Sunday 31 March 2019

Dwi kavi sammelan :द्वि कवि सम्मेलन

मीठी मीठी - 255 : बेई आपणि भाषाक द्वि कवि सम्मेलन 

     बेई 31 मार्च 2019 हुणि दिल्ली में द्वि जागि आपणि भाषा कुमाउनी-गढ़वाली में कवि - सम्मेलन आयोजित करिगो । पैल कवि सम्मेलन धोपरि है पैलि गढ़वाल भवन नई दिल्ली में उत्तरांचल विद्वत परिषद दिल्ली द्वारा आयोजित हौछ और ब्याखुलिक टैम में  दुसर कवि -सम्मेलन सुशांत विहार में उत्तराखंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच सुशांत विहार दिल्ली (अध्यक्ष बलवंत सिंह रावत और महासचिव रमेश हितैषी  ) द्वारा आयोजित करिगो ।


        गढ़वाल भवन में विद्वत परिषदक अध्यक्ष पंडित महिमानंद द्विवेदी ज्युकि अध्यक्षता एवं वरिष्ठ कवि रमेश चंद्र घिल्डियाल ज्यूक संयोजन और डा. पवन मैठानी ज्यूक संचालन में हौछ । य आयोजन में नव- वर्ष एवं नव संवत्सर पर विचार गोष्ठी हैछ जमें मुख्य वक्ता छी सर्वश्री पं महिमानंद द्विवेदी, डॉ जीतराम भट्ट, डॉ हेमा उनियाल, सुश्री मीरा गैरौला,  कुसुम नौटियाल, पूरन चन्द्र काण्डपाल,  सी एम पपनै, मंगत राम धस्माना, डॉ प्रयाशी,  पं मधुकर द्विवेदी आदि ।  आयोजन में कएक आचार्योंल लै स्वस्ति वाचन करौ । कवि सम्मेलन में मुख्य कवि छी सर्वश्री ललित केशवान, पूरन चन्द्र काण्डपाल, दिनेश ध्यानी, जयपाल सिंह रावत, रमेश हितैषी, गिरीश भावुक आदि । य मौक पर द्वि किताबोंक लोकार्पण लै हौछ - 1. 'उत्तराखंड के सिद्धपीठ' (लेखक मंगत राम धस्माना), 2.'उत्तराखंड की भाषा के ध्वनि आखर' (लेखक डॉ बिहारी लाल जलंधरी ) ।


      सुशांत विहार कवि-सम्मेलन में सुरेन्द्र रावत ज्यूक अलावा बाकि सब उईं कवि छी जनूल गढ़वाल भवन में काव्यपाठ करौ । याँ सांस्कृतिक कार्यक्रम लै छी जैक संचालन सुश्री मंजू बहुगुणा द्वारा हौछ । य कार्यक्रम में अन्य कलकारोंक अलावा मुख्य गायक छी सर्वश्री बिशन हरियाला, महेन्द्र सिंह रावत, सुश्री चंद्रकांता शर्मा और कविता गुसाईं । कार्यक्रम में जां एक तरफ कवियोंल काव्य रसकि इंद्रधनुषी बारिश करी, वां दुसरि तरफ गायकोंल लै गीत गंगा बहै । द्विये सफल आयोजनोंक लिजी आयोजकों कैं भौत-भौत बधै और शुभकामना । साहित्यिक आयोजनोंक  दी जागते रौण चैंछ तबै हमरि भाषा एवं संस्कृति ज्यौन रौलि और फललि-फललि ।


