Monday 30 November 2020

Ye bazar mein nahen milte : ये बाजार में नहीं मिलते

खरी खरी - 747 : ये बाजार में नहीं मिलेंगे !

तुम्हारी कुंठा अहंकार ने

दूर रखा तुम्हें सदाचार से,

पैसे से यदि मिल जाएं तो

ये चीजें ले आना बाजार से ।

खुशी नींद भूख स्वास्थ्य

संतोष सुमति ले आना,

कुछ दुआ आशीर्वाद देशप्रेम

कुछ संस्कार संस्कृति ले आना ।

मित्रता दोस्ती स्नेह सभ्यता

रिश्तेदार घर परिवार पड़ोस ले आना,

थोड़ा ज्ञान थोड़ी मुस्कान

थोड़ा शिष्टाचार भी ले आना ।

खूब दौड़ -भाग कर लो

तुम ढूंढते रह जाओगे,

परंतु ये सभी वस्तुएं

किसी बाजार में न पाओगे ।

कोई कितना ही मोल देदे

ये बाजार में नहीं मिलते,

मानव संवेदना स्रोत इनका

ये किसी दुकान में नहीं बिकते ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

01.12.2020

Sunday 29 November 2020

Gurupoorab : गुरूपूरब

मीठी मीठी -536 : आज 30 नवम्बर गुरुपूरब

         आज 30 नवम्बर, सिक्खों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी की 551वीं जयंती अर्थात गुरपूरब है । इस पुनीत अवसर की सभी को शुभकामना । "लगुल" पुस्तक का लघु लेख "गुरुनानक देव'' यहां उधृत है । 

होली दीवाली दशहरा, 

पितृ पक्ष नवरात्री,

ईद क्रिसमस बिहू पोंगल

गुरुपुरब लोहड़ी,

वृक्ष रोपित एक कर 

पर्यावरण को तू सजा,

हरित भूमि बनी  रहे

जल जंगल जमीन बचा ।

     आज इस पर्व को मनाने के साथ कम से कम एक पेड़ जरूर रोपें और उसका संरक्षण करें । धरती मां का श्रृंगार करें । धरती बचेगी तो सभी त्योहार होंगे, लोहड़ी भी होगी और गुरपूरब भी ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

30.11.2020

Annadata krishak : अन्नदाता कृषक

खरी खरी - 746 : अन्नदाता कृषक

      अन्नदाता की यह गाथा हम सबको जाननी चाहिए क्योंकि उसके परिश्रम पर ही हमारा जीवन निर्भर है । वायु और जल के बाद मनुष्य को उदर पूर्ति के लिए अन्न और तन ढकने के लिए वस्त्र की मूलभूत आवश्यकता है | यदि ये दोनों वस्तुएं नहीं होतीं तो शायद मनुष्य का अस्तित्व नहीं होता और यदि होता भी तो वह अकल्पनीय होता |

    आज जब हम अन्न और वस्त्र का सेवन करते हैं तो हमारी मन में यह सोच तक नहीं आता कि ये अन्न के दाने हमारे लिए कौन पैदा कर रहा है, यह तन ढकने के लिए सूत कहां से आ रहा है ? यह सब हमें देता है कृषक |

    कृषक वह तपस्वी है जो आठों पहर, हर ऋतु, मौसम, जलवायु को साधकर, हमारे लिए तप करता है, अन्न उगाता है और हमारी भूख मिटाता है | वह हमारा जीवन दाता है | मानवता ऋणी है उस अन्नदाता कृषक की जो केवल जीये जा रहा है तो औरों के लिए | अन्न के अम्बार लगा रहा है केवल हमारी उदर-अग्नि को शांत करने के लिए |

      कृषक के तप को देखकर अपनी पुस्तक‘स्मृति लहर (2004) में मैंने ‘अन्नदाता कृषक’कविता के शीर्षक से कुछ शब्द पिरोयें हैं जिसके कुछ छंद देश में डीएवी स्कूल की कक्षा सात की ‘ज्ञान सागर’ पुस्तक से यहां उद्धृत हैं –

