Friday 31 July 2020

Id ul juha :ईद उल4जुहा

मीठी मीठी - 490 : ईद पर रोपिये एक पौधा

होली दिवाली दशहरा
पितृपक्ष नवरात्री,

ईद क्रिसमश बिहू पोंगल
गुरुपूरब लोहड़ी ।   

पौध रोपित एक कर
पर्यावरण को तू बचा,    
          
उष्म धरती हो रही
शीतोष्णता इसकी बचा ।

हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं ,
बड़े होकर वे रहेंगे कहां?

जल विहीन वायु विहीन
पृथ्वी रहने लायक तो रहेगी नहीं ।

धरा में हरियाली लाओ
पेड़ लगाओ पृथ्वी बचाओ ।

ईद उल जुहा की शुभकामना ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
01.08.2020

Patni, wife, gharwai :पत्नी, वाइफ, घरवा इ

खरी खरी- 671 : घरवाइ अर्थात पत्नी अर्थात वाइफ

     पत्नी के बारे में सोसल मीडिया में बहुत हास्य है । कुछ पचनीय तो कुछ अपचनीय भी है । पत्नी उतनी खराब भी नहीं होती जितना प्रोजेक्ट किया जाता है । हास्य लाने के साथ यह भी ध्यान रहे कि कहीं उधर से नफरत न उगने लगे और कुटान हो जाय ।

     जब पत्नी की बात आती है तो हमें तिलोतम्मा और रत्नावली की याद आती है जिन्होंने अपने पति कालिदास और तुलसीदास को अमर कर दिया । हमें केकई और सावित्री की भी याद आती है जिनमें केकई ने तो दशरथ के प्राण ले लिए और सावित्री सत्यवान के गए प्राण वापस ले आई ।

     किसको कैसी पत्नी मिलती है यह उसकी लाट्री है । लाट्री पत्नी के लिए भी है कि उसे कैसा पति मिलता है । जैसी भी पत्नी मिले एडजस्ट तो करना ही होगा । एक व्यक्ति अपनी पत्नी से परेशान था और बोला, "वाइफ इज ए नाइफ हू कट द लाइफ" अर्थात पत्नी वह चाकू है जो जिंदगी का कत्ल कर देती है । दूसरा व्यक्ति अपनी पत्नी से खुश था और बोला, "दियर इज नो लाइफ विदाउट वाइफ" अर्थात पत्नी के बिना जिंदगी है ही नहीं ।"

     पत्नी पर आये क्रोध में शीतलता के दो छीटे इस तरह डाले जा सकते हैं "कुछ भी हो यार ये मेरे बच्चों की मां है,  इसी ने तो मुझे बाप बनाया है ।" पत्नी से हमारा रिश्ता जग जाहिर है । नर के घर, नारायण के घर और कानूनी तौर से भी वह हमारी पत्नी है । सबसे बड़ी बात यह है कि क्या पत्नी पति की दोस्त भी है ? यदि दोस्त है तो फिर जिन्दगी का नजारा ही कुछ और है । यदि दोस्त नहीं है तो उसे दोस्त बनाने में ही जिंदगी गेंदा फूल है । दोस्ती का हाथ पति ने बढ़ाना है । जी हां, पहल पति की तरफ से ही होनी है । इस तरह से -

"पत्नी तू भार्या ही नहीं है

मित्र बंधु और शखा है तू,

जीवन नाव खेवैया तू है

वैद हकीम दवा भी तू ।"

