Tuesday 30 June 2020

Bhagwaan ki suno : भगवान की सुनो

खरी खरी - 657 : भगवान की भी सुनो

        मेरी व्यथा भी सुनो मेरा नाम लेने वालो । जी हां, मैं भगवान बोल रहा हूं | कुछ लोग मुझे मानते हैं और कुछ नहीं मानते | जो मानते हैं उनसे तो मैं अपनी बात कह ही सकता हूं | आप ही कहते हो कि कहने से दुःख हलका होता है | आप अक्सर मुझ से अपना दुःख-सुख कहते हो तो मेरा दुःख भी तो आप ही सुनोगे | आपके द्वारा की गयी मेरी प्रशंसा, खरी-खोटी या लांछन सब मैं सुनते रहता हूं और अदृश्य होकर आपको देखे रहता हूं | आपकी मन्नतें भी सुनता हूं और आपके कर्म एवं प्रयास भी देखता हूं | कुछ लोग मेरे छोटे छोटे चित्र या मॉडल या फोटो फ्रेम बना कर अपने मित्रों को प्रसाद की तरह  यह कहते हुए बांटते कि "मैं अमुक तीर्थ/ मंदिर / देवी गया था, लीजिए प्रसाद। " बाद में मेरी उस छोटी फोटो को भी किसी पेड़ के नीचे पटक देते हैं । यह सब मेरा अपमान है ।

      आप कहते हो मेरे अनेक रूप हैं | मेरे इन रूपों को आप मूर्ति-रूप या चित्र-रूप देते हो | आपने अपने घर में भी मंदिर बनाकर मुझे जगह दे रखी है | वर्ष भर सुबह-शाम आप मेरी पूजा-आरती करते हो | धूप- दीप जलाते हो और माथा टेकते हो | दीपावली में आप मेरे बदले घर में नए भगवान ले आते हो और जिसे पूरे साल घर में पूजा उसे किसी वृक्ष के नीचे लावारिस बनाकर पटक देते हो या प्लास्टिक की थैली में बंद करके नदी, कुआं या नहर में डाल देते हो | वृक्ष के नीचे मेरी बड़ी दुर्दशा होती है जी | कभी बच्चे मुझ पर पत्थर मारने का खेल खेलते हैं तो कभी कुछ चौपाए मुझे चाटते हैं या गंदा करते हैं | "

     "आप मेरे साथ ऐसा वर्ताव क्यों करते हैं जी  ? अगर यही करना था तो आपने मुझे अपने मंदिर में रखकर पूजा ही क्यों ? अब मैं आपका पटका हुआ अपमानित भगवान आप से विनती करता हूं कि मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करें | जब भी आप मुझे अपने घर से विदा करना चाहो तो कृपया मेरे आकार को मिट्टी में बदल दें अर्थात मूर्ति को तोड़ कर चूरा बना दें और उस चूरे को आस-पास ही कहीं पार्क, खेत या बगीची में भू-विसर्जन कर दें अर्थात मिट्टी में दबा दें | जल विसर्जन में भी तो मैं मिट्टी में ही मिलूंगा | भू-विसर्जन करने से जल प्रदूषित होने से बच जाएगा | इसी तरह मेरे चित्रों को भी चूरा बनाकर भूमि में दबा दें | "

     "मेरे कई रूपों के कई प्रकार के चित्र हर त्यौहार पर विशेषत: नवरात्री और रामलीला के दिनों में समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में भी छपते रहे हैं | रद्दी में पहुंचते ही इन अखबारों में जूते- चप्पल, मांस- मदिरा सहित सब कुछ लपेटा जाता है | मेरी इस दुर्गति पर भी सोचिए | मैं और किससे कहूं ? जब आप मुझ से अपना दर्द कहते हैं तो मैं भी तो आप ही से अपना दर्द कहूंगा | मेरी इस दुर्गति का विरोध क्यों नहीं होता, यह मैं आज तक नहीं समझ पाया ? मुझे उम्मीद है अब आप मेरी इस वेदना को समझेंगे और ठीक तरह से मेरा भू-विसर्जन करेंगे |

