Sunday 30 June 2019

pappu karki : पप्पू कार्की

मीठी मीठी - 299 : एक निभुलणी आवाज: पप्पू कार्की (जयंती 30 जून ) विनम्र श्रद्धांजलि ।

     पप्पू कार्की (पवेंद्र सिंह कार्की) कुमाउनी भाषाक एक होनहार गिदार, गीतकार और संगीतकार जतुक जल्दि सुर्खियों में आईं, लोगोंक दिलों में घुसीं, प्रसिद्ध हईं उतुक्वे जल्दि याँ बै न्है लै गईं । कैल यसि कल्पना लै नि करि हुनलि पप्पू कार्कीक बार में । आजि मात्र 34 वर्षकि छि उनरि उमर । 30 जून 1984 हुणि ऊं य दुनिय में आईं और 9 जून 2018 हुणि याँ बै हिटि दे । उनूल आखिरी गीत- संगीत कार्यक्रम हेड़ाखानक नजीक करौ । ऊं उत्तराखंड में पिथौरागढ़ ज़िल्लक सेलावन गौंक एक अद्भुत किस्मक गिदार छी । विनम्र श्रद्धांजलि ।

     9 जून 2018 हुणि जब पप्पू कार्कीकि कार दुर्घटना में मौत हुणकि खबर लोगोंक पास पुजी तो कैकं यकीन नि आय । जब सोसल मीडिया में दुर्घटनाक तस्वीर देखण में आईं तब यकीन आछ । पप्पू कार्कीक दगाड़ में द्वि अन्य लौंड लै य दुर्घटना में मारी गईं । पप्पू कार्की एक सरल, सहज और सिद्साद स्वभावक मैंस छी । दुनिय उनरि आवाज क दगाड़ उनरि विनम्रताक लै कायल छी । उनर हर बखतक हँसणी मुखड़ क्वे भुलि नि सकन । 

     बचपन बटि कुमाउनी गीतों क तरफ उनर झुकाव छी । उनार गीतों में निखालिश कुमाउनी क आभाष हुंछ । उं कुमाउनी लोकगीतों दगाड़ कुमाउनी गीतकारोंक ध्वज वाहक लै बनि गाछी । उनूल गरीबीक कारण नानछिना बटि भौत दुख लै उठा । पेट्रोल पम्प, प्रेस समेत उनूल चपरासीकि नौकरी लै करी पर गीत गुनगुनाण उनूल नि छोड़ । उनार ल्वे में गीत-गंगा बगनै रैंछी । रामलिल समेत कएक मंचों में उनूल शुरुआत में आपण गीत लोगों कैं सुणाईं ।

     2017 में उनूल हल्द्वाणि में एक स्टूडियो कि स्थापना करी जां उं गीत- संगीतक नई -नईं प्रयोग करछी और कुमाउनी गायकों कि नई पौध तयार करणक स्वैण देखछी । उनूल पहाड़कि प्योलि- बुरांस, गाड़- गध्यार, डान -धार, बांज-काफोव, संस्कार-संस्कृति समेत पुर पहाड़ कैं आपण गीतों में जागि दीणक भौत भल प्रयास करौ । उनार गीतों में पहाड़ कि सैणीकि पीड़ साफ झलकछी । अंग्रेज कवयित्री इमिली डिकेंसनक अनुसार जब तली पीड़ निहुनि तब तली मन में पीड़क भाव पैद निहुन । य ई बात उनार बार में लै देखण में ऐंछ । उनूल न्यौलि, झवाड़, बैर, चांचरी शास्त्रीय गायन आदि गीत- संगीतक सबै विधाओं कैं आपण शब्द और स्वर दे । उनरि आवाज में एक अजीब किस्मकि अद्भुत कसक छी जो लोगोंक दिल तली पुजिछी । 'म्येरि हिरू' झवाड़ कैं उनूल एक मधुर संगीत और आवाज दीबेर भौत लोकप्रिय बना । उतरैणी कौतिक, सुणिलै दगड़िया, रंगिल जोहरा, मधुली जास कएक गीतोंल उनरि आवाज अमर करि दी ।

