Wednesday 30 June 2021

Doctors day :चिकित्सक दिवस

स्मृति -616 : डॉक्टर्स डे (चिकित्सक दिवस) 01 जुलाई (जिस दिन आए उसी दिन गए ।)

      भारत रत्न, डा.बिधान चंद्र राय का जन्म और मृत्यु एक ही तारीख अर्थात 1 जुलाई को हुआ । उनके नाम पर ही चिकित्सक दिवस मनाया जाता है।  उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि । उनके बारे में  लघु लेख तीन भाषाओं में एक साथ मैंने पुस्तक 'महामनखी' में लिखा है जो यहाँ उधृत है । देश में मार्च 2020 से अब तक संक्रामक रोग कोविड -19 की दो भयानक लहरें चली जिनमें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार करीब डेढ़ हजार से अधिक चिकित्सक अपना कार्य करते हुए इस महामारी के शिकार हो गए । इन चिकित्सकों को विनम्र श्रद्धांजलि। इस दौर में मृतक रोगियों के आक्रोशित परिजनों ने कई चिकित्सकों के साथ मारपीट भी की जो बहुत दुखद था ।  देश क़े सभी चिकित्सकों को आज चिकित्सक दिवस के अवसर पर शुभकामनाएं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.07.2021

Tuesday 29 June 2021

PPE kits : आसान नहीं पी पी ई किट्स पहनना

खरी खरी - 880 : पी पी ई किट्स पहनना साहसी कार्य

       चीन द्वारा उत्पन्न वैश्विक संकट कोविड -19 (कोरोना वायरस ) से विश्व में 18.25 करोड़ से अधिक (32.61 लाख, 30.04.2020 ) लोग संक्रमित हो चुके हैं जिनमें से 39.53 लाख से अधिक( 2.3 लाख, 30.04.2020 ) मृत हो चुके हैं । भारत में इस रोग का पहला केस 30 जनवरी 2020 को पहचान में आया । आज देश में 3.03 करोड़ से अधिक ( 33 हजार, 30.04.2020 ) लोग ग्रसित हैं जबकि 3.98 लाख से अधिक (1000 से अधिक, 30.04.2020 ) मृत हो चुके हैं ।  देश को संक्रमण से बचाने के लिए हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम घर में रहें, केवल बहुत जरूरी कार्य के लिए अच्छी तरह मास्क पहनकर ही बाहर निकलें । धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक भीड़ कोविड प्रोटोकाल के अनुसार जरूरी कार्य नहीं है । वैक्सीन अवश्य और शीघ्र लगाएं।

          इस समय देश के कर्मवीर इस रोग को हराने में जुटे हैं । अस्पताल में रोगी से संपर्क करने वाले प्रत्येक कर्मवीर को पी पी ई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट ) किट पहननी अनिवार्य है । सिर से लेकर पैर तक पूरे शरीर को ढकने के लिए कई परतों में यह किट पहनी जाती है जिसमें एडल्ट डाईपर भी शामिल है । इस किट से शरीर को हवा नहीं मिलती और असहजता पैदा होती है । जीवन को जोखिम में डालने वाले ये कर्मवीर इस किट को बड़ी हिम्मत और सही तरीके से पहनते हैं । थोड़ी सी असावधानी खतरनाक हो सकती है । ये कर्मवीर इस अवस्था में भी बड़े धैर्य और साहस से अपना कर्तव्य निभाते हैं ।

    हम इन कर्मवीरों को सलाम कहते हैं, नमन करते हैं और सलूट करते हैं । इनका कर्म व्यर्थ न जाय इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम कोरोना को हराने के लिए घर में रहें तथा कोविड प्रोटोकाल का सम्मान करें । अभी भी कुछ लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।  सबसे बड़ा धर्म देश है । देश को बचाएं और घर में रहें तथा प्रत्येक कर्मवीर को घर बैठे शुभकामना दें ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.06.2021

Monday 28 June 2021

Nadiyan : नदियां

खरी खरी- 879 : जब नदियाँ नहीं रहेंगी ?

