Saturday 31 July 2021

Pati patni ki dosti : पति पत्नी की दोस्ती

खरी खरी- 899 :  पति -पत्नी की दोस्ती ?

     पत्नी के बारे में सोसल मीडिया में बहुत हास्य है । कुछ पचनीय तो कुछ अपचनीय भी है । पत्नी उतनी खराब भी नहीं होती जितना प्रोजेक्ट किया जाता है । हास्य लाने के साथ यह भी ध्यान रहे कि कहीं उधर से नफरत न उगने लगे और कुटान हो जाय ?

     जब पत्नी की बात आती है तो हमें तिलोतम्मा और रत्नावली की याद आती है जिन्होंने अपने पति कालिदास और तुलसीदास को अमर कर दिया । हमें केकई और सावित्री की भी याद आती है जिनमें केकई ने तो दशरथ के प्राण ले लिए और सावित्री सत्यवान के गए प्राण वापस ले आई ।

     किसको कैसी पत्नी मिलती है यह उसकी लाट्री है । लाट्री पत्नी के लिए भी है कि उसे कैसा पति मिलता है । जैसी भी पत्नी मिले एडजस्ट तो करना ही होगा । एक व्यक्ति अपनी पत्नी से परेशान था और बोला, "वाइफ इज ए नाइफ हू कट द लाइफ" अर्थात पत्नी वह चाकू है जो जिंदगी का कत्ल कर देती है । दूसरा व्यक्ति अपनी पत्नी से खुश था और बोला, "दियर इज नो लाइफ विदाउट वाइफ" अर्थात पत्नी के बिना जिंदगी है ही नहीं ।"

     पत्नी पर आये क्रोध में शीतलता के दो छीटे इस तरह डाले जा सकते हैं "कुछ भी हो यार ये मेरे बच्चों की मां है,  इसी ने तो मुझे बाप बनाया है ।" पत्नी से हमारा रिश्ता जग जाहिर है । नर के घर, नारायण के घर और कानूनी तौर से भी वह हमारी पत्नी है । सबसे बड़ी बात यह है कि क्या पत्नी पति की दोस्त भी है ? यदि दोस्त है तो फिर जिन्दगी का नजारा ही कुछ और है । यदि दोस्त नहीं है तो उसे दोस्त बनाने में ही जिंदगी गेंदा फूल है । दोस्ती का हाथ पति ने बढ़ाना है । जी हां, पहल पति की तरफ से ही होनी है । इसमें कोई किन्तु परन्तु अगर मगर नहीं है।  इस तरह से -

"पत्नी तू भार्या ही नहीं है
मित्र बंधु और शखा है तू,
जीवन नाव खेवैया तू है
वैद हकीम दवा भी तू ।"

(नोट - शराबी पति अपना हिसाब खुद देखें। वैसे कोई पत्नी नहीं चाहती कि उसका पति घुटुक लगाए।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.08.2021

Friday 30 July 2021

Premchand : प्रेमचंद

स्मृति - 625 : मुंशी प्रेमचंद, 141वीं जयंती

      मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय  उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा।

      प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। मुंशी जी के बारे में मैंने कुछ शब्द अपनी पुस्तक " लगुल " में लिखे हैं जो यहां उद्धृत हैं।  आज 31 जुलाई 2021 को उनकी 141वीं जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। (लेख के कुछ संपादित अंश सोसल मीडिया से साभार।)

पूरन चन्द्र कांडपाल
31.07.2021

Thursday 29 July 2021

BHOO KANOON : भू कानून , कुमाउनी।

खरी खरी - 898 : भू - कानून

उत्तराखंड में जल्दी है
ल्यौ तुम भू - कानून,
किलै घु़सै रईं सरकारल
कान में पिरुवा बून,

कान में पिरुवा बून
तुम सोचण के रौछा ?
देवभूमिकि ज -जमीन
बेचण किलै रौछा ?

कूंरौ 'पूरन' जमीन खरीदणक
हूं रौ विरोध प्रचंड,
रद्द करो अध्यादेश कैं
नि बेचो उत्तराखंड ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.07.2021

Bhoo kanoon : भू कानून

खरी खरी - 897 : भू - कानून

उत्तराखंड में जल्दी से
तुम लाओ भू - कानून,
क्यों घुस गए सरकार के
कान में पिरुवा बून,

कान में पिरुवा बून
क्या सोच रहे हो ?
देवभूमि की भू-संपदा
क्यों बेच रहे हो ?

