Wednesday 29 August 2018

Patthar naheen, khel : पत्थर नहीं खेलें खेल

बिरखांत -227 : पत्थर नहीं, खेल खेलें

     उत्तराखंड में पुरातन परम्पराएं आज भी  जड़ जमाये हैं | बड़ी मुश्किल से पशु-बलि प्रथा अब कम हो रही है लेकिन चोरी-छिपकर खुकरी- बड्याठ अब भी चल रहे हैं | देवालयों में रक्तपात बहुत ही घृणित कृत्य हैं परन्तु जिन लोगों ने इसे उद्योग बना रखा है उनके बकरे बिक रहे हैं | जेब किसी की  कटती है और पिकनिक कोई और मनाता है | हम किसी से शिकार मत खाओ नहीं कह सकते परन्तु देवता- मसाण- हंकार के नाम पर किसी की जेब काटना जघन्य पाप ही कहा जाएगा | मांसाहार के लिए बुचड़ के दुकानें गुलज़ार तो हैं ही |

   परम्परा के नाम पर उत्तराखंड में आज भी मानव –रक्त बहाया जाता  है  | प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के दिन जिला चम्पावत में वाराहीधाम देवीधुरा के खोलीखाड़- दूबाचौड़ मैदान में पत्थरों की बारिश होती है । भलेही इस वर्ष इसे फूलों की वर्षा का रूप देने की कोशिश हुई फिर भी कुछ कम पत्थर वर्षा हुई और कई लोग घायल हो गए । एक दूसरे पर पत्थर बरसाने वाले चार खामों के लोग बड़े जोश से मैदान में कूद पड़ते हैं | इस पत्थरबाजी को बग्वाल भी कहा जाता है | अपराह्न में मदिर के पुजारी की शंख बजाते ही पत्थरबाजी शुरू होती है जो कुछ मिनट तक पत्थरों की वर्षा से कई लोगों का खून बहने लगता है | जब पुजारी को यकीन हो जाता है कि एक व्यक्ति के खून के बराबर रक्तपात हो चुका है तो वे युद्ध बंद करा देते हैं  | इस युद्ध में दर्शकों सहित कई व्यक्ति घायल होते हैं जिनका बाद में उपचार किया जाता है |

     यह परम्परागत पाषाण युद्ध वर्षों से चला आ रहा है | इसी प्रकार का पत्थर युद्ध जिला अलमोड़ा के ताड़ीखेत ब्लाक स्तिथ सिलंगी गाँव में भी वर्षों पहले बैशाख एक गते (14 अप्रैल ) को प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता था जिसमें स्थानीय लोगों की दो टीमें ‘महारा’ और ‘फर्त्याल’ भाग लेती थीं | सूखे गधेरे में एक स्थान (खइ ) तय किया जाता था जिसे पत्थरों की वर्षा के बीच हाथ में ढाल लेकर पत्थरबाज छूने जाते थे | जो इस स्थान पर पहले पहुँच जाय उसे विजेता माना जाता था | यहाँ भी कई लोग घायल होते थे जिनका उपचार किया जाता था या खाट में डाल कर रानीखेत अस्पताल में ले जाया जाता था |

     पत्थरबाजी से खून बहाने को ‘देवी को खुश करने’ की बात मानी जाती थी | लगभग 20वीं सदी के 5वें दसक ( 60-65 वर्ष पहले ) के दौरान नव-युवकों ने इस पाषण युद्ध को बंद करवा दिया और उस स्थान पर झोड़े  (खोल दे देवी, खोल भवानी, धारमा केवाड़ा ...आदि ) गाये जाने लगे | अब झोड़े भी बंद हो गए हैं क्योंकि कौतिक एक नजदीकी स्थान पर होने लगा है, झोड़े वहीं होने लगे हैं | पत्थरमार युद्ध बंद होने से न कोई रोग फैला और न कोई अनहोनी हुई जैसा कि पुरातनपंथी भय दिखाकर प्रचारित करते थे |

