खरी खरी - 55 : ऐसी मेरी सोच कहाँ ?
मंदिर- मस्जिद राम- द्वंद
मुझे न जिंदा छोड़ेंगे,
राम- रहीम को एक मैं समझूं
ऐसी मेरी सोच कहां ?
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
जैन पारसी बौद्ध बहाईं,
रक्त सभी का एक मैं जानूं
ऐसी मेरी सोच कहां ?
जप तप पूजा पाठ का राग
जीवन में अलापता गया,
8कर्म को ही पूजा में जानू
ऐसी मेरी सोच कहां ?
रूढ़िवाद और अंधविश्वास के
सांकल में हूं जकड़ा गया,
काटूं सांकल मुक्ति पाऊं
ऐसी मेरी सोच कहां ?
शहीद हुए जो मातृभूमि पर
उनको तो में भूल गया,
स्मृति में उनके शीश झुकाऊं
ऐसी मेरी सोच कहां ?
खाली हाथ यहां आया अकेले
ऐसे ही मैं जाऊंगा,
जीवन चार दिनों का जानू
ऐसी मेरी सोच कहां ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.07.2017
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