      आजकल कोरोना रोग का दौर चल रहा है।  मैं जानता हूं आपने 25 मार्च 2020 से 31 मई 2020 तक लगातार 68 दिन का लौकडाउन झेला । 01 जून 2020 से 30 जून 2020 तक अन लौक.1 झेला । अब आज 01 जुलाई 2020 से अनलॉक.2 आपको झेलना है । इस रोग में भी आप मुझे याद कर रहे हैं । मैं भी तभी आपको इस रोग से बचा पाऊंगा जब आप अपना बचाव खुद करेंगे अर्थात मास्क ठीक से पहनेंगे, देह दूरी का ध्यान रखेंगे, भीड़ में नहीं जाएंगे, जरूरी कार्य से ही बाहर जाएंगे, सेनिटाइजर का प्रयोग करेंगे तथा नियमित साबुन से हाथ धोते रहेंगे । निराश होने की आवश्यकता नहीं है, यह दौर भी एक दिन निकल जाएगा । सदा ही आपके नजदीक अदृश्य रह कर आपको देखे रहने वाला आपका  ‘भगवान’ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.07.2020

katha mein dhyan : कथा में ध्यान

बिरखांत - 324 : कैक रांछ कांथ में ध्यान ?

     हमार ‘चनरदा’ यूं पंक्तियोंक लेखकक एक भौत पुराण जाणी- पछ्याणी किरदार छ | इनर  नाम चन्द्र मणी, चंद्रा दत्त, चन्द्र प्रकाश, चनर देव, चनर सिंह, चान सिंह, चन्दन सिंह, चनर राम, चनराम, चनिका, चनरी आदि कुछ लै है सकूं पर लोग उनुहें चनरदा ई  कूंनी | चनरदा मसमसाणक बजाय गिच खोलनीं, कडुआहट में मिठास घोउनीं, बलाण है पैली भली-भांत तोलनीं और सच- झूठकि परख लै करनी | म्येरि कएक रचनाओं में चनरदा कतू ता ऐ गईं | आज ऊँ एक काथ सुणि बेर ऐ रईं |

    राम- रमो क बाद मील चनरदा हूं पुछौ, “भौत दिनों में नजर आछा चनरदा आज, लागें रौ कैं दूर जै रौछिया और वै रमि गछा ?”  “कां जनूं यार, याइं छी | राजकपूर कै गो, ‘जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां ?’ काथक न्यौत खै बेर ऊं रयूं  | सत्यनारायण ज्यू कि काथ छी एक मितुर क घर”, चनरदाल मुलमुलै बेर कौ |  “अच्छा काथक ताज ज्ञानल सराबोर है रौछा, तबै भौत खुशि नजर ऊं रौछा,” मील मजाक करी | “तुम जे समझो यार, क्वे ताज ज्ञान वालि बात नि हइ | वर्षों बटि सुणते ऊं रयूं, बस एकै  ज्ञान हय- लालचल वशीभूत है बेर पुजक संकल्प करो, बामणों कैं भोजन खाण खवौ, संकल्प नि निभाला तो उ व्यौपारीक चार बेक़सूर दुख पाला...आदि | काथक बहानै ल इष्ट- मितुरों दगै भेट है जींछ और ‘वील काथ करै’ क प्रचार त है ई जांछ |”

    “काथ छी तो ब्राहमण और बाबा त आयै हुनाल, उनुकैं खउण –पेउण में पुण्य मिलनेर हय बल | जजमानक दगाड़ सुणणियांल पुण्य कमा हुनल”, मील सवाल उठा | चनरदा सहमत नि हाय और झट बलाईं, “काथ सुणणी त छी पर कैक ध्यान काथ में नि छी | यास में पंडिज्यू लै टोटल पुर करैं रौछी | ‘जसी तेरी जाग्द्यो उसी म्येरि भेट-पखोव |’ शोर-शराबा देखि मील सुणणियां हैं हाथ जोड़नै कौ, “ देखो काथ ध्यानल सुणो, कथाक आखिर में  पांच सवाल पुछी जाल | जो सही उत्तर द्यल उकैं हर सही उत्तर पर बीस रुपैक इनाम दिई जाल | मील दस-दसाक दस नौट थान में धरि देईं | कुछ कम शोरक साथ काथ चलते रै |

