Tuesday 31 August 2021

Andhvishwas ki jakad : अंधविश्वास की जकड़

खरी खरी - 916 : अंधविश्वास की जकड़

पढ़े लिखे अन्धविश्वासी बन गये

लेकर डिग्री ढेर,

अन्धविशास के मकड़जाल में 

फ़सते न लगती देर।

पंडे ओझा गुणी तान्त्रिक

बन गये भगवान,

आंख मूंद विश्वास करे जग

त्याग तथ्य विज्ञान । 

उलझन सुलझे करके हिम्मत

और नहीं मंत्र दूजा,

सार्थक सोच विश्वास अटल हो

मान ले कर्म को पूजा।

अन्धविश्वास ने जकड़ा जग को

यह जकड़ मिटानी होगी,

कूपमंडूक की जंजीरों से

मुक्ति दिलानी होगी।

अंधियारा ये अंधविश्वास का

मुंह बोले नहीं भागे,

शिक्षा का हो दीप प्रज्वलित

तब अंधियारा भागे।

पूरन चन्द्र कांडपाल, 

01.09.2021

Monday 30 August 2021

Rapid promotion : रैपिड प्रोमोशन

खरी खरी - 915 : रैपिड प्रोमोसन (द्रुत प्रोन्नति)

    आजकल सोसल मीडिया और कई मंचों पर कुछ लोग चिकनी -चुपड़ी, रंग-पुताई से भरपूर, विशेषण युक्त शब्दावली से बहुत ही द्रुत प्रोन्नति (रैपिड प्रोमोसन ) दे रहे हैं । बानगी देखिए -

अभी एक भी गीत नहीं गाया -
सुर सम्राट, लोक गायक !

अभी संगीत का पता भी नहीं-
संगीतज्ञ, संगीत सम्राट !

अभी कविता का ककहरा नहीं सीखा-
जन कवि, कवि शिरोमणि !

अभी लेखन ने पुस्तक रूप नहीं धरा-
विख्यात लेखक, प्रसिद्ध साहित्यकार !

रंगमंच में पहला कदम-
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी !

मंच संचालन की वर्णमाला ज्ञात नहीं-
कुशल एवं श्रेष्ठ मंच संचालक !

कला  औऱ अदाकारी से अनभिज्ञ-
सुप्रसिद्ध अदाकार, उत्कृष्ट कलाकार !

समाज की कोई सेवा नहीं-
जाने-माने समाज सेवी !

राजनीति में मुहल्ले में भी नहीं-
लोकप्रिय राजनेता, जन-नेता !

भाषण में माफियागिरी-
विद्वान वक्ता !

बिन मास्क के एक भी दुर्योधन को नहीं टोका -
विख्यात कोरोना वारियर !

       मित्रो विशेषण जरूर लगाइए परन्तु ईमानदारी से खपने लायक हों, पचने लायक हों । इतनी अतिशयोक्ति भी मत करिए कि पीतल को सोना कह दो । बच्चे के चेहरे पर दाड़ी मत उगाइये, भद्दी लगेगी । आत्मप्रशंसा और स्वमुग्धा से हम आगे बढ़ने के बजाय पीछे रपट सकते हैं । अतः विशेषण देख- परख कर ही चस्पाइये ताकि पढ़ने, सुनने और समझने वालों को ये शब्द शिष्ट, सहज और सत्य लगें । अंत में यही कहूंगा -

'बहुत बदनाम हो गए
खरी खरी सुनाने में,
कह दो कुछ भी बेझिझक
कुछ नहीं रखा मसमसाने में ।'

( कुछ छूट गया है तो जोड़ने का सुझाव शिरोधार्य है । आजकल कोरोना के कारण जमीन में होने वाले आयोजन वेबीनार में हो रहे हैं जो अच्छी सामाजिकता का परिचायक है ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.08.2021

Geeta ki baat : गीता की बात

खरी खरी - 914 : 'गीता' की बात भी हो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर

       आज 30 अगस्त 2021 को हम श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मना रहे हैं । इस महोत्सव में श्रीकृष्ण के कर्म संदेश की चर्चा प्रमुखता से होनी चाहिए थी जो नहीं हुई । 'गीता' के कर्म संदेश का मूल अर्थ यह नहीं है कि बिना फल या परिणाम का लक्ष्य बनाये हम कर्म करते जाएं । "कर्मण्डे वा....कर्मणी"  का भाव यह है कि हम कर्म करें और जो भी प्रतिफल मिले उसकी चिंता न करते हुए उसे स्वीकार करें । हम जो भी कर्म करेंगे उसका फल हमें भोगना पड़ेगा । इसलिए कर्म करने से पहले सोच लेना उचित होगा । खैर लोग अपने अपने हिसाब से व्याख्या करते हैं ।

