Friday 29 September 2017

Rawan ki kharee khoti : रावण की खरी खोटी

खरी खरी - 96 : जब रावण ने सुना दी मुझे खरी-खोटी

      कल 29 सितंबर 2017 को देव भूमि उत्तराखंड समिति रोहिणी दिल्ली में रावण से आमने-सामने भेंट हो गई । रावण की विद्वता, ज्ञान और पराक्रम की याद दिलाते हुए मैंने पूछा, " इतना सबकुछ होते हुए आप युद्ध में मारे जाते हैं और लोग आज भी आपकी बुराई करते हैं । इतने पराक्रमी होने पर भी आपने छल से सीता का हरण क्यों किया ? 

     अजी साहब इतना सुनते ही रावण साहब उछल पड़े और गरजते हुए बोले, "आपने सुना नहीं युद्ध और प्यार में सब जायज है । किसी की बहन की नाक कट जाय तो भाई कैसे चुप रह सकता है । मेरी बहन सूपनखा भी तो नारी थी । मानता हूं उसने गलती की पर उस गलती की इतनी बड़ी सजा तो नहीं होनी चाहिए थी ।"

     मशाल की तरह धधकती रावण की आंखों को देख कर मुझ से बोला नहीं गया । रावण का पारा सातवे आसमान पर था । वह गरजना के साथ बोलता गया, " क्यों मुझे बदनाम करते हो ? मैंने एक मंदोदरी के सिवाय कभी किसी दूसरी नारी की ओर नहीं देखा । सीता को उठाकर ले तो गया परंतु अपने महल के बाहर अशोक वाटिका में रखा उसे । उसके आँचल को छुआ तक नहीं । उसके सम्मान पर आंच नहीं आने दी ।"

     रावण अपनी जगह सही था । वह आगे बोलता गया, " मैंने कभी नारी पर लाठीचार्ज नहीं किया और कभी किसी नारी का बलात्कार भी नहीं किया । न कभी किसी नारी का उत्पीड़न किया और न अपमान किया । मुझे बुरा समझ कर कोसते हो तो पहले अपने अंदर छुपे हुए रावण को तो बाहर निकालो फिर जलाना मेरा पुतला । 94 % बलात्कारी पीड़िता के किसी न किसी तरह से परिचित या सम्बन्धी होते हैं तुम्हारे इस  समाज में । पहले इनके अंदर के राक्षस को मारो । मैंने तो अपनी मौत और मौत का तरीका खुद ढूंढा था । बलात्कारियों संग मेरा नाम मत जोड़ो ।"

     रावण की इस 24 कैरट सच्चाई से मैं वाकशून्य हो गया था । उसकी इस कटु सत्यता से मैं हिल चुका था । इसी बीच रामलीला डायरेक्टर की सीटी बजी और दनदनाते हुए रावण मंच पर पहुंच गया । चलो रावण दहन से पहले अपने अंदर की बुराइयों के रावण का दहन करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.09.2017

Vyathit kalamkaar : व्यथित कलमकार

व्यथित कलमकार 

     साहित्यकारों क बार में अनाप-सनाप बलाण पर व्यथित चनरदा कूं रईं, “साहित्यकार हमेशा आपण विचारों कैं आपणी कलम ल आखर क रूप दिनी | उं साहित्य-धर्म क दगाड़ राष्ट्र- धर्म लै निभूनै सोचि-समझि बेर कलम चलूनी | य सांचि बात छ कि हरेक  साहित्यकार क क्वे लै मुदद कैं देखण –परखण क आपण नजरिया हुंछ |  

     हमार प्रजातंत्र कि खूबी छ कि यमै पक्ष और विपक्ष कि आपणी भूमिका हिंछ | जब कभै क्वे दल विशेष कैं क्वे   कलमकार कि बात भलि नि लागनी तो उं कलमकारों पर आपणी मन:स्थिति क अनुसार ठप्प लगै द्युछ | हालों में लेखकों द्वारा सम्मान लौटूण क सिलसिल चलौ |  करीब तीन दर्जन है ज्यादै लेखकों ल भौत दुःख और वेदना क साथ आपण पुरस्कार लौटूण कि घोषणा लै करी  | पांच लेखकों ल साहित्य अकादमी बै आपण आधिकारिक पदों है इस्तिफ लै दे| 