पूरन चन्द्र काण्डपाल

01.04.2019


Saturday 30 March 2019

Kavi-sammelan : कवि- सम्मेलन

मीठी मीठी - 254 : इंदिरापुरम गाजियाबाद में कुमाउनी-गढ़वाली कवि-सम्मेलन


        बेई 30 मार्च 2019 हुणि रामलीला मैदान रेल विहार इंदिरापुरम गाजियाबाद उ प्र में पर्वतीय प्रवासी जन-कल्याण समिति (पं) इंदिरापुरम द्वारा उत्तराखंड पंचिमी महोत्सव कार्यक्रम में कुमाउनी-गढ़वाली कवि-सम्मेलन आयोजित करिगो । कवि-सम्मेलन में मुख्य कवि छी सर्वश्री ललित केशवान, पूरन चन्द्र काण्डपाल, दिनेश ध्यानी, पी एस केदारखंडी, रमेश घिल्डियाल, बी पी जुयाल, जयपाल सिंह रावत, गिरीश चन्द्र बिष्ट, रमेश हितैषी, ओमप्रकाश आर्य और चंदन प्रेमी ।

       य पूर्वनिर्धारित आयोजन पैली मार्च म्हैणक पैल हफ्त में तय छी । 14 फरवरी 2019 हुणि पुलवामा कांड में 40 सुरक्षाबलोंक जवानोंकि शहीदी वजैल कार्यक्रम उटैम में रद्द करि दे । आज कवि-सम्मेलन है पैली देशाक शहीदोंकि याद में द्वि मिनटकि मौन श्रद्धांजलि दिई गे । य मौक पर संस्थाक महिलाओं द्वारा भजन प्रस्तुत करिगो । गायक और संगीतज्ञ 'मधुर' ज्यू द्वारा लै भजन प्रस्तुति दिई गे । अमृत वर्षा फाउंडेसनक नना द्वारा लै देशभक्ति गीत एवं नृत्य पेश करिगो । मंच संचालन सुश्री हंसा अमोला और केदारखंडी ज्यूल करौ ।  आयोजकों कैं हमरि भाषाक कवि-सम्मेलन आयोजन करणक लिजी हार्दिक धन्यवाद और सफल कार्यक्रमक लिजी शुभकामनाक दगाड़ बधाई ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.03.2019

Friday 29 March 2019

Maya naheen mahaan : माया नहीं महान

खरी खरी - 406 : माया नहीं महान

(पैसा बहुत कुछ है परन्तु सबकुछ नहीं । कुछ चीज़ें पैसे से नहीं खरीदी जा सकती । यही इस कविता/गीत में कहने का प्रयास है ।)

जग में माया नहीं महान,
फिर तू काहे करे गुमान ।

माया से तुझे मिले बिछौना
नींद न मिलने पाये,
माया से साधन मिल जाते
खुशी न मिलने पाये,
माया से तुझे मिलता मंदिर
मिले नहीं भगवान । जग...

माया से मिले भवन चौबारे
घर नहीं मिलने पाये,
दवा -आभूषण मिले माया से
मुस्कान न मिलने पाये,
माया से पोथी मिल जाए
नहीं मिल पाये ज्ञान । जग...

माया से प्रसाधन मिलते
मिलते नहीं संस्कार,
माया से संस्कृति मिले ना
मिल जाता बाजार,
अंत समय कछु हाथ न लागे
सभी खोखला जान । जग...

'यादों की कलिका से'
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.03.2019

Thursday 28 March 2019

Kabootar : कबूतरों को दाना

बिरखांत – 257 : पक्षियों को दाना


     अक्सर लोग पक्षियों को दाना- पानी डाल कर पुण्य कमाने की बात करते हैं | प्रकृति का एक नियम है कि यहाँ सबके लिए प्राकृतिक तौर पर भोजन- पानी उपलब्ध है | चिड़िया किसी से कुछ नहीं मांगती, खुद अपने लिए दाना- दुनका चुग लेती है | बाज किसी से नहीं मांगता, अपना शिकार ढूंढ लेता है | चील, उल्लू, चमगादड़ से लेकर कबूतर, गौरैया और हमिंग बर्ड तक सब अपना- अपना भोजन ढूंढ ही लेते हैं | इनकी संख्या प्रकृति से ही संतुलित रहती है बसर्ते लोग इनका शिकार न करें | यदि कभी –गौरैया कम हुयी है तो वह भोजन की कमी से नहीं बल्कि मनुष्य द्वारा दवा के नाम पर शिकार हुयी है | गिद्ध कम हुए तो किसी ने मारे नहीं बल्कि दवाओं के जहर से मृत पशु को खाने से मर गए | केवल आपदा को छोड़कर कर कुदरत में संख्या संतुलन हमेशा बना रहता है |