        श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर आजकल ज्ञान की बात से अधिक मनोरंजन पर ध्यान दिया जाता है । एक बानगी देखिए - एक फिल्मी गीत है, 'हम-तुम चोरी से , बंधे एक डोरी से ...।' इस गीत पर जन्माष्टमी पर पैरोडी बना दी गई, 'बृज की छोरी से, राधिका गोरी से, मैया करा दे मेरा ब्याह...।' तीन कलाकार- एक राधा, दूसरा कृष्ण और तीसरा यसोदा ।  गीत में कृष्ण बना कलाकार यसोदा के कलाकार से कह रहा है और राधा बना कलाकार नाच रहा है तथा लोग सिटी बजा कर इस भौंडे नृत्य-गान में मस्त हैं । कृष्ण की पत्नी रुकमणी जी थी । राधा तो कृष्ण की अनन्य भक्त थी फिर यह फिल्मी पैरोडी पर लोगों ने आपत्ति क्यों नहीं की ? यह क्या हो रहा है, क्या संदेश जा रहा है, किसी को कोई मतलब नहीं ? पैरोडी गाने वाले के साथ गुटका मुंह में उड़ेले कलाकार वाद्य बजा रहे हैं औऱ श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाया जा रहा है ।

      काश ! मंच से श्रीकृष्ण के बहाने नशामुक्ति और स्वच्छता अभियान का भी उद्घोष बीच -बीच में होता तो कोई तो बदलता । कर्म - संस्कृति और संस्कारों की बात होती तो समाज में कुछ परिवर्तन आता । लकीर के फकीर बनकर हमने उत्सव जरूर मनाया, पैरोडियाँ सुनी, रासलीला देखी, माखन चोरी मंचित हुई परन्तु गीता के 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में से एक की भी चर्चा नहीं हुई । कहीं कहीं पर तो - "कन्हैया तेरो जन्मदिन ऐसो मनायो, कटिया डाल के बिजली ल्हीनी जगमग भवन बनायो " भी होता है । चोरी की बिजली से टेंट सजाया जाता है ।

     गीता के प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक का प्रथम शब्द है "धर्म'' और अंतिम अध्याय के अंतिम श्लोक का अंतिम शब्द है "मम।" इन दोनों को जोड़ें तो शब्द बनता है "धर्ममम'' अर्थात मेरा धर्म है केवल 'कर्म', वह कर्म जो जनहित में हो, समाज हित में हो और देश हित में हो । योगेश्वर श्रीकृष्ण के इस संदेश का मंथन आज के परिवेश में नितांत आवश्यक है । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पुनः शुभकामनाएं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल


30.08.2021


Sunday 29 August 2021

Tokyo paralimpik 2020 : टोक्यो पैरालिंपिक 2020

T162. टोक्यो पैरालिंपिक में भारत ने अब तक 6 पदक जीते - 1 स्वर्ण, 4 रजत, 1 कास्य।
अवनी लेखरा - शूटिंग स्वर्ण
योगेश कथुनिया -डिस्कस रजत
निषाद - ऊंची कूद  रजत
देवेन्द्र झाझरिया- जैवलिन रजत
भाविना टेबल टेनिस - रजत
सुंदर सिंह जैवलिन - कास्य

सभी पदक विजेताओं को बधाई और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं। आपकी हिम्मत, परिश्रम और लगन को नमन।

Budhaapaa (2) : बुढ़ापा (2)

बिरखांत - 399 :बुढ़ापा ! चल हट (2, पिछले अंक का शेष भाग)

      पिछले अंक, बिरखांत - 398, 29.08.2021 से केआगे...

     चनरदा बोले, “अभी बहुत कुछ है बताने को |” मैंने कहा लगे हाथ बता ही डालो ना | मुफ्त की सलाह मिल रही है, कई लोगों का भला हो जाएगा | आजकल तो लोग काउंसलिंग के लिए जाते हैं और यही टिप्स लेने की हैण्डसम फीस दे आते हैं |” चनरदा बड़े इत्मीनान से बोले, “अपने से बड़ी उम्र के कुछ सेलिब्रिटीज पर नजर डालो | बिग-बी अठत्तर के हो गए हैं | अभी कुछ ही वर्ष पहले निशब्द, चीनी कम और कजरारे- कजरारे कह रहे थे | देवानंद अंतिम दिनों तक युआ हीरो बन कर घूम रहे थे | वरिष्ठतम राजनीतिज्ञ कुर्सी से सटे पड़े हैं, बल्कि ये लोग तो कभी बूढ़े होते ही नहीं, भलेही शरीर भी क्यों न जबाब देदे | अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन 78 के हो गए हैं जो 82 वर्ष तक कुर्सी में विराजमान रहेंगे।"