     एक भौत छोटि उमर में हमार बीच एक भौत ठुलि अनवार छोड़ि बेर य जनमानस क मुसाफिर कभैं अदप-अलोप नि है सकन । पप्पू कार्कीकि आवाज हमार बीच रामगंगक पाणीक कल-कल छल -छल और बांज - बुरुंसक सुसाट-भुभाटकि चार हमेशा ज्यौन रौलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

30.06.2019

Saturday 29 June 2019

khoob nacho DJ mein : खूब नाची डीजे में

खरी खरी - 453 : खूब नाचो DJ में

        चिकनी चमेली, आंख मारे, फेविकोल से चिपका, चुम्मा चुम्मा ...यह सब उत्तराखंड के विवाह आयोजनों पहले से ही DJ में खूब बज रहा है । इन गानों में भाई - बहन, ईजा - बाबू , दीदी - भिना, देवर - भाबी सब एक साथ मुंह खोल कर मटक रहे हैं । मजाल कोई रोके ? हां कुछ लोग मसमसा जरूर रहे थे परन्तु वे मेरे साथ इन अश्लील गानों को बंद कराने नहीं थे । अभिमन्यु अकेले कब तक लड़ता...? कुमाउनी - गढ़वाली गीतों की कमी नहीं है । अपनी भाषा और संस्कृति को लुप्त होने से बचाएं । DJ में अपनी भाषा के गीत बजाएं ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.06.2019

Friday 28 June 2019

Bhagwan par parkhee : भगवान् पर पारखी

खरी खरी - 452 : 'भगवान की व्यथा' पर मेरे कुछ और पारखी  मित्रों की नजर

   खरी खरी 448 ( 25 .06.2019 ) पर मेरे  कई पारखी मित्रों की टिप्पणियां फेसबुक और व्हाट्सप पर आई । सभी का हार्दिक आभार । जिन पारखी मित्रों की टिप्पणियां  मैं  आज यहां  शब्दशः उद्धृत कर रहा हूं वे है सर्वश्री नंदन मेहता जी, रमेश चंद्र बहुगुणा जी और डॉ हेमा उनियाल जी ।  कल श्री के एस उजराडी जी और श्री बी सी तिवारी जी की टिप्पणियां यहां पोस्ट की थी।

"राम सिन्धु घन सजन धीरा
चन्दन तरू हरि सन्त समीरा।

     चित्र या मूर्ति पूजा एक पर्तीक के स्वरूप मे है उस सर्ब शक्ति के पर्ति  एक श्रधावान मनुष्य की कृतग्यता पर्कट करने  का ना फसीम भक्तिभाव है स्वामी विवेकन्द जी ने कहा है मूर्ति पूजा का महत्व केवल ईश्र्वर पर ध्यान केन्दरित करने तक ही है यह पर्थम स्थर की भक्ति है इसके उपरान्त जब ध्यान गहरा होते जाता है तब किसी पर्तीक की आवश्यकता नही रहती। आधुनिक जीवन शैली मे मार्केट वाजार ने अपना विशेष पर्भाव डाला है इसमें भक्त और भक्ति का अछूता रहना अशम्भव है। भगवान हर युग मे गणौ का गुणों मे पर्तिविम्ब  का एहसहास मात्र है और निराकार शब्दातीत भगवान के पृकटीकरण के लिए सादर नमन।" ( आ.मेहता जी )

     "जी, देवी-देवताओं की जैसी और जितनी दुर्गति हमारे देश में होती है दुनिया में और कहीं नहीं। देवी-देवताओं के प्रति तक  हम न संवेदनशील हैं और न अनुशासित। धार्मिक गुरुओं, कथावाचकों और प्रवचन देने वालों की इस देश में कमी नहीं जिनके प्रयास इस दिशा में होने चाहिए पर भगवान् की जिस वेदना को आपने व्यक्त किया है उसका इन्हें सपने में भी भान नहीं !! बहुत दुखद।"। ( आ. बहुगुणा जी)

