Thursday 29 March 2018

Maya naheen mahan : माया नहीं महान

खरी खरी - 209 : माया नहीं महान

जग में माया नहीं महान,
फिर तू काहे करे गुमान ।

माया से प्रसाधन मिलते
मिलते नहीं संस्कार,
माया से संस्कृति मिले ना
मिल जाता बाजार,
अंत समय कछु हाथ न लागे
सभी खोखला जान । जग...

माया से तुझे मिले बिछौना
नींद न मिलने पाये,
माया से साधन मिल जाते
खुशी न मिलने पाये,
माया से तुझे मिलता मंदिर
मिले नहीं भगवान । जग...

माया से मिले भवन चौबारे
घर नहीं मिलने पाये,
दवा -आभूषण मिले माया से
मुस्कान न मिलने पाये,
माया से पोथी मिल जाए
नहीं मिल पाये ज्ञान । जग...

'यादों की कलिका से'
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.03.2018

Good Fraiday : गुड फ्राईडे

मीठी मीठी - 95 : गुड फ्राइडे

     ईसा मसीह को आज के दिन उनके विरोधियों ने सूली पर चढ़ा दिया था । ईसा ने प्राण त्यागते हुए कहा, "हे ईश्वर इनको माफ करना क्योंकि ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं ।" आने वाले रविवार को उनका पुनर्जन्म हो गया जिसे 'ईस्टर' कहते हैं । पुस्तक 'लगुल' में दी गई जानकारी यहां उध्दृत है । प्रेम, क्षमा, करुणा और मानवता का संदेश देने वाले ईसू को नमन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.03.2018
गुड फ्राईडे

Wednesday 28 March 2018

Jio aur jine do : जीओ और जीने दो

मीठी मीठी - 95 : 'जीओ और जीने दो'

     आज 29 मार्च को हम महावीर जयंती मना रहे हैं । 'जीओ और जीने दो' के सिद्धांत को समाज के सम्मुख रखने वाले भगवान महावीर जैन को नमन । पुस्तक 'लगुल' में उनके बारे में लघु लेख यहाँ उधृत है । आज उन्हें याद कर हम उन लोगों पर विजय पा सकते हैं जिन्होंने 'न जीयेंगे और न जीने देंगे' की विकृति समाज में फैलाई है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.03.2018

Khoob sneh :खूब स्नेह बरसाया

मीठी मीठी - 94 : खूब स्नेह बरसाया आपने

    कल 28 मार्च को आप सभी मित्रों ने मुझ पर खूब प्यार बरसाया ।  मेरी खरी खरी, मीठी मीठी और बिरखांत के आप ही तो पारखी हैं । मेरे शब्दों की माला जो मैं आपको भेंट करते आया हूँ  और करते रहूँगा, कृपया उसे स्वीकार करते रहें । सभी मित्रों का हार्दिक आभार ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.03.2018

Samajsewi : समाज सेवी कौन ?

खरी खरी -207 : पहले समाजसेवी बनाना होगा

     हमारे चारों ओर एक बहुचर्चित शब्द है 'समाजसेवी' । किसी भी आयोजन या समारोह में माइक में खूब गुंजायमान होता है कि अमुक समाजसेवी हमारे बीच हैं । 01 पैसे का काम और 99 पैसे का शोर मिश्रित अपचनीय प्रचार होता है ।

     'समाजसेवी' का वास्तविक अर्थ है जो समाज के हित में निःस्वार्थ सेवा और अपना मुंह खोले तथा उस दिखाई देने वाली सेवा का बखान अन्य लोग भी करें और उस सेवा से समाज का भला भी हो । हमारे इर्द-गिर्द कुछ लोग ऐसे अवश्य दिखाई देते हैं जिनसे हमें प्रेरणा मिलती है । ऐसे लोग प्रत्येक विसंगति को बड़ी विनम्रता से इंगित करते हैं और परिणाम प्राप्त करते हैं ।