   चम्पावत की इस पत्थरबाजी के खून –खराबे में भाग लेने वाले जोश से सराबोर खामों को आपस में मिल-बैठ कर सर्वसम्मति से इस पाषाण युद्ध को बंद करवाना चाहिए | इसकी जगह कोई खेल की टूर्नामेंट आरम्भ की जानी चाहिए जिसमें चार खामों की चार टीम या अन्य स्थानीय टीमें भाग लें और साथ में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करायें | पुरस्कार के लिए ट्रॉफी रखें |  ऐसा करने से उत्तराखंड में खेलों को प्रोत्साहन भी मिलेगा | हमें समय के साथ बदलना चाहिए।

      देश में पत्थरबाजी की कोई प्रतियोगिता नहीं होती | बग्वाल का जोश खेलों में परिवर्तित होना चाहिए | ‘देवी नाराज हो जायेगी’ का डर ग्राम सिलंगी में भी था जो एक भ्रम था | रुढ़िवाद को सार्थक कदम उठाकर और सबको साथ लेकर समाप्त करते हुए खेल भावना युक्त नूतन परम्परा आरम्भ करने की पहल होनी चाहिए | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.08.2018

Tuesday 28 August 2018

Sarvdaleey maafinama : सर्वदलीय माफीनामा

खरी खरी-298 : सर्वदलीय माफीनामा

      जिस तरह लोकसभा का कोई भी सत्र आरम्भ होने से पहले सदन के अध्यक्ष एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाते हैं और सबसे सदन को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग की अपील करते हैं उसी तर्ज पर एक बार इस देश में एक सर्वदलीय माफी आयोजन भी होना चाहिए । देश को आजाद हुए 71 वर्ष हो गए हैं । हमारे राजनैतिक दल मुद्दों को रपटाने- भटकाने के लिए एक दूसरे से अमुक दंगे की माफी मांगने के बारे में कहने लगते हैं और मुद्दा भटक जाता है ।

       इस समस्या से निजात पाने के लिए सभी दल सर्वसम्मति से एकत्र होकर एक बार आजादी से लेकर कैराना (2017) तक के सभी दंगों की मिलकर माफी मांग लें । इसमें 1947 के बाद के सभी दंगों की बात हो जिसमें 1984 के दंगे, 2002 के गुजरात दंगे, मेरठ, मुरादाबाद, मिर्चपुर के दंगे, मोब लिंचीग के दंगे , बिहार- उ प्र- महाराष्ट्र सहित सभी राज्यों के नाना प्रकार के दंगे शामिल कर लिए जाने चाहिए ताकि देश को बार बार इन दंगों की चर्चा से निजात मिल सके ।

     माफीनामा आयोजन के अंत में समझौता हो कि आज से देश में कोई अमुक दंगे की माफी की बात नहीं करेगा और देश में आगे दंगे न हों इस तरह का विष वमन नहीं करेगा । साथ ही अपने अपने दल के प्रवक्ताओं को भी दंगों की बात टीवी चैनलों पर नहीं करने की हिदायत देगा ताकि जनता को इस माफी मांगो जैसी कुचैली बहस से मुक्ति मिले और अपने टी वी बन्द न करने पड़ें ।उम्मीद है सभी दल इस मुद्दे पर एक राय शीघ्र बनाएंगे ताकि आने वाले चुनाव दंगा-माफी मांगो बहस से मुक्त रहें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.08.2018

Monday 27 August 2018

Jail mein rakhiyan kaun? :जेल में राखियां कौन ?

खरी खरी - 297 : ये राखियां कौन भेज रहा है ?

