Monday 30 September 2019

Wah 1 aur 2 october ki kaali raat : 1 और 2 अक्टूबर की काली रात

खरी खरी -499 :  1 और 2 अक्टूबर की वह दरम्यानी काली रात !!

      1 और 2अक्टूबर 1994 की उस दरम्यानी रात  को जब उत्तराखंड से हमारी बहनें राज्य की मांग के लिए अहिंसक आंदोलन करने दिल्ली की गद्दी को चेताने के लिए बसों से आ रही थी तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा की कंस के राक्षस 2 अक्टूबर की भोर को रामपुर तिराहे पर बांगोवाली गांव के पास उनका अपमान करेंगे । उनके हाथ में उस दिन दराती भी नहीं थी अन्यथा उन नरपिशाचों के चिथड़े उड़ गए होते । उन्हें पहली बार कमर में दराती नहीं होने की कमी खली ।

    इसी तरह 1994 के राज्य आंदोलन में 42 उत्तराखंडी शहीद हो गए । इन लोगों ने आंदोलन में कूदते समय यह नहीं सोचा होगा कि आज वे शहीद हो जॉयेंगे । इनकी वीरगति से इनके घरों के दीपक बुझ गए । इनका आंदोलन भी अहिंसक था ।सोचिए क्या बीती होगी इन शहीदों के परिवारों पर । अपने लिए नहीं मरे थे ये । ये उत्तराखंड राज्य के लिए मरे ।  ये गैरसैण राजधानी के लिए शहीद हुए । इनकी जीवटता को नमन ।

        1- 2 अक्टूबर की उस काली रात को  उत्तराखंड के लिए भुलाना मुश्किल है । भूलेगा भी नहीं क्योंकि दोनों ही घटनाएं दुःखद, शर्मनाक और निंदनीय थीं । यह दिन उत्तराखंड के लिए हमेशा ही काला रहेगा क्योंकि उस रात महिलाओं के उस निरादर ने पूरे विश्व को अपनी ओर आकृष्ट किया था ।  इस दिन कुछ लोग घड़ियाली आंसू बहाते हैं जो जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है । सत्ता - सुख भोग रहे मान्यवरों को उत्तराखंड को न्याय दिलाना चाहिए । 25 वर्ष हो गए हैं, एक भी दोषी दंडित नहीं हुआ । क्यों ? यदि आप आत्मा में विश्वास रखतें हैं तो उन 42 शहीदों की आत्मा के बारे में भी सोचो । देश की 2 महान हस्तियों, गांधी -शास्त्री को 2 अक्टूबर को विनम्र श्रद्धांजलि के अलावा उत्तराखंड के लिए यह दिन काला दिवस के रूप में ही याद किया जाता है । "वैष्णव जन तो तेने कहिए... 'सबको सन्मति दे भगवान...."

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.10.2019

Purshkaar ke maapdand : पुरस्कार के मापदंड

खरी खरी - 498 : पुरस्कार के मापदंड ?

       हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार नवाजने का मापदंड क्या है ?  कार्यानुभव, योग्यता, वरीयता, क्षेत्र में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, चाटुकारिता या कुछ और ?

      पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव में पुरस्कार का हकदार है । यदि वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो यह उस पुरस्कार का अपमान है । योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है । इस तरह पुरस्कृत व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का संदर्भ सदैव सालते रहता है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.09.2019

Sunday 29 September 2019

ब्रह्मचर्य को समझने की जरूरत : brahamchary ko samajhane kee jaroorat

खरी खरी-497 : ब्रह्मचर्य को समझने की जरूरत

( आज की यह खरी- खरी "ब्रह्मचर्य" को समझने का एक प्रयास है जिसके लिए मशहूर कामविज्ञानी डॉ कोठारी के संपादित शब्द साभार यहां उधृत हैं । विज्ञान का छात्र होने के नाते मैं डॉ कोठारी से सहमत हूँ ।)

