Thursday 30 May 2019

31 May no smoking day:31 मई धूम्रपान निषेध दिवस

बिरखांत - २६६ : ३१ मई तमाकु- धूम्रपान निषेध दिवस

       हर साल ३१ मई हुणि पुर दुनिय में तमाकुल हुणी नुकसानोंक बार में जनजागृति क लिजी धूम्रपान निषेध (तमाकु निषेध ) दिवस मनाई जांछ | यै हुणि WNTD आर्थात world no tobacco day (वर्ल्ड नो टोबाकू डे ) लै कई जांछ | संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) कि संस्था, विश्व स्वाथ्य संगठन (WHO) क अनुसार दुनिय में हर साल साठ लाख लोग कैंसर सहित तमाकु  जनित रोगोंल बेमौत मारी जानी जबकि छै लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप ल  धूम्रपान क शिकार है जानी | वर्ष १९८९ में विश्व स्वास्थ्य संगठनल एक प्रस्ताव पास करि बेर हर साल ३१ मई हुणि तमाकु निषेध दिवस मनै बेर  जनजागृति करणक निर्णय ल्हेछ | य दिन हर साल एक नयी नार दिई जांछ | वर्ष २०१६ क लिजी नार छ – तम्बाकू रहित युवा ( tobacco free youth) जैक उद्देश्य छ नौजवानों में धूम्रपान कि लत रोकण |

     तमाकुक सबै उत्पादों में जो चार हजार रसायन हुनी उनु में कुछ यास जहरिल हुनी जैक वजैल सेवनकर्ता कैं नश हुंछ | जब लै यूं रसायनिक तत्वोंकि वीक खून में कमी ऐंछ उ तमाकु या धूम्रपान ढूँढण लागि जांछ | यूं जहरिल तत्वों में निकोटिन, टार और कार्बन -मोनो- आक्साइड मुख्य हिंछ  जो मनुष्य क लिजी भौत घातक हुनीं | तमाकु क सेवन ल हमूकैं शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक नुकसान हुंछ | हर रोज दस बटि पचास रुपै तक धूम्रपान पर खर्च करणी मैंस साल में आपणि  जेबाक चार हजार बटि बीस हजार रुपै तक भष्म करि द्यूंछ और बद्याल में गिच, मसुड़, गव, फेफड़ सहित शरीर क कएक अंगों में कैंसर जास भयंकर  रोगों क शिकार है जांछ |

     क्वे लै मैंस कोई नश, धूम्रपान, तमाकु, गुटखा, सुरती, खैनी, जर्दा, गांज, चरस, अत्तर, नश्वार क प्रयोग करण आपण मितुरों, दगडियों, सहपाठियों, सहकर्मियों, सहयात्रियों और संगत बटि सिखूँ | कुछ लोग त तमाकु -नश- धूम्रपान कैं महिमामंडित लै करनी | देवभूमि में ‘जागर’ में डंगरियों कैं ‘भंगड़ी’ क रूप में सुल्प या ह्वाक में तमाकु या चरस- गांज भरि बेर दिई जांछ, (अब शराब लै दिई जांरै) जैक य मतलब बतायी जांछ कि  डंगरिय में नश पी बेर आत्मज्ञान पैद हुंछ | कीर्तन मंडलि में लै सिगरट या सुल्प में भरि बेर ‘शिवजी की बूटी’ क नाम ल चरस पीई जैंछ जैकैं बाबाओं क खुलि बेर समर्थन और संरक्षण प्राप्त छ | यूं लोग खुद त पीनी और दुसार लोगों कैं लै अप्रत्यक्ष रूप ल नश पेउनी |

      क्वे बैठक या चौपाल में एक ठुलि चिलम (फरसी) में एक साथ कएक  लोग तमाकु दगाड़ में पीनी |  इनुमें अगर एक कैं लै टी बी (क्षय) ह्वली तो  चिलम दगाड में पीण ल सबू में फ़ैल सकीं | देवभूमि में बारातों में लै बीड़ी- सिगरट बड़ी शान ल बांटी जानीं | बरेतियों या घरेतियों कैं नाश्ता और भोजन क बाद एक ट्रे या थाइ में बीड़ी- सिगरट लै परोसी जानीं | मुफ्त में मिलनी तो सबै पीनी | नान लै लुकि-लुकि बेर पीनी | नि पिणी लै गिच पर लगै ल्हिनी | ‘मुफ्त क चन्दन घैंस म्यर नंदन’ वालि कहावत क प्रैक्टीकल देखण में औंछ | यसिकै मजाक में या मुफ्त में हाम धूम्रपान करण सिखि जानूं |