पौ फटते ही ज्यों मचाये
विहंग डाल पर शोर,
शीतल मंद बयार जगाती
चल उठ हो गई भोर |

कांधे रख हल चल पड़ा वह
वृषभ सखा संग ले अपने,
जा पहुंचा निज कर्म क्षेत्र में
प्रात: लालिमा से पहले|

परिश्रम मेरा दीन धरम है
मंदिर हें मेरे खलिहान,
पूजा वन्दना खेत हैं मेरे
माटी में पाऊं भगवान् |

तन धरती का बिछौना मेरा
ओढ़नी आकाश है,
अट्टालिका सा सुख पा जाऊं
छप्पर का अवास है|

हलधर तुझे यह पता नहीं है
कार्य तू करता कितना महान,
तन ढकता, पशु- धन देता,
उदर- पूर्ति, फल- पुष्प का दान |

कर्मभूमि के रण में संग हैं
सुत बित बनिता और परिवार,
अन्न की बाल का दर्शन कर
पा जाता तू हर्ष अपार |

मानवता का तू है मसीहा
सबकी भूख मिटाता है,
अवतारी तू इस मही पर
परमेश्वर अन्नदाता है |

कृषक तेरी ऋणी रहेगी
सकल जगत की मानवता,
यदि न बोता अन्न बीज तू,
क्या मानव कहीं टिक पाता ?

जीवन अपना मिटा के देता
है तू जीवन औरों को,
सुर संत सन्यासी गुरु सम,
है अराध्य तू इस जग को |

धन्य है तेरे पञ्च तत्व को
जिससे रचा है तन तेरा,
नर रूप नारायण है तू
तुझे नमन शत-शत मेरा |

( 26 नवम्बर 2020 से चल रहे वर्तमान किसान आंदोलन को शीघ्र सुलझाया जाना चाहिए ताकि किसान शीघ्र अपने घरों को लौट चलें ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.11.2020

Saturday 28 November 2020

Abara kutton se pareshaan : अबारा कुत्तों से परेशान

खरी खरी - 745 : आबारा कुत्तों से परेशान हैं लोग

        देश के हर शहर में आबारा कुत्तों से लोग दुःखी हैं जिनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है । एक समाचार के अनुसार देश में लगभग साड़े चार करोड़ से अधिक आबारा कुत्ते हैं और प्रतिवर्ष बीस हजार लोग कुत्तों के काटने से रेबीज रोग के शिकार होते हैं जबकि कुत्तों के काटने के लगभग दो करोड़ केस होते हैं । यह भयावह स्तिथि महानगरों में अधिक है जिसका विवरण सरकारी और निजी अस्पतालों में देखा जा सकता है ।

      स्थानीय निकाय आबारा कुत्तों की संख्या को रोकने में असहाय लगते हैं । श्वान बंध्याकरण निराशाजनक है तभी यह संख्या बढ़ रही है । अबारा कुत्तों को जहां-तहां पोषित किये जाने से भी इनकी संख्या बढ़ रही है । जिस व्यक्ति को कुत्ते ने काटा है वही जानता है कि उसे कितनी पीड़ा होती है और किस तरह उपचार कराना पड़ता है । समाज चाहे तो आबारा श्वान नियंत्रण में सहयोग कर सकता है । आबारा कुत्तों को भोजन देने से बेहतर है कुत्तों को घर में पाला जाए । इस विषय में किसी प्रकार के अंधविश्वास के भंवर में न पड़ा जाय । यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है । अबारा कुत्ते तो गंदगी करते हैं, पालतू कुत्तों को भी श्वान मालिक बीच सड़क या किसी के भी घर के आगे बेझिझक शौच कराते हैं और मना करने पर 'तुझे देख लूंगा' की धमकी देते हैं । हम भारत माता की जय या वन्देमातरम तो बोलते हैं परन्तु इस भारत माता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझते ।  