      काथ पुरि होते ही आरती है पैली मील सुणणियां हैं पांच साधारण सवाल पुछीं –‘लीलावती और कलावती को छी, सूत जी को छी, सदानंद को छी, को ऋषियोंल को जाग पर सूत ज्यू हैं बात पुछी और बर को नगरक छी ?’ हैरानी तब है जब एक लै सवालक उत्तर ठीक नि मिल | स्पष्ट है गोछी कि कैक लै ध्यान काथ में नि छी | पंडिज्यू हैं सवाल नि पुछ  ताकि व्यास गद्दीक सम्मान बनी रौ और पंडिज्यूल लै खुद उत्तर दीण कि क्वे पहल नि करि | सौ रुपै कि जमा राशि तत्काल पंडिज्यूक सुपुर्द करि दी |”

     चनरदा अघिल बतूनै गईं, "मिकैं कैकि आस्था- श्रधा पर के कूण न्हैति, मी त  अंधश्रद्धा या अंधविश्वासक विरोध करनू | काथ में क्वे गरीब कैं भोजन करूण या कर्म करण कि चर्चा कैं लै न्हैति | बामणों कैं भोजन करूणल और पुज करणल पुण्य और वांच्छित फल  मिलण कि चर्चा कतू ता छ | ‘श्रीमद भागवद गीता’ में केवल कर्म करणक संदेश जबकि ‘य काथ’ और ‘गरुड पुराण’ में केवल बामण कैं भोजन करूणल पुण्य प्राप्तिक द्वार बताई रौछ |

     अंत में एक लौंडल सवाल पुछौ, “य काथ में पुज करण कि बात कतू ता बतायी गे, काथ करण कि बात लै कई गे पर सत्यनारायण कि काथ के छी य त बतैयै ना  ?” चनरदा बलाय, “उ लौंड क सवाल मिकैं ठीक लागौ जैक जबाब आज लै नि मिलि रय | आखिर काथ के छी जैकैं नि करण ल कएक लोगों कैं सजा भुगतण पड़ी ? य काथ कैं ‘कथा’ कि जागि पर ‘पुज’ कूंण ठीक रौल  | काथक आरम्भ है पैली एक डाव - बोट जरूर रोपण चैंछ । अंत में एक बात य लै कचोटीं -

काथ - पुराण म भजन कीर्तन म
क्वे लै नि कै सकन शराब नि पियो तुम
आस्था कम हैगे चरणामृत प्रसादम
ध्यान न्हैगो सबूंक बोतल खोजणम ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.06.2020

Monday 29 June 2020

Lovely paig : लवली पैग

खरी खरी -656  : बारात - न्यूतेर में लवली पैग

      कुछ मित्रों ने बताया कि महिलाएं भी शराब पी रहीं हैं । हां पी रहीं हैं परंतु ये आम महिला नहीं हैं, खास हैं । कहना चाहूंगा कि कुछ पति 2 बड़े पैग  (120 ml) लेते हैं और एक छोटा पैग (30 ml)  पत्नी को देते हैं ताकि ठंडक बनी रहे । रत्याई के दिन एक बोतल काखी- ठुलिज को दे जाने वाला ठैरा दूल्हा क्योंकि वे जबरजस्ती मांगने वाले ठैरे । ऎसा कहीं-कहीं ठैरा, सब जगह नहीं होने वाला ठैरा ।

     इसी तरह आपसी एडजस्टमेंट से पार्टी-क्लब में भी होने वाला ठैरा । कुछ भी हो, शराब के लिए मेरे दिल में कोई सॉफ्ट कॉर्नर नहीं है । होली, दिवाली, त्यार-ब्यार, जन्मदिन- सालगिरह, न्यूतेर,  शादी आदि, कहीं भी शराब नहीं होनी चाहिए । पहले 1 पैग, फिर 2 पैग, फिर पैग में पैग, फिर लवली पैग, फिर झगड़ा, फिर खतरनाक झगड़ा, फिर होश आने पर बोलचाल बन्द । अनंत कथा ठैरी शराब की...