     बिना समाज के लिए कुछ कार्य किये हम क्यों किसी को समाज सेवी कह देते हैं ? जो स्वयं को समाजसेवियों में गिनते हैं उन्हें एक डायरी या कापी अपने लिए भी बनानी चाहिए जिसमें स्वयं द्वारा प्रतिदिन समाज के हित में किये गए कार्य की चर्चा हो । हमें कुछ ही दिनों में अपने समाज- सेवी होने का प्रमाण स्वतः ही मिल जाएगा । हम 'वन्देमातरम, 'भारतमाता की जय' और 'जयहिन्द' शब्दों को तभी साकार कर सकते जब हम अपनी क्षमता के अनुसार समाज और देश के लिए कुछ न कुछ आंशिक  योगदान देते रहें । जयहिन्द ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.03.2018

Monday 26 March 2018

Rokiye khudkushi para miletry mein : पारा मिलिट्री में खुदकुशी रोकिए जनाब

खरी खरी - 206 : पारा-मिलिट्री में खुदकुशी रोकिए जनाब !!

     एक समाचार के अनुसार  पारा-मिलिट्री ( बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी सहित अन्य पुलिस ) में पिछले 6 वर्षों में 600 से भी अधिक जवानों ने खुदकुशी की है जबकि प्रतिवर्ष लगभग 10 हजार जवान पूर्ण सेवा से पूर्व नौकरी छोड़कर जा रहे हैं । यह चौकाने वाली सूचना गृहमंत्रालय की ओर से संसदीय समिति के सामने रखी गई है ।

     जवानों द्वारा इस खुदकुशी का कारण - समय से अवकाश नहीं मिलना, दीर्घकाल तक परिवार से दूर रहना, अकेलापन,  बात करने की समुचित सुविधाओं की कमी बताया जा रहा है । यह भी सत्य है कि जवानों को बहुत विषम परिस्थितियों में दुर्गम क्षेत्रों में तैनात रहना पड़ता है जिस कारण वे यदाकदा मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं ।

     खुदकुशी करना किसी भी हालत में अनुचित है । जवान यह पहले से ही जानते हैं कि उनकी सेवाएं कठिनाई से भरी हैं । इसे एक चैलेंज की तरह लिया जाना चाहिए । साथ ही सरकार को सिस्टम की कमियों को भी दूर करते हुए सेवाओं में सुधार के साथ ही सुविधाओं को बढ़ाया जाना चाहिए । जब इन सेवाओं में भर्ती होती हैं तो हजारों की संख्या में युवा पहुंचते हैं फिर ऐसा क्यों होता है कि जवान खुदकुशी करते हैं या समय-पूर्व सेवा छोड़ देते हैं ? इस ओर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि हमारे जवानों का मनोबल उच्च रहे और वे निश्चिन्त होकर देश की  सेवा में अपना सर्वोत्तम योगदान दे सकें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.03.2018

Sunday 25 March 2018

Kumauni dohe : कुमाउनी दोहे

मीठी मीठी -  93  :  सात दोहे ( कुमाउनी में )

कविता मन कि बात बतैं,
कसै उठी हो उमाव ।
बाट भुलियां कैं बाट बतैं,
ढिकाव जाई कैं निसाव ।।

द्वि आंखर हँसि बेर बलौ,
बरसौ अमृत धार ।
गुस्सम निकई कड़ू आंखर,
मन में लगूनी खार ।।

लालच जलंग पाखंड झुटि,
राग- द्वेष  अहंकार ।
अंधविश्वास अज्ञान भैम,
डुबै दिनी मजधार ।।

धरो याद इज बौज्यू कैं,
शिक्षक सिपाइ शहीद ।
दुखै घड़िम लै भुलिया झन
धरम करम उम्मीद ।।

याद धरण उ मनखी चैंछ,
मदद हमरि करी जैल ।
हमूल मदद जो कैकि करि,
उकैं भुलण चैं पैल ।।