कह 'पूरन' भूमि खरीद का
हो रहा विरोध प्रचंड,
रद्द करो अध्यादेश को
मत बेचो उत्तराखंड।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.07.2021

Tuesday 27 July 2021

Bachchon mei berukhi : बच्चों में बेरूखी

खरी खरी - 896 : बच्चों में बढ़ती बेरुखी 


     अक्सर हम हर किसी के मुंह से सुनते हैं कि “बच्चों में  (विशेषतः किशोर-किशोरियों में ) बहुत बदलाव आ गया है | बच्चे हमारी नहीं सुनते, बच्चे बिगड़ गए हैं, अपने मन की करते हैं, टी वी मोबाइल में खो गए हैं, किसी परिचित को नमस्ते तक नहीं करते, आदि आदि | ये सभी बातें लगभग सत्य हैं | इस बीच कुछ पारिवारिक/ सामाजिक समारोहों में जाने का अवसर मिला जहां अधिकांश परिचित समूह था जिनमें बच्चे भी थे | कुछ को छोड़ कर अधिकांश ने इस तरह मुंह फेरा कि जैसे वे जानते हीं नहीं थे अर्थात जानकर भी अनजान बन गए | उनकी चुप्पी पर हम चुप नहीं रहे | जो बिलकुल सामने से गुजरा उससे पूछ ही लिया, “कैसे हो बेटा या बेटी ?” रूखा  सा जबाब (“ठीक हूं” ) देकर आगे बढ़ गए | अभिवादन करना शायद उन्होंने आवश्यक नहीं समझा | स्पष्ट था कि वे बोलना ही नहीं चाहते थे | इस तरह की बेरुखी आजकल अधिकांश बच्चों में देखी जा सकती है | यह बेरुखी एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है अगर कोई इस बात को समझे तो |

     कुछ वर्ष पहले अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद के बलिदान दिवस पर एक कार्यक्रम में भी कुछ इसी उम्र के बच्चे देखे | यहां भी परिचित /अपरिचित बच्चे थे परन्तु व्यवहार बिलकुल भिन्न था | बच्चों में विनम्रता देखी, अभिवादन करने के संस्कार देखे और वह बहुत कुछ देखा जिससे निराशा के कुछ बादल छंट गए | इन्हें हमने सामाजिक जिम्मेदारी और प्रतिभागिता निभाते हुए भी देखा | यह एक दिन के लिए नहीं था बल्कि उन बच्चों में रच- बस गया था | उनमें बड़ों के प्रति विनम्र भाव था, शहीदों के प्रति श्रद्धा थी और स्वावलंबन- स्वाभिमान की चमक थी | ऐसे बच्चों को देख कर मन का प्रफुल्लित होना स्वाभाविक था |

      हमारे घरों में भी इसी उम्र के बच्चे हैं | यह तो आप /हम जानें कि वे कैसे हैं ? यदि वे मर्यादित हैं, अनुशासित और संस्कारित हैं, उनकी भाषा शिष्ट है, वे बड़ों से आदर अथवा विनम्रता से बोलते हैं, प्रात: जल्दी उठते हैं, पढ़ना- लिखना, खेलना- खाना सब समय और नियम से है, आपकी आज्ञा का पालन करते हैं, समाज- देश हित की बात को समझते हैं, सामाजिकता में उनके कदम बढ़ते हैं, त्यौहार या समारोहों में भागीदारी निभाते हैं, पर्यावरण और स्वच्छता प्रेमी हैं, अपनी वस्तुओं की कद्र करते हैं अथवा उन्हें संभाल कर रखते हैं, घरेलू काम में हाथ बटाते हैं, आज्ञा लेकर ही कहीं जाते हैं, अपने विद्यालय और अध्यापकों का आदर करते हैं तो आपके बच्चे सही दिशा में गतिमान हैं, उनका भविष्य उज्ज्वल है और वे अपने परिश्रम, लगन और हिम्मत से एक दिन अवश्य सफल होंगें तथा आपको अवश्य गौरवान्वित करेंगे | ( कोरोना काल में बच्चों की सामाजिकता बहुत कम हो गई क्योंकि स्कूल भी बंद हैं।)

     यदि उक्त गुणों की आपके बच्चों में कमी है तो यह जरूर चिंता का विषय है | आज ही से उनके लिए समय निकालिए और उन्हें इन गुणों से विभूषित करिए क्योंकि ये बाजार से खरीद कर नहीं दिए जा सकते |धन होने पर भी बाजार से संस्कृति, सदाचार, सभ्यता, ज्ञान, खुशी, मुस्कान, भूख, नींद और भगवान नहीं खरीदे जा सकते क्योंकि ये सब बाजार में नहीं मिलते । इनकी आपूर्ति अभिभावकों को ही करनी होती है । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
 28.07.2021