     यौसब क्यलै हूंरौ ? पिछाड़ि कुछ महैंण में तीन विद्वान् लेखकों – नरेंदर दाभोलकर, गोविन्द पंसारे,एम् एम् कलबुर्गी और गौरी लंकेश कि अज्ञात लोगों ल ह्त्या कर दि जैल साहित्य जगत में  घुप्प अन्यार महसूस करीगो | यूं लेखक सामाजिक सौहार्द कि मजबूती क लिजी ल्यखनै अंधविश्वास क विरोध करछी | इनूल अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता कि सीमा में रै बेर राष्ट्र हित में लेखौ | कुछ लोगों कैं य भल नि लाग और इनर कतल करवै दे | 

       आज समाज में असहनशीलता भौत बड़िगे | उलजलूल-उटपटांग  भाषणों ल समाज में विष-वमन करी जांरौ, धर्म के नाम पर असहिष्णुता फैलाई जा रै जैल देश की गंगा-जमुनी संस्कृति क खून हूं रौ | ये वजैल देश में निराशा त फैलें रै विदेश में लै देश कि छवि पर धूव बैठें रै | देश में आपसी भैचार बनी रौ, वातावरण शांत रौ, अमन-चैन रौ, अविश्वास-असहनशीलता नि फैलो, य ई त लेखक चानी | जब लेखक कैं विषमता –विसंगति –असहिष्णुता देखींछ तो उ कलम की बदौलत मिलि सम्मान कैं जेब में धरि बेर चैन ल नि बैठि सकन | 

       जो लै साहित्यकार ल आज कि हालत कैं देखि बेर विरोध स्वरुप सम्मान लौटै बेर आपणी व्यथा-वेदना प्रकट करी उकैं अनुचित नि कई जै सकन | सम्मान लौटूण दुख प्रकट करण जसि बात हइ | हाला क दिनों में जो देश में घटना घटैं रईं अगर शासन चलूणी जिम्मेदार लोगों द्वारा यै पर शुरू में चर्चा है जानी तो य हालत नि हुनि | आब जे लै साहित्यकारों क लिजी कई जां रौ उमें लै आदर की भाषा का अभाव छ | 

     साहित्यकार क्वे दल विशेष क नि हुन | उ देश क हित में लेखूं |  सबूं हैं य उम्मीद करी जैंछ कि ऊँ लेखक पर कैक पक्ष ल्हींण क ठप्प नि लगूंण | साहित्य धर्म निभाते हुए देश हित में लेखणी कलमकारों क लिजी अनादर वालि भाषा क प्रयोग भौत अनुचित छ | हमरि संस्कृति में बहुलता छ, यैक लै ख्याल हुण चैंछ |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.09.2017

 

 

 

Thursday 28 September 2017

Jaagar masaan : जागर मसाण उद्योग

बिरखांत – 178 जागर/मसाण उद्योग (बिर-177, 21.09.2017 से आगे)

     ‘मसाण’ पूजा को देव-पूजा से न जोड़ा जाय | घट-घट में डेरा डाले हुए देव की चर्चा एक अलग विषय है जबकि अंधविश्वास अज्ञानता की उपज का एक रूप है | अन्धविश्वासी लोग अनभिज्ञता या अज्ञानता के कारण विज्ञान, तथ्य और सत्य से दूरी बनाये रखते हुए पारम्परिक कट्टरवाद की डोर से बंधे रहते हैं और सत्य- तथ्य को जानने की चाह नहीं रखते अथवा अंधविश्वास के सम्मुख मुंह खोलने का साहस नहीं जुटा पाते | 

     ‘जागर’ उपन्यास की रचना नागालैंड में १९७७ में पूरी हुई और १९७८ में मैं पूने आ गया | उपन्यास के बारे में कई प्रश्न मन-मस्तिष्क में घूम रहे थे | सबसे बड़ा प्रश्न था कि मसाण पूजने के बाद महिला वदिल (गर्भवती) कैसे हो जाती थी जिसका श्रेय त्रिगुट को मिल जाता था | मेडिकल कालेज पूने में स्वास्थ्य-शिक्षक प्रशिक्षण के दौरान मानव शरीर रचना और शरीर के अंगों का आपसी सम्बन्ध एवं उनके कार्य मेरे प्रशिक्षण का एक विषय भी था | 

