Sunday 28 February 2021

Jute chappal note gaajar : चप्पल नोट गाजर

खरी खरी - 799 : जूते - चप्पल, नोट - गाजर

       भले ही खरी - खरी कुछ अटपटी सी लगे परन्तु अटपटी नहीं है । जो लोग जूते या चप्पल पहन कर घर के अंदर घूमते हैं या किसी के घर में घुसते हैं उन्हें कभी फुर्सत मिले तो अपने जूते - चप्पल के तले जरूर देख लें ।  तले पर गंदगी चिपकी हुई स्पष्ट नजर आएगी । इस गंदगी में कई तरह की बीमारियों के कीटाणु होते हैं और पूरे फर्स पर फ़ैल जाते हैं जो परिवार के किसी भी व्यक्ति को बीमार कर सकते हैं । जिन घरों में जूते बाहर रखने का नियम है वह बहुत अच्छी बात है ।  हमें संकल्प करना चाहिए कि हम किसी के घर में जूते - चप्पल पहन कर न घुसें । अस्पताल या ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश होने से पहले इसी कारण जूते - चप्पल बाहर उतराए जाते हैं ।

         पार्क की बैंच पर बैठ कर देखा कि कुछ जुआरी जूते के नीचे नोट दबाकर जुआ खेल रहे थे । वहीं पर घास में गुटका भी थूक रहे थे । नोटों पर पार्क की गंदगी लग रही थी । कुछ जुआरी उन्हीं नोटों को मुंह में भी डाल रहे थे । RTV या बस का कंडक्टर, सब्जी - फल बेचने वाले ये भी नोट को मुंह में पकड़ते है । शादी में दारू गटकने के बाद दूल्हे के कुछ मित्र मुंह में नोट डाल कर ढोल - बैंड वाले के मुंह से नोट खिचावाते हैं । श्मशान में पंडा भी मुर्दे के ऊपर नोट रखवाता है और देखदेखी सब रखते चले जाते हैं ।पंडा मुर्दे को चिता में रखवाता है और नोट जेब में रखता है । इस तरह जो भी नोट हमारी जेब में हैं वे सबसे अधिक रोगाणु अपने में लपेटे हुए हैं । कम से कम हम तो ऐसा न करें और बीमारी से बचें । गंदे नोट स्वीकार न करें तथा गंदे नोटों को सबसे पहले खर्च करें ।

          हम गाजर - मूली बाजार से लाकर धोने के बाद उन्हें फ्रिज में रख देते हैं । गाजर और मूली के पत्ते व तने के बीच के भाग में पेट के कीड़े के सूक्ष्म अंडे होते हैं या रोगाणु अड्डा जमाए रहते हैं । इससे पूरा फ्रिज भी दूषित होता है । अतः पत्ते और तने के बीच के भाग को काट कर ही गाजर - मूली फ्रिज में रखने चाहिए ।  हरी पत्ते वाली सब्जियों, धनिया - पोदीना में कीड़े औेर छोटे कैंचवेे चिपके रहते हैं । पालक में तो छोटे सांप भी देखे गए हैं । फ्रिज में सभी सब्जियां धोने के बाद रखने से फ्रिज बीमारी का गोदाम बनने से बच सकता है । थोड़ी सावधानी बरतने सी आज की खरी खरी आपके स्वास्थ्य के लिए मीठी मीठी बन सकती हैं ।

पूरन चन्द्र कांडपाल


01.03.2021


Saturday 27 February 2021

Haath milane se pahale : हाथ मिलाने से पहले

खरी खरी - 798  :जरा सोचिए हाथ मिलाने से पहले ?

(यह खरी खरी 20 .02.2020  (565) को भी लिखी थी जो आज बहुत प्रासंगिक हो गई है । हाथ धोना सबसे बड़ी जागरूकता और बचाव है आज के दिन।)

       सुप्रसिद्ध शायर बशीर बद्र का एक बहुत ही प्रचलित शेर है -

" जरा हाथ क्या मिला दिया
यों गले मिल गए तपाक से,
ये गर्म मिजाज का शहर है
जरा फासले से मिला करें ।"

