Thursday 28 February 2019

Kavi kavita par chalein : कवि कविता पर चलें

खरी खरी - 392 : कवि अपनी कविता पर तो चलें !

      समाज में कुछ ऐसे कवि, लेखक या साहित्यकार हैं जो अपनी ही कही बात पर नहीं चलते । जो कहते या लिखते हैं उस पर अमल नहीं करते ।

        ये लोग पृथ्वी को प्रदूषण से बचाने, पेड़ लगाने, यमुना या अन्य नदियों को गन्दा नहीं करने की खूब बातें करते हैं परंतु समय आने पर खुद उदाहरण पेश नहीं करते । ऐसा यमुना किनारे दिल्ली स्थित निगमबोध घाट पर अक्सर होता है जब ये लोग शव को CNG में दाह करने के बजाय शव की चिता यमुना के किनारे लगाते हैं और नदी को मैली, कुचैली करते हुए उसका प्रदूषण बढ़ाते हैं । यह बात अलग है कि ये लोग यमुना को 'मां' भी कहते हैं ।

       इसी तरह कुछ कवि शराब, गुटखा और धूम्रपान के विरुद्ध पढ़ी गई कविता के बाद शराब और बीड़ी- सिगरेट पीते हैं या गुटखा चबाते हैं । यह दुखद है ।  आप स्वयं को सरस्वती के वरद पुत्र समझते हैं और लोग आपको समाज का मार्ग दर्शन करने वाले कहते हैं । सरस्वती के वरद पुत्र कभी भी किसी प्रकार का नशा नहीं करते । क्या आपका वह लेख, कविता और भाषण जो आपने मंच से पढ़ा या लिखा, सिर्फ औरों के लिए है ? कृपया कविता के माध्यम से कही हुई अपनी बात पर चलें  । कथनी -करनी में अंतर न करें । ध्यान रहे, लोग आपको देख रहे हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.03.2019

Yuddh antim vikalp : युद्ध अंतिम विकल्प

खरी खरी - 391 : युद्ध तो अंतिम विकल्प है ।

      युद्ध से आजतक किसका भला हुआ है ?  युद्ध के बाद फिर वार्ता होगी । सभी युद्धों के बाद भारत- पाक में ही नहीं विश्व में कहीं भी, वार्ता ही हुई । इसलिए वार्ता के रास्ते ढूंढे जाने चाहिए । दोनों देशों को दुनिया के सभी देश भी संयम वरतने की सलाह दे रहे हैं । हमारी लड़ाई आतंकवाद से है । आतंकवाद से निपटने के अचूक रास्ते और अन्य तरीके ढूंढे जाने चाहिए । चूहों को पकड़ने के लिए भी चूहेदानी बदलनी पड़ती है । बिना युद्ध के भी समस्या सुलझ सकती है । एक फ़िल्म बनी थी 'बार्डर', उसका भी यही संदेश था ।

      कुछ टी वी चैनलों को संयम से बोलना चाहिए । देश को ब्यानवीरी का उन्माद नहीं चाहिए । युद्ध से  हथियार के व्यापारियों की चांदी हो जाती है । वे युद्ध से खुश होते हैं क्योंकि उनके हथियार बिकते हैं भलेही वे शांति की बात करते हैं । वे देश भी युद्ध से खुश होंगे जो हमें विकसित राष्ट्रों की सूची में नहीं देखना चाहते । हमारे मिग-पायलट को छुड़ाने के लिए शीघ्र कूटनीति से काम लेना चाहिए और भरपूर प्रयास होना चाहिए ।  हमारे सैन्यबल का मनोबल बहुत उच्च है जो हर परिस्थिति में दुश्मन को मुंहतोड़ जबाब दे सकता है । युद्ध तो अंतिम विकल्प है जिसके लिए विपक्ष सहित पूरा देश सेना और सरकार के साथ है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.02.2019