      मैंने चनरदा से वार्ता जारी रखी, “भाई साहब आपने अपने को ‘मेनटेन’ किया है | सत्तर से ऊपर होने पर भी साठ के दिखने का कोई तो फार्मूला होगा तुम्हारे पास |” चनरदा चुस्ती से बोले, “हाँ है, एक छोटा सा- ‘हंसो हंसाओ, टेंसन भगाओ; जीओ जीने दो, कमा कर खाओ |’ लेकिन- किन्तु- परन्तु की छतरी मत खोलो | इसी फार्मूले से ‘मेनटेन’ रही मेरी तरुणाई को देखकर मेरे सहकर्मी भी हमेशा जलते- कुढ़ते रहे | कुछ ही वर्ष पहले जब भी कोई तरुणी कार्यालय में मेरे पास आती तो मेरा एक सहकर्मी अपना काम छोड़कर तुरंत वहाँ आ जाता और उसके सामने जोर से पूछता, “अरे भई कैसी है तेरी पोती ?” मैं कहता, “ठीक है |” अपना कार्य निबटा कर जब वह महिला चली जाती तो मैं अपने इस निखट्टू सहकर्मी से पूछता, “क्यों बे तूने मेरी कुशल नहीं पूछी, बीवी-बच्चों की नहीं पूछी, सीधे पोती की ही क्यों पूछी ?” वह बोला, “ताकि सामने वाले को पता चल जाए तू बूढा है और दादा बन गया है | तेरी सूरत देखकर कोई तुझे जवान न समझे |”

     इसी तरह एक दिन मैं अपनी ‘प्रिय’ भार्या के साथ गलती से सायंकाल  के समय मुहल्ले में घूम रहा था | मेरे पत्नी ने गृहलक्ष्मी स्टाइल की साड़ी पहन रखी थी और मैंने बेटे द्वारा रिजेक्टेड सफ़ेद निकर और सफ़ेद टी-शर्ट पहन रखी थी | हम धीरे –धीरे चहलकदमी कर रहे थे | अचानक मेरी पत्नी की परिचित एक वरिष्ठ महिला बिलकुल हमारे पास से गुजरी | पत्नी के साथ ही मैंने भी उससे नमस्ते कहा | मुझे एक झलक देखकर मेरी पत्नी से वह  “बेटा कब आया” कहते हुए आगे निकल गई |  हम दोनों जिन्दगी में पहली बार खिलखिला कर एक साथ हंस पड़े | भला हो उस बेचारी का जो उसने मुझे पत्नी के सामने जोर से हंसने का सुअवसर दिया | हंसी थमने के बाद मेरी पत्नी बोली, “इस आंखफुटी को तुम मेरे बेटे जैसे कैसे नजर आ गए ?” मेरी हंसी थम नहीं रही थी | पत्नी बोली, “ज्यादा मत उछलो, उम्र के हिसाब से औकात में रहो | दादा बन गए हो, अब भी अपने को बूढ़ा नहीं मानते |”

      चनरदा अपना पत्नी प्रेम खुलकर प्रकट करते हुए बोलते गए, “मेरी भार्या कहती है मैं महिलाओं से हंस- हंस कर बोलता हूँ | मैंने कहा, रो कर तो तुमसे भी नहीं बोलता हूँ, हाँ डर कर जरूर बोलता हूँ क्योंकि मैं डी.टी.एच. हूँ अर्थात डरपोक टाइप हसबैंड | डी टी एच बन कर रहने में ही ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर की नियमित प्राप्ति सुनिश्चित है | हास्य रस के गुलकंद- स्वाद में डूबे हुए चनरदा बताते हैं, “मुझे तब बड़ी निराशा होती है जब मैं वरिष्ठ नागरिकों को ताश का सहारा लेकर बैठे आपस में गाली- गलौच (उनकी प्रेम की भाषा) करते हुए देखता हूँ, धूम्रपान या शराब में डूबा हुआ देखता हूँ | वरिष्ठ नागरिकों को किसी न किसी सृजनात्मक कार्य से जुड़ना चाहिए ताकि अंत तक उनका सम्मान होता रहे | ताश खेलने के बजाय बच्चों के साथ खेलो या सामाजिक सरोकारों से स्वयं को जोड़ लो | तुम्हारे यहाँ से जाने के बाद कोई तो याद करेगा तुम्हें |” जीवन का एक उद्देश्य बना रहे, ‘अपना काम स्वयं करो और जब तक जिन्दा हो जी भर के जीओ और जीने दो |’

