी
30.हेम पंत
31.पूरन चन्द्र काण्डपाल

( सर्वश्री जयपाल सिंह रावत, डॉ मनोज उप्रेती, रमेश घिल्डियाल यूं तीन कवि आमंत्रित छी पर अपरिहार्य कारण ल नि ऐ सक ।)

     आपूं सबै मितुरों हैं निवेदन छ कि कविता क "छिलुक" निमाण झन दिया । कसै लै उरगार (तूफान) उठो "छिलुक" जगै बेर धरिया । यौ "छिलुक" क उज्याव ल एक न एक दिन हमरि कुमाउनी और गढ़वाली भाषा संविधान क आठूं अनुसूची में जरूर पुजलि । आपूं सब आछा और कविता कि रंगत जमै गछा, यैक लिजी भौत- भौत धन्यवाद ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.12. 2017

Thursday 28 December 2017

Andhvishwas samasya: अंधविश्वास एक वीकै समस्या

बिरखांत – 191 : अन्धविश्वास एक विकट समस्या

    हमारे देश में अन्धविश्वास और कट्टरवाद का विरोध करने पर कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है | दाभोलकर, गोविन्द पंसारे और कलबुर्गी इसके हाल ही में घटित उदाहरण हैं | इसी कारण बंगलादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन 1994 से वतन छोड़कर दर -दर की ठोकरें खा रही हैं | वह भारत को  अपना दूसरा घर मानती हैं | उन्हें उनके देश के कट्टरवाद ने जान से मारने की धमकी दे रखी है ।

     अन्धविश्वास का विरोध करने वाले हमेशा ही उन लोगों के निशाने पर रहे हैं जो इसे पोषित कर अपनी दुकान चलाते हैं | उत्तराखंड, झारखंड और असम ही नहीं हमारा पूरा देश अन्धविश्वास से ग्रसित है | भ्रष्टाचार के बाद अंधविश्वास ही देश की सबसे बड़ी विकट समस्या है | 

     बनारस को क्योटो बना सकेंगे या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा क्योंकि बनारस सहित देश के सभी मंदिरों में और नदियों में आज भी लाखों लीटर दूध बहाया जाता है जो देश के करोड़ों कुपोषित बच्चों के लिए पर्याप्त से भी अधिक होता | मूर्ति में तो प्रतीक के तौर पर दो बूंद दूध चढ़ाना ही पर्याप्त है ।

     दिल्ली की मदर डेरी बूथों पर आज भी बूथ से ट्रे लेकर लोग अबारा कुतों को अंधभक्ति के मंत्र से ग्रसित होकर दूध पिलाते हैं जबकि पास ही बिना चप्पल -जूता पहने कूडा बीनने वाले गरीब बच्चे देखते रहते हैं |

      देश की गन्दगी, नदियों की दुर्गति सहित सभी प्रकार की सामाजिक बुराइयों में भी अन्धविश्वास का ही मिश्रण है | हमने आजादी का जश्न मनाया,  एक-दूसरे को शुभकामनाएं दी  और  अब देश को अन्धविश्वास की गुलामी से मुक्त करने के लिए हिम्मत से इसका विरोध करें और घर से शुरुआत करें तभी ‘जय भारत’ 'जयहिन्द' और ‘वन्देमातरम’ के उद्घोष का नारा  भी सार्थक होगा |

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
28.12. 2017

Samajikta ke sanskaar : समाजिकता के संस्कार

मीठी मीठी - 59 :  सामाजिकता के संस्कार 

     प्रस्तुत चित्र से मुझे इन चार बच्चों पर कुछ शब्द लिखने की प्रेरणा मिली । मुझे अक्सर कुछ मित्र  कई लोगों के बारे में लिखने को कहते हैं । मैं कहता हूं, 'कुछ ऐसे काम करो जिसके बारे में लिखा जाय और कुछ ऐसा लिखा जाय जो अवश्य पढ़ा जाय ।'  इन चार बच्चों ने 24 दिसम्बर 2017, रविवार को गढ़वाल भवन नई दिल्ली में स्वेच्छा से पुस्तक काउंटर संभालने की जिम्मेदारी ली जहां इन्होंने 7 लेखकों की अलग-अलग प्रकार की 15 पुस्तकों को बेचने का बीड़ा उठाया ।