पूरन चन्द्र काण्डपाल

29.11.2020

Friday 27 November 2020

Mobile Gyan : मोबाइल ज्ञान

खरी खरी - 744 : मोबाइल पर ज्ञान

हमने लोगों को मोबाइल पर


बड़े बड़े संदेश भेजते देखा,


सहिष्णुता की टी वी वार्ता में


बात बात पर लड़ते देखा ।

क्या वे उस पथ चलते होंगे


जिस पथ चल चल कहते होंगे,


ज्ञान बघारने वाले जन की


कथनी करनी में अंतर देखा ।

नशामुक्ति पर बोलते देखा


गुटका छोड़ो कहते देखा,


आंख बचाकर हमने उसको


मुंह में पुड़िया डालते देखा ।

शराब मत पियो कहते देखा


शराब से हानि गिनाते देखा,


जेब जब उसकी हमने पिड़ाई


उसकी जेब में पउवा देखा। 

मास्क लगाओ बोलते देखा


मत भीड़ में जाओ कहते देखा,


बिना मास्क के बीच बजार की


सड़क में उसको घूमते देखा ।

चुनाव की रैली करते देखा


तिकड़म से भीड़ जुटाते देखा,


कोरोना के दौर को भूलकर


जीत का जश्न मनाते देखा ।

नेताओं को गिरगिट बनते देखा


घड़ियाली आंसू बहाते देखा


हमने आज तक किसी भी नेता को


नहीं अपने भाषण पर चलते देखा ।

पूरन चन्द्र कांडपाल


28.11.2020


Thursday 26 November 2020

Khoob gali do yaro : खूब गाली दो यारो

बिरखांत -345 : खूब गाली दो यारो  !

    कुछ मित्रों को बुरा लगेगा और लगना भी चाहिए | अगर बुरा लगा तो शायद अंतःकरण से महसूस भी करेंगे | सोशल मीडिया में अशिष्टता, गाली और भौंडापन को हमने ‘अशोभनीय’ बताया तो कई मित्र अनेकों उदाहरण के साथ इस अपसंस्कृति के समर्थक बन गए | तर्क दिया गया कि रंगमंच में, होली में तथा कई अन्य जगह पर ये सब चलता है | चलता है तो चलाओ भाई | हम किसी को कैसे रोक सकते हैं | केवल अपनी बात ही तो कह सकते हैं | 

       दुनिया तो रंगमंच के कलाकारों, लेखकों, गीतकारों और गायकों को शिष्ट समझती है | उनसे सदैव ही संदेशात्मक शिष्ट कला की ही उम्मीद करती है, समाज सुधार की उम्मीद करती है | मेरे विचार से जो लोग इस तरह अशिष्टता का अपनी वाकपटुता या अनुचित तथ्यों से समर्थन करते हैं वे शायद शराब या किसी नशे में डूबी हुई हालात वालों की बात करते हैं अन्यथा गाली तो गाली है | 

     सड़क पर एक शराबी या सिरफिरा यदि गालियां देते हुए चला जाता है तो उसे स्त्री-पुरुष- बच्चे सभी सुनते हैं | वहाँ उससे कौन क्या कहेगा ? फिर भी रोकने वाले उसे रोकने का प्रयास करते हैं परन्तु मंच या सोशल मीडिया में तो यह सर्वथा अनुचित, अश्लील और अशिष्ट ही कहा जाएगा | क्या हमारे कलाकार या वक्ता किसी मंच से दर्शकों के सामने या घर में मां- बहन की गाली देते हैं ? यदि नहीं तो सोशल मीडिया पर भी यह नहीं होना चाहिए ।

     हास्य के नाम पर चुटकुलों में अक्सर अत्यधिक आपतिजनक या द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग भी खूब हो रहा है, यह भी अशिष्ट है | अब जिस मित्र को भी हमारा तर्क ठीक नहीं लगता तो उनसे हम क्षमा ही मांगेंगे और कहेंगे कि आपको जो अच्छा लगे वही बोलो परन्तु अपने तर्क के बारे में अपने शुभेच्छुओं और परिजनों से भी पूछ लें | यदि सभी ने आपकी गाली या अशिष्टता का समर्थन किया है तो हमें जम कर, पानी पी पी कर गाली दें | हम आपकी गाली जरूर सुनेंगे क्योंकि जो अनुचित है उसे अनुचित कहने का गुनाह तो हमने किया ही है ।

     आजकल अनुचित का खुलकर विरोध नहीं किया जाता | लोग डरते हैं और मसमसाते हुए निकल लेते हैं | हम गाली का जबाब भी गाली से देने में विश्वास नहीं करते | कहा है - 

