Saturday 29 December 2018

Kis baat ka garv : किस बात का गर्व

खरी खरी - 361 : किस बात का गर्व ? 

    कुछ लोग कहते हैं हमें उत्तराखंडी होने का गर्व है । ठीक है गर्व होना चाहिए परन्तु हम पहले भारतीय हैं बाद में उत्तराखंडी । यदि हम गर्वित हैं तो हमें देवभूमि की आन-बान- शान बनाये/बचाये रखने के लिए गंभीरता से सोचना होगा और अपनी कथनी -करनी में अंतर नहीं करना होगा अन्यथा हमें किस बात का गर्व ?  

हर रोज शराब में डूबे रहने का ?

धूम्रपान- चरस -सुल्पा- भांग पीने का ?

गुटखा- खैनी - तम्बाकू - जर्दा खाने का ?

जागर लगाकर डराने -भ्रमित करने का ?

जागर में डंगरियों को शराब पिलाने का ?

भगवान के नाम पर पशु बलि देने का ?

शहीदों और शहीद परिवारों को भूलने का?

अंधविश्वास को पोषित करने का ?

गलत बी पी एल कार्ड बनाने का ?

बिना कुछ घूस लिए काम नहीं करने का ?

झूठे प्रमाण पत्र से पैंसन लेने का ?

सैणियों पर जबरजस्ती मसाण लगाने का ?

राज्य में आये पर्यटकों को ठगने का ?

रसोई बनाने या मुर्दा फूंकने में शराब मांगने का ?

जनहित -आंदोलनों में घर में घुसे रहने का ?

        इस खरी खरी से किसी को बुरा लगे तो अपना गुबार निकाल दीजिये । जो लोग इन अपसंस्कृतियों से दूर हैं और इनके विरोध में गिच खोलते हैं उन्हें प्रणाम/जयहिन्द परन्तु जमीनी सच तो कहना ही होगा । उत्तराखंड जो देवभूमि है, शहीद भूमि है और वीर भूमि है उसे हमने अपनी गलत हरकतों से व्यथित किया है, उसकी शान को ठेस पहुंचाई है और उसे अपमानित किया है ।  इन सभी अपसंस्कृतियों  का विरोध करने की हमारी हिम्मत पता नहीं किस गाड़ -गधेरे में बह गई ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.12.2018


Friday 28 December 2018

न mahagaaee, na bhrashtachaar aur na apraadh : न महंगाई घटी,न भ्रष्टाचार और न अपराध

खरी खरी - 360  : न मंहगाई घटी , न भ्रष्टाचार और न अपराध

     एक अच्छे ड्राइवर का ध्यान सिर्फ एक्सलेटर पर ही नहीं होना चाहिए । ब्रेक, गेर और पहियों की हवा पर भी होना चाहिए तभी गाड़ी ठीक से चलेगी । गरीब को जिन्दा रहने के लिए कम से कम छै चीजें चाहिए- आटा, चावल, दाल, चीनी, चाय और नमक । दूध, घी-तेल, सब्जी के बिना भी वह जी लेता है । नमक के पानी में डुबाकर भी वह रोटी खा लेता । साधारण बिस्कुट, ब्रेड से लेकर सामान्य दवाओं की कीमत भी कुलाचें मार रही हैं ।

     देश में सत्ता परिवर्तन के कई मुद्दों में से ये तीन मुख्य मुद्दे थे बढ़ती मंहगाई, बढ़ता भ्रष्टाचार और बढ़ता अपराध । उक्त छै वस्तुओं के दाम कम करने के बजाय बहुत आगे निकल गए । बी पी एल कार्ड सभी गरीबों के पास नहीं है  । विशेषतः असंगठित क्षेत्र के गरीब मजदूरों के पास बी पी एल कार्ड नहीं होता ।  पेटोल - डीज़ल के दाम तो बढ़ते ही जा रहे हैं जिसके कारण अन्य चीजों के दाम भी स्वतः ही बढ़ गए हैं ।  भ्रष्टाचार और अपराध भी घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं  । हजूर आम जनता की राहत  के लिए बढ़ती मंहगाई, भ्रष्टाचार और बढ़ते अपराधों पर शीघ्र ब्रेक लगाइये ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.12.2018

Thursday 27 December 2018

Palayan dard : पलायन दर्द

खरी खरी -359 : "मैं तो वैसी ही हूँ ।"