     "ब्रह्मचर्य का मतलब जो आम आदमी निकालता है, वह यह कि सेक्स (रतिक्रिया) नहीं करना, सेक्शुअल गतिविधि से दूर रहना और वीर्य (पुरुष जननांग से निकलने वाला स्राव या शुक्र या सीमन) न निकलने देना। लोग ऐसा मानते हैं कि एक बूंद वीर्य 100 बूंद खून के बराबर है, इसलिए इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। सच्चाई यह है कि ऐसा न तो आयुर्वेद में लिखा है, न ही कामसूत्र में। वीर्य और खून का कोई रिश्ता ही नहीं है। वीर्य 24 घंटे बनता है। इसे व्यक्ति नहीं भी निकाले तो यह अपने आप निकल जाएगा। अगर आप भरे हुए ग्लास में पानी डालते जाएंगे तो क्या होगा? ओवरफ्लो हो जाएगा। सहवास से दूर रहने पर यह स्वप्नदोष के जरिए निकल जाएगा।"

      "वीर्य के निकलने से किसी तरह की कमजोरी नहीं आती। कामसूत्र में भी वीर्य को पकड़ में रखने का कोई फायदा नहीं बताया गया है बल्कि चरक ने नामर्दगी के 4 कारणों में से एक कारण इंद्रियों का उपयोग नहीं करने को बताया है। मतलब, अनुपयोग से शिथिलता आ सकती है, उपयोग से नहीं।

      ब्रह्मचर्य का मतलब है आत्मा का शोध। ब्रह्मचर्य का मतलब है वेद का अभ्यास। यही 2 अर्थ सही हैं। तीसरा अर्थ लोगों ने नासमझी में या अपने फायदे (लोगों की अज्ञानता से अपनी दुकान चलाना) के लिए बना लिया है ।"

     कई हैल्थ एजुकेसन ब्यूरो में MCH (मैटरनिटी ऐंड चाइल्ड हेल्थ) प्रशिक्षण के दौरान भी डा. कोठारी की तरह ही कई विशेषज्ञों ने इस तथ्य को ठीक इसी तरह हमें समझाया । भ्रांति या मिथ को दूर करना ही आज की इस खरी -खरी का उद्देश्य है ताकि लोग नीम - हकीमों के चंगुल से दूर रहें ।  सोसल मीडिया में एक मित्र ने शबरीमाला मंदिर के देवता अय्यप्पन के ब्रह्मचर्य के कारण वहां महिला प्रवेश वर्जित बताया था जिसके द्वार अब न्यायालय ने सभी महिलाओं के लिए खोल दिये हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.09.2019

Saturday 28 September 2019

Achchha insaan banana pahali jaroorat : इंसान बनना पहली जरूरत

बिरखांत - 283 : अच्छा इंसान बनना पहली जरूरत

      आज जो लोग समाज के सौहार्द को बिगाड़ते हैं वे कबीर, रहीम, बिहारी, रसखान आदि कालजयी कवियों को नहीं जानते हैं या जानकार भी अनजान बने रहते हैं | इन महामनीषियों ने मनुष्य को इंसान बनाने के लिए, समाज को अंधविश्वास से बाहर निकालने के लिए तथा सामाजिक सौहार्द को बनाये रखने के लिए अथाह प्रयत्न किये | हमारे पुरखों ने स्वतंत्रता संग्राम भी मिलकर लड़ा | महत्वाकांक्षा के अंकुरों ने सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ दिया और इस अंकुर को हमें गुलाम बनाने वाला जाते- जाते मजबूती देकर देश को खंडित कर गया | इस खंडन से मजबह की दीवार को मजबूती मिली और कुछ असामाजिक तत्वों ने नफरत की नर्सरी में अविश्वास के पौधे उगाकर यत्र- तत्र रोपना शुरू कर दिया | उसका जो परिणाम हुआ उसकी चर्चा करने की आवश्कयता नहीं है क्योंकि सबकुछ हम आये दिन देख रहे हैं |