     अब हम सब हाथ मिला कर एक दूसरे का अभिवादन करने लगे हैं । हाथ जोड़कर अभिवादन का रिवाज ही समाप्त हो गया । फिर भी महिलाओं से हम हाथ जोड़कर ही अभिवादन करते हैं । ' हाथ मिलाना ' एक मुहावरा भी है । वैसे हाथ के साथ जुड़े कई मुहावरे हैं - हाथ की सफाई, हाथ खींच लेना, हाथ तंग होना, हाथ थामना, हाथ पकड़ना, हाथ पीले करना, हाथ फेरना, हाथ बंटाना, हाथ बढ़ाना, हाथ मारना आदि आदि । हाथ धोना, हाथ धो बैठना, हाथ धो लेना भी मुहावरे हैं ।

      कभी कभी बड़ी मजबूरी में न चाहते हुए भी हाथ मिलाना पड़ता है । तब हम उस व्यक्ति से आंख नहीं मिलाते, सिर्फ हाथ मिलाते हैं । ऐसे में  'जिंदगी का अजब दस्तूर निभाना पड़ता है, दिल मिले या न मिले हाथ मिलाना पड़ता है ।' हाथ मिलाने की बात पर डाक्टर कहते हैं, ' हमारे शरीर का सबसे गंदा अंग हमारा दांया हाथ है । हम इससे खुजली भी करते हैं और नाक भी पोछते हैं । हम इसे नाक में, मुंह में और कान में भी घुसाते हैं, आंख भी छूते हैं तथा कुदरती विसर्जन करते समय भी इसकी मदद लेते हैं । हम बस के डंडे, मेट्रो के डंडे और मेट्रो एक्स्क्लेटर पर भी हाथ को रगड़ते हुए चलते हैं । ऐसा सभी करते हैं क्योंकि सब जगह हमारा दांया हाथ आगे रहता है इसलिए यह सबसे अधिक गंदा है । जो जगह हमने अपने हाथ से पकड़ी उसे हम से पहले सबने पकड़ा जिसकी वजह से ये स्थान सर्दी - जुकाम सहित अन्य कई प्रकार के वाइरसों और रोगाणुओं से भरे होते हैं ।

       हम में से अधिकांश लोग भोजन से पहले हाथ नहीं धोते । शायद घर में धोते हों परन्तु किसी पार्टी में तो नहीं धोते । बिना हाथ धोए भोजन करते हैं, प्रसाद या लंगर भी छक लेते हैं और गोलगप्पे खाते हैं । आजकल एक बहुत ही खतरनाक वायरल बीमारी कोविड- 19 (कोरॉना वाइरस ) जिस से हमारे देश अब तक 1.57 लाख लोग मर चुके हैं । दुनिया के 219 देशों में यह रोग दस्तक दे चुका है और 25.32 लाख लोग इसके ग्रास बन चुके हैं । इसकी कोई दवा नहीं है । (अब वैक्सीन आ गई है बताया जा रहा है । ) बचाव का एकमात्र उपाय है  मास्क पहनना, दूरी रखना ,स्वच्छता और अपने हाथ से उन अंगों को नहीं छूना जिनकी ऊपर चर्चा की गई है तथा हाथ धोना और किसी से भी हाथ नहीं मिलाना ।

     इस खरी खरी का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हाथ धोते रहने से हम कई बीमारियों से बचेंगे और हाथ मिलाने के बजाय हम अभिवादन हाथ जोड़कर करें तो हम सभी वायरल बीमारियों से बचेंगे । हम सचेत रहेंगे तो कुछ ही दिनों में हमारी हाथ मिलाने की आदत छूट जाएगी । यदि कोई हाथ मिलाना चाहे भी तो हम हाथ जोड़ कर उसे अभिवादन कर सकते हैं । यदि हमारा कोई लंगोटिया यार हाथ मिलाने की जिद भी करे तो हम कह सकते हैं, "यार मेरा हाथ गंदा है ।" यदि अब भी हम अपनी आदत नहीं सुधारेंगे और हाथ धोने की आदत नहीं अपनाएंगे तो किसी जान लेवा हस्त- स्पर्श हस्तांतरित वायरल बीमारी के कारण हम अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे ।

( बेवजह बाहर मत जाओ,  हाथ धोते रहो, भीड़ से बचो, स्वच्छता रखो । सख्त अनुशासन हमारे देश को इस रोग से बचा सकता है । फ़रवरी 2021 के प्रथम सप्ताह में कोरोना के केस कम होने लगे थे परन्तु हमारी लापरवाही के कारण अब फिर बढ़ने लगे हैं ।)