      "ईश्वर की बात ईश्वर को भी माध्यम बनाकर बहुत सच्चाई से आपने कही है।ईश्वर हर कण- कण में है, स्वयं आत्मा में है उसे  आडंबरों से दूर रखना ही फायदेमंद।चित्रों से अच्छा तो धातु निर्मित मूर्तियां ही हैं  जो आजीवन चलेंगी और इस प्रकार  गलत प्रयोग भी नहीं होगा।" ( आ. डॉ हेमा उनियाल जी)

     अन्य  पारखियों और  पसंदकारों  के उदगार भी सिरोधार्य हैं  जिन्हें सभी मित्र फेसबुक पर देख सकते हैं । सभी का स्नेह बरसते रहे ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.06.2019

Thursday 27 June 2019

Bhasha sikhalaaee pasthyakram : भाषा सिखलाई पाठ्यक्रम

खरी खरी -  451: भाषा सिखलाई पाठ्यक्रम

    अपनी  मातृभाषा सीखना बहुत अच्छी बात है । इस दौर में हमारी भाषा की बात तो हो रही है परन्तु कौन सुनता है ? हम सब अपनी -अपनी ढपली और अपना - अपना राग बजा रहे हैं । आजकल भाषा पढ़ाने की बात राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में कई लोग कर रहे हैं । यह कार्यक्रम वर्ष 2016 में पहली बार DPMI के सौजन्य से आरम्भ हुआ था जिसका यह चौथा वर्ष है ।  कुछ कक्षाओं के आयोजन के समाचार भी मिल रहे हैं और सोसल मीडिया में वीडियो क्लिप भी पोस्ट हो रहे हैं ।

     वर्ष 2016 में  कई लोगों ने पाठ्यक्रम की बात उठाई । क्या पढ़ाएं ?  कैसे पढाएं ?  तब हमने ( उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली की टीम )  पाठ्यक्रम हाथ से बना कर उपलब्ध भी कराए और तीन वर्ष तक लगातार हस्त लिखित पाठ्यक्रम बांटे गए । हमें एक पाठ्यक्रम की बहुत आवश्यकता थी । इसके लिए एक वर्ष में मैंने पाठ्यक्रम तैयार किया और उसे  2019 में पुस्तक का रूप दिया । कई शिक्षकों को यह पुस्तक मैंने कंप्लिमेंट में भेंट भी करी जिसकी खूब सराहना भी हुई । डॉ विनोद बछेती जी (निदेशक DPMI) को भी यह पुस्तक भेंट की गई । कुछ लोगों ने इस पुस्तक को खरीदा भी जिनकी संख्या बहुत कम है ।

      इस वर्ष कुछ लोग कह रहे हैं वे अपनी भाषाओं की क्लास ले रहे हैं । बिना पाठ्यक्रम के क्या पढ़ा रहे हैं ? जो मन करे सो तो पढ़ाना ठीक नहीं है । पुस्तक तो किसी संस्था ने मंगाई नहीं फिर कक्षा आयोजन कैसे हो रहा है ? शिक्षक और बच्चों के हाथ में किताब होगी तो तभी मातृभाषा की सिखलाई होगी । ₹ 120/-  की 104 पृष्ठ की पाठ्यक्रम की मेरी पुस्तक "हमरि भाषा हमरि पछ्याण " 33% छूट के बाद मात्र  ₹ 80/- में मेरे पास उपलब्ध है (मोब 9871388815 ) ।  एक कक्षा में "चैत की चैतवाल " का एक वीडियो देखा जिसे बच्चे गा रहे थे । यह तो भाषा का पाठ्यक्रम नहीं है । बच्चों के समय का सदुपयोग भाषा सिखाने में होना चाहिए । कृपया पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाने का कष्ट करें ताकि आपकी मेहनत सफल हो और बच्चों को हमारी मातृभाषा का सही ज्ञान भी मिले । जो भी मित्र इस अभियान से जुड़े हैं उनका हार्दिक आभार और  धन्यवाद ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
लेखक - पुस्तक "हमरि  भाषा हमरि  पछ्याण"
28.06.2019