“गारी देई एक है, 

पलटी भई अनेक;

जो पलटू पलटे नहीं, 

रही एक की एक |”

     साथ ही हम मसमसाने में भी विश्वास नहीं करते -  

“मसमसै बेर क्ये नि हुन

 बेझिझक गिच खोलणी चैनी,

 अटकि रौ बाट में जो दव

 हिम्मत ल उकें फोड़णी चैनी |” 

(मसमसाने से कुछ नहीं होता, निडर होकर मुंह खोलने वाले चाहिए, रास्ते में जो चट्टान अटकी है उसे हिम्मत से फोड़ने वाले चाहिए | ) इसी बहाने अकेले ही चट्टान तोड़कर सड़क बनाने वाले पद्मश्री दशरथ माझी का स्मरण भी कर लेते हैं । उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

27.11.2020


Wednesday 25 November 2020

Samvidhan Diwas : संविधान दिवस

मीठी मीठी - 535 : संविधान दिवस 


      26 नवम्बर 1949 हुणि भारतक संविधान कैं संविधान सभाल स्वीकार करौ । संविधान लेखण में 2 साल 11 महैण 18 दिन लागीं । 'लगुल ' किताब बै संविधान दिवसक बार में एक लेख यां उद्धृत छ । सबूं कैं संविधान दिवस कि बधै और शुभकामना ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

26.11.2020

Tuesday 24 November 2020

Gharwai ki bhakti : घरवाइकि भक्ति

खरी खरी - 743 : घरवाइकि भक्ति

कौसल्या केकई सुमित्रा
दसरथाक छी राणी तीन,
उं हमेशा बारि बारि कै
हराम करछी दसरथकि नीन ।

अच्याल यूं तीनोंक रोल
क्वे लै घरवाइ एकलै निभै सकीं,
कौसल्या सुमित्रा कम
केकई जरा ज्यादै
बनि बेर  दिखै सकीं ।

जभणि क्वे मंथरा कि
नजर लै जालि घरवाइ पार,
समझो घर में चलक ऐगो
बिगड़ि गो सब घरबार ।

भ्यार भलेही सबूं हैं
खूब बागै चार गुगौ,
घर आते ही भिजाई
बिराउ जास बनि जौ ।

घरवाइक सामणि फन फन
नि करो, मुनव कनौ,
खांहूँ नि लै बनै सकना
भान तब लै चमकौ ।

साग-पात सौद पत्त ल्हीहूँ
उ दगै हमेशा बाजार जौ,
समान उ आफी ख़रीदलि
तुम चुपचाप झ्वल पकड़ि
वीक पिछाड़ि बै ठाड़ हैरौ ।

अगर चांछा हमेशा भलि भांत
चलो गृहस्थी कि गाड़ि,
तो टैम टैम पर ल्याते रौ
वीक मनकसि भलि भलि साड़ि।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.11.2020

Monday 23 November 2020

Bachchon mein mobile ki lat : बच्चों में मोबाइल की लत

खरी खरी - 742 : बच्चों में मोबाइल की लत

      मोबाइल फोन आज हमारी अभिन्न आवश्यकता बन गया है । हमने अपने स्वार्थ के कारण अपने बच्चों को मोबाइल का शिकार बना दिया है । आरम्भ से ही हम उसके मुंह में दूध की बोतल और हाथ पर मोबाइल थमा रहे हैं । अब बच्चे बिना मोबाइल हाथ में लिए खाना मुंह में नहीं डालने देते । अभिभावक बच्चों को मोबाइल गेम्स लगाकर खाना खिलाने लगे हैं । लगातार मोबाइल प्रयोग से बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है । बच्चे बिना मोबाइल के रोने लगते हैं अर्थात वे मोबाइल की लत के शिकार हो गए हैं ।

      चिकित्सकों का कहना है कि मोबाइल से इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडीयेशन निकलता है जो बच्चों की त्वचा और मस्तिष्क एवम् तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है जिससे कई बार बच्चों को चक्कर आना, जी मिचलाना या उल्टी आना देखा गया है । नजर की कमजोरी और आंख की अन्य समस्या भी लगातार मोबाइल प्रयोग से आने लगी है ।

