Wednesday 31 January 2018

Ravidas : संत रविदास

मीठी मीठी - 76 : संत शिरोमणि रविदास जी की जयंती

     भक्तिकाल ( 1375 - 1700 ई.) में कई संत हुए जिन्होंने अपने स्वर, सुर, संगीत, गीत, साहित्य और साधना से समाज में कई सुधार किए । उस दौर में समाज में आज की तुलना में अधिक विषमता और सामाजिक अन्याय था । इसी दौरान संत परम्परा के महान योगी संत रविदास जी ( जन्म 1398 और मृत्यु 1540 बनारस में ) का भी अवतरण हुआ । कुछ लोग उनका जन्म 1450 और मृत्यु 1520 ई. बताते हैं ।

      कवि, संत और समाज सुधारक रविदास जी दक्षिणा और दान पर आश्रित नहीं रहे । वे कर्मयोगी थे और जूता बनाकर आजीविका चलाते थे । उनके गुरु रामानंद जी भी एक महान समाज सुधारक थे । सिक्खों के ग्रन्थ 'गुरु ग्रन्थ साहब' में भी रविदास जी की वाणी है । रविदास जी ने समतामूलक, जाति रहित भाई चारे वाले  समाज की परिकल्पना की थी । 'मन सच्चा तो कठौती में गंगा ' उनके बारे में प्रसिद्ध कथन है । वे 'जाति पाति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई' विचार के समर्थक थे ।

     31 जनवरी 2018 को उनकी जयंती देशभर में मनाई गई । उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक सौहार्द पूर्ण और भाई चारे से ओतप्रोत समाज बनाने का संकल्प हम अवश्य कर सकते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.02.2018

Tuesday 30 January 2018

Bandar : बानर बधियाकरण

मीठी मीठी - 75 : बानर बधियाकरण

     बहुत दिनों के बाद उत्तराखंड से एक हर्ष समाचार अल्मोड़ा से छपने वाले कुमाउनी साप्ताहिक समाचार पत्र  "कुर्मांचल  अखबार"  

( 22.01.2028 ) में छपा है कि अब अल्मोड़ा नगर में बानरों का आतंक समाप्त हो जाएगा । बंदरों को पिजरों में पकड़ कर उनका बधियाकरण (नसबंदी शल्य चिकित्सा) किया जाएगा जिसके लिए पचास लाख रुपये मंजूर हो गए हैं । 

      यदि उत्तराखंड सरकार इस तरह से बानर संख्या को नियंत्रण करेगी तो लोग उस खेती को पुनः आबाद करेंगे जो उन्होंने बानर-उत्पात के कारण छोड़ दी है । उत्तराखंड के नगर- गाँव सब बंदरों से अटे पड़े हैं । एक महिला ने फौन पर बताया, " भुला बानर भतेर बै सामान त ल्ही जां रईं, हागि लै जां रईं । बानरों क गू पोछनै मरि गोयूं ।" ( भाई जी बंदर घर से सामान ले जाते हैं, मल-मूत्र कर जाते हैं , उस मल -मूत्र की सफाई में ही लगी रहती हूं ।)

     यदि यह कार्य ठीक से क्रियान्वित होगा तो राहत मिलेगी अन्यथा राजधानी में बढ़ती हुई कुत्तों की संख्या जैसा हाल होगा । कहने को दिल्ली में कुत्तों का बंध्याकरण होता है परन्तु जमीन में कुत्तों की संख्या बढ़ते जा रही है । कई बार बुलाने पर  पांच कर्मियों सहित सरकारी पशु एम्बुलेंस आई और एक मरियल सा कुत्ता पकड़ कर चली गई । दर्जनों कुत्ते घूम रहे थे परन्तु एम्बुलेंस विराजित इस पंच- टोली ने कुत्ते पकड़ने का प्रयास ही नहीं किया ।

     सरकारी कर्मियों की उदासीनता के कारण किसी भी विभाग में कार्य क्रियान्वयन नहीं होता चाहे वह पौधरोपण हो, नदी सफाई हो, यातायात नियमितता हो या कोई अन्य । सरकारी कर्मियों की उदासीनता के कारण ठेकेदारी प्रथा को बल मिला है और निजीकरण में ही उज्ज्वल भविष्य दिखाई देने लगा है । क्या हमारे देश में कर्म- संस्कृति का विकास होगा या बिना काम किये वेतन संग बोनस मिलता रहेगा ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.01.2018