पूरन चन्द्र कांडपाल
28.02.2021

Friday 26 February 2021

Chandra shekhar Aazad : चन्द्र शेखर आजाद

स्मृति 574 : चन्द्र शेखर आजाद स्मृति

     आज 27 फरवरी चंद्र शेखर आज़ाद का बलिदान दिवस है।   आजादी के महानायक चन्द्र शेखर आजाद की शहादत दिवस पर उनकी  स्मृति को शतः शतः नमन् । जिस आजादी को हासिल करने के लिए अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने मात्र 24 साल की उम्र में  27 फरवरी 1931 को शहादत दी थी, उसकी चर्चा मीडिया में बिलकुल नहीं । मीडिया में तो  चर्चा ही कुछ और है जिसे देखने या सुनने को मन नहीं करता । शहीदों का स्मरण भी करो भाई । देश के लिए अपना सबकुछ लुटा देने वालों की भी तो बात करो मीडिया वालो । "कौन अब बताएगा वह देश के लिए था लड़ा । " अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद को विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल


27.02.2021


Sant Ravidas Jayanti : संत रविदास जयंती

स्मृति - 573 : संत रविदास जयंती

     आज सामाजिक सौहार्द और समरसता के स्रोत संत रविदास जी की जयंती है । इस बार रविदास जयंती 27 फरवरी को मनाई जा रही है जो गुरु रविदास की 644 वीं जयंती है । संत रविदास का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था और उनकी माता का नाम कलसा देवी और पिता का नाम श्रीसंतोख दास था । संत जी के अनुयाई उनके जन्म उत्सव में शामिल होने हमेशा ही वाराणसी आते हैं ।

        संत रविदास जी के पिता जूते बनाने का काम करते थे और रविदास जी भी अपने पिता की जूते बनाने में मदद करते थे ।  इस कारण उन्हें जूते बनाने का काम पैतृक व्यवसाय के तौर पर मिला । उन्‍होंने इसे खुशी से इसे अपनाया और पूरी लगने के साथ वह जूते बनाया करते थे । साधु-संतों के प्रति शुरुआत से ही संत रविदास जी का झुकाव रहा है । समाज में फैले भेद-भाव, छुआछूत और साम्प्रदायिकता का वह जमकर विरोध करते थे ।

     उन्होंने अपने जीवन में लोगों को अमीर-गरीब हर व्यक्ति के प्रति एक समान भावना रखने की शिक्षा दी । उनका मानना था कि हर व्यक्ति को भगवान ने बनाया है,  इसलिए सभी को एक समान ही समझा जाना चाहिए । वे लोगों को एक दूसरे से प्रेम और सम्मान करने की सलाह दिया करते थे । वे बहुत दयालु थे दूसरों की मदद करना उन्‍हें एकमात्र उद्देश्य था । साधु- संतो की सेवा करने से पीछे नहीं हटते थे । उनके बारे में एक मशहूर कहावत है, " मन सच्चा तो कठौती में गंगा ।"

पूरन चन्द्र कांडपाल
27.02.2021

We dangaaee kaun the ? वेे दंगाई कौन थे?

खरी खरी - 797 : वे दंगाई कौन थे ?

दिल्ली में वे दंगाई कौन थे ?
बताओ तो सही वे कौन थे ?
उत्तर-पूर्व दिल्ली में अमन बिगाड़ने वाले
तिरेपन जानों को बेमौत मारने वाले
शांतिप्रिय दिल्ली को दहलाने वाले
सैकड़ों लोगों को जख्मी करने वाले
घर दुकान वाहन जलाने वाले
पेट्रोल पम्प शो रूम फूंकने वाले
मौत के तांडव पर नांचने वाले
सरे आम बेखौप फायरिंग करने वाले
हिंसा - साम्प्रदायिकता फैलाने वाले
दहशत -अफ़वाह से डराने वाले
झूठे उलजलूल वीडियो भेजने वाले
खुलकर अथाह जहर उगलने वाले
हिन्दू - मुस्लिम को लड़ाने वाले
दिल्ली में दो दिन गुंडई कराने वाले
करोड़ों रुपए का नुक़सान कराने वाले
सार्वजनिक सम्पत्ति नष्ट कराने वाले
अस्पताल पर लोगों को रुलाने वाले
मोर्चरी में अपनों के शव ढूंढवाने वाले
मौतों पर आंसू निकलवाने वाले
चुप क्यों रहे बिगड़ैलों को रोकने वाले ?
कहां चले गए थे दंगा थामने वाले?
ये सब अमन चैन के दुश्मन थे
सौहार्द भाईचारे के दुश्मन थे
ये न हिन्दू थे न मुसलमान थे
ये केवल दंगाई शैतान थे ।