     शहरों में विशेषतः महानगरों में कबूतरों को देखा- देखी दाना- पानी डालने की होड़ सी लग गयी है | फलस्वरूप इनकी संख्या तेजी से बढ़ गयी है | इतिहास में भलेही कबूतर कभी डाक पहुंचाने का काम करते होंगे परन्तु आज कबूतर मनुष्य को बीमारी फैला रहे हैं | इनसे प्यार- दुलार मनुष्य के लिए दुखदायी हो सकता है | कबूतरों द्वारा घरों के आस-पास डेरा जमाये जाने से लोग दमा, ऐलर्जी और सांस सम्बन्धी लगभग दर्जनों बीमारियों के चपेट में आ सकते हैं | कबूतर के बीट जिसमें से बहुत दुर्गन्ध आती है, और हवा में फ़ैली उनके सूक्ष्म पंखों (माइक्रोफीदर्स) से जानलेवा श्वसन बीमारियाँ हो सकती हैं |


     दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित ‘पटेल चैस्ट इन्स्टीट्यूट दिल्ली’ के अनुसार कबूतर की बीट से ‘सेंसिटिव निमोनाइटिस’ होता है जिसमें बीमार को खांसी, दमा, सांस फूलने की समस्या हो सकती है | कबूतरों के पंखों से ‘फीदर डस्ट’ निकलती है जो कई बीमारियों की जड़ है | यह समस्या कबूतरों के सौ मीटर दायरे तक गुजरने वाले व्यक्ति पर पड़ सकती है | इसके बीट और फीदर डस्ट से करीब दो सौ किस्म की ऐलर्जी होती है | इनके पंखों की धूल से धीरे- धीरे फेफड़े जाम होने लगते हैं और छाती में दर्द या जकड़न होने लगती है |


     पर्यावरणविदों का मानना है कि कबूतरों की संख्या बढ़ने और इनसे जनित रोग लगाने के लिये इंसान ही जिम्मेदार है | जगह- जगह पुण्य के नाम पर दाना डालने से कबूतरों की प्रजनन शक्ति बढ़ रही है जो पर्यवरण  के लिए बेहद खतरनाक है | उनका मानना है कि पक्षियों को दाना खुद ढूढ़ना चाहिए | जब पक्षी अपना भोजन खुद ढूंढ रहा होता है तो उसकी प्रजनन क्षमता संतुलित रहती है | कबूतरों के लिए रखे गये पानी से भे बीमारियाँ फैलती हैं |

     अतः पक्षियों को अपना काम स्वयं करने दें तथा पर्यावरण के प्राकृतिक संतुलन में दखल न दें | कुछ लोग पेड़ों के तने के पास चीटियों को भी आटा डालते हैं | इससे पेड़ उखड़ते है क्योंकि चीटियाँ आटे को जमीन में ले जाती और बदले में मिट्टी बाहर लाती हैं | ऐसे पेड़ हल्के तूफ़ान से ही गिर जाते हैं  | चीटियाँ हमारे दिए भोजन की मोहताज नहीं हैं | वे अपना भोजन खुद तलाश लेती हैं | अबारा कुत्तों को भी लोग बड़े दया भाव से खाना डालते हैं परिणाम यह होता है कि वे भोजन की खोज में नहीं जाते और एक ही स्थान पर उनकी संख्या बढ़ते रहती है जिससे कुत्ते काटने के केस बढ़ते जा रहे हैं | कबूतर, चीटी या कुत्ते के बजाय किसी जनहित संस्था, वृक्ष रोपण, अनाथालय या असहाय की मदद पर खर्च करके भी पुण्य कमाया जा सकता है |


