Thursday 29 November 2018

Dilli aaye kisan : दिल्ली आए किसान

खरी खरी - 345 : दिल्ली आये किसान


     कल 29 नवम्बर 2018 से ही दिल्ली के रामलीला मैदान में देश के विभिन्न स्थानों से आए किसानों डेरा डाल दिया । बताया जा रहा है कि किसानों के 200 संगठन इस 'दिल्ली किसान मार्च' में भाग ले रहे हैं । किसान अपनी समस्याओं को लेकर सरकार और देशवासियों को बताना चाहते हैं कि उनके साथ न्याय नहीं हो रहा । उनकी मुख्य मांगों में फसल बीमा योजना में भ्रष्टाचार, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसी भी फसल का नहीं खरीदा जाना, आपदा राहत का सही मूल्यांकन नहीं होना, फसल पर लागत भी नहीं मिलना, नकदी कृषि की बम्पर उपज पर उचित मूल्य नहीं मिलना, किसानों से किये गए वायदे नही निभाना आदि हैं । 30 नवम्बर 2018 (आज) ये किसान रामलीला मैदान से संसद की ओर मार्च करने का इरादा रखते हैं । दिल्ली वालों को इस मार्च से जो कष्ट होगा उसके लिए भी किसानों ने पर्चे बांटकर माफी मांगी है ।

      कुछ महीने पहले तब बहुत दुःख हुआ जब बाजार से ₹ 10/- के डेड़ किलो टमाटर खरीदे । जब बाजार में इतने सस्ते थे तो शायद किसान को (₹1/-) एक किलो टमाटर का एक रुपया मिला होगा । कितनी मेहनत से उगाया जाता है टमाटर वह मैं जानता हूँ  क्योंकि एक जमाने में टमाटर उगाए हैं औऱ बेचे भी हैं । ऐसे हाल में किसान ने टमाटर सड़क पर फैंके और नेताओं ने उसका उपहास किया, उसका मूर्ख कहकर मजाक उड़ाया । जब यही हाल होना है यो फिर कोई किसानी क्यों करे ? वैसे किसान अपने मेहनत से उगाए गए उत्पाद सड़क पर फैंकने के बजाय गरीबों में बांट कर रोष प्रकट कर देते तो उचित होता ।

      फसल ऋण नहीं चुका पाने के कारण विगत वर्षों से ही देश में करीब तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं औऱ यह सिलसिला जारी है । बताया जा रहा है कि 2018 के प्रथम तीन महीनों में केवल महाराष्ट्र में ही करीब 700 किसानों ने आत्महत्या की है जिसका कुछ नेताओं द्वारा उपहास भी हुआ जो बहुत ही शर्मनाक है । पूरे देश में प्रतिदिन दस -बारह किसान प्रसिद्धि पाने के लिए नहीं, लाचारी से आत्महत्या कर रहे हैं । आत्महत्या करना अच्छी बात नहीं है । किसान तो आत्महत्या अंतिम विकल्प के बतौर करता है क्योंकि एक तरफ कर्ज की मार और दूसरी तरफ फसल का भाव नहीं मिलना और समय पर फसल की सरकारी खरीद नहीं होना या खरीद में टालमटोल करना। हताश होकर वह आत्महत्या जैसा क्रूर कदम उठा कर अपने परिजनों को रोता-बिलखता छोड़ जाता है । इस दर्द को हमारे वायदे से मुकरने वाले नीतिनियन्ता समझते क्यों नहीं ? सरकार को मीडिया में किसान समर्थन का ढोल बजाने के बजाय किसानों से किये गए वायदे निभाने चाहिए ताकि वे मौत को गले लगाने से बच सकें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.11.2018

Wednesday 28 November 2018

India gate ka shaheed : इंडिया गेट का शहीद

बिरखांत-240 : “मैं इंडिया गेट से शहीद बोल रहा हूं जी” 