     हमारे समाज में सौहार्द को सींचने वाले भी मौजूद हैं | विगत वर्ष कानपुर में गंगा नदी के बैराज पर नौ युवक घूमने गए | एक युवक सेल्फी लेते हुए फिसल कर गंगा नदी में गिर गया और डूबने लगा | उसे बचाने एक के बाद एक सभी दोस्त नदी में कूद पड़े परन्तु डूबने लगे | डूबते हुए युवकों का शोर सुन पास ही में रेत पर बैठा हुआ एक युवक उन्हें बचाने नदी में कूद गया | इसी बीच कुछ नाविकों ने तीन युवक बचा लिए परन्तु वह युवक भी मदद करते हुए नदी में समा गया | बाद में गोताखोरों ने सात शव बहार निकाले | अपनी जान गंवा चुका रेत पर बैठा युवक इन नौ युवकों को नहीं जानता था फिर भी वह इन्हें बचाने के लिए नदी में कूद पड़ा और उन युवकों को बचाते हुए डूब गया | बाद में पता चला कि उसका नाम मक़सूद अहमद था जो एमएससी में अध्ययनरत छात्र था |

     जब मक़सूद अहमद गंगा में नौ युवकों को बचने कूदा होगा उस क्षण उसके मन में हिन्दू- मुसलमान की बात नहीं रही होगी | वह एक मुस्लिम युवक था जिसे उन नौ युवकों के बारे में कुछ भी पता नहीं था | वक्त की मांग पर वह इंसानियत के नाते नौ इंसानों को बचाने के लिए नदी में कूदा  और स्वयं भी जल में समा गया | बात-बात में हिन्दू- मुस्लिम कहने वालों को यह बात समझनी चाहिए कि हम सबसे पहले इंसान हैं, बाद में कुछ और | मक़सूद के साथ अन्य छै का डूब जाना बहुत दुखदायी है | बाद में पता चला कि सभी छै मृतक युवा हिन्दू सम्प्रदाय के थे | एक सेल्फी ने सात अमूल्य जान ले ली | लोगों को चौकन्ना होकर सेल्फी लेनी चाहिए |

     इसी तरह 18 नवम्बर 1997 को सुबह सवा सात बजे स्कूली बच्चों को ले जारही एक बस यमुना नदी पर बने वजीराबाद पुल की रेलिंग तोड़कर यमुना नदी में गिर गई | इस बस में 113 बच्चे और 2 अध्यापक थे | इस दुर्घटना में 28 बच्चे डूब कर मर गये और 67 बच्चों को अस्पताल में भर्ती किया गया | इन बच्चों को जगतपुरी दिल्ली निवासी गोताखोर अब्दुल सत्तार खान ने पानी से बहार निकाला | सत्तार ने लगातार 5 घंटे तक ठंडे पानी में डुबकी लगाई और 50 बच्चे बचाए तथा मृत बच्चों के शव बहार निकाले | इतने परिश्रम और 50 बच्चों का जीवन बचाने के बाद सत्तार ने कहा, “अल्लाह ने हुनर दिया तभी बच्चे बचाए | मुझे 28 बच्चों को नहीं बचा पाने  का बहुत मलाल है |” सत्तार मुसलमान था परन्तु वह जीवित बचाए गए बच्चों के लिए एक “इंसान नहीं फ़रिश्ता बन कर आया था”, ये शब्द उन अभिभावकों के थे जो अपने जीवित बच्चों को गले लगाते हुए कह रहे थे |  काश ! हम सबसे पहले एक अच्छे इंसान बन कर सामाजिक सौहार्द को सींचने का काम कर सकते !

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.09.2019

Bhagat singh smaran diwas : भगत सिंह स्मरण दिवस

मीठी मीठी - 357 : शहीद भगतसिंह स्मरण दिवस (आज जन्म दिवस )

      शहीदे आजम भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर में हुआ था और 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई थी । 23 मार्च यानि, देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्यौछावर करने वाले तीन वीर सपूतों का शहीद दिवस है । यह दिवस न केवल देश के प्रति सम्मान और हिंदुस्तानी होने वा गौरव का अनुभव कराता है, बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भीगे मन से श्रृद्धांजलि देता है।