Tuesday 26 February 2019

Chandr shekhar ajad : चंद्र शेखर आजाद

मीठी मीठी -242 : आज 27 फरवरी चंद्र शेखर आज़ाद का बलिदान दिवस

      आजादी के महानायक चन्द्र शेखर आजाद की शहादत दिवस पर उनकी  स्मृति को शतः शतः नमन् । जिस आजादी को हासिल करने के लिए अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने मात्र 24 साल की उम्र में  27 फरवरी 1931 को शहादत दी थी, उसकी चर्चा मीडिया में बिलकुल नहीं । शहीदों का स्मरण भी करो भाई । देश के लिए अपना सबकुछ लुटा देने वालों की भी तो बात करो । कम से कम एक वाक्य तो बोलों, एक पंक्ति की खबर तो बनाओ । अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद को विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.02.2019

Op balakot : ओप्रेसन बालाकोट

मीठी मीठी -241 : हिन्द की सेना तुझे प्रणाम

(26 फरवरी 2019 को प्रातः 0330 पर आतंकवाद के गढ़ बालाकोट को ध्वस्त करने के लिए IAF को प्रणाम ।)

हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम
सारी मही में तेरा नाम,
दुश्मन के गलियारे में भी,
होती तेरी चर्चा आम |

गुरखा सिक्ख बिहारी कहीं तू,
कहीं तू जाट पंजाबी,
कहीं कुमाउनी कहीं गढ़वाली,
कहीं मराठा मद्रासी |

कहीं राजपूत डोगरा है तू,
कहीं महार कहीं नागा,
शौर्य से तेरे कांपे दुश्मन,
पीठ दिखाकर भागा |

नहीं हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई,
तू है हिन्दुस्तानी,
मातृभूमि पर मर मिट जाए,
ऐसा अमर सेनानी |

छब्बीस फरवरी दो हजार उन्नीस
किया अचूक प्रहार,
सफल आप्रेसन बालाकोट में
आतंक का किया संघार ।

हम भारत के सुरक्षाप्रहरी
दमखम अपना दिखलाया,
घर में घुसकर युद्धक विमान से
करतूत का सबक सिखाया ।

हिन्द की सेना तुझे प्रणाम
सारी मही में तेरा नाम,
दुश्मन के गलियारे में भी
होती तेरी चर्चा आम ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.02.2019

Monday 25 February 2019

Aarkshit koch mein bheed : आरक्षित कोच में भीड़

खरी खरी- 390 : आरक्षित रेल कोच में अन्य यात्री क्यों ?

     25 फरवरी 2019 को उत्तराखंड से वापस आते समय हल्द्वानी से उत्तराखंड सम्पर्क क्रांति एक्सप्रेस ( ट्रेन संख्या 15036, काठगोदाम से दिल्ली ) में अपनी आरक्षित सीट ( D-1, पूर्ण आरक्षित कोच ) में बैठकर प्रातः करीब 09.00 बजे यात्रा करने लगा । मुरादाबाद से इस कोच में बिना आरक्षण वाले लोगों की भीड़ घुसी जो कोच में सीटों के बीच की जगह औऱ टॉयलेट के बाहर बैठ गई । इस बात की जानकारी टिकट चैकर (कंडक्टर) को दी तो उसने रेल पुलिस की मदद से इस भीड़ को बाहर करने का आश्वासन दिया और चला गया । इसके बाद न कंडक्टर वापस आया, न पुलिस आई और न भीड़ को हटी । गाजियाबाद में कुछ भीड़ उत्तर गई तब कहीं कोच में टॉयलेट जाने का अब तक बंद रास्ता खुल सका ।


        आरक्षित टिकट लेकर यात्रा कर रहे यात्रियों को मिले इस त्रास के लिए जिम्मेदार कौन है ? भीड़ के कुछ लोगों ने तो यात्रियों को आँखें भी दिखाई । पता चला कि इस ट्रेन में प्रतिदिन ऐसा होता है । आज भी D-1 से D-10 तक के सभी दस कोचों का यही हाल था । समझ में नहीं आता कंडक्टर इस भीड़ को आरक्षित कोच में क्यों चढ़ने देते हैं ? लोगों का कहना है यह सब कंडक्टर और पुलिस की मिलीभगत से होता है जिसमें घूसतंत्र का भी हाथ होता है ।  रेल विभाग के उच्च अधिकारियों तक क्या कोई रेलवे की इस घूसतंत्र की कहानी को पहुंचा सकता है ताकि आरक्षित टिकट लेकर बैठे यात्रियों को इस त्रास- परेशानी से बचाया जा सके ?