         मोबाइल जनित सभी समस्याओं का निदान है कि बच्चों को मोबाइल नहीं दिया जाय । बच्चों को दोस्तों के बीच  पार्क में खेलने का समय दिया जाय । उन्हें अन्य खिलौने भी दिए जा सकते हैं । अभिभावकों को भी बच्चों के सामने मोबाइल कम प्रयोग करना चाहिए जिससे उन्हें मोबाइल देखने को न मिले । यदि हमने अपनी भावी पीढ़ी को बचाना है, तंदुरुस्त रखना है, उनकी आंखें बचानी हैं, उनका मस्तिष्क बचाना है तो हमें उनके सामने मोबाइल प्रयोग नहीं करने का संकल्प लेना ही होगा । बड़े बच्चों को बहुत कम समय के लिए मोबाइल दिया जा सकता है । मोबाइल में गेम्स, कामेडी, मनोरंजन आदि बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.11.2020

Sunday 22 November 2020

Maran baad yaad : मरण बाद याद

खरी ख़री - 741 : मरण बाद याद

मैंसा क मरण बाद
काबिलियत याद ऐं,
वीक ज्यौंन छन
दुनिय चुप रैं ,
गौरदा गिरदा शेरदा क
बार में लै यसै हौ,
उनार जाण बाद
लोगों कैं य महसूस हौ ।

के बात नि हइ
क्वे त उनुकैं याद करें रईं,
उनरि याद में कभतै त
गिच खोलें रईं,
अणगणत हुनरदार
चुपचाप यसिके गईं,
शैद दुनिय कि रीत यसी छ
जानै जानै य बात कै गईं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.11.2020

Khule mein shauch : खुले में शौच

T1185.क्या हमारे देश में खुले में शौच करने और मैला ढोने का कर्म समाप्त हो चुका है ? रेल पटरियों पर तो अभी भी ये गंदगी देखी जा सकती है । मैन होल में घुस कर आदमी ही सफाई कर रहे हैं ।

Saturday 21 November 2020

Yamuna ka santaap : यमुना का संताप

खरी खरी - 740 : यमुना का संताप

स्वच्छ हुई नहीं
गंदगी बढ़ती गई,
पर्त कूड़े की तट
मेरे चढ़ती गई,
बढ़ा प्रदूषण रंग
काला पड़ गया,
जल सड़ा तट-तल
भी मेरा सड़ गया ।

व्यथित यमुना रोवे
अपने हाल पर,
पुकारे जन को
मेरा श्रृंगार कर,
टेम्स हुई स्वच्छ
हटा कूड़ा धंसा,
काश ! कोई तरसे
देख मेरी दशा ।

आह ! टेम्स जैसा
मेरा भाग्य कहां ?
उठी स्वच्छता की
गूंज संसद में वहां,
क्या कभी मेरे लिए
भी यहां खिलेगी धूप ?
कब मिलेगा मुझे
मेरा उजला स्वरूप ?

( दिल्ली में  अब तक 5.17 लाख से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं जिनमें से 8.1 हजार से अधिक इसके ग्रास बन चुके हैं । 10 नवम्बर 2020 के बाद से प्रतिदिन दिल्ली में एक सौ से अधिक रोगियों की इस संक्रमण से मौत हो रही है । मास्क लगाएं, देह दूरी रखें, भीड़ से बचें और मजबूरी के सिवाय न तो बाहर जाएं और न बेवजह किसी के घर जाएं । )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.11.2020

Friday 20 November 2020

Sikkhon se seekhसिक्खों से सीख

मीठी मीठी -533 : सिक्खों से सीख

         मैं एक भारतीय हूँ और सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ परन्तु सिक्ख धर्म जिसकी स्थापना गुरु नानक देव जी (1468 - 1539 ) ने ई.1499  में की, हमें बहुत कुछ सिखाता है क्योंकि इसकी निम्न विशेषता है -

1. पूजा मूर्ति की नहीं बल्कि पवित्र पुस्तक 'गुरु ग्रंथ साहब' की होती है । शबद - कीर्तन में कानफोडू शोर नहीं होता । सिर्फ एक ओंकार में विश्वास ।

