Monday 31 May 2021

Dhumrpaan aur neer nadiya ka : और नीर नदिया का

खरी खरी -859 :धूम्रपान और नदिया का नीर


     कल 31 मई 2021 को हमने विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया । एक विस्तृत लेख इस मुद्दे पर मैंने भी लिखा ।  हमने सबसे संकल्प करने का निवेदन किया था कि हम आज कम से कम एक व्यक्ति को बीड़ी, सिगरेट, खनी, जर्दा, पाउच, गुटका, नशा छुटाने का प्रयास अवश्य करें और शुरुआत घर से होनी चाहिए । कोरोना संक्रमण काल में धूम्रपान - गुटका निषेध बहुत जरूरी है । कोरोना दौर में इनका सेवन करने वाले अधिक खतरनाक हैं क्योंकि ये जहां-तहां थूक देते हैं और कोरोना संक्रमण फैलाते हैं । इतफाक देखिए, सायं को डाक्टरों के एक पैनल ने एक टीवी चैनल में बताया कि कोरोना पीड़ितों में जो स्मोकर थे वे बीमारी को झेलने में बहुत परेशान रहे या उन्हें संक्रमण ने अधिक सताया क्योंकि उनमें निमोनिया की जकड़ खतरनाक स्थिति तक पहुंच गई । ये बीमार देर में ठीक हुए और इनमें हार्ट अटैक के चांस अधिक थे। ठीक होने के बाद भी इनमें सामान्य हालत में लौटने में देर लगती है, पोस्ट कोविड समस्याएं अधिक होती हैं।  इस संदर्भ में इतना ही कहूंगा कि जितनी जल्दी हो सके धूम्रपान से मुक्त हो जाएं । बिना धूम्रपान के जीवन परिवार के लिए भी अधिक अच्छा है। 

        दूसरी बात चिकित्सकों ने यह बताई कि इस दौर में नदियों का नीर भी संक्रमित हो सकता है और सीवर का बहाव भी वाइरस ग्रस्त हो सकता है। उन्होंने सलाह दी कि नदियों का पानी पीने या नदियों में नहाने से बचा जाए क्योंकि इससे भी इस दौर में संक्रमण का खतरा हो सकता है । कई शहरों में गंगा के किनारे इस दौर में इतनी गंदगी बढ़ी कि हरे रंग की काई से जल भी हरा दिखने लगा । जन -जागृति में सबको जुटना चाहिए, सबकुछ सरकार/प्रशासन पर नहीं छोड़ा जा सकता । देश अपना, लोग अपने, मिलकर देखें सुखद भारत के सपने। मिलकर कहें ' धूम्रपान छोड़ेंगे और नदियों को बचाएंगे ।' अंत में,  हे वैक्सीन !  हे मास्क ! अब तुम्हारा ही सहारा । 

पूरन चन्द्र कांडपाल
01.06.2021

Saturday 29 May 2021

Bhala maanas : भला मानस

मीठी मीठी - 603 : भला मानस

     कोरोना संक्रमण के इस दौर में अपने अपने स्तर पर कई लोग जन सेवा में लगे हैं। मध्यप्रदेश के आटो चालक ने अपने आटो को पत्नी का लाकेट बेचकर एम्बुलेंस बनाया और कई रोगियों को अस्पताल पहुंचाया। ऐसे कर्मवीरों को सलूट । जावेद को समर्पित है एक छोटी सी कविता -

आटो चालक जावेद खान
जन जन को तुम पर अभिमान
खाली तुम्हारी थी पाकेट
बेचा पत्नी का लाकेट
आटो बनाया अंबुलेंस
धन्य तुम्हारा जनहित सेंस
कोरोना के इस काल में
कई पहुंचाए अस्पताल में
बचाई कई कीमती जान
धन्य हैं तुम्हें जावेद खान।

     जावेद की तरह जनसेवा में जुटे अनगिनत कर्मवीरों को नमन।

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.05.2021

Friday 28 May 2021

We char din : वे चार दिन

खरी खरी - 858:  वे चार दिन अपवित्र क्यों ? (आज विश्व मासिक स्राव स्वच्छता दिवस पर विशेष लेख)