पूरन चन्द्र काण्डपाल

26.02.2019


Sunday 24 February 2019

Mankhiyeki baat : मंखियेकि बात

खरी खरी -389 : मनखियेकि बात

मंखियैक जिंदगी
लै कसि छ,
हव क बुलबुल
माट कि डेल जसि छ ।

जसिक्ये बुलबुल फटि जां
मटक डेल गइ जां,
उसक्ये सांस उड़ते ही
मनखि लै ढइ जां ।

मरते ही कौनी
उना मुनइ करि बेर धरो,
जल्दि त्यथाण लिजौ
उठौ देर नि करो ।

त्यथाण में लोग कौनी
मुर्द कैं खचोरो,
जल्दि जगौल
क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।

चार घंट बाद
मुर्द राख बनि जां,
कुछ देर पैली लाख क छी
जइ बेर खाक बनि जां ।

मुर्दा क क्वैल बगै बेर
लोग घर ऐ जानीं,
घर आते ही जिंदगी की
भागदौड़ में लै जानीं ।

मनखिये कि राख देखि
मनखी मनखी नि बनन,
एकदिन सबूंल मरण छ
य बात याद नि धरन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.02.2019

Saturday 23 February 2019

Bharshtachaar : भ्रष्ट्राचार

खरी खरी - 387 : भ्रष्टाचार की बेहद खराब स्थिति

    एक राष्ट्रीय दैनिक हिंदी समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट के अनुसार भ्रष्टाचार को लेकर भारत के सरकारी क्षेत्र की छवि दुनिया की निगाह में अब भी खराब है । अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इन्टर्नेसनल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल करप्शन इंडेक्स-2017 में दुनिया के 180 देशों में भारत को 81वें स्थान पर रखा गया है । देश को विभिन्न कसौटियों में 100 में से 40 अंक मिले । अंक भ्रष्टाचार के हिसाब से दिये जाते हैं अर्थात जितने कम अंक उतना अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त होना माना जाता है ।

     ट्रांसपेरेंसी इन्टर्नेसनल के अनुसार, 'पूरे एशिया- प्रशांत क्षेत्र के कुछ देशों में पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, विपक्षी नेताओं और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के अधिकारियों को धमकियां दी जाती हैं । कहीं कहीं तो उनकी हत्या भी कर दी जाती है । इन देशों में 6 वर्ष में 15 ऐसे पत्रकारों की हत्या हो चुकी है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्य करते थे ।  इस सूची में चीन 77वें और रूस 135वें स्थान पर हैं जबकि सीरिया, सूडान और सोमालिया क्रमशः 14, 12 और 9 अंक के साथ सबसे नीचे हैं । न्यूजीलैंड और डेनमार्क सबसे कम भ्रष्ट हैं जिन्हें क्रमशः 89 और 88 अंक प्राप्त हुए ।

     हमें अपने देश की चिंता है । हमारे देश में सरकारी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार कम नहीं हो रहा । वर्तमान PNB बैंक घोटाला बहुत दुःखित करता है जिसमें ऐसा लगता है कि यह कांड सबकी मिलीभगत से हुआ । रेल में पुलिस के वे वीडियो आम हैं जिसमें ड्यूटी करने वाला पुलिसमैन यात्रियों से उघाई करता है । ट्रैफिक पुलिस भी जेब भरती है,  रेड़ी-ठेले वालों को सड़क पर अवैध कब्जा देकर हफ्ता लिया जाता है । कहाँ तक गिनवायें, यत्र - तत्र - सर्वत्र भ्रष्टाचार का ही बोलबाला है । कानून तोड़ने वालों को पुलिस या कर्मचारी सह देते हैं और बदले में कीमत वसूलते हैं  ।  यही भ्रष्टाचार का ऐवरग्रीन चक्र है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.02.2019