     अब जहां दिन की शादी हो रही है वहाँ से रत्याई लुप्त ठैरी । दिन की शादी में कुछ को छोड़कर बाकी सभी घरेतिए-बरेतिए लेने वाले ठैरे थोड़ा थोड़ा । मुफ्त में भी भतीजा- भांजा- साला, चाचा- मामा- जीजा को देने वाले ठैरे । फिर बारात देर से पहुँचने वाली ठैरी । फिर रात का आठ घंटे में होने वाला ब्या दिन में शराबियों की वजह से आधे घंटे में निपटाना ठैरा । ये टैम भी वीडियो वाले ले लेने वाले ठैरे । सब पिरोगराम गड्डमगड्ड हो जाने वाला ठैरा । शायद कई मितुरों ने भी यदा कदा ऐसा देखा होगा । ये हुई अंगूर की बेटी की महिमा । इससे प्यार न हो तो अच्छा, ये दूर रहे तो बढ़िया ।

(कोरोना संक्रमण के दौरान जब लौकडाउन के बाद शराब की दुकानें खुली तो लोग देह दूरी, मास्क, भीड़, सेनिटाइजर,सब भूल गए, सिर्फ दारू याद रही । इस तरह संक्रमण बढ़ाने में इनका भी योगदान रहा ही होगा । आज देश में साढ़े 5 लाख से अधिक केस हो गए हैं और साढ़े 16 हजार से अधिक कोरोना के ग्रास हो गए हैं । भलेहे ही इस दौर में शादियां ठप्प हैं परन्तु पैग कम नहीं हुए । अपना ख्याल रखें और पैग से दूर रहें ।)

"जो लोग डूबे हैं शराबों में
कभी न उभर सकेंगे जिंदगानी में,
लाखों की क्या कहने
करोड़ों बह गए इस बोतल के
बंद पानी में ।"

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.06.2020

Saturday 27 June 2020

pet badana khayarnaak : पेट बड़ना खतरनाक

खरी खरी - 655 : पेट बड़ना बहुत खतरनाक

     आम तौर पर हमारे समाज में तौंदूमल उस आदमी को कहते हैं जिसका पेट निकला हो या बड़ा दिखाई दे । इसी तरह मोटापा ग्रसित महिला (गर्भवती नहीं) को उसकी सहेलियाँ मोटी भैंस कहतीं हैं । ऐसे ही एक तौंदूमल पति से पत्नी बोली-

पत्नी : कितने मोटे हो गए  हो?
पति : तुम भी तो मोटी हो गई हो ।
पत्नी: मैं तो माँ बनने वाली हूँ ।
पति : मैं भी तो पिता बनने वाला हूँ ।

    सच्चाई यह है कि तोंदूमल जी को अपना पेट नजर नहीं आया और न इसे उन्होंने कभी गंभीरता से लिया । किसी भी व्यक्ति का पेट बड़ना बहुत खतरनाक है । इसके कई कारणों में एक कारण है फैटी लीवर अर्थात लीवर (कलेजा) पर फैट (बसा) की पर्त चढ़ जाना । लीवर का मुख्य काम है पित्त के साथ मिलकर बसा का पाचन करना और इसे रक्त-संचार से शरीर की मांशपेशियों तक पहुँचाना । यदि लीवर में बसा चढ़ गया तो लीवर के सभी कार्य अवरुद्ध हो जाएंगे । फैटी लीवर होने के कई कारण हैं जैसे शराब की अधिकता, बसायुक्त अधिक भोजन का उपभोग, व्यायाम -सैर की कमी, भोजन अनुशासन की कमी आदि ।