       उन अमर क्रांतिकारियों के बारे में आम मनुष्य की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है। उनके उज्ज्वल चरित्रों को बस याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं, जिनके आचरण किंवदंति हैं। भगतसिंह ने अपने अति संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी। "आदमी को मारा जा सकता है उसके विचार को नहीं। बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है।" बम फेंकने के बाद भगतसिंह द्वारा फेंके गए पर्चों में यह लिखा था।

      भगतसिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून-खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे। निर्धारित योजना के अनुसार भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था। इसके बाद उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला। यह मुकदमा भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। करीब 2 साल जेल प्रवास के दौरान भी भगतसिंह क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और लेखन व अध्ययन भी जारी रखा। फांसी पर जाने से पहले तक भी वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे।

    आज अमर शहीद भगत सिंह की 113वीं जयंती है । हम विनम्रता के साथ उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
28.09.2019

Thursday 26 September 2019

Purskaar ke maapdand : पुरस्कार के मापदंड

खरी खरी - 496 : पुरस्कार के मापदंड ?

       हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार नवाजने का मापदंड क्या है ?  कार्यानुभव, योग्यता, वरीयता, क्षेत्र में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, चाटुकारिता या कुछ और ?

     आज भी हमारे इर्द - गिर्द दिए जाने वाले सरकारी पुरस्कार विवादित होते है चाहे वे पद्म पुरस्कार हों, खेल पुरस्कार हों, विज्ञान पुरस्कार हों, साहित्य पुरस्कार हों या कोई अन्य पुरस्कार ही क्यों न हों । कई बार तो वास्तविक दावेदार को न्यायालय के द्वार भी खटखटाने पड़ते हैं जैसा कि कुछ वर्ष पहले एक अर्जुन पुरस्कार न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दिया गया । 

      पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव में पुरस्कार का हकदार है । यदि वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो यह उस पुरस्कार का अपमान है । योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है । इस तरह पुरस्कृत व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का संदर्भ सदैव सालते रहता है । 

पूरन चन्द्र कांडपाल

27.09.2019

Wednesday 25 September 2019

man ke manke :मन के मनके

मीठी मीठी - 355 : मन के मनके


     20 सितम्बर 2019 को गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान  डॉ पुष्पा जोशी जी ने मुझे अपनी लिखी हुई पुस्तक " मन के मनके "  (काव्य संग्रह ) भेंट की । अमृत प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित 110 पृष्ठों के इस काव्य - संग्रह में 53 कविताएं और 56 चतुष्पद हैं ।  मां को समर्पित इस काव्य - संग्रह की सभी कविताएं उत्कृष्ट हैं और दिल को छूती हैं । तीन कविताएं तो ' नारी ' शीर्षक से हैं -  ' नारी ही सबसे न्यारी है ', नारी आज भी अकेली है..' और नारी : एक सम्पूर्ण संसार '। ' नारी ही सबसे न्यारी है ' कविता का अंतिम छंद बहुत ही संदेशात्मक है जो यहां उद्धृत है -

"हे नारि ! उठो !

स्वयं को पहचानो, दु:शासन को जानो

केवल नारे नहीं, वारे -न्यारे करने होंगे

घर - घर से नारायण-आसाराम पकड़ने होंगे

तभी होगा उत्थान तुम्हारा...

करोगी जब बुलंद ये नारा...

नारी ही सबसे न्यारी है...

मान लो... 

सब पर यह भारी है ...

मान लो सब पर यह भारी है ।"

     सभी कविताओं की चर्चा करना मेरे असमर्थता है । ' देवभूमि ही नेर गहना, एक पत्थर तबीयत से उछालो, मुझे आज जीने दो, भारत के वीर सपूत...आदि कविताएं बहुत रोचक हैं ।

      चतुष्पदी (56) भी एक से बढ़कर एक हैं । उदाहरणार्थ - 

" कभी बर्फ, कभी अंगार है तू

कभी शोला, कभी बयार है तू

तेरा आना, आकर चले जाना

मानो बरखा की फुहार है तू ।"