         उत्तराखंड के पर्वतीय भाग में ग्रामीण महिलाओं के लिए विज्ञान कोई बदलाव नहीं लाया । वह कहती है, "मेरे लिए कुछ भी नहीं बदला । मैं जंगल से घास -लकड़ी लाती हूँ,  हल चलाती हूँ, दनेला (दन्याइ) लगाती हूँ, निराई-गुड़ाई करती हूँ,  खेत में मोव (गोबर की खाद) डालती हूँ,  दूर-दूर से पीने का पानी लाती हूँ,  पशुपालन करती हूँ और घर -खेत-आँगन का पूरा काम करती हूँ । मुझे पता नहीं चलता कि कब सूरज निकला और कब रात हुई । मुझे नहीं पता श्रंगार क्या होता है ।"

      वह चुप नहीं होती, बोलते रहती है, ''गृहस्थ के सुसाट -भुभाट, रौयाट - बौयाट में मुझे पता भी नहीं चलता कि मेरे हाथों- एड़ियों में खपार (दरार) पड़ गये हैं और मेरा मुखड़ा फट सा गया है । सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चों को तो मैं बिलकुल भी समय नहीं दे पाती । सिर्फ उनके लिए रोटी बना देती हूँ बस । अब कुछ बदलाव कहीं-कहीं पर दिखाई देता है वह यह कि खेत बंजर होने लगे हैं । नईं- नईं बहूएं आ रही हैं जो पढ़ी लिखी हैं । वे यह सब काम नहीं करती । हम भी बेटियों को पढ़ाकर ससुराल भेज रहे हैं जो वहाँ यह सब काम नहीं करेंगीं । लड़कों के लिए यहाँ रोजगार नहीं है और वे बहू संग नौकरी की तलाश में निकल गए । ढूंढते रहो उजड़ते गाँवों से पलायन के कारण...।"

पूरन चन्द्र काण्डपाल


28.12.2018


Wednesday 26 December 2018

Kaise kaise bakhede : कैसे कैसे बखेड़े

बिरखांत – 244 : कैसे कैसे बखेड़े

   हमें बखेड़ा उपजाने में देर नहीं लगती | घर में, पड़ोस में, कार्यस्थल में, सड़क पर या बैठे-बैठे सोशल मीडिया में |  कुछ महीने पहले दिल्ली के भागीरथी विहार में चूहेदानी से दूसरे की घर की ओर चूहा छोड़ने पर ऐसा बखेड़ा हुआ कि आपसी गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गयी | कुछ वर्ष पूर्व सशस्त्र सेना चिकित्सा कालेज (AFMC) पूने के इन्टोमोलोजी विभाग में हमें बताया गया कि चूहा किसान का शत्रु है और सांप मित्र | अगर सांप न होते तो चूहे सभी अन्न नष्ट कर देते क्योंकि  इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है |

      हम सब चूहों द्वारा किये गए नुकसान से परिचित हैं | हम घर के चूहे को पकड़ते हैं और दूसरी जगह छोड़ देते हैं | चूहों से फ़ूड पोइजनिंग, रैट बाईट फीवर और प्लेग जैसी कई बीमारियाँ फैलती हैं | वैज्ञानिकों के अनुसार हमें चूहों को नष्ट कर देना चाहिए | चूहेदानी को पानी की बाल्टी में डुबाना, चूहा मारने का उत्तम तरीका बताया गया है | परन्तु कुछ लोग चूहे को भगवान् की सवारी बताते हैं इसलिए मारने के बजाय दूसरे के घर की ओर डंडा देते हैं | स्वयं सोचें और जो उचित लगे वही अपनाएं | इस बात पर भी बखेड़ा खड़ा हो सकता है |

     दूसरा बहुचर्चित बखेड़ा कुत्ते का है | एक व्यक्ति कुत्ता पालता है और परेशानियां पड़ोसियों को झेलनी पड़ती हैं | कुत्ता  रात को भौंकता है, कहीं पर भी शौंच कर देता है | श्वान मालिक किसी की बात नहीं सुनता | रिपोट होने पर पुलिस-अदालत होती है और वर्षों केस लटके रहता है | कुत्ते वाला त्यौरियां चढ़ा कर कुत-डोर हाथ में थामे बड़े रौब से घूमता है | उसे किसी की परवाह नहीं |  उसकी सबसे बोलचाल बंद है | एक दिन जब कुत्ते का मालिक मर जाता है | सभी पड़ोसी उसके कुतप्रेम, कुतत्व और कुतपने को भूल कर उसकी अर्थी में शामिल होते हैं फिर भी उस परिवार को अकल नहीं आती और अंत में अदालत के दंड से ही केस का अंत होता है |