      बात समाप्त होने को थी | मेरे निवेदन पर चनरदा ने अंत में खाने- पीने के बारे में बताया, “जहां तक खाने -पीने का प्रश्न है, यदि मेरी तरह यंग ओल्ड मैन बन कर जीना है तो गम को खाओ और क्रोध को पीओ | वैसे मैं पिलसन (पैंशन) खा रहा हूँ और पीने की बात न तो पहले थी और न अब है | फ्री की भी नहीं पीता | बीयर भी नहीं | होली, दिवाली, शादी, सगाई, नामकरण या किसी के जन्मदिन पर भी नहीं | इन समारोहों में ‘मुफ्त’ की पी कर लोगों को लड़खड़ाते, बडबडाते, घिघियाते, मिमियाते, ऐंठते, झगड़ते देखकर वैसे ही मन भर जाता है | तू जिंदा है तो जिंदगी में जीत की यकीन कर...

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.08.2021

Saturday 28 August 2021

Budhapa chal hat : बुढ़ापा चल हट

बिरखांत - 398 : बुढ़ापा ! चल हट (1)


      आपके और मेरे पूर्व परिचित चनरदा अब वरिष्ठ नागरिक हैं जबकि वे ऐसा नहीं मानते | उन्हें बुड्ढा, बूढ़ा. बुड़बू, बुड़ज्यू, वृद्ध, बुजुर्ग आदि शब्दों से चिढ़ है | हाँ, इस कैटेगरी के लोगों को वरिष्ठ नागरिक या सीनियर सिटीजन कहना उन्हें अच्छा लगता है | जीवन के सत्तर से अधिक बसंत देख चुके चनरदा साठ के भी नहीं लगते | उनकी सेवा निवृति का पता लगने पर लोग पूछते हैं, “यार लगते तो नहीं हो, हमें तो यकीन नहीं होता कि तुमस सत्तर पार कर गए हो |” मुस्कराहट को छिपाकर चनरदा पूछते हैं, “तो फिर कितने का लगता हूँ ?” जवाब मिलता है, “यही कोई साठ - बासठ के |” चनरदा का जबाब, “अरे भईया रहने दो मुझे जमीन पर, पुदीने के पेड़ पर मत चढ़ाओ | सेवानिवृति के लिए चमकता मुखड़ा नहीं कागज़ का टुकड़ा देखा जाता है जिसमें उम्र का रिकार्ड होता है |”


      मैंने चनरदा से पूछा, “बूढा होते हुए भी बूढ़ा न दिखने का राज क्या है ?” वे झट से बोले, “मुझे बूढ़ा मत कहो | मुझे सख्त नफरत है इस शब्द से | सबकुछ तो मैं कर रहा हूँ फिर काहे का बूढ़ा ? वैसे भी हमारे समाज में लोगों को वरिष्ठ नागरिकों से बात करने की ज़रा भी तमीज नहीं है जबकि हमारी संस्कृति वृद्धजनों को शीर्ष पर रखने की है और देश के साठ वर्ष से ऊपर वाले आठ करोड़ वरिष्ठ नागरिक इस संस्कृति की चाह रखते हैं जो कभी पूरी नहीं होती | रोबीले चेहरे वाले खुशमिजाज अंदाज में लिपे- पुते चनरदा से मैंने  पूछा, “तो तुम ये बात तो मानोगे नहीं कि तुम बूढ़े हो गए हो ?” वे आँखे चढ़ाते हुए बोले, “तुम्हीं बताओ, क्या मैं तुम्हें बूढ़ा जैसा लग रहा हूँ ?” सच बताना, एकदम सच |” मैंने कहा, “बूढ़े जैसे लग तो नहीं रहे, परन्तु हो जरूर गए हो | ठीक है मैं तुम्हें ‘यंग ओल्ड मैन’ मान कर चलता हूँ |” चनरदा मुस्कराते हुए बोले, “कह लो यार जो कहना है फिर भी ‘ओल्ड यंग मैनों’ के बीच में ‘यंग ओल्ड मैन’ कहना मेरे लिए टानिक का काम करेगा |”


     ऐंठन, जलन और टैंशन से दूर, हास्य-व्यंग्य की मीठी सौंठ के धनी चनरदा से मैंने पूछा, “यंग ओल्ड मैन जी, अपने जवान दिखने का राज तो बता देते |” चनरदा बोले, “बड़ा सरल है ! अनुशासन की रस्सी में स्वयं को बांधे रखो | अपने को हमेशा जवान महसूस करो | ऐसा सोचो कि तुम अब भी जवान हो  | दिल से दिमाग तक समझो कि शरीर का कोना- कोना अभी जवान है | जवान दिखने की कोशिश करो | योग- कसरत, घूमना- फिरना जारी रखो, शरीर पर जंग मत लगने दो, प्रात: शैया त्याग जल्दी करो | चुस्त- दुरुस्त पोशाक, छोटा चश्मा, स्टाइल की मूंछें और छोटी हेयर कट रखो | दांत चमका कर रखो और यदि दन्त चल बसे हैं तो नए लगवाओ | खाना- दाना ठीक खाओ | शराब, धूम्रपान, गुटखे से दूर रहो फिर बुढापा क्यों और कैसे आएगा?”