पूरन चन्द्र काण्डपाल

01.08.2020

Thursday 30 July 2020

Muslim Mahila aur Ibadat : मुस्लिम महिला और इबादत

बिरखांत- 331 : मुस्लिम महिला और इबादत

     अस्सी के दशक में बरेली (उ.प्र.) में एक स्वास्थ्य कैम्प में मैं अपने सहकर्मी सहित बच्चों को बी सी जी (टी बी से बचने का टीका) का टीका लगाने पहुंचा |  मैं बच्चों को टीका लगा रहा था और सहकर्मी नाम लिख रहा था | एक मुस्लिम महिला ने अपने छै बच्चों के नाम लिखाए | सहकर्मी के मुंह से मजाक में अनायास ही निकल गया “पूरी वॉलीबाल टीम है आपकी |” महिला को यह अच्छा नहीं लगा और वह भन्नाते हुए बोली, “जब मुझे पैदा करने में परेशानी नहीं हुई तो तेरे को नाम लिखने में दर्द क्यों हो रिया है ? खांमखां मेरे बच्चों पर नजर लगा रिया है |” वह आगे कुछ और बोलने ही वाली थी मैंने उसे रोकते हुए कहा, “आपको बुरा लगा तो माफ़ कर दें | उसने एक माँ- बाप के इतने बच्चे एकसाथ पहली बार देखे हैं |” सहकर्मी ने भी तुरंत ‘सौरी बहनजी’ कह दिया और मैंने बिना देर किये बच्चों को टीका लगाकर उन्हें शीघ्र रुख्शत कर दिया | आज चार दशक बाद परिवर्तन देखने को मिल रहा है क्योंकि अपवाद को छोड़कर अब मुस्लिम महिलाएं परिवार नियंत्रित करने लगीं हैं और रुढ़िवादी सोच से परहेज करने लगीं हैं |

     नब्बे के दशक में फैज रोड दिल्ली की बैंक शाखा में एक मुस्लिम युवती पी ओ (प्रोबेसनरी ऑफिसर ) बन कर आई | वह हमेशा ही सिर में स्कार्फ बांधे रखती थी | शाखा प्रबंधक ने उसे प्रशिक्षण का जिम्मा मुझे दिया | यह शायद उस बैंक में पहली मुस्लिम महिला आई होगी | मेरे लिए तो एक मुस्लिम महिला का बैंक ज्वाइन करना, एक सुखद आश्चर्य था | वह बड़ी शालीन, विनम्र और सीखने के जज्बे से सराबोर थी | यदा- कदा में उससे मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक दशा और अधिक बच्चों पर चर्चा करता था | वह बताती थी, ‘सर अच्छी हालत नहीं है मुस्लिम महिलाओं की | जल्दी शादी और फिर बच्चे | मजहबी क़ानून भी महिलाओं के लिए सख्त हैं | मुझे यहाँ तक पहुंचने के लिए मेरे अम्मी- अब्बा का बहुत बड़ा सहयोग रहा है |’ उस युवती की सोच बड़ी प्रगतिशील और महिला उत्थान की थी | प्रशिक्षण के बाद जब वह चली गई तो पूरा स्टाफ और ग्राहक उसे बड़ी श्रद्धा से याद करते थे | हम सबने बतौर सहकर्मी पहली बार एक मुस्लिम महिला देखी थी जो हमारे  कई भ्रम और मिथक तोड़ कर बड़े सौहार्द के साथ वहाँ से विदा हुई थी |

     परिवर्तन का एक सुखद क्षण 7 जुलाई 2016 को भी देखने को मिला जब ईद-उल-फितर के मौके पर ऐशबाग लखनऊ में पहली बार मुस्लिम महिलाओं ने ईदगाह में नमाज अता की | उनके लिए नमाज अता करने हेतु अलग से प्रबध किया गया था | वहाँ के मौलाना ने भी बताया कि इस्लाम में कहीं भी नहीं लिखा है कि महिलाएं मस्जिद या ईदगाह में नमाज अता नहीं कर सकती | यह देर से आरम्भ की गई एक नई पहल है, नई रोशनी है और मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय और बराबरी का स्वीकार्य हक़ है | हाल ही में शनि- सिगनापुर में महिलाएं मंदिर में प्रवेश हुई हैं जबकि सबरीमाला में उनके लिए अभी भी मंदिर के द्वार बंद हैं |न्यायालय ने महिलाओं के लिए द्वार खोल दिए परन्तु राजनीति ने बंद कर दिए ।  मुस्लिम महिलाएं मजारों पर जाती थी परन्तु उनके लिए मस्जिद या ईदगाह प्रवेश पर प्रतिबंधित था | पूरा देश इस नई रोशनी का स्वागत करता है | यह एक प्रगतिशील कदम है |