     अतः स्वस्थ रहना है तो उक्त बातों का ध्यान रखना पड़ेगा अन्यथा तौंदूमल जी एक न एक दिन अपने नाजुक कलेजे को जख्म देते हुए दिल और गुर्दे की बीमारी के शिकार भी हो सकते हैं । स्त्री-पुरुष या बच्चे सभी को मोटापे से स्वयं को बचाने का एकमात्र उपाय है अपने पर नजर रखना, अपना वजन देखते रहना, कमर की मोटाई नापते रहना । यदि आप ऐसा कर पाए तो जिंदगी का सुहाना सफर आपको गुदगुदाते रहेगा । यह सब हम कर सकते हैं क्योंकि इसके लिए हम किसी पर आश्रित नहीं हैं । तो उठिए और एकबार आईने में अपने को देखिए । (कृपया पुरुष कमर से ऊपर के वस्त्र उतार कर शीशे के सामने खड़े हों।) यदि पेट प्रश्न खड़ा करेगा तो उत्तर आप स्वयं ढूंढ लेंगे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.06.2020

Friday 26 June 2020

Kaise kahoon dard naheen hai ? : कैसे कहूं दर्द नहीं हैं ?

बिरखांत-323 : कैसे कहूं दर्द नहीं है ?

       (आज से 4 साल पहले पहाड़ में जो देखा उससे दिल में दर्द और आंखों में नमी छा गई जिसे 2016  के मई महीने में लेखनी ने प्रकट कर दिया ।  क्या इन 4 वर्षों में कुछ बदलाव आया, यह तो आप ही जानें ?)

       मई 2016 का एक दिन । पहले की ही तरह इस बार भी न पहाड़ में ठंडी हवा मिली और न ठंडा पानी | पहाड़ों के दर्शन भी नहीं हुए | प्रत्येक वर्ष की तरह, इस बार भी पहाड़ के जंगलों में भीषण आग से भारी क्षति हुयी थी | धुएं की घनी परत काठगोदाम से ही नजर आने लगी थी | पहाड़ों की ऊँची चोटियों से भी चारों और धुँआ ही दिखाई दे रहा था | लोगों ने बताया, ‘इस बार भयंकर आग लगी या लगाई गयी | धुंए में धूल के कणों के मिल जाने से घना कोहरा बन गया है | यह धुंध तभी हटेगी जब पहाड़ों के बीच तेज हवा के साथ लगातार बारिश होगी |’ जंगलों को निकट से देखा तो घास और छोटे-छोटे पौधे तथा जड़ी-बूटियाँ जल चुकी थी | राख और कालख के ऊपर पीरुल (चीड़ की सूखी पत्तियां) के पर्त जम चुकी थी | चीड़ के अधजले पेड़ बता रहे थे कि यह एक साधारण आग नहीं बल्कि दावानल था | ‘पहाड़ में हर साल आग क्यों लगती है या क्यों लगाई जाती है और आग बुझाने में देरी क्यों की जाती है?’ ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित हैं |

      पेयजल की कमी से लगभग सभी गाँव त्रस्त थे | जिन जलस्त्रोतों को नलूँ द्वारा गांवों से जोड़ा गया था वे सूख चुके थे | चीड़ के जंगलों को इसका जिम्मेदार बताया जा रहा है | लोग मीलों दूर से पीने का पानी लाने में व्यस्त थे | सुबह से सांय तक पानी की ही बात | पानी के अभाव में मौसमी साग- सब्जी की पौध रोपाई की प्रतीक्षा कर रही थी | विद्युत पूर्ती में भी एकरूपता नहीं थी | यह बात अलग है कि उत्तराखंड से अन्य राज्यों में विद्युत् आपूर्ति की जाती है | रोजगार के अभाव में पहाड़ से पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा | शिक्षित- अशिक्षित सभी का रोजगार की तलास में शहरों की और जाना जारी है | किसी के बीमार होने पर गावों में चार आदमी डोली पर लगने के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जो उसे सड़क तक पहुंचा सकें |