      चनरदा जवान रहने का नुस्खा बताते गए, “पैंट के साथ बेल्ट, पालिश किया जूता और टाइट इलास्टिक वाला जुराब आपको चुस्ती देगा | मूंछों –बालों में हल्का कलर या मेहंदी से ताजगी दो | महंगाई मत देखो, पहले की हुई कंजूसी भूल जाओ, अब खुलकर अपने पर ध्यान दो | कुछ दिन पहले मैं  एक लड़के की शादी में गया | बरात जाने की तैयारी हो रही थी परन्तु दूल्हे का बाप नजर नहीं आया | पूछने पर पता चला की पार्लर गया है | मैंने सोचा, शादी बेटे की हो रही है या बाप की ? जब वह पार्लर से आया तो मैं उसे पहचान नहीं पाया | वाह ! इसको कहते हैं बुढापे में जवान दिखने का जोश | मैंने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा, “भई वाह, सबका नंबर काट दिया तुमने |” वह बोला, “होते होंगे दूल्हे के बाप बूढ़े, आपन तो अभी जवान हैं |” मेरी ओर आँख दबाते हुए वह फिर बोला, “वैसे तुम भी कम नहीं लग रहे हो |” उसकी हौसला अफजाई सुनकर मेरा चेहरा और तमतमा गया |”


      चनरदा आगे बोलते गए, “हाँ, तो मैं स्मार्ट दिखने की बात कर रहा था | झलरवे- फलरवे, घिसे-पिटे कपड़ों को अब चलता करो | अब और कितना रगड़ोगे इनको ? सोबर ड्रेस पहनो | लुरकिया- लंगड़िया, घतघती- मतमती बेढंगी चाल में लल्लू बन कर मत चलो | सीधी गर्दन, सीना ताने, स्मार्ट होकर दाई मुट्ठी में मोबाइल दबा कर चलो और मोबाइल को फुर्ती से ओपरेट करना सीखो | बहुत कुछ है इसके अन्दर | नहीं जानते हो तो बच्चों से पूछो | बच्चे नहीं बताते तो टॉलफ्री नंबर पर बैठी पिकबयनी से पूछो | वह अपनी सुमधुर आवाज में ऐसे बतायेगी कि फिर कभी नहीं भूलोगे | पत्नी से मत पूछना, खाना खराब होने का जोखिम हो सकता है | फिर मत कहना बताया नहीं | बहुत बड़ा राज बता दिया तुमको |” इतना कह कर चनरदा हँसते हुए अगली बार मिलने के लिए कह गए....


( बुढ़ापा ! चल हट, का शेष भाग कल क्रमशः)


पूरन चन्द्र कांडपाल

29.08.2021

 


Friday 27 August 2021

Mankhiyeki baat : मनखिएकि बात।

खरी -912 : मनखियेकि बात

मंखियैक जिंदगी 

लै कसि छ,

हव क बुलबुल

माट कि डेल जसि छ ।

जसिक्ये बुलबुल फटि जां

मटक डेल गइ जां,

उसक्ये सांस उड़ते ही

मनखि लै ढइ जां ।

मरते ही कौनी 

उना मुनइ करि बेर धरो,

जल्दि त्यथाण लिजौ

उठौ देर नि करो ।

त्यथाण में लोग कौनी

मुर्द कैं खचोरो,

जल्दि जगौल

क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।

चार घंट बाद

मुर्द राख बनि जां,

कुछ देर पैली लाख क छी

जइ बेर खाक बनि जां ।

मुर्दा क क्वैल बगै बेर

लोग घर ऐ जानीं,

घर आते ही जिंदगी की 

भागदौड़ में लै जानीं ।

मनखिये कि राख देखि 

मनखी मनखी नि बनन,

एकदिन सबूंल मरण छ

य बात याद नि धरन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

28.08.2021

Thursday 26 August 2021

Facebook whatsep ke naam : फेसबुक वॉट्सएप के नाम

खरी खरी-911 : फेसबुक- व्हाट्सेप के नाम

फेसबुक -वॉट्सएप रंगीन देखा,

इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |

कभी ‘वाह-वाह’ कभी ‘जय-जय’