     ये चारों एक टेबल लगाकर उस स्थान पर बैठ गए जहां अंदर अलखनंदा हाल में कुमाउनी-गढ़वाली कवि सम्मेलन चल रहा था । लगातार तीन घंटे इन्होंने सेवा दी और कुमाउनी- गढवाली भाषा में लिखी गईं करीब 5 दर्जन पुस्तकें बेचने में ये सफल हुए और हिसाब भी टनाटन रखा । इनके चेहरों पर अंत तक कोई शिकन नहीं थी ।

     ये बच्चे कविमित्र ( जिन्हें प्यार से हम 'संत' जी कहते हैं ) ओमप्रकाश आर्य जी के साथ आये थे ।  इनके नाम हैं - अमित (B. com I), विजय (B. Tech II),  अजय ( XI) और समर (6th) । आजकल पहले तो बच्चे कवि -सम्मेलन या विचारगोष्ठी में जाते नहीं हैं और यदि आ भी गए तो उनसे किसी कार्य की उम्मीद नहीं की जा सकती, वे कुछ काम करने की बात सुनकर नाक- भौं सिकोड़ने लगते हैं । सामाजिक कार्यों में बच्चों ने भागीदारी देनी बंद कर दी है । शायद हम उन्हें सामाजिक संस्कार देने में असफल हो रहे हैं ।

     यदि आपके बच्चे समाज से जुड़े हैं तो अवश्य ही आप जैसे माता-पिता वंदनीय हैं । यह गंभीर चिन्तन का विषय है । हम सब अपने लाडलों/लाड़लियों को समाज के कार्य में हाथ बंटाने को प्रेरित करें । इन चारों लाडलों के इस सामाजिक श्रम को मैं नमन करता हूं और इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.12. 2017

Monday 25 December 2017

Mahakautik : इंदिरापुरम महाकौतिक

मीठी मीठी - 58 : महाकौतिक इंदिरापुरम

    25 दिसम्बर 2017 को 5 दिन के इंदिरापुरम महाकौतिक का अंतिम दिन था । कल इस शानदार और कुशलता से आयोजित महाकौतिक में एक शानदार कुमाउनी-गढ़वाली कवि सम्मेलन भी आयोजित किया गया । एक दर्जन से अधिक उत्तराखंडी कवियों ने एक विशाल जन-समूह के सानिध्य में अपनी भाषा में काव्यपाठ किया ।

     इस महाकौतिक (मेघा इवेंट) की आयोजक वह उत्तराखंडी संस्था थी जिसके सर्वेसर्वा थे सुप्रसिद्ध संगीत निदेशक राजेन्द्र चौहान जी । चौहान साहब ने इस महा मेले में आने वालों को सम्पूर्ण उत्तराखंड के दर्शन कराए जिसमें उत्तराखंड के व्यंजनों सहित वहां जी वस्तुओं का आगन्तुकों ने खूब लुत्फ उठाया । अपने तरह का गाजियाबाद में आयोजित होने वाला यह 7वां मेला था ।

      इस सफल आयोजन का श्रेय चौहान जी की संगठित टीम को जाता है जिस टीम में उनकी भार्या प्रसिद्ध गायिका कल्पना चौहान भी थी । भाषा, साहित्य, संस्कृति, गीत, संगीत के इस महाकुंभ का सफल आयोजन करने के लिए राजेन्द्र चौहान जी और उनकी टीम को बहुत बहुत बधाई और शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.12. 2017