       धूम्रपानक विरोध में आयोजित एक जनजागृति कक्षा में कुछ लोगोंल पुछौ, “सर भोजन करण बाद एकदम धूम्रपान क चटांग या हुड़क क्यलै उठीं?” यह सवाल सही छ | यस अक्सर हुंछ | धूम्रपान करणियांक खून में    निकोटिन जब तक एक निश्चित मात्रा में रांछ, उनुकैं क्ये लै परेशानी नि हुनि | भोजन करते ही उनर खून में निकोटिन क स्तर घटण फै जांछ क्यलै कि  निकोटिन कैं कल्ज (लीवर) निष्क्रिय करि द्यूंछ और भोजन क पश्चात लीवर में खूनकि बढ़ोतरी हुण फै जींछ | लीवर में ज्यादै खून पुजण क वजैल उमें  निकोटिन क स्तर निष्क्रिय हुण फै जांछ और धूम्रपान करणी कैं परेशानी अर्थात निकोटिन कि जरवत महसूस हुण फै जींछ ज्येक वजैल उ भोजन क तुरंत बाद धूम्रपानक लिजी या तमाकु या गुट्ख (या अन्य नशा) क लिजी तड़फण फै जांछ | 

     य विषय भौत ठुल छ | बात ख़तम करण चानू | जब जागो तब सवेरा | अगर आपूं, आपण क्वे मितुर, परिजन, संबंधी, सहकर्मी या कोई अनजान आपूं कैं धूम्रपान करते या गुटखा- तमाकु खाते हुए नजर ऐ जो तो एक बार विनम्रता क साथ जरूर कौ, “आपण कल्ज नि फुक, फेफड़ में छेद नि कर,   कैंसर कैं नि बला, आपण शरीर नि सुखा, ख़म-ख़म करनै हूं त्यार आंख वड्यार न्हैगीं, आपण नान और घरवाइ क उज्यां चा |” धूम्रपान क सेवन करणी या गुट्ख खणी एक ता जरूर सोचल | मील प्रयास करौ और कतुक्वा कैं नश है मुक्ति मिलि गे | एक ता आपूं लै करि बेर देखो त सही, भौत भल लागौल ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
३१.०५.२०१९

Wednesday 29 May 2019

Jansnkhy niyantaran : जनसंख्या नियंत्रण

बिरखांत - 265 :  जनसंख्या नियंत्रण बहुत जरूरी

     जनसंख्या नियंत्रण पर वार्ता बहुत जरूरी है और नीति निर्माण भी जरूरी है । लड़के की चाह आज भी कई जगह सर्वोपरि है । लड़कियाँ पैदा होने से पहले ही क्यों मार दी जाती हैं ? जन्मी हुई बेटियां हमें भार क्यों लगती हैं ? हम पुत्रियों की तुलना में पुत्रों को अधिक मान्यता क्यों देते हैं ? हमें बेटा ऐसा क्या दे देगा जो बेटी नहीं दे सकती ? बेटे को चावल और बेटी को भूसा समझने की सोच हमारे मन-मस्तिष्क में क्यों पनपी ? इस तरह के कई प्रश्नों का उत्तर हमें अपनी दूषित -संकुचित मानसिकता एवं कथनी- करनी में बदलाव लाकर स्वत: ही मिल जाएगा |