Wednesday 26 June 2019

Bhagwaan ki vytha : भगवान की व्यथा

खरी खरी - 450 : 'भगवान की व्यथा' पर मेरे पारखी  मित्रों की नजर

   खरी खरी 448 ( 25 .06.2019 ) पर मेरे  कई पारखी मित्रों की टिप्पणियां फेसबुक और व्हाट्सप पर आई । सभी का हार्दिक आभार । जिन पारखी मित्रों की टिप्पणियां  मैं यहां  शब्दशः उद्धृत कर रहा हूं वे है श्री के एस उजराडी जी और श्री बी सी जोशी जी ।

  " सर आपकी बात एकदम सत्य।  इसी अज्ञानता के चलते हिंदू धर्म सिमटता जा रहा है। जिनके घर में खाने को नहीं है, वे भी सरस्वती, विश्वकर्मा, गणेश, दुर्गा व काली मूर्ति विसर्जन कर रहे हैं । सारी रात फिल्मी धुन पर कानफोडू जागरण करते हैं । लंगडे जो थे हमको चलना सिखा रहे हैं, अंधे हमें शहर का रस्ता दिखा रहे हैं, दसवीं फेल बारहवीं को ट्यूशन पढा रहे हैं । तेरा मेरा मिलन कैसे हो जानी ? तेरी बांयी आंख काणी, मेरी दांयी आंख काणी ।" उजराडी जी का शब्द प्रकटीकरण का अपना अंदाज है परन्तु उन्होंने मेरे शब्दों को ही विस्तार दिया है । (आ. उजराडी जी )

    ये उदगार हैं श्री बी सी जोशी जी के, "ये तस्वीर वाले भगवान नही हैं ,ये केवल चित्रकार की कल्पना मात्र है । ईश्वर तो अज्न्मा, निराकार , अलोकिक है । यदि सही मायने में उसको जानना है तो क्यों सत्यार्थ प्रकाश पढो । मै ये तो नही कहूंगा कि वो भी 100 % सही है लेकिन अन्ध भक्ति व अन्ध विश्वाश के लिये 75% सत्य है ।" (आ. जोशी जी )

    अन्य पार्खियों और  पसंदकारों  के उदगार भी सिरोधार्य हैं  जिन्हें सभी मित्र फेसबुक पर देख सकते हैं । सभी का स्नेह बरसते रहे ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
27.06.2019

Tuesday 25 June 2019

aapaatkaal ki yaad : आपातकाल की याद

खरी खरी - 449 : आपातकाल की याद

     प्रतिवर्ष आपातकाल की याद में 25 जून को तत्कालीन सरकार को उनके विरोधी खूब गरियाते हैं । तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान संविधान में है । यदि यह अनुचित है तो इसे हटाया क्यों नहीं जाता ? उस दौर का दूसरा पहलू भी है । वे दिन याद हैं जब बस- ट्रेन समय पर चलने लगे थे, कार्यालयों में लोग समय पर पहुंचते थे और जम कर काम करते थे , तेल-दाल- खाद्यान्न सस्ते हो गए थे, काले धंधे वाले और जमाखोर सजा पा रहे थे, देश में हर वस्तु का उत्पादन बढ़ गया था और भ्रष्टाचार का नाग कुचला जा चुका था, शिक्षा प्रोत्साहित हुयी थी ।

     आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए और जनता पार्टी का राज आया परंतु यह राज मात्र 26 महीने ही रहा । आश्चर्य की बात तो यह है कि  श्रीमती इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आ गयी । सवाल उठता है कि यदि आपत्काल बुरा था तो इंदिरा गांधी इतनी जल्दी वापस कैसे आ गयी? आपत्काल का सबसे बुरा पहलू प्रेस पर सेंसर लगाना था और नीम-हकीमों द्वारा नसबंदी आप्रेसन से बिगड़े केसों का खुलकर प्रचार भी विरोधियों ने किया था ।