देश प्रेम जति घटते जां,
कर्म संस्कृति क नाश ।
निहुन कभैं भल्याम वां,
सुख शांति हइ टटास ।।

तमाकु सुड़ति शराब नश,
गुट्क खनि धूम्रपान ।
चुसनी माठु माठु ल्वे वीक,
बैमौत ल्ही ल्हिनी ज्यान ।।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.03.2018
कविता संग्रह 'मुकस्यार'

Saturday 24 March 2018

Ramnavi : रामनवमी राम का नाम

खरी खरी- 205 : रामनवमी पर राम जी की बात

    आज 25 मार्च 2018 को हम सब राम- नवमी मना रहे हैं । बहुत बड़े लेख की जरूरत नहीं है क्योंकि राम के बारे में हम सब जानते हैं ।

     राम के बारे में जानते तो हैं परन्तु उनके बताए मार्ग पर नहीं चलते । राम की तरह हम निषाद-सबरी को गले नहीं लगाते । हम पर्यावरण पर भी ध्यान नहीं दे रहे और न हमें उस राम-राज्य की चिंता है जिस में सामाजिक न्याय और सामाजिक सौहार्द को प्रमुखता दी जाती थी । राम-भक्त हनुमान जी की तरह हम में सेवा-भाव भी नहीं है । हो सके तो इस पर विनम्रता से मंथन करें क्योंकि राम जी संयम, विनय, सामंजस्य, सौहार्द और शिष्टाचार तथा कर्म के प्रतीक हैं  ।

एक गीत भी हमें यही शिक्षा दे रहा है -

'देखो वो दिवानों
तुम ये काम न करो,
राम का नाम
बदनाम न करो ।'

रामनवमी की सभी मित्रों को शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.03.2018

T B Education : टी बी जागृति दिवस 24 मार्च

बिरखांत- 205 : 24 मार्च विश्व टी बी दिवस (क्षय रोग जागृति )

(प्रचार माध्यमों में बिग बी रोज कह रहे हैं, " इंडिया vs टी बी के युद्ध में TB हारेगा देश जीतेगा ।" )

(हम क्या कर सकते हैं ? हम किसी भी लगातार खांसने वाले व्यक्ति से इतना तो कह सकते हैं कि भाई किसी सरकारी अस्पताल में एक एक्सरे करा ले, बस ।)

     मैंने पहली बार आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कालेज पुने में वर्ष 1968 में पहली बार टी बी (क्षय या तपेदिक रोग) का नाम सुना | प्रशिक्षण में बताया गया कि यह एक खतरनाक संक्रामक बीमारी है और प्रत्यक्ष या परोक्ष  छुआछूत से फैलती है | तब टी बी के रोगी से लोग बात करना और उसे घर में रखने से परहेज करते थे | कालान्तर में मुझे कई क्षय रोगियों की सेवा का अवसर मिला जब कि लोग उनके पास जाने से घबराते थे | अपना बचाव करते हुए कोइ भी उनके साथ सकुशल रह सकता है और निरन्तर उचित दवा लेते रहने से रोगी भी ठीक हो सकता है |

   क्षय रोग को ट्यूबरकुलोसिस भी कहते हैं जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूब्रीकल नाम के बैक्टीरिया से फैलता है | इस बैक्टीरिया की खोज डा. रॉबर्ट कोच ने 24 मार्च 1882 में की थी । यह रोग किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकता है | यह रोग 80 प्रतिशत फेफड़ों (पल्मोनरी टी बी ) को ग्रसित करता है जबकि शरीर के किसी भी हिस्से जैसे गुर्दे, हड्डी, आंत, गर्भाशय आदि में भी हो सकता है |