Monday 26 July 2021

kalam Ankal : कलाम अंकल

स्मृति - 623 : बेमिसाल थे कलाम अंकल : आज पुण्यतिथि

     देश के पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न,मिज़ाइल मैन ए पी जे (अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन) अब्दुल कलाम का जन्म 15.10.1931 को धनुषकोटि तमिलनाडु में और निधन शिलांग में 27.07.2015 को हुआ । वे 84 वर्ष तक जीवित रहे और अंतिम क्षण तक पढ़ाते रहे । वे एक विख्यात व्याख्याता थे । उन्होंने बच्चों से लेकर बड़ों को भी पढ़ाया । बच्चे उन्हें प्यार से कलाम अंकल कहते थे ।

      जब मैंने 2002 में "ये निराले" पुस्तक लिखी तब कलाम साहब राष्ट्रपति नहीं थे । पुस्तक में उन पर "मिज़ाइल मैन" के नाम से चर्चा है । वे 25.07.2002 को राष्ट्रपति बने । मैंने कोरियर द्वारा उन्हें राष्ट्रपति भवन में "ये निराले" पुस्तक भेजी । पुस्तक प्राप्ति पर कलाम साहब ने मुझे धन्यवाद के साथ पावती भिजवाई और पुस्तक को राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय में रखवा दिया गया है, यह सूचना भी भिजवाई। इस पुस्तक में 11 निराले व्यक्तियों की चर्चा है जिनमें एपीजे भी एक हैं ।

      कलाम साहब अविवाहित ही रहे । व्यस्तता के कारण समय से निकाह पर नहीं पहुंच सके और उसके बाद निकाह की घड़ी जीवन में फिर नहीं आई, अविवाहित ही रह गए । जब वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो एक अटैची और कुछ पुस्तकें उनके साथ थी । 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद वे इतने ही सामान के साथ वापस लौट गए । वे बहुत ही सादगी प्रिय महामानव थे । उनसे जुड़ी कुछ बातें  प्रस्तुत हैं ।

     एक बार कलाम साहब के 50- 60  रिश्तेदार उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आए । उनके आने- जाने और रहने  - खाने का सारा खर्च कलाम साहब ने अपनी जेब से दिया । उन्होंने इन मेहमानों के लिए सरकारी वाहन भी प्रयोग नहीं होने दिए । एक सप्ताह बाद जब उनके रिश्तेदार चले गए तो उन्होंने अपने निजी खाते से इस सारी व्यवस्था के खर्च का 3 लाख 54 हजार 924 रुपये का भुगतान किया जबकि उनके मेहमानों की व्यवस्था सरकारी खर्च पर भी हो सकती थी । सार्वजनिक जीवन में इस तरह के उदाहरण भारत में बहुत कम देखने- सुनने को मिलते हैं ।

     राष्ट्रपति बनने के बाद जब वे पहली बार केरल  पहुंचे तो वहां उनके ठहरने का प्रबंध राजनिवास में था । वहां उनके पास आने वाला सबसे पहला मेहमान सड़क पर बैठने वाला एक मोची और एक छोटे से होटल का मालिक था । इस मोची ने कई बार कलाम साहब के जूते मरम्मत किये थे और उस छोटे से होटल में कलाम साहब ने कई बार खाना खाया था ।

     बहुत कुछ है उनके बारे में जानने के लिए । ऐसे महामानव को भूल कर भी भुलाया नहीं जा सकता । मेरी एक अन्य पुस्तक "महामनखी" में भी उनकी चर्चा है । ऐसे कालजयी मनीषी को आज उनकी पुण्यतिथि पर शत - शत प्रणाम और विनम्र श्रद्धांजलि

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.07.2021

Kargil yuddh ; कारगिल युद्ध

बिरखांत - ३८७ :  कारगिल युद्ध कि याद ( विजय दिवस : २६ जुलाई ) 

     हर साल २६ जुलाई हुणि हम ‘विजय दिवस’ १९९९ क कारगिल युद्ध में जीत कि याद में मनूनू | कारगिल भारतक जम्मू-कश्मीर राज्य में श्रीनगर बटि २०५ कि. मी. दूर श्रीनगर -लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर शिंगो नदीक दक्षिण में समुद्र सतह बटि दस हजार फुट है ज्यादा ऊंचाई पर स्थित छ | मई १९९९ में हमरि सेना कैं कारगिल में घुसपैठक पत्त चलौ | घुसपैठियों कैं खदेड़णक लिजी १४ मई हुणि आपरेशन ‘फ़्लैश आउट’ एवं २६ मई हुणि आपरेशन ‘विजय’ और कुछ दिन बाद भारतीय वायुसेना द्वारा आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ आरम्भ करिगो | यूं द्विये आपरेशनोंल कारगिल बटि उग्रवादियोंक वेश में आई पाकिस्तानी सेनाक सफाया करिगो | य युद्धक वृतांत मील आपणी किताब ‘कारगिल के रणबांकुरे’ ( संस्करण २०००) में लेखण क प्रयास करौ |