     पहाड़ में एक बदलाव अवश्य आया है, अब शादियां दिन में ही हो रही हैं तथा बारात बसों के बजाय जीपों में जा रही है | सुबह बारात जाती है तथा सायं तक दुल्हन लेकर वापस आ जाती है यदि शराबियों का सहयोग रहा तो | शराबखोरों की बढ़ती हुयी संख्या के कारण शादियाँ दिन में हो रही हैं | सूक्ष्म शादी की रश्म, फेरे और बिदाई सभी दिन में ही पूरी हो जाती हैं | रात की शादी में शराब बरात को आधी रात से पहले दुल्हन के द्वार तक नहीं पहुंचने देती थी  | दिन की शादी में भी शराब खूब बह रही है परन्तु बड़े फसाद होने का भय कम रहता है | बरेतिये ही नहीं घरतिये भी शराब में डूबे रहते हैं |

      पहले भी शादी के हफ्ता- दस दिन के बाद दूल्हा दुल्हन को घर छोड़ कर चला जाता था और आज भी यह सिलसिला जारी है | शादी की उम्र में तनिक परिवर्तन आया है | अब बाल- विवाह नहीं हो रहे हैं | पहले विवाह होते ही दूल्हे के पलायन करने पर दुल्हन को रोते- बिलखते नहीं देखा जाता था क्योंकि वह बचपन के भोलेपन में खोयी रहती थी परन्तु अब शादी के उपरान्त ही पति के विछोह का दर्द सिसकियों से सनी न थमने वाली अश्रुधार स्वयं प्रकट कर देती है | सिसकियाँ पलायन को नहीं रोक सकती क्योंकि रोजगार का प्रश्न मुंह बाए खड़ा रहता है | विवाहोपरांत दुल्हन को घर छोड़ना वहाँ के नियति बन गयी है जो पलायन थमने से ही थम सकती है |

      परंपरा, परिस्थिति और रोजगार के चूल में पिसता यह प्रश्न मन को बोझिल कर देता है | शादी नहीं करना इसका उत्तर नहीं है | नवदुल्हनों की इस व्यथा पर बड़ों का विशेष ध्यान नहीं जाता है | उनका कथन है, ‘यह कोई नहीं बात नहीं है | हम भी तो ऐसे ही रहे | रोजगार की तलाश में पहाड़ के पुरुष बाहर जाते रहे हैं | नहीं जायेंगे तो खायेंगे क्या ?’ घर से बाहर गए पुरुष साल- छै महीने में घर आते हैं और कमाई का एक बड़ा भाग आने- जाने में खर्च हो जाता है | घर आकर वह दीन- क्षीण पत्नी एवं छाड़- छिटके, दुबले, बीमार एवं समुचित शिक्षा से वंचित बच्चों को देखकर स्वयं को कसूरवार समझते हैं | उधर वृद्ध होते माँ –बाप के मूक चेहरे भी कई प्रश्न  पूछते हैं | परिस्थितियों के इस भंवर में इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिखाई देते |

      नवविवाहित जोड़े का शादी के दिन से ही विरह में रहना बहुत अखरता है | शादी के बाद दुल्हन का दूल्हे के साथ न रह पाना, यह दूल्हा- दुल्हन दोनों के लिए नाइंसाफी है | काश ! पहाड़ में रोजगार उपलब्ध होता तो विरह- वेदना के इन दर्द भरे दिनों से विवाहित युगलों को नहीं गुजरना पड़ता | इस दर्द को वर्तमान मोबाइल फौन हल्का करने के बजाय और अधिक बढ़ा देता है | इस दर्द की छटपटाहट किसी दवा से भी कम नहीं हो सकती | साथ रहना ही इसका एकमात्र निदान है | यह तभी संभव है जब पहाड़ में रोजगार हो और शादी के बाद दूल्हा अपने घर से अपने कार्य पर जा सकता हो अन्यथा सिसकती दुल्हन के आंसुओं की गाड़ थमने वाली नहीं....।