Ye jahan tahan thookane wale : ये जहां तहां थूकने वाले

खरी खरी - 388 : ये जहां –तहां थूकने वाले

       ‘दाने-दाने में केसर’, ‘बेजोड़’ आदि शब्द-जालों के भ्रामक विज्ञापन पान मसालों के बारे में हम आए दिन देख-सुन रहे हैं | पाउच पर महीन अक्षरों में जरूर लिखा है, “पान मसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ | पान मसाला, गुट्का, तम्बाकू, खैनी, जर्दा चबाने वालों और धूम्रपान करने वालों को अनभिज्ञता के कारण अपनी देह की चिंता नहीं है परन्तु इन्होंने सड़क, शौचालय, स्कूल, अस्पताल, दफ्तर, रेल-बस स्टेशन, कोर्ट-कचहरी, थाना, गली-मुहल्ला, सीड़ी-जीना, यहां तक कि श्मशान घाट तक अपनी गंदी करतूत से लाल कर दिया है |

     बस से बैठे-बैठे बाहर थूकना, कार से थूकना, दो-पहिये या रिक्शे से थूकना इनकी आदत बन गयी है | पान-सिगरेट की दुकान पर, फुटपाथ, दिवार या कोना सब इनकी काली करतूत से लाल हो गये हैं | जहां-तहां थूकने वालों का यह नजारा राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश का है | क़ानून बना है पर उसकी अवहेलना हमारे देश में आम बात है | क़ानून बनाने वाले और क़ानून के पहरेदार भी क़ानून की परवाह नहीं करते | हरेक थूकने वाले के पीछे पुलिस भी खडी नहीं हो सकती है |

      इन थूकने वालों को देख मसमसाने के बजाय, दो शब्द इन्हें “थैंक यू” कहने की हिम्मत जुटा कर हम स्वच्छता अभियान के भागीदार तो बन सकते हैं | “थैंक यू” इसलिए कि न लड़ सकते हैं और लड़ने से बात भी नहीं बनने वाली | हम तो अपने घर के बन्दे से भी इस मुद्दे पर कुछ कहने से डरते हैं |  कुछ महीने पहले काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर जर्मनी के एक जोड़े ने बातों-बातों में मुझे रेलवे प्लेटफार्म की इस गन्दगी के बारे में इस तरह बताया, “आपके देश में सार्वजनिक सम्पति से लोगों को प्यार नहीं हैं | जहां-तहां कूड़ा फैंकने और थूकने को गलत नहीं मानते, आदि-आदि | उन्होंने हमारी और भी कएक बुराइयां गिनवाई तथा कड़वे अनुभव सुनाए | उनकी बात सही थी | बहुत शर्मिंदा हुआ | क्या बचाव करता, कौनसी छतरी खोलता | हम हैं ही ऐसे |

     उस जोड़े के पास दिल्ली आने का टिकट तो था परन्तु आरक्षण नहीं था | मेरा एक बर्थ रिजर्व था | मैंने बिगड़ी तस्वीर को सुधारने की सोच के साथ कहा, “आप टी टी ई से कहें, वह आपकी मदद करेगा | यदि बर्थ नहीं मिले तो आप मेरे पास जरूर आइए |”  मैंने उन्हें अपना बर्थ और बोगी नंबर लिख कर दे दिया | मैं मन ही मन सोच रहा था, “काश ! वह जोड़ा आ जाता तो मैं छै घंटे जैसे-तैसे काट लेता परन्तु उस जोड़े को अपना बर्थ दे देता | एक घंटा बीतने पर भी वह जोड़ा नहीं आया | शायद उन्हें बर्थ मिल गया होगा | मुझे आज भी मलाल है कि मैं उस विदेशी जोड़े के सामने अपने देश की इमेज सुधारने का भागीदार नहीं बन सका |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.02.2019

Thursday 21 February 2019

Jad bhrashtachaar ki : जड़ भ्रष्टाचार की

खरी खरी - 386 : जड़ भ्रष्टाचार की

जड़ भ्रष्टाचार की
मजबूत इतनी हो गई,
उखड़ वह सकती नहीं
शक्ति सारी खो गई ।

रेत के पुल बन रहे हैं
नजरें घुमाए वे खड़े,
खा रहे भीतर ही भीतर
राष्ट्र को दीमक बड़े ।

डिग्रियां तो बिक रही हैं
अब सरे बाजार में,
नाव शिक्षितों की डोली
जा रही मजधार में ।

मंतरी से संतरी तक
बिक रहे हैं खुलेआम,
घोटालों के संरक्षक
घूम रहे हैं बेलगाम ।

बैंक खाली करके वो तो
छोड़ गया है देश को,
थोड़े कर्ज में जो दबा था
वो छोड़ रहा है देह को ।