Dhanywaad mituro : धन्यवाद मितुरो

मीठी मीठी - 55 : हार्दिक धन्यवाद मितुरो

     24 दिसम्बर 2017 हैं गढ़वाल भवन नई दिल्ली में आयोजत "छिलुक" कुमाउनी उपन्यास कि वार्ता और कुमाउनी- गढ़वाली कवि सम्मेलन में पुजणी सबै वरिष्ठ- कनिष्ठ कवियों, वार्ताकारों और भाषा प्रेमियों क हार्दिक धन्यवाद क दगाड़ आभार प्रकट करनूं ।

     यौ मौक पर सुप्रसिद्ध नाटक निदेशक और रंगमंच कलाकार हेम पंत ज्यू  समेत पांच वक्ताओं ल उपन्यास पर वार्ता करी । द्वि दर्जन है ज्यादै वरिष्ठ और कनिष्ठ कवियों ल कुमाउनी- गढ़वाली में काव्य पाठ करौ । वरिष्ठ कवि ललित केशवान ज्यू  कि अध्यक्षता एवं दिनेश ध्यानी ज्यू और रमेश हितैषी ज्यू क संचालन में कार्यक्रम क सबै भाषा- प्रेयमियों आनंद उठा ।

     सम्मेलन में डी पी एम आई क प्रबंध -निदेशक डॉ विनोद बछेती, समाज सेवी नंदन सिंह रावत, सुरेंद्र सिंह हालसी, उप-कमिश्नर सतीश नौडियाल, 'प्यारा उत्तराखंड' क संपादक देवदा, 'उत्तराखंड जागरण' क संपादक सत्येंद्र सिंह रावत, डॉ सतीश कालेश्वरी, 'देवभूमि की पुकार' क संपादक डॉ जलंधरी सहित भौत गणमान्य मनीषी मौजूद छी ।

     सम्मेलन में कुमाउनी - गढ़वाली लेखकों क कएक किताब लै मौजूद छी जनूं पर पाठकों कि भलि नजर पड़ी और किताबों कि बिक्री लै हैछ । हमौर साहित्य, संस्कृति और भाषा कैं समर्पित, 'हमरि भाषा- हमरि पछ्याण' क समर्थक यूं सबै मनीषियों कैं भौत- भौत साधुवाद ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12. 2017

Chhiluk : छिलुक वार्ता

मीठी मीठी - 54 : आज 24 दिसम्बर हैं चनरदा "छिलुक" दगै आल गढ़वाल भवन कवि-सम्मेलन में 

     आज 24 दिसम्बर 2017 हैं धोपरि बाद 2 बजी  चनरदा आपण दगड़ियाँ दगै "छिलुक" दगै आल गढ़वाल भवन कुमाउनी -गढ़वाली कवि-सम्मेलन में ।  आपूं सब लोगों हैं न्यौत छ कि जरूर पुजिया । सम्मेलन में "छिलुक" कि बात ह्वलि और कनिष्ठ-वरिष्ठ कवियों दगै मुलाकात लै ह्वलि । कुमाउनी -गढ़वाली कविताओं क आनंद लै आपूं ल्यला ।

     चनरदा सम्मेलन में  "छिलुक" उपन्यास क 24 किरदारों  क परिचय लै कराल । फिलहाल यूं किरदारों क नाम सुणो - हंसादत्त, किसन देव, देवदत्त, हरदत्त, पुष्पा, कैलाश, सरु, हिमु, दिपुलि, अजय और अभय । कुछ और नाम लै छीं उपन्यास में - घनानंद, रतन सिंह, खिमदा, गोपदा, नरदा, चनरि त्याड़ि, केशव, रमेश, महेश, माधोराम, जानकी, मुसदेव और नरसिंह ।

     यूं 24 किरदार कएक जाग कैं मुनव भरमता लै करनी, दिल में चरैक लै पाड़नी, उड़भाड़ लै करनी, मन में झसक लै पैद करनी, हंसूनी लै और रोउनी लै । उपन्यास कि कहानि में कएक ता अलतलाट लै पड़ि जांछ, दनफन लै है जींछ, कुथमौव लै उठनी और ठसकाठसकी लै है जींछ । अंधविश्वास, अशिक्षा और भैम कि कवात लै उपन्यास में छ ।