    देश तभी उन्नति करेगा जब देश की ‘आधी दुनिया’ (महिला शक्ति) को संविधान के अनुसार बराबरी का हक़ मिलेगा | जब तक देश के सभी सम्प्रदायों में महिलाओं को हर जगह बराबरी का हक नहीं मिलेगा, देश तरक्की नहीं कर सकता | सबके सहयोग से ही तो हमने चेचक, प्लेग और पोलियो पर विजय पाई है | लघु परिवार का सपना भी ऐसे ही पूरा होगा | देश को बड़े परिवार की जरूरत नहीं है बल्कि स्वस्थ और शिक्षित लघु परिवार की जरूरत है | आज कुछ युवा लड़का या लड़की जो भी हो केवल दो बच्चों के ही परिवार से खुश हैं | आज देश की सबसे बड़ी समस्या ही जनसँख्या वृद्धि है | साथ ही हम किसी भी सम्प्रदाय द्वारा ईश्वर या अल्लाह के नाम पर पशुबलि को भी उचित नहीं मानते | कोई मांसाहार करे या न करे यह उसकी मर्जी है परन्तु धर्म, भगवान् या अल्लाह के नाम पर निरीह पशु की बलि गलत है | बदलाव की बयार चल पड़ी है | मंदिरों में तो पशुबलि निषेध पूर्ण रूपेण लागू हो चुका है भलही कई जगहों पर चोरी से पशुबालि जारी है जिसे स्थानीय मूक समर्थन मिलता है  | आशा है सभी सम्प्रदाय इस तथ्य को समझने का प्रयास करेंगे और आस्थालयों में पशु बलि को समाप्त करेंगे।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.07.2020

Wednesday 29 July 2020

Pooja/Ibaadat manthan जरूरी : पूजा/इबादत मंथन जरूरी

बिरखांत - 330 : पूजा/इबादत प्रथा पर मंथन जरूरी

       हमने हमेशा ही पूजा या इबादत या धर्म के नाम पर पशुबलि  को अनुचित कहा है । कुछ मित्र ताने मारते हुए मुझ से कहते हैं, 'कभी मुसलमानों के बारे में भी लिखो, क्यों हमेशा हिन्दुओं के पीछे पड़े रहते हो ?' मित्रो, ऐसा नहीं है । मैं हिन्दू से पहले हिंदुस्तानी या भारतीय हूं और मानवीय सरोकारों से वशीभूत होकर कुछ शब्द लिख देता हूं । चार दशक से कलमघसीटी हो रही है । जन- सरोकारों पर लिखते आ रहा हूं । हर विसंगति और विषमता तथा अंधविश्वास के विरोध में लिखता- बोलता हूं ।

कबीर के दोनों दोहे याद हैं ।

पहला- 

 'पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार;

 ता पर ये चाकी भली, पीस खाये संसार ।' 

दूसरा - 

'कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लेई बनाय; 

ता पर मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।' 

मोको कहां ढूंढे रे बंदे भी याद है । 

'ना तीरथ में ना मूरत में, ना काबा कैलाश में; 

ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना एकांत निवास में ।' 

बच्चन साहब की मधुशाला भी कहती है -

"मुसलमान और हिन्दू हैं दो, 

एक मगर उनका हाला; 

एक है उनका मदिरालय, 

एक ही है उनका प्याला; 

दोनों रहते एक न जब तक 

मंदिर -मस्जिद हैं जाते, 

बैर कराते मंदिर-मस्जिद 

मेल कराती मधुशाला ।"

     दोनों संप्रदायों को देश और समाज के हित में एक-दूसरे का सम्मान करते हुए मध्यमार्ग से संयम के साथ चलना चाहिए । सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन सबने मिलकर लड़ा और हिंदुस्तान का अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर कहता था, "हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।" जब फिरंगियों को लगा कि हिंदुस्तान आजाद करना ही पड़ेगा तो उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को भंग करने के कई षडयंत्र रचे और जाते -जाते अपने षड्यंत्र में सफल भी हो गए ।

     देश को स्वतंत्र हुए 73 वर्ष हो गए हैं और देश के दो मुख्य सम्प्रदायों की आपसी नफरत को बढ़ाने का षड्यंत्र आज भी जारी है । यदि यह नफरत प्यार में बदल जाएगी तो अमन-चैन के कई दुश्मनों की दुकानें बंद हो जाएंगी । फिर वे सियासत किस पर करेंगे ? ये लोग नफरत की आग जलाकर अपनी रोटी सेकते आये हैं और सेकते रहेंगे । इस नफ़रत से देश का विकास भी बाधित होता है और हम सृजनात्मक कर्मों से भटक कर इधर - उधर उलझ जाते हैं ।