      कुछ समय पहले एक समाचार पत्र में  'वे चार दिन' के बारे में एक लेख छपा था । शायद कुछ मित्रों ने पढ़ा भी हो । सूक्ष्म में बताता हूं, कालम की लेखिका कहती है, “गुहाटी (असम) के कामाख्या मंदिर की देवी को आषाढ़ के महीने में चार दिन तक राजोवृति होने से मंदिर चार दिन बंद कर दिया जाता है |  फिर चार दिन बात रक्त-स्रवित वस्त्र भक्तों में बांट दिया जाता है | बताया जाता है कि इस दौरान ब्रहमपुत्र भी लाल हो जाती जिसके पीछे अफवाहें हैं कि पानी के लाल होने के पीछे पुजारियों का हात होता है |” 

     लेखिका ने ‘रजोवृति के दौरान देवी पवित्र और महिला अपवित्र क्यों ?'  इस बात पर सवाल उठाते हुए अपने बचपन की घटनाओं की चर्चा की है कि जब वे इस क्रिया से गुजरती थी तो उनकी मां उन्हें अछूत समझती थी | लेखिका ने लेख में कई सवाल पूछे हैं | कहना चाहूंगा कि यहां सवाल स्वच्छता का होना चाहिए न कि महिलाओं की अपवित्रता का | महिला को अपवित्र कहना हमारी अज्ञानता व अंधविश्वास जड़ित कुंठित मानसिकता है ।

     उत्तराखंड में यह स्तिथि होने पर महिलायें  पहले गोठ (पशु निवास) या ' छुतकुड़ी' में रहती थीं | बाद में चाख के कोने (मकान का प्रथम तल में बाहर का कमरा) में रहने लगी, परन्तु रहती थी अछूत की तरह | शिक्षा के प्रसार से आज बदलाव आ गया है |  बेटियों का विवाह बीस से पच्चीस वर्ष या इससे भी अधिक उम्र में हो रहा है | अब न लोगों को छूत लगती है, न किसी के बदन में कांटे बबुरते हैं और न किसी महिला में ‘देवी’ या ‘देवता’ औंतरता (प्रकट) है | घर -मकान- वातावरण सब पहले जैसा ही है, सिर्फ अब छूत नहीं लगती | 

     सत्य तो यह है कि वहम (भ्रम), पाखण्ड, आडम्बर, मसाण और अंधविश्वास के बेत से महिलाओं को दबा- डरा कर रखने की परम्परा का न आदि है न अंत | बात- बात में बहू को देख सास में ‘देवी’ औंतरना फिर गणतुओं, जगरियों, डंगरियों और बभूतियों द्वारा बहू को प्रताड़ित किया जाना एक सामान्य सी बात थी (है) | 

      ऋतुस्राव (रजस्वला अर्थात पीरियड या मासिक स्राव ) के वे चार दिन न तो कोई छूत है और न अपवित्रता | यह एक प्रकृति प्रदत क्रिया है जो यौवन के आरम्भ होने या उससे पहले से उम्र के पैंतालीसवे पड़ाव तक सभी महिलाओं में होती है और इसका नियमित होना स्त्री के स्वस्थ शरीर का परिचायक है । इस दौरान सैनिटरी पैड का प्रयोग बहुत जरूरी है ।  यदि ऋतुस्राव नहीं होगा तो मातृत्व सुख भी नहीं मिल सकता । इस दौरान स्वच्छता सर्वोपरि है बस |  इसमें छूत या अस्पर्श जैसी कोई बात नहीं है । स्कूल जाने वाली छात्राओं तक को अब इस प्रक्रिया से जानकारी दी जाने लगी है जो एक अच्छी बात है । अब फिल्म ( उदाहरण के लिए - पैड मैन ) और विज्ञापन से यौवन में कदम रखने वाली लड़कियों को बताया जाता है कि यह उत्तम स्वास्थ्य का प्रतीक है और इसे कुछ अनहोनी या समस्या समझना हमारी जानकारी की कमी समझा जाएगा । इस दौरान स्वच्छता का ध्यान अति आवश्यक है । अतः प्रकृति नियम के इन चार दिनों को अपवित्र न समझा जाय और उस दौरान किसी भी महिला को हेय दृष्टि से देखना भी अज्ञानता ही कहा जाएगा। 