   “भारत की राजधानी नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट से मैं ब्रिटिश भारतीय सेना का शहीद इंडिया गेट के प्रांगण का आखों देखा हाल सुना रहा हूं | १३० फुट (४२ मीटर) ऊँचा यह शहीद स्मारक १० वर्ष में १९३१ में बन कर तैयार हुआ | इस स्मारक पर मेरे नाम के साथ ही मेरे कई शहीद साथियों के नाम लिखे हैं जिन्होंने भारतीय सेना में १९१४-१८ के प्रथम महायुद्ध तथा तीसरे अफगान युद्ध में अपनी शहादत दी थी |

       जब मैं शहीद हुआ तब से कई युद्ध हो चुके हैं | देश की स्वतन्त्रता के बाद १९४७-४८ के कबाइली युद्ध, १९६२ का चीनी आक्रमण, १९६५, १९७१ तथा १९९९ का पाकिस्तान युद्ध, १९८६ का श्रीलंका सैन्य सहयोग, संयुक्त राष्ट्र शान्ति सेना बल और विगत ३० वर्षों से जम्मू-कश्मीर के छद्म युद्ध में मेरे कई  साथी शहादत की नामावली में अपना नाम लिखते चले गए | शहीदी का सिलसिला जारी है और रहेगा भी | प्रतिदिन मेरा कोई न कोई साथी कश्मीर में भारत माता पर अपने प्राण न्यौछावर करते जा रहा है | 

      स्वतंत्रता के बाद देश की राजधानी में कोई ऐसा स्मारक नहीं बना जहां इन सभी शहीदों के नाम अंकित किये जाते | भला हो उन लोगों का जिन्होंने १९७१ के युद्ध के बाद इंडिया गेट पर उल्टी राइफल के ऊपर हैलमट रखकर उसके पास २६ जनवरी १९७२ को ‘अमर जवान ज्योति’ स्थापित कर दी | इंडिया गेट परिसर में एक शहीद स्मारक बनाने का सुझाव मेरी व्यथा को लिखने वाले इस लेखक ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया गेट का शहीद’ (प्रकाशित २००५) में अवश्य दिया है | अब सुनने में आ रहा है कि इस ओर कदम उठाये जायेंगे |

       मेरे देश में शहीदों और शहीद परिवारों का कितना सम्मान होता है यह तो आप ही जानें परन्तु मैं इंडिया गेट पर लगे सबसे ऊँचे पत्थर से चौबीसों घंटे देखते रहता हूं कि यहां क्या-क्या होता है | राष्ट्रीय पर्वों पर हमें पुष्प चक्र चढ़ा कर सलामी दी जाती है और कुछ देश-प्रेमी जरूर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं | बाकी दिन इंडिया गेट एक पिकनिक स्पॉट बन कर रह गया है | यहां लोग सैर– सपाटे और तफरी के लिए आते हैं | यहां मदारी बन्दर नचाते हैं, स्वदेशी-विदेशी युगल प्रेमालाप करते हैं, बच्चों की अनदेखी कर फब्तियां कसते हैं, अश्लील हरकत करते हैं, किन्नर वसूली करते हैं, कारों में लगे डेक का शोर होता है, भोजन खाकर दोना-पत्तल-प्लास्टिक की थैलियां-खाली बोतल  जहां-तहां डालते हैं, खिलौने वाले और  फोटोग्राफर द्विअर्थी संवाद बोलते हैं | 

       हमें श्रधांजलि देना तो दूर हमारी ओर कोई देखता तक नहीं | हमारे प्रति दिखाई गयी यह उदासी तब जरा जरूर कम होती है जब कोई इक्का-दुक्का देशवासी मेरी उलटी राइफल,  हैलमट और प्रज्वलित ज्योति को देखने के लिए वहाँ पर पल भर के लिए रुकता है | मुझे किसी से कोई गिला- शिकवा नहीं है क्योंकि मैं अपने देश के लिए शहीदी देने स्वयं गया था, मुझे कोई खीच कर नहीं ले गया | कुछ कलमें मेरी गाथाओं को लिखने के लिए जरूर चल रहीं हैं, कुछ लोग यदा-कदा मेरे गीत भी गाते हैं, क्या ये कम है मेरी खुशी के लिए ? मैं तो इन पत्थरों में लेटे -लेटे गुनगुनाते रहता हूं –‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा’ |” अगली बिरखांत में ‘मुज्जफर नगर कांड का शहीद’ ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.11.2018

Tuesday 27 November 2018

Rok ke baataki : रोक के बातकि

खरी खरी - 344 : रोक के बातकि ?