     तीसरा बखेड़ा ‘हा-हा’ का है | एक आदमी प्रतिदिन सुबह चार बजे अपने घर की बालकोनी में जोर-जोर से ‘हा-हा’ करता है अर्थात हंसने का व्यायाम करता है | पड़ोसी उसे मना करते हैं | वह नहीं मानता | केस अदालत में जाता है | अदालत से उसे आदेश मिलता है, “तुम पार्क में जाया करो, घर की बालकोनी या आसपास ‘हा-हा’ नहीं करोगे | तुम्हारी इस हरकत से लोग दुखी हैं |” पड़ोसियों से अकड़ने वाला यह तीसमारखां अदालत से माफी मांगता है और लोगों को उसकी ‘हा-हा’ से मुक्ति मिलती है |

     इसी तरह पड़ोस में तबला, ढोलक, हारमोनियम, ढोल, डीजे, म्यूजिक सिस्टम, हॉर्न, पटाखे, जोर जोर से झगड़ा, बहुमंजिले फ्लेटों में ‘खट-खट, वाहन पार्किंग, जीने की गन्दगी आदि समस्याओं से हम आए दिन जूझते हैं और छोटी सी बात पर बखेड़े खड़े हो जाते हैं | चलो अपने से पूछते हैं, ‘कहीं हम चूहा, कुत्ता, हा-हा सहित इन अन्य बखेड़ों के कारण तो नहीं हैं ?’ अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.12.2018

Tuesday 25 December 2018

Veer chndra singh gadhwali : वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली

मीठी मीठी - 210 : वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली जी की 127वीं जयंती

       कल 25 दिसम्बर 2018 को राजेन्द्र भवन नई दिल्ली में स्वतंत्रता संग्राम के महानायक वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली जी की 'उत्तराखंड फ़िल्म एवं नाट्य संस्थान (पं) दिल्ली द्वारा 127वीं जयंती गीत -संगीत से गुंजायमान एक सांस्कृतिक आयोजन के साथ मनाई गई । इस अवसर पर मुख्य अतिथि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी एवं संस्कृत अकादमी के सचिव डा. जीतराम भट्ट जी सहित कई गणमान्य व्यक्ति, पत्रकार, साहित्यकार, कवि, राजनीतिज्ञ, समाजसेवी, मातृ शक्ति और बच्चे उपस्थित थे । मुख्य अतिथि ने गढ़वाली जी के देशप्रेम और जीवटता पर प्रकाश डालते हुए स्वतन्त्रता संग्राम में उनकी भूमिका के महत्व को अद्वितीय बताया ।

         इस अवसर पर संस्था (UFNI) द्वारा तीन जानेमाने व्यक्तियों को सम्मानित किया गया । ये व्यक्ति हैं- सुश्री रेखा धस्माना (गायन), कैलाश द्विवेदी ( फ़िल्म निर्माण) और दिवंगत श्रीमती प्यारी नेगी (नाट्य मंचन) । संगीतकार मोती शाह के संगीत, गायक हरीश मधुर, रेखा धस्माना, कृपाल सिंह रावत, श्रीमती चंद्रकान्ता और महेंद्र रावत के गीतों को खचाखच भरे सभागार में दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया ।

      संस्था के संरक्षक कुलदीप भंडारी एवं अध्यक्ष श्रीमती संयोगिता ध्यानी ने संस्था के कार्यों की चर्चा करते हुए सभी आगंतुकों को धन्यवाद देकर उनका आभार व्यक्त किया । कार्यक्रम का संचालन बृजमोहन शर्मा जी ने किया जबकि सांस्कृतिक झलकियों का कलात्मक संचालन सुश्री कुसुम चौहान एवं गौरी रावत जी ने किया । हम संस्था के इस सफल आयोजन के लिए पूरी टीम को हार्दिक शुभकामना देते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.12.2018

Monday 24 December 2018

Veer chandr singh gadhwali : वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली

मीठी मीठी - 208: आज वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ज्युकि जयंती

         आज 25 दिसम्बर पेशावर कांडक योद्धा वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ज्युकि जयंती छ । उनार बार में पुस्तक "लगुल'' बै लेख याँ उधृत छ । गढ़वाली ज्यूकैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2018

Mandan mohan malveey : पं मदन मोहन मालवीय

मीठी मीठी - 209: आज पं मदन मोहन मालवीय जी की जयंती

         आज 25 दिसम्बर पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जयंती है । पुस्तक महामनखी से एक लघुलेख उनके बारे यहां उधृत है ।  विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2018

Atal ji : अटल जी

मीठी मीठी - 207 : आज अटल जी की जयंती

         आज 25 दिसम्बर हमार 10उं प्रधानमंत्री भारत रत्न, अटल बिहारी वाजपेयी ज्युकि जयंती छ । उनार बार में पुस्तक "महामनखी'' बै लेख याँ उधृत छ । अटल ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2018

Gityer 3028 : गित्येर 2028

मीठी मीठी - 206 : 'गित्येर-2018'

       23 दिसम्बर 2018 को दिल्ली- NCR में कई सांस्कृतिक- सामाजिक कार्यक्रम हुए । दो स्थानों पर पहुंच सका -राजेन्द्र भवन में 'सार्थक प्रयास' का गरीब बच्चों को शिक्षित करने का कार्यक्रम और गढ़वाल भवन में 'गित्येर-2018' बच्चों को कलात्मक हुनर दिखाने का कार्यक्रम । 'सार्थक प्रयास' के सफल आयोजन की चर्चा कल (मीठी मीठी -205 ) हो चुकी है । 

    'गित्येर-2018' का आयोजन बदरीकेदार सांस्कृतिक संगठन ( अध्यक्ष श्री राजपाल पंवार, महासचिव श्री उमेश रावत ) दिल्ली द्वारा किया गया जिसमें उत्तराखंड के दूर-दराज से आये 14 बच्चों ने कुमाउनी-गढ़वाली गीत गायन प्रतियोगिता में भाग लिया ।  इस प्रतियोगिता के लिए क्रमशः ₹ 21000/-, 11000/-, 5100/- और 2100/- प्रथम, द्वितीय, तृतीय और कंसोलेसन (सभी अन्य 11 बच्चों को) पुरस्कार राशि दी गई । प्रतियोगिता में गीत - संगीत क्षेत्र से 5 निर्णायक ( सर्वश्री शिवदत्त पंत, किशन महिपाल, विजय सैलानी, डॉ सतीश कालेश्वरी और सुश्री अनुराधा कोटियाल ) आमंत्रित थे । गीत-संगीत के शिखर उत्तराखंड गौरव श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे ।

          तीन चक्र गीत- गायन प्रतियोगिता में दर्शकों से खचाखच भरे सभागार में अंततः तीन गायकों अमन खंडाह (पौड़ी), करनपाल (मनिला अल्मोड़ा)और अखिलेश (टिहरी) को क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान के लिए चुना गया । ग्रामीण क्षेत्र से आये सभी बच्चों ने बहुत सुंदर गीत प्रस्तुत किए । भाग लेने वाले ये 14 बच्चे 40 प्रविष्टियों में से छांटे गए थे । कोई भी पुरस्कार प्राप्त करना  एक  गौरवशाली क्षण होता है । यदि पुरस्कार के साथ कुछ आर्थिक मानदेय भी तो यह सोने में सुहागा जैसा है । इस संस्था ने सभी प्रतिभागियों को मानदेय दिया जो सराहनीय है । हम संस्था की पूरी टीम को पहाड़ के इन बच्चों को अपना कलात्मक हुनर दिखाने हेतु राजधानी में मंच उपलब्ध कराने के लिए हार्दिक शुभकामना देते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2018