     स्त्री-पुरुष संसर्ग से शिशु उत्पति का रहस्य चिकित्सक प्रशिक्षण में मुझे बता चुके थे | महिला के ओवम (ऐग सैल या अण्डाणु) एवं पुरुष के स्पर्म (शुक्राणु ) के मिलन से महिला के गर्भ में भ्रूण (जीव) की संरचना होती है | इस उत्पति में शरीर के इंडोक्राइन सिस्टम (ग्रंथि तंत्र) का बहुत बड़ा योगदान है | इस बहुत ही संवेदनशील एवं नाजुक तंत्र पर डर, वहम (भ्रम) मानसिक तनाव, कुंठा, रोग आदि का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है जिससे ये ग्रंथियां कार्य करना छोड़ देती हैं अथवा निष्क्रीय या शिथिल पड़ जाती हैं | 

     ऐसी ही हमारे मस्तिष्क के पृष्ठ भाग में स्थित एक ग्रंथि ‘पिट्यूटरी’ है जो हमारे प्रजनन के अंगो को नियंत्रित करती है | यदि किसी निःसंतान विवाहित महिला से कह दें कि उस पर मसाण (छल,भूत, हवा) लगा है तो वह वहम का शिकार हो जाती है और उसमें प्रतिमाह एक बार उत्पन्न होने वाला ओवम बनना बंद हो जाता है | वहम जो एक लाइलाज रोग है, उसके दूर होते ही (मसाण पूजते ही) प्रजनन के अंग संक्रीय हो जाते हैं और संतान उत्पति की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं | 

     संतान नहीं होने के कई अन्य कारण भी हैं परन्तु ग्रंथि तंत्र का तंदुरुस्त एवं संक्रीय नहीं होना एक प्रमुख कारण है | एक और उदाहरण  – बभूत (चुकुट) लगाते ही किसी बच्चे या महिला या व्यक्ति का ज्वर (बुखार) उतरने का भी यही कारण है क्योंकि ग्रसित व्यक्ति समझता है कि छल, झपट या भूत जिसका उसे वहम है उसे बभूत से भगा दिया गया है | कोई भी मनोवैज्ञानिक दवाव हमारे शरीर पर बहुत घातक (सार्थक भी) परिणाम देता है | मसाण उद्योग में पहले किसी निःसंतान महिला को मसाण लगे होने का रोगी बनाया जाता है फिर मसाण पूजा से रोग को दूर (मसाण को भगाने) करने की बात कही जाती है | इस प्रक्रिया में भ्रामक शब्द- जाल का बहुत बड़ा पाखण्ड होता है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
28.09.2017

 

Hairanee kee baat :हैरानी की बात

खरी खरी -95 : हैरानी की बात

     देश को यह जानकर हैरानी होती है कि अलगाववादियों की सुरक्षा पर केंद्र- राज्य सरकार करोड़ों खर्च करती है और बदले में वे राज्य में अशांति भड़का रहे हैं । इनके अपने बच्चे विदेशों में हैं और ये दूसरों के बच्चों को पत्थर थमा रहे हैं । पत्थर थमाने के बदले इन्हें अच्छी खाशी रकम दी जाती है । आखिर यह रकम आती कहां से है ? देशद्रोह का क़ानून इनके लिए सिथिल क्यों ?