Grahan : ग्रहण

खरी खरी - 166 : चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना

     कुछ लोग चंद्र ग्रहण पर कई प्रकार के मिथ या अंधविश्वास फैला रहे हैं जो अनुचित है । ग्रहण सम्बंधी प्रतिबंध अंधविश्वास के सांकलों में एक जकड़न है । यह एक खगोलीय घटना के सिवाय और कुछ भी नहीं । बच्चों को स्कूल में यही सत्य पढ़ाया जाता है । राहु- केतु- खग्रास आदि स्कूल में नहीं पढ़ाया जाता । ग्रहण के दौरान देश में विभिन्न रेल, वायुयान या जहाज से  यात्राओं में अथवा होटलों- ढाबों में भोजन नित्य की तरह उपलब्ध होते रहेगा । वक्त के साथ बदलें । ग्रहण का पाप-पुण्य या डुबकी से भी कुछ लेना -देना नहीं है । नित्य की तरह अपना कर्म करते रहें । शिक्षा के दीप से अंधेरा मिट रहा है और मिटेगा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.01.2028

Monday 29 January 2018

Gandhi ko nobel : गांधी को नोबेल क्यों नहीं ?

बिरखांत 197 : गांधी को क्यों नहीं मिला ‘नोबेल पुरस्कार’ ?

( आज 30 जनवरी बापू के शहीदी दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि । )

     मोहन दास करम चन्द गांधी (महात्मा गांधी, बापू, राष्ट्रपिता) का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ | उनकी माता का नाम पुतली बाई और पिता का नाम करम चन्द था | 13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ | गांधी जी 18 वर्ष की उम्र में वकालत पढ़ने इंग्लैण्ड गए | वर्ष 1893 में वे एक गुजराती व्यौपारी का मुकदमा लड़ने दक्षिण अफ्रीका गए |

     दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने रंग- भेद निति का विरोध किया | 7 जून 1893 को गोरों ने पीटरमैरिटजवर्ग रेलवे स्टेशन पर उन्हें धक्का मार कर बाहर निकाल दिया | वर्ष 1915 में भारत आने के बाद उन्होंने सत्य, अहिंसा और असहयोग को हथियार बनाकर अन्य सहयोगियों के साथ स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और देश को अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र कराया | 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गौडसे ने नयी दिल्ली बिरला भवन पर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी | इस तरह अहिंसा का पुजारी क्रूर हिंसा का शिकार हो गया | देश की राजधानी नयी दिल्ली में राजघाट पर उनकी समाधि है |

      पूरे विश्व में महात्मा गांधी का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है | संसार में बिरला ही कोई देश होगा जहां बापू के नाम पर कोई स्मारक न हो | परमाणु बमों के ढेर पर बैठी हुयी दुनिया भी गांधी के दर्शन पर विश्वास करती है और उनके बताये हुए मार्ग पर चलने का प्रयत्न करती है | विश्व की  जितनी भी महान हस्तियां हमारे देश में आती हैं वे राजघाट पर बापू की समाधि के सामने नतमस्तक होती हैं | इतना महान व्यक्तित्व होने के बावजूद भी विश्व को शान्ति का संदेश देने वाले इस संदेश वाहक को विश्व में सबसे बड़ा सम्मान कहा जाने वाला ‘नोबेल पुरस्कार’ नहीं मिला | क्यों ?

     नोबेल पुरस्कार’ प्रदान करने वाली नौरवे की नोबेल समिति ने पुष्टि की है कि मोहनदास करम चन्द गांधी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 1937, 1938, 1939, 1947 और हत्या से पहले जनवरी 1948 में नामांकित किये गए थे | बाद में पुरस्कार समिति ने दुःख प्रकट किया कि गांधी को पुरस्कार नहीं मिला | समिति के सचिव गेर लुन्देस्ताद ने 2006 में कहा, “ निसंदेह हमारे 106 वर्षों से इतिहास में यह सबसे बड़ी भूल है कि गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला | गांधी को बिना नोबेल के कोई फर्क नहीं पड़ा परन्तु सवाल यह है कि नोबेल समिति को फर्क पड़ा या नहीं ?” 