     समाचार है कि जेलों में बंद पाखंडियों के नाम राखियों के थैले भेजे गए हैं । ये राखियां एक सोची -समझी रणनीति के आधार पर स्लीपिंग सेल में बैठे पाखंडी भेजते हैं । पाखंड का एक बहुत बड़ा जाल है । यह एक चेन है जिसमें महिलाओं को एक -एक कर भंवर में फंसाया जाता है । बाद में वह ब्लैक मेल की जाती है और नया मैम्बर फंसाना उसकी मजबूरी हो जाती है । बस फिर एक के बाद एक फंसते चले जाते हैं ।

      पाखंडी के दो रूप हैं , एक समाज सेवा का और दूसरा गुफा का । गुफा वाले रूप को देख सब जानकर भी चुप रहने पर मजबूर होते हैं क्योंकि नेस्तानाबूद करने की धमकी सामने होती है । इस धमकी के आगे कोई टिक नहीं पता । यदि दो महिलाएं हिम्मत नहीं करती तो सिरसा का पाखंडी जेल नहीं जाता । इतने बड़े मगरमच्छ से लड़ना आसान नहीं था । इसलिए उनके अद्भुत साहस की जितनी प्रशंसा की जाय वह कम  है ।

     महिलाएं कृपया इस जाल को समझें और अपनी छोटी छोटी समस्याओं को पति के साथ मिलकर, थोड़ा संयम बरतकर सुलझायें । हमारा अहंकार (ego) हमें इन पाखंडियों के पास इस उम्मीद से ले जाता है कि शायद हमारी समस्या सुलझ जाय परंतु समस्या सुलझने के बजाय उलझती चली जाती है । 'रोजे छुटाने गए नमाज गले पड़ गई' एक पुरानी कहावत हमारी जिंदगी से लिपट जाती है ।

     हम सब का कर्तव्य है कि इन डेरों/आश्रमों की ओर मुखर हुए अपने परिचितों को दो मिनट का समय दें और इस सत्यता को समझाते हुए उन्हें इस दलदल में जाने से रोकें । यह हमारा देश और समाज के लिए किया गया एक राष्ट्रीय कर्तव्य कहा जायेगा । ( पुनःसंपादित लेख ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.08.2018

Sunday 26 August 2018

Charu chandr chandola: चारु चंद्र चंदोला

मीठी मीठी- 150 :  चारु चन्द्र चंदोला स्मृति सभा

    25 अगस्त 2018 को गढ़वाल भवन नई दिल्ली में दिवंगत पत्रकार-साहित्यकार चारु चन्द्र चंदोला की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई जिसका आयोजन उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली (संयोजक दिनेश ध्यानी जी), हिमवंत (चंद्र कुंवर बर्त्वाल स्मृति मंच- संयोजक डा केदारखंडी जी), उत्तराखंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कला मंच (पं) दिल्ली और उत्तराखंड आर्य समाज विकास समिति (पं) दिल्ली (महासचिव रमेश हितैषी जी) द्वारा किया गया । चंदोला जी का जन्म 22 सितम्बर 1938  को म्यांमार में हुआ था जो मूल रूप से पौड़ी के रहने वाले थे और उनका निधन 18 अगस्त 2018 को देहरादून में हुआ । उनका दाह संस्कार उनकी छोटी बिटिया ने किया ।

     चंदोला जी अनेक समाचार पत्रों में आलेख और कालम लिखते हुए "युगवाणी" के समन्वय संपादक बने और वर्षों तक इसकी सेवा में लगे रहे । साहित्य क्षेत्र में भी उन्होंने बहुत कार्य किया । उनकी प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख हैं, 'कुछ नहीं होगा', 'अच्छी सांस’, ‘चलते-चलाते’, ‘उगने ने दो दूब’, ‘बिन्सरि’, ‘पौ’, ‘कविता में पहाड़ आदि । चारु चंद्र चंदोला की लेखनी में पहाड़ हमेशा प्रमुखता में रहा। वे प्रमुख अखबारों में छपने वाले अपने कॉलम ‘सरग दिदा’ में पहाड़ के ज्वलंत मुद्दों को लेकर दहाड़ते थे, तो अपनी काव्य रचनाओं में उतनी ही सौम्यता से पहाड़ की सुंदरता का बखान भी करते थे । (साभार जगमोहन रौतेला जी)