पूरन चन्द्र काण्डपाल

29.05.2021

Dulhe ka baap : दूल्हे का बाप

मीठी मीठी -602 : दूल्हे का बाप

    बेटे की शादी तय होते ही दूल्हे का बाप बड़े रौब से दुल्हन के पिता से बोला, "देखो समदी बारात ठीक समय पर आ जाएगी । हमें कुछ नहीं चाहिए परंतु बारात का स्वागत, खान-पान आदि बहुत अच्छा होना चाहिए ।"  दुल्हन के पिता ने समदी के रौब को सहते हुए हामी भर दी ।

      बारात का बड़ी शान से स्वागत हुआ । खान- पान सब उत्तम । शादी के बाद दुल्हन की विदाई के वक्त दूल्हे के बाप ने दुल्हन के पिता को एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, "स्वागत के लिए आपका धन्यवाद । कुछ बातें कहने का मन है जो इस लिफाफे में हैं । बारात और सभी मेहमानों के जाने के बाद इस लिफाफे को खोलना ।" इतना कह कर वह चला गया । 

     बाद में बड़ी घबराहट के साथ  जब दुल्हन के पिता ने लिफाफा खोला तो उसमें रखे पत्र में लिखा था, "आपने बहुत खर्च उठाकर अच्छा स्वागत किया । तुम्हारी बेटी अब मेरी बेटी है और मेरा बेटा अब तुम्हारा बेटा । इसलिए इस आयोजन के खर्च को मैं आपस में बांटना चाहता हूं । लिफाफे में चार चैक हैं । अंदाज से इन चैकों में खर्च की आधी राशि लिख दी है । चैकों में नाम नही भरा है । सुविधानुसार भर कर भुगतान ले लेना । चैक लौटना मत, वापस नहीं लूंगा।"

     दुल्हन का पिता सुखद आश्चर्य में डूब गया । उसने एकबार सोचा कि चैक लौटा दूं । पर उसे चैक लौटाने की हिम्मत नहीं हुई । उसने पूरी राशि को दूल्हे-दुल्हन के नाम बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट कर दिया और मियादी रसीदें एक लिफाफे में रख कर दूल्हे के बाप के सुपुर्द करते हुए कहा, "समदी जी इस लिफाफे में आपके लिए धन्यवाद पत्र है, मेरे जाने के बाद खोलना ।" इतना कह कर दुल्हन का पिता चला आया । (क्या ऐसा हुआ होगा ? या क्या ऐसा हो सकता है ? आप के विचारों की प्रतीक्षा तो रहेगी।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.05.2021

Thursday 27 May 2021

Facebook whatsep : फेसबुक वॉट्सएप

बिरखांत- 372 : फेसबुक- व्हाट्सेप के नाम

व्हाट्सेप -फेसबुक रंगीन देखा,
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |

कभी ‘वाह-वाह’ कभी ‘जय-जय’
खूब तारीफ़ शब्द लय -लय
जिस न झुकाया सिर घर- मंदिर
वह देवी- देवता भेजते देखा |

कट-पेस्ट लम्बे थान देखे
घूम- फिर वही ज्ञान देखे
छोटा ज्ञान पल्ले नहीं पड़ता
लम्बा ज्ञान बरसते देखा |

मस्ती देखी चैटिंग देखी
अन्धविश्वास के सैटिंग देखी
नाम बदल कर कई ग्रुप में
झूठा प्रोफाइल बहते देखा |

शराब गुटखा नशा धूम्रपान
मध्यम गति से लेते जान
हमने पार्क में बाल -बाला को
व्हाट्सेप नशे पर मरते देखा ।

राजनीति को ढलते देखा
झूठनीति को फलते देखा
राजनीति कोई कहीं कर रहा
यहां कईयों को लड़ते देखा |

जिसको भी अपने मोबाइल में
जब भार्या ने हंसते देखा
क्रोध यों मडराया तिय पर
शब्द शोला बरसते देखा |

प्यार की आह भी भरते देखा
व्यंग्य बाण भी चलते देखा,
दूसरों की लेख -कविता पर
नाम अपना चस्पाते देखा |