     1948 में जिस वर्ष गांधी जी शहीद हुए नोबेल समिति ने उस वर्ष यह पुरस्कार इस आधार पर किसी को नहीं दिया कि ‘कोई भी योग्य पात्र जीवित नहीं था |’ ऐसा माना जाता है कि यदि गांधी जीवित होते तो उन्हें बहुत पहले ही ‘नोबेल शांति’ पुरस्कार प्रदान हो गया होता | महात्मा गांधी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ भी नहीं दिया गया क्योंकि वे इस सम्मान से ऊपर हैं |

     सत्य तो यह है कि अंग्रेज जाते- जाते भारत का विभाजन कर गए | गांधी जी ने विभाजन का अंत तक विरोध किया | जिन्ना की महत्वाकांक्षा ने तो विभाजन की भूमिका निभाई जबकि भारत के विभाजन के बीज तो अंग्रेजों ने 1909 में बोये और 1935 तक उन बीजों को सिंचित करते रहे तथा अंत में 1947 में विभाजन कर दिया | भारत में राम राज्य की कल्पना करने वाले गांधी, राजनीतिज्ञ नहीं थे बल्कि एक संत थे | गांधी को ‘महात्मा’ का नाम रवीन्द्र नाथ टैगोर ने और ‘राष्ट्रपिता’ का नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सम्मान के बतौर सुझाया था | आज भी दुनिया कहती है कि गांधी मरा नहीं है, वह उस जगह जिन्दा है जहां दुनिया शांति और अमन-चैन की राह खोजने के लिए मंथन करती है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30 जनवरी 2018

Sunday 28 January 2018

Kunai कुनइ

खरी खरी - 165 : मिकैं क्ये खबर न्हैति ( कुनइ )

कुनइ -कुनइ कौनै
च्याल-च्येलिय बुढ़ीगीं,
गलत समाचार
कतुक्वां क सुड़ीगीं,
मै-बाप गिच ल कौनी
कुनइ क्ये चांछा मुनइ चौ,
जमान बदलैं रौ थ्वाड़ -
भौत तुम लै बदलि जौ,
बदलण कि नियत 
इनरि जरा लै न्हैति,
यूं नना उज्यां क्यलै निचांराय
मिकैं क्ये खबर न्हैति ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.01.2018

Saturday 27 January 2018

68th Ashok chakr : 68वां अशोक चक्र

खरी खरी - 164 : 68वां अशोक चक्र (मरणोपरांत)

     26 जनवरी 2018 को मैंने एक सर्वे 'अशोक चक्र' के बारे में भी की । जिससे भी पूछा उसे इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं थी । हां, इतना जरूर कुछ लोगों ने बताया कि यह 'मिलट्री वालों को मिलता है ।' देश के लिए अपना बलिदान देने वाले सूरमाओं को बहादुरी के लिए प्रदान किये जाने वाले अलंकरणों की जानकारी हमें होनी चाहिए । इन्हीं की बदौलत तो हम अपने घरों में अमन-चैन से बैठे हैं ।

     'अशोक चक्र' शांति के समय दिया जाने वाला 'परमवीर चक्र' के समकक्ष देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है । यह जमीन, पानी या हवा में दुश्मन के सम्मुख प्रत्यक्ष रूप से सर्वोत्तम वीरता या अत्यंत साहस या बहादुरी या स्वबलिदान के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च अलंकरण है । यह सैन्य सेवा के सभी रैंकों, अन्य सुरक्षकर्मियों एवं नागरिकों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा गणतंत्र दिवस परेड के समय राजपथ नई दिल्ली में प्रदान किया जाता है । 