2. किसी तरह का आडम्बर -पाखंड नहीं है । शादी -विवाह अक्सर किसी भी रविवार को होती है ।

3. पाठी (पुजारी) किसी भी जाति का हो सकता है।

4. लंगर व्यवस्था निरंतर है । दान स्वेच्छा से दान पात्र में ।

5. कहीं भी आपदा होने पर सिक्खों को सबसे पहले पहुंचते देखा गया है ।

6. राशि -कुंडली- अंधविश्वास, पशु बलि आदि कुछ भी नहीं ।

7. किसी गुरुद्वारे में मन्नत नहीं मांगी जाती । स्वच्छता का विशेष ध्यान होता है ।

8. सभी अन्य धर्मों का सम्मान सिखाया जाता है ।

9. प्रत्येक अमीर गरीब साथ बैठकर लंगर छकते हैं ।

10. कोई किसी भी गुरुद्वारे में निःशुल्क रैन-बसेरा कर सकता है ।

(पुनः संपादित -साभार सोसल मीडिया मित्र धीरज कुमार । उक्त बिंदुओं पर मंथन कर हम बहुत कुछ सीख सकते हैं और  अपना सकते हैं ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.11.2020

Thursday 19 November 2020

Sadak durghatanaayein : सड़क दुर्घटनाएं

बिरखांत- 344 : कब थमेंगी सड़क दुर्घटनाएं ?

    एक सर्वे के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटना में करीब एक लाख तीस हजार (350 मृत्यु प्रतिदिन अर्थात प्रति चार मिनट में एक मृत्यु ) लोग अपनी जान गंवाते हैं | इस तरह बेमौत मृत्यु में हमारा देश विश्व में सबसे आगे बताया जाता हैं | कैंसर, क्षय रोग, मधुमेह, हृदय गति व्यवधान आदि रोंगों के बाद देश में सड़क दुर्घटना में मरने वालों के संख्या आती है | इस बेमौत मृत्यु में दुपहिया वाहन चालक/सवार सबसे अधिक हैं जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र के किशोरों की मृत्यु दर 12 % है | सड़क दुर्घटना में करीब पांच लाख लोग घायल होते हैं जिनमें अधिकाँश अपंग हो जाते हैं | दो वर्ष पहले केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की अकाल मृत्यु भी 3 जून 2014 को सड़क दुर्घटना में हुयी थी | वर्तमान में कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब हम टी वी में क्षत-विक्षत शव तथा चकनाचूर हुए वाहनों के दृश्य नहीं देखते हों |

     देश की राजधानी में प्रतिदिन सड़क दुर्घटना में पांच लोग मरते हैं जिनमें औसतन दो पैदल यात्री और दो दुपहिया चालक हैं | प्रति सप्ताह दो  साइकिल चालक तथा एक कार चालक सड़क दुर्घटना में मरता है | सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं बिना लाइसेंस के वाहन चलाना, वाहन चलाने का अल्पज्ञान होना, सिग्नल जम्पिंग, वाहन से सिग्नल नहीं देना, ओवर स्पीड (गति सीमा से अधिक ), ओवर लोड, शराब पीकर वाहन चलाना, रोड रेस (एक दूसरे से आगे निकलने की जल्दी), सड़क पर गलत पार्किंग, चालक की थकान या झपकी आना, लापरवाही, डेक का शोर अथवा मोबाइल पर ध्यान बटना आदि | विपरीत दिशा से आरहे वाहन की गलती, हेलमेट कोताही, सड़क के गड्डे, तथा मशीनी खराबी आदि भी भीषण दुर्घटना के अन्य कारण हैं | 

     इन सब दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है लोगों में क़ानून का डर नहीं होना | हमारे देश के लोग विदेश जाते हैं और वहाँ के नियम-क़ानून का पालन बखूबी करते हैं | स्वदेश आते ही यहां के क़ानून को अंगूठा दिखा देते हैं क्योंकि यहां क़ानून का डर नहीं है | सब जानते हैं कि शराब पीकर वाहन चलाने सहित सभी सड़क सुरक्षा के नियमों की अवहेलना में जुर्माना है परन्तु लोगों को जुर्माने की चिंता नहीं है | उन्हें घूस देकर छूटने का पूरा भरोसा है या जुर्माने की रकम अदा करने के फ़िक्र नहीं हैं | प्रतिवर्ष लाखों चालान भी कटते हैं |