व्यर्थ तारीफ़ शब्द लय -लय,

जिस न झुकाया सिर घर- मंदिर

वह देवी- देवता भेजते देखा |

कट-पेस्ट के लम्बे थान देखे

घूम- फिर कर वही ज्ञान देखे

छोटा ज्ञान पल्ले नहीं पड़ता

लम्बा ज्ञान बरसते देखा |

मस्ती देखी चैटिंग देखी

अन्धविश्वास के सैटिंग देखी

नाम बदल कर कई ग्रुप में

झूठा प्रोफाइल बहते देखा |

शराब गुटखा नशा धूम्रपान

मध्यम गति से लेते जान

हमने पार्क में बाल -बाला को

व्हाट्सेप नशे पर मरते देखा |

राजनीति को ढलते देखा

झूठनीति को फलते देखा

राजनीति कोई कहीं कर रहा

यहां कईयों को लड़ते देखा |

जिसको अपने मोबाइल में

जब भार्या ने हंसते देखा

क्रोध यों मडराया तिय पर

शब्द शोला बरसते देखा |

प्यार की आह भी भरते देखे

व्यंग्य बाण भी चलते देखे,

दूसरों की लेख -कविता पर

नाम अपना चस्पाते देखा |

 

चुटकुलों की बौछार भी देखी

बदलती बयार भी देखी,

पति-पत्नी एक दूजे के पूरक

पति को हरदम दबते देखा |

कभी किसी को जुड़ते देखा

कभी किसी को कुड़ते देखा

कभी तंज- भिड़ंत भी देखी

व्यर्थ बहस उकसाते देखा |

रात रात भर जगते देखा

घंटों वक्त गंवाते देखा

स्पोंडिलाइटिस कई लोगों को

मोबाइल से होते देखा |

चलते-चलते पढ़ते देखा

सैल्फी खीचते गिरते देखा

अश्लीलता का खुलकर तांडव

बदनाम मोबाइल होते देखा |

ऊंट –गधे के सुर में सुर

रखते जाते खुर में खुर

नहीं थी सूरत नहीं था सुर

झूठी प्रशंसा करते देखा |

कुछ शब्दों की धार भी देखी

शब्द पिरोती हार भी देखी

मान-मर्यादा के पथिकों को

राह गरिमा की चलते देखा |

कोरोना संक्रमण आते देखा

कई लोगों को मरते देखा,

ढीठ नहीं रखे कभी देह दूरी

बिना मास्क के घूमते देखा ।

क्या वे उस पथ चलते होंगे ?

जिस पथ चल- चल कहते होंगे !

ज्ञान बघारने वाले जन की

कथनी- करनी में अंतर देखा |

फेसबुक -वॉट्सएप रंगीन देखा

इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |

पूरन चन्द्र काण्डपाल

27.08.2021

Wednesday 25 August 2021

Ek Manav janit rog : मानव जनित रोग

खरी खरी - 910 :  एक मानव जनित रोग

     नया आवास बनाकर एक व्यक्ति ने घर में सुंदर टाइल लगाए । बाथ रूम के एक कोने पर एक टाइल कम पड़ गई । यह जगह दरवाजे के पीछे थी । अतः मिस्त्री ने जोड़-जंतर कर वहां पर टाइल लगा दी जो आसानी से दिखाई नहीं दे रही थी । जैसा कि इस व्यक्ति को इस टाइल का पता था, जो भी व्यक्ति इनके घर आता वह उस व्यक्ति से इस टाइल की चर्चा करते हुए कहता, "यार एक टाइल ने काम खराब कर दिया, बाकी तो सब काम बढ़िया हुआ । " देखने वाला व्यक्ति कहता, "अरे यार दरवाजे के पीछे है, दिखाई भी नहीं दे रही, तुम्हारे बताने पर मुझे पता चला । रहने दो क्यों टेंसन ले रहे हो ?" उसके समझाने पर भी मकान मालिक चेहरा लटकाए ही रहा जैसे वह कोई बड़ी समस्या को ढो रहा हो ।

     याद रखिए यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जो हमारा पूरा ध्यान एक छोटी सी नजरअंदाज करी जाने वाली इस तरह की कमी की ओर खींच कर हमें परेशान करती है । हम जन्मदिन उत्सव मनाते हैं । करीब 20 मित्र- परिजन इस छोटे से आयोजन में सम्मिलित होते हैं। सबको भोजन और आयोजन अच्छा लगता है ।  आये हुए 20 में से कोई एक व्यक्ति आयोजन या भोजन में कुछ न कुछ त्रुटि या नुक्ता निकाल देता है जबकि 19 इस आयोजन की प्रशंसा करते हैं । हम इन 19 की प्रशंसा को तो भूल जाते हैं और उस एक की अनावश्यक बात को "लोग-बाग कह रहे हैं" कह कर मन-मस्तिष्क में उतार कर हमेशा ढोते रहते हैं । 