        आज भी मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध और अकर्मण्यता कम नहीं हुयी है । सैकड़ों बच्चे बीमारी से और लाखों बच्चे कुपोषण से मार रहे हैं । ट्रेनों के बारे में सब जानते हैं कि कोई भी ट्रेन समय पर नहीं पहुँचती । 44 वर्ष पहले जो हुआ उससे हमने कुछ भी नहीं सीखा । आपातकाल के बारे में पक्ष-विपक्ष में आज भी जम कर बहस होती है । यह हमारे प्रजातंत्र की खूबी है परन्तु हम सुधरते नहीं, यह दुःख तो कचोटता ही है । जिस दिन हम कर्म- संस्कृति को दिल से अपना लेंगे उस दिन हमारा देश उन देशों में मार्केटिंग करेगा जो हमारे देश में अपना बाजार ढूंढते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.06.2019

Monday 24 June 2019

Bhagwan ki vyatha : भगवान की व्यथा

खरी खरी - 448 : भगवान की व्यथा

        मेरी व्यथा भी सुन मेरा नाम लेने वाले । जी हां, मैं भगवान बोल रहा हूं | कुछ लोग मुझे मानते हैं और कुछ नहीं मानते | जो मानते हैं उनसे तो मैं अपनी बात कह ही सकता हूं | आप ही कहते हो कि कहने से दुःख हलका होता है | आप अक्सर मुझ से अपना दुःख-सुख कहते हो तो मेरा दुःख भी तो आप ही सुनोगे | आपके द्वारा की गयी मेरी प्रशंसा, खरी-खोटी या लांछन सब मैं सुनते रहता हूं और अदृश्य होकर आपको देखे रहता हूं | आपकी मन्नतें भी सुनता हूं और आपके कर्म एवं प्रयास भी देखता हूं | कुछ लोग मेरे छोटे छोटे चित्र या मॉडल या फोटो फ्रेम बना कर अपने मित्रों को प्रसाद की तरह  यह कहते हुए बांटते कि "मैं अमुक तीर्थ/ मंदिर / देवी गया था, लीजिए प्रसाद। " बाद में मेरी उस छोटी फोटो को भी किसी पेड़ के नीचे पटक देते हैं । यह सब मेरा अपमान है ।

      आप कहते हो मेरे अनेक रूप हैं | मेरे इन रूपों को आप मूर्ति-रूप या चित्र-रूप देते हो | आपने अपने घर में भी मंदिर बनाकर मुझे जगह दे रखी है | वर्ष भर सुबह-शाम आप मेरी पूजा-आरती करते हो | धूप- दीप जलाते हो और माथा टेकते हो | दीपावली में आप मेरे बदले घर में नए भगवान ले आते हो और जिसे पूरे साल घर में पूजा उसे किसी वृक्ष के नीचे लावारिस बनाकर पटक देते हो या प्लास्टिक की थैली में बंद करके नदी, कुआं या नहर में डाल देते हो | वृक्ष के नीचे मेरी बड़ी दुर्दशा होती है जी | कभी बच्चे मुझ पर पत्थर मारने का खेल खेलते हैं तो कभी कुछ चौपाए मुझे चाटते हैं या गंदा करते हैं | "

     "आप मेरे साथ ऐसा वर्ताव क्यों करते हैं जी  ? अगर यही करना था तो आपने मुझे अपने मंदिर में रखकर पूजा ही क्यों ? अब मैं आपका पटका हुआ अपमानित भगवान आप से विनती करता हूं कि मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करें | जब भी आप मुझे अपने घर से विदा करना चाहो तो कृपया मेरे आकार को मिट्टी में बदल दें अर्थात मूर्ति को तोड़ कर चूरा बना दें और उस चूरे को आस-पास ही कहीं पार्क, खेत या बगीची में भू-विसर्जन कर दें अर्थात मिट्टी में दबा दें | जल विसर्जन में भी तो मैं मिट्टी में ही मिलूंगा | भू-विसर्जन करने से जल प्रदूषित होने से बच जाएगा | इसी तरह मेरे चित्रों को भी चूरा बनाकर भूमि में दबा दें | "