     वर्ष 1952 से 2018 तक यह सम्मान 68 सूरमाओं को दिया जा चुका जिनमें 56 को यह मरणोपरान्त प्रदान किया गया जिनकी तीन भाषाओं (कुमाउनी, हिंदी और अंग्रेजी ) में चर्चा मैंने पुस्तक 'महामनखी' में की है । स्वतंत्रता से पहले इस सम्मान को 'जॉर्ज क्रॉस' कहते थे । इस पुरस्कार के लिए ₹12000/- प्रतिमाह दिये जाते हैं । इस वर्ष 26 जनवरी 2018 को यह सम्मान भारतीय वायुसेना (13 RR ) के कारपोरल/कमांडो ज्योति प्रकाश निराला को मरणोपरांत दिया गया जिसे राजपथ पर शहीद की माँ (मालती देवी) और पत्नी (सुषमानंद) ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी के हाथों ग्रहण किया । निराला ने 18 नवम्बर 2017 को बांदीपुरा (जे & के) में दो आतंकवादियों को एक मुठभेड़ में अकेले ही मार गिराया । इस मुठभेड़ में वे घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुए । उस मुठभेड़ में सेना ने छै आतंकवादियों को बाद में ढेर कर दिया । निराला को विनम्र श्रद्धांजलि और सलूट । तुम भलेही लौट कर घर नहीं आये निराला परन्तु पूरा भारत तुम्हारे परिवार के साथ है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.01.2018

Friday 26 January 2018

26 janvari kyon ? : 26 जनवरी ही क्यों ?

खरी खरी - 163 : 26 जनवरी ही को क्यों ?

    कल 26 जनवरी 2018 को हम सबने 69वां गणतंत्र दिवस मनाया । किसी ने धूम- धाम से तो किसी ने सादगी से मनाया । कोई तीन दिन की छुट्टी का आनंद लेने बाहर (नानी- दादी के यहां भी) चला गया तो किसी ने जम कर नींद ली । किसी ने करीब 2 घंटे टी वी पर परेड देखी । मैंने कल दिन भर करीब दो दर्जन स्त्री- पुरुष-बच्चों से अलग-अलग स्थानों पर बड़े खुशनुमा माहौल में बस एक ही सवाल पूछा, " गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है ?" अधिकांश ने बे-सिर बे-पैर के उटपटांग उत्तर दिये । कुछ ने बताया ,"इस दिन हमारा संविधान लागू हुआ  ।" सवाल फिर अपनी जगह खड़ा था, "संविधान 26 जनवरी को ही क्यों लागू हुआ ?   24 - 25 या 27 -28 या किसी अन्य दिन लागू क्यों नहीं हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर किसी ने भी नहीं दिया । ये है हमारे देशवासियों की हमारे गणतंत्र दिवस के बारे में जानकारी । आप में किसी को निराशा, किसी को दुख या किसी को आश्चर्य हो रहा होगा परन्तु मुझे ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि मैं जानता हूं इस बात की चर्चा या देश की चर्चा हमारे माहौल में बहुत कम ही होती है ।

     आप लोगों में कई मित्र अवश्य इस प्रश्न का उत्तर जानते होंगे फिर भी सही उत्तर देने का प्रयास कर रहा हूं । उत्तर - " 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन में हमारा संविधान लिख कर 26 नवम्बर 1949 को तैयार हो गया । इसे लागू करने के लिए 26 जनवरी 1950 तक प्रतीक्षा इस लिए की गई क्योंकि दिसम्बर 1929 में रावी नदी के किनारे लाहौर के कांग्रेस अधिवेसन में पंडित नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज की मांग की गई और 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज दिवस मना कर ध्वज फहरा दिया गया ।  26 जनवरी 1930 के दिन का स्मरण और महत्व को सम्मानित करने के लिए राष्ट्र द्वारा 26 जनवरी 1950 तक संविधान लागू होने की प्रतीक्षा की गई और 26 जनवरी 1950 से हमारा संविधान लागू हो गया ।

     कल अवन्तिका रोहिणी दिल्ली में उत्तराखंड भ्रातृमण्डल आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में भी गणतंत्र का जश्न देखा । संस्था के अध्यक्ष श्री एन डी लखेड़ा जी और उनकी टीम को इस सफल आयोजन के लिए बहुत -बहुत बधाई । इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम में समाज सेवी सर्वश्री भूपाल सिंह बिष्ट जी, राजन पांडे जी, दर्शन सिंह मेहरा जी, गायिका श्रीमती कौशल पांडे जी, गायक  गोपाल मठपाल जी, प्रकाश काल्हा जी, दलीप रावत जी, भगवंत मनराल जी, वीरेंद्र राही जी (संगीतज्ञ) सहित समाज की विभिन्न विधाओं से जुड़े कई गणमान्य एवं संस्था से जुड़े व्यक्तियों  का सानिध्य प्राप्त हुआ ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.01.2018