पंचैती राज में
50 % सैणिय,
उं लै बलाल
टोक के बात कि ?

भल काम करण छा
उठो अघिल औ,
डरण कि जरवत न्है
छोप के बात कि ?

पढ़ो लिखो शिक्षित बनो,
हिम्मत करो खुट उठौ
मुनइ सिदि हौसल बढ़ौ
घुना में टोप के बात कि ?

घर क मंदिर में
पुज करनी सैणिय,
भ्यारक मंदिरों में
रोक के बात कि ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.11.2018

Monday 26 November 2018

Jara yaad kralo 2008: जरा याद उन्हें भी कर लो

मीठी मीठी - 192 : जरा याद इन्हें भी करलो

       26 नवम्बर 2008 को मुम्बई आतंकी हमले में 166 निर्दोष लोग मारे गए । इसके अलावा 9 आतंकवादी भी मारे गए और एक (कसाब)जिंदा पकड़ा गया जिसने आतंक का पूरा भेद खोला । इन आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान 9 पुलिस कर्मी भी मारे गए जिनमें से निम्न कविता में वर्णित शहीदों को मरणोपरांत शांति काल में दिया जाने वाला वीरता का सबसे बड़ा सम्मान 'अशोकचक्र' 26 जनवरी 2009 को राजपथ पर राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया । कर्तव्यपथ पर अपने प्राण न्योछावर करनेर वाले इन सभी बहादुरों के जज्बे को हम सलूट करते हुए इन वीरों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.11.2018

Sunday 25 November 2018

Farmula kee thok-futkar market : फार्मूलों की थोक-फुटकर मार्किट

खरी खरी - 343 : फार्मूलों के थोक-फुटकर मार्केट

फार्मूला ले लो फार्मूला
समाधान निकलने का फार्मूला
समाधान न निकलने का फार्मूला
दुकान बंद का फार्मूला
दुकान खुली  का फार्मूला
पेंच -अड़ंगे का फार्मूला
लड़ने-भिड़ने का फार्मूला
आरोप-प्रत्यारोप का फार्मूला
गाली -गलौज का फार्मूला
बिगड़े बोल का फार्मूला
जहर घोल का फार्मूला
वोट बैंक का फार्मूला
सभा -परिषद का फार्मूला
अखाड़ा -बोर्ड का फार्मूला
एक से बढ़ कर एक फार्मूला।

इन सब में दब गया
'हे राम' का फार्मूला
सामाजिक सौहार्द का फार्मूला
जीओ और जीने दो का फार्मूला
प्रेम-प्यार भाईचारे का फार्मूला
रोटी-रोजगार का फार्मूला
वायदे - विकास का फार्मूला
रामराज्य का फार्मूला
शबरी - निषाद का फार्मूला
मिटे फसाद का फार्मूला
फार्मूलों के इस बाजार में
खो गया 'मेरे राम'
तेरे 'धाम' का फार्मूला ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.11.2018

Saturday 24 November 2018

Abara kutte : अबारा कुत्ते रोके कौन ?

खरी खरी - 342 : आबारा कुत्ते- रोके कौन ?