    हल्द्वानी से मेरे एक मित्र ने पूछा है कि जहां CNG या विद्युत शवदाह की व्यवस्था नहीं है वहां तो लोग नदी किनारे ही शवदाह करेंगे । मेरा विनम्र निवेदन है कि जहां CNG या विद्युत शवदाह उपलब्ध है वहां भी लोग इनका उपयोग करने में हिचकते हैं । यमुना, गंगा या किसी नदी किनारे चिता में जलाने से मृतक स्वर्ग जाएगा बताया जाता है । हम पर तो अंधविश्वास औऱ प्रथा-परम्परा का रंग चढ़ा है ।

       प्रथा- परम्परा मनुष्य देश- काल- परिस्थिति देखकर बनाता है । मनुष्य को प्रथा - परम्परा नहीं बनाती । उत्तराखंड में जहां नदी नहीं है वहां भी शवदाह होता है । गांव से दूर इसके लिए भूमि निर्धारित है । सवाल तो यह है कि जब नदी नहीं रहेगी तो तब क्या अंधविश्वास ग्रसित लोग शायद शव को लेकर दाह करने समुद्र किनारे जाएंगे  ? उत्तराखंड में सौनी क्षेत्र से उदगम होकर खैरना -भुजान पर कोशी नदी में मिलने वाली कुजगढ़ नदी लगभग सूख गई है, अब केवल बरसात में ही पुनर्जीवित होती है ।  हमें अपनी भावी पीढ़ी के लिए जल बचाना है, इसलिए नदियों को बचाना है । कोविड के दौर में शव दाह और अंत्येष्टि की सभी परमपराएं टूट गईं ।

      नीति आयोग के अनुसार (रिपोट 15 जून 2018)  देश में निकट भविष्य में जल की गंभीर समस्या होने वाली है । वर्तमान में भी देश की आधी जनसंख्या को पीने का पानी ठीक से उपलब्ध नहीं है । देश की तीन चौथाई आबादी को पीने के पानी के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता है । कुएं, बावड़ी, चश्मे, नौले, धारे, सीर, छिड़, आदि सब सूख गए हैं । भूजल बहुत नीचे चला गया है । गांवों की अधिकांश आबादी जलापूर्ति से वंचित है । जो पानी उपलब्ध है उसका अधिकांश भाग प्रदूषित है । गंदे नालों से नदियों का रूप बिगड़ गया है। विसर्जन के नाम पर हैं नदियों में सबकुछ डाल रहे हैं।   बस कुछ नदियां हीं बचीं हैं जिन्हें हम प्रथा -परम्परा से ग्रसित होकर समाप्त करने में लगे हैं । वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में भी विश्व में हम बहुत पीछे हैं।  सोचें, समझें और बदलाव स्वीकार करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.06.2021

Sunday 27 June 2021

Gveljyu : ग्वेल ज्यू।

बिरखांत- 378 : ग्वेल ज्यू कसी बनी द्याप्त ?

     उत्तराखंड में ग्वेल/ गोलु/ गोरिल/ गोरिया/ दूदाधारी आदि नामल जो द्याप्त पुजी जांछ आजकि बिरखांत उनुकें कैं समर्पित छ जो उनुमें श्रद्धा धरनी | भगवान् त निराकार छीं, उनुकें न कैल देख और न क्वे उनु दगै मिल | फिर लै जब हम परेशान हुनूं, उनुकें याद करनूं | कुछ लोग मनुष्य रूप में ऐ बेर यतू लोकप्रिय है जानी कि लोग उनुकैं देव तुल्य मानण फै जानी | यसै एक दयाप्त ग्वेल ज्यू लै छीं जनार उत्तराखंड में कएक मंदिर छीं | जगरियों (दास ) क मुख बै सुणी अद्वायी और कुछ ऐतिहासिक स्रोतोंक अनुसार गोलु देवता जो उ क्षेत्रक रक्षक मानी जानी, जैकि काव्य गाथा मील आपणि किताब “उकाव-होराव” (2008) में लेखि रैछ, उनरि कहानि कुछ यसि छ -