69th gantantr diwas : 69वां गणतंत्र दिवस 2018

बिरखांत-196 : 69वां गणतंत्र दिवस  – कमर कसने का दिन

            प्रतिवर्ष जनवरी महीने में चार विशेष दिवस एक साथ मनाये जाते हैं | 23,  24,  25  और 26  जनवरी | 23 को नेताजी सुभाष जयंती, 24 को राष्ट्रीय बलिका दिवस ( इस दिन 1966 में श्रीमती इंदिरा गाँधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी थी ), 25 को मतदाता जागरूकता दिवस और 26 को 1950 में हमारा संविधान लागू हुआ था जिसे हम अभी तक अच्छी तरह समझे नहीं हैं या संविधान के बारे में जानते नहीं हैं । अब 22 जनवरी को ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ दिवस भी मनाया जाने लगा है | हमने विगत 68 वर्षों में बहुत कुछ पाया है और देश में विकास भी हुआ है परन्तु बढ़ती जनसंख्या ने इस विकास को धूमिल कर दिया | 68 वर्ष पहले हम 43 करोड़ थे और आज 125 करोड़ हैं अर्थात उसी जमीन में 82 करोड़ जनसंख्या बढ़ गई |

                                  हमने मिजाइल बनाए,  ऐटम  बम बनाया, अन्तरिक्ष में धाक जमाई, कृषि उपज बढ़ी, साक्षरता दर जो तब 2.55% थी अब 74.1% है | रेल, सड़क, वायुयान, उद्योग, सेना, पुलिस, अदालत आदि सब में बढ़ोतरी हुई | इतना होते हुए भी हमारी लगभग 30% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है जिनकी प्रतिदिन की आय पचास रुपए से भी कम बताई जाती है | देश की एक चौथाई  जनता के पास शौचालय नहीं हैं | कई स्कूलों और आगनबाड़ी केन्द्रों में पेय जल नहीं है और 25% जनता तक अभी बिजली नहीं पहुँची है | प्रतिवर्ष हजारों किसान  (लगभग 12000 )आत्महत्या कर रहे हैं | अदालतों में करीब तीन करोड़ से भी अधिक मामले लंबित हैं और एक केस सुलझाने में कई वर्ष लग जाते हैं | ब्रेन ड्रेन भी नहीं थमा है |

           विदेशों की नजर में हम निवेश के लिए सुरक्षित नहीं हैं |187 देशों में हमारा नंबर 169 है अर्थात उनकी नजर में 168 देश उनके लिए हमसे अधिक सुरक्षित हैं | विश्व के 200 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में हमारा नाम नहीं है | बताने के लिए तो बहुत कुछ है जिससे मनोबल को ठेस लगेगी | प्रतिवर्ष राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड हमारा मनोबल बढ़ाती है | हमारे सुरक्षा प्रहरी हिम्मत और शक्ति के परिचायक हैं जो सन्देश देते हैं कि हमारी सीमाएं सुरक्षित और चाकचौबंद हैं | हमें अपने देश में ईमानदारी के पहरुओं पर भी गर्व है | हम अभी विकासशील देश हैं क्योंकि हमारे पास विकसित देशों जैसा बहुत कुछ नहीं है |

             भारत को विकसित राष्ट्र बनने में देर नहीं लगेगी यदि ये मुख्य चार दुश्मनों – भ्रष्टाचार, बेईमानी, अकर्मण्यता और अंधविश्वास से उसे निजात मिल जाय | इसके अलावा नशा, आतंकवाद, अशिक्षा, गरीबी, गन्दगी और साम्प्रदायिकता भी हमारी दुश्मनों की जमात में हैं | यदि हम इन दस दुश्मनों को जीत लें तो फिर भारत अवश्य ही सुपर पावर समूह में शामिल हो सकता है | इन दुश्मनों की चर्चा हमारे राष्ट्र नायकों सहित देश के कई प्रबुद्ध नागरिकों ने पहले भी कई बार की है | आइये इस गणतंत्र पर कमर कसें, अपने संविधान को जानें और इन सभी दुश्मनों को जड़ से उखाड़ फेंकने में सहयोग करते हुए देश को महाशक्ति समूह में शामिल करें | आप सबको 69वे गणतंत्र दिवस की बधाई | अगली बिरखांत में कुछ और...  