      ‘लड़की ससुराल चली जायेगी, लड़का तो हमारे साथ ही रहेगा और सेवा करने वाली दुल्हन के साथ खूब दहेज़ भी लाएगा, जबकि लड़की को पढ़ाने में, फिर उसके विवाह में खर्च होगा और मोटा दहेज़ भी देना पड़ेगा | इतना धन कहां से आएगा ? दहेज़ का ‘स्टैण्डर्ड’ भी बढ़ चुका है | इससे अच्छा है दो-चार हजार ‘सफाई’ के दे दो और लाखों बचाओ | फिर बेटा तो सेवा करेगा, वंश चलाएगा, मुखाग्नि और पिंडदान देगा तथा श्राद्ध भी करेगा | लड़की किस काम की ?’ इस तरह की मानसीकता ने ही आज यह सामाजिक समस्या खड़ी कर दी है | कसाई बने चिकित्सकों को दोष भलेही दें परन्तु वास्तविक दोषी तो माता-पिता या दादा-दादी हैं जो दबे पांव कसाइयों के पास जाते हैं |

       पुत्र लालसा ने जनसँख्या के सैलाब को विस्फोटक बना दिया है | बढ़ती जनसंख्या में विकास ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसे लगने लगा है | शिक्षा के प्रसार से लोग इस बात को समझ रहे हैं कि लड़का- लड़की जो भी हो संतान दो ही काफी हैं | आज भी हमारे देश में एक आस्ट्रेलिया की जनता के बराबर जनसख्या प्रतिवर्ष जुड़ती जा रही है | ग्रामीण भारत तथा शहर के पिछड़े तबके में जनसँख्या वृद्धि अधिक है | हमें एक दोष जनसंख्या नीति अपनानी ही होगी जिसमें दो संतान के बाद ग्राम सभा से लेकर संसद तक की सभी सुविधाएं वंचित होनी चाहिए | पड़ोसी देश चीन ने नीति बनाकर ही जनसँख्या पर नियंत्रण कर लिया है |

       जनसँख्या नियंत्रण के आज कई तरीके हैं परन्तु अवैध शल्य  चिकित्सा द्वारा भ्रूण हत्या में महिला को पीड़ा के साथ –साथ बच्चेदानी के अंदरूनी पर्त के क्षतिग्रस्त होने की संभावना भी रहती है | उस समय गर्भ से छुटकारा पाने की जल्दी में ऐसी महिलाओं को वांच्छित पुनः गर्भधारण करने में रुकावट हो सकती है | क़ानून के अनुसार लिंग बताना तथा भ्रूण ह्त्या  करना अपराध है | कुछ ‘कसाइयों’ को इसके लिए दण्डित भी किया जा चुका है |

     दुख की बात तो यह है की अशिक्षित एवं गरीबों के अलावा संपन्न लोग भी लड़के के लिए भटक रहे हैं | काश ! इन लोगों को पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आकाश की ऊँचाइयों को छूने वाली अनगिनत महिलायें नजर आती तो शायद ये अपनी बेटियों के साथ कभी अन्याय नहीं करते और दो बेटियों  के आने के बाद किसी लाडले की प्रतीक्षा में परिवार नहीं बढ़ाते | रियो से 2016 में ओलम्पिक दो पदक लाने वाली सिंधु- साक्षी सबके सामने हैं | 18वें एशियाड में भी लड़कियों ने कई पदक जीते ।

      अब समय आ गया है कि हम देश की जनसंख्या नियंत्रण के बारे में गंभीरता से सोचें ।  "चार बेटे पैदा करो । एक इसको दो, एक उसको दो, एक को साधु बनाओ और एक को सेना में भेजो" जैसे बयानों पर लगाम लगे और एक जनसंख्या राष्ट्रीय नीति बने जो सभी देशवासियों पर समरूपता से लागू हो ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.05.2019

Tuesday 28 May 2019

Kargil yudfh : कारगिल युद्ध

खरी खरी - 435 :कारगिल युद्ध की याद

          कारगिल युद्ध ( 1999)  जिसमें हमारे पांच सौ से अधिक सैनिक शहीद हुए उस मुशर्रफ की देन थी जो इस युद्ध से पहले भारत आया था और ताजमहल के सामने अपनी बेगम के साथ बैठ कर फोटो खिचवा कर चला गया | देश के सभी तांत्रिकों ने उस पर मिलकर कोई तंत्र क्यों नहीं किया ? हमारी सीमा पर वर्ष 1989 से अब तक आये दिन उग्रवादी घुसपैठ करते आ रहे हैं | विगत 30 वर्षों में उग्रवाद के छद्म युद्ध में हमारे हजारों सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं |

     देश के सभी ज्योतिषी, ग्रह- साधक, तंत्र विद्या और काला जादू में स्वयं को माहिर बताने वाले इस पाक प्रायोजित छद्म युद्ध को क्यों नहीं रोकते और उग्रवादियों पर अपना प्रभाव क्यों नहीं दिखाते ? ये लोग थार के तप्त मरुस्थल में कभी एकाद बारिश ही करा देते | ये सब अंधविश्वास के पोषक हैं और अज्ञान के अन्धकार में डूबे लोगों को अपने शब्द जाल से लूटते हैं | दूसरे शब्दों में ये अंधभक्तों को उल्लू और उल्लुओं को अंधभक्त बनाते हैं |
(26 मई 1999 को कारगिल युद्ध की शुरुआत हुुई जो 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ ।)

कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के करीब 76 सैनिक शहीद हुए । ये विवाहित थे और कुंडली मिलाकर इनका विवाह हुआ था । 36 गुण मिले थे । फिर ये सैनिक पत्नियां विधवा क्यों हुई ? वैसे मैं शहीद सैनिक की पत्नी को सुहागन कहता हूं । शहीदी के कागज और पेंशन का पट्टा उसके सुहाग चिन्ह हैं । शहीद की पत्नी को कभी भी श्वेत वस्त्र नहीं पहने चाहिए । एक कदम आगे चलें तो कोई भी विधवा श्वेत वस्त्र न पहने, अपने पसंद के वस्त्र पहने क्योंकि विधुर तो श्वेत वस्त्र नहीं पहनता ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.05.2019

Bhasha भाषा

मीठी मीठी - 283 : आपणि भाषा सिखलाई कक्षा

       26 मई 2019  हैं आपणि भाषा सिखलाई कि कक्षा रत्तै 10 बजी बटि 11तक DPMI न्यू अशोक नगर नई दिल्ली में लागी जां शिक्षक छी पूरन चन्द्र काण्डपाल (कुमाउनी भाषा ) और दिनेश ध्यानी ज्यु  (गढ़वाली भाषा ) ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.05.2019

Monday 27 May 2019

Lokarpan: लोकार्पण गढ़वाली कविता संग्रह

मीठी मीठी - 284 : गढ़वालि कविता संग्रह 'ज्यू त ब्बनु च' लोकार्पण

      बेई 26 मई 2019 हुणी डी पी एम आईं नई दिल्ली में अनूप सिंह रावत रचित गढ़वालि कविता संग्रह ' ज्यू त ब्बनु च' क लोकार्पण हौछ । य कविता संग्रह में 52 कविता छीं । सबै कविता उत्तराखंड धरातल दगै जुडी़ हुई छीं । कुछ कविता तो वास्तव में दिल तक पुजनी जस कि - मनख्यात, बेटी, मेरि मां जी, पहाड़ मा, उत्तराखंड, दहेज प्रथा, घस्यारी, पहाड़ा की नारी आदि ।

      अनूप सिंह रावत के कूं रईं - "भौत बार लोग पुछदा छन कि आप कैं बिधा मा  ल्यखदवा  ? मी हमेशा यु ही बोलदू कि म्यारा मन मा जब बि क्वी विचार ऐ जांद त वै थैं ही लेखि देंदु । मी कैं बि खास बिधा मा नि लेखुदु, मी त सिर्फ मनो भाओं थैं शब्द दीणा  की कोशिश करुदु अर वा ही कोशिश आज किताब का रूप मा आपका हाथ मा छ ।"

        उम्मीद छ  कविता संग्रह में  छपी सबै कविता पाठकों कैं भाल लागाल । अनूप रावत एक होनहार और सृजनशील मनखी छीं । विगत कुछ वर्षों बटि उनार कविता लै हम सुणते ऊं रयूं । लोकार्पण कार्यक्रम में डा बछेती समेत करीब 12 वक्ताओंल विचार प्रकट करीं  तीस कवियोंल कविता पाठ करौ । मंच संचालन दिनेश ध्यानी ज्यु और संदीप रावत ज्यूल क रौ ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.05.2019