      रोग के मुख्य लक्षण हैं लगातार सूखी खांसी, बुखार, वजन कम होना, रात को पसीना आना, छाती में दर्द, भूख कम लगना और छोटी छोटी सांस लेना | यह एक मध्यम गति का संक्रामक रोग है जो हवा से (सांस द्वारा) फैलता है | रोगी के फेफड़े में अड्डा बनाए रोगाणु उसकी सांस से, खासने से या छींक से बाहर आते हैं जिससे उसकी नजदीकी हवा रोगाणुयुक्त हो जाती है | उस हवा को जब स्वस्थ व्यक्ति सांस लेता है तो ये रोगाणु उसके फेफड़े में परवेश कर उसे रोगी बना सकते हैं |

     रोगी के थूक में भी ये रोगाणु होते हैं और शरीर से निकले अन्य अवयओं में भी रोगाणु हो सकते हैं | उक्त लक्षण यदि किसी में हों तो उसे चिकित्सक के पास जाकर जांच करनी चाहिए | एक्सरे तथा थूक की जांच से ही रोग की पुष्टि होती है | विश्व स्वाथ्य संगठन के वर्ष 2014 के आंकलन के अनुसार हमारे देश में क्षय रोग से लगभग 22 लाख लोग ग्रसित हैं जबकि इस रोग से देश में प्रतिवर्ष 2 लाख 20 हजार मौतें होती हैं जो विश्व में सबसे अधिक है | रोगियों का सही अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि कई लोग निजी अस्पतालों में भी उपचार कराते हैं और कुछ लोग उपचार कराते ही नहीं अर्थात नीम-हकीमों या टोटका मास्टरों के पास जाते हैं |

     क्षय रोग से बचा जा सकता है बसरते लोगों को इसकी जानकारी हो | यह रोग गरीबी से भी जुड़ा है क्योंकि झुग्गी बस्तियों तथा दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक लोग इस रोग के शिकार हो सकते हैं | गरीबी के कारण मुख्य समस्या हवादार मकान की होती है | गन्दगी भरे भीड़- भाड़ के क्षेत्रों तथा एक ही कमरे में कई लोगों के आवास से इस रोग का संक्रमण अधिक होता है | साथ ही उनका भोजन भी संतुलित और पूर्ण नहीं होता | धूम्रपान, हुक्का, नशा, तम्बाकू पदार्थ के सेवन से भी क्षय रोग हो सकता है | हुक्का पीने वालों में यदि एक व्यक्ति भी रोगी हो तो अन्य सांझा हुक्का पीने वाले भी टी बी के शिकार हो सकते हैं |

      चिकित्सकीय जांच में यदि साबित हो जाय की अमुक व्यक्ति को क्षय रोग है तो उसका उपचार बहुत सरल जो सरकारी टी बी अस्पतालों एवं निजी उपचार केंद्र में उपलब्ध हैं | सरकारी क्षय रोग नियंत्रण केंद्र से मुफ्त में इलाज होता है जिसे DOTS (directly observed treatment short course ) उपचार कहते हैं | यह कोर्स छै से नौ महीने का होता है जिससे रोगी पूर्ण रूपेण स्वस्थ हो जाता है | देश में पहले राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण प्रोग्राम था जो अब नेसनल स्ट्रेटेजिक प्लान 2012-17 के रूप में चल रहा है |

    क्षय रोग से बचने के लिए बी सी जी टीका बच्चों को जन्म से तीस दिन के अंदर सरकारी टीकाकरण केंद्र में मुफ्त लगाया जाता है जबकि निजी अस्पतालों में भी यह टीका उपलब्ध है |  यदि हम स्वच्छता रखें, प्रत्यक्ष एवं परोक्ष धूम्रपान और नशा न करें, हवादार (क्रॉस वेंटीलेसन ) आवास में रहे, बच्चों के जन्म पर ही टीका लगवाएं तथा स्वच्छ संतुलित भोजन लेते रहे तो क्षय रोग से बच सकते हैं | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.03.2018

Tum raah dikhate ho : तुम राह दिखाते हो

मीठी मीठी - 92 : तुम राह दिखाते हो

( मेरे कुछ मित्र कहते हैं कि मैं केवल खरी खरी ही सुनाता हूँ । ऐसा नहीं है, मैं मीठी मीठी और बिरखांत भी सुनता हूँ । आज एक भजन/प्रार्थना प्रस्तुत है  'तुम राह दिखाते हो ।' )

तुम राह दिखाते हो
तुम ज्योति जगाते हो,
भटके हुए मेरे मन को
प्रभु जी थाह दिलाते हो ।

जब -जब मेरे
मन में प्रभु जी
अंधियारा घिर आया,
देर नहीं की आकर तुमने
ज्ञान का दीप जलाया,
सुख-दुख जीवन
के पहलू हैं
तुम्हीं बताते हो । तुम...