      हमारी सरकार को सभी अलगाववादी भारत विरोधियों पर उचित कानून के अनुसार मुकदमा चलाना चाहिए । हमारे सुरक्षा प्रहरी इन्हीं पत्थरबाजों को सभी प्रकार की आपदाओं से अपनी जान जोखिम में डाल कर बचाते रहे हैं । जिन सुरक्षा कर्मियों पर ये अलगाववादी पत्थर मारते हैं उनके लिए भी तो मानव अधिकार कमीशन होना चाहिए । अब वक्त आ गया है अलगाववादियों से सख्ती से निपटा जाय और सुरक्षकर्मियों को इन्हें उखाड़ फैंकने के लिए अधिक अधिकार दिए जांय ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.09.2017

Tuesday 26 September 2017

Kaam krodh mad lobh moh : काम क्रोध मद लोभ मोह

खरी खरी- 94 : काम क्रोध मद लोभ मोह

     मैं कोई संत नहीं हूं, न साधु हूं और न बाबा । मैं कोई धर्माचार्य, आचार्य, पंडित, गुरु, सद्गुरु भी नहीं हूं । इन श्रेणियों में जो भी मनीषी आते हैं मैं उनके समकक्ष तो कुछ भी नहीं हूं । खाक दर खाक, सूचे न पाक । फिर भी काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह इन पांचों के विषय में जो अल्पज्ञान मुझे है उसके अनुसार ये पांचों मानव के लिए ठीक नहीं हैं और यदि इन पर नियंत्रण नहीं रहा तो ये मानव को दानव बना देते हैं ।

     विषय बहुत विस्तृत है परंतु चर्चा सूक्ष्म में करूंगा । काम अर्थात वासना केवल भार्या-पति तक ही रहे तो काम बुरी चीज नहीं है । काम नहीं होता तो दुनिया भी आगे नहीं चलती । लेकिन काम जब परिधि लांघ कर बाहर जाता है तो वहां पहुँचा देता है जहां आजकल पाखंड सनित कुछ तथाकथित नामी-गिरामी बाबा पहुंच गए हैं । अतः काम को नियंत्रण में रखना होगा वर्ना यह काम तमाम कर देगा ।

     क्रोध तो मनुष्य का नाश कर देता है । क्रोध से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और  दिमाग सिकुड़ जाता है ।क्रोध एक क्षणिक पागलपन है जिसका अंत पाश्चाताप के साथ होता है जैसे कि 'रोड रेज' में व्यक्ति गोली चला देता है । मद अर्थात नशा भी मानव के लिए विनाशकारी है । कोई भी नशा भलेही वह शराब, धूम्रपान, तम्बाकू, चरस आदि कुछ भी हो, ये देर-सबेर मनुष्य का खात्मा कर देते हैं ।

     लोभ अर्थात लालच तो बुरी बला है जो मनुष्य को भ्रष्ट बना देता है । लालच से ही घूसखोरी पनपती है, भाई-भतीजावाद बढ़ता है और एक न एक दिन लालची व्यक्ति दंडित तो होता है । मोह-माया का चक्कर भलेही पांचवे क्रम में है परंतु यह भी कम खतरनाक नहीं । हम सब इसके चक्कर में फंस कर 'मैं - मेरा' रटते हुए 'तू-तेरा' भूल गए हैं । 

     इस तरह ये पांचों हमारे दुखों की जड़ हैं । इन्हें नियंत्रण में रखने से जीवन सुचारु रूप से चल सकता है । हमारी पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ हमें इन पांचों की ओर घसीटती हैं । तुलसी जी कह गए हैं-

अलि पतंग गज मीन मृग
जरै एक ही आंच,
तुलसी वह कैसे बचे
जाको व्यापै पांच ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.09.2017

Monday 25 September 2017

Doha saptak : दोहा सप्तक कुमाउनी

खरी खरी - 93 : दोहा सप्तक (कुमाउनी)

कविता मनकि बात बतै दीं,
कसै उठी हो उमाव |
बाट भुलियाँ कैं बाट बतै दीं,
ढिकाव जाई कैं निसाव||

द्वि आखंर हंसि बेर बलौ,
बरसौ अमृत धार |
गुस्स्म निकई कडू आंखर,
मन में लगूनी खार ||

लालच  जलंग  पाखण्ड  झुटि,
   राग -द्वेष  अंहकार  |
अंधविश्वास अज्ञान भैम,
डुबै दिनी मजधार ||

तमाकु सुड़ति शराब नश,
गुट्क खनि धूम्रपान |
चुसनी माठु-माठ ल्वे हमर,
बेमौत ल्ही लिनी ज्यान ||