     उत्तराखंड के कएक हिंदी, कुमाउनी और गढ़वाली कलमकारों और कवियों को हम जानते हैं जिनकी एक लम्बी सूची है और जो उत्तराखंड या उत्तराखंड से दूर निवास करते हैं । इनमें से कुछ दिवंगत हो गए हैं जिनकी जयंती या पुण्यतिथि यदाकदा कुछ साहित्य प्रेमी मनाते रहते हैं । जिस तरह चंदोला जी की स्मृति मनाने के लिए उक्त चार संस्थाएं आगे आईं उसी तरह कोई भी किसी भी महापुरुष की स्मृति में आयोजन कर सकता है और करते भी रहते हैं । हम यह कहना उचित नहीं समझते कि अमुक की याद आई और अमुक की याद क्यों नहीं आई ? इसमें किसी के लिए किसी प्रकार की बाध्यता नहीं है क्योंकि इस तरह की कोई आर्थिक सहयोग प्राप्त केद्रीय संस्था यहाँ नहीं है जो सभी दिवंगत महापुरुषों के स्मरण में आयोजन कर सके । यदि कोई व्यक्तिगत या संस्थागत तौर से किसी दिवंगत महापुरुष का स्मरण करता है या कोई अन्य साहित्यिक आयोजन करता है तो यह उत्तम बात होगी जिसे सामाजिक पुण्य कृत्य समझा जाएगा ।

     उक्त स्मृति सभा में करीब 60-70 सुजन आए थे जिनमें साहित्यकार, पत्रकार, कवि, राजनीतिज्ञ, संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा समाजसेवी थे और कई लोगों ने लगभग इस तीन घंटे के सायंकालीन आयोजन में अपने विचार व्यक्त किये । सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार ललित केशवान जी ने की और संचालन दिनेश ध्यानी जी ने किया । हम उक्त सभी आयोजकों का इस पुनीत कार्य के लिए  धन्यवाद करते हुए सभी आगन्तुकों का हार्दिक आभार प्रकट करते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.08.2018

Raksha bandhan : रक्षा बंधन

मीठी मीठी - 148 : आओ करें रक्षा बंधन

     आज 26 अगस्त 2018 को देश में रक्षा बंधन का पावन त्यौहार मनाया जा रहा है । इसे प्रमुख तौर से भाई - बहन का त्यौहार कहा जाता है । इस दिन भाई अपनी बहन को और बहन अपने भाई को अर्थात दोनों एक दूसरे को सुख- दुख में साथ देने तथा एक - दूसरे की रक्षा करने के बचन का पुनःस्मरण करते हैं और बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है ।  इस त्यौहार के बारे में पौराणिक परिदृश्य चाहे कुछ भी हो आज के दौर में यही सत्य और प्रासंगिक है ।

     रक्षा बंधन के दिन हमें अपने राष्ट्र और समाज की रक्षा की सपथ भी लेनी चाहिये । हमें अपनी सेना और सुरक्षकर्मियों के मनोबल को बढ़ाने की सपथ लेनी चाहिए । हमें अपने पर्यावरण को बचाने , स्वच्छता रखने, पेड़ और वन्य-जीवों सहित सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने की सपथ भी लेनी चाहिए । हमें जल बचाने, नदियों और जलस्रोतों को प्रदूषित होने से बचाने की भी सपथ लेनी  चाहिए ।

     इस पर्व पर हमें कन्याभ्रूण हत्या के विरोध में संकल्प लेना चाहिए । इन सबसे भी बढ़ कर हमें नारी के सम्मान की रक्षा करने और उसे अपमानित होने से बचाने की भी सपथ लेनी चाहिए । यदि हम ऐसा कर सके तो रक्षा बंधन के इस त्यौहार का महत्व हम सबके लिए और हमारे देश के लिए साथर्क हो जाएगा । सभी को रक्षाबंधन की शुभकामनाएं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.08.2018