     "मेरे कई रूपों के कई प्रकार के चित्र हर त्यौहार पर विशेषत: नवरात्री और रामलीला के दिनों में समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में भी छपते रहे हैं | रद्दी में पहुंचते ही इन अखबारों में जूते- चप्पल, मांस- मदिरा सहित सब कुछ लपेटा जाता है | मेरी इस दुर्गति पर भी सोचिए | मैं और किससे कहूं ? जब आप मुझ से अपना दर्द कहते हैं तो मैं भी तो आप ही से अपना दर्द कहूंगा | मेरी इस दुर्गति का विरोध क्यों नहीं होता, यह मैं आज तक नहीं समझ पाया ? मुझे उम्मीद है अब आप मेरी इस वेदना को समझेंगे और ठीक तरह से मेरा भू-विसर्जन करेंगे | सदा ही आपके नजदीक अदृश्य रह कर आपको देखे रहने वाला आपका  ‘भगवान’ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.06.2019

Jindgi k haal : जिंदगी क हाल

खरी खरी - 447 : जिंदगी क हाल (3,आंखिरी किश्त )

जिन्दगी उकाव
जिन्दगी होराव
कभैं अन्यार औंछ यैमें
कभैं  छ उज्याव ।

कैहूणी किरमाडू छ यौ
कैहूणी कांफोव,
कैहूणी बगिच कैहूणी
घनघोर जंगोव ।
कैहूणी धान कि बालड़ि
कैहूणी पराव ।
जिन्दगी...

कैहूणी छ झोल यैमें
कैहूणी गुलाल,
क्वे उडूँ रौ मुफत की
कैक हूं रौ हलाल ।
क्वे मानछ धान ख़्वारम
क्वे लगूं दन्याव ।
जिन्दगी...

उकाव -होराव मजी
सब छीं रिटनै,
कैं दगड़ी मिलि जानी
हिटनै - हिटनै ।
जै पर यकीन करौ
वील करौ छलाव ।
जिन्दगी...

के तू यां लि बेर आछै
के तू यां बै लि जलै
के ट्वील यां कमा
सब यां ई छोडि जलै।  
तेरि  नेकी बदी कौ
रै जालौ लिखाव ।
जिंदगी...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.06.2019

(कविता निमड़िगे)

Saturday 22 June 2019

jindagi k haal : जिंदगी क हाल

खरी खरी - 446 :जिंदगी के हाल (2)

जिन्दगी उकाव
जिन्दगी होराव
कभैं अन्यार औंछ यैमें
कभैं  छ उज्याव ।

जिन्दगी क म्यल मजी
मैंस कसा कसा,
गिरगिट जौस रंग देखूनी
आँसु मगर जसा ।
कैं भुकणी कुकुर यैमें
कैं घुरघुरू बिराउ ।
जिन्दगी...

जिन्दगी में औनै रनी
रस कसा कसा,
कैं कड़ुवा नीम करयाला
कैं मिठ बत्यासा ।
कैं खट्ट अंगूर यैमें
कैं मिठ हिसाउ ।
जिन्दगी...

कैहुणी नागफणी यैमें
कैहुणी क्वैराव,
कैहुणी लंगण छीं यां
कैहुणी रैंसाव ।
कैहुणी यौ मिठी शलगम
कैं क्वकैल पिनाउ ।
जिन्दगी...

(क्रमशः -3,अंतिम)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.06.2019

। Jindagi k haal: जिंदगी क हाल

खरी खरी - 445 : जिंदगी क हाल (1)

जिन्दगी उकाव
जिन्दगी होराव,
कभैं अन्यार औंछ यैमें
कभैं छ उज्याव ।

सुख दुखा बादल यैमें
आते जाते रौनी,
सिद बाट कम यैमें
टयाण ज्यादै औंनी ।
कभैं यां तुस्यार जौ लागूं
कभैं तात मुछ्याव ।
जिन्दगी...