धरो याद इज बौज्यू कैं,
शिक्षक सिपाइ शहीद |
दुखै घड़िम ल्हे भुलिया झन,
धरम करम उम्मीद ||

याद धरण उ मनखी चैंछ,
मदद हमरि करी जैल |
हमुल मदद जो कैकि करि,
उकैं भुलण चैं पैल ||

देशप्रेम जति घटते जां,
कर्म संस्कृति क नाश |
निहुन कभैं भल्याम वां,
सुख शांति हइ टटास ||

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.09.2017

Sunday 24 September 2017

Vandemaatram : वन्देमातरम हम सबका

खरी खरी - 92 :  वंदेमातरम हम सबका

      'वंदेमातरम' हमारा राष्ट्रीय गीत ही नहीं हमारी राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी है । यह किसी राजनैतिक दल विशेष का नारा भी नहीं है । इतिहास के पन्नों को देखें तो इस गीत ने हमारे देशवासियों में एक ऐसी बेमिसाल ताकत भरी जिसके सामने अंग्रेज थर्रा उठे । 1876 में जब बंकिम चंद्र चटर्जी ने इस गीत की रचना की तब से इस गीत को देश में गाया गया और राष्ट्रभक्ति का पुनर्जागरण हुआ । हिन्दू-मुस्लिम सहित सभी धर्मों के अनुयायी इस गीत को गाते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े ।

      अपनी संकीर्ण महत्वाकांक्षा के कारण जिन्ना ने धार्मिक भावना भड़काने के लिए इस्लाम का सहारा लेते हुए कुछ मुसलमानों से इस गीत का बहिष्कार करवाया । मुस्लिम कट्टरवाद आज भी इसका विरोध करता है जबकि इस गीत का शाब्दिक अर्थ है "मां तुझे नमन" या " मां तुझे सलाम ।" आजादी के 70 वर्षों बाद भी इस पर विरोध नहीं होना चाहिए और सभी देशवासियों को इसे निर्विवाद गाना चाहिए ।

       कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री ने उन लोगों से सवाल पूछा है कि जो लोग  मुंह से 'वंदेमातरम' कहते हैं और धरती में जहां-तहां कूड़ा डालते हैं, क्या यह 'वंदेमातरम' का मजाक नहीं है ? देश में कूड़ा डाल कर 'वंदेमातरम' कहना ठीक नहीं है । हमें उनके शब्दों को समझना चाहिए और स्वच्छता अभियान में योगदान देना चाहिए तभी हम वास्तव में 'वन्देमातरम' कहने के हकदार हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
25.09.2017

Saturday 23 September 2017

Manthan se soch : मंथन से सोच बदल

खरी खरी - 91 : मंथन से सोच बदलती है  ।

     वर्ष 1975 -76 के दौरान मैं पूर्वोत्तर के एक सीमावर्ती राज्य में सेवारत था । तब वहां के गावों की सेनिटेसन (स्वच्छता) हालात ठीक नहीं थे । लोग अपने घर के पास ही खुले में शौच करते थे । उस शौच से उनके सूवर पलते थे लेकिन गन्दगी बहुत थी । स्वच्छता अभियान के दौरान एक दुभाषिये के साथ मुझे वहां भेजा गया । मैंने उन लोगों को खुले में शौच से  होने वाले सभी दुष्प्रभावों के बारे में समझाया और सेनिटरी इंजीनियरिंग के तरीके से स्थानीय हालात को देखकर शैलो तथा डीप ट्रेंच लैट्रिन बनाने का डिमोंस्ट्रेसन दिया ।

     गांव वाले यह सब देख-सुन कर मुझ से नाराज हो गए । उनका कहना था, "ये आदमी हमारे सूवरों को मारना चाहता है ।" दुभाषिये ने मुझे सारी कहानी समझाई । इसके बाद मैंने उन्हें मक्खियों से होने वाले रोग, जल -जनित रोग तथा कृमिरोग के बारे में समझाया । वहां कई लोग इन रोगों से ग्रसित भी थे । गांव के मुखिया, दुभाषिये के सहयोग और मेरे प्रयास से उन लोगों ने खूब मंथन किया और खुले में शौच करना बंद कर दिया ।