भ्रष्ट लोगों के घरों में
जल रहे घी के दीये,
रोकने वाले थे जो
वे भी उन्हीं में मिल लिए ।

टूट रहा है मनोबल
कर्मठ निष्ठावान का,
चक्रव्यूह घेरे उसे है
भ्रष्ट चोर शैतान का ।

सत्यवादी सद्चरित्र का
मान पहले था जहां,
आज झूठे चोर बेईमान
पूजे जाते हैं वहां ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.02.2019

Wednesday 20 February 2019

Matribhasha diwas : मातृभाषा दिवस

दिल्ली बै चिठ्ठी  ऐ रै


हमरि मातृभाषा (21 फरवरी मातृभाषा दिवस )


      कुमाउनी और गढ़वाली भाषाओं  कें संविधान क आठूँ अनुसूची में जब तक जागि नि मिला, यूं भाषाओं क जानकार, लेखक, कवि और साहित्यकार चुप बैठणी न्हैति ।  चनरदा बतूं रईं, " संघर्ष जारी धरण पड़ल, कुहूक्याव मारण पड़लि । जैकें जब मौक मिलूं य बात कि चर्चा जरूर हुण  चैंछ ।   जनप्रतिनिधियों कि कुर्सि, दुलैच, आसन कैं ढ्यास मारण में कसर नि छोड़ण  चैनि ।   

      रचनाकार आपण काम करैं रईं  ।  लेखें रईं, आफी छपों रईं और फिरी में बाटें रईं । यमें रचनाकारों ल निराश नि हुण चैन ।  आपणी मातृभाषा लिजी तन-मन- धन खर्च करण सबूं है ठुल पुण्य छ ।   यौ काम क लिजी दिल क साथ 'पहरू', 'कुर्मांचल अखबार' और 'कुमगढ़' कैं साधुवाद दींण चानू । यूं तपस्वियों है लै ठुल काम करें रईं ।"


     चनरदा ल विलुप्त हुणी भाषाओँ पर लै चिंता जतूनै कौ, "एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र में यूनेस्को क अनुसार दुनिय में 6000 भाषाओँ में 2500 तुप्त हुण कि  आशंका छ ।  हमार देश में 196 भाषाओं कैं लुप्त हुण क खत्र छ ।  दुनिय में करीब 200 भाषा यास छैं जनार बलाणी 10 है लै कम रै गईं ।  


      भाषाओँ क अंत हुण ल संस्कृति क लै अंत है जांछ क्येलै कि यूं एक दुसार क परिपूरक छीं ।   दुनिया क 96% भाषा केवल 3% आबादी बलैंछ जबकि 97% आबादी 4 % भाषाओं कें बलानी । दुनिय में ज्यादै बलाई जाणी 65 भाषाओँ में 11 भारत में छीं ।  हमार देश में भाषाई सर्वेक्षण 80 वर्षों बटि नि है रौय ।  सरकार यैक लिजी गंभीर न्हैति ।  


      कुमाउनी और गढ़वाली भाषाओँ क बलाणियां कि संख्या उत्तराखंड और देशा क अन्य राज्यों में डेड़ करोड़ है ज्यादै छ ।  द्विये भाषाओं  क साहित्य लै छ और साहित्यकार लै छीं । एक दौर में यूं राजकाज क भाषा लै छी । मान्यता दीण क लिजी यूं द्विए सब शर्त लै पुर करनीं ।  इनुकैं मान्यता मिलण पर इनरि दिदी हिंदी कैं क्ये लै नुकसान नि ह्वल बल्कि उ और समृद्ध ह्वलि ।  द्विए भाषाओं कि लिपि लै देवनागरी छ । अगर राज्य सरकार हिम्मत करो तो इस्कूलों में यूं द्विये भाषाओँ कें पढूनै कि शुरुआत है सकीं ।  जो भाषा लोक में रची- बसी छ उकें मान्यता दींण  में डाड़ क्ये बात कि ? " मातृभाषा दिवसकि सबूं कैं शुभकामना ।


पूरन चन्द्र काण्डपाल 

21.02.2019


 


Matri bhasha diwas : 21 फरवरी मातृ भाषा दिवस

बिरखांत - 251 : क्या हुआ..आ.. तेरा वादा..आ..आ.. ? 