(24, 25 फरवरी 2020 को उत्तर - पूर्वी दिल्ली में बेमौत मारे गए निर्दोषों को विनम्र श्रद्धांजलि। )

पूरन चन्द्र कांडपाल
27.02.2021

Thursday 25 February 2021

Hanaare shodhkarta : हमारे शोधकर्ता

खरी खरी - 796 : हमारे शोधकर्ता  

        अंतरराष्ट्रीय संगठन क्लेरिवेट एनालिटिक्स ने दुनिया के सबसे काबिल 4000  (चार हजार ) शोधकर्ताओं (एचसीआर) की लिस्‍ट जारी की थी । इस लिस्‍ट में भारत के केवल 10 शोधकर्ताओं का नाम शामिल थे । यह जानकर हैरानी होती है कि इन 10 भारतीयों में केवल 1 ही महिला थी । जहां इस लिस्ट में अमेरिका पहले नंबर पर था तो वहीं ब्रिटेन दूसरे और चीन ने तीसरा स्‍थान प्राप्‍त किया । अमेरिका के सबसे ज्यादा 2639 शोधार्थी,  ब्रिटेन के 546 शोधार्थी और चीन के 482 वैज्ञानिकों के नाम इस सूची में मौजूद  थे । 

      हमारे शोधार्थी विश्व या चीन की तुलना में इतने कम क्यों हैं ? स्पष्ट है हम शोध के लिए उचित संशाधन उपलब्ध नहीं करा सकते । हमारे एम्स (AIIMS) सहित किसी भी अस्पताल में, विश्वविद्यालय में या किसी भी शैक्षणिक संस्थान में पूरा स्टाफ भी उपलब्ध नहीं है । स्कूल शिक्षकों की भी कमी किसी से छिपी नहीं है । स्कूलों में समय पर वर्दी और पुस्तकें नहीं मिलती हैं । देश और टी वी चैनलों के पास इन मुद्दों पर चर्चा करने का समय नहीं है और नियत भी नहीं है क्योंकि उनका अधिकांश समय हिन्दू- मुस्लिम, मंदिर - मस्जिद बहश में ही बीतता है । सरकारें जो कहती हैं वह कार्य हो रहा है या नहीं देश को मीडिया से ही सत्य का पता चलता है । देश के टी वी चैनलों से निवेदन है कि राष्ट्रनिर्माण के मुद्दों को भी स्थान दें और सत्य को सामने लाएं तभी भारतमाता की जय होगी । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल


26.02.2021


Wednesday 24 February 2021

Vishwas, ativishwas, vishwasghaat : विश्वास, अतिविश्वास, विश्वासघात

बिरखांत - 359 : विश्वास, अतिविश्वास, विश्वासघात

       पीरू और धीरू एक वित्तीय कम्पनी में एक साथ काम करते थे | दोनों अच्छे दोस्त थे | हंसी-मजाक, दिन की चाय-भोजन सब एक साथ | बातों में तू- तड़ाक का घालमेल एवं प्रेम का खुलापन, एकदम लंगोठिया यार जैसे | कंपनी में दोनों रोकड़ विभाग में संयुक्त कस्टोडियन थे अर्थात तिजोरी दोनों की चाबियों से बंद होती और खुलती थी | विभाग बंद होते ही दोनों अपनी- अपनी चाबियों को अपने साथ ले जाते | एक दिन धीरू को किसी रिश्तेदार को देखने अचानक अस्पताल जाना था | उसने सोचा चाबी का गुच्छा कार्यालय में ही रख जाता हूं ताकि सुरक्षित रहे | रोज की तरह दोनों नि मिलकर तिजोरी बंद की | धीरू ने अपना गुच्छा दराज में रखा और दराज की चाबी पीरू को दे दी |