      एक महीने के बाद स्वास्थ्य निदेशक के आदेश से मुझे उस क्षेत्र के मूल्यांकन के लिए पुनः भेजा गया । गांव की दशा बदल चुकी थी । गांव से मक्खियों की भनभनाहट दूर हो चुकी थी और मेरे प्रति उनकी नाराजी भी दूर हो चुकी थी । इस चर्चा से मैं कहना चाहता हूं कि यदि लोग मंथन करें तो वे अवांच्छित प्रथा- परम्परा - अंधविश्वास के सांकलों को तोड़ सकते हैं ।

     यह भी बताना चाहूंगा कि पी एम साहब का कथन, "जो मुंह से तो 'वंदेमातरम' कहते हैं और धरती में जहां-तहां कूड़ा डालते हैं, यह वंदेमातरम नहीं है" बिलकुल सत्य और सटीक है । हम सब देश के स्वच्छता अभियान को जहां -तहां कूड़ा डाल कर पलीता लगा रहे हैं । स्मरण रहे कि स्वच्छता अभियान कोई नया नहीं है । अब तक के सभी 14 प्रधानमंत्रियों और 14 राष्ट्रपतियों ने इसकी चर्चा की है और इसे गति दी है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.09.2017

Friday 22 September 2017

Akhabaar mein devi devsta :अखबार में देवी-देवता

खरी खरी -90 :अखबार में देवी-देवता

     समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में हमारे आराध्य देवी-देवताओं के चित्र धड़ल्ले से छपते रहे हैं । आजकल नवरात्रों में नौ दिन तक देवी के विभिन्न रूपों के चित्र छपते रहेंगे । राम नवमी पर श्रीराम के और जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के चित्र भी छपते  आ रहे हैं । यह सब बंद होना चाहिए ।

     जब अखबार रद्दी में जाता है तो उसमें सभी वस्तुएं लपेटी जाती हैं । यहां तक कि जूते-चप्पल सहित कुछ भी लपेटा जाता है । मांस- मदिरा भी लपेटी जाती है । यह उन आराध्य चित्रों का घोर अपमान है । इसी तरह घर के मंदिर में पूजी गई पुरानी मूर्तियों -फोटो को भी लोग किसी पेड़ के नीचे पटक देते हैं जहां इन्हें पशु चाटते हैं । इस तरह की वस्तुओं को तोड़कर जमीन में भू-विसर्जित करना चाहिए । इन मुद्दों पर भी आवाज उठनी चाहिए ताकि ये चित्र समाचार पत्र-पत्रिकाओं में न छपें और मूर्तियां जहां-तहां न फेंकी जाएं । इस विषय पर पहले भी कई बार चर्चा होते रही है परन्तु परिणाम शून्य ही रहा । 

     श्रद्धा-आस्था के इन चित्रों का प्रिंट मीडिया में छप कर इस तरह अपमान होते देख हम चुप क्यों रहते हैं ? मूर्तियों का इस तरह अनादर हम क्यों करते हैं ?सबसे ज्यादा अनादर गणेश जी का होता जिन्हें शुभकार्यों में विभिन्न तरह से प्रयोग करके फैंक दिया जाता है । शायद हम इस प्रतीक्षा में हैं कि इस पर प्रतिबंध लगाने हेतु आंदोलन करने कोई और आएगा और हम लकीर के फकीर बने रहेंगे । ये हमारी कैसी श्रद्धा है ? मंथन तो करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.09.2017

Kye khabar nhaiti : क्ये खबर न्हैति

खरी खरी -89 : क्ये खबर न्हैति

हाम ढुंगाक, लुवाक
पितवाक, सुन-चांदी क
द्याप्तां पर 
फूल बरसूं रयूं
उनुकैं दूद ल नउं रयूं,
घरा क ज्यौन द्याप्तां हूं
बलाण नि राय
उनुकैं तरसूं रयूं,
उनु उज्याँ चाण नि राय
पुठ फरकूं रयूं,
मंदिर में घंटी बजै बेर
फल-फूल-दूद चढूं रयूं ।
द्वि आंखर उनुहैँ लै
जरूर बलौ
उं लै जाल धिति,
हाम बुजरगों हैं
क्यलै नि बलां राय
मैं कैं क्ये खबर न्हैति ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.09.2017