Rapid promotion : रैपिड प्रमोशन

खरी खरी - 296 : रैपिड प्रोमोसन (द्रुत प्रोन्नति)

    आजकल सोसल मीडिया और कई मंचों पर कुछ लोग चिकनी -चुपड़ी, रंग-पुताई से भरपूर, विशेषण युक्त शब्दावली से बहुत ही द्रुत प्रोन्नति (रैपिड प्रोमोसन ) दे रहे हैं । बानगी देखिए -

अभी एक भी गीत नहीं गाया -
सुर सम्राट, लोक गायक

अभी संगीत का पता भी नहीं-
संगीतज्ञ, संगीत सम्राट

अभी कविता का ककहरा नहीं सीखा-
जन कवि, कवि शिरोमणि

अभी लेखन ने पुस्तक रूप नहीं धरा-
विख्यात लेखक, प्रसिद्ध साहित्यकार

रंगमंच में पहला कदम-
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी

मंच संचालन की वर्णमाला ज्ञात नहीं-
कुशल एवं श्रेष्ठ मंच संचालक

कला  औऱ अदाकारी से अनभिज्ञ-
सुप्रसिद्ध अदाकार, उत्कृष्ट कलाकार

समाज की कोई सेवा नहीं-
जाने-माने समाज सेवी

राजनीति में मुहल्ले में भी नहीं-
लोकप्रिय राजनेता, जन-नेता

भाषण में माफियागिरी-
विद्वान वक्ता

       मित्रो विशेषण जरूर लगाइए परन्तु ईमानदारी से खपने लायक हों, पचने लायक हों । इतनी अतिशयोक्ति भी मत करिए कि पीतल को सोना कह दो । बच्चे के चेहरे पर दाड़ी मत उगाइये, भद्दी लगेगी । आत्मप्रशंसा और स्वमुग्धा से हम आगे बढ़ने के बजाय पीछे रपट सकते हैं । अतः विशेषण देख-परख कर ही चस्पाइये ताकि पढ़ने, सुनने और समझने वालों को ये शब्द शिष्ट, सहज और सत्य लगें । अंत में यही कहूंगा -

'हम तो बदनाम हो गए
खरी खरी सुनाने में,
कह दो हम से कुछ भी बेझिझक
कुछ नहीं धरा मसमसाने में ।'

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.08.2018

Thursday 23 August 2018

Ek muhalle ka 15 agast: एक मुहल्ले का 15 अगस्त

बिरखांत- 226: एक मुहल्ले का 15 अगस्त (शायद आपने भी मनाया होगा ऐसे?)

       कुछ हम-विचार लोगों ने मोहल्ले में 15 अगस्त मनाने की सोची | तीन सौ परिवारों  में से मात्र छै लोग एकत्र हुए | (जज्बे का कीड़ा सबको नहीं काटता है ) | चनरदा (लेखक का चिरपरिचित जुझारू किरदार ) को अध्यक्ष बनाया गया | बाकी पद पाँचों में बट गए | संख्या कम देख एक बोला, “इस ठंडी बस्ती में गर्मी नहीं आ सकती | यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह रहो और मर जाओ |  यहां किसी को 15 अगस्त से क्या लेना-देना | दारू की मीटिंग होते तो मेला लग गया होता | चलो अपने घर, हो गया झंडा रोहण |” दूसरा बोला, “रुको यार | छै तो हैं, धूम-धड़ाके से नहीं मानेगा तो छोटा सा मना लेंगे और मुहल्ले के मैदान के बीच एक पाइप गाड़ कर फहरा देंगे तिरंगा |”  सबने अब पीछे न हटने का प्रण लिया और योजना तैयार कर ली | अहम सवाल धन का था सो चंदा इकठ्ठा  करने मन को बसंती कर, इन मस्तों की टोली चल पड़ी |