(21 फरवरी मातृभाषा दिवस पर विशेष )


 


           आज के युग में वायदा करने में लोग देर नहीं लगाते परन्तु निभाने में देर की बात छोड़ो, वायदा ही भूल जाते हैं | एक हजार से अधिक वर्ष पुरानी कुमाउनी-गढ़वाली भाषा जो कभी कत्यूरी और चंद राजाओं की राजकाज की भाषा थी, गोरखा आक्रमण में मार डाली गई | रचनाकार आगे आए और भाषा पुन: पनप गई | 

     दो दशक पहले कुछ मित्रों ने कहा, ‘आप हिन्दी में लिख रहे हैं अच्छी बात है परन्तु कुमाउनी मरने लगी है, इसे भी ज़िंदा रखो |’ मैंने प्रयास किया और कुमाउनी की कुछ विधाओं पर बारह (12)  पुस्तकें लिख दी | दो पुस्तकें ‘उज्याव’ (उत्तराखंड सामान्य ज्ञान, कुमाउनी में ) और ‘मुक्स्यार’ ( कुमाउनी कविताएं ) निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड सरकार ने कुमाऊं के पांच जिल्लों- अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, पिथौरागढ़ और चम्पावत के सभी पुस्तकालयों हेतु खरीदने के लिए इन सभी जिल्लों के मुख्य शिक्षा अधिकारियों को पत्रांक २२४८१-८६/पुस्तकालय/२०१२-१३ दिनांक २३ जून २०१२ के माध्यम से आदेश दिया |

      तब से 7 वर्ष बीत चुके हैं, कई स्मरण पत्र देने पर भी आज तक एक भी पुस्तक नहीं खरीदी गई | नीचे से ऊपर तक कुर्सी में बैठे हुए जिस साहब से भी कहा उसने वायदा किया परन्तु परिणाम शून्य रहा | यही नहीं दिल्ली और उत्तराखंड की कई नामचीन संस्थाओं एवं कई व्यक्तियों ने भी मेरे अनुरोध पर विद्यार्थियों के लिए लिखी गई मेरी पांच पुस्तकों (उज्याव, बुनैद, इन्द्रैणी, लगुल, महामनखी –प्रत्येक का मूल्य मात्र 100/- ) को समाज में पहुंचाने का कई बार बचन दिया, वायदा किया परन्तु इक्का-दुक्का व्यक्तियों ने ही वायदा निभाया | 

     इन पुस्तकों में मैंने सूक्ष्म शब्दों में गुमानी पंत, गिरदा, शेरदा, कन्हैयालाल डंड्रीयाल, पिताम्बरदत बड़थ्वाल, शैलेश मटियानी, सुमित्रानंदन पंत, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली, ज्योतिराम काण्डपाल, बिशनी देवी शाह, टिंचरी माई, लवराज सिंह धर्मशक्तु, सुन्दरलाल बहुगुणा, बछेंद्री पाल, गौरा देवी, विद्यासागर नौटियाल, श्रीदेव सुमन, चंद्रकुंवर बर्त्वाल सहित गंगा, हिमालय, उत्तराखंड राज्य, पर्यटन, स्वतंत्रता सेनानी, किसान, सैनिक, विद्यार्थी, अध्यापक एवं राष्ट्र के कई महापुरुषों,( 8 नोबेल, 45 भारतरत्न, 21 परमवीरचक्र, 66 अशोकचक्र ) १३ राष्ट्रपतियों, १४ प्रधानमंत्रियों तथा कई अन्य विषयों को छूने का प्रयास किया है | 

     विचार गोष्ठियों एवं सम्मेलनों में अक्सर इस साहित्य को गांव-देहात तक पहुंचाने के खूब वायदे सुनता हूं परन्तु क्रियान्वयन शून्य | काश ! हम सब एक-एक पुस्तक भी अपने घर /संस्था में रखते, अपने गांव के अध्यापक- सभापति- सरपंच तक पहुंचाते तो बच्चे अवश्य जानते कि ये ‘गिरदा’-‘ गढ़वाली’ आदि उक्त व्यक्ति कौन हैं और हमारी लिखित भाषा भी उन तक पहुंचती | हम आयोजन में आए, भाषण दिया, भाषण सुना और वापस | बस | निराश नहीं हूं | वसंत जरूर आएगा | 