Wednesday 20 September 2017

Masaan jagar udyog : मसाण जागर उद्योग

बिरखांत –177 : मसाण / जागर उद्योग 

          मैंने गांव में बचपन से ही कई बार ‘मसाण’ की जागर (जातुर या जागरि) देखी | मुझे याद है तब मैं मिडिल स्कूल का छात्र था |  मसाण अर्थात एक काल्पनिक भूत या डर या कुंठा जो झस्स करने (अचानक डर से उत्पन्न मानसिक दबाव ) से किसी ब्वारि (बहू) या बेटी पर जबरदस्ती वहम डाल कर गणतुवा –दास या डंगरिया द्वारा लगाया जाता था (है) जिसे सौंकार (सास या ससुर अथवा मां-बाप) मान लेने में देर नहीं लगाते थे | इस त्रिगुट द्वारा मसाण ज्यादातर उस ब्वारि पर लग गया बताया जाता है जो अभी मां न बनी हो या जिसका ‘लड़का’ न हुआ हो, भलेही लड़कियां हुईं हों | 

     गांव या क्षेत्र में सभी लोग मसाण के बारे में जानते हैं क्योंकि जागर से इसका खूब प्रचार होता है | जागर भोजन के बाद (अब भोजन के साथ शराब भी दी जाती है ) रात को लगती थी (है)| डंगरिया दुलैंच (आसन) में बैठता था और भंगड़ी (सुल्पे में तम्बाकू) पीता था | दास ढोल बजाता था या हुड़का –थाली के साथ सुर में नृत्य गीत गाता था | ताल- सुर- लय से पंचकचहरी (अन्धश्रधा भीड़) के बीच सिर के बाल खोल कर ब्वारी को बैठे-बैठे या खड़े होकर दास द्वारा नाचने पर बाध्य किया जाता था | दास-डंगरिये द्वारा उस ब्वारी की बाल पकड़ना या उसकी पीठ ठोकना आदि उटपटांग हरकत और अनभिज्ञ भीड़ का मूक दर्शक बन कर देखे रहना मुझे बहुत दुख पहुंचाता था | 

     उम्र बढ़ने के साथ मैंने इस तमाशे का विरोध करना शुरू कर दिया जिसकी परिणति ‘जागर’ उपन्यास के रूप में हुई | हिन्दी अकादमी दिल्ली सरकार द्वारा वर्ष १९९५ में यह उपन्यास प्रकाशित हो गया | अंधविश्वास के साधकों और उक्त त्रिगुटे की दुकान इस उपन्यास से हिलने लगी और मैं उनकी आंखों का घूण (आंख में पिड़ाने वाला तिनका या पत्थर का चूरा) बन गया | बिरखांत को छोटी करता हूं | 

     मेरे गांव का दास अपने बेटे को भी दास बनाना चाहता था | मैंने उसे जबरदस्ती स्कूल भिजवाया | अपने बाप के साथ रौटी (ताशा) बजाते, ना-नुकुर करते, यदा-कदा पढ़ते हुए वह दस पास कर गया | उसे मैंने रिजर्व कोटे से सरकारी नौकरी की बात समझाई और वह सरकारी कलर्क बन गया | गांव में अब दास नहीं है परन्तु क्षेत्र में त्रिगुट द्वारा प्रायोजित जागर- मसाण –गणत उद्योग खूब चल रहा है | 

     वैज्ञानिक सत्य की सोच के बजाय पढ़े-लिखे युवा अंधविश्वास के सांकलों में बंधकर क्यों लकीर के फ़कीर बने हैं, हमारे इर्द-गिर्द यह प्रश्न आज भी गूंज रहा है | आखिर ऐसी क्या बात थी जो मुझे अन्दर ही अन्दर कचोट रही थी?  मैं बचपन से ही इस त्रिगुट की मिलीभगत को सुनता था | वे मुझे बच्चा समझते थे और मेरे ही सामने जागर का टानटोफड़ा (प्लान) बनाते थे | मैं स्कूल से आकर ग्वाला बनता था और जंगल में ये सब कुछ इनकी संगोष्ठी में सुनता था | घर –गांव में सभी इनके समर्थक थे इसलिए डर के मारे चुप रहता था | 