     स्पष्ट करना चाहूंगा कि ईश्वर कभी भी पशु -बलि नहीं लेता और न अल्लाह ईद में पशु -कुर्बानी लेता है । धर्म और आस्था के नाम पर किसी पशु की कुर्बानी या बलि एक अमानुषिक कृत्य है । कोई मांसाहार करता है तो करे परन्तु ईश्वर के नाम पर नहीं । सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए नफरत का पुलाव पका कर नहीं बांटा जाय । जाति-धर्म- सम्प्रदाय की लड़ाई में हमें झोंक कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से सावधान रहना ही वक्त की मांग है ताकि हम कम से कम अगली पीढ़ी को तो इस संक्रामक रोग से बचा सकें ।

         ईद की सभी को शुभकामना । जब वे हमें दीपावली की शुभकामना कहते हैं, कांवड़ियों की सेवा में पंडाल लगाते हैं, तीर्थ यात्राओंं में सहयोग करते हैं,  होली - रामलीला में संगत करते हैं  तो हमें भी उन्हें ईद की शुभकामना देने में संकोच नहीं करना चाहिए । देश का सौहार्द्र इसी इंद्रधनुषी रंग में लहलहाएगा। 

पूरन चन्द्र काण्डपाल

30.07.2020

Tuesday 28 July 2020

Apraadh bodh hi praayshchit : अपराध बोध ही प्रायश्चित

खरी खरी - 670 : अपराध बोध ही प्रायश्चित


एक बड़ा अपराध

फिर से कर लिया है,

कत्ल अपनी आत्मा 

का सह  लिया  है ।

नजरों में लोगों की मैं

एक भला इंसान हूं,

कर्म ऐसा कर लिया है

जैसे मैं शैतान हूं ।

आंखें अपने आप से मैं

अब मिला सकता नहीं,

आत्मा झकझोरे मुझको

बोल कुछ सकता नहीं ।

हो गया अपराध जब

कंपकपाने मैं लगा,

जान जाए जग न सारा

सकपकाने मैं लगा ।

नहीं जानता क्यों मुझे वो

क्षमा यूं ही कर गया,

निगाहों के आगे उसके

जीते जी मैं मर गया ।

विश्वसनीयता आज से वह

कैसे करेगा जगत पर,

विश्वास के क्षण पर उसे

आ जाऊंगा मैं ही नजर ।

बिना मांगे, मौन हो वो

क्षमा मुझे कर गया,

है उच्च क्षमा करने वाला

बात साबित कर गया ।

घृणा अपने आप से

हृदय मेरा अब कर रहा,

वो क्षमा मुझे कर गया

पर मैं नहीं कर पा रहा ।

प्रायश्चित अपराध का

करना जो चाहो तुम अभी,

पुनरावृति अपराध की

होने न देना तुम कभी ।

(अपराध का बोध होने पर ऐसा होता है । यह महसूस करने की बात है । किसी भी अपराध का प्रायश्चित है उसे दोहराया न जाय।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल

29.07.2020


kalam sir : कलाम सर

मीठी मीठी -  488 : भारत रत्न कलाम साब का स्मरण

     बेई ( 27 जुलाई 2020) पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ज्यू कि पुण्य तिथि छी । उनार बार में "लगुल" (2015) किताब बै एक लेख यां उद्धृत छ । उनर निधन 27 जुलाई 2015 हुणि शिलांग में हौछ । मरण बाद उनर सामान -  6 पैंट, 4 कुड़त, 3 सूट, 2500 किताब, 1 फ्लैट (दान पैलिकै), 1 पद्मश्री, 1 पद्मभूषण, 1 भारत रत्न, 16 डाक्ट्रेट, 1 वेबसाइट,  1 ट्विटर ऐकाऊंट, 1 ई मेल ।  क्वे गाड़ी नै, टीवी नै, जेवर नै, बैंक बैलेंस नै । सब 8 साल पैलिकै ग्राम सभा कैं दान । यास छी महात्मा कलाम अंकल । कलाम ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
28.07.2020

Monday 27 July 2020

Mobile par gyaan : मोबाइल पर ज्ञान

खरी खरी - 669 : मोबाइल पर ज्ञान

हमने लोगों को मोबाइल पर
बड़े बड़े संदेश भेजते देखा,
सहिष्णुता की टी वी वार्ता में
बात बात पर लड़ते देखा ।

क्या वे उस पथ चलते होंगे
जिस पथ चल चल कहते होंगे,
ज्ञान बघारने वाले जन की
कथनी करनी में अंतर देखा ।

नशामुक्ति पर बोलते देखा
गुटका छोड़ो कहते देखा,
आंख बचाकर हमने उसको
मुंह में पुड़िया डालते देखा ।