        देश के हर शहर में आबारा कुत्तों से लोग दुःखी हैं जिनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है । एक समाचार के अनुसार देश में लगभग साड़े चार करोड़ से अधिक आबारा कुत्ते हैं और प्रतिवर्ष बीस हजार लोग कुत्तों के काटने से रेबीज रोग के शिकार होते हैं जबकि कुत्तों के काटने के लगभग दो करोड़ केस होते हैं । यह भयावह स्तिथि महानगरों में अधिक है ।

      स्थानीय निकाय आबारा कुत्तों की संख्या को रोकने में असहाय लगते हैं । श्वान बंध्याकरण निराशाजनक है तभी यह संख्या बढ़ रही है । अबारा कुत्तों को जहां-तहां पोषित किये जाने से भी इनकी संख्या बढ़ रही है । जिस व्यक्ति को कुत्ते ने काटा है वही जानता है कि उसे कितनी पीड़ा होती है और किस तरह उपचार कराना पड़ता है । समाज चाहे तो आबारा श्वान नियंत्रण में सहयोग कर सकता है । आबारा कुत्तों को भोजन देने से बेहतर है कुत्तों को घर में पाला जाए । इस विषय में किसी प्रकार के अंधविश्वास के भंवर में न पड़ा जाय । यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है । अबारा कुत्ते तो गंदगी करते हैं, पालतू कुत्तों को भी श्वान मालिक बीच सड़क या किसी के भी घर के आगे बेझिझक शौच कराते हैं और मना करने पर 'तुझे देख लूंगा' की धमकी देते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.11.2018

Friday 23 November 2018

Naheen rahe himanshu joshi : नहीं रहे हिमांशु जोशी

नहीं रहे हिमांशु जोशी

       सुप्रसिद्ध साहित्यकार हिमांशु जोशी जी का जन्म 4 मई 1935 को उत्तराखंड के ग्राम जोस्युड़ा जिला चंपावत (उत्तराखंड ) में हुआ और 83 वर्ष की जीवन यात्रा के बाद 23 नवम्बर 2018 को उनका देहावसान हो गया । उनका निधन हिंदी साहित्य की एक अपूर्णीय क्षति है ।

     हिमांशु जोशी ने उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, रूपक, लेख, यात्रा विवरण, संस्मरण, जीवनी, साक्षात्कार, रेडियो नाटक, संपादित कथा संग्रह एवं बाल साहित्य के अतिरिक्त पत्रकारिता में भी सफलतापूर्वक अपनी लेखनी चलाई और साहित्य जगत में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनकी भाषा एक आम आदमी की भाषा थी जिसे जनमानस बड़ी सहजता से समझ लेता था ।

       अपने जीवन जीवनकाल में हिमांशु जोशी ने 7 उत्कृष्ट उपन्यासों का सृजन किया जिनमें- अरण्य, महासागर, छाया मत छूना मन, कगार की आग, समय साक्षी है, तुम्हारे लिए और सु-राज प्रमुख है हिमांशु जोशी के 18 कहानी संग्रह भी प्रकाशित  हैं । 7 लघु कथाओं का सृजन भी उन्होंने किया । 3 काव्य संग्रहों का सृजन हिमांशु जोशी जी द्वारा किया गया जिनमें से अग्नि संभव और नील नदी का वृक्ष प्रकाशित संग्रह हैं और 'एक आंखर की कविता' अप्रकाशित है।

      जोशी जी के सुप्रसिद्ध उपन्यास 'कगार की आग' के पुस्तक रूप मेंं 17 संस्कण छपे । इस उपन्यास का लखनऊ, दिल्ली, नैनीताल और देहरादून में नाट्य मंचन भी हुआ तथा इसका कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ । आकाशवाणी से भी यह उपन्यास प्रसारित किया गया । हिमांशु जी पर कई विद्यार्थियों ने शोध भी किया ।

       लगभग 29 वर्ष तक 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' से भी वे जुड़े रहे । जीवनपर्यंत अविरल लिखते हुए जोशी जी के साहित्य का सम्मान भी हुआ । उन्हें हिंदी अकादमी दिल्ली सहित कएक संस्थाओं ने सम्मानित भी किया । गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित जोशी जी अनेक संस्थाओं के सलाहकार भी रहे । उन्होंने साहित्य की ही कश्ती में कई देशों की यात्रा भी की ।