पूरन चन्द्र काण्डपाल

29.03.2019


Wednesday 27 March 2019

Samajsewi : सामजसेवी

खरी खरी - 405 : समाजसेवी की पहचान


     समाजसेवा उतना आसान काम नहीं है जितना लोग इसे समझते हैं । हमारे चारों ओर एक बहुचर्चित शब्द है 'समाजसेवी' । किसी भी आयोजन या समारोह में माइक में खूब गुंजायमान होता है कि अमुक समाजसेवी हमारे बीच हैं । कई बार तो 01 पैसे का काम पर 99 पैसे का शोर मिश्रित अपचनीय प्रचार होता है ।

     'समाजसेवी' का वास्तविक अर्थ है जो समाज के हित में निःस्वार्थ सेवा करे और अपना मुंह खोले तथा उस दिखाई देने वाली सेवा का बखान अन्य लोग भी करें और उस सेवा से समाज का वास्तव में भला भी हो । हमारे इर्द-गिर्द कुछ लोग ऐसे अवश्य दिखाई देते हैं जिनसे हमें प्रेरणा मिलती है । ऐसे लोग प्रत्येक विसंगति को बड़ी विनम्रता से इंगित करते हैं और परिणाम प्राप्त करते हैं । 

     बिना समाज के लिए कुछ कार्य किये हम क्यों किसी को समाजसेवी कह देते हैं ? जो स्वयं को समाजसेवियों में गिनते हैं उन्हें एक डायरी या कापी अपने लिए भी बनानी चाहिए जिसमें स्वयं द्वारा प्रतिदिन समाज के हित में किये गए कार्य की चर्चा स्वयं लिखी जाए । हमें कुछ ही दिनों में अपने समाज- सेवी होने का प्रमाण स्वतः ही मिल जाएगा । हम 'वन्देमातरम, 'भारतमाता की जय' और 'जयहिन्द' शब्दों को तभी साकार या सार्थक कर सकते जब हम अपनी क्षमता के अनुसार समाज और देश के लिए कुछ न कुछ आंशिक योगदान देते रहें । जयहिन्द ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.03.2019

Tuesday 26 March 2019

Chhota pariwaar aur dink : छोटा परिवार और डिंक

खरी खरी - 404 :छोटा परिवार और डिंक


    हमारे देश की जनसंख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही हैं जबकि चीन की आबादी अब घटने लगी है | वहां एक जनवरी 2016 से दो बच्चे पैदा करने की अनुमति मिल गयी है | हमारे देश में जनसंख्या बढ़ने का मुख्य कारण अशिक्षा और अन्धविश्वास है | कुछ लोग लड़के की चाह में परिवार बढ़ा रहे हैं | ‘लड़की तो ससुराल चली जायेगी, लड़का बहू लाएगा, साथ में दहेज़ भी लायेगा, वंश चलाएगा, मुखाग्नि देगा, पिंडदान देगा, शराद करेगा’ जैसी अनेकों अतृप्त चाह हम पाले हुए हैं |

       अल्ट्रासाउंड मशीन रोगों के खोज के लिए थी जिसका दुरुपयोग डाक्टर रूपी कुछ कसाई कन्या भ्रूण की हत्या के लिए कर रहे हैं | बेटे के चाह ने उस औरत को पिशाच बना दिया है जो अजन्मी कन्या की हत्या के लिए डाक्टर के सामने लेटती है | बेटी हमारे लिए वह सब कुछ कर सकती है जो पुत्र कर सकते हैं और कर भी रही है | वह अर्थी को कंधा भी दे रही है और चिता को अग्नि भी | आज यदि कुछ वरिष्ठ नागरिक वृधाश्रमों में हैं तो पुत्र की वजह से हैं न कि पुत्री के कारण | देश का स्त्री- पुरुष अनुपात 2011 में 940/1000 था जो अभी भी अस्थिर है | लोगों को समझना होगा कि यदि बेटी मार दी जायेगी तो बहू कहां से आएगी ?

