बिरखांत- 168 : शरीफ मुखौटे वाले शराबी
कुछ बातें कहने -बताने, सुनने-सुनाने की होती हैं जो हमें गिच खोलने पर मजबूर करती हैं और साथ ही सबसे मंथन करने को कहती हैं | हमारी अच्छी-बुरी हरकतों को बच्चे देखते हैं फिर अनुकरण करते हैं | हमारे कुछ बच्चे आज शराब, गुटखा, धूम्रपान, सुपारी और बीयर के शौकीन हो चुके हैं जिसका जुगाड़ वे चोरी या ठगी करके कर रहे हैं । घर में रखी हुई खुली बोतल से एक पैग चोरी से निकाल कर उतना ही पानी बोतल में डालने का केस देखने में आया है ।
कुछ वर्ष पहले मैं गांव (उत्तराखंड) में एक बरात में गया | मैंने अपने झोले में पजामे के साथ टार्च लपेट रखी थी | लोगों ने सोचा ‘बापसैप दिल्ली बै ऐ रईं, बोतल हुनलि ‘ | जब सच्चाई का उन्हें पता चला तो वे कहने लगे “एक नंबर का कंजूस है ये | इसके साथ मत जाओ | ये भाषण देकर मूड खराब कर देगा |” दुल्हन के आंगन पहुंचने तक केवल दूल्हा, एकाद रिश्तेदार, कुछ बच्चे और मैं दारू के दाग से दूर थे, बाकी पूरी बरात शराब में डूब चुकी थी |
शराबी बरेतियों ने उस गाँव में जो नाम कमाया उसकी बिरखांत बताने लायक नहीं है क्योंकि वह बहुत ही अमर्यादित, अशोभनीय और अनर्गल है | कएक बार झगड़े के बादल उठे और जैसे-तैसे उन बादलों को बरसने से रोका | 'ज्वात लागा लाग इज्जत रै गेइ' | शराब से दूर रहने पर यदि आपको कोई कंजूस कहे तो यह आपका सम्मान है, ऐसा मैं सोचता हूं | एक न एक दिन, कभी न कभी प्रत्येक शराब सेवनकर्ता, शराब को बुरी चीज बताएगा | फिर उस दिन का इन्तजार क्यों ?
आज ही, अभी से शराब को ‘ना’ कहो और उन पंडितों, मास्टरों (अध्यापकों),विद्यार्थियों, रिश्तेदारों, डंगरियों, जगरियों, रस्यारों, गिदारों, नेताओं, बाबुओं, बाबाओं, अफसरों, हेल्परों, डराइवरों, क्लीनरों, कवि- लेखक- साहित्यकारों आदि पूरी जमात की पोल खोलो जो कभी सरेआम तो कभी लुका-छिपा कर शराब गटक रहे हैं | कुछ तथाकथित कवि तो शराब के विरोध में कविता पढ़ते हैं और कवि-सम्मेलन के तुरंत बाद पौवा -अद्धा गटकते हैं । आयोजक जान कर अनजान बने रहते हैं । हटाओ इनका मुखौटा कि ये कवि नहीं शराबी हैं । अगली बिरखांत में कुछ और...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.07.2017
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