Dahej : दहेज

मीठी मीठी - 282 : दहेज से नफ़रत करो

    'दहेजलोभी परिवार ने दहेज नहीं मिलने पर बारात वापस गई या थाने पहुंच गई', हम आए दिन इस तरह के समाचार सुनते हैं । दहेज नहीं लेने की बात तो सब करते हैं परंतु परोक्ष रूप से दहेज के लिए दबाव भी डालते हैं । कुछ दूल्हे कहते हैं 'जो दोगे अपनी बेटी को दोगे, मुझे कुछ नहीं चाहिए' और दहेज स्वीकार कर लेते हैं ।

      बैतूल (म प्र) में विगत वर्ष एक दूल्हे ने दहेज में दिया हुआ सामान लेने से इनकार कर दिया । विवाह गायत्री परिवार से जुड़े रीति-रिवाजों के साथ हुआ । सभी लोग दूल्हा-दुल्हन के लिए उपहार लाये थे लेकिन दूल्हे ने दहेज में आये कपड़े, गहने और बर्तन सहित सभी सामान लेने से इनकार कर दिया और एक रुपया भी नहीं लिया । दूल्हा बोला, "मेरे लिए दुल्हन ही सबकुछ है, दहेज व्यर्थ है ।" 

      अंत में दूल्हे के आग्रह को मान लिया गया और बिना दहेज के दुल्हन की खुशी खुशी विदाई हुई । आशा है  हमारे समाज में गहरी जड़ जमाई दहेज प्रथा को उखाड़ने के लिए अविवाहित युवक इस उदाहरण से कुछ तो सीखेंगे । कुछ दूल्हे तो अवश्य ही इस मार्ग पर चलेंगे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.05.2019

Friday 24 May 2019

Chakshu patte mukhe mahaw -चक्षु पट्टे मुखे महाव

खरी खरी- 434: चक्षु पट्टे - मुखे महाव 

     हमने उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों से हमेशा अपील करी कि कुछ सिद्धांतों को लेकर चलें । उत्तराखण्डी लोग तो सिद्धान्त, नैतिकता और ईमान के खातिर खेत छोड़ देते हैं, आगन- पटागण- खव- गुट्यार छोड़ देते हैं । सभी नेताओं से पुनः अपील है कि अपने- अपने हाई कमान से राजधानी गैरसैण की बात करो और राज्य की अस्थाई राजधानी को देहरादून के दड़बे निकाल कर उत्तराखंड के मध्य गैरसैण ले जाओ ।

      आज कुमाऊँ केसरी बद्रीदत्त पांडे होते या वीर चंद्र सिंह गढवाली होते तो यह काम सन 2000 में ही हो गया होता । क्या कर रहे हैं हमारे 5+ 3 +70= 78 चुने हुए प्रतिनिधि ?  आन्ध्र- तेलंगाना वालों से कुछ तो सीखो मित्रो । कुर्सी मोह में चक्षु पर पट्टा और मुंह पर महाव मत लगाओ । पहाड़ का ऋण चुकाओ और राजधानी गैरसैण बनाओ ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

25.05.2019

Thursday 23 May 2019

Prajaatantrki jeet : प्रजातंत्र कि जीत

मीठी मीठी- 281 : प्रजातंत्रकि जीत

         23 मई 2019 हुणि 17उं लोकसभाक चुनाव परिणाम घोषित है गईं । जीत प्रजातंत्रकि हैछ । देश मतदाताओंल स्पष्ट जनादेश दि बेर केंद्र में एक मजबूत सरकार स्थापित करि है । य भारतकि मतदाताकि जीत छ। अब सरकार कैं जनताकि आशाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं पर खर उतरण पड़ल और आपण संकल्प पत्र में करी वैदों पर काम करण पड़ल । अगर यस है सकल तो तबै यकैं जनताकि जीत समझी जाल ।  प्रजातंत्र में सरकार क दगाड़ विपक्षकि लै भौत ठुलिकी भूमिका हिंछ । विपक्ष कैं जनादेश स्वीकार करते हुए आपणि भूमिका निभूण पर जोर दीण पड़ल और जनताकि आवाज कैं सरकार तक  उरातार भलीभांत पुजूण पड़ल ।