चुटकुलों की बौछार भी देखी
बदलती नित बयार भी देखी,
पति-पत्नी एक दूजे के पूरक
यहां पति को हरदम दबते देखा |

कभी किसी को जुड़ते देखा
कभी किसी को कुड़ते देखा
कभी तंज- भिड़ंत भी देखी
व्यर्थ बहस उकसाते देखा |

रात रात भर जगते देखा
घंटों वक्त गंवाते देखा
स्पोंडिलाइटिस कई लोगों को
मोबाइल कारण होते देखा |

चलते- चलते पढ़ते देखा
सैल्फी खीचते गिरते देखा
अश्लीलता का खुलकर तांडव
मोबाइल बदनाम होते देखा |

ऊंट –गधे के सुर में सुर
रखते जाते खुर में खुर
नहीं थी सूरत नहीं था सुर
झूठी प्रशंसा करते देखा |

कुछ शब्दों की धार भी देखी
शब्द पिरोती हार भी देखी
मान-मर्यादा के पथिकों को
राह गरिमा की चलते देखा |

कोरोना का दौर भी देखा
कइयों को बिछुड़ते देखा
कई लोग बन गए फरिश्ते
मानव सेवा करते देखा।

कुछ को नियम से रहते देखा
कुछ को नियम तोड़ते देखा
लापरवाह लोगों को हमने
बिना मास्क के घूमते देखा।

कोरोना केस बड़ते देखे
बिस्तर कम पड़ते देखे
दवा हवा वैक्सीन के खातिर
जन को हताश होते देखा।

क्या वे उस पथ चलते होंगे ?
जिस पथ चल- चल कहते होंगे !
ज्ञान बघारने वाले जन की
कथनी- करनी में अंतर देखा |

व्हाट्सेप -फेसबुक रंगीन देखा
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.05.2021

Wednesday 26 May 2021

Ujale ki or : उजाले की ओर

बिरखांत- 371 :  अंधकार से उजाले की ओर

      संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में बढ़ते जा रहा है । हमारे देश में भी दूसरी लहर के बाद संक्रमण कुछ उतार पर है। यदि लोग कोरोना अनुशासन मानेंगे और मिलने पर वैक्सीन बेझिझक लगाएंगे तथा नेता अपने भाषणों का क्रियान्वयन करेंगे तो हम इस संक्रमण से निजात पा लेंगे। 

       यह बहुत अच्छी बात है कि सोसल मीडिया पर कई लोग ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे हैं, हमें शिक्षित बना रहे हैं परन्तु इसका विनम्रता से क्रियान्वयन भी जरूरी है | जब भी हमारे सामने कुछ गलत घटित होता है, गांधीगिरी के साथ उसे रोकने का प्रयास करने पर वह बुरा मान सकता है | बुरा मानने पर दो बातें होंगी – या तो उसमें बदलाव आ जाएगा और या वह अधिक बिगड़ जाएगा | गांधीगिरी में बहुत दम है | इसमें संयम और शान्ति की जरुरत होती है और फिर मसमसाने के बजाय बोलने की हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी | 

      हमारा देश वीरों का देश है, राष्ट्र प्रहरियों का देश है, सत्मार्गियों एवं कर्मठों का देश है, सत्य-अहिंसा और सर्वधर्म समभाव का देश है तथा ईमानदारी के पहरुओं और कर्म संस्कृति के पुजारियों का देश है | इसके बावजूद भी हमारे कुछ लोगों की अन्धश्रधा-अंधभक्ति और अज्ञानता से कई लोग हमें सपेरों का देश कहते हैं, तांत्रिकों- बाबाओं के देश कहते हैं क्योंकि हम अनगिनत अंधविश्वासों से डरे हुए हैं, घिरे हुए हैं और सत्य का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं | 