Sunday 23 December 2018

Saarthk pryas : सार्थक प्रयास

मीठी मीठी - 205 : 'सार्थक प्रयास' का सफल आयोजन

      कल  23 दिसम्बर 2018 को नई दिल्ली स्थित राजेंदर भवन में 'सार्थक प्रयास' संस्था का वार्षिक आयोजन हुआ । सार्थक प्रयास' संस्था (अध्यक्ष उमेश चन्द्र पंत ) चौखुटिया (उत्तराखंड) और ग़ाज़ियाबाद में बहुत ही  प्रेरणादायी कार्य कर रही है जहां लगभग तीन दर्जन असहाय बच्चों की देखभाल और शिक्षा की जिम्मेदारी संस्था ने ले रखी है । इस कठिन कार्य को पंत जी अपनी टीम के साथ बड़ी शालीनता से जूझते हुए कर रहे हैं । इस अवसर दिल्ली सरकार के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया मुख्य अतिथि थे । कार्यक्रम में मेजर जनरल (रि.) ए जे बी जैनी, टी सी उप्रेती, एम एस रावत (आकाशवाणी), रमेश काण्डपाल (अणुव्रत) सहित कई गणमान्य व्यक्तियों, कलाकारों, पत्रकारों, साहित्यकारों, राजनेताओं और समाज सेवियों के साथ हम सबने बच्चों द्वारा प्रस्तुत अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम देखे । नाट्य निदेशक मनोज चंदोला जी निदेशित और बच्चों द्वारा अभिनित नाटक 'भोलाराम', 'मुँह से कुछ बोला करो, मैं तुमको नहीं छोडूंगी, मेरे देश की धरती, सर्व -धर्म मूर्ति में भारत, सहित सभी  मनोरंजन से भरपूर, शिक्षाप्रद और संदेशात्मक झलकियों ने दर्शकों को आत्मविभोर कर दिया । स्मारिका 'दृष्टि' का भी इस अवसर पर विमोचन किया गया ।

       मैंने इस कार्यक्रम को लगातार 4 घण्टे अंत तक देखा । 'उमेश पंत जैसे जुनूनी लोग भी इस दुनिया में हैं'  ऐसा मैंने मेरे इर्द-गिर्द बैठे लोगों को कहते सुना । कार्यक्रम में उप-मुख्यमंत्री द्वारा दीप प्रज्वलन के बाद एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म दिखाई गई जिसमें 'सार्थक प्रयास' द्वारा किये गए कार्यों की झलकी प्रदर्शित की गई ।  मुख्य अतिथी ने संस्था के कार्यों की बहुत सराहना की । खचाखच भरे सभागार ने बच्चों द्वारा अभिनित कार्यक्रमों की खूब सराहना की । इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार और टीम 'सार्थक प्रयास' के मार्गदर्शक चारु तिवारी ने सभी आगन्तुकों का अभिनंदन करते हुए अपनी टीम के कृतित्व की चर्चा की । मंच संचालन मनोज चंदोला एवं सुश्री हंसा अमोला ने किया । टीम 'सार्थक प्रयास' को इस सफल आयोजन के लिए बधाई और शुभकामना । ऐसी जनहित संस्था को समाज से सहयोग मिलते रहना चाहिए और मदद के हाथ उठते रहने चाहिए ताकि संस्था अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर अग्रसर रहे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.12.2018

Saturday 22 December 2018

Indirapuram kautik : इंदिरापुरम कौतिक

मीठी मीठी - 203 : महाकौतिक  इंदिरापुरम

    21 बटि 25 दिसम्बर 2018 तक उरातार 5 दिन इंदिरापुरम गाजियाबाद में महाकौतिक क आयोजन चलि रौ । बेई 22 दिसम्बर हुणि याँ कुमाउनी और गढ़वाली भाषा में भाषण प्रतियोगिता कराइ गे जमें उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंचक संयोजक दिनेश ध्यानी, पूरन चन्द्र काण्डपाल और दर्शन सिंह रावत ज्यूल निर्णायक भूमिका निभै । प्रतियोगिता में पैल, दुसर और तिसर इनाम दिइगो । कौतिक में उत्तराखंडी उपजाक कएक सामान और उत्तराखंडी व्यंजन उपलब्ध छी ।  महाकौतिकक मुखिया श्री राजेन्द्र सिंह चौहान ज्यूल पुर उत्तराखंड समाज हैं निवेदन करौ कि सबूंल य महाकौतिक में औण चैंछ । उम्मीद छ महाकौतिक सफल रौल । आयोजकों कैं भौत भौत शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.12.2018

Kas jamaan aigo : कस जमान ऐगो

खरी ख़री - 358 : कस जमान ऐगो (II)