     सवाल य न्हैति कि को जितौ और को हारौ ?  आठ हजार है ज्यादै उम्मीदवार चुनाव में छी और 542 चुनाव जितीं । सबै जिती हुई सांसदों कैं शुभकामनाएं और बधाई और हारी हुई उम्मीदवारों कैं लै शुभकामना किलैकि उनुकैं लै देशक मतदाताओंल वोट दे भलेही उनर वोट प्रतिशत कम रौ । जिती हुई सांसदों हैं बै उम्मीद छ कि ऊँ जनता कैं निराश नि कराल । जनता कैं य बातल फरक नि पड़न कि सरकार को दल कि छ, जनता कैं य बातल फरक पड़ूं कि शासन -प्रशासन वीक और देशाक हित में गतिमान रौण चैंछ ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.05.2019

Prajatantr kee jeet : प्रजातंत्र की जीत

मीठी मीठी- 281 : प्रजातंत्र की जीत

         23 मई 2019 को 17वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम घोषित हो गए । जीत प्रजातंत्र की हुई । देश के मतदाताओं ने स्पष्ट जनादेश देकर केंद्र में एक मजबूत सरकार स्थापित कर दी । यह भारत के मतदाता की जीत है । अब सरकार को जनता की आशाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा और अपने संकल्प पत्र में किये गए वायदों पर कार्य करना होगा। यदि ऐसा हो सका तो तब ही इसे जनता की जीत समझा जाएगा।  प्रजातंत्र में सरकार के साथ विपक्ष की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है । विपक्ष को जनादेश को स्वीकार करते हुए अपनी भूमिका निभाने पर जोर देना होगा और जनता की आवाज को सरकार तक लगातार बड़ी सुदृढ़ता से पहुंचाना होगा ।

     सवाल यह नहीं है कि कौन जीता और कौन हारा ?  आठ हजार से अधिक उम्मीदवार चुनाव में थे और 542 को ही जीतना था, सो जीत गए । सभी जीते हुए सांसदों को शुभकामनाएं और बधाई तथा पराजित हुए उम्मीदवारों को भी शुभकामना क्योंकि उन्हें भी तो देश के मतदाता ने चाहा है भलेही उनका वोट प्रतिशत कम रहा । जीते हुए सांसदों से उम्मीद है कि वे जनता को निराश नहीं करेंगे । जनता को इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि सरकार किस दल की है, जनता को इस बात से फर्क पड़ता है कि शासन -प्रशासन किस तरह से उसके और देश के हित में गतिमान है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.05.2019

Wednesday 22 May 2019

Aapni bhasha : आपणि भाषा

मीठी मीठी -280 : याँ सब आपणि भाषा में बलानी

     अच्याल कुछ दिनां लिजी केरल राज्यक इडडूकि ज़िल्ल में नना दगै जै रयूं । भौत भलि जागि छ और उत्तर भारत है मौसम लै कुछ कम गरम छ याँ । याँ हमूकैं सिर्फ भाषा सम्बन्धी तकलीफ हैछ । याँ सब लोग आपणि भाषा मलयालम में बलानी । मलयालम है अलावा क्वे दुसरि भाषा याँ क्वे निसमझन । दुकानदार लोग टुटिफुटी अंग्रेजी में बलानी । अधिकांश साइनबोर्ड लै मलयालम छीं । यांक लोगों कैं देखि मिकैं आपण लोगोंकि भौत याद ऐछ जो जानकारी होते हुए लै आपणि भाषा में नि बलान । अल्माड़ में जै दगै लै आपणि भाषा कुमाउनी में बात करी  वील हिंदी में जबाब दे जबकि उ कुमाउनी भाषाक जानकार छी । दिल्ली में लै कुछ लोगों कैं छोड़ि बेर सबै आपणि भाषा में बात नि करन । यूं लोगों कैं आपणि भाषा बलाण में शरम लागीं ।

       म्यर सबै लोगों हुणि निवेदन छ कि हमूल आपणि भाषा में बलाण चैंछ । क्वे दुसरि भाषा दगै बैर न्हैति ।  हमर यतुक्वे कूण छ कि तुम दुनियकि क्वे लै भाषा सिखो पर आपणि भाषा नि भुलो । अगर हम आपणि भाषा भुलि गया तो फिर हमरि उत्तराखंडी हुणकि पछ्याण मिट जालि । अगर हमरि भाषा व्यवहार में नि रौली तो एक दिन य लै लुप्त है जालि । जब भाषा लुप्त हिंछ तो सभ्यता, संस्कृति और पछ्याण लै लुप्त है जींछ ।