      हमारे कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सूर्य घूमता है जबकि सूर्य स्थिर है | हम सूर्य- चन्द्र ग्रहण को राहू-केतू का डसना बताते हैं जबकि यह चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के कारण होता है | हम बिल्ली के रास्ता काटने या किसी के छींकने से अपना रास्ता या लक्ष्य बदल देते हैं | हम किसी की नजर से बचने के लिए दरवाजे पर घोड़े की नाल या भूतिया मुखौटा टांग देते हैं | हम कर्म संस्कृति से हट कर मन्नत मांगने, गले या बाहों पर गंडा-ताबीज बांधते हैं, हम वाहन पर जूता लटकाते हैं और दरवाजे पर नीबू-मिर्च टांगते हैं, सड़क पर जंजीर से बंधे शनि के बक्से में सिक्का डालते हैं, नदी और मूर्ती में दूध डालते हैं और हम बीमार होने पर डाक्टर के पास जाने के बजाय झाड़-फूक वाले के पास जाते हैं | 

       वर्ष भर परिश्रम से अध्ययन करने पर ही हमारा विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होगा, केवल परीक्षा के दिन तिलक लगाने, दही-चीनी खाने या धर्मंस्थल पर माथा-नाक टेकने से नहीं | हम सत्य एवं  विज्ञान को समझें और अंधविश्वास को पहचानने का प्रयास करें | अंधकार से उजाले की ओर गतिमान रहने की जद्दोजहद करने वाले एवं दूसरों को उचित राह दिखाने वाले सभी मित्रों को ये पक्तियां समर्पित हैं -

 ‘पढ़े-लिखे अंधविश्वासी 


बन गए 


लेकर डिग्री ढेर,


अंधविश्वास कि मकड़जाल में


फंसते न लगती देर,


पंडित बाबा गुणी तांत्रिक


बन गए भगवान् 


आंखमूंद विश्वास करे जग,


त्याग तत्थ – विज्ञान ।

      वर्तमान में कोरोना के इस दौर में देश के पश्चिमी और पूर्वी तट पर भयंकर चक्रवाती तूफ़ान से भी लोग पीड़ित हैं।  इन सबसे देश को सामूहिकता से जूझना होगा । जीतेगा भारत। 

पूरन चन्द्र काण्डपाल


27.05.2021


Tuesday 25 May 2021

buddh jayanti : बुद्ध जयंती

मीठी मीठी -601: बुद्ध जयंती

      आज 26 मई 2021, बुद्ध जयंती है, भगवान गौतम बुद्ध का जन्मदिन। । भगवान बुद्ध के बारे में एक लघु लेख यहां पुस्तक ' लगुल ' से उद्धृत है। सभी को बुद्ध जयंती की शुभकामनाएं।

पूरन चन्द्र कांडपाल
26.05.2021

Kargil yuddh की yaad :कारगिल युद्ध की याद

खरी खरी - 857 : आज कारगिल युद्ध की याद

    संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 16.82 करोड़+/34.92+ लाख और देश में यही संख्या 2.71 करोड़ लाख+/3.1+ लाख हो गई है । अधिकांश लोग ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक  को ढककर पहनिए । कुछ लोग मास्क दिखाने के लिए सिर्फ लटकाकर चल रहे हैं । वैक्सीन जरूर लगाइए और कोरोना को हराइए । जीतेगा भारत ।

         स्वच्छता हमारी सबसे बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है । जबसे लौकडाउन शुरू हुआ लोगों ने कूड़ा पार्कों में डालना शुरू कर दिया है । लगभग सभी पार्क कूडादान बन गए हैं । सबसे दुखद बात यह है कि मजदूर तो मजबूरी में रोते - बिलखते अपने गांवों को पलायन कर गए परन्तु शहरों में भी लोग कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रहे ( विशेषतः युवा पीढ़ी )। हमने चुनाव, कुंभ और कई सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक आयोजन भी इस दौरान किए परिणाम स्वरूप कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है और कई लोग ग्रास बन चुके हैं । यदि हम इसे बीमारी को नहीं समझेंगे और मनमानी करते रहेंगे तो देश को बहुत गंभीर संकट से गुजरना पड़ सकता है । सभी अपनी जिम्मेदारी निभाएं ।