" शंख होई मंदिर का, बजने दो मुझे

अज़ान मस्जिद की सुनने दि मुझे

चर्च की पवित्र बाइबिल है भीतर

गुरुद्वारे का लंगर छकने दो मुझे ।"

      अंत में यही कहूंगा कि लेखिका ने एक अच्छा काव्य- संग्रह हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसमें रंग - बिरंगे इंद्रधनुषी तराने हैं । भाषा बहुत सहज है और शब्द रचना पाठक से एक सुमधुर संपर्क साध लेती है । हम उम्मीद करते हैं कि यह काव्य - संग्रह पाठकों को बहुत भाएगा । पुस्तक प्राप्ति के लिए मोब 7838043488 पर संपर्क किया जा सकता है । डा. पुष्पा जोशी को इस काव्य - संग्रह की रचना के लिए बधाई और शुभकामना ।

पूरन चन्द्र कांडपाल 

26.09.2019

Tuesday 24 September 2019

pitr paksh mein ek पौधा :पितृ पक्ष में एक पौधा पितरों के नाम

खरी खरी - 495 : पितृपक्ष में रोपिये एक पौधा पितरों के नाम

होली दिवाली दशहरा

पितृपक्ष नवरात्री,

ईद क्रिसमश बिहू पोंगल

गुरुपूरब लोहड़ी ।   

पौध रोपित एक कर

पर्यावरण को तू बचा,    
          
उष्म धरती हो रही

शीतोष्णता इसकी बचा ।

हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं ,
बड़े होकर वे रहेंगे कहां?

जल विहीन वायु विहीन
पृथ्वी रहने लायक तो रहेगी नहीं ।

धरा में हरियाली लाओ
पेड़ लगाओ पृथ्वी बचाओ ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
25.09.2019

Aadali kushali : आदली कुशली अगस्त 2019

मीठी मीठी - 353 : '  आदलि  कुशलि ' कुमाउनी मासिक पत्रिका अंक अगस्त 2019

      "लोकजीवनक संघर्ष और उनार अनुभव कैं समर्पित  पिथौरागढ़  बै प्रकाशित " मासिक कुमाउनी पत्रिका " आदलि कुशलि " अगस्त 2019 अंक प्राप्त हैगो ।  तिसर वर्ष में प्रवेश य पत्रिका हमरि दुदबोलिक आंखरों कैं लही बेर हमार पास हर महैण पुजीं । य अंक में  लै संपादकीय,  लोक परम्परा, लोक साहित्य, खोजबीन, अन्य  साहित्य समेत भौत भलि जानकारी छ और हमरी भाषा कि खुशबू दागाड़ रमेश हितैषी ज्यूू कि कहानी " कई लुहार" घी त्यार,  रक्षा बंधन के त्यार, आपन आपन भाग्य ( संपादक ), आदि कायेक जानकारी दी रैछ ।  (संपादक -  प्रकाशक : डॉ सरस्वती कोहली मोब 9756553728, 9456705814 )

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.09.2019

Sunday 22 September 2019

pitra paksha par Kabir Ramana d : जी पितृ पक्षा पता कबीर रामानंद

खरी खरी - 496  : पितृ पक्ष पर कबीर और रामानंद

        एक बार गुरु रामानंद ने कबीर से कहा, " हे कबीर ! आज श्राद्ध का दिन है और पितरों के लिए खीर बनानी है। आप जाइए, पितरों की खीर के लिए दूध ले आइए...।

    कबीर उस समय नौ वर्ष के ही थे। वे दूध का बरतन लेकर चल पड़े । चलते-चलते रास्ते में उन्हें एक गाय मरी हुई मिली । कबीर ने आस-पास से घास उखाड़कर गाय के पास डाल दी और वहीं पर बैठ गए । दूध का बरतन भी पास ही रख लिया ।

    बहुत देर हो गई । जब कबीर नहीं लौटे, तो गुरु रामानंद ने सोचा कि पितरों को भोजन कराने का समय हो गया है लेकिन कबीर अभी तक नहीं आया । ऐसा सोचकर रामानंद जी खुद चल दूध लेने पड़े । जब वे चलते-चलते आगे पहुंचे तो देखा कि कबीर एक मरी हुई गाय के पास बरतन रखे बैठे हैं । यह देखकर गुरु रामानंद बोले - "अरे कबीर तू दूध लेने नहीं गया.?"