      तिजोरी की दूसरी चाबी पीरू के पास थी ही | पीरू कार्यालय में काम निपटाने के बहाने अक्सर देर तक बैठता था | उस दिन भी वह देर तक बैठा | तभी उसके दिमाग में शैतान पनप गया | कार्यालय बंद करने से पहले उसने दराज से धीरू वाली चाबी निकाली और अपनी तथा धीरू की चाबी से तिजोरी खोली | दूसरा वहां कोई था नहीं | उसने एक हजार वाले (तब एक हजार के नोट प्रचलन में थे) नोटों के पांच पैकेट (पांच लाख रुपए ) निकाले और तिजोरी बंद कर धीरू वाली चाबी ठीक उसी तरह दराज में रख दी जैसे धीरू रख कर गया था तथा दराज भी बंद कर दी | सुबह आते ही धीरू ने पीरू से चाबी ली और रोज की तरह तिजोरी खोली | सौ- पांच सौ के कुछ पैकेट निकाले तथा बिना शेष रोकड़ देखे तिजोरी बंद कर दी |

     करीब आधे घंटे बाद एक ग्राहक ने एक हजार रुपए के नोट मांगे | धीरू ने तिजोरी से नोट निकाले परन्तु नोट कम थे | उसने इधर उधर देखा, पुन: रोकड़ रजिस्टर देखा परन्तु पांच लाख़ रूपया कम था | वह चुपचाप पीरू के पास गया | कहानी बताई |पीरू बोला, “तिजोरी खोले हुए तुझे आधा घंटे से ऊपर हो गया है और अब बता रहा है कि पांच लाख कम हैं | उल्लू बना रहा है | तिजोरी खोलते ही क्यों नहीं बताया तूने ?” धीरू पर काटो तो खून नहीं | उसके पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी | वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था | लोग उसकी ईमानदारी के कायल थे लेकिन आज विश्वासघात हो चुका था | धीरू की मदद के लिए लोग आए और तत्काल रोकड़ पूरा किया | न पुलिस बुलाई और न उच्च अधिकारियों को बताया | नौकरी का सवाल था | धीरू ने पत्नी के गहने बेचे, मकान गिरवी रखा और दो दिन में लोगों के रुपए लौटा दिए | धीरू ने नौकरी बचा ली, जेल जाने से बच गया  परन्तु लोग आज भी पूछते हैं कि जब वह चाबी वहीं छोड़ गया था तो उसने तिजोरी खोलते ही रोकड़ की जांच क्यों नहीं की ? एक सच्ची घटना पर आधारित इस कहानी के बारे में आपको क्या लगता है ? हो सके तो अपने विचार व्यक्त करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25 02 2021

Tuesday 23 February 2021

Trump aur Gandhi : ट्रंप और गांधी

खरी खरी - 795 :  ट्रंप और गांधीज्यू (पोरैबेरकि याद)

     ट्रंपज्यू जब 24 फरवरी 2020 हुणि दिल्ली आईं तो बाद में ऊं अहमदाबाद में साबरमती आश्रम गईं ।  वांक बार में गांधी ज्यू के कूं रईं, उनरि बात मुणि छ -

साबरमतीक गांधीज्यू बतूरीं -

मि भौत ध्यानल देखि रौछी
उ दूर सात समुद्र पार बै ऐ रौछी
उ म्यार साबरमती आश्रम आ
पुर लाव लस्कर समेत आ
म्यर चित्र पर वील माव रोपी
उ म्यर चरखक नजीक भैटौ
वील कपास पकड़ सूत कातौ
म्यार बार में पूछताछ लै है हुनलि
म्यार तीन बानरों कै लै वील देखौ
यथां उथां नजर घुमै बेर लै देखौ 
मेज पर धरी आगंतुक किताब देखी
पन्न खोलि बेर बदस्तूर कलम चलै
म्यार बार में त वील के नि लेख
शैद उ मिकैं बिलकुल भुलिगो हुनल
मिकैं लाग़ौ उ कुछ तनाव में छी
वीक दिल- दिमाग चुनाव में छी ।

- साबरमती क गांधी

( 2021 राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप नि जित )