शराब मत पियो कहते देखा
शराब से हानि गिनाते देखा,
जेब जब उसकी हमने पिड़ाई
उसकी जेब में पउवा देखा।

मास्क लगाओ बोलते देखा
मत भीड़ में जाओ कहते देखा,
बिना मास्क के कार्यकर्ता संग
सड़क में उनको घूमते देखा ।

नेताओं को गिरगिट बनते देखा
घड़ियाली अश्रु बहाते देखा
हमने आज तक किसी भी नेता को
नहीं अपने भाषण पर चलते देखा ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
27.07.2020

Saturday 25 July 2020

Kargil ke ranbankure : कारगिल के रणबांकुरे

बिरखांत - 329 :कारगिल युद्ध की याद ( विजय दिवस : 26 जुलाई )  

       प्रतिवर्ष 26 जुलाई को हम ‘विजय दिवस’ 1999 के कारगिल युद्ध की जीत के उपलक्ष्य में मनाते हैं | कारगिल भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में श्रीनगर से 205 कि. मी. दूरी पर श्रीनगर -लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर शिंगो नदी के दक्षिण में समुद्र सतह से दस हजार फुट से अधिक ऊँचाई पर स्थित है |  मई 1999 में हमारी सेना को कारगिल में घुसपैठ का पता चला | घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए 14 मई को आपरेशन ‘फ़्लैश आउट’ तथा 26 मई को आपरेशन ‘विजय’ और कुछ दिन बाद भारतीय वायुसेना द्वारा आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ आरम्भ किया गया | इन दोनों आपरेशन से कारगिल से उग्रवादियों के वेश में आयी पाक सेना का सफाया किया गया | इस युद्ध का वृतांत मैंने अपनी पुस्तक ‘कारगिल के रणबांकुरे’ ( संस्करण 2000) में लिखने का प्रयास किया है |

     यह युद्ध ग्यारह 11000 से 17000 फुट की ऊँचाई वाले दुर्गम रणक्षेत्र मश्कोह, दरास, टाइगर हिल, तोलोलिंग, जुबेर, तुर्तुक तथा काकसार सहित कई अन्य हिमाच्छादित चोटियों पर लड़ा गया | इस दौरान सेना की कमान जनरल वेद प्रकाश मलिक और वायुसेना के कमान एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिस के हाथ थी | इस युद्ध में भारतीय सेना ने निर्विवाद युद्ध क्षमता, अदम्य साहस, निष्ठा, बेजोड़ रणकौशल और जूझने की अपार शक्ति का परिचय दिया | 

     हमारी सेना में मौजूद फौलादी इरादे, बलिदान की भावना, शौर्य, अनुशासन और स्वअर्पण की अद्भुत मिसाल शायद ही विश्व में कहीं और देखने को मिलती हो | इस युद्ध में भारतीय सेना के जांबाजों ने न केवल बहादुरी की पिछली परम्पराओं को बनाये रखा बल्कि सेना को देशभक्ति, वीरता, साहस और बलिदान की नयी बुलंदियों तक पहुँचाया | 74 दिन के इस युद्ध में हमारे पांच सौ से भी अधिक सैनिक शहीद हुए जिनमें उत्तराखंड के 74 शहीद थे तथा लगभग एक हजार चार सौ सैनिक घायल भी हुए थे |

     कारगिल युद्ध के दौरान हमारी वायुसेना ने भी आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ के अंतर्गत अद्वितीय कार्य किया | आरम्भ में वायुसेना ने कुछ नुकसान अवश्य उठाया परन्तु आरम्भिक झटकों के बाद हमारे आकाश के प्रहरी ततैयों की तरह दुश्मन पर चिपट पड़े | हमारे पाइलटों ने आसमान से दुश्मन के खेमे में ऐसा बज्रपात किया जिसकी कल्पना दुश्मन ने कभी भी नहीं की होगी जिससे इस युद्ध की दशा और दिशा में पूर्ण परिवर्तन आ गया | वायुसेना की सधी और सटीक बम- वर्षा से दुश्मन के सभी आधार शिविर तहस-नहस हो गए | हमारे जांबाज फाइटरों ने नियंत्रण रेखा को भी नहीं लांघा और जोखिम भरा सनसनी खेज करतब दिखाकर अपरिमित गगन को भी भेदते हुए करशिमा कर दिखाया | हमारी वायुसेना ने सैकड़ों आक्रमक, टोही, अनुरक्षक युद्धक विमानों और हेलिकोप्टरों ने नौ सौ घंटों से भी अधिक की उड़ानें भरी | युद्ध क्षेत्र की विषमताओं और मौसम की विसंगतियों के बावजूद हमारी पारंगत वायुसेना ने न केवल दुश्मन को मटियामेट किया बल्कि हमारी स्थल सेना के हौसले भी बुलंद किये |

     कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता, कर्तव्य के प्रति अपने को न्योछवर करने के लिए 15 अगस्त 1999 को भारत के राष्ट्रपति ने 4 परमवीर चक्र (कैप्टन विक्रम बतरा (मरणोपरांत), कैप्टन मनोज पाण्डेय (मरणोपरांत), राइफल मैन संजय कुमार और ग्रेनेडियर योगेन्द्र यादव ( पुस्तक ‘महामनखी’ में इनकी लघु वीर-गाथा तीन भाषाओं में एक साथ है ), 9 महावीर चक्र, 53 वीर चक्र सहित 265 से भी अधिक पदक भारतीय सैन्य बल को प्रदान किये | कारगिल युद्ध से पहले जम्मू -कश्मीर में छद्मयुद्ध से लड़ने के लिए आपरेशन  ‘जीवन रक्षक’ चल रहा था जिसके अंतर्गत उग्रवादियों पर नकेल डाली जाती थी और स्थानीय जनता की रक्षा की जाती थी |

     हमारी तीनों सेनाओं का मनोबल हमेशा की तरह आज भी बहुत ऊँचा है | वे दुश्मन की हर चुनौती से बखूबी जूझ कर उसे मुहतोड़ जबाब देने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं | उनका एक ही लक्ष्य है, “युद्ध में जीत और दुश्मन की पराजय |” आज इस विजय दिवस के अवसर पर हम अपने अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर शहीद परिवारों का सम्मान करते हुए अपने सैन्य बल और उनके परिजनों को बहुत बहुत शुभकामना देते हैं । आज ही हम सबको हर चुनौती में इनके साथ डट कर खड़े रहने की प्रतिज्ञा भी करनी चाहिए । मेरी पुस्तक " कारगिल के रणबांकुरे " कारगिल युद्ध के रणबांकुरों को समर्पित है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

26 जुलाई 2020

Friday 24 July 2020

Shree dev suman : श्री देव सुमन

मीठी मीठी - 487 : 25 जुलाई श्रीदेव सुमन  स्मरण दिवस

      उत्तराखंडक क्रांतिवीर, अमर शहीद श्रीदेव सुमन ज्यूक आज बलिदान दिवस छ । 25 जुलाई 1944 हुणि तत्कालीन रियासतक  राजक खिलाफ 84 दिनक अनशनक दौरान उनर देहावसान हौछ । उनर जन्म 25 मई 1915 हुणि टिहरी उत्तराखंडक जौल गांव में हौछ । ' बुनैद ' किताब बै उनार बार में लेख उद्धत छ । य महान स्वतंत्रता सेनानी कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.07.2020

Bejhijhak gich kholani chaini :बेझिझक गिच खोलणी चैनी

खरी खरी - 668  : बेझिझक गिच खोलणी चैनी

मसमसै बेर क्ये नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौछ बाट में जो दव
हिम्मतल उकैं फोड़णी चैनी ।

अन्यार अन्यार कै बेर
उज्याव नि हुन,
अन्यार में  एक मस्याव
जगूणी चैनी ।
मसमसै..

जात  - धरम पर जो
लडूं रईं हमुकैं,
यास हैवानों कैं भुड़ जास
चुटणी चैनी ।
मसमसै ...

गिरगिट जस रंग
जो बदलैं रईं जां तां,
उनुकैं बीच बाट में
घसोड़णी  चैनी ।
मसमसै...

क्ये दुखै कि बात जरूर हुनलि
जो डड़ाडड़ पड़ि रै,
रुणी कैं एक आऊं
कुतकुतैलि लगूणी चैनी ।
मसमसै बेर...