कबीर बोले -  स्वामीजी, ये गाय पहले घास खाएगी तभी तो दूध देगी।

रामानंद बोले -  अरे ये गाय तो मरी हुई है, ये घास कैसे खाएगी?

कबीर बोले - स्वामी जी, ये गाय तो आज मरी है । जब आज मरी गाय घास नहीं खा सकती, तो आपके वर्षों पहले मरे हुए पितर खीर कैसे खाएंगे...? यह सुनते ही रामानंद जी मौन हो गए और उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ ।

माटी का एक नाग बना के,
पुजे लोग लुगाया ।
जिंदा नाग जब घर में निकले,
ले लाठी धमकाया ।।
 
जिंदा बाप कोई न पूजे,
मरे बाद पुजवाया ।
मुठ्ठीभर चावल ले के,
कौवे को बाप बनाया।।

यह दुनिया कितनी बावरी है,
जो पत्थर पूजे जाए ।
घर की चकिया कोई न पूजे,
जिसका पीसा खाए।।

भावार्थ  यह है कि जीवित  माता - पिता की सेवा करनी चाहिए । बस यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धा है - संत कबीर । ( हम अपने पितरों की पुण्यतिथि या जन्मतिथि पर अपनी सामर्थ के अनुसार किसी भी सुपात्र को दान कर सकते हैं, किसी विद्यार्थी की मदद कर सकते हैं या किसी विद्यालय को वार्षिक छात्रवृत्ति दे सकते हैं । )

( यह संपादित प्रेरक प्रसंग सोसल मीडिया मित्र श्री विक्रम सिंह नेगी जी की पोस्ट से साभार उद्धृत है ।)

पूरन चन्द्र कांडपाल
23.09.2019

Saturday 21 September 2019

lakh k khaak : लाख क खाक

खरी खरी -493 : लाख क है जां खाक

मनखिये कि जिंदगी
लै कसि छ,
हव क बुलबुल
माट कि डेल जसि छ ।

जसिक्ये बुलबुल फटि जां
मटक डेल गइ जां,
उसक्ये सांस उड़ते ही
मनखि लै ढइ जां ।

मरते ही कौनी
उना मुनइ करि बेर धरो,
जल्दि त्यथाण लिजौ
उठौ देर नि करो ।

त्यथाण में लोग कौनी
मुर्द कैं खचोरो,
जल्दि जगौल
क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।

चार घंट बाद
मुर्द राख बनि जां,
कुछ देर पैली लाख क छी
जइ बेर खाक बनि जां ।

मुर्दा क क्वैल बगै बेर
लोग घर ऐ जानीं,
घर आते ही जिंदगी की
भागदौड़ में लै जानीं ।

मनखिये कि राख देखि
मनखी मनखी नि बनन,
एकदिन सबूंल मरण छ
यौ बात याद नि धरन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.09.2019

Friday 20 September 2019

Hem pant true true midia : हेम पंत ट्रु मीडिया

मीठी मीठी - 354 :  ट्रू मीडिया में हेम पंत

    कल 20 सितम्बर 2019 को गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में " ट्रू मीडिया " पत्रिका के विशेषांक का लोकार्पण हुआ जिसमें बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री हेम पंत जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लगभग 30 रचनाकारों के विचार व्यक्त हैं । हेम पन्त  नाट्य मंचन तो करते ही हैं वे एक अच्छे कवि, शायर, लेखक, संचालक और कलाकार तथा एक अच्छे इंसान भी हैं । इस पत्रिका में उनके बारे सभी रचनाकारों ने अपने - अपने तरीके और विश्लेषण से पंत जी के बारे में लिखा है ।