           स्वयं की रसीदें काट कर अच्छी शुरुआत की | चंदा प्राप्ति के लिए संध्या के समय प्रथम दरवाजा खटखटाया और टोली के एक व्यक्ति ने 15 अगस्त की बात बताई, “सर कार्यक्रम में झंडा रोहण, बच्चों की प्रतियोगिता एवं जलपान भी है | अपनी श्रधा से चंदा दीजिए |” सामने वाला चुप परन्तु घर के अन्दर से आवाज आई, “कौन हैं ये ? खाने का नया तरीका ढूंढ लिया है | ठगेंगे फिर मौज-मस्ती करेंगे |” चनरदा बोले, “नहीं जी ठग नहीं रहे, स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद करेंगे, बच्चों में देशप्रेम का जज्बा भरेंगे, भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देंगे जी |” फिर अन्दर से आवाज आई, “ ये अचनाक इन लोगों को झंडे के फंडे की कैसे सूझी ? अब शहीदों के नाम पर लूट रहे हैं | ले दे आ, पिंड छुटा इन कंजरों से, अड़ गए हैं दरवाजे पर |” बीस रुपए का एक नोट अन्दर से आया, रसीद दी और “धन्यवाद जी, जरूर आना हमारे फंडे को देखने, भूलना मत | 15 अगस्त, 10 बजे, मुहल्ले के मैदान में” कहते हुए चनरदा टोली के साथ वहाँ से चल पड़े

         खिसियाई टोली दूसरे मकान पर पहुँची और वही बात दोहराई | घर की महिला बोली, “वो घर नहीं हैं | लेन-दें वही करते हैं |” दरवाजा खटाक से बंद | टोली उल्टे पांव वापस | टोली के अंतिम आदमी ने पीछे मुड़ कर देखा | उस घर का आदमी पर्दे का कोना उठाकर खाली हाथ लौटी टोली को ध्यान से देख रहा था | टोली तीसरे दरवाजे पर पंहुची | बंदा चनरदा के पहचान का निकला और रसीद कटवा ली | चौथे दरवाजे पर अन्दर रोशनी थी पर दरवाजा नहीं खुला | टोली का एक व्यक्ति बोला, “यार हो सकता है सो गए हों या बहरे हों |” दूसरा बोला, “अभी सोने का टैम कहां हुआ है | एक बहरा हो सकता है, सभी बहरे नहीं हो सकते |” तीसरा बोला, “चलो वापस |” चौथा बोला, “यार जागरण के लिए नहीं मांग रहे थे हम | यह तो बेशर्मी की हद हो गई, वाह रे हमारे राष्ट्रीय पर्व |” पांचवे को निराशा में मजाक सूझी| बोला, “यह घोर अन्याय है | खिलाफत करो | इन्कलाब जिंदाबाद |” हंसी के फव्वारे के साथ टोली आगे बढ़ गई |

       इस तरह 10 दिन चंदा संग्रह कर तीन सौ परिवारों में से दो सौ ने ही रसीद कटवाई और कार्यक्रम- पत्र मुहल्ले में बांटा गया | 15 अगस्त की पावन बेला आ गई | मैदान में एक छोटा सा शामियाना दूर से नजर आ रहा था | धन का अभाव इस आयोजन में स्पष्ट नजर आ रहा था | लौह पाइप पर राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए बंध चुका था | देशभक्ति गीतों की गूंज ‘हम लाये हैं तूफ़ान से., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें., छोड़ो कल की बातें.. दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी | टोली के छै व्यक्ति थोड़ा निराश थे पर हताश नहीं थे | इस राष्ट्र-पर्व के प्रति लोगों की उदासीनता का रोना जो यह टोली रो रही थी उसकी सिसकियाँ देशभक्ति गीतों की गूंज में दब कर रह गई थी |

