Thursday 13 July 2017

'Baisi' mein le badyal: 'बैसि' में ले बदयल

 

बिरखांत – 167: बैसी में ल्हे बद्यल

       बैसि क बार में एक दुसर गौं कि एक दुसरी कहानि छ | यां बैसि देखूं हूँ रोजाना द्वि ज्वान लौंड, हरकू- खड़कू औंछीं | यूं आपस में एक दुसरै कि जलंग करछी और एक दुसरै कैं निच्च देखूण कि ताक में रौंछी | इग्यारी दिन खड़कू धुणी में नाचि गो | वीक नाचण देखि हरकू लै ताव में ऐ बेर बदन हल्कों फैगो | खड़कूवै ल हरकू उज्यां आँख ताणी और हरकू लै नाचण फैगो | खड़कू नाचन- नाचनै हरकूवै क नजीक गो और उकें द्वि मुक्क ज्येड़ि दीं | हरकू कैं लै गुस्स आ और वील खड़कू कैं मुक्क मारण चा | यतु में दास ल जोरल आवाज लगै दी, “होश से, बिना गुरु अन्यार रात क्येलै है रै ?”  यतुमें हरकूवै ल खड़कू कैं छोड़ि दे | 

     दुसार दिन बैसि कि जागर में हरकू धोति पैरि बेर घरै बै नाचण क मूड में आछ | उकें धुणी में खड़कू नजर नि आय | जब खड़कू कैं पत् चलौ कि हरकू धोति पैरि बेर ऐ रौ, उ लै फटाफट धोति पैरि बेर चढ़मड़ानै धुणी में पुजि गो | जस्सै दास ल ढोल में पट्टाक मारौ,  हरकू जोरैल नाचौ और उपन जस तिड़ी बेर खड़कू पर झपटि पड़ौ | द्विनू कि गुर्दाफानी कैं बैसि क मुंड लै चाइए रै गाय और उनर दयाप्त लै घेरी गोय | खड़कू-हरकू लड़न–लड़नै धुणी है भ्यार न्है गाय | दास ल गाव में बै ढोल निकाइ  दे | कतु झणीयांल उनुकें अछुड़ा पर आखिर में पटवारी बलूण पड़ौ | आदू रात कै पटवारी क सामणी पंचनाम करि बेर केश रफादफा करौ | बाईस दिन बाद भनार हौछ पर हरकू – खड़कूव क मनमुटाव ख़तम नि हौय और आज तक लै मुखबलौ न्हैति | आब यूं नाचण लै भुलि गईं | झाणी कथां गो उनर दयाप्त घ्वड़ कैं छोड़ि बेर |

     बैसि करी डंगरियाँ कि मांग यां ज्यादै छ | सौ में एकाद कैं छोड़ि बेर सब डंगरिय शिकार, शराब, बीड़ी, सिगरट, तमाकु, खैनी, अत्तर, गांज आदि क सेवन करनी | इनर आचार, विचार और व्यवहार लै रूढ़िवादऔर संकीर्णता ल भरी हुंछ | लोगों कैं इनर यूं चीजों क सेवन करण में नक् लै नि लागन और न यैकैं यूं ऐब मानन | पहाड़ बै नौकरी कि ढूंढ में भ्यार आई लोग जब लै पहाड़ जानी, इनार यूं हरकतों देखि चुप रौनी | क्वे लै गिच नि खोलन | बुरि चीज हूं बुरि छ कूण कि हिम्मत वां जाते ही लापता है जींछ |

      काश ! हमार देवभूमि क लोगों कैं य बात समझ ऐ जानि कि य बैसि, जागर, डंगरी, दास, भूत, मसाण हमार दिमाग में छाई अन्यार कि उपज छ, तो लोगों क अन्धविश्वास है बेर पिंड छुटि जान | यांक स्यैणी विरोध क नाम पर गिच लै नि खोलि सकन | पढी- लेखी स्यैणी लै चुप रौनी | जब सबूंल चुपै रौण सिखि हैछ त देवभूमि क भल कसिक है सकूं ? अन्धविश्वास क अन्यार कैं भजाउण क लिजी एक नै एक  दिन त एक छिलुक जगूण पड़ल | कुव क मिनुक बनि बेर ज्यौन राण हैबेर बेबखत कि मौत भलि छ | 

     बैसि क बार में यूं द्वि बिरखांतों-166 और 167 पर मंथन जरूरी छ | म्यर विचार पर जो सहमत न्हैति ऊँ नक झन मानिया | शराबि दास-डंगरियों क अणगणत किस्स राज्य में फुफै रईं | हमूल राम ज्यू और कृष्ण ज्यू क दिखाई बाट छोडि बेर आपूं कैं अन्धविश्वास कि स्येलि पर बादि रौछ | हाम छन अखां काण बनि गोयूं | म्यार बात पर विश्वास करण कि लै जरवत न्हैति | खुद परखिया, देखिया पै आपण जज आफी बनि बेर सही  फैसाल करिया | साधुवाद | अघिल बिरखांत में कुछ और .....

 पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.07.2017

 

 

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