कैं खुशी का नौव यैमें
कैं दुख कि गाड़,
कैं छ गुलाब- हांजरी
कैं कना कि बाड़ ।
कैं सुखी गध्यार यैमें
कैं पाणी का पन्याव ।
जिन्दगी...
क्रमशः...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.06.2019

Thursday 20 June 2019

Yoga diwas : अंतरराष्ट्रीय 'योग' दिवस

मीठी मीठी -296 : स्वस्थ रहो-तंदुरुस्त रहो, योग-सैर-व्यायाम करो ।

(आज 21 जून अंतरराष्ट्रीय 'योग' दिवस)

इक्कीस जून को हो रहा
पूरे जग में 'योग',
भारत की भूमिका प्रबल
जान गए सब लोग,

जान गए सब लोग
रामदेव अलख जगाई,
जागा भारत दुनिया में
डुगडुगी बजाई,

कह 'पूरन' कर भोग कम
मिट जाएंगे रोग,
हो भलेही व्यस्त दिनचर्या
कर नित कसरत -सैर  'योग' ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21 जून 2019

(आज सबसे बड़ा दिन भी । योग के लिए स्वच्छ हवा भी चाहिए । स्वच्छ हवा के लिए पेड़ चाहिए । इसलिए  कम से कम एक पेड़ भी रोपित कर उसका संरक्षण करें । आज प्रातः एक योग केंद्र में सहभागिता रही इसलिए पोस्ट करने में विलम्ब भी हो गया ।)

Wednesday 19 June 2019

Rep kee do jaghny vardaat : रेप की दो जघन्य वारदात

बिरखांत  270  : रेप की दो जघन्य वारदात

      प्रतिदिन प्रिंट और टीवी मीडिया रेप की अनगिनत वारदातों से भरा रहता है । लगता है इस दौर में एक अमानुषिक युग चल पड़ा है जहां एक 6 माह की बच्ची से लेकर 80 वर्ष की वृद्धा तक भी दुष्कर्म का शिकार हो रही है । रेप की दो घटनाओं को साझा करना चाहता हूं ताकि कुछ सीख समाज तक पहुंचे ।

      पहली घटना बदायूं के पास दाता गंज थाने की है । एक महिला का धोखे से विश्वास में लेकर तीन लोगों ने रेप किया । पति ने भी  महिला का साथ नहीं दिया और उसे असहाय छोड़ दिया । महिला के साथ 15 मई  2019 को ये हादसा हुआ । तीन दरिंदों से बच कर महिला थाने पहुंची तो कोतवाल ने रिपोर्ट नहीं लिखी और फटकार कर भगा दिया । अंत में असहाय महिला ने चार पेज का सुसाइड नॉट लिखा और 16 जून 2019 को आत्महत्या कर ली । बाद में पुलिस ने रिपोर्ट लिखी ।

     दूसरी घटना मुरैना जिले के सबलगढ़ की है जहां बरसाना के एक भागवत कथा करने वाले 40 वर्ष के पाखंडी ने 16 वर्ष की कन्या से 3 दिन तक दुष्कर्म किया । यह पाखंडी कन्या के व्यवसायी पिता के घर भागवत के दौरान आवास करता था । माता - पिता की अनुपस्थिति में इसने उस कन्या को फुसलाया । बाद में यह पाखंडी इस लड़की से मोबाइल में बात कर ब्लैक मेल करने लगा । इसी ब्लैक मेल में उसने लड़की से सवा लाख रुपए और मां के जेवरात लेकर बरसाना बुलाया जहां पिता ने कैलारस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और अपनी नाबालिग बेटी को बरामद किया । पुलिस ने उस पाखंडी को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया है ।

     इन दो घटनाओं से कौन दुखित - विचलित नहीं होगा ? कोतवाल यदि उस महिला की रिपोर्ट लिख लेता तो वह आत्महत्या नहीं करती । भागवत कथा के नाम पर हम आज भी पाखंडियों को क्यों नहीं पहचान रहे ? इसी अंधश्रद्धा से लड़की का रेप हुआ । माता - पिता ने घर में लड़की को अकेले क्यों छोड़ा ? इसलिए कि वह पाखंडी भगवान का अवतार है और भागवत कथा सुनाता है । जजमान बना कर विश्वासघात किया और जजमान की बेटी को अपनी वासना का शिकार बनाया ।

        समाज से इन दो घटनाओं के माध्यम से सिर्फ इतना कहा जा सकता कि पुलिस महिलाओं की व्यथा आज भी नहीं सुनती है और लोग अंधश्रद्धा में अब भी वशीभूत हो जाते हैं  । आज हम उस दौर से गुजर रहे हैं जब किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता भलेही वह कोई सगा रिश्तेदार ही क्यों न हो ?