      हमारे देश में बच्चे अपने अभिभावकों का वाहन खुलेआम चला कर दुर्घटना में कई निर्दोषों को मार देते हैं | कई बार बड़ी तेजी से उड़ती मोटरबाइक में एक साथ बैठे छै- सात बच्चे सड़क पर जोर जोर से हॉर्न बजाते हुए देखे गए हैं | इन दुपहियों में कार या ट्रक का हॉर्न लगाकर, रात हो या दिन जोर जोर से हॉर्न बजाते हुए उड़ जाना इन बिगडैल बच्चों का फैशन बन गया है | पुलिस या तो होती ही नहीं या देख- सुन कर भी अनजान बनी रहती है | अब जब दुर्घटनाओं की अति हो गई तब इन नाबालिगों द्वारा वाहन चलाने पर अभिभावकों को दण्डित करने की मांग उठ रही है | सड़कों पर गड्ढे भी दुर्घटना का मुख्य कारण बन गए है जिन्हें शीघ्र भरा जाना चाहिए ।

     इस बीच उत्तराखंड में भी सड़क दुर्घटनाओं की बाड़ सी आ गई है जिससे कई घर उजड़ गए हैं | बारात, पर्यटन, तीर्थाटन, व्यवसाय आदि से जुड़े कई वाहन आये दिन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं | इसका कारण भी सभी सड़क सुरक्षा के नियमों की अवहेलना ही है | इन सभी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए हमें अपने घर से शुरुआत करनी पड़ेगी | अपने नाबालिग बच्चों को भूलकर भी कोई वाहन नहीं दें ताकि सड़क पर कोई अनहोनी न हो | लाइसेंस प्राप्त बालिंग बच्चों का प्रशिक्षण भी उत्तम होना चाहिए | आप स्वयं भी वाहन चलाते समय संयम रखें क्योंकि दुर्घटना से देर भली | स्मरण रहे आपका परिवार प्रतिदिन आपकी सकुशल घर वापसी के इंतज़ार में रहता है |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.11.2020

Wednesday 18 November 2020

Jindagi ya tyuhaar : जिंदगी या त्यौहार

T1182.जिंदगी से बढ़कर त्यौहार हैं या त्यौहार से बढ़कर जिंदगी ? जब जिंदगी रहेगी तभी त्यौहार भी रहेंगे । भीड़ से बचो, कोरोना से बचो ।

Sampradayik ekta bahut jarooree : सांप्रदायिक एकता जरूरी

खरी खरी - 739 : देश में सांप्रदायिक एकता बहुत जरूरी

     कुछ मित्र ताने मारते हुए मुझ से कहते हैं, 'कभी मुसलमानों के बारे में भी लिखो, क्यों हमेशा हिन्दुओं के पीछे पड़े रहते हो ?' मित्रो, ऐसा नहीं है । मैं हिन्दू से पहले हिंदुस्तानी या भारतीय हूं और मानवीय सरोकारों से वशीभूत होकर कुछ शब्द लिख देता हूं । चार दशक से कलमघसीटी हो रही है । जन- सरोकारों पर लिखते आ रहा हूं । हर विसंगति और विषमता तथा अंधविश्वास के विरोध में लिखता- बोलता हूं ।

कबीर के दोनों दोहे याद हैं -

पहला- 'पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार;
ता पर ये चाकी भली, पीस खाये संसार ।'

दूसरा - 'कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लेई बनाय;
ता पर मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।'

मोको कहां ढूंढे रे बंदे भी याद है -
'ना तीरथ में ना मूरत में, ना काबा कैलाश में;
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना एकांत निवास में ।'

बच्चन साहब की मधुशाला भी कहती है-
"मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका हाला; एक है उनका मदिरालय एक ही है उनका प्याला; दोनों रहते एक न जब तक मंदिर -मस्जिद हैं जाते, बैर कराते मंदिर-मस्जिद मेल कराती मधुशाला ।"