    उम्मीद छ 'छिलुक" उपन्यास कि वार्ता क दगाड़ कवि -सम्मेलन में नईं कवियों क रंग, पुराण कवियों क संग क आपूं खूब आनंद ल्यला । अया जरूर ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.12. 2017

Friday 22 December 2017

Bachcho ke hadse : स्कूल में हादसे

खरी खरी - 148 : मंडी डबवाली- वजीराबाद- कुतुबमीनार, भुलाए नहीं जाते ।

    हमने जीवन में कई हादसे देखे परन्तु तीन ऐसे हादसे हुए जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता । इन तीनों हादसों में मनुष्य की लापरवाही से असामयिक मौत ने 560 स्कूली बच्चों को अपना ग्रास बना लिया ।

     पहला हादसा आज ही के दिन 23 दिसम्बर 1998 को सिरसा हरयाणा में डी ए वी पब्लिक स्कूल के वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में हुआ जब चारों तरफ से घिरे हुए पंडाल में शार्ट सर्किट से आग लगने पर स्कूल के  500 से अधिक  बच्चे जल कर दम तोड़ गए और लगभग 200 बच्चे घायल हो गए । पंडाल में 1500 लोग थे और बाहर जाने का केवल एक रास्ता था । 

      दूसरा हादसा 18 नवम्बर 1997 को सुबह सवा सात बजे हुआ जब बच्चों सहित 120 लोगों से खचाखच भरी सरकारी स्कूल लुडलो कैसल -2, की बस दिल्ली वजीराबाद के पास यमुना में गिर गई । इस हादसे में 28 बच्चे यमुना में समा गए और 70 बच्चे घायल हो गए । 50 से अधिक बच्चों को एक निराले गोताखोर अब्दुल सत्तार ने बचाया जिसका वर्णन मैंने पुस्तक "जिंदगी की जंग" (वर्ष 2010 ) में किया है ।

     तीसरा हादसा 04 दिसम्बर 1981 को हुआ जब दिल्ली स्थित कुतुबमीनार के अंदर भगदड़ में पिकनिक मनाने आये 30 स्कूली बच्चे मारे गए और कई घायल हो गए । उस समय मीनार के अंदर लगभग 300 से अधिक लोग थे । शुक्रवार को टिकट फ्री होने के कारण अधिक भीड़ थी ।

    यदि हम सावधानी अपनाते तो ये तीनों हादसे टाले जा सकते थे । मंडी डबवाली के स्कूल आयोजन में आग लगी, बाहर जाने का एक ही रास्ता था जिससे भगदड़ में बच्चे मारे गए । वजीराबाद हादसा सड़क पर पड़ी रेत में बस के फिसलने से हुआ । आज भी दिल्ली की सड़कों पर जहां- तहां रेत के टीले देखे जाते सकते हैं जो भ्रष्ट कर्मचारियों को नजर नहीं आते । कुतुबमीनार में मीनार के अंदर जाने वाली भीड़ को नियंत्रित करने वाला कोई नहीं था । इस तरह हमारी लापरवाही से तीनों हादसों में कुल 560 से अधिक बच्चे मारे गए ।

     हमने इन हादसों से कोई सबक नहीं सीखा । आज भी लापरवाही के कारण आये दिन स्कूलों में नए -नए किस्म के हादसे हो रहे हैं । प्रतिदिन स्कूल से बच्चे सकुशल घर आ जाएं तभी चैन मिलता है । कब जागेगा तू इंसान...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.12. 2017

Thursday 21 December 2017

Ganga mailee : गंगा मैली रह गयी

खरी खरी - 147 : गंगा रह गई मैली

     हाल ही में 'नमामि गंगे' परियोजना पर हमारे नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ( कैग ) ने बजट में आबंटित राशि खर्च नहीं किये जाने पर सवाल उठाए हैं । 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार में गंगा नदी की गंदगी दूर करने पर जोर दिया गया । गंगोत्री से बहते हुए गंगा सागर में प्रवेश करने वाली जीवन दायिनी गंगा की लंबाई 2525 किलोमीटर है जो 5 राज्यों की आबादी को सीधे तौर से प्रभावित करती है । 

