खरी खरी -54 : मसमसै सब रईं
मसमसै सब रईं
जोरै ल क्वे क्ये नि कूं रौय,
आपणि आपणि है रै
क्वे कैकि नि सुणै रौय ।
आब नानतिन लै
आपण मना क हैगीं
जता जौस मन औंछ
उता उस करैं फैगीं,
मै बाप कैं हर बखत
बाघ जौस देखैं फैगीं,
समझूण में कै दिनी
तुमार बात पुराण हैगीं,
बाव कैं दे भुलिगो
बुड़ आब रै नि गौय ।
मसमसै....
मसाण - जागर मैं
सब डुबि रईं,
गणतू - पुछ्यारूं क
पिछलगू बनि गईं,
गांठ- पताव ताबीजों क
माव जपैं रईं,
बकार - कुकुड़ खां रीं
परया जेब काटैं रईं,
अंधविश्वास में डुबि रीं
क्वे कै कं नि रोकैं रौय,
मसमसै सब रईं
जोरै ल क्वे क्ये नि कूं रौय ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.07.2017
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