     उत्तराखंड में कत्यूरी शासन काल ईसा पूर्व 2500 से 700 ई. तक लगभग 3200 वर्ष रौछ | य शासन में सूर्यवंशी-चक्रवर्ती राज हईं जनर भौत ठुल राज्य छी | गोलु ज्यु लै कत्यूरी वंशक राज छी | उनार बुड़बुबू तिलराई, बुबू हालराई और बौज्यू झालराई छी | गढ़ी चम्पावती- धूमाकोट मंडल य क्षेत्रक केंद्र छी | झालराई क सात ब्या करण पर लै संतान नि हइ | उनर आठूं ब्या कालिंका दगै हौछ जैकैं  पंचनाम द्याप्तां कि बैणी बताई जांछ | कालिंकाक गर्भ में गोलुक आते ही सातों सौत जलंगल बौयी गाय | उनूल कालिंकाक प्रसव होते ही एक सिन्दूक में गोलु कैं गाड़ बगै दे और प्रसव में ‘सिल- ल्वड़’ पैद हौछ बतै देछ | सिन्दूक कैं गोरिया घाट पर एक धेवरल गाड़ बै भ्यार निकाई बेर बालक कैं बचा और बालकक नाम धरौ गोरिया |

     जब बालक ठुल हौछ तो एक दिन झालराई –कालिंकाल गोलु कैं स्वैण में ऐ बेर पुरि कहानि बतै कि ऊँ उनार च्याल छीं | कहानि सुणते ही गोलु एक चमत्कारिक काठक घ्वड़ में भैटि बेर राणीघाट पुजीं जां सात सौत नां हुणि ऐ रौछी | उनूल सौतों कैं पाणी में जाण है रोकते हुए कौ, “पैली म्यर घ्वड़ पाणी प्यल |” सौतों ल जबाब दे, “काठक घ्वड़ पाणी कसी प्यल ?” जबाब, “ उसीके प्यल जसी कालिंकाल ‘सिल-ल्वड़’ कैं जन्म दे |” सौतों कैं आपणी करतूत याद ऐ गे | गोलु ज्यु सौतों कैं रजाक पास ल्ही गईं और पुरि कहानि बतै तो कालिंकाक छाति में बै दूद कि धार बगण फैगे | तब गोलु ज्यु क नाम दूदाधारी पड़ गोय | रजल सौतों कैं मौत कि सजा दी जैकैं गोलु ज्यूल ‘देश निकाल’ में बदलै दे |

     जब गोलु ज्यु राज बनीं तो प्रजाक दुःख दूर करण में लागि गईं | उनूल भ्रष्टाचार, अन्याय, गरीबी और अराजकता दूर करी | उं जन -हितक लिजी सफ़ेद रंगक घ्वड़ में बैठि बेर जनताक बीच में जांछी और सबूं कैं न्याय दिलौंछी | उं एक प्रजापालक और न्यायविदक रूप में भौत लोकप्रिय हईं जैक वजैल लोग उनरि पुज करण फैगाय | उं प्रजा कि भलाई क लिजी कैम्प लगूंछी | जिला नैनीतालक घोड़ाखाल नामक जागि पर ऊँ एक दिन घ्वड़ सहित पाणी में अंतरध्यान है गईं |

      गोलु ज्यु ल जां जां लै न्याय शिविर लगाईं वां आज लै गोलु द्याप्तक  मंदिर छीं जनूमें आज लै लोग अन्यायक विरुद्ध फ़रियाद करनी | उदाहरण क लिजी अल्मोड़ा (चितइ), रानीखेत (ताड़ीखेत), नैनीताल (घोड़ाखाल) सहित कएक जागि उनार मंदिर छीं जां फ़रियाद करणी जानीं | इनरि फ़रियादल बेईमान या अन्याइ पर मनोवैज्ञानिक दबाव पडूं जैल उ सुधरण क प्रयास करूं |