        समाज में परिवर्तन तो आया है | कुछ लोग दो बच्चों तक ही परिवार सीमित रखने लगे हैं, कुछ तो एक ही बच्चे से तृप्त हैं | यहाँ 'लोगों' का अर्थ देश के सभी धर्म- सम्प्रदाय से है | अशिक्षा से ही कहीं-कहीं बहुपत्नी प्रथा अभी भी नहीं उखड़ रही है | जिस दिन देश का प्रत्येक व्यक्ति संतान की अच्छी शिक्षा और परवरिश की ठान लेगा तो फिर वह न तो एक से अधिक विवाह करेगा और न पत्नी पर दो से अधिक संतान पैदा करने के लिए प्रथा- परम्परा के नाम पर दबाव डालेगा | छोटे परिवार के लाभ ही लाभ हैं जबकि बड़े परिवार में दुःख ही दुःख है |

       आजकल एक नई श्रेणी देखने में आ रही है जिसे डिंक (DINK-double income no kids ) कहा जा रहा है | यह दम्पति दोनों जौब करते  हैं और मिलकर खूब कमा भी रहे हैं परन्तु घर में शिशु नहीं आने दे रहे | उनका जबाब है,  "ऐसे ही ठीक है, ऐस कर रहे हैं कौन पड़े लफड़े में, आदि आदि |”  यह उत्तर उचित नहीं है | आप शिक्षित हैं और शिक्षितों से समाज बहुत कुछ सीखता है | यदि आपने निःसंतान रहने का मन बना  ही लिया है तो यह समाज को एक गलत संदेश जाता है | बहुत देरी से संतान का आना या नहीं आना प्रत्येक दृष्टिकोण से अनुचित है | घर की सुनसान दीवारों के बीच किलकारी गूंजने दो, तभी आपकी शिक्षा को सार्थक कहा जा सकता है । आज यूरोप के कुछ देश डिंक श्रेणी से बहुत दुखी हैं क्योंकि उनके देश में जनसंख्या संतुलन बिगड़ रहा है | 

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
27.03.2019

Monday 25 March 2019

Tum raah dikhate ho : तुम रांछ दिखाते हो

मीठी मीठी - 253 : तुम राह दिखाते हो

( 'खरी खरी' तो प्रतिदिन होती है । आज 'मीठी मीठी' एक भजन/प्रार्थना  'तुम राह दिखाते हो ।' )

तुम राह दिखाते हो
तुम ज्योति जगाते हो,
भटके हुए मेरे मन को
प्रभु जी थाह दिलाते हो ।

जब -जब मेरे
मन में प्रभु जी
अंधियारा घिर आया,
देर नहीं की आकर तुमने
ज्ञान का दीप जलाया,
सुख-दुख जीवन
के पहलू हैं
तुम्हीं बताते हो । तुम...

संकट के बादल छिटकाये
क्रोध की अग्नि बुझाई,
भंवर से तुमने
मुझे निकाला
खुद पतवार बनाई,
मेरे मन की चंचल नैया को
तुम पार लगाते हो । तुम...

जीवन मेरा
सफल हो जाये
तुम्हरी कृपा पा जाऊं,
फल की आस
जगे नहीं मन में
कर्म पै बलि बलि जाऊं,
कर्म ही मेरा दीन धरम
संदेश बताते हो । तुम...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.03.2019

Sunday 24 March 2019

Parwateey lok kala manch : पर्वतीय लोक कला मंच

मीठी मीठी - 252 : पर्वतीय लोक कला मंचक "सांस्कृतिक संगम''

     बेई 24 मार्च 2019 हुणि प्यारे लाल भवन आई टी ओ नई दिल्ली में पर्वतीय लोक कला मंच (पं) दिल्ली द्वारा उत्तराखंड लोक कलाक एक शानदार कार्यक्रम "सांस्कृतिक संगम" प्रस्तुत करिगो । कार्यक्रमकि शुरुआत द्वि किताबोंक लोकार्पणक साथ हैछ ।  य कार्यक्रम में उत्तराखंडक कएक नई- पुराण गायकों कैं आपणि लोकगायकी/गीत प्रस्तुत करणक मौक मिलौ जनुमें मुख्य छी - सु.मधु बेरिया, सत्येंद्र पंडरियाल, भुवन रावत, चंद्रकांता सुंदरियाल शर्मा, दीपा पंत, अरविंद सिंह रावत, मोहित डोभाल, सत्यम तेजवान आदि । श्रोताओंल पांच -छै दसक है लै पुराण लोकचर्चित गीतोंक आनंद ल्हे । कार्यक्रमक बीच बीच में पर्वतीय लोक कला मंचक कलाकरोंल लै आपणि भलि प्रस्तुति दीबेर खूब ताइ बटोरीं ।