          कारगिल युद्ध ( 1999)  जिसमें हमारे पांच सौ से अधिक सैनिक शहीद हुए उस मुशर्रफ की देन थी जो इस युद्ध से पहले भारत आया था और ताजमहल के सामने अपनी बेगम के साथ बैठ कर फोटो खिचवा कर चला गया | देश के सभी तांत्रिकों ने उस पर मिलकर कोई तंत्र क्यों नहीं किया ? हमारी सीमा पर वर्ष 1989 से अब तक आये दिन उग्रवादी घुसपैठ करते आ रहे हैं | विगत 30 वर्षों में उग्रवाद के छद्म युद्ध में हमारे हजारों सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं |

     देश के सभी ज्योतिषी, ग्रह- साधक, तंत्र विद्या और काला जादू में स्वयं को माहिर बताने वाले इस पाक प्रायोजित छद्म युद्ध को क्यों नहीं रोकते और उग्रवादियों पर अपना प्रभाव क्यों नहीं दिखाते ? ये लोग थार के तप्त मरुस्थल में कभी एकाद बारिश ही करा देते | वर्तमान संक्रमण को ही थाम देते।  ये सब अंधविश्वास के पोषक हैं और अज्ञान के अन्धकार में डूबे लोगों को अपने शब्द जाल से लूटते हैं | दूसरे शब्दों में ये अंधभक्तों को उल्लू और उल्लुओं को अंधभक्त बनाते हैं |

( 26 मई 1999 को कारगिल युद्ध की शुरुआत हुुई जो 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ । इस युद्ध के शहीदों को शत शत नमन और जयहिंद के साथ बहुत बड़ा सलूट ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.05.2021

Monday 24 May 2021

phon par wo : फोन पर वो

मीठी मीठी - 598 : फोन पर वो

वो फोन जोर से कर रही सब कुछ देता सुनाई
कुछ पड़ोस का हाल बताए कुछ हसबैंड बुराई,

कुछ हसबैंड बुराई बहन घर के लोग कैसे हैं ?
जैसे तुमरे व्यस्त हैं बहना, हमरे भी  वैसे हैं,

कह ' पूरन ' हुई बात खूब,  मन में आईं जो
सुन रह गया मूक पति हिम्मत कहां बोले वो ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
25.05.2021

Bachendri pal : बचेंद्री पाल जन्मदिन

मीठी मीठी - 600 :  बचेंद्री पाल - ऐवरेस्ट विजेता

      आज 24 मई ऐवरेस्ट विजेता बचेंद्री पाल ज्यूक जन्म दिन छ। ऊं हमार देशाक ऐवरेस्ट शिखर में खुट धरणी पैल स्यैणि छीं। उनार बार में " बुनैद " किताब बै एक लेख यां उद्धृत छ। बचेंद्री पाल ज्यू कैं जन्मदिन कि शुभकामना।

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.05.2021

Bhupaal singh bisht nidhan : भूपाल सिंह बिष्ट निधन

स्मृति - 599 : चले गए भ्रातृ मंडल के भूपाल सिंह बिष्ट

      मार्च 2020 जबसे कोराना संक्रमण ने देश में दस्तक दी है तब से इस क्रूर बीमारी ने समाज से कई प्रिय जनों को हमसे छीन लिया है । अब यह सूची लंबी हो गई है। आए दिन कोई न कोई दुखद समाचार हमें पीड़ा पहुंचाते रहता है । ऐसे ही 23 मई 2021 को करीब 2 बजे अचानक देवभूमि उत्तराखंड धार्मिक - सामाजिक विकास संगठन अवंतिका रोहिणी दिल्ली के अध्यक्ष श्री नारायण दत्त लखेड़ा जी की एक पोस्ट से ज्ञात हुआ कि इसी संस्था के संस्थापक सदस्य श्री भूपाल सिंह बिष्ट जी का अस्पताल में कोरोना संक्रमण से निधन हो गया है । स्तब्ध कर देने वाली इस पोस्ट पर मानो यकीन नहीं हुआ । फोन से बात करने पर लखेड़ा जी ने खबर की पुष्टि की ।

