मीठी मीठी - 322 : दो डिप्टी कलेक्टरों की मिसाल
हम समय समय पर सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा सुधारने के लिए जन जागृति करते रहते हैं । इसी संदर्भ में कई बार लिखा कि जब तक सरकारी अफसर, कर्मचारी और राजनीतिज्ञ अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश नहीं कराते तबतक इन स्कूलों का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता । सरकार को इस मुद्दे पर कानून बनाने चाहिए और कानून को दृढ़ता से लागू करना चाहिए ।
30 जुलाई 2019 के एक समाचारपत्र के अनुसार छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कार्यरत दो डिप्टी कलेक्टरों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलाया है । इनमें एक D C की पत्नी तो एक स्कूल में कुछ घंटे निःशुल्क कक्षाएं भी लेतीं हैं । इनका मानना है कि सरकारी और निजी स्कूलों में कोई अधिक अंतर नहीं है और इस अंतर को समाप्त किया जा सकता है ।
अतः सरकार को सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा यदि ईमानदारी से सुधारनी है तो सभी सरकारी वेतन भोगियों और चुने हुए जनप्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाना अनिवार्य किया जाय । यह शिक्षा के क्षेत्र में उठाया जाने वाला अभूतपूर्व कदम होगा । आशावाद जिंदाबाद !
पूरन चन्द्र कांडपाल
31.07.2019