       ग्रामीण आँचल में स्थानीय द्याप्तों क बहुत ज्यादै थान-मंदिर छीं जनरि पुज में जगरिय-डंगरिय अंधविश्वास क जम बेर तड़क ( जमें पशु बलि लै छ ) लग़ै बेर सुरा-शिकार कि जुगलबन्दीक लुत्फ़ उठूनीं |  श्रद्धा हुण भलि बात छ पर अन्धश्रधा ठीक नि हुनि | एक आम आदिम में अमुक द्यप्तक अवतार हुण या नाचण एक देव नृत्य छ ( दिवंगत प्रोफेसर शेर सिंह बिष्ट इनुहैं देवनर्तक कूं छी )  किलै कि इनरि बात में क्वे जिम्मेदारी नि हुनि | वांच्छित परिणाम नि मिलण पर यूं लोग भाग्य या कर्मरेख या कर्मगति बतै बेर पल्ल झाड़ ल्हिनी | कैं न कैं इनर तीर-तुक्क लागि जांछ | अत: भगवान कि पुज एक निराकार कि चार हुण चैंछ और कैकै झांस में ऐ बेर क्वे चमत्कार कि उम्मीद नि करण चैनि |  श्रीकृष्णक कर्म संदेश हमूल याद धरण चैंछ | 

         हवन करण ल द्यो नि हुन | अगर हवन करि बेर द्यो हुनौ तो देश में कैं लै फसल चौपट नि हुनि | डंगरियोंल आपणी करामात देशहित में देखूण चैंछ और उग्रवाद पर चुनौतीक साथ नियंत्रण करण में मदद करण चैंछ | मुशर्रफ आपणी बेगमक दगाड़ ताजमहलक सामणि भैटि बेर फोटो खिचै बेर वापस गो और वापस जै बेर वील कारगिल काण्ड करौ जमै हमार 517 सैनिक शहीद हईं | बभूतक एक फुक्क यूं डंगरियों-जगरियों और तांत्रिकों ल मुसर्रफ पर मारण चैंछी ताकि वीकि बुद्धि ठीक है जानि |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.06.2021

Saturday 26 June 2021

Om Jai Jagdish hare : ओम जय जगदीश हरे

मीठी मीठी - 615 : ओम जय जगदीश हरे

       हम सब 'ओम जय जगदीश हरे ' आरती को अपने घर के मंदिर या अन्य मंदिरों में अक्सर गाते हैं भले ही इसका अर्थ नहीं समझते या इसके काथनानुसार नहीं चलते । इस आरती का लेखक कौन है ? यह प्रश्न हम नहीं पूछते । हम तो लोकप्रिय गीत 'ये मेरे वतन के लोगो ' भी गाते हैं परन्तु इसके गीतकार को भी नहीं जानते और न जानने की कोशिश करते हैं ।

     आरती के अंत में कुछ लोगों ने अपना नाम भी जोड़ दिया -  कहत ' फलाना..... स्वामी ' जबकि वे इसके लेखक नहीं हैं । कुंडली विधा में या पदों में में लेखक अपना नाम 5वें चरण /अंतिम पद में जोड़ता है । इस आरती के लेखक दिवंगत पंडित श्रृद्धा राम फिल्लौरी जी को बताया जाता है । वे फिल्लौर (लुधियाना के निकट, पंजाब) के रहने वाले थे । उनका जन्म 1837 में हुआ । वे एक विद्वान व्यक्ति थे । लगभग 1870 के दौरान उन्होंने इस आरती को लिखा और उन्होंने ही इसको संगीत - स्वर  वद्ध भी किया । वे इसे भागवत कथा के बाद गाते थे । (संदर्भ साभार राहुल सिन्हा ) ।