         दिवंगत भूपाल सिंह बिष्ट जी से मेरा परिचय करीब पच्चीस वर्ष पूर्व हुआ । तबसे उनसे लगातार किसी न किसी सामाजिक - धार्मिक आयोजन में भेंट होती रहती थी । उत्तराखंड भ्रातृ मंडल अवंतिका सेक्टर - 1 रोहिणी दिल्ली के तत्वाधान में प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस समारोह आयोजन होता था । सामाजिक एकजुटता के प्रतीक उस समारोह को मैंने कई बार देखा । इस आयोजन में भी वे पूरी टीम के साथ सक्रीय भूमिका निभाते थे । वे उत्तराखंडी समाज के साथ ही समाज के सभी वर्ग के बीच अपनी संवेदनशीलता, कर्मठता, सौहार्द, सामाजिक दृष्टिकोण, सर्वधर्म समभाव की सोच और सहयोग की प्रवृति के कारण बहुत लोकप्रिय थे ।

     कल उनके चले जाने से समाज के कई लोगों ने अपनी पीड़ा प्रकट करते हुए उन्हें सामाजिक स्तंभ, वटवृक्ष, योग प्रचारक  और कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता बताया है । वे रोहिणी दिल्ली में कुमाउनी - गढ़वाली भाषा शिक्षण कार्यक्रम को लखेड़ा जी के साथ बखूबी निभाते थे । सेवा निवृत्त होने के बाद वे रोहिणी सेक्टर 3 में अपने परिवार के साथ रहते थे । हास्य - विनोद से ओतप्रोत, सदैव प्रसन्नचित एवं मुस्कराते रहने वाले भूपाल सिंह बिष्ट का अचानक चले जाना हम सबको बहुत कचोटता है, पीड़ा देता है । कल ही निगमबोध घाट दिल्ली पर उनका शरीर पंच तत्व में मिल गया । इस विकट स्थिति में पूरा समाज उनके शोकाकुल परिवार के साथ खड़ा है । सहयोग के पर्याय बन चुके भूपाल सिंह बिष्ट जी आप बहुत याद आवोगे । उन मंचों पर आपकी जगह भरनी मुश्किल होगी जहां से आप देश, समाज, परिवार, एकता, शहीद स्मरण और मित्रता का संदेश देते थे।   समाज आपको भुला न सकेगा । हम सबकी अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.05.2021

Saturday 22 May 2021

Sunder lal Bahuguna : सुंदरलाल बहुगुणा

मीठी मीठी - 597 : पर्यावरण गांधी सुंदरलाल बहुगुणा


      वर्ष 2002 में मैंने ' ये निराले ' पुस्तक लिखी थी । इस किताब में निराले व्यक्तित्व के धनी 11 विभूतियां हैं जिनमें उत्तराखंड से प्रकृति प्रेमी सुंदरलाल बहुगुणा हैं । अन्य 10 देश के विभिन्न क्षेत्रों के महामानव हैं।  यह पुस्तक आज से 20 वर्ष पूर्व लिखी गई तब बहुगुणा जी प्रकृति को बचाने के अपने कार्य को बड़ी तत्परता से निभा रहे थे। । 

          ' ये निराले ' में बहुगुणा जी के बारे में  लिखे गए विस्तृत लेख के कुछ अंश आज उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप अर्पित कर रहा हूं। बहुगुणा जी का जन्म 9 जनवरी 1927 को टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में हुआ । वे शुद्ध चित से परमार्थ करने वाले, निष्कपट भाव से सबका भला चाहने वाले, प्राकृतिक संपदा के पुजारी तथा मानव के हितार्थ दूरदृष्टि रखने वाले एक भद्र पुरुष थे।  उनका कहना था, " हिमालय हमारे लिए प्रकृति की एक अमूल्य एवं अद्वितीय देन है। हमारा देश सौभाग्यशाली है क्योंकि उसके सिर पर मुकुट के रूप में हिमालय विराजमान है । इस पर्वतराज हिमालय से निकलकर जीवनदायिनी नदिया वर्ष भर निर्मल जल की धार लिए अविरल बहती रहती हैं । हमारे देश के उत्तर में एक सजग प्रहरी की तरह अविचल खड़ा यह नगेश हमारी सीमाओं को सुरक्षित और अभेद्य बनाए हुए है ।"