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.01.2018

Bahadur bachhe : बहादुर बच्चे 26 जन 18

मीठी मीठी -74 : हमारे बहादुर बच्चे

     हमारे देश में प्रतिवर्ष  गणतंत्र दिवस के अवसर पर 'राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार' भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा वर्ष 1957 से प्रधानमंत्री के हाथ से प्रदान किये जाते हैं । प्रत्येक राज्य में परिषद की शाखा है । प्रतिवर्ष 1 जुलाई से 30 जून के बीच 6 वर्ष से बड़े और 18 वर्ष से छोटी उम्र के वे बच्चे ग्राम पंचायत, जिला परिषद, प्रधानाचार्य, पुलिस प्रमुख एवं जिलाधिकारी की संस्तुति के बाद परिषद की राज्य शाखा को आवेदन कर सकते हैं जिन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए दूसरों की जान बचाई ।

     इस पुरस्कार के लिये पुलिस रिपोर्ट एवं अखबार की कतरन प्रमाण के बतौर होनी चाहिए । 1957 से 2017 तक यह पुरस्कार 963 बहादुर बच्चों को प्रदान किया गया जिनमें 680 लड़के और 283 लड़कियां हैं । पुरस्कार में चांदी का पदक, नकद राशि और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है । सर्वोच्च बहादुरी के लिए स्वर्ण पदक और विशेष बहादुरी के लिए भारत पुरस्कार, संजय चोपड़ा, गीता चोपड़ा सुर बापू गयाधानी पुरस्कार दिया जाता है । ये बच्चे गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेते हैं और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से भी मिलते हैं ।

    इस वर्ष यह पुरस्कार 18 बहादुर बच्चों को प्रदान किया गया जिनमें 3 मरणोपरांत हैं । इन बच्चों में 11 लड़के और 7 लड़कियां हैं । उत्तराखंड के मास्टर पंकज सेमवाल भी पुरस्कार पाने वाले 18 बच्चों में से एक हैं । देश में उत्तराखंड का नाम ऊँचा करने वाले वीर बालक मास्टर  पंकज सेमवाल को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.01.2018

Bachchon ke liye : बच्चों के लिए कार्यक्रम

खरी खरी - 162 : बच्चों के लिए भी हो कुछ कार्यक्रम

     जब भी हम सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाते हैं तो इक्का-दुक्का जगहों को छोड़कर वहां सांस्कृतिक या सृजनात्मक तौर पर बच्चों के लिए कुछ भी आयोजन नहीं होता । अधिकांश सांस्कृतिक आयोजन सिर्फ नाच- गाने तक ही सीमित होते हैं । सुनने- कहने में यह बुरा जरूर लगेगा परन्तु यह सत्य है । अपवाद को छोड़ दें तो बच्चे इन कार्यक्रमों में रुचि नहीं ले रहे और इसी कारण वे वहां जाने में आनाकानी भी करते हैं ।  बच्चों के लिए चित्रकला, सामान्य ज्ञान, कविता उच्चारण, फैन्सी ड्रेस, नाटक आदि कुछ होना तो चाहिए ।

     22 जनवरी 2018 को वसंत पंचमी के अवसर पर इंद्रप्रस्थ मैथिल मंच (पंजी.) रोहिणी दिल्ली ने महासरस्वती पूजनोत्सव कार्यक्रम किया जहां यज्ञ, पूजा, नृत्य, सांस्कृतिक आयोजन के साथ ही बच्चों के लिए चित्रकला, सामान्य ज्ञान और फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता कराई गई । इन तीनों ही विधाओं में दो- दो ग्रुप थे - जूनियर और सीनियर । बच्चों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और सभी श्रेणियों में प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार दिए गए ।

      इन विधाओं में संस्था द्वारा दी गई भागीदारी निभाने का मुझे भी अवसर मिला । एक शानदार अनुभव के साथ मैं कह सकता हूं कि यह एक अत्यंत ही सफल आयोजन रहा । संस्था के अध्यक्ष श्री अमोद कुमार झा और कार्यक्रम संचालक श्री टी एन झा और इनकी समस्त टीम ने एकजुटता का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया । सभी प्रतियोगिता सम्पन्न करने में मुझे श्रीमती सीमा जी, श्रीमती वंदना जी तथा श्री संजीव कुमार जी (सभी अध्यापन से जुड़े हुए व्यक्ति) का अनुपम सहयोग मिला । 