        उनके खंडहर मकान को कुछ महिलाओं ने 1996 में ठीक किया । अब वहां प्रतिदिन आरती होती है । इस आरती को फिल्म 'पूरब - पश्चिम ' में मनोज कुमार जी ने स्थान दिया और अंत में एक पंक्ति ' तेरा तुझको... क्या लागे मेरा ' जोड़ते हुए घर - घर तक पहुंचाया । 

      'ये मेरे वतन के' गीत के लेखक पंडित प्रदीप (कवि ) हैं जबकि लता जी ने इसे स्वर दिया । हमें उन लेखकों का नाम जानने की जिज्ञासा होनी चाहिए जिनके रचना का हम आनंद लेते । लोग इन अनाम लेखकों की रचनाओं से आजकल व्यवसाय करने लगे हैं । हमारे कुछ गायक भी मंच से गीत गाने से पहले उस लेखक का नाम नहीं लेते जिसका लिखा हुआ गीत गाकर वे पारिश्रमिक लेते हैं । यदि उनका नाम लेंगे तो उस गाने वाले को भी सम्मान मिलेगा । अतः 'फिल्लौरी जी को याद रखिए और आरती के शब्दों का मंथन करते हुए उन पर चलने का प्रयास करिए । अन्यथा हम 'मात - पिता तुम मेरे ... कहते तो जरूर हैं परन्तु स्थिति अरबी के पत्ते की तरह रहती है जिस पर जल का कोई असर नहीं होता । फिल्लौरी जी की जै । आशा के दीप से प्रकाश करते हुए कोरोना रूपी निराशा के अन्धकार को हम जरूर मिटाएंगे, प्रोटोकाल सहित वैक्सीन से। 

पूरन चन्द्र कांडपाल

27.06.2021

Ansuna rah Gaya kisaan ; अनसुना रह गया किसान

खरी खरी - 877 : अनसुना रह गया किसान

      एक तरफ किसानों की आय दोगुनी और लागत से डेड़ गुना अधिक देने की बात विगत वर्षों से हो रही है तो दूसरी ओर देश में लगभग बारह हजार किसान प्रति वर्ष आत्महत्या कर रहे हैं । आत्महत्या का एक कारण फसल के उचित दाम नहीं मिलना भी है । कहा तो जाता है किसान का एक भी उत्पाद बरबाद नहीं होगा और भोज्य परिसंस्करण मंत्रालय इस पर नजर रखेगा । आश्वासन कब पूरे हुए है ? शिमला मिर्च और टमाटर सहित कई नकदी फसलों की बंपर फसल उगाने वाले किसानों का भी इसी तरह शोषण हुआ है और रहा है ।

ये किसान तेरे
हाल पर रोना आया,
कभी आपदा ने
तो कभी बम्पर
ने तुझे रुलाया ,
इस दौर में दर्द
तेरा अधिक बढ़ा
जब चीन से आए क्रूर
कोरॉना ने तुझे रुलाया ।

      इधर तीन कृषि कानूनों के विरोध में 26 नवम्बर 2020 से आंदोलन करते हुए किसानों को आज 26 जून 2021 पूरे 7 महीने हो गए हैं । इस दौरान इस आंदोलन ने कई उतार - चढ़ाव देखे जिसमें कई किसान दिवंगत भी हो गए और कुछ ने अपनी जान दे दी । सरकार के साथ कई बैठकैं भी हुई परन्तु नतीजा कुछ नहीं निकला । इस आंदोलन के चलते किसानों का और देश का बहुत नुकसान हो रहा है । किसान भी देश के और सरकार भी देश की तथा जनता भी देश की । इस मुद्दे को सुलझाना अंततः सरकार का काम है । देश को आशा है कि इस मुद्दे को अब अधिक लंबा नहीं खींचा जाएगा। मुद्दा आपसी सामंजस्य और सौहार्द से किसानों को विश्वास में लेकर सुलझेगा । देश ने आजादी के बाद कई आंदोलन देखे और अंततः सभी आपसी बातचीत से सुलझ गए । वर्तमान किसान आंदोलन भी अंततः बातचीत से ही एक न एक दिन सुलझेगा, फिर देर क्यों की जाय ? 'जै जवान, जै किसान, जै विज्ञान' ये नारा शास्त्री जी ने लगाया और अटल जी ने विस्तार किया । इसको समझने की आज बहुत जरूरत है।