     य युद्ध ११००० बटि १७००० फुट कि ऊँचाई वाल दुर्गम रणक्षेत्र मश्कोह, दरास, टाइगर हिल, तोलोलिंग, जुबेर, तुर्तुक और काकसर सहित कएक दुसार ह्यूं ल ढकी ठुल पहाड़ों पर लड़ी गो | य दौरान सेना कि कमान जनरल वेद प्रकाश मलिक और वायुसेना कि कमान एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिसक हात में छी | य युद्ध में भारतीय सेनाल निर्विवाद युद्ध क्षमता, अदम्य साहस, निष्ठा, बेजोड़ रणकौशल और जूझण कि भौत अद्भुत शक्तिक परिचय दे | हमरि सेना में मौजूद फौलादी इराद, बलिदान कि भावना, शौर्य, अनुशासन और स्वअर्पण कि अद्भुत मिसाल शैदै दुनिय में कैं और देखण में मिलो | य युद्ध में भारतीय सेनाक जांबाजोंल न केवल बहादुरी कि पुराण परम्पराओं कैं बनै बेर धरौ बल्कि सेना कैं देशभक्ति, वीरता, साहस और बलिदान कि बेमिशाल बुलंदियों तक पुजा | य युद्ध में हमार पांच सौ है ज्यादा सैनिक शहीद हईं जमें उत्तराखंडक ७३ शहीद छी और करीब एक हजार चार सौ सैनिक घैल लै हईं |

     कारगिल युद्धक दौरान हमरि वायुसेनाल लै आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ क अंतर्गत अद्वितीय काम करौ | शुरू में वायुसेनाल कुछ नुकसान जरूर उठा पर शुरुआती झटकों क बाद हमार अगासक रखवाल झिमौडू कि चार दुश्मण पर चिपटि पणी | हमार पाइलटोंल अगास बै दुश्मणक पड्याव में यस बज्जर डावौ जैकि कल्पना दुश्मणल लै कभै नि करि हुनलि जैल य लडै कि दशा और दिशा में पुरि तौर पर बदलाव ऐगो | वायुसेना कि सधी और सटीक बम- वर्षाल दुश्मणक सबै आधार शिविर तहस-नहस है गाय | हमार जांबाज फाइटरोंल नियंत्रण रेखा कैं लै पार नि कर और जोखिम भरी सनसनी खेज करतब देखै बेर अथाह अगास में छेद करणक करशिमा करि बेर देखा | हमरि वायुसेनाल सैकड़ों आक्रमक, टोही,  युद्धक विमानों और हेलिकोप्टरोंल नौ सौ घंटों है लै ज्यादा उड़ानें भरी | युद्ध क्षेत्र कि विषमताओं और मौसमकि विसंगतियोंक बावजूद हमरि पारंगत वायुसेनाल न केवल दुश्मण कैं मटियामेट करौ बल्कि हमरि स्थल सेनाक हौसला अफजाई लै करी |

     कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता, कर्तव्यक प्रति आपूं कैं न्योछावर करण क लिजी १५ अगस्त १९९९ हुणि भारत क राष्ट्रपति ज्यूल ४ परमवीर चक्र (कैप्टन विक्रम बतरा (मरणोपरांत), कैप्टन मनोज पाण्डेय (मरणोपरांत), राइफल मैन संजय कुमार और ग्रेनेडियर योगेन्द्र यादव ( पुस्तक ‘महामनखी’ में इनरि लघु वीर-गाथा तीन भाषाओं में दगडै छ ), ९ महावीर चक्र, ५३ वीर चक्र सहित २६५ है लै ज्यादा पदक भारतीय सैन्य बल कैं प्रदान करीं | कारगिल युद्ध है पैली जम्मू -कश्मीर में छद्मयुद्ध दगै लड़णक लिजी आपरेशन ‘जीवन रक्षक’ चल रौछी जमें उग्रवादियों पर नकेल डाली जैंछी और स्थानीय जनता कि रक्षा करी जैंछी |

     हमरि तीनों सेनाओंक मनोबल हमेशा कि चार आज लै भौत उच्च छ | ऊं दुश्मणकि हर चुनौती दगै बखूबी जूझि बेर उकैं मुहतोड़ जबाब दीण में पुरि तौर पर सक्षम छ | उनर एक्कै लक्ष्य छ, “युद्ध में जीत और दुश्मनक मटियामेट |” हाम विजय दिवसक अवसर पर आपण अमर शहीदों कैं विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करि बेर शहीद परिवारोंक सम्मान करनै आपण सैन्य बल और उनार परिजनों कैं भौत- भौत शुभकामना दीण चानू और हर चुनौती में उनू दगै डटि बेर ठाड़ रौणक बचन दीण चानू | के लै भुलो पर शहीदों कैं नि भुलो ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