     पर्यावरण विज्ञानी सुंदरलाल बहुगुणा जी को यह सुनिश्चित जान पड़ा कि जंगलों का विनाश नीति - निर्माताओं के आगे हाथ जोड़ने और गिड़गिड़ाने से रुकने वाला नहीं है । उन्होंने इसके लिए जनजागृति करना उचित समझा और ' चिपको ' आंदोलन को एक हथियार बनाया। ' चिपको ' अर्थात कोई किसी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी उठाए तो उस वृक्ष का आलिंगन कर उस पर चिपक जाओ जिसे कुमाउनी भाषा में 'अंगवाव किटना ' कहते हैं ।

उनका कहना था पेड़ काटने से पहले हमें काटो । इस आंदोलन को रैण की गौरा देवी ने महिलाओं तक पहुंचाया फल स्वरूप जंगलों का कटान रुक गया । 

     जंगल कटान थमने के बाद बहुगुणा जी ने वैज्ञानिकों तथा नीति निर्माताओं का ध्यान बड़े बांध बनाने से होने वाली अपूरणीय क्षति की ओर आकर्षित करना चाहा । उन्होंने विश्व में आठवें और एशिया में प्रथम 260.8 मीटर ऊंचे मध्य हिमालय में भागीरथी नदी (गंगा का ही नाम) पर बनने वाले टिहरी बांध से होने वाली क्षति के बारे में वैज्ञानिकों, नीति नियंताओं सहित समाज के विभिन्न वर्ग को चेताया। वे कहते थे इस भूकंपीय क्षेत्र में बड़े बांध नहीं बनने चाहिए।  वर्ष 1998 में इस क्षेत्र में 6.9 रिकतार रिक्टर स्केल का भूकंप आया जो जान - माल की बहुत हानि कर गया । अन्य कई कारणों से भी बांध को क्षति पहुंचने पर मानव हानि होगी । बड़े बांधों से प्रकृतिजन्य अपार जैव संपदा, दुर्लभ पुष्प, वनस्पतियां, अलौकिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विरासत, इतिहास, परंपराएं, स्मारक आदि सब उजड़ जाएंगे । 

      बहुगुणा जी ने जून 1996 में टिहरी बांध निर्माण रुकवाने के लिए 84 दिन का अनशन किया । 2 अक्टूबर 1997 से 19 नवम्बर 1997  तक 49 दिन तक भी उन्होंने अनशन किया और वे जेल भी गए । 1971 में उन्होंने 16 दिन का अनशन शराब के विरोध में किया । वे महत्मा गांधी की राह पर विनम्रता से अनशन के पक्षधर थे । वे जंगल कटान विरोध के साथ ही लक्जरी टूरिज्म और अंधाधुंध खनन के विरोधी थे । सड़क किनारे मलवे का ढेर उन्हें दुखी करते थे । कृषि, बागवानी, पशुपालन, मौनपालन तथा लघु ग्रामोद्योग के पक्षधर बहुगुणा जी सामाजिक सौहार्द और सर्व धर्म समभाव के पैरोकार थे ।  वर्ष 1991 में उन्होंने गंगासागर से गंगोत्री तक हिमालय रक्षार्थ जन - जागृति के उद्देश्य से 56 दिन की साइकिल यात्रा की । परिश्रम और साधना से तप्त  बहुगुणा जी को कई सम्मान भी दिए गए जिनमें पद्मविभूषण और सतपाल मित्तल स्मृति सम्मान प्रमुख हैं । दुनिया से विदा लेने के कुछ वर्ष पूर्व वे दिल्ली स्थित गांधी स्मृति संस्थान राजघाट पर आए। अचानक समय बदलाव के कारण उनसे मिल नहीं सका । मेरी भेजी हुई पुस्तक प्राप्ति की रसीद भी मुझे डाक से प्राप्त हुई ।   21 मई 2021 को ऋषिकेश ऐम्स ( उत्तराखंड ) में कोरोना संक्रमण से उनका निधन हुआ । ऐसे प्रकृति पुरुष कभी मरते नहीं हैं । पर्यावरण गांधी सुंदरलाल बहुगुणा हमारे बीच हमेशा जिंदा रहेंगे । विनम्र श्रद्धांजलि । 

पूरन चन्द्र कांडपाल

23.05.2021