संकट के बादल छिटकाये
क्रोध की अग्नि बुझाई,
भंवर से तुमने
मुझे निकाला
खुद पतवार बनाई,
मेरे मन की चंचल नैया को
तुम पार लगाते हो । तुम...

जीवन मेरा
सफल हो जाये
तुम्हरी कृपा पा जाऊं,
फल की आस
जगे नहीं मन में
कर्म पै बलि बलि जाऊं,
कर्म ही मेरा दीन धरम
संदेश बताते हो । तुम...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.03.2018

Thursday 22 March 2018

Bhagt singh : भगत सिंह राजगुरु सुकदेव

मीठी मीठी - 91 : अमर शहीदों को नमन

    आज के दिन 23 मार्च 1931 को अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुकदेव को पुलिस सुपरटेंडेंट सॉन्डर्स की हत्या के आरोप में अंग्रेजों ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया । रात के अंधेरे में इनके पार्थिव शवों को गंडासिंघ वाला गांव में अग्नि-समर्पित करके राख को फिरोजपुर के पास सतलज नदी में बहा दिया ।

     बाद में स्वतंत्रता के बाद हुसैनीवाला पर इनका स्मारक बनाया गया । 1971 के युद्ध के दौरान  इन पंक्तियों के लेखक को इस पुण्य-स्थल के दर्शन कर वहां शीश झुकाने का अवसर मिला । इन अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23 मार्च 2018

Jal diwas : जल दिवस 22 मार्च

खरी खरी - 204 : विश्व जल दिवस-बिन पानी सब सून

    विश्व में पानी की कमी को देखते हुए 22 मार्च 1992 को रियोडीजेनेरो में प्रतिवर्ष इस दिन 'जल दिवस' मनाए जाने की घोषणा की गई । आज भी दुनिया के डेड़ अरब से अधिक लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है । नदी, तालाब, चश्मे, कुएं पहले ही रसायनों की भेंट चढ़ चुके हैं । वर्षा जल को हम संरक्षित नहीं कर पा रहे हैं । जमीन के अंदर के पानी का स्तर गिर रहा है । एक टन अनाज उत्पादन के लिए एक हजार टन पानी की आवश्यकता होती है । कल 22 मार्च को कितने लोगों ने जल दिवस मनाते हुए जल -जागृति की हम कह नहीं सकते ?

      एक ही रास्ता है कि हम पानी की उपयोगिता को समझते हुए पानी बचाएं अर्थात कम पानी प्रयोग करें और पानी की बरबादी न होने दें । 'बूंद बूंद से घड़ा भरता है ' यह हम जानते हुए भी अपने घर में कपड़े धोने, नहाने, बर्तन धोने, गाड़ी धोने में बहुत पानी बरबाद करते हैं । दाड़ी बनाते समय और दांत ब्रश करते समय भी हम नल खुला छोड़ देते हैं ।  कल्पना करिये जब पानी नहीं रहेगा तो हम जीवित नहीं रह सकेंगे । इसलिए 'जल ही जीवन है' वाली बात को गंभीरता से मंथन करें और अपनी भावी पीढ़ी के लिए भी कुछ जल छोड़ जाएं । रहीम जी ने हमें बहुत पहले चेताया है-

रहीमन पानी राखिये
बिन पानी सब सून,
पानी गए न ऊबरे
मोती मानुष चून ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.03.2018