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.02.2021

Monday 22 February 2021

Moorkh aur ganwaar : मूर्ख और गंवार

खरी खरी - 794 : मूर्ख और गंवार

तुमने हमेशा ही मुझे 

मूर्ख और गंवार समझा

निरोगी होते हुए भी

रोग का शिकार समझा

मांग कर मुझ से

वो चीज ले लेते तुम

चुपचाप उठा ली

मुझे लाचार समझा ।

गुनाह ये था मेरा कि तुम्हारी

एक कमी ही तो बताई थी मैंने

कमी दूर करने की 

राह भी तो दिखाई थी मैंने

बस यही वजह थी जो

तुमने मुझे कसूरवार समझा ।

तुमने हमेशा ही मुझे 

मूर्ख और गंवार समझा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

23.02.2021

Sunday 21 February 2021

Bhrashtachar ki jad : भ्रष्टाचार की जड़

खरी खरी - 793 : भ्रष्टाचार की जड़

जड़ भ्रष्टाचार की

मजबूत इतनी हो गई,

उखड़ वह सकती नहीं

शक्ति सारी खो गई ।

रेत के पुल बन रहे हैं

नजरें घुमाए वे खड़े,

खा रहे भीतर ही भीतर

राष्ट्र को दीमक बड़े ।

डिग्रियां तो बिक रही हैं

अब सरे बाजार में,

नाव शिक्षितों की डोली

जा रही मजधार में ।

मंतरी से संतरी तक

बिक रहे हैं खुलेआम,

घोटालों के संरक्षक

घूम रहे हैं बेलगाम ।

बैंक खाली करके वो तो

छोड़ गया है देश को,

थोड़े कर्ज में जो दबा था

वो छोड़ रहा है देह को ।

भ्रष्ट लोगों के घरों में

जल रहे घी के दीये,

रोकने वाले थे जो

वे भी उन्हीं में मिल लिए ।

टूट रहा है मनोबल

कर्मठ निष्ठावान का,

चक्रव्यूह घेरे उसे है

भ्रष्ट चोर शैतान का ।

सत्यवादी सद्चरित्र का

मान पहले था जहां,

आज झूठे चोर बेईमान

पूजे जाते हैं वहां ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

22.02.2021

Saturday 20 February 2021

Maatribhasha diwas 21 Feb :मातृभाषा दिवस 21 फरवरी

मीठी मीठी - 570 :  हमरि मातृभाषा कि बात

(21 फरवरी मातृभाषा दिवस पर विशेष )

     कुमाउनी और गढ़वाली भाषाओं कैं संविधानक आठूँ अनुसूची में जब तक जागि नि मिला, यूं भाषाओं क जानकार, लेखक, कवि और साहित्यकार चुप बैठणी न्हैति । चनरदा बतूं रईं, " संघर्ष जारी धरण पड़ल, कुहूक्याव मारण पड़लि । जैकें जब मौक मिलूं य बात कि चर्चा जरूर हुण चैंछ । जनप्रतिनिधियों कि कुर्सि, दुलैच, आसन कैं ढ्यास मारण में कसर नि छोड़ण  चैनि ।  

      रचनाकार आपण काम करैं रईं । लेखें रईं, आफी छपों रईं और फिरी में बाटें रईं । यमें रचनाकारों ल निराश नि हुण चैन । आपणी मातृभाषा लिजी तन- मन- धन खर्च करण सबूं है ठुल पुण्य छ । य कामक लिजी दिलक साथ 'पहरू', 'कुर्मांचल अखबार', 'कुमगढ़' और ' आदलि कुशलि ' कैं साधुवाद दींण चानू । यूं तपस्वियों है लै ठुल काम करें रईं ।"

     चनरदा ल विलुप्त हुणी भाषाओँ पर लै चिंता जतूनै कौ, "एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र में यूनेस्कोक अनुसार दुनिय में 6000 भाषाओँ में 2500 लुप्त हुणकि  आशंका छ ।  हमार देश में 196 भाषाओं कैं लुप्त हुणक खत्र छ ।  दुनिय में करीब 200 भाषा यास छैं जनार बलाणी 10 है लै कम रै गईं । 

      भाषाओँक अंत हुणल संस्कृतिक लै अंत है जांछ  किलै कि यूं एक दुसारक परिपूरक छीं । दुनियाक 96% भाषा केवल 3% आबादी बलैंछ जबकि 97% आबादी 4 % भाषाओं कें बलानी । दुनिय में ज्यादै बलाई जाणी 65 भाषाओँ में 11 भारत में छीं ।  हमार देश में भाषाई सर्वेक्षण 80 वर्षों बटि नि है रय । सरकार यैक लिजी गंभीर न्हैति । 