     इडडूकि ज़िल्लक एक गौं 'राजक्कड' में एक परिवार दगै लै मिलूं पर यूं म्ये दगै बात नि कर सक । इनरि कक्षा सात में पढ़णी च्येलि म्ये दगै द्वि आंखर अंग्रेजी में जरूर बलै । उम्मीद छ हमार लोग जरूर आपणि भाषा में बलाल । हमरि भाषा में लेखी किताब म्यर पास मौजूद छीं । हमरि भाषाक किताबोंकि, लेखक, कवि और साहित्यकि कमी न्हैति । बस एक बात मंथन करणकि जरवत छ कि हमूकैं आपणि 1100 वर्ष पुराणि भाषा बलाण में शरम किलै लागीं ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.05.2019
राजक्कड, केरल राज्य

Sherda anapadh शेरदा अनपढ़

मीठी मीठी-279 : शेरदा 'अनपढ़' क राम-राज

     शेरदा कि पुण्यतिथि 20 मई हुणि छी । श्रद्धांजलि दीण में देर हैगे । आज कि मीठी मीठी सुप्रसिद्ध कुमाउनी कवि शेरसिंह बिष्ट 'शेरदा अनपढ़' कैं समर्पित छ । शेरदा कैं विनम्र श्रद्धांजलि । शेरदा दगै मंच पर भैटण कयेक ता मौक मिलौ । अल्माड़ बै प्रकाशित हुणी कुमाउनी मासिक पत्रिका 'पहरू' (संपादक डॉ हयात सिंह रावत) क अंक जून-2017 में छपी उनरि कविता 'राम-राज ' पर एक नजर -

तिरंग रंगी रौ
सौ रंग में आज,
ढडू खानईं जाम पुंजि
बंढाडु खानईं ब्याज,
खान खानै फिर लै
रकसी रईं आज,
त्यार-म्यार हिस्स ददा
लूण दगै प्याज,
ओ शेरदा
यै छु राम-राज ।

(शेरदा 03.10.1933-20.05.2005)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.05.2019
इडडूकि, केरल

Chakshu daan : चक्षु-दान

मीठी मीठी - 278 : किसी को रोशनी देदो जग से जाते समय

      जग से जाते समय किसी को को हम रोशनी कैसे दे सकते है ? इस पर थोड़ा सा मंथन बहुत आवश्यकीय है । मृत्यु के बाद आँख की एक झिल्ली (कार्निया) का दान होता है । लोग मृत्युपरांत नेत्रदान इसलिए नहीं करते क्योंकि वे सोचते हैं मृतक के आंखों पर गढ्ढे पड़ जाएंगे । मृतक के चेहरे पर कोई विकृति नहीं आती । हमारे देश में लगभग 11 लाख दृष्टिहीन कार्निया की प्रतीक्षा कर रहे हैं और प्रतिवर्ष लगभग 25 हजार दृष्टिहीनों की बढ़ोतरी भी हो रही है ।

     कार्निया आंख की पुतली के ऊपर शीशे की तरह एक पारदर्शी झिल्ली होती है । कार्निया का कोई कृत्रिम विकल्प नहीं है । एक नेत्रदान से दो दृष्टिहीनों को रोशनी मिल सकती है । किसी भी मृतक का नेत्रदान हो सकता है भलेही वह चश्मा लगता हो, शूगर केस हो, मोतियाबिंद ऑपरेटेड हो अथवा उच्च रक्तचाप वाला हो । मृतक के आंखों पर तुरंत एक साफ कपड़े की गीली पट्टी रख देनी चाहिए ताकि कार्निया सूखे नहीं ।

      कैसे होगा नेत्रदान ?  परिवार के सदस्य अपने मृतक का नेत्रदान कर सकते हैं । मृत्यु के 6 से 8 घंटे के दौरान नेत्रदान हो सकता है । सूचना मिलते ही नेत्रबैंक की टीम बताए स्थान पर आकर यह निःशुल्क सेवा करती है । 15- 20 मिनट में मृतक का कॉर्निया उतार लिया जाता है । नेत्रदान एक पुण्यकर्म है । इस पुण्य की चर्चा परिजनों से करनी चाहिए और नेत्रदान में कोई संशय नहीं होना चाहिए । याद रखिये -