Bhagwaan kee baat : भगवान की बात

बिरखांत -204 : 'भगवान' जी की अपनी बात

        जी मैं :भगवान' आपको अपनी बात बता रहा हूं | कुछ लोग मुझे मानते हैं और कुछ नहीं मानते | जो मानते हैं उनसे तो मैं अपनी बात कह ही सकता हूं | आप ही कहते हो कि कहने से दुःख हलका होता है | आप अक्सर मुझ से अपना दुःख-सुख कहते हो तो मेरा दुःख भी तो आप ही सुनोगे | आपके द्वारा की गयी मेरी प्रशंसा, खरी-खोटी या लांछन सब मैं सुनते रहता हूं और अदृश्य होकर आपको देखे रहता हूं | आपकी मन्नतें भी सुनता हूं और आपके कर्म एवं प्रयास भी देखता हूं |

      आप कहते हो मेरे अनेक रूप हैं | मेरे इन रूपों को आप मूर्ति-रूप या चित्र-रूप देते हो | आपने अपने घर में भी मंदिर बनाकर मुझे जगह दे रखी है | वर्ष भर सुबह-शाम आप मेरी पूजा-आरती करते हो | धूप- दीप जलाते हो और माथा टेकते हो | दीपावली में आप मेरे बदले घर में नए भगवान ले आते हो और जिसे पूरे साल घर में पूजा उसे किसी वृक्ष के नीचे लावारिस बनाकर पटक देते हो या प्लास्टिक की थैली में बंद करके नदी, कुआं या नहर में डाल देते हो | वृक्ष के नीचे मेरी बड़ी दुर्दशा होती है जी | कभी बच्चे मुझ पर पत्थर मारने का खेल खेलते हैं तो कभी कुछ चौपाए मुझे चाटते हैं या गंदा करते हैं | "

     "आप मेरे साथ ऐसा वर्ताव क्यों करते हैं जी  ? अगर यही करना था तो आपने मुझे अपने मंदिर में रखकर पूजा ही क्यों ? अब मैं आपका पटका हुआ अपमानित भगवान आप से विनती करता हूं कि मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करें | जब भी आप मुझे अपने घर से विदा करना चाहो तो कृपया मेरे आकार को मिट्टी में बदल दें अर्थात मूर्ति को तोड़ कर चूरा बना दें और उस चूरे को आस-पास ही कहीं पार्क, खेत या बगीची में भू-विसर्जन कर दें अर्थात मिट्टी में दबा दें | जल विसर्जन में भी तो मैं मिट्टी में ही मिलूंगा | भू-विसर्जन करने से जल प्रदूषित होने से बच जाएगा | इसी तरह मेरे चित्रों को भी चूरा बनाकर भूमि में दबा दें | "

     "मेरे कई रूपों के कई प्रकार के चित्र हर त्यौहार पर विशेषत: नवरात्री और रामलीला के दिनों में समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में भी छपते रहे हैं | रद्दी में पहुंचते ही इन अखबारों में जूते- चप्पल, मांस- मदिरा सहित सब कुछ लपेटा जाता है | मेरी इस दुर्गति पर भी सोचिए | मैं और किससे कहूं ? जब आप मुझ से अपना दर्द कहते हैं तो मैं भी तो आप ही से अपना दर्द कहूंगा | मेरी इस दुर्गति का विरोध क्यों नहीं होता, यह मैं आज तक नहीं समझ पाया ? मुझे उम्मीद है अब आप मेरी इस वेदना को समझेंगे और ठीक तरह से मेरा भू-विसर्जन करेंगे | सदा ही आपके दिल में डेरा डाल कर रहने वाला आपका प्यारा ‘भगवान’ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.03.2018

Tuesday 20 March 2018

Suno mukhy mantree : सुनो मुख्यमंत्री

खरी खरी - 203 : सुनो मुख्यमंत्री जी !!!