     ‘मसाण’ पूजने के बाद उस महिला की कोख में शिशु पनपने लगता था | इसका रहस्य जानने के लिए में पूने में चिकित्सकों एवं मनोवैज्ञानिकों से मिला | इसकी चर्चा अगली बिरखांत में ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.09.2017

Navratri paudh ropan : नवरात्रि पौध रोपण

मीठी मीठी - 31 : नवरात्रि शुभकामना

होली दीवाली दशहरा,
पितृ पक्ष नवरात्री,
ईद क्रिसमस बिहू पोंगल
गुरुपुरब लोहड़ी,
वृक्ष रोपित एक कर
पर्यावरण को तू सजा,
हरित भूमि बनी रहे
जल जंगल जमीन बचा ।

      सभी मित्रों को नवरात्रि की शुभकामना । सोसल मीडिया में देवी की मूर्ति पोस्ट करने से अच्छा है इन नौ दिनों में कम से कम एक पेड़ जरूर रोपें और उसका संरक्षण करें । धरती मां का श्रृंगार करें । इससे बड़ी मां की पूजा और कोई नहीं । सादर ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.09.2017

Tuesday 19 September 2017

Mobail faun : मोबाइल फौन बच्चे

खरी खरी- 88 : स्कूली बच्चों के पास मोबाइल

     आजकल हम देखते हैं कि छोटे छोटे बच्चों के पास भी मोबाइल फौन उपलब्ध है । नर्सरी के बच्चे को घर में मां मोबाइल पकड़ा कर अपने कार्य में व्यस्त हो जाती है । इसका बच्चे पर क्या कुप्रभाव पड़ रहा है उससे मां अनभिज्ञ है । मैंने कई बार 10 - 11 साल के बच्चों को पार्क में समूह में बैठ कर अश्लील वीडियो देखते हुए पाया है । नजदीक जाने पर जबाब, 'अंकल गेम खेल रहे थे ।' प्रश्न - 'गेम खेल रहे थे तो मुझे देख बंद क्यों किया ?" कोई उत्तर नहीं । थोड़ी देर में एक बच्चे ने बताया, 'अंकल ये गंदी फ़िल्म देख रहे थे ।'

     दिल्ली यमुना विहार के एक सर्वोदय बाल विद्यालय में प्रधानाचार्य ने कक्षाओं के निरीक्षण के दौरान पाया कि कक्षा 9 का एक लड़का कक्षा में मोबाइल पर गेम खेल रहा है । प्रधानाचार्य ने लड़के से मोबाइल ले लिया और अभिभावक को लेकर आने को कहा । इसी बीच जब प्रधानाचार्य अपने कार्यालय की ओर जा रहे थे तो उस लड़के ने डेस्क की टूटी हुई रॉड से स्कूल प्रमुख पर पीछे से ताबड़तोड़ हमला कर दिया । शोर सुनकर अन्य शिक्षकों ने लड़के को काबू कर पुलिस को सौंपा और प्रधानाचार्य को अस्पताल में भर्ती कराया ।

        कक्षा 9 के विद्यार्थी के पास कक्षा में मोबाइल का प्रयोग एक गंभीर चिंता की बात है । कानूनी तौर पर स्कूली बच्चों को मोबाइल रखने की अनुमति नहीं है । जो बच्चे कक्षा में मोबाइल ले जाते हैं वे इसी तरह की हरकत करेंगे । इस केस में प्रधानाचार्य ने उचित कदम उठाया परन्तु विद्यार्थी गुंडा बन गया । अभिभावकों को अपने लाडलों को मोबाइल देने से पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए कि क्या वे अपने बच्चों का भविष्य तो नहीं बिगाड़ रहे ? अभिभावकों की चौकस निगाहें बच्चों पर रहेंगीं तो वे घर पर स्मार्टफोन या नेट पर अवांच्छित सामग्री नहीं देख सकेंगे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.09.2017