२७.०७.२०२१

Sunday 25 July 2021

Kargil ke ranbankure : कारगिल के रणबांकुरे

बिरखांत -  386 :कारगिल युद्ध की याद ( विजय दिवस : 26 जुलाई )  

       प्रतिवर्ष 26 जुलाई को हम ‘विजय दिवस’ 1999 के कारगिल युद्ध की जीत के उपलक्ष्य में मनाते हैं | कारगिल भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में श्रीनगर से 205 कि. मी. दूरी पर श्रीनगर -लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर शिंगो नदी के दक्षिण में समुद्र सतह से दस हजार फुट से अधिक ऊँचाई पर स्थित है |  मई 1999 में हमारी सेना को कारगिल में घुसपैठ का पता चला | घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए 14 मई को आपरेशन ‘फ़्लैश आउट’ तथा 26 मई को आपरेशन ‘विजय’ और कुछ दिन बाद भारतीय वायुसेना द्वारा आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ आरम्भ किया गया | इन दोनों आपरेशन से कारगिल से उग्रवादियों के वेश में आयी पाक सेना का सफाया किया गया | इस युद्ध का वृतांत मैंने अपनी पुस्तक ‘कारगिल के रणबांकुरे’ ( संस्करण 2000) में लिखने का प्रयास किया है |

     यह युद्ध 11000 से 17000 फीट की ऊँचाई वाले दुर्गम रणक्षेत्र मश्कोह, दरास, टाइगर हिल, तोलोलिंग, जुबेर, तुर्तुक तथा काकसार सहित कई अन्य हिमाच्छादित चोटियों पर लड़ा गया | इस दौरान सेना की कमान जनरल वेद प्रकाश मलिक और वायुसेना के कमान एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिस के हाथ थी | इस युद्ध में भारतीय सेना ने निर्विवाद युद्ध क्षमता, अदम्य साहस, निष्ठा, बेजोड़ रणकौशल और जूझने की अपार शक्ति का परिचय दिया | 

     हमारी सेना में मौजूद फौलादी इरादे, बलिदान की भावना, शौर्य, अनुशासन और स्वअर्पण की अद्भुत मिसाल शायद ही विश्व में कहीं और देखने को मिलती हो | इस युद्ध में भारतीय सेना के जांबाजों ने न केवल बहादुरी की पिछली परम्पराओं को बनाये रखा बल्कि सेना को देशभक्ति, वीरता, साहस और बलिदान की नयी बुलंदियों तक पहुँचाया | 74 दिन के इस युद्ध में हमारे पांच सौ से भी अधिक सैनिक शहीद हुए जिनमें उत्तराखंड के 74 शहीद थे तथा लगभग एक हजार चार सौ सैनिक घायल भी हुए थे |

     कारगिल युद्ध के दौरान हमारी वायुसेना ने भी आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ के अंतर्गत अद्वितीय कार्य किया | आरम्भ में वायुसेना ने कुछ नुकसान अवश्य उठाया परन्तु आरम्भिक झटकों के बाद हमारे आकाश के प्रहरी ततैयों की तरह दुश्मन पर चिपट पड़े | हमारे पाइलटों ने आसमान से दुश्मन के खेमे में ऐसा बज्रपात किया जिसकी कल्पना दुश्मन ने कभी भी नहीं की होगी जिससे इस युद्ध की दशा और दिशा में पूर्ण परिवर्तन आ गया | वायुसेना की सधी और सटीक बम- वर्षा से दुश्मन के सभी आधार शिविर तहस-नहस हो गए | हमारे जांबाज फाइटरों ने नियंत्रण रेखा को भी नहीं लांघा और जोखिम भरा सनसनी खेज करतब दिखाकर अपरिमित गगन को भी भेदते हुए करशिमा कर दिखाया | हमारी वायुसेना ने सैकड़ों आक्रमक, टोही, अनुरक्षक युद्धक विमानों और हेलिकोप्टरों ने नौ सौ घंटों से भी अधिक की उड़ानें भरी | युद्ध क्षेत्र की विषमताओं और मौसम की विसंगतियों के बावजूद हमारी पारंगत वायुसेना ने न केवल दुश्मन को मटियामेट किया बल्कि हमारी स्थल सेना के हौसले भी बुलंद किये |

     कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता, कर्तव्य के प्रति अपने को न्योछवर करने के लिए 15 अगस्त 1999 को भारत के राष्ट्रपति ने 4 परमवीर चक्र (कैप्टन विक्रम बतरा (मरणोपरांत), कैप्टन मनोज पाण्डेय (मरणोपरांत), राइफल मैन संजय कुमार और ग्रेनेडियर योगेन्द्र यादव ( पुस्तक ‘महामनखी’ में इनकी लघु वीर-गाथा तीन भाषाओं में एक साथ है ), 9 महावीर चक्र, 53 वीर चक्र सहित 265 से भी अधिक पदक भारतीय सैन्य बल को प्रदान किये | कारगिल युद्ध से पहले जम्मू -कश्मीर में छद्मयुद्ध से लड़ने के लिए आपरेशन  ‘जीवन रक्षक’ चल रहा था जिसके अंतर्गत उग्रवादियों पर नकेल डाली जाती थी और स्थानीय जनता की रक्षा की जाती थी |