(सुना है गैरसैण में विधानसभा का अधिवेसन हो रहा है ।)

     मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ज्यू, चारों ओर, सर्वत्र, पहाड़- मैदान कहीं भी, सब जगह 'गैरसैण -गैरसैण' हो रही है ।  पहाड़ की आवाज और पहाड़ की आत्मा को मत दबाओ मुख्यमंत्री जी । 9 ने तो नहीं सुनी, आप 10वें हो त्रिवेंदा । करो हिम्मत गैरसैण राजधानी घोषित कर दो ।

     इतिहास याद रखेगा आपको देवेगौड़ा जी की तरह जिन्होंने ने लालकिले से राज्य की घोषणा की थी ।  यह तो पहाड़ की पुकार है । एक लोकप्रिय नेता बनने की घड़ी आपके सामने है । कैसे आप याद किये जाओगे यह आप एक बार सोचिए तो सही त्रिवेंदा !! इतिहास कहेगा, "त्रिवेंद्र रावत ने बनाई राजधानी गैरसैण ।"  अर्जुन बनिये सर, उठाइये तीर और वेध दीजिये लक्ष्य । आपको शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.03.2018

Kumbh snaan : कुंभ स्नान

खरी खरी - 202 : कुंभ स्नान

बाबा -संत - स्वामी
बैरागी तांत्रिक औघड़
भीड़ तांता रेला
दुकान दर्शक दर्शन
आया कुंभ मेला ।

नहा लिया कुंभ
मिल गया फल
कट गए पाप
एक डुबकी से
अपने आप ।

बिका अंधविश्वास
पनपा रुढ़िवाद
नदिया के द्वार
खूब चली झोली
मन्नत की दुकान ।

चर्चा से दूर
पर - पीड़ा- पाप
परोपकार- पुण्य
प्रदूषण -विसर्जन
प्रकृति -निराकार ।

ईर्ष्या राग-द्वेष लूट
भ्रष्टाचार नशा घूस
मिलावट उत्पीड़न
अकर्मण्यता दुष्कर्म
स्नान से बेअसर ।

पाप काटने गए
कट गई जेब
लूटने के बाद
नजर आया
लुटेरों का फरेब ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.03.2018

Hamar naan हमार नान

खरी खरी - 201 : हमार नान

पैलिबै नान अठार
साल में बालिग हुंछी
आब आठ साल में
ज्वान हूं फैगीं,
टेलिविज़न ल नान
सायण बनै हलीं
ठुलां क समझणी बात
नान समझै फैगीं ।

नान बखत है
पैली ज्वान हैगीं
गिचल लै बलानी
हरकत लै करैं फैगीं,
पैली बै मै - बाप
नना पर नजर धरछी
आब नान मै- बाप पर
नजर धरैं फैगीं ।

नना में इस्कूली जास
गुण खतम छीं
फैशन क जोर
बेखौप बढ़ते जांरौ,
लच्छण जो इस्कूलियाँ
में पाई जांछी
उ शील स्वभाव
दिनोदिन घटते जांरौ ।

फिर लै हिम्मत करो
नना कैं भली समझौ
देर सबेर जरूर सुधरौल
निराश नि हौ,
हाम बिगड़ी बहोड़ियाँ
कैं लै नि छोड़न
मनखियौक पोथिल छ
सपड़ौल, पहौर लगौ ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.03.2018

Nav samvtsar : नव संवत्सर

मीठी मीठी - 89 : नव वर्ष नव- संवत्सर आरम्भ

       भारत  का नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 18 मार्च 2018 आज आरम्भ हो रहा है ।  आज भी हमें एक-दूसरे को शुभकामना देनी चाहिए । देश में मुख्य तौर से प्रति वर्ष तीन नव -वर्ष मनाये जाते हैं | पहला 1 जनवरी को जिसकी पूर्व संध्या 31 दिसंबर को मार्केटिंग के बड़े शोर-शराबे के साथ मनाई जाते है | 1 जनवरी का शुभकामना संदेश भी बड़े जोर-शोर से भेजा जाता है ।  यह नव -वर्ष भारत सहित अंतरराष्ट्रीय जगत में सर्वमान्य हो चुका है |