आंख चिता में जाएगी
तो राख बन जाएगी,
आंख कब्र में जाएगी
तो मिट्टी बन जाएगी,
यहां से विदा लेते समय
नेत्रों का दान करदो,
किसी को अंधकार में
रोशनी मिल जाएगी ।

(नेत्रदान के लिए कृपया 8178449226 /011-23234622 गुरु नानक नेत्र केंद्र नई दिल्ली से संपर्क किया जा सकता है ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.05.2019

Ganga : गंगा

खरी खरी- 431 : गंगा पुछैं रै सवाल ?

मिहुणि गंगा मैया
लै कूं रौछा,
सबूं हैं गंगा गंदी
हैगे लै कूं रौछा,
गंद नालों कैं
म्ये में बगों रौछा,
मुर्द म्यार किनार
पर भडूँ रौछा,
मरी जानवर म्ये
में लफाऊँ रौछा,
धोबीघाट म्यार
किनार खोलें रौछा,
विसर्जन क नाम पर
म्ये में कुड़-कभाड़
लफाउं रौछा,
पै दिखाव कि बात केक
लिजी करैं रौछा ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.05.2019

Saturday 18 May 2019

Ganga ke sawaal : गंगा पुछै रै सवाल ?

खरी खरी- 431 : गंगा पुछैं रै सवाल ?


मिहुणि गंगा मैया

लै कूं रौछा,

सबूं हैं गंगा गंदी

हैगे लै कूं रौछा,

गंद नालों कैं

म्ये में बगों रौछा,

मुर्द म्यार किनार

पर भडूँ रौछा,

मरी जानवर म्ये

में लफाऊँ रौछा,

धोबीघाट म्यार

किनार खोलें रौछा,

विसर्जन क नाम पर

म्ये में कुड़-कभाड़ 

लफाउं रौछा,

पै दिखाव कि बात केक

 लिजी करैं रौछा ?


पूरन चन्द्र काण्डपाल

19.05.2019


Friday 17 May 2019

Press nishpakshta : प्रेस निष्पक्षता

खरी खरी - 430 : प्रेस की निष्पक्षता

      प्रेस स्वतंत्रता की स्वतंत्रता बनी रहे और प्रेस बेझिझक अपनी बात कहे तथा प्रेस की गुणवत्ता एवं उस पर विश्वास बना रहे ।  प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते निडर, निर्भीक और निष्पक्ष बना रहे तभी हमारे देश का हित होगा और प्रजातंत्र मजबूत रहेगा ।

     वर्तमान में कई बार हम देखते हैं कि प्रेस निष्पक्ष नहीं होती । हमने हाल का  चुनाव प्रचार देखा । ऐसा लग रहा था कि प्रिंट और दृश्य-श्रवण मीडिया कई बार प्रायोजित प्रचार कर रहा है । साक्षात्कारों में मन चाहे प्रश्न पूछे या पुछवाये जा रहे हैं । किसी दल की बात अधिक तो किसी की कम होती है । कार्टून के माध्यम से भी जो बात कही जाती है उसमें कई टीवी चैनलों द्वारा एकतरफा बात कही जाती है अर्थात दूसरे दल या व्यक्ति का उपहास किया जाता है । स्पष्ट दिखाई देता है कि चैनल एकतरफा पक्षकार हो गया है ।

     प्रेस की स्वतंत्रता का मूल मंत्र है निष्पक्षता । हम आशा करते हैं कि हमारे देश की प्रेस स्वतंत्र रहे, अपनी नैतिकता समझे, अपनी आचार संहिता बनाये और राष्ट्रहित में अपना कर्तव्य निभाये । साथ ही जो समाचार पत्र या मीडिया चैनल जेबी बन गए हैं वे जेब से बाहर आकर जनहित में कार्य करें और किसी एक के दब्बू बनकर न रहें । यदि मीडिया दब्बू बन कर रहा तो लोग दुखित -व्यथित होकर कहेंगे कि हमारे देश की प्रेस और मीडिया बिक गए हैं  ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.05.2019