           टोली का एक व्यक्ति बोला, “इस बार जैसे-तैसे निभ जाए तो आगे से ये सिरदर्दी भूल कर भी मोल नहीं लेंगे |”  चनरदा ने उसे फटकारा, “ चुप ! ऐसा नहीं कहते, तिरंगा मुहल्ले में जरूर फहरेगा और हर कीमत पर फहरेगा |” निश्चित समय की देरी से ही कुछ लोग बच्चों सहित आए | अतिथि भी देर से ही आए और चंद शब्द मंच से बोल कर चले गए | प्रतियोगिताएं शुरू हुईं | सभी पुरस्कार चाहते थे इसलिए निर्णायकों पर धांधली, बेईमानी और भाईबंदी करने के आरोप भी लगे | कुर्सी दौड़ में महिलाओं ने रेफ्री की बिलकुल नहीं सुनी | सभी जाने-पहचाने थे इसलिए किसी से कुछ कहना नामुमकिन हो गया था | जलपान को भी लोगों ने अव्यवस्थित कर दिया | अध्यक्ष चनरदा ने सबको सहयोग के लिए आभार प्रकट किया |

        कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखने के बाद अचानक एक व्यक्ति मंच पर आया और उसने चनरदा के हाथ से माइक छीन लिया | यह वही व्यक्त था जिसने चंदे में मात्र बीस रुपए दिए थे | वह बोला, “माफ़ करना बिन बुलाये मंच पर आ गया हूं | उस दिन मैंने आप लोगों को बहुत दुःख पहुंचाया | मैं आपके जज्बे को सलाम करता हूं | आप लोगों ने स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और देशप्रेम की बुझती हुई मशाल को हमारे दिलों में पुनर्जीवित किया है | मैं पूरे सहयोग के साथ आपके सामने खड़ा हूं | यह मशाल जलती रहनी चाहिए | हर हाल में निरंतर जलती रहनी चाहिए |”

        समारोह स्थल से सब जा चुके थे | हिसाब लगाया तो आयोजन का खर्च चंदे से पूरा नहीं हुआ | सात लोगों ने मिलकर इस कमी को पूरा किया | स्वतन्त्रता दिवस सफलता से मनाये जाने की खुशी इन्हें अवश्य थी परन्तु अंत: पीड़ा से पनपी एक गूंज भी इनके मन में उठ रही थी, ‘सामाजिक कार्य करो, समय दो, तन-मन-धन दो और बदले में बुराई लो, कडुवी बातें सुनो, निंदा-आलोचना भुगतो और ‘खाने-पीने’ वाले कहलाओ | शायद यही समाज सेवा का पुरस्कार रह गया है अब |’ तुरंत एक मधुर स्वर पुन: गूंजा, ‘यह नई बात नहीं है | ऐसा होता आया है और होता रहेगा | समाज के चिन्तक, वतन को प्यार करने वाले, देशभक्ति से सराबोर राष्ट्र-प्रेमियों की राह, व्यर्थ की आलोचना से मदमाये चंद लोग कब रोक पाए हैं ?” अघली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.08.2018

Wednesday 22 August 2018

Ram chandr ka sach ; राम चन्द्र का सच

खरी खरी - 295 : याद है 'राम चन्द्र' का 'पूरा सच' ? (यह भूलने वाली घटना नहीं)

      पाखंडी बाबा के वेश में अध्यात्म का आडम्बर ओड़े , पाखंडी प्रवचन से गुमराह करने वाला जो बलात्कारी अब 20 वर्ष की जेल में अपने कुकृत्यों के फल भोग रहा है उसका यह कुकृत्य दबा ही रह जाता यदि एक साहसी पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति 2002 में अपने सांध्यकालीन सिरसा से छपने वाले हिंदी अखबार 'पूरा सच' में उस गुमनाम पत्र को नहीं छापता जो एक यौन शोषित साध्वी ने लिखा था । इस गुमनाम पत्र ने डेरा सच्चा सौदा की गुफा में हुए कुकृत्य, बलात्कार और कई साध्वियों के यौन शोषण को उजागर किया था । ज्योंही पत्र अखबार में छपा पत्रकार राम चंद्र छत्रपति को धमकियां मिलने लगी और 24 अक्टूबर 2002 को उन्हें दो हत्यारों ने उनके घर के आंगन में गोली मार दी जिससे 21 नवम्बर 2002 को उनकी अस्पताल में मृत्यु हो गई ।