     दूसरे नव- वर्ष को विक्रमी सम्वत कहते हैं जो ईसा पूर्व 57 से मनाया जता  है | 2018 में वि.स. 2075 है जो 18 मार्च 2018 से आरम्भ हो रहा है । आज से ही नव संवत्सर भी आरम्भ है जिसका नाम 'विरोधी' है । तीसरा नव वर्ष साका वर्ष है जो 78 ई. से आरम्भ हुआ अर्थात यह वर्तमान 2018  से 78 वर्ष पीछे है | इसका वर्तमान वर्ष 1939 है |

      भारत एक संस्कृति बहुल देश है जहां कई संस्कृतियाँ एक साथ फल-फूल रहीं हैं | यहां लगभग प्रत्येक राज्य में अलग अलग समय पर नव वर्ष मनाया जाता है | अनेकता में एकता का यह एक विशिष्ट उदाहरण है | हमारे देश ‘भारत’ का नाम अंग्रेजी में ‘इंडिया’ है | कई लोग कहते हैं कि हमारे देश का नाम सिर्फ और सिर्फ ‘भारत’ होना चाहिए | पड़ोसी देशों के नाम अंग्रेजी में भी वही हैं जो वहां की अपनी भाषा में हैं | ‘इंडिया’ शब्द ‘इंडस’ से आया | ‘इंडस’ शब्द ‘हिंदु’ से आया और ‘हिंदु’ शब्द ‘सिन्धु’ से आया (इंडस रिवर अर्थात सिन्धु नदी ) | ग्रीक लोग इंडस के किनारे के लोगों को  ‘इंदोई’ कहते थे |

      जो भी हो यदा कदा यह प्रश्न बना रहता है कि एक देश के दो नाम क्यों ? देश में कुछ लोग ‘इंडिया’ को अमीर और ‘भारत’ को गरीब भी मानते हैं अर्थात इंडिया मतलब ‘शहरीय भारत’ और भारत मतलब ‘ग्रामीण भारत’ | हमारा देश सिर्फ ‘भारत’ ही पुकारा जाय तो अच्छा है | सभी मित्रों को नव वर्ष की शुभकामनाएं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.03.2018

Friday 16 March 2018

Shahar ka park :शहर का पार्क

खरी खरी - 200 : शहर का पार्क

क्रिकेटियों ने पार्क की
हरियाली कर दी उजाड़,
कहीं विकेट ईंटों से बनाए
कहीं बनी ट्री गार्ड उखाड़ ।

लावारिश पशु की टोली
घूम-घूम कर चर रही,
कहीं फुटबॉल खिलाड़ी
कहीं साइकिल चल रही ।

पोस्टर टांगे पेड़ों पर
ठोक अगिनत परेक,
रोकने वाला कोई नहीं
देखने वाले अनेक ।

अकड़ पार्क में चल रहा
श्वान मालिक श्वान संग,
श्वान शौच जँह तँह कराए
खुद करे लोगों से जंग ।

कहीं पन्नी गुटके की फैंकी
सिगरेट बिड़ी दी कहीं फैंक,
प्लास्टिक थैली प्लेट दोना
गिलास बोतल कहीं रही रैंग ।

तास टुकड़े कहीं बिखरे
फल छिलके पड़े कहीं,
सांझ होते झुंड शराबी
हो मदहोश गिरते जमी ।

जो भी जन यहां सैर करे
दृश्य उसे नहीं भाता,
किसको रोके क्योंकर टोके
चुप्पी साधे जाता ।

हमने पार्क को अपना न समझा
जाना इसे सरकारी,
सुन्दर स्वच्छ बनाएं इसको
समझी न जिम्मेदारी ।

खोलो अपने मुंह का ताला
धर धीरज इन पर शब्द जड़ो,
दर्शक मूक बने रहो मत
पार्क बचाने आगे बढ़ो !!

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.03.2018