      ''सांस्कृतिक संगम" हेम पंत ज्यू द्वारा परिकल्पित एवं संचालित छी जैक निर्देशन गंगा दत्त भट्ट ज्यू द्वारा और संगीत निर्देशन वीरेंद्र नेगी राही ज्यू द्वारा करिगो । भलेही कार्यक्रमक अंतिम चरण नि देख सक फिर लै य आयोजन भौत भल रौछ । लोकगीत -गायन में कलाकारों कैं दिल्ली महानगर में एक मंच दीणक संस्थाकि य भौत भलि सोच और प्रयास छी ।  विनम्रतापूर्वक सुझाव दीण चानू कि कलाकारोंल गीत/गायन प्रस्तुतिक टैम में शुरुआती शब्द लै आपणि भाषा में बलाण चैनी । जब गीत प्रस्तुतिकरण आपणि भाषा में हुंछ तो शुरुआती शब्द लै आपणि भाषाक भाल लागाल । सी हॉक ग्रुपक सीएमडी नरेन्द्र सिंह लडवाल ज्यूक मंच बै आपणि भाषा में संबोधन भौत भल लागौ । 'आपणि भाषा भौत भलि, करि ल्यो य दगै प्यार ; बिन आपणि भाषा बलाइये, नि ऊँनि दिलकि बात भ्यार ।'  भौत भल रौनकि कार्यक्रम प्रस्तुत करणक लिजी संस्था और सबै कलाकारों/गायकों कैं बधै और शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.03.2019

Saturday 23 March 2019

World tb jagruti day : विश्व क्षयरोग जागृति दिवस

बिरखांत - 256 ; 24 मार्च विश्व टी बी दिवस (क्षय रोग जागृति )


(प्रचार माध्यमों में बिग बी कहते हैं, " इंडिया vs टी बी के युद्ध में TB हारेगा देश जीतेगा ।" )

(हम क्या कर सकते हैं ? हम किसी भी लगातार खांसने वाले व्यक्ति से इतना तो कह सकते हैं कि भाई किसी सरकारी अस्पताल में एक एक्सरे करा ले, बस ।)

     मैंने पहली बार आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कालेज पूने में वर्ष 1968 में पहली बार टी बी (क्षय या तपेदिक रोग) का नाम सुना | प्रशिक्षण में बताया गया कि यह एक खतरनाक संक्रामक बीमारी है और प्रत्यक्ष या परोक्ष  छुआछूत से फैलती है | तब टी बी के रोगी से लोग बात करना और उसे घर में रखने से परहेज करते थे | कालान्तर में मुझे कई क्षय रोगियों की सेवा का अवसर मिला जब कि लोग उनके पास जाने से घबराते थे | अपना बचाव करते हुए कोइ भी उनके साथ सकुशल रह सकता है और निरन्तर उचित दवा लेते रहने से रोगी भी ठीक हो सकता है |

   क्षय रोग को ट्यूबरकुलोसिस भी कहते हैं जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूब्रीकल नाम के बैक्टीरिया से फैलता है | इस बैक्टीरिया की खोज डा. रॉबर्ट कोच ने 24 मार्च 1882 में की थी । यह रोग किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकता है | यह रोग 80 प्रतिशत फेफड़ों (पल्मोनरी टी बी ) को ग्रसित करता है जबकि शरीर के किसी भी हिस्से जैसे गुर्दे, हड्डी, आंत, गर्भाशय आदि में भी हो सकता है | 