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
27.06.2020

Aapaatkaal ki yaad : आपातकाल की याद

खरी खरी - 654 : आपातकाल की याद

     प्रतिवर्ष आपातकाल की याद में 25 जून को तत्कालीन सरकार को उनके विरोधी खूब गरियाते हैं । तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान संविधान में है । यदि यह अनुचित है तो इसे हटाया क्यों नहीं जाता ? उस दौर का दूसरा पहलू भी है । वे दिन याद हैं जब बस- ट्रेन समय पर चलने लगे थे, कार्यालयों में लोग समय पर पहुंचते थे और जम कर काम करते थे , तेल-दाल- खाद्यान्न सस्ते हो गए थे, काले धंधे वाले और जमाखोर सजा पा रहे थे, देश में हर वस्तु का उत्पादन बढ़ गया था और भ्रष्टाचार का नाग कुचला जा चुका था, शिक्षा प्रोत्साहित हुई थी ।

     आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए और जनता पार्टी का राज आया परंतु यह राज मात्र 26 महीने ही रहा । आश्चर्य की बात तो यह है कि  श्रीमती इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आ गई । सवाल उठता है कि यदि आपत्काल बुरा था तो इंदिरा गांधी इतनी जल्दी वापस कैसे आ गई ? आपत्काल का सबसे बुरा पहलू प्रेस पर सेंसर लगाना था और नीम-हकीमों द्वारा नसबंदी आप्रेसन से बिगड़े केसों का खुलकर प्रचार भी विरोधियों ने किया था ।

        आज भी मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध और अकर्मण्यता कम नहीं हुई है । पहली बार डीजल पेट्रोल से महंगा हो गया है । जून 2020 के महीने में 18 बार डीजल और पेट्रोल की कीमत बढ़ी है । अब डीजल पहली बार पेट्रोल से आगे निकलकर  ₹ 80.02 और पेट्रोल ₹ 79.92 प्रति लीटर हो चुका है । आज भी (कोरॉना को छोड़कर ) सैकड़ों बच्चे बीमारी से और लाखों बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं । ट्रेनों के बारे में सब जानते हैं कि कोई भी ट्रेन समय पर नहीं पहुँचती । 45 वर्ष पहले जो हुआ उससे हमने कुछ भी नहीं सीखा । आपातकाल के बारे में पक्ष-विपक्ष में आज भी जम कर बहस होती है । वर्तमान सत्ता को देश ने इसलिए चुना कि उसने कुछ वायदे किए थे । अब उन वायदों पर कार्य करने के बजाय हर समय विरोधियों को गरियाना उचित नहीं है ।  यह हमारे प्रजातंत्र की खूबी है परन्तु हम सुधरते नहीं, यह दुःख तो कचोटता ही है । जिस दिन हम कर्म- संस्कृति को दिल से अपना लेंगे उस दिन हमारा देश उन देशों में मार्केटिंग करेगा जो हमारे देश में अपना बाजार ढूंढते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.06.2020

Wednesday 24 June 2020

Hira Singh Rana Smriti : हीरा सिंह राणा स्मृति

मीठी मीठी- 477 : हीरा सिंह राणा - ताकि स्मृति बनी रहे !

      अपने दिल की व्यथा - वेदना को शब्दों से प्रकट कर गीत तक पहुंचाने वाले एक साधारण कलाकार से दिल्ली राज्य में कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष पद तक पहुंचने वाले फकीरी पसंद हीरा सिंह राणा जी 13 जून 2020 को 78 वर्ष की उम्र में इस संसार से दिवंगत हो गए । वे अपने पीछे पत्नी श्रीमती विमला राणा और पुत्र हिमांशु राणा के आलावा अपार जन - स्मृति, गीत, कुमाउनी भाषा की शब्द संपदा और एक उच्च कोटि का सरल स्वावलंबन संदेश तथा सौहार्द्र सुगंधित  सामाजिकता छोड़ गए ।