च्यालां क छीं गर्लफ्रैंड
च्येलियां क बौय फ्रैंड,
हाथों पर बादि रईं
फ्रेंडशिपाक बैंड,
क्वे घुमरीं पार्कों में
क्वे डवां मुणि भैरीं,
औणी जाणियाँ कि परवा
न्हैति बेफिकर हैरीं,
शरम लिहाजक
निशान लै मटिगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।

आब जनम दिन लै
नईं तरिक ल मनूं रईं,
केक़ा क माथ बै
मोमबत्ती जगूं रईं,
तीन आंखर अंग्रेजी
सबूंल सिखी है,
अंग्रेजी में कूं रईं
हैपी बर डे,
जैल दी जगूण चैंछी
उ दी नीमू फैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।

मतलबाक लोग हैगीं
मतलबाक यार,
दिखावटी दुनिय में
दिखावटी प्यार,
मतलब निकलि गोयौ
पै भुलि जानीं,
रूबरू मिलनी
अपन्यार है जानीं,
धरम करम न्हैगो
मतलबी रैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.12.2018

Thursday 20 December 2018

Kas jamaan aigo : कस जमान ऐगो

खरी खरी - 357 : कस जमान ऐगो

ब्या में बरेतिय लोग सिद
ब्योलि कै घर औंनी,
खै-पी बेर लिफाफ
ब्यौला बाप कैं पकडूंनी,
कै दगै बात करण क
टैम न्हैति बतूनी,
जैमाव डाउण है
पैलिकै खसिकि औंनी,
बरयात कूण में सिरफ
ब्यौल क परिवार वां रैगो,
कौस जमान देखौ
कौस जमान ऐगो ।

ब्या क लगन कि
परवा क्वे नि करन,
वीडियो फोटो वलांक
सब जाग हुकम चलूं,
खिसाई बामण चुपचाप
टकटकी लगै भैरां,
कभतै झपकि ल्युछ
कभतै आंख मिनू,
फोटोग्राफी भलि है गेई
समझो भल ब्या हैगो,
कौस जमान देखौ
कौस जमान ऐगो ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.12. 2018

Wednesday 19 December 2018

Kala maheena : काला महीना

बिरखांत 243 : काला महीना (काव महैंण)

      उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर भी अक्सर सुनने में आता है कि आजकल काला महीना (काव महैंण) लगा है इसलिए ये मत करो और वो मत करो । क्या है ये काला महीना ?  विज्ञान में कोई काला या किसी रंग का महीना नहीं है परन्तु जब से मुझे याद है मैंने कर्मकांडी ब्राह्मणों से और अपने बुजर्गों से काले महीनों के बारे में सुना है और जिसकी समाज में पहले बहुत मान्यता थी परन्तु आज भी कुछ न कुछ मान्यता बनी हुई है ।

       हिंदी महीनों में 6ठा महीना भादो (14 अगस्त से 13 सितम्बर) और 10वां महीना पूस ( 14 दिसम्बर से 13 जनवरी) दो काले महीने माने जाते हैं । ज्योतिष वाले इसका जो भी कारण बताएं, इसके पीछे लोक-विज्ञान है । भादो और पूस के महीनों में उत्तराखंड में खेती का काम नहीं होता । सावन में गुड़ाई- निराई पूरी हो जाती है और मंगसीर के अंत तक असोज समेरने के बाद घास- लकड़ी एकत्र करने का कार्य पूरा हो जाता है । घास के लुटे लग जाते हैं और कंघौव में जलाने के लिए लकड़ियां सज जाती हैं ।

     अधिकांश लोग (ससुराल वाले) बहू को ससुराल से मायके भेजने में कभी खुश नहीं होते (बात उत्तराखंड की है) थे/हैं। अब बदलाव है क्योंकि बहू भी ज्यादा दबायस सहन नहीं करती । करे भी क्यों ? क्योंकि अब बाल विवाह भी नहीं होते और बहू अनपढ़ भी नहीं होती । इसलिए उस दौर में लोक-विज्ञानियों ने कुछ ऐसा सोचा ताकि बहू कुछ दिन मायके भेजी जाय । अतः उन्होंने भादो और पूस को काला महीना घोषित करते हुए यह भी कहा कि 'काले महीनों में बहू ससुरालियों (विशेषकर पति, जेठ और ससुर ) का मुँह न देखे और देखेगी तो अनहित होगा । इस तरह बहू को साल में दो महीने सास- ससुर की बंधुवा मजदूरी से मुक्ति मिल जाती थी और बहू इन दो महीनों में मायके जाकर आराम करते हुए अपने फटे हुए हाथ -पांवों -मुखड़े की दरारों पर मलहम (तेल) लगाते हुए माँ के सामने दो आंसू गिरा आती थी और माँ के आंसू पोछ आती थी ।