     हमारी तीनों सेनाओं का मनोबल हमेशा की तरह आज भी बहुत ऊँचा है | वे दुश्मन की हर चुनौती से बखूबी जूझ कर उसे मुहतोड़ जबाब देने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं | उनका एक ही लक्ष्य है, “युद्ध में जीत और दुश्मन की पराजय |” आज इस विजय दिवस के अवसर पर हम अपने अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर शहीद परिवारों का सम्मान करते हुए अपने सैन्य बल और उनके परिजनों को बहुत बहुत शुभकामना देते हैं । आज ही हम सबको हर चुनौती में इनके साथ डट कर खड़े रहने की प्रतिज्ञा भी करनी चाहिए । वर्ष 2001 में प्रकाशित मेरी पुस्तक " कारगिल के रणबांकुरे " कारगिल युद्ध के रणबांकुरों को समर्पित है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल


26.07. 2021


Saturday 24 July 2021

Shreedev suman : श्रीदेव सुमन

स्मृति - 622 : 25 जुलाई श्रीदेव सुमन  स्मरण दिवस 

      उत्तराखंडक क्रांतिवीर, अमर शहीद श्रीदेव सुमन ज्यूक आज बलिदान दिवस छ । 25 जुलाई 1944 हुणि तत्कालीन रियासतक  राजक खिलाफ 84 दिनक अनशनक दौरान उनर देहावसान हौछ । उनर जन्म 25 मई 1915 हुणि टिहरी उत्तराखंडक जौल गांव में हौछ । ' बुनैद ' किताब बै उनार बार में लेख उद्धत छ । य महान स्वतंत्रता सेनानी कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

25.07.2021

Meerabai chanu Tokyo olampic : मीराबाई चानू

मीठी मीठी - 621 : टोक्यो ओलंपिक में भारत की मीराबाई चानू
     
       भारत से टोक्यो ओलंपिक 2020 में भाग लेने गए सभी खिलाड़ियों को शुभकामना । आशा है इस बार बहुत अच्छा प्रदर्शन होगा ।  2016 में रियो ओलंपिक में 206 देशों ने भाग लिया था ।  इन खेलों में भारत के भी 15 खेल इवेंट में 117 खिलाड़ियों  ( 63 पुरुष एवं 54 महिला )  ने भाग लिया । उस ओलंपिक में कुल  206  देशों में से 87 देशों ने 306 पदक जीते । भारत की झोली में मात्र 2 पदक आए थे । चीन जहां क्रिकेट नहीं है वह विश्व में तीसरे स्थान पर रहा । भला हो  हमारी दो बेटियों, साक्षी मलिक (कुश्ती में कास्य) और पीवी सिंधु ( बैडमिंटन रजत ) का जो इस विशाल देश को निराश होने से बचा लिया और भारत का नाम पदक तालिका में जोड़ दिया ।

     भारत ने वर्ष 1900 से 2016 तक इन 116 वर्षों में ओलंपिक में कुल 28 पदक जीते जिनमें स्वर्ण - 9, रजत - 7 और कास्य - 12 थे ।  इस बार 2020 के ओलंपिक कोरोना के कारण 2021 में टोक्यो, जापान में हो रहे हैं जिसमें 206 देश भाग ले रहे हैं जो 18 खेलों की 69 प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेंगे । भारत से 127 खिलाड़ी इस खेल के महाकुंभ में शामिल हो रहे हैं । खेल विशेषज्ञों के अनुसार इस बार भारत को 17 पदकों की उम्मीद है । जिन खेलों में उम्मीद है वे हैं निशानेबाजी में 8, मुक्केबाजी में 4,  कुश्ती में 3, तीरंदाजी में 1 और भारोत्तोलन में 1 पदक ।