      आज हिमांशु जोशी जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका अमूल्य साहित्य हमारे बीच है । यह साहित्य अमर है, लोगों के मन- मस्तिष्क में आच्छादित है । हिमांशु जोशी जैसे लेखक कभी भी नही मरते । इन पंक्तियों के लेखक का उनसे कई बार कई विचारगोष्ठियों मिलन भी हुआ जो अब भी चक्षु-सम्मुख है । पुस्तक 'उत्तराखंड एक दर्पण' देख वे बोले 'लिखते रहो' । आज भलेही उनकी चिता की आग बुझ गई परन्तु 'कगार की आग' कभी नहीं बुझेगी । हिमांशु जी को विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.11.2018

Gurpoorab : गुरपूरब नानक जयंती

मीठी मीठी -190 : आज 23 नवम्बर गुरुपूरब

         आज 23 नवम्बर, सिक्खों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी की जयंती अर्थात गुरपूरब है । इस पुनीत अवसर की सभी को शुभकामना । "लगुल" पुस्तक का लघु लेख "गुरुनानक देव'' यहां उधृत है ।

होली दीवाली दशहरा,
पितृ पक्ष नवरात्री,
ईद क्रिसमस बिहू पोंगल
गुरुपुरब लोहड़ी,
वृक्ष रोपित एक कर
पर्यावरण को तू सजा,
हरित भूमि बनी  रहे
जल जंगल जमीन बचा ।

     आज गुरुनानक देव के 550वें प्रकाश पर्व को मनाने के साथ कम से कम एक पेड़ जरूर रोपें और उसका संरक्षण करें । धरती मां का श्रृंगार करें । धरती बचेगी तो सभी त्योहार होंगे, होली भी, लोहड़ी भी होगी और गुरपूरब भी ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.11.2018

Khoob gaali do yaro : खूब गाली दो यारो

बिरखांत -239 : खूब गाली दो यारो !!

    कुछ मित्रों को बुरा लगेगा और लगना भी चाहिए | अगर बुरा लगा तो शायद अंतःकरण से महसूस भी करेंगे | सोशल मीडिया में अशिष्टता, गाली और भौंडापन को हमने ‘अशोभनीय’ बताया तो कई मित्र अनेकों उदाहरण के साथ इस अपसंस्कृति के समर्थक बन गए | तर्क दिया गया कि रंगमंच में, होली में तथा कई अन्य जगह पर ये सब चलता है | चलता है तो चलाओ भाई | हम किसी को कैसे रोक सकते हैं | केवल अपनी बात ही तो कह सकते हैं |

       दुनिया तो रंगमंच के कलाकारों, लेखकों, गीतकारों और गायकों को शिष्ट समझती है | उनसे सदैव ही संदेशात्मक शिष्ट कला की ही उम्मीद करती है, समाज सुधार की उम्मीद करती है | मेरे विचार से जो लोग इस तरह अशिष्टता का अपनी वाकपटुता या अनुचित तथ्यों से समर्थन करते हैं वे शायद शराब या किसी नशे में डूबी हुई हालात वालों की बात करते हैं अन्यथा गाली तो गाली है |

     सड़क पर एक शराबी या सिरफिरा यदि गालियां देते हुए चला जाता है तो उसे स्त्री-पुरुष- बच्चे सभी सुनते हैं | वहाँ उससे कौन क्या कहेगा ? फिर भी रोकने वाले उसे रोकने का प्रयास करते हैं परन्तु मंच या सोशल मीडिया में तो यह सर्वथा अनुचित, अश्लील और अशिष्ट ही कहा जाएगा | क्या हमारे कलाकार या वक्ता किसी मंच से दर्शकों के सामने या घर में मां- बहन की गाली देते हैं ? यदि नहीं तो सोशल मीडिया पर भी यह नहीं होना चाहिए ।