पूरन चन्द्र कांडपाल
26.06.2021

Apaatkaal ki yaad : आपातकाल की याद

खरी खरी - 878 : आपातकाल की याद

     प्रतिवर्ष आपातकाल की याद में 25 जून को तत्कालीन सरकार को उनके विरोधी खूब गरियाते हैं । तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान हमारे संविधान में है । यदि यह अनुचित है तो इसे हटाया क्यों नहीं जाता ? उस दौर का दूसरा पहलू भी है । वे दिन मुझे याद हैं जब बस- ट्रेन समय पर चलने लगे थे, कार्यालयों में लोग समय पर पहुंचते थे और जम कर काम करते थे , तेल -दाल- खाद्यान्न सस्ते हो गए थे, काले धंधे वाले और जमाखोर सजा पा रहे थे, देश में हर वस्तु का उत्पादन बढ़ गया था और भ्रष्टाचार का नाग कुचला जा चुका था, शिक्षा प्रोत्साहित हुई थी ।

     आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए और जनता पार्टी का राज आया परंतु यह राज मात्र 26 महीने ही रहा । आश्चर्य की बात तो यह है कि श्रीमती इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आ गई । सवाल उठता है कि यदि आपत्काल बुरा था तो इंदिरा गांधी इतनी जल्दी वापस कैसे आ गई ? आपत्काल का सबसे बुरा पहलू प्रेस पर सेंसर लगाना था और नीम-हकीमों द्वारा नसबंदी आप्रेसन से बिगड़े केसों का खुलकर प्रचार भी विरोधियों ने किया था । आज भी प्रेस/मीडिया के बारे कई सवाल उठते हैं। प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ मजबूत होगा तो देश का हित होगा। यदि इस पर जंक लग गया और यह लतकने लग गया तो फिर क्या होगा ?

        आज भी मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध और अकर्मण्यता कम नहीं हुई है । डीजल - पेट्रोल प्रतिदिन महंगा हो रहा है । आज दिल्ली में डीजल ₹ 88.3 (₹ 80.02 पिछले साल) और पेट्रोल ₹ 97.76 (₹ 79.92 पिछले साल) प्रति लीटर हो चुका है । इस समय देश के 9 राज्यों में पेट्रोल ₹ 100/- से पार है। हेल्थ केयर सिस्टम के चुस्त न होने से आज भी (कोरॉना को छोड़कर ) हजारों बच्चे बीमारियों से और लाखों बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं । ट्रेनों के बारे में सब जानते हैं कि कोई भी ट्रेन समय पर नहीं पहुँचती । 45 वर्ष पहले जो हुआ उससे हमने कुछ भी नहीं सीखा । आपातकाल के बारे में पक्ष -विपक्ष में आज भी जम कर बहस होती है । वर्तमान सत्ता को देश ने इसलिए चुना कि उसने कुछ वायदे किए थे । अब उन वायदों पर कार्य करने के बजाय हर समय विरोधियों को भूतकाल के लिए  गरियाना कितना उचित है ? 