     खेल के पहले ही दिन 23 जुलाई 2021 को मीराबाई चानू ने 49 किलो वर्ग में वेट लिफ्टिंग में देश को पहला रजत पदक दिलाया है ।  मीरा को पूरे देश की ओर से बधाई और शुभकामना । टोक्यो के आकाश में भारतीय तिरंगा फहराने के लिए मणिपुर सरकार ने चानू को एक करोड़ रुपए की राशि और सरकारी नौकरी से पुरस्कृत करने की घोषणा की है । राजीव गांधी खेल रत्न और पद्मश्री से सम्मानित मीरा कौमन वेल्थ में रजत और स्वर्ण पदक विजेता हैं तथा वर्ल्ड वेट लिफ्टिंग में स्वर्ण पदक अपने नाम कर चुकी हैं। आज से 21 साल पहले वर्ष 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में कास्य पदक जीत कर सिडनी के आकाश में तिरंगा फहराया था। कर्णम मल्लेश्वरी की पूरी विजय गाथा मैंने अपनी पुस्तक ' ये निराले ' (2002) में ' लौह महिला कर्णम मल्लेश्वरी ' शीर्षक से लिखी है ।  उम्मीद करते हैं इस बार टोक्यो ओलंपिक से भारत में कई पदक आएंगे । सभी खिलाड़ियों को शुभकामना । 

पूरन चन्द्र कांडपाल
25.07.2021

Friday 23 July 2021

Guru jan guru poornima : जन गुरु पूर्णिमा

खरी खरी - 895 : गुरुजन स्मरण दिवस ( गुरु पूर्णिमा)


     23 जुलाई 2021 को गुरुपूर्णिमा के अवसर पर कई लोगों ने अपने गुरुजनों का स्मरण किया और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट की । फेसबुक-व्हाट्सएप - सोसल मीडिया में चित्र- फोटो का खूब आदान- प्रदान हुआ, कट- पेस्ट का अनंत ज्ञान भी बहा और जिसे जो अच्छा लगा उसने वह किया ।


     इस बात पर भी मंथन होना चाहिए कि हमने उन गुरुजनों को कितना याद किया जिन्होंने हमें कलम -कमेट के साथ पाटी- तख्ती का परिचय कराते हुए अक्षर ज्ञान दिया, गिनती- पहाड़े और प्रार्थना सिखाई । हम में से कई तो उनका नाम भी भूल गए होंगे । हमें उनका हमेशा स्मरण करना चाहिए और उनसे मिलने के अवसर ढूंढने चाहिए । वे तो सोसल मीडिया में भी नहीं होंगे । 

     जिस विद्यालय की शिक्षा के पायदानों पर चलकर आज हम जहां भी पहुंचे हैं वहां से हम उस विद्यालय को याद कर सकते हैं और किसी न किसी बहाने उससे जुड़ने का प्रयास कर सकते हैं । मां हमारी सबसे प्रथम गुरु है । उससे बड़ा गुरु कोई नहीं । अन्य गुर सब बाद के हैं । सभी गुरुजनों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

24.07.2021


Thursday 22 July 2021

Ghapal - ghotal घपल - घोटाला

खरी खरी - 894 : घपल- घोटाल (कुमाउनी कविता)

जो लै तुम
घोटाल करैं रौछा,
सुणि लियो एक बात
जतू है सकीं करो बेईमानी
लागलि जनता कि घात,
जब आलि होश
तब चाइये रौला
हमूल करौ भ्रष्टाचार
आपण गिचल कौला,
विकास क नाम पर
खेलैं रौछा उटपटांग खेल
जोड़ें रौछा खूब काइ कमै
एक दिन जरूड़ पुजालि जेल,
भ्रष्टाचारल जोड़ी जैजात
कभैं काम नि आवा,
मरण ता सब याद आल
जो करीं करम कावा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.07.2021

Wednesday 21 July 2021

Muslim Mahila : मुस्लिम महिला

बिरखांत- 385 : मुस्लिम महिला और इबादत

     अस्सी के दशक में बरेली (उ.प्र.) में एक स्वास्थ्य कैम्प में मैं अपने सहकर्मी सहित बच्चों को बी सी जी (टी बी से बचने का टीका) का टीका लगाने पहुंचा |  मैं बच्चों को टीका लगा रहा था और सहकर्मी नाम लिख रहा था | एक मुस्लिम महिला ने अपने छै बच्चों के नाम लिखाए | सहकर्मी के मुंह से मजाक में अनायास ही निकल गया “पूरी वॉलीबाल टीम है आपकी |” महिला को यह अच्छा नहीं लगा और वह भन्नाते हुए बोली, “जब मुझे पैदा करने में परेशानी नहीं हुई तो तेरे को नाम लिखने में दर्द क्यों हो रिया है ? खांमखां मेरे बच्चों पर नजर लगा रिया है |” वह आगे कुछ और बोलने ही वाली थी मैंने उसे रोकते हुए कहा, “आपको बुरा लगा तो माफ़ कर दें | उसने एक माँ- बाप के इतने बच्चे एकसाथ पहली बार देखे हैं |” सहकर्मी ने भी तुरंत ‘सौरी बहनजी’ कह दिया और मैंने बिना देर किये बच्चों को टीका लगाकर उन्हें शीघ्र रुख्शत कर दिया | आज चार दशक बाद परिवर्तन देखने को मिल रहा है क्योंकि अपवाद को छोड़कर अब मुस्लिम महिलाएं परिवार नियंत्रित करने लगीं हैं और रुढ़िवादी सोच से परहेज करने लगीं हैं |