     हास्य के नाम पर चुटकुलों में अक्सर अत्यधिक आपतिजनक या द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग भी खूब हो रहा है, यह भी अशिष्ट है | अब जिस मित्र को भी हमारा तर्क ठीक नहीं लगता तो उनसे हम क्षमा ही मांगेंगे और कहेंगे कि आपको जो अच्छा लगे वही बोलो परन्तु अपने तर्क के बारे में अपने शुभेच्छुओं और परिजनों से भी पूछ लें | यदि सभी ने आपकी गाली या अशिष्टता का समर्थन किया है तो हमें जम कर, पानी पी पी कर गाली दें | हम आपकी गाली जरूर सुनेंगे क्योंकि जो अनुचित है उसे अनुचित कहने का गुनाह तो हमने किया ही है |

     आजकल अनुचित का खुलकर विरोध नहीं किया जाता | सब मसमसाते हुए निकल लेते हैं | हम गाली का जबाब भी गाली से देने में विश्वास नहीं करते | कहा है “गारी देई एक है, पलटी भई अनेक; जो पलटू पलटे नहीं, रही एक की एक |” साथ ही हम मसमसाने में भी विश्वास नहीं करते, “मसमसै बेर क्ये नि हुन बेझिझक गिच खोलणी चैनी, अटकि रौ बाट में जो दव हिम्मत ल उकें फोड़णी चैनी |” (मसमसाने से कुछ नहीं होता, निडर होकर मुंह खोलने वाले चाहिए, रास्ते में जो चट्टान अटकी है उसे हिम्मत से फोड़ने वाले चाहिए) | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.11.2018

Yamuna ka santap : यमुना का संताप

खरी खरी - 341 : यमुना का संताप

स्वच्छ हुई नहीं
गंदगी बढ़ती गई,
पर्त कूड़े की तट
मेरे चढ़ती गई,
बढ़ा प्रदूषण रंग
काला पड़ गया,
जल सड़ा तट-तल
भी मेरा सड़ गया ।

व्यथित यमुना रोवे
अपने हाल पर,
पुकारे जन को
मेरा श्रृंगार कर,
टेम्स हुई स्वच्छ
हटा कूड़ा धंसा,
काश ! कोई तरसे
देख मेरी दशा ।

आह ! टेम्स जैसा
मेरा भाग्य कहां ?
उठी स्वच्छता की
गूंज संसद में वहां,
क्या कभी मेरे लिए
भी यहां खिलेगी धूप ?
कब मिलेगा मुझे
मेरा उजला स्वरूप ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.11.2018

Monday 19 November 2018

Maran baad yaad : मरण बाद याद

खरी ख़री - 340 : मरण बाद याद

मैंसा क मरण बाद
काबिलियत याद ऐं,
वीक ज्यौंन छन
दुनिय चुप रैं ,
गौरदा गिरदा शेरदा क
बार में लै यसै हौ,
उनार जाण बाद
लोगों कैं यौ महसूस हौ ।

क्ये बात नि हइ
क्वे त उनुकैं याद करें रईं,
उनरि याद में कभतै त
गिच खोलें रईं,
अणगणत हुनरदार
चुपचाप यसिक्ये गईं,
शैद दुनिय कि रीत यसी छ
जान जानै यौ बात कै गईं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.11.2018

Sunday 18 November 2018

Indira Gandhi : इंदिरा गांधी

मीठी मीठी - 189 : आज इंदिरा गांधी क जन्मदिन

     देश कि तिसरि और पैल महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी क आज 19 नवम्बर हुणि जन्मदिन छ । देश कैं प्रत्येक क्षेत्र में समृद्धशाली बनूण और देश कैं एकजुट धरण में उनौर नाम सर्वोपरि छ । 1971 क भारत -पाक युद्ध 93000 पाक सेना ल उनरै नेतृत्व में घुन टेकीं और दुनिय क नक्स में बांग्लादेश बनौ । "लगुल" किताब में लै उनरि चर्चा छ । पुस्तक 'महामनखी' बटि उनार बार में मुणि एक नान लेख उधृत छ ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.11.2018