     यह हमारे प्रजातंत्र की खूबी है कि सत्ता जनता के हाथ में है।  यह दुःख तो कचोटता ही है कि सत्ता पाते ही नेता अपने ही चुनाव घोषणा पत्र को भूल जाते हैं । जिस दिन हमारे नेता कर्म- संस्कृति को दिल से अपना लेंगे उस दिन हमारा देश उन देशों में मार्केटिंग करेगा जो हमारे देश में आज अपना बाजार ढूंढते हैं । विगत मार्च 2020 से आज तक देश कोरोना से जूझ रहा है जिससे कोरोना आपतकाल समझकर दृढ़ता से जूझने की सख्त जरूरत है । कोरोना से लड़ना अकेले सरकारों के बस में नहीं है। जब तक जनता दिल से साथ नहीं देगी हम कोरोना को नहीं हरा सकते। पहली और दूसरी कोरोना लहरों में हमसे जो गलतियों हुईं उनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। अब तो सबसे बड़ा कदम है 'वैक्सीन शरणम् गच्छामि।' अफवाहों से बचो, वैक्सीन लगाओ और कोरोना भगाओ। वैज्ञानिकों/चिकित्सकों के अनुसार नया डेल्टा प्लस वेरिएंट को भी वैक्सीन हरा सकती है।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.06.2021

Thursday 24 June 2021

Kabeer ka bagicha : कबीर का बगीचा

खरी खरी - 876 : कबीर का बगीचा
(जयंती पर विशेष लेख)

     आजकल कबीर की बात हो रही है, मगहर की भी बात हो रही है । क्या उनके अंधविश्वास विरोध का भी प्रचार करेंगे ? कबीर दास एक बार स्नान करने गये वहीं पर कुछ पंडे अपने पूर्वजों को पानी दे रहे थे । तब कबीर ने भी स्नान किया और पानी देने लगे । इस पर सभी पंडे हँसने लगे और कहने लगे कि "कबीर तू तो इन सब में विश्वास नहीं करता, हमारा विरोध करता है और आज वही कार्य तुम क्यों कर रहे हो जो हम कर रहे हैं ?

     कबीर ने कहा, "नहीं, मैं तो अपने बगीचे में पानी दे रहा हूँ । "कबीर की इस बात पर पंडे हँसने लगे और कबीर से कहने लगे,  "कबीर तुम बौरा गये हो, तुम पानी इस तलाब में दे रहे हो तो बगीचे में कैसे पहुँच जायेगा ?  कबीर ने कहा जब तुम्हारा दिया पानी इस लोक से पितरलोक तुम्हारे पूर्वजों के पास पहुंच सकता है तो मेरा बगीचा तो इसी लोक में है वहाँ कैसे नहीं जा सकता है?  सभी पंडों का सिर नीचे हो गया । पितरों के सम्मान में किसी भी सुपात्र अर्थात अनाथालय, विद्यालय, जनकल्याण के लिए दान देना उचित है।

       हम धातु या मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करते हैं परन्तु मां- बाप रूपी जीवित मूर्तियों की ओर देखते भी नहीं । देना है पानी, भोजन, कपडा़ तो अपने जीवित माँ बाप को दो । दिल से उनकी सेवा करो ।  उनका सम्मान करो । उनकी आत्मा को मत दुखाओ । उनके जाने के बाद तुम जो भी देना चाहोगे, ब्रह्मभोज /मृत्युभोज कराओगे, वह उन तक तो नहीं बल्कि पाखंडियों के पास पहुँचेगा ।

बुद्ध से बुद्धि मिली ,
कबीर से मिला ज्ञान                 
करना है करो प्यारो                    
जीते जी सम्मान ।

(साभार संपादित पोस्ट। 24 जून को कबीर जयंती पर पुनः संपादित एक अन्य लेख।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.06.2021

Wednesday 23 June 2021

Kabeer jayanti : कबीर जयंती

स्मृति - 614 :आज कबीर जयंती


     ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा वाले दिन संत कबीर की जयंती के रूप में मनाया जाता है । इस बार उनकी जयंती 24 जून 2021 दिन वीरवार को है। कबीर का जन्म सन् 1398 में माना जाता है। हमारे प्राचीन संतों ने दया और क्षमा को ही धर्म का मूल माना है। कबीर का जन्म जब हुआ उस समय सर्वत्र धार्मिक कर्मकांड और पाखंड का बोलबाला था । उन्होंने पाखंड के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और लोगों में भक्ति भाव का बीज बोया। उनके दोहों ने जीवन में हमेशा उन्नति का मार्ग खोला है और इंसान को समाज को बेहतर बनाने के लिए सही ज्ञान दिया है । मेरी पुस्तक 'लगुल' से उनके बारे में एक लघु लेख यहां उद्धृत है । कबीर दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए उनका एक लोकप्रिय दोहा प्रस्तुत है - 