     स्वयं की मोल ली हुई इस मनोवैज्ञानिक समस्या को 'मिसिंग टाइल सिंड्रोम' के नाम से जाना जाता है । मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हमें हमारी खुशी चुराने वाली ऐसी बातों को समस्या का रूप देकर दुखी नहीं होना चाहये । इस एक व्यक्ति द्वारा उत्पन्न की गई असहजता को तरजीह नहीं देते हुए हमें उन 19 लोगों को तरजीह देनी चाहिए जिन्होंने सत्य के साथ हमारा मनोबल बढ़ाने में अपना सहयोग दिया । वैसे भी किसी के आयोजन में अनावश्यक मीन -मेख निकालना एक लाइलाज बीमारी है जो कुछ लोगों में हम अक्सर देखते हैं । इस 'मिसिंग टाइल सिंड्रोम' नामक बीमारी से हम बचे रहें और समाज को जागृत करें, यही हमारा प्रयास होना चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल


26.08.2021

Tuesday 24 August 2021

Ek muhalle ka 15 August : एक मुहल्ले का 15 अगस्त

बिरखांत- 397 : एक मुहल्ले का 15 अगस्त 

       कुछ हम-विचार लोगों ने मोहल्ले में 15 अगस्त मनाने की सोची | तीन सौ परिवारों  में से मात्र छै लोग एकत्र हुए | (जज्बे का कीड़ा सबको नहीं काटता है ) | चनरदा (लेखक का चिरपरिचित जुझारू किरदार ) को अध्यक्ष बनाया गया | बाकी पद पाँचों में बट गए | संख्या कम देख एक बोला, “इस ठंडी बस्ती में गर्मी नहीं आ सकती | यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह रहो और मर जाओ |  यहां किसी को 15 अगस्त से क्या लेना-देना | दारू की मीटिंग होते तो मेला लग गया होता | चलो अपने घर, हो गया झंडा रोहण |” दूसरा बोला, “रुको यार | छै तो हैं, धूम-धड़ाके से नहीं मनेगा तो छोटा सा मना लेंगे और मुहल्ले के मैदान के बीच एक पाइप गाड़ कर फहरा देंगे तिरंगा |”  सबने अब पीछे न हटने का प्रण लिया और योजना तैयार कर ली | अहम सवाल धन का था सो चंदा इकठ्ठा करने मन को बसंती कर, इन मस्तों की टोली चल पड़ी |

           स्वयं की रसीदें काट कर अच्छी शुरुआत की | चंदा प्राप्ति के लिए संध्या के समय प्रथम दरवाजा खटखटाया और टोली के एक व्यक्ति ने 15 अगस्त की बात बताई, “सर कार्यक्रम में झंडा रोहण, बच्चों की प्रतियोगिता एवं जलपान भी है | अपनी श्रधा से चंदा दीजिए |” सामने वाला चुप परन्तु घर के अन्दर से आवाज आई, “कौन हैं ये ? खाने का नया तरीका ढूंढ लिया है | ठगेंगे फिर मौज-मस्ती करेंगे |” चनरदा बोले, “नहीं जी ठग नहीं रहे, स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद करेंगे, बच्चों में देशप्रेम का जज्बा भरेंगे, भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देंगे जी |” फिर अन्दर से आवाज आई, “ ये अचनाक इन लोगों को झंडे के फंडे की कैसे सूझी ? अब शहीदों के नाम पर लूट रहे हैं | ले दे आ, पिंड छुटा इन कंजरों से, अड़ गए हैं दरवाजे पर |” बीस रुपए का एक नोट अन्दर से आया, रसीद दी और “धन्यवाद जी, जरूर आना हमारे फंडे को देखने, भूलना मत | 15 अगस्त, 10 बजे, मुहल्ले के मैदान में” कहते हुए चनरदा टोली के साथ वहाँ से चल पड़े 

         खिसियाई टोली दूसरे मकान पर पहुँची और वही बात दोहराई | घर की महिला बोली, “वो घर नहीं हैं | लेन-दें वही करते हैं |” दरवाजा खटाक से बंद | टोली उल्टे पांव वापस | टोली के अंतिम आदमी ने पीछे मुड़ कर देखा | उस घर का आदमी पर्दे का कोना उठाकर खाली हाथ लौटी टोली को ध्यान से देख रहा था | टोली तीसरे दरवाजे पर पंहुची | बंदा चनरदा के पहचान का निकला और रसीद कटवा ली | चौथे दरवाजे पर अन्दर रोशनी थी पर दरवाजा नहीं खुला | टोली का एक व्यक्ति बोला, “यार हो सकता है सो गए हों या बहरे हों |” दूसरा बोला, “अभी सोने का टैम कहां हुआ है | एक बहरा हो सकता है, सभी बहरे नहीं हो सकते |” तीसरा बोला, “चलो वापस |” चौथा बोला, “यार जागरण के लिए नहीं मांग रहे थे हम | यह तो बेशर्मी की हद हो गई, वाह रे हमारे राष्ट्रीय पर्व |” पांचवे को निराशा में मजाक सूझी| बोला, “यह घोर अन्याय है | खिलाफत करो | इन्कलाब जिंदाबाद |” हंसी के फव्वारे के साथ टोली आगे बढ़ गई |