      रोग के मुख्य लक्षण हैं लगातार सूखी खांसी, बुखार, वजन कम होना, रात को पसीना आना, छाती में दर्द, भूख कम लगना और छोटी छोटी सांस लेना | यह एक मध्यम गति का संक्रामक रोग है जो हवा से (सांस द्वारा) फैलता है | रोगी के फेफड़े में अड्डा बनाए रोगाणु उसकी सांस से, खासने से या छींक से बाहर आते हैं जिससे उसकी नजदीकी हवा रोगाणुयुक्त हो जाती है | उस हवा को जब स्वस्थ व्यक्ति सांस लेता है तो ये रोगाणु उसके फेफड़े में परवेश कर उसे रोगी बना सकते हैं |

     रोगी के थूक में भी ये रोगाणु होते हैं और शरीर से निकले अन्य अवयओं में भी रोगाणु हो सकते हैं | उक्त लक्षण यदि किसी में हों तो उसे चिकित्सक के पास जाकर जांच करनी चाहिए | एक्सरे तथा थूक की जांच से ही रोग की पुष्टि होती है | विश्व स्वाथ्य संगठन के वर्ष 2014 के आंकलन के अनुसार हमारे देश में क्षय रोग से लगभग 22 लाख लोग ग्रसित हैं जबकि इस रोग से देश में प्रतिवर्ष 2 लाख 20 हजार मौतें होती हैं जो विश्व में सबसे अधिक है | रोगियों का सही अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि कई लोग निजी अस्पतालों में भी उपचार कराते हैं और कुछ लोग उपचार कराते ही नहीं अर्थात नीम-हकीमों या टोटका मास्टरों के पास जाते हैं |

     क्षय रोग से बचा जा सकता है बसरते लोगों को इसकी जानकारी हो | यह रोग गरीबी से भी जुड़ा है क्योंकि झुग्गी बस्तियों तथा दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक लोग इस रोग के शिकार हो सकते हैं | गरीबी के कारण मुख्य समस्या हवादार मकान की होती है | गन्दगी भरे भीड़- भाड़ के क्षेत्रों तथा एक ही कमरे में कई लोगों के आवास से इस रोग का संक्रमण अधिक होता है | साथ ही उनका भोजन भी संतुलित और पूर्ण नहीं होता | धूम्रपान, हुक्का, नशा, तम्बाकू पदार्थ के सेवन से भी क्षय रोग हो सकता है | हुक्का पीने वालों में यदि एक व्यक्ति भी रोगी हो तो अन्य सांझा हुक्का पीने वाले भी टी बी के शिकार हो सकते हैं |

      चिकित्सकीय जांच में यदि साबित हो जाय की अमुक व्यक्ति को क्षय रोग है तो उसका उपचार बहुत सरल जो सरकारी टी बी अस्पतालों एवं निजी उपचार केंद्र में उपलब्ध हैं | सरकारी क्षय रोग नियंत्रण केंद्र से मुफ्त में इलाज होता है जिसे DOTS (directly observed treatment short course ) उपचार कहते हैं | यह कोर्स छै से नौ महीने का होता है जिससे रोगी पूर्ण रूपेण स्वस्थ हो जाता है | देश में पहले राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण प्रोग्राम था जो अब नेसनल स्ट्रेटेजिक प्लान 2012-17 के रूप में चल रहा है |

    क्षय रोग से बचने के लिए बी सी जी टीका बच्चों को जन्म से तीस दिन के अंदर सरकारी टीकाकरण केंद्र में मुफ्त लगाया जाता है जबकि निजी अस्पतालों में भी यह टीका उपलब्ध है |  यदि हम स्वच्छता रखें, प्रत्यक्ष एवं परोक्ष धूम्रपान और नशा न करें, हवादार (क्रॉस वेंटीलेसन ) आवास में रहे, बच्चों के जन्म पर ही टीका लगवाएं तथा स्वच्छ संतुलित भोजन लेते रहे तो क्षय रोग से बच सकते हैं | 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.03.2019

