खरी खरी - 6 : जंतर मंतर पर किसान की चीख
देश की राजधानी नई दिल्ली स्तिथ जंतर- मंतर पर केवल समाचार में छपने के लिए मूत्र नहीं पिया तमिलनाडु के किसानों ने । पिछले 40 दिन से 138 महिला-पुरुष किसानों ने अपनी समस्याओं के प्रति ध्यान खींचने के लिए मूत्र पीने से पहले अनेक प्रकार से अहिंसक आंदोलन किया । उन्होंने चूहे, सांप, घास मुँह में डाला, सड़क पर दाल-चावल डालकर जानवर की तरह खाया, नंगा हो कर प्रदर्शन किया परंतु उनकी कोई भी जायज पुकार किसी के कान तक नहीं पहुंची ।
देश के 'अन्नदाता कृषक' के बारे में मार्च 2014 में हमारे शीर्ष नेताओं ने जो आज सरकार चला रहे हैं, कहा था कि 'वर्तमान सरकार ने शास्त्री जी के नारे 'जय जवान-जय किसान' को 'मर जवान- मर किसान' में बदल कर रख दिया । यह बात सत्य है कि देश में प्रति तीस मिनट में एक किसान आत्म हत्या करता है । परंतु देश की सरकार बदलने पर किसान की हालत में परिवर्तन नहीं आया । कर्ज माफी, फसल खरीद, आपदा रिलीफ पर राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने की आज सख्त जरूरत है । परंतु वे तो इन 40 दिनों में दो कदम चल कर दो मिनट के लिए भी किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने तक नहीं पहुंच सके । आपने भी तो किसान को कुछ भी कदम उठाने के लिए लावारिश छोड़ दिया । शात्री जी के नारे की किसी को परवाह नहीं है चाहे कोई मरे या बचे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.04.2017
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