       इस तरह 10 दिन चंदा संग्रह कर तीन सौ परिवारों में से दो सौ ने ही रसीद कटवाई और कार्यक्रम- पत्र मुहल्ले में बांटा गया | 15 अगस्त की पावन बेला आ गई | मैदान में एक छोटा सा शामियाना दूर से नजर आ रहा था | धन का अभाव इस आयोजन में स्पष्ट नजर आ रहा था | लौह पाइप पर राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए बंध चुका था | देशभक्ति गीतों की गूंज ‘हम लाये हैं तूफ़ान से., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें., छोड़ो कल की बातें.. दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी | टोली के छै व्यक्ति थोड़ा निराश थे पर हताश नहीं थे | इस राष्ट्र-पर्व के प्रति लोगों की उदासीनता का रोना जो यह टोली रो रही थी उसकी सिसकियाँ देशभक्ति गीतों की गूंज में दब कर रह गई थी |

           टोली का एक व्यक्ति बोला, “इस बार जैसे-तैसे निभ जाए तो आगे से ये सिरदर्दी भूल कर भी मोल नहीं लेंगे |”  चनरदा ने उसे फटकारा, “ चुप ! ऐसा नहीं कहते, तिरंगा मुहल्ले में जरूर फहरेगा और हर कीमत पर फहरेगा |” निश्चित समय की देरी से ही कुछ लोग बच्चों सहित आए | अतिथि भी देर से ही आए और चंद शब्द मंच से बोल कर चले गए | प्रतियोगिताएं शुरू हुईं | सभी पुरस्कार चाहते थे इसलिए निर्णायकों पर धांधली, बेईमानी और भाईबंदी करने के आरोप भी लगे | कुर्सी दौड़ में महिलाओं ने रेफ्री की बिलकुल नहीं सुनी | सभी जाने-पहचाने थे इसलिए किसी से कुछ कहना नामुमकिन हो गया था | जलपान को भी लोगों ने अव्यवस्थित कर दिया | अध्यक्ष चनरदा ने सबको सहयोग के लिए आभार प्रकट किया |

        कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखने के बाद अचानक एक व्यक्ति मंच पर आया और उसने चनरदा के हाथ से माइक छीन लिया | यह वही व्यक्ति था जिसने चंदे में मात्र बीस रुपए दिए थे | वह बोला, “माफ़ करना बिन बुलाये मंच पर आ गया हूं | उस दिन मैंने आप लोगों को बहुत दुःख पहुंचाया | मैं आपके जज्बे को सलाम करता हूं | आप लोगों ने स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और देशप्रेम की बुझती हुई मशाल को हमारे दिलों में पुनर्जीवित किया है | मैं पूरे सहयोग के साथ आपके सामने खड़ा हूं | यह मशाल जलती रहनी चाहिए | हर हाल में निरंतर जलती रहनी चाहिए |”

        समारोह स्थल से सब जा चुके थे | हिसाब लगाया तो आयोजन का खर्च चंदे से पूरा नहीं हुआ | सात लोगों ने मिलकर इस कमी को पूरा किया | स्वतन्त्रता दिवस सफलता से मनाये जाने की खुशी इन्हें अवश्य थी परन्तु अंत: पीड़ा से पनपी एक गूंज भी इनके मन में उठ रही थी, ‘सामाजिक कार्य करो, समय दो, तन-मन-धन दो और बदले में बुराई लो, कडुवी बातें सुनो, निंदा-आलोचना भुगतो और ‘खाने-पीने’ वाले कहलाओ | शायद यही समाज सेवा का पुरस्कार रह गया है अब |’ तुरंत एक मधुर स्वर पुन: गूंजा, ‘यह नई बात नहीं है | ऐसा होता आया है और होता रहेगा | समाज के चिन्तक, वतन को प्यार करने वाले, देशभक्ति से सराबोर राष्ट्र-प्रेमियों की राह, व्यर्थ की आलोचना से मदमाये चंद लोग कब रोक पाए हैं ?” 

पूरन चन्द्र काण्डपाल

25.08.2021