Friday 22 March 2019

Bhagat singh : भगत सिंह

खरी खरी - 403 : विश्व जल दिवस-बिन पानी सब सून

    विश्व में पानी की कमी को देखते हुए 22 मार्च 1992 को रियोडीजेनेरो में प्रतिवर्ष इस दिन 'जल दिवस' मनाए जाने की घोषणा की गई । आज भी दुनिया के डेड़ अरब से अधिक लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है । नदी, तालाब, चश्मे, कुएं पहले ही रसायनों की भेंट चढ़ चुके हैं । वर्षा जल को हम संरक्षित नहीं कर पा रहे हैं । जमीन के अंदर के पानी का स्तर गिर रहा है । एक टन अनाज उत्पादन के लिए एक हजार टन पानी की आवश्यकता होती है । कल 22 मार्च को कितने लोगों ने जल दिवस मनाते हुए जल -जागृति की हम कह नहीं सकते ?

      एक ही रास्ता है कि हम पानी की उपयोगिता को समझते हुए पानी बचाएं अर्थात कम पानी प्रयोग करें और पानी की बरबादी न होने दें । 'बूंद बूंद से घड़ा भरता है ' यह हम जानते हुए भी अपने घर में कपड़े धोने, नहाने, बर्तन धोने, गाड़ी धोने में बहुत पानी बरबाद करते हैं । दाड़ी बनाते समय और दांत ब्रश करते समय भी हम नल खुला छोड़ देते हैं ।  कल्पना करिये जब पानी नहीं रहेगा तो हम जीवित नहीं रह सकेंगे । इसलिए 'जल ही जीवन है' वाली बात को गंभीरता से मंथन करें और अपनी भावी पीढ़ी के लिए भी कुछ जल छोड़ जाएं । रहीम जी ने हमें बहुत पहले चेताया है-

रहीमन पानी राखिये
बिन पानी सब सून,
पानी गए न ऊबरे
मोती मानुष चून ।

     जल दिवस 22 मार्च को ही नहीं बल्कि प्रत्येक दिन होना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी के लिए जल बचेगा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.03.2019

Kavita diwas : कविता दिवस

मीठी मीठी - 250 : कविता दिवस (21 मार्च)

शब्दों की माला
बनाती है कविता
दिल के उफान को
बताती है कविता
सोए हाकिम को
जगाती है कविता
आसन पर बैठों को
हिलाती है कविता ।

बेगानों को अपना
बनाती है कविता
अपनों को ऐहसास
कराती है कविता
अपना गिरेबां
दिखाती है कविता
आदमी को इंसान
बनाती है कविता ।

राष्ट्र की धुन
हुंकारती है कविता
वीरों का शौर्य
फुफकारती है कविता
शहीदों की स्मृति
जगाती है कविता
उलझन दिलों की
सुलझाती है कविता ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.03.2019

Wednesday 20 March 2019

Bura mano holi hae : बुरा मानो होली है ।

खरी खरी -402 : बुरा मानो ( न मानो ) होली है ।

(होली' का मतलब 'शराब' )

गम में शराब खुशी में शराब
जीत में शराब हार में शराब ,
जुदाई में शराब मिलन में शराब
आया वक्त कैसा हर सै पै शराब ।

भरम  में शराब धर्म-करम  में शराब
जन्मदिन में शराब शादी में शराब ,
दिवाली में शराब होली में शराब
जन्म से मरण तक शराब ही शराब ।

कभी था होली पर बसंत का शबाब
रसायनी रंग ने इसे अब कर दिया खराब,
कल तक था होली का मतलब स्नेह मिलन, 
आज तो होली का मतलब है केवल शराब ।

       नशा, शराब, रसायनी रंग,  मिलावट और छेड़खानी की बदनीयती से होली को दूर रखने में ही 'शुभ होली' है । सभी ( पीने, नहीं पीने वाले ) मित्रों को होली की शुभकामनाएं ।

प्रतिलिपि -  इस आशय से ABBA (अखिल भारतीय बेवड़ा एसोसिएसन ) को भेजी जाती है कि शराब को अपने से अलग कर लें ताकि ये 'बेवड़ा' शब्द तुम से अलग हो जाए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.03.2019