     नब्बे के दशक में फैज रोड दिल्ली की बैंक शाखा में एक मुस्लिम युवती पी ओ (प्रोबेसनरी ऑफिसर ) बन कर आई | वह हमेशा ही सिर में स्कार्फ बांधे रखती थी | शाखा प्रबंधक ने उसे प्रशिक्षण का जिम्मा मुझे दिया | यह शायद उस बैंक में पहली मुस्लिम महिला आई होगी | मेरे लिए तो एक मुस्लिम महिला का बैंक ज्वाइन करना, एक सुखद आश्चर्य था | वह बड़ी शालीन, विनम्र और सीखने के जज्बे से सराबोर थी | यदा- कदा में उससे मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक दशा और अधिक बच्चों पर चर्चा करता था | वह बताती थी, ‘सर अच्छी हालत नहीं है मुस्लिम महिलाओं की | जल्दी शादी और फिर बच्चे | मजहबी क़ानून भी महिलाओं के लिए सख्त हैं | मुझे यहाँ तक पहुंचने के लिए मेरे अम्मी- अब्बा का बहुत बड़ा सहयोग रहा है |’ उस युवती की सोच बड़ी प्रगतिशील और महिला उत्थान की थी | प्रशिक्षण के बाद जब वह चली गई तो पूरा स्टाफ और ग्राहक उसे बड़ी श्रद्धा से याद करते थे | हम सबने बतौर सहकर्मी पहली बार एक मुस्लिम महिला देखी थी जो हमारे  कई भ्रम और मिथक तोड़ कर बड़े सौहार्द के साथ वहाँ से विदा हुई थी |

     परिवर्तन का एक सुखद क्षण 7 जुलाई 2016 को भी देखने को मिला जब ईद-उल-फितर के मौके पर ऐशबाग लखनऊ में पहली बार मुस्लिम महिलाओं ने ईदगाह में नमाज अता की | उनके लिए नमाज अता करने हेतु अलग से प्रबध किया गया था | वहाँ के मौलाना ने भी बताया कि इस्लाम में कहीं भी नहीं लिखा है कि महिलाएं मस्जिद या ईदगाह में नमाज अता नहीं कर सकती | यह देर से आरम्भ की गई एक नई पहल है, नई रोशनी है और मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय और बराबरी का स्वीकार्य हक़ है | हाल ही में शनि- सिगनापुर में महिलाएं मंदिर में प्रवेश हुई हैं जबकि सबरीमाला में उनके लिए अभी भी मंदिर के द्वार बंद हैं |न्यायालय ने महिलाओं के लिए द्वार खोल दिए परन्तु राजनीति ने बंद कर दिए ।  मुस्लिम महिलाएं मजारों पर जाती थी परन्तु उनके लिए मस्जिद या ईदगाह प्रवेश पर प्रतिबंधित था | पूरा देश इस नई रोशनी का स्वागत करता है | यह एक प्रगतिशील कदम है |

    देश तभी उन्नति करेगा जब देश की ‘आधी दुनिया’ (महिला शक्ति) को संविधान के अनुसार बराबरी का हक़ मिलेगा और जब सभी महिलाएं शिक्षित होंगी | जब तक देश के सभी सम्प्रदायों में महिलाओं को हर जगह बराबरी का हक नहीं मिलेगा, देश तरक्की नहीं कर सकता | सबके सहयोग से ही तो हमने चेचक, प्लेग और पोलियो पर विजय पाई है | लघु परिवार का सपना भी ऐसे ही पूरा होगा | देश को बड़े परिवार की जरूरत नहीं है बल्कि स्वस्थ और शिक्षित लघु परिवार की जरूरत है | आज कुछ युवा लड़का या लड़की जो भी हो केवल दो बच्चों के ही परिवार से खुश हैं | आज देश की सबसे बड़ी समस्या ही जनसँख्या वृद्धि है | साथ ही हम किसी भी सम्प्रदाय द्वारा ईश्वर या अल्लाह के नाम पर पशुबलि को भी उचित नहीं मानते | कोई मांसाहार करे या न करे यह उसकी मर्जी है परन्तु धर्म, भगवान् या अल्लाह के नाम पर निरीह पशु की बलि गलत है | बदलाव की बयार चल पड़ी है | मंदिरों में तो पशुबलि निषेध पूर्ण रूपेण लागू हो चुका है भलेही कई जगहों पर चोरी से पशुबलि जारी है जिसे स्थानीय मूक समर्थन मिलता है  | आशा है सभी सम्प्रदाय इस तथ्य को समझने का प्रयास करेंगे और आस्थालयों में पशुबलि को समाप्त करेंगे।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.07.2021