अच्याल कोरोनाक दौर चलि रौ
सबूंल आपण बचाव करण चैं,
बिना मास्क जो भ्यार घुमैं रईं
उनुकैं पकड़ि बेर गोठ डाउणी चैनी..
मसमसै बेर...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.07.2020

Wednesday 22 July 2020

Bura adami :बुरा आदमी

बिरखांत – 327 :  बुरा आदमी 

         जब से यथार्थ बोलने और गिच खोलने की बीमारी लगी तब से मैं उनके लिए एक बुरा आदमी बन गया जो स्वच्छंद होकर भटक चुके थे, बिगडैल बन चुके थे, समाज- देश को भूल चुके थे | इस तरह के मेरे बैरियों की सूची बहुत लम्बी हो गई जिनकी आखों में मैं चुभने लगा | ये वे लोग हैं जिनके लिए मैं बुरा हूं परन्तु वे मेरे लिए बुरे नहीं हैं सिर्फ सत्य को समझने में झिझकते हैं | 

     तांत्रिक, ज्योतिषी, अन्धविश्वास के पोषक – शास्त्री; पंडित; गुरु; ज्ञानी; बाबा, निठ्ठले (अकर्मण्य ) सरकारी वेतनभोगी, शराबी, नशेड़ी, दास-डंगरिये, स्टाफ रूम में बैठे रहने वाले एवं विद्यार्थियों से गुटका- बीडी -शराब मंगाने वाले गुरुजन, बिगडैल विद्यार्थी, भ्रष्ट कर्मचारी, यात्री बसों के अनुशासनहीन चालक- परिचालक, भ्रष्ट- अकर्मण्य पुलिस वाले, भाटगिरी करनेवाले कवि, बिके हुए चैनल –पत्रकार –लेखक, बदन उघाडू यौवनाएं, चूल्हे- चौके और झाडू- पोछे तक ही सिमित रहने वाली गृहणियां, जलस्रोतों में विर्सजन के पक्षधर, नदी और मूर्तियों में दूध बहाने वाले, मंदिरों में शराब चढाने वाले, राहू-केतू –भूत-मसाण के नाम से लोगों को डराने वाले, ठगविद्या से ठगने वाले, वास्तु का भ्रम दिखाने वाले, नीबू-मिर्च लटकाने वाले, कन्याभ्रूण हत्यारे अल्ट्रासाउंड मशीन वाले, कन्या को परायाधन कहने वाले, संस्थाओं को अकर्मण्य बनाने वाले, सड़क-गली-पार्क में श्वान विचराने वाले आदि इसी तरह के कई तत्व हैं |

      ये सभी कहीं खुलकर तो कहीं नुक्कड़-कोने पर मुझे एक अवरोधक समझने लगे | पूजा के नाम या अभिषेक के नाम से मूर्तियों पर बड़ी मात्रा में दूध बहते हुए नाले में जाता है | किसी कुपोषित के मुंह में जाता तो कुछ पुण्य अवश्य होता | कावड़ यात्री यदि एक पौधे का जलाभिषेक कर उसकी परवरिश करते या क्षेत्र में स्तिथ स्कूल की सफाई करते तो क्या पुण्य नहीं होता ? वृक्षमित्र बन कर प्रचार कम मिलेगा परन्तु अपार पुण्य जरूर मिलेगा | 

     आज हम उस दौर में गुजर रहे हैं जब हम किसी शंका का सत्य एवं वैज्ञानिक प्रमाण चाहते हैं तो जबाब मिलता है, “ श्रधा पर सवाल मत कर |” यही कारण है कि आज हम शोध में बहुत पीछे हैं | विश्व के प्रथम 500 (पांच सौ) विश्वविद्यालयों में हमारा नाम नहीं है जबकि देश में सात सौ विश्वविद्यालय और छत्तीस हजार से अधिक महाविद्यालय हैं जिनमें तीन करोड़ से अधिक छात्रों का नामांकन है | 

     दुःख तो तब होता है जब एक पंडित जी अपने जजमान से कहते हैं कि पूजा के लिए ‘एक आम की टहनी और एक बेलपत्री की टहनी’ जरूर लाना | काश ! वे जजमान से एक आम और एक बेल का पौधा रोपित कर उसकी परवरिश के लिए भी कहते | इनका भी मैं बुरा बन गया | बुरा आदमी हूं ना | कुछ अच्छे के लिए बुरा बन भी गए तो यह बुरा नहीं है | विवेकानंद जी कह गए, “ पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है | मैं आशावान हूं  । एक दोहा भी स्मरण होता है -" बुरा देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय; जो दिल खोजा आपना, मुझ सा बुरा न कोय ।"

पूरन चन्द्र काण्डपाल


23.07.2020