“अभी निराशा का घुप्प 


अंधेरा नहीं हुआ है, 


आशा के रोशन चिराग


 भी हो रहे हैं; 


खुदकुशी करने का मन


 जब करता है कभी, 


पहरे जीने की तम्मन्ना


 के भी लग रहे हैं |” 

पूरन चन्द्र काण्डपाल


21.02 .2019

Tuesday 19 February 2019

Ravidas : रविदास

मीठी मीठी - 240 : संत शिरोमणि रविदास जी का स्मरण

     भक्तिकाल ( 1375 - 1700 ई.) में कई संत हुए जिन्होंने अपने स्वर, सुर, संगीत, गीत, साहित्य और साधना से समाज में कई सुधार किए । उस दौर में समाज में आज की तुलना में अधिक विषमता और सामाजिक अन्याय था । इसी दौरान संत परम्परा के महान योगी संत रविदास जी ( जन्म 1398 और मृत्यु 1540 बनारस में ) का भी अवतरण हुआ । कुछ लोग उनका जन्म 1450 और मृत्यु 1520 ई. बताते हैं ।

      कवि, संत और समाज सुधारक रविदास जी दक्षिणा और दान पर आश्रित नहीं रहे । वे कर्मयोगी थे और जूता बनाकर आजीविका चलाते थे । उनके गुरु रामानंद जी भी एक महान समाज सुधारक थे । सिक्खों के ग्रन्थ 'गुरु ग्रन्थ साहब' में भी रविदास जी की वाणी है । रविदास जी ने समतामूलक, जाति रहित भाई चारे वाले  समाज की परिकल्पना की थी । 'मन सच्चा तो कठौती में गंगा ' उनके बारे में प्रसिद्ध कथन है । वे 'जाति पाति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई' विचार के समर्थक थे ।

     हर साल माघ पूर्णिमा को उनकी जयंती देशभर में मनाई जाती है । कल 19 फरवरी 2019 को उनकी जयंती देश भर में मनाई गई । उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक सौहार्द पूर्ण और भाई चारे से ओतप्रोत समाज बनाने का संकल्प हम कभी भी, किसी भी अवसर पर अवश्य कर सकते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.02.2019

Monday 18 February 2019

भयात और हिमालयन हाइट्स

मीठी मीठी - 239 : भयात संस्था द्वारा महिला सम्मान और हिमालयन हाइट्स का बिजनेस उत्तरायणी-2019 आयोजन

     कल 18 फरवरी 2019 को भयात एन जीओ दिल्ली द्वारा विश्व युवक केंद्र नई दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की कई महिलाओं को एक साधारण समारोह में सम्मानित किया जिन्होंने समाज के हित में उतरैणी सहित कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किया । इस अवसर पर कई संस्थाओं को भी सम्मानित किया गया । इस सम्मान समारोह में डा. जीतराम भट्ट , सचिव हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार सहित कई विशिष्ट और गणमान्य  व्यक्ति उपस्थित थे ।

     भयात संस्था की अध्यक्ष श्रीमती रोशनी चमोली और महासचिव सूरज रावत ने सभी सम्मानित व्यक्तियों और सभागार में उपस्थित सभी दर्शकों का आभर व्यक्त किया ।  इस अवसर पर जीवन्ती प्ले स्कूल नजफगढ़ के छोटे -छोटे बच्चों द्वारा बहुत ही शिक्षाप्रद नाटक प्रस्तुत किया ।

     इसी सभागार में अपरान्ह 'हिमालयन हाइट्स बिजनेस उत्तरायणी- 2019' का एक मोटिवेसनल कार्यक्रम भी आयोजित किया गया जिसका सूत्र- संयोजन और मोटिवेसन नीरज बवाड़ी ने किया । इस आयोजन में भी कर्नल डी पी डिमरी, डा. हरिसुमन बिष्ट, दीवान सिंह नयाल, एस एस गुसाईं, बृजमोहन उप्रेती, सूर्यप्रकाश सेमवाल, सुरेन्द्र सिंह हालसी, अनूप साह (पद्मश्री), चंदन सिंह डांगी सहित कई बिजनेस ग्रुप से जुड़े हुए व्यक्ति उपस्थित थे ।