     दोनों संप्रदायों को देश और समाज के हित में एक-दूसरे का सम्मान करते हुए मध्यमार्ग से संयम के साथ चलना चाहिए । सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन सबने मिलकर लड़ा और हिंदुस्तान का अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर कहता था, "हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।" जब फिरंगियों को लगा कि हिंदुस्तान आजाद करना ही पड़ेगा तो उन्होंने हिन्दू -मुस्लिम एकता को भंग करने के कई षडयंत्र रचे और जाते -जाते अपने षड्यंत्र में सफल भी हो गए ।

      हमारे देश का एक संविधान है जो हमारा पग - पग पर मार्गदर्शन करता है जिसे सोच  -समझ कर 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में संविधान निर्माण समिति द्वारा संविधान सभा के निर्देशन में लिखा गया । देश को स्वतंत्र हुए 73 वर्ष हो गए हैं और देश के दो मुख्य सम्प्रदायों की आपसी नफरत को बढ़ाने का षड्यंत्र आज भी जारी है । यदि यह नफरत प्यार में बदल जाएगी तो अमन-चैन के कई दुश्मनों की दुकानें बंद हो जाएंगी । फिर वे सियासत किस पर करेंगे ? ये लोग नफरत की आग जलाकर अपनी रोटी सेकते आये हैं और सेकते रहेंगे । सर्वोच्च न्यायालय का आभार जो 9 नवम्बर 2019 को सर्वसम्मति से देशहित में अयोध्या का केस सुलटाया । सियासत वाले अपनी दुकान से अब कुछ अन्य आइटम बेचने की सोचेंगे क्योंकि दुकान तो बंद होने से रही ।

     स्पष्ट करना चाहूंगा कि ईश्वर कभी भी पशु -बलि नहीं लेता और न अल्लाह ईद में पशु -कुर्बानी लेता है । धर्म और आस्था के नाम पर किसी पशु की कुर्बानी या बलि एक अमानुषिक कृत्य है । सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए नफरत का पुलाव पका कर नहीं बांटा जाय । जाति-धर्म- सम्प्रदाय की लड़ाई में हमें झोंक कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से सावधान रहना ही वक्त की मांग है ताकि हम कम से कम अगली पीढ़ी को तो इस संक्रामक रोग से बचा सकें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.11.2020

Mukhya 8 samasya : मुख्य 8 समस्या

खरी खरी- 737 : हमारी मुख्य आठ समस्याएं

      हमारे देश की कुछ ऐसी जटिल समस्याएं हैं जो हमें आज भी देश से हटने का नाम नहीं ले रही । आज हमें निम्न 8 प्रमुख समस्याओं से पग-पग पर जूझना पड़ रहा है । यह हमारी अपने पुरखों (स्वतंत्रता सेनानियों) को विनम्र श्रद्धांजलि होगी यदि हम इन समस्यओं को उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएं और इनको उखाड़ फेंकने के लिए अपने हिस्से के कर्म का क्रियान्वयन करें  ताकि हम अपनी भावी पीढ़ी को एक सुदृढ़ भारत सौंप सकें -

1. भ्रष्टाचार का भाष्मासुर

2. अन्धविश्वास की जंजीरे

3. नशे का दलदल

4. आतंकवाद का नासूर

5. अशिक्षा का अंधेरा

6. गंदगी के ढेर

7. गरीबी की मार

8. सांप्रदायिकता का दंश

     अन्य समस्याएं भी हैं परंतु वे सब इन 8 समस्याओं के काऱण ही हैं । यदि हमारे देश को उक्त प्रमुख 8 समस्याओं से मुक्ति मिल जाये तो हम शीघ्र ही विकसित देशों की सूची में शामिल हो सकते हैं । बातें तो सभी करते हैं परन्तु ईमानदारी से इन्हें मिटाने का कर्म नहीं होता । उम्मीद पर दुनिया कायम है । यदि हमारे नीति नियंता ईमानदारी से ठान लें तो ये समस्याएं समूल नष्ट हो सकती हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.11.2020