कबीरा तेरा झोपड़ा 

गल कटियन के पास, 

जैसा करेगा वैसा भरेगा 

तू क्यों भया उदास। 

पूरन चन्द्र कांडपाल

24.06.2021

Tuesday 22 June 2021

thoomane wale : थूकने वाले

खरी खरी - 875 : 'थैंक यू' जहां-तहां थूकने  वालो

        शब्द-जालों के भ्रामक विज्ञापन पान मसालों के बारे में हम आए दिन देख- सुन रहे हैं | बड़े नामचीन सेलिब्रिटी विज्ञापन दे रहे हैं भले ही वे उस उत्पाद को न खाते हों । पाउच पर महीन अक्षरों में जरूर लिखा है, “पान मसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है" | पान मसाला, गुट्का, तम्बाकू, खैनी, जर्दा चबाने वालों और धूम्रपान करने वालों को अनभिज्ञता के कारण अपनी देह की चिंता नहीं है परन्तु इन्होंने सड़क, शौचालय, स्कूल, अस्पताल, दफ्तर, रेल- बस स्टेशन, कोर्ट- कचहरी, थाना, गली- मुहल्ला, सीड़ी- जीना, यहां तक कि श्मशान घाट - कब्रिस्तान तक अपनी गंदी करतूत से लाल कर दिया है |

       कोरोना के इस दौर में सार्वजनिक स्थानों पर थूकना बहुत गंभीर है । यदि वह रोगी है तो उसके थूकते समय ड्रोप्लेट (थूक के बहुत बारीक कण जो हवा में दूर तक तैरते हैं ) इंफेक्शन जरूर फैलेगा।  इस दौर में तो सभी तम्बाकू और गुटका उत्पाद बंद होने चाहिए क्योंकि इनसे थूकने की प्रवृति बढ़ती है ।  बस से बैठे-बैठे बाहर थूकना, कार से थूकना, दो-पहिये या रिक्शे से थूकना इनकी आदत बन गयी है | पान-सिगरेट की दुकान पर, फुटपाथ, दिवार या कोना सब इनकी काली करतूत से लाल हो गये हैं | जहां-तहां थूकने वालों का यह नजारा राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश का है | क़ानून बना है पर उसकी अवहेलना हमारे देश में आम बात है | क़ानून बनाने वाले और क़ानून के पहरेदार भी क़ानून की परवाह नहीं करते | हरेक थूकने वाले के पीछे पुलिस भी खड़ी नहीं हो सकती है |

      इन थूकने वालों को देख मसमसाने के बजाय, दो शब्द इन्हें “थैंक यू” कहने की हिम्मत जुटा कर हम स्वच्छता अभियान के भागीदार तो बन सकते हैं | “थैंक यू” इसलिए कि न लड़ सकते हैं और लड़ने से बात भी नहीं बनने वाली | हम तो अपने घर के बन्दे से भी इस मुद्दे पर कुछ कहने से डरते हैं | गुटका खाने वाला पति अपनी पत्नी की नहीं सुनेगा परन्तु यदि उसके बच्चे पिता को कैंसर के प्रति सचेत करें तो बात बन सकती है। बेटियां और बेटे दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकते हैं पिता के किसी भी नशे को छुड़ाने में । कार्य शुरु करने से पहले ही डरने की जरूरत नहीं, करके तो देखिए । इन पंक्तियों के लेखक ने अपने बूढ़े पिता को समझाकर उनसे धूम्रपान छुटाया था । बाजार में प्रत्येक पान या गुटका विक्रेता की दुकान के बाहर लोगों ने थूक कर वहां की जमीन लाल कर दी है । इसे कौन रोकेगा ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.06.2021