       उक्त दोनों कार्यक्रमों के आयोजकों की जिजीविषा, कर्मठता और समाजिकता को हार्दिक शुभकामना और सफल आयोजन के लिए बधाई ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.02.2019

Sunday 17 February 2019

Badridatt pandey : बद्रीदत्त पांडे

मीठी मीठी - 238 : कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पांडे जी की 137वीं जयंती 


    17 फरवरी 2019 को गढ़वाल भवन नई दिल्ली में उत्तराखंड फ़िल्म एवं नाट्य संस्थान (UFNI) नई दिल्ली द्वारा स्वतंत्रता सेनानी कुमाऊँ केसरी पंडित बद्री दत्त पांडे जी की 137वीं जयंती मनाई गई । इस अवसर पर पांडे जी के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान की चर्चा के साथ वर्तमान राजनीति से उसका तुलनात्मक विमर्श भी हुआ । मुख्य वक्ताओं में सर्वश्री लक्षमण सिंह रावत, हरिपाल रावत, संरक्षक भंडारी, अध्यक्ष सु. संयोगिता ध्यानी, सु. वसुधा पांडे, हेम पंत, दिनेश ध्यानी, सु. सुषमा जुगरान,  सी एम पपनै, चारु तिवारी और पूरन चन्द्र काण्डपाल आदि थे । संस्था की अध्यक्ष श्रीमती संयोगिता ध्यानी ने सभी आगन्तुकों का आभार व्यक्त किया । मंच संचालन श्री बृज मोहन शर्मा ने किया । 

      कार्यक्रम के आरंभ में कश्मीर पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को शहीद हुए CRPF के 40 जवानों सहित सेना के शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई । पहले से नियोजित इस कार्यक्रम में कोई सांस्कृतिक आयोजन नहीं हुआ । एक गमगीन परिदृश्य में सभी शहीदों का स्मरण किया गया । सभी वक्ताओं ने भी किसी न किसी तरह अपना रोष प्रकट किया और शहीद परिवारों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की । 

     कुमाऊँ केसरी बदरी दत्त पांडे जी का जन्म 15 फरवरी 1882 को विनायक पांडे जी के घर कनखल में हुआ । बाद में वे अल्मोड़ा आये । उन पर विवेकानंद जी और ऐनीवेसेन्ट का प्रभाव था । उन्होंने 1905 नें देहरादून में नौकरी की । वे 1910 तक इलाहाबाद में एक संपादक के साथ रहे । उन्होंने अल्मोड़ा अखबार और शक्ति अखबार नें काम किया । वे गांधी जी के संपर्क में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे । 13 जनवरी 1921 उत्तरायणी के दिन  कुली बेगार के रजिस्टर गोमती-सरयू के संगम बागेश्वर में उनके नेतृत्व में बहाए गए । वे अंग्रेजों के दमन और बंदूक से निर्भीक होकर अहिंसा से स्वतंत्रता की आवाज बुलंद करते रहे और "कुमाऊँ केसरी" कहलाये ।  इस तरह मानव जाति को कलंकित करने वाली कुली बेगार प्रथा का  उत्तराखंड से अंत हुआ । 

      बद्रीदत्त पांडे जी  स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 7 वर्ष तक अलग- अलग जेलों में बंद रहे । 1937 में उन्होंने "कुमाऊँ का इतिहास" पुस्तक लिखी । वे संयुक्त प्रांत के सदस्य, जिला परिषद के सदस्य, केंद्रीय एसेम्बली सदस्य तथा लोकसभा के सदस्य रहे । 13 जनवरी 1964 को 83 वर्ष की उम्र में उनका देहावसान हो गया । वे एक निर्भीक पत्रकार, कुशल प्रशासक और जन प्रिय नेता थे । उनके नाम से नैनीताल में एक अस्पताल और बागेश्वर में पोस्ट ग्रेज्युएट कॉलेज है । हम ऐसे महामानव को उनकी 137वीं जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.02.2019