     प्रश्न उठता है जब गंगा की स्वच्छता के लिए राशि है तो खर्च क्यों नहीं की जाती । केंद्र सरकार की यह सबसे महत्वाकांक्षी और सर्वोच्च प्राथमिकता वाली योजना है जिस पर कैग के अनुसार साढ़े तीन वर्ष में कार्य नहीं हुआ । आज गंगा की हालत बहुत खराब है । गंगा का जल पीने योग्य तो छोड़ो हरिद्वार और ऋषिकेश को छोड़कर कहीं पर भी स्नान योग्य भी नहीं रहा अर्थात उसके पानी की गुणवत्ता कम हो गई है ।

     हमारे पी एम साहब ने 'मुझे गंगा मां ने बुलाया है' कह कर यह संदेश दिया था कि अब गंगा के अच्छे दिन आने वाले हैं । अब भी उम्मीद है कि गंगा का मैल जरूर धुलेगा वर्ना राजकपूर जी की फ़िल्म "राम तेरी गंगा मैली" रह गई नहीं भूलेगी । क्या मैली गंगा में डुबकी लगा कर पाप काटने की बात फिर कही जाएगी ? 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.12. 2017

Wednesday 20 December 2017

Patnee chutkule : पत्नी पर चुटकुले

बिरखांत – 190 : पत्नियों पर चुटकुलों की बौछार 

      मैंने अब तक जितना साहित्य लिखा उसमें साठ प्रतिशत महिला विमर्श है जो कई विधाओं में विभिन्न तरीके से वर्णित है |  प्रति दिन  सोसल मीडिया में पत्नियों के बारे में बहुत चुटकुले लहराए  जाते हैैं  | एक से एक लाजवाब, अनोखे और अद्भुत, कारतूस टाइप परन्तु सरस और लुभावने | पर क्या पत्नी के बिना हम अधूरे नहीं हैं ? डरो मत और कुंआरों को भी मत डराओ | 

     पहले ही कुछ लड़के शादी से अबाउट टर्न करने लगे हैं | शादी करने से मुंह फेेरने लगे हैैं । इतना डर गए हैैं जैसे पत्नी आते ही  इन्हें इनके परिवार से छीन लेेेगी या इनकी छाती में बैठ जाएगी । अरे भाई डर जाओगे तो देेेश कैसे चलेगा ? देश में बच्चे कहां से और कैसे आएंंगे ?  कुँवारो को हिम्मत करनी  चाहिए | हम सभी पति तुम्हारे साथ हैं | ( पुरुष होकर तुम चैन से क्यों रहो ? हम भुगत रहे हैं, तुम भी भुगतो ) | ये ब्रेकेट में लिखा हुआ कृपया कुंआरे नहीं पढ़ें | सभी पतियों की तरफ से पत्नियों को ये चापलूसी पंक्तियां पहले ही समर्पित कर चुका हूं  -

पत्नी तुम भार्या ही नहीं हो, 
मित्र बंधु और शाखा हो तुम 
जीवन नाव खेवया तुम हो, 
वैद हकीम दवा भी तुम |

     यदि नाश्ता, लंच और डिनर भलेही ऐठन के साथ ही सही, रेगुलर चाहिए तो पत्नी के लठ्ठे, डंडे , तीर और तलवार रूपी सभी टौन्ट सहने में क्या हर्ज है ? हमसे पहले वाले भी सहते गए हैं । मोटा कलेजा  करके कभी-कभी  "तू बहुत अच्छी है यार...तेरे बिना...हूँ हूँ ..हां हां .." कहने से लाभ ही मिलेगा | थोड़ा कहना अधिक समझना । ये बात किसी को बताने की जरूरत नहीं | यह मन्त्र सिर्फ आपके लिए है |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.12. 2017