     इंद्रप्रस्थ मैथिल मंच रोहिणी दिल्ली को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए अन्य सभी संस्थाओं से भी निवेदन करूंगा कि बच्चों के लिए भी सांस्कृतिक आयोजनों में कुछ विधाओं का समावेश  अवश्य करें तभी भावी पीढ़ी का सार्थक निर्माण होगा और बच्चों में सामाजिकता, एकजुटता तथा देशप्रेम की फुनगियां पनपने लगेंगी । धन्यवाद ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.01.2018

Utraini uttrakhand sadan :उत्तरायणी उत्तराखंड सदन

मीठी मीठी -71 :  उत्तराखंड सदन नई दिल्ली में पर्वतीय लोकविकास समिति द्वारा उत्तरायणी का रंग

     14 जनवरी को पूरी दिल्ली को उत्तरायणी  के रंग में रंगने पर आप सभी मित्रों को  हार्दिक बधाई । कल रविवार 21 जनवरी 2018 को पूर्वान्ह से मध्यान्ह तक उत्तरायणी अभियान के तहत  पर्वतीय लोकविकास समिति नई दिल्ली (अध्यक्ष एवं संयोजक डा. सूर्य प्रकाश सेमवाल न्यूज एडिटर पंजाब केसरी ) ने  उत्तरायणी समीक्षा कार्यक्रम का सफल आयोजन उत्तराखंड सदन चाणक्यपुरी नई दिल्ली में किया गया जिसमें कई  चुनिंदा राजनेता ,पत्रकार, साहित्यकार, आत्मीय जन, सहयोगियों और  संस्थाओं को हिमालय गौरव, पर्वत गौरव, दिल्ली गौरव और उत्तरायणी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया । इस शुभ अवसर पर सांसद प्रदीप टम्टा, डा. जीत राम भट्ट  ( सचिव हिंदी -संस्कृत अकादमी दिल्ली  ), सुनील नेगी (अध्यक्ष उत्तराखंड पत्रकार परिषद) और व्योमेश जुगरान (वरिष्ठ पत्रकार) और पूरन चन्द्र काण्डपाल को हिमालय गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया । अन्य कई विभूतियों को भी विभिन्न पुरस्कारों से विभूषित किया गया । 

     कार्यक्रम में कई वक्ताओं ने उत्तरायणी पर्व पर विशेष प्रकाश डालते हुए सामाजिक एकता बनाये रखने तथा अपनी भाषा को व्यवहार में प्रयुक्त करने का निवेदन किया ताकि भविष्य में दिल्ली सरकार अधिक से अधिक संस्थाओं को इस पर्व को मनाने हेतु सहयोग उपलब्ध करा सके  । स्मरण रहे इस वर्ष 34 संस्थाओं को उत्तरायणी मनाने में दिल्ली सरकार से सहयोग मिला । इस सहयोग हेतु दिल्ली सरकार को हार्दिक साधुवाद भी ज्ञापित किया गया ।

      इस अवसर पर सभागार में कई अन्य गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे जिनमें सर्वश्री धीरेंद्र प्रताप सिंह, शाही जी, सदानंद जी, डा. सुशीला चौधरी, विनोद रावत, श्रीमती प्रेमा धोनी, विनोद नौटियाल, नंदन सिंह रावत, सुरेन्द्र हालसी,  के सी पांडे (आकाशवाणी), कुकशाल जी, बसलियाल जी आदि । कार्यक्रम का संचालन डा. सूर्य प्रकाश सेमवाल ने तथा आये हुए सभी मित्रों का आभार और धन्यवाद संस्था के उपाध्यक्ष विनोद नौटियाल  ने किया । जल-पान व्यवस्था के साथ आयोजन का समापन किया गया । वर्तमान में उत्तरायणी पर्व उत्तराखंड एकता का प्रतीक बन गया है । इस एकता को भविष्य के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अक्षुण बनाये रखना है । इस सफल आयोजन के लिए डा सेमवाल जी की पूरी टीम और सहयोगियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.01.2018