      कुमाउनी और गढ़वाली भाषाओँक बलाणियां कि संख्या उत्तराखंड और देशाक अन्य राज्यों में डेड़ करोड़ है ज्यादै छ ।  द्विये भाषाओं क साहित्य लै छ और साहित्यकार लै छीं । एक दौर में यूं राजकाजक भाषा लै छी । मान्यता दीणक लिजी यूं द्विए सब शर्त लै पुर करनीं । इनुकैं मान्यता मिलण पर इनरि दिदी हिंदी कैं के लै नुकसान नि ह्वल बल्कि उ और समृद्ध ह्वलि । द्विए भाषाओं कि लिपि लै देवनागरी छ । अगर राज्य सरकार हिम्मत करो तो इस्कूलों में यूं द्विये भाषाओँ कें पढूनै कि शुरुआत ठीक ढंगल करो ।  जो भाषा लोक में रची- बसी छ उकें मान्यता दींण में डाड़ के बात कि ? " मातृभाषा दिवसकि सबूं कैं शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.02.2021

Midiya mein jame raho : मीडिया में जमे रहो

खरी खरी - 792 : मीडिया में जमे रहो

काम कुछ करो नहीं
बस सुर्खियों में बने रहो,

स्व लाभ में लगे रहो
भाषण में जमे रहो,

कर्म न हो, नीति न हो
बनी रहे भयभीति मगर,

मूठ थामो झूठ की
और मीडिया में जमे रहो ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.02.2021

Thursday 18 February 2021

Andolan aur prajatantr : आंदोलन और प्रजातंत्र

खरी खरी - 781 : प्रजातंत्र में होते हैं आंदोलन

      प्रजातंत्र में आंदोलन होते रहे हैं और आंदोलन होते ही प्रजातंत्र में हैं । तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली तथा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह प्रथा के विरुद्ध घर से बाहर निकल कर संघर्ष करने वाली जिन पांच मुस्लिम वीरांगनाओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की वे हैं - सायरा बानो (उत्तराखंड), आतिया साबरी सहारनपुर (उ प्र), आफरीन रहमान जयपुर (राजस्थान), इशरत जहां हावड़ा (प बंगाल) और गुलशन परवीन रामपुर (उ प्र) । पुरुषवादी कट्टर समाज के विरुद्ध इनकी यह लड़ाई बहुत कठिन थी फिर भी इन्होंने अपनी हिम्मत को टूटने नहीं दिया ।

     मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय, शोषण और सामाजिक विषमता के खिलाफ इन पांचों महिलाओं ने लगातार तीन साल तक लड़ाई लड़ी । इस लड़ाई में इन्हें इनके परिजनों का साथ मिला । इन सबकी याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ ने एकसाथ सुना । 22 अगस्त 2017 को उच्चतम न्यायालय ने 3-2 के बहुमत से फैसला दिया कि तीन तलाक के जरिये तलाक देना अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है और यह कुर्रान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है ।

     सत्य तो यह है कि मुस्लिम समाज की महिलाएं तीन तलाक, निकाह-हलाला और बहुविवाह जैसी सामाजिक यातनाओं को एक गहरे दर्द और नाइंसाफी के साथ सह रही थीं । देश की करीब सात करोड़ विवाहित मुस्लिम महिलाओं के लिए 22 अगस्त 2017 का दिन एक बड़ी सौगात लेकर आया जिसका सेहरा इन पांचों मुस्लिम वीरांगनाओं के सिर पर बंध गया ।

      यदि ये महिलाएं न्यायालय के द्वार पर गुहार नहीं लगाती और अन्य महिलाओं की तरह घर की चौखट के अंदर मसमसाते रहती तो यह सम्मान की सौगात नहीं मिलती । इन पांचों याचिकाकर्ताओं को लाल सलाम । समाज में अभी भी महिलाओं के शोषण की कई कुप्रथाएं ( जैसे कि कुछ जगहों पर उनका प्रवेश आज भी वर्जित है।)  व्याप्त हैं जिनके विरुद्ध लड़ाई जारी रखनी होगी । सभी मुस्लिम महिलाओं को बधाई और शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.02.2021

Ye Bakgede : ये बखेड़े

बिरखांत – 358 : ये बखेड़े क्यों ?