Sikkhon se seekh : सिक्खों से सीख

मीठी मीठी -188 : सिक्खों से सीख

         मैं एक भारतीय हूँ और सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ परन्तु सिक्ख धर्म जिसकी स्थापना गुरु नानक देव जी (1468 - 1539 ) ने ई.1499  में की, हमें बहुत कुछ सिखाता है क्योंकि इसकी निम्न विशेषता है -

1. पूजा मूर्ति की नहीं बल्कि पवित्र पुस्तक 'गुरु ग्रंथ साहब' की होती है ।

2. किसी तरह का आडम्बर -पाखंड नहीं है । शादी -विवाह अक्सर किसी भी रविवार को होती है ।

3. पाठी (पुजारी) किसी भी जाति का हो सकता है।

4. लंगर व्यवस्था निरंतर है ।

5. कही भी आपदा होने पर सबसे पहले सिक्खों को सबसे पहले पहुंचते देखा गया हैं ।

6. राशि -कुंडली- अंधविश्वास कुछ भी नहीं ।

7. किसी गुरुद्वारे में मन्नत नहीं मांगी        जाती । स्वच्छता का विशेष ध्यान होता है ।

8. सभी अन्य धर्मों का सम्मान सिखाया       जाता है ।

9. प्रत्येक अमीर गरीब साथ बैठकर लंगर छकते हैं ।

10. कोई किसी भी गुरुद्वारे में निःशुल्क रैन-बसेरा कर सकता है ।

(पुनः संपादित -साभार सोसल मीडिया मित्र धीरज कुमार ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.11.2018

Gaje ghale : विक्टोरिया क्रॉस गजे घले

मीठी मीठी - 187 :  विक्टोरिया क्रॉस कप्तान गजे घले पुरस्कार

     विक्टोरिया क्रॉस विजेता कप्तान गजे घले कि याद में य पुरस्कार मिकैं म्येरि किताब "महामनखी" क लिजी राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन अल्मोड़ा में 12 नवम्बर 2018 हुणि प्रदान करिगो । य किताब में 21 परमवीरचक्र और 66 अशोकचक्र विजेताओं कि तीन भाषाओं (कुमाउनी, हिंदी और अंग्रेजी) में चर्चा छ । य पुरस्कारक प्रायोजक केसर घले ज्यू कैं य किताब अल्माड़ में भैंट करिगे और उनरै सानिध्य में पुरस्कार सम्मानीकरण लै हौछ ।

       को छी कप्तान गजे घले ?  गजे घले नेपाली मूलक एक ब्रिटिश इंडियन आर्मीक सैनिक छी । उनर जन्म 01.8.1918 हुणि हौछ और 16 साल कि उमर में 1934 में ऊं 2/5 रॉयल गोरखा राइफल में भर्ती हईं । 1943 में दुसर विश्व युद्ध क दौरान उनरि पलटन बर्मा में छी । इनरि प्लाटूनल जापानी सेना दगे जमि बेर युद्ध करौ और घमासान युद्ध करते हुए जापानी सेना कैं अघिल बढ़ण है रोकौ । लड़ाइक दौरान इनार छाति और बदन में कतू जाग पर गोइ लागी । फिर लै गजे घलेल मोर्चा नि छोड़ । इनरि बहादुरील ब्रिटिश इंडियन आर्मिक मनोबल बढ़ौ और जापानी सेना पस्त हैछ । इनरि बहादुरी देखि इनुकैं 1943 में बहादुरीक सर्वोच्च सम्मान 'विक्टोरिया क्रॉस' (वर्तमान में परमवीरचक्र) प्रदान करिगो ।