पूरन चन्द्र कांडपाल
20.06.2019

Tuesday 18 June 2019

Pitru sneh : पितृ -स्नेह

मीठी मीठी - 294 : पितृ -स्नेह

( पितृ दिवस पर कुमाऊनी कविता का "बौज्यू " का हिंदी रूपांतर । )

माली की बगिया की तरह
तुमने मुझे संवारा है,
चित्रकार की अनुपम कृति सा
जीवन मेरा निखारा है ।

चाक अंगुली ज्यों कुम्हार की
मिट्टी को जीवित करती,
उसी तरह जीवन की खूबी
तुमने है मुझ में भर दी ।

पाठ गुरु से जो नहीं सीखा
वह सिखलाया है तुमने,
शिक्षक बन कर दीप ज्ञान का
मन में जगाया है तुमने ।

लक्ष्य जीवन का मुझे बताया
स्वावलंबन का पाठ दिया,
सत्य के मारग पर ही हमेशा
चलने का दृष्टांत दिया ।

जब जब रूठा हूं मैं तुमसे
तुम मनाते ही चले गये,
बचपन, यौवन से अब तक तुम
गले लगाते चले गए ।

जब तक प्राण तन में मेरे
स्मृति मन में बनी रहे,
'पितृ देव' की पावन ज्योति
प्रज्ज्वलित मेरे उर में रहे ।

( मेरे कविता संग्रह 'स्मृति लहर' से)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19 जून 2019

Monday 17 June 2019

Mohan singh : मोहन सिंह कांस्टेबल

मीठी मीठी - 293 : पुलिस कांस्टेबल मोहन सिंह

     रविवार 9 जून 2019 को रुद्रप्रयाग ( उत्तराखंड ) के जिलाधिकारी वेश बदलकर व्यवस्था देखने रात्रि के समय सोनप्रयाग पहुंचे और सुरक्षाकर्मी से रात्रि में गौरीकुंड जाने का आग्रह किया जो रात्रि को प्रतबंधित होता है । उन्होंने सुरक्षाकर्मी कांस्टेबल को घूस पेश की जिसे उन्होंने ने ₹ 200/- से बढ़ाते हुए ₹ 2000/- तक किया परन्तु कांस्टेबल नहीं माना । कांस्टेबल ने वेश बदले हुए यात्री से कहा, "ज्यादा परेशान करोगे तो जेल भिजावादूंगा ।"  जिलाधिकारी ने इस ईमानदार पुलिस कांस्टेबल मोहन सिंह को उसकी ईमानदारी से खुश होकर ₹ 5000/- का पुरस्कार और प्रशस्तिपत्र देने की तत्काल घोषणा की ।

       हम उत्तराखंड पुलिस के ईमानदार  कांस्टेबल मोहन सिंह को जयहिंद कहते हैं । पूरे देश की पुलिस घूस लेने के लिए बहुत बदनाम है । पुलिस पर आरोप है कि वह बिना घूस के कोई काम नहीं करती,  ड्यूटी के दौरान सिर्फ उघाई में लगी रहती है । सड़क पर कई बार पुलिस को रंगे हाथ घूस लेते देखा गया है । पकड़े जाने पर कई पुलिस वालों को सजा भी मिली है । हमें कर्तव्यनिष्ठ  कांस्टेबल मोहन सिंह जैसे पुलिसमैन पर गर्व भी है जिसने वेश बदले हुए जिलाधिकारी की घूस को लात मार कर अपना ईमान नहीं बेचा । देश के पुलिसकर्मियों को कांस्टेबल मोहन सिंह जैसे ईमानदारी के पहरुओं से कुछ तो प्रेरणा लेनी चाहिए । जयहिंद ईमानदार कांस्टेबल मोहन सिंह जी ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
18.06.2019