       हेम पन्त जी के बारे में पत्रिका के पृष्ठ 28 से लिया गया एक अनुच्छेद यहां उद्धृत है - " हेम पंत एक कुशल वक्ता और मंच संचालक भी हैं । मैंने उनके मंच संचालन को कई बार देखा है । निर्धारित समय से वे मंच पर आते हैं और अपनी चिरपरिचित शैली में दर्शकों से जुड़ने लगते हैं । मंच में उत्पन्न विषम परिस्थितियों को भी से बखूबी झेल जाते हैं और प्रत्येक विषय, वस्तु और कलाकार या वक्ता के साथ पूरा न्याय करते हैं । वे कवि और शायर भी हैं । पंत जी हिंदी में कविता प्रस्तुत करते हैं परन्तु वे यदा - कदा कुमाऊनी कविता भी पढ़ते हैं । उनके साथ मुझे कई बार मंच साझा करने का अवसर भी प्राप्त हुआ है । परिस्थिति के हिसाब से वे शायरी करते हैं और दर्शकों को अपनी ओर खींच लेते हैं । हास्य - विनोद का रस भी उनकी वार्ता या संवाद में घुला रहता है । भी  वे एक अच्छे साहित्य  समीक्षक भी हैं । मेरे कुमाउनी उपन्यास "छिलुक " ( चिराग) की उन्होंने बहुत बेहतरीन समीक्षा की और इस समीक्षा का उन्हीं के द्वारा मंच से प्रस्तुतीकरण ( गढ़वाल भवन नई दिल्ली ) भी बड़े प्रभावशाली ढंग से किया ।"

      पत्रिका के लोकार्पण पर कई विशिष्ठ मंचासीन अतिथियों ने पंत जी के बारे में अपने विचार व्यक्त किए जिनमें मुख्य थे सुश्री सुशीला रावत ( मंच अध्यक्षता), डा हरि सुमन बिष्ट, डा हेमा उनियाल, डा विनोद बछेती ,( चेयरमैन DPMI),  सर्वश्री नरेंद्र सिंह लडवाल (सी एम डी सी हॉक ) फिल्म निर्देशक दीवान सिंह बजेली, संजय जोशी, ओ पी प्रजापति और पूरन चन्द्र कांडपाल । इस अवसर पर सभी अतिथि वक्ताओं का तुलसी पौध एवम् पत्रिका अंकित पात्र ( कप ) से सम्मान किया गया । पंत जी का भी सम्मान पत्रिका की पूरी टीम ने किया और पंत जी ने भी ट्रु मीडिया की पूरी टीम का सम्मान करते हुए धन्यवाद के साथ आभार व्यक्त किया ।

        इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे जिनमें प्रमुख थे सर्वश्री चारु तिवारी, सुनील नेगी, श्री उनियाल,  विनोद ढोंडियाल, गंगा दत्त भट्ट ( नाट्य निदेशक), डा सतीश कालेश्वरी, रमेश घिल्डियाल, खुशहाल सिंह बिष्ट, गायक फंड्रियाल, के सी पंत, सुधीर पंत,  हरीश सेमवाल, आर के मुद्गल, हीराबल्लभ कांडपाल, उमेश पंत (सार्थक प्रयास ) , अजय सिंह बिष्ट ( सार्वभौमिक ), मोहन सिंह बिष्ट,  सुश्री हेमा पंत, विभा पंत, कुसुम चौहान, सुनयना बिष्ट, विजय लक्ष्मी भट्ट, कुमू जोशी, किरण लखेड़ा, मीना कंडवाल,  प्रदीप शर्मा, महेंद्र लटवाल आदि । सभागार में अन्य कई लोग थे जिनका नाम यहां उद्धृत नहीं कर पाया । पंत जी पूज्य माता जी, भार्या हेमा पंत जी एवम् उनकी बेटियां व अन्य परिजन भी इस अवसर पर मौजूद थे । कार्यक्रम के अंत में हेम पंत जी ने सभी आगंतुकों और ' ट्रू मीडिया '  का आभार व्यक्त किया । अध्यक्ष सुश्री रावत ने अंत में अपना अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ सभी को धन्यवाद दिया । मंच संचालन डा पुष्पा जोशी ( सह संपादक ट्रू मीडिया ) ने किया ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
21.09.2019