     विक्टोरिया क्रॉस विजेता गजे घले कैं सेवानिवृत हुण है पैली हौनरेरी कैप्टन पद दिइगो । 28 मॉर्च 2000 में 82 वर्षकि उमर में उनर देहांत हौछ । उनर च्यल केसर घलेल उनरि स्मृति में एक पुरस्कार दीणक लिजी कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी अल्मोड़ा कैं एक लाख रुपै दान दी रईं । उ रकम पर जो ब्याज मिलूं उ सैन्य सेवाओं पर लेखी किताब कैं दिई जांछ । 2018 में य पैल सम्मान 'विक्टोरिया क्रॉस कैप्टन गजे घले स्मृति पुरस्कार' म्येरि किताब "महामनखी'' कैं प्रदान करिगो । कलिंगपोंग निवासी केसर घले ज्यूकि सोच कैं विनम्र नमन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.11.2018

Thursday 15 November 2018

Musalmanon ke bare mein : मुसलमानों के बारे में

खरी खरी - 339 : क्या लिखूं मुसलमानों के बारे में ?

     कुछ मित्र ताने मारते हुए मुझ से कहते हैं, 'कभी मुसलमानों के बारे में भी लिखो, क्यों हमेशा हिन्दुओं के पीछे पड़े रहते हो ?' मित्रो, ऐसा नहीं है । मैं हिन्दू से पहले हिंदुस्तानी या भारतीय हूं और मानवीय सरोकारों से वशीभूत होकर कुछ शब्द लिख देता हूं । चार दशक से कलमघसीटी हो रही है । जन- सरोकारों पर लिखते आ रहा हूं । हर विसंगति और विषमता तथा अंधविश्वास के विरोध में लिखता- बोलता हूं ।

     कबीर के दोनों दोहे याद हैं । पहला- 'पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार; ता पर ये चाकी भली, पीस खाये संसार ।' दूसरा - 'कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लेई बनाय; ता पर मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।' मोको कहां ढूंढे रे बंदे भी याद है । 'ना तीरथ में ना मूरत में, ना काबा कैलाश में; ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना एकांत निवास में ।' बच्चन साहब की मधुशाला भी कहती है, "मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका हाला; एक है उनका मदिरालय एक ही है उनका प्याला; दोनों रहते एक न जब तक मंदिर -मस्जिद हैं जाते, बैर कराते मंदिर-मस्जिद मेल कराती मधुशाला ।"

     दोनों संप्रदायों को देश और समाज के हित में एक-दूसरे का सम्मान करते हुए मध्यमार्ग से संयम के साथ चलना चाहिए । सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन सबने मिलकर लड़ा और हिंदुस्तान का अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर कहता था, "हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।" जब फिरंगियों को लगा कि हिंदुस्तान आजाद करना ही पड़ेगा तो उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को भंग करने के कई षडयंत्र रचे और जाते -जाते अपने षड्यंत्र में सफल भी हो गए ।

     देश को स्वतंत्र हुए 71 वर्ष हो गए हैं और देश के दो मुख्य सम्प्रदायों की आपसी नफरत को बढ़ाने का षड्यंत्र आज भी जारी है । यदि यह नफरत प्यार में बदल जाएगी तो अमन-चैन के कई दुश्मनों की दुकानें बंद हो जाएंगी । फिर वे सियासत किस पर करेंगे ? ये लोग नफरत की आग जलाकर अपनी रोटी सेकते आये हैं और सेकते रहेंगे ।

     स्पष्ट करना चाहूंगा कि ईश्वर कभी भी पशु -बलि नहीं लेता और न अल्लाह ईद में पशु -कुर्बानी लेता है । धर्म और आस्था के नाम पर किसी पशु की कुर्बानी या बलि एक अमानुषिक कृत्य है ।  सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए नफरत का पुलाव पका कर नहीं बांटा जाय । जाति-धर्म- सम्प्रदाय की लड़ाई में हमें झोंक कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से सावधान रहना ही वक्त की मांग है ताकि हम कम से कम अगली पीढ़ी को तो इस संक्रामक रोग से बचा सकें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.11.2018