      हम सब जानते हैं कि हमें बखेड़ा उपजाने में देर नहीं लगती | घर में, पड़ोस में, कार्यस्थल में, सड़क पर या बैठे-बैठे सोशल मीडिया में |  कुछ महीने पहले दिल्ली के भागीरथी विहार में चूहेदानी से दूसरे की घर की ओर चूहा छोड़ने पर ऐसा बखेड़ा हुआ कि आपसी गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गयी | कुछ वर्ष पूर्व सशस्त्र सेना चिकित्सा कालेज (AFMC) पूने के इन्टोमोलोजी विभाग में हमें बताया गया कि चूहा किसान का शत्रु है और सांप किसान का मित्र | अगर सांप न होते तो चूहे सभी अन्न नष्ट कर देते क्योंकि  इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है |

      हम सब चूहों द्वारा किये गए नुकसान से परिचित हैं | हम घर के चूहे को पकड़ते हैं और दूसरी जगह छोड़ देते हैं | चूहों से फ़ूड पोइजनिंग, रैट बाईट फीवर और प्लेग जैसी कई बीमारियाँ फैलती हैं | वैज्ञानिकों के अनुसार हमें चूहों को नष्ट कर देना चाहिए | चूहेदानी को पानी की बाल्टी में डुबाना, चूहा मारने का उत्तम तरीका बताया गया है | परन्तु कुछ लोग चूहे को भगवान् की सवारी बताते हैं इसलिए मारने के बजाय दूसरे के घर की ओर डंडा देते हैं | स्वयं सोचें और जो उचित लगे वही अपनाएं | इस बात पर भी बखेड़ा खड़ा हो सकता है और होते रहता है ।

     दूसरा बहुचर्चित बखेड़ा कुत्ते का है | एक व्यक्ति कुत्ता पालता है और परेशानियां पड़ोसियों को झेलनी पड़ती हैं | कुत्ता  रात को भौंकता है, कहीं पर भी शौंच कर देता है | श्वान मालिक किसी की बात नहीं सुनता | रिपोट होने पर पुलिस-अदालत होती है और वर्षों केस लटके रहता है | कुत्ते वाला त्यौरियां चढ़ा कर कुत-डोर हाथ में थामे बड़े रौब से घूमता है | उसे किसी की परवाह नहीं |  उसकी सबसे बोलचाल बंद है | एक दिन जब कुत्ते का मालिक मर जाता है | सभी पड़ोसी उसके कुतप्रेम, कुतत्व और कुतपने को भूल कर उसकी अर्थी में शामिल होते हैं फिर भी उस परिवार को अकल नहीं आती और अंत में अदालत के दंड से ही केस का अंत होता है |

     तीसरा बखेड़ा ‘हा-हा’ का है | एक आदमी प्रतिदिन सुबह चार बजे अपने घर की बालकोनी में जोर-जोर से ‘हा-हा’ करता है अर्थात हंसने का व्यायाम करता है | पड़ोसी उसे मना करते हैं | वह नहीं मानता | केस अदालत में जाता है | अदालत से उसे आदेश मिलता है, “तुम पार्क में जाया करो, घर की बालकोनी या आसपास ‘हा-हा’ नहीं करोगे | तुम्हारी इस हरकत से लोग दुखी हैं |” पड़ोसियों से अकड़ने वाला यह तीसमारखां अदालत से माफी मांगता है और लोगों को उसकी ‘हा-हा’ से मुक्ति मिलती है |

     इसी तरह पड़ोस में कई तरह के वाद्य जैसे ढोल, डीजे, म्यूजिक सिस्टम, हॉर्न, पटाखे, जोर जोर से झगड़ा, बहुमंजिले फ्लेटों में खट-खट, वाहन पार्किंग, जीने या सीढ़ियों की गन्दगी आदि समस्याओं से हम आए दिन जूझते हैं और छोटी सी बात पर बखेड़े खड़े हो जाते हैं | चलो अपने से पूछते हैं, ‘कहीं हम चूहा, कुत्ता, हा-हा, हॉर्न, मुजिक सिस्टम, शराब पार्टी सहित कई अन्य बखेड़ों के कारण तो नहीं हैं ?’

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.02.2021