     इस गुमनाम पत्र के आधार पर पंजाब- हरयाणा उच्च न्यायालय ने सेसन जज सिरसा से इस संबंध में रिपोट मांगी और रिपोट मिलते ही 24.09.2009 को इस केस की सीबीआई जांच के आदेश दे दिए । यह केस पूरे पन्द्रह वर्ष चला । यह मामूली लड़ाई नहीं थी । यह एक दीये की तूफान से लड़ाई थी जिसे दिवंगत पत्रकार के पुत्र अंसुल छत्रपति और दो गुमनाम साध्वियों ने जान की परवाह नहीं करते हुए अंत तक लड़ा जबकि देश का पूरा राजनैतिक तंत्र और सिस्टम अपने वोट बैंक के खातिर एक पाखंडी के चरण चूमता रहा ।

     जब पिछले साल उस पाखंडी को सजा मिली तो पूरे देश ने राहत महसूस की है । आज पूरा देश उन दो गुमनाम साध्वियों, साहसी दिवंगत पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति, उच्च न्यायालय के जस्टिस गोयल, सीबीआई के पुलिस सुपरिंटेंडेंट सतीश डांगर, अंसुल छत्रपति के साथ ही पाखंडी को सजा देने वाले जस्टिस जगदीप सिंह के साहस, श्रम और निष्पक्षता को सलाम करता है, प्रणाम करता है और नमन करता है । आज अपनी जान की परवाह नहीं करने वाले दिवंगत पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए हम उनकी हिम्मत को भी प्रणाम करते हैं ।

     देर- सबेर आज न्याय की जीत होती है । एक ओर जहां भीड़ तंत्र ने हमारे सिस्टम और राजनीति को बौना बनाया वहीं हमारे न्याय तंत्र ने एक पाखंडी को सलाखों के पीछे पहुंचाया । एक दुष्कर्मी की करतूत को न्याय तक पहुंचाने वाले इन सभी साहसी वीरों, न्याय और ईमानदारी के पहरुओं को एक बार पुनः नमन , जयहिन्द ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.08.2018

Tuesday 21 August 2018

Id : ईद पर पौधरोपण

मीठी मीठी - 147 : पौध रोपण के साथ ईद की शुभकामनाएं

होली दिवाली दशहरा
पितृपक्ष नवरात्री, ईद                
क्रिसमश बिहू पोंगल
गुरुपूरब लोहड़ी ।   
पौध रोपित एक कर
पर्यावरण को तू बचा,               
उष्मधरती हो रही
शीतोष्णता इसकी बचा ।

     ईश्वर या अल्लाह के नाम पर किसी भी पशु की बलि अनुचित है । चाहे देवालयों में बकरे कटते हों या ईद पर बकरे अथवा किसी पशु की बलि दी जाती हो, यह सब गलत है । ईश्वर -अल्लाह किसी निरीह प्राणी का खून नहीं पीते । यह सब मानवजनित प्रथा- परम्परा है । जिसे मांसाहार करना है उसके लिए बाजार में दुकानें हैं ।

      प्रत्येक त्यौहार पर एक पौधा अवश्य लगाकर उसकी निरंतर परवरिश करना हमारा कर्तव्य होना चाहिए । हम अपनी पृथ्वी को पौध रोपण से बचा सकते हैं । हमारे देश की गंगा -जमुनी संस्कृति जो हमारी धरोहर है उसे पौध रोपण के साथ बचाये रखना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है । सभी को ईद की शुभकामनाएं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.08.2018