     16 सितम्बर 1942 को डढोई, मनीला (अल्मोड़ा, उत्तराखंड) में हुआ | वे विगत 60 वर्षों से अपने गीत- कविताओं के माध्यम से लोक में छाए रहे | उनके गीत उनकी पुस्तकें - 'प्योलि और बुरांश',  'मानिलै डानि ' और  'मनखों पड़ाव ' में हमारे बीच मौजूद हैं । राणा जी कुमाउनी के शीर्ष लोकगायक तो रहे, वे उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के साथ अंत तक जुड़े रहे, भाषा आन्दोलन में भी संघर्षरत रहे तथा वे राजधानी गैरसैण के समर्थक भी रहे । उनके कई कैसेट/सीडी हैं जिनमें उनके गीतों का संग्रह बतौर उनकी अमूल्य निशानी हमारे बीच हमेशा उपलब्ध रहेंगे । लोक गायन के अलावा राणा जी कुमाउनी में कविता पाठ भी करते थे । वे कएक सम्मान -पुरस्कारों से भी विभूषित थे | वर्ष 2016 से प्रतिवर्ष उन्हें पद्मश्री सम्मान दिए जाने के बारे में हमने चार बार निवेदन भी ज्ञापित किया को अनसुना रह गया परन्तु लोगों ने उनके गीत सुनकर उन्हें सबसे बड़ा सम्मान दिया ।

        ' म्येरि  मानिलै डानि,  लश्का कमर बाधा (राज्य मांग आंदोलन ),  त्यर पहाड़ म्यर पहाड़,  हाई हाई रे मिजाता, अणकसी छै तू,  ह्यूं हैगो लाल, आहा रे जमाना... आदि उनके कई कालजई  गीत हैं जो हमारे बीच गूंजते रहेंगे और लोगों के द्वारा हमेशा  गुनगुनाए जाते रहेंगी । राणा जी सही मायने में उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर थे । उनके नहीं रहने पर उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखना हम सबका सामजिक कर्तव्य है । राणा जी के इस अद्भुत कृतित्व को जीवंत रखने के लिए हम सबका सामाजिक उत्तरदायित्व है । इस हेतु मुख्य तीन बिंदुओं पर सामाजिक संस्थाओं को अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए । ये बिंदु हैं -

1. राणा जी के नाम से मानीला में उत्तराखंड सरकार द्वारा संग्रहालय बनाया जाय जहां प्रतिवर्ष उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर सामाजिक आयोजन किया जाए ।

2. राणा जी के नाम पर सरकार द्वारा एक राज्य स्तरीय पुरस्कार घोषित किया जाए जो प्रतिवर्ष किसी उत्कृष्ट कलाकार को प्रदान किया जाए;

3. राणा जी नाम से विद्यालयों के लिए एक छात्रवृती योजना आरंभ की जाए ;

     समाज के प्रबुद्ध जनों और सामाजिक संस्थाओं को इन तीन बिंदुओं का क्रियान्वयन करने हेतु उत्तराखंड सरकार से लिखित अनुरोध ज्ञापित करना चाहिए जिसे राणा जी के प्रति सम्मान समझा जाएगा ।  उपरोक्त के अलावा राणा जी के एकमात्र पुत्र हिमांशु राणा को उनकी योग्यतानुसार सरकार द्वारा नौकरी दी जाए जिसके लिए उनके पुत्र को शीघ्र निवेदन भी ज्ञापित करना चाहिए । वर्तमान में इस परिवार को आर्थिक सहयोग भी जरूरी है । इस दुख की घड़ी में हम राणा जी की पत्नी श्रीमती विमला राणा जी से सामाजिक संघर्ष करने हेतु मंथन करने की अपील भी करते हैं क्योंकि समाज ने उन्हें राणा जी के साथ कई बार कई मंचों पर सम्मानित होते हुए देखा है ।  उक्त बिंदुओं का क्रियान्वयन ही दिवंगत राणा जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी ताकि उनकी पावन स्मृति बनी रहे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.06.2020