 

 

Nyaayadheesh lokpal न्यायाधीश ,लोकपाल

खरी खरी - 65 : न्यायाधीशों की कमी, लोकपाल नहीं

     सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टी एस ठाकुर का यह चिंतन सत्य था कि यदि जजों की यथोचित भर्ती होगी तो केस जल्द-से-जल्द निपटते जाएंगे । देश में निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक करीब साढ़े तीन करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं ।

      हाइकोर्टों में ही करीब 43 % जजों की कमी है । अदालतों पर बहुत अधिक दबाव है और लोगों को न्याय बहुत देरी से मिल रहा है । हम आशा करते हैं कि पी एम साहब इस मुद्दे का हल शीघ्र खोज लेंगे । पूर्व सी जे आई वेदना एकदम उचित है ।

     जिस लोकपाल के लिए पांच वर्ष पहले सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे जी ने नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर कई दिन तक अनशन करके पूरे देश को जगाया और नीति नियंताओं तक आवाज पहुंचाई उस लोकपाल की अब चर्चा तक नहीं हो रही । सभी चुप हैं । हमारे प्रजातंत्र का चौथा खंभा भी इस मुद्दे पर कमजोर हो गया लगता है । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.08.2017

Andhbhakti ki gundagardi : अंधभक्ति की गुंडागर्दी

खरी खरी - 69 : अंधभक्ति की गुंडागर्दी

     25 अगस्त 2017 को अपरान्ह देश ने वह दृश्य देखा जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी । एक बलात्कारी बाबा के समर्थन में उसके अंधभक्त गुंडों ने उत्तर भारत के पांच राज्यों में कई स्थानों को आग के हवाले कर दिया । पंचकूला और सिरसा इस आगजनी के सबसे ज्यादा शिकार हुए । लगभग डेड़ लाख की भीड़ धारा 144 होने के बावजूद भी इन शहरों में घुस गई और इस तरह उत्पात मचाया कि पुलिस - शासन- प्रशासन इस खुल्लेआम गुंडागर्दी के आगे बेबस- बौने हो गए । 

     चैनलों से पता चला कि इस तांडवी आगजनी में 30 लोग मारे गये,  250 घायल हो गए,  सैकड़ों वाहन जलाये गए, कई इमारतें फूंकी गई,  रेल स्टेशन, टेलीफोन एक्सचेंज और बिजलीघर जलाये गए । दिल्ली भी इस आंच में झुलस गई जहां दो रेल बोगियां, कुछ बसें आग के हवाले कर दी गईं ।

     सिरसा डेरे के इस बलात्कारी बाबा को  2002 में किये गए कुकृत्य की सजा के लिए एक साध्वी की चिट्ठी सबूत बनी जिसकी पूरी शर्मनाक कहानी समाचार चैनलों ने खुलकर दिखाई है । जिन उदण्डियों ने यह तांडव मचाया उन्हें यह बलात्कारी क्या शिक्षा देता होगा, यह इनके तांडव से स्पष्ट है । प्रश्न उठता है कि अंधभक्तों की यह लाखों की भीड़ धारा 144 लगे होने के बावजूद भी पंचकूला कैसे पहुंच गई ?

     राज्य के उच्च न्यायालय के संज्ञान से यह राहत की खबर है कि इस आगजनी से जो भी करोड़ो-अरबों का नुकसान हुआ उसकी भरपाई डेरे की संपत्ति बेच कर की जाएगी । पकड़े गए गुंडों को भी सख्त सजा मिलनी चाहये जो पेट्रोल बमों और हथियारों से सज -धज कर आये थे तथा अशांति और बवाल मचा कर बेतहा नुकसान करने में धड़ल्ले से जुटे रहे । क्या हमारा तंत्र इस तरह के ढौगियों से कुछ सबक सीखेगा या वोट बैंक के चक्कर में इन पाखंडियों के चरण चाटता रहेगा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.08.2017