      काले महीनों के आगमन पर जहां बहू मन ही मन खुश होती थी वहीं सास घुटन से मरती थी क्योंकि बहू का काम सासू जी (ज्यू) के हवाले हो जाता था । आज भी कुछ लोग काले महीनों में कोई शुभ कार्य नहीं करते । लोगों का क्या है ? पितरों को भगवान भी मानते हैं और पितृपक्ष (सरादों में ) को अशुभ भी कहते हैं । वैदिक साहित्य लिखे हुए 3200 वर्ष हो चुके हैं । क्या आज भी हम 3200 वर्ष भूतकाल के समय से चलें ?  मेरा विचार है देश-काल-परिस्थिति से चलें और जो अच्छा है, उचित है उसे अपनाएं और अनुचित को तृणाजलि दें , जैसे तब महिला को वस्तु समझा जाता था और आज महिला हमारे समकक्ष खड़ी है । आज जहाँ एक ओर बेटी ससुराल गई वहीं दूसरी ओर बहू बेटी बन कर घर आ गई । दोनों ही हमसे मम्मी - पापा भी कहने लगे हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.12.2018

Tuesday 18 December 2018

Janhit mudde : जनहित मुद्दे

खरी खरी - 356 : जनहित के मुद्दों से की बात हो !


     कुछ महीने पहले एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र में छपे एक लेख "असली हिन्दू, नकली हिन्दू" देश का ध्यान इस ओर आकर्षित करता है कि सोमनाथ मंदिर (गुजरात) में गैर हिन्दुओं की प्रविष्टि के लिए अलग रजिस्टर क्यों रखा गया ?  इस मुद्दे पर हमारे मीडिया खूब टी आर पी बनाई । यह वही मीडिया है जो कुछ समय पहले शनि सिगनापुर मंदिर में स्त्री की प्रविष्टि नहीं होने पर बहुत आंदोलित था या सबरीमाला मंदिर में महिला प्रवेश किये जाने पर पक्षधर था । हमारी मीडिया को इस विभाजनकारी प्रवृति से निजात कब मिलेगी या मिलगे भी कि नहीं ? 


      कुछ मीडिया चैनल इस मुद्दे पर चुप रहे । एक ओर हम देश में संविधान में सबके बराबरी की बात करते हैं और दूसरी ओर हम यह सामाजिक खाई क्यों चौड़ी करते जा रहे हैं ? मंदिर में किसी भी श्रद्धालु को अपनी श्रद्धानुसार प्रवेश पर न कोई पाबंदी होनी चाहिए और न किसी प्रकार का जातीय भेदभाव इंगित किया गया नजर आना चाहिए । देश में सामाजिक विषमता को सिंचित करने के किसी भी कारक को नहीं बख्शा जाना चाहिए और इस तरह के राग-द्वेष उत्पन्न करने वाली प्रथाओं को शीघ्रता से बंद किया जाना चाहिए । इसके लिए कानून पहले से ही है जिसकी आएदिन अवहेलना होती है ।


     इसी तरह इस बीच मंदिर जाने या नहीं जाने पर भी   मीडिया ने बहुत कोलाहल किया । यह एक व्यर्थ शोर था । धार्मिक अनुष्ठान करना किसी भी व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण है । कोई करे या नहीं करे इससे उस व्यक्ति की श्रेष्ठता से कोई लेना -देना नहीं । मीडिया को इस तरह के व्यर्थ मुद्दों पर  समय नष्ट करने के बजाय देश हित की चर्चाओं जैसे किसान, जवान, शिक्षा, विज्ञान, पर्यावरण, अंधविश्वास निवारण, सामाजिक सौहार्द आदि के विषय में वार्ता करनी चाहिए तथा देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, रुढ़िवाद, अंधविश्वास, अशिक्षा, सामाजिक विषमता, आतंकवाद और  कट्टरता के विरोध में खुलकर चर्चा करनी चाहिए ।


पूरन चन्द्र काण्डपाल

19.12. 2018