Thursday 28 June 2018

कबीरा खड़ा बाजार में

खरी खरी - 265 : कबीरा खड़ा बाजार में

     आजकल कबीर की बात हो रही है, मगहर की भी बात हो रही है । क्या कबीर के अंधविश्वास- विरोध का भी प्रचार करेंगे ? कबीर दास एक बार स्नान करने गये वहीं पर कुछ पंडे (ब्राह्मण) अपने और अपने जजमानों के पूर्वजों को पानी दे रहे थे । तब कबीर ने भी स्नान किया और वे भी उसी तरह पानी देने लगे । इस पर सभी ब्राह्मण हँसने लगे और कहने लगे कि "कबीर तू तो इन सब में विश्वास नहीं करता, हमारा विरोध करता है और आज वही कार्य तुम क्यों कर रहे हो जो हम कर रहे हैं ?

     कबीर ने कहा, "नहीं, मैं तो अपने बगीचे को पानी दे रहा हूँ । "कबीर की इस बात पर ब्राह्मण लोग हँसने लगे और कबीर से कहने लगे,  "कबीर तुम बौरा गये हो, तुम पानी इस तलाब में दे रहे हो तो बगीचे में कैसे पहुँच जायेगा ?  कबीर ने कहा जब तुम्हारा दिया पानी इस लोक से पितरलोक (जैसा कि तुम बताते हो) तुम्हारे पूर्वजों के पास पहुंच सकता है तो मेरा बगीचा तो इसी लोक में है वहाँ कैसे नहीं जा सकता है?  सभी ब्राह्मणों का सिर नीचे हो गया ।

      देना है पानी, भोजन, कपडा़ तो अपने जीवित माँ बाप को दो । दिल से उनकी सेवा करो ।  उनका सम्मान करो । उनकी आत्मा को मत दुखाओ । उनके जाने के बाद तुम जो भी देना चाहोगे, ब्रह्मभोज कराओगे, वह उन तक तो नहीं बल्कि पाखंडियों के पास पहुँचेगा । उनके निमित दान उसे दो जो दान का सुपात्र है और जो जनहित में हो ।

बुद्ध से बुद्धि मिली ,
कबीर से मिला ज्ञान                 
करना है करो प्यारो                    
जीते जी सम्मान ।

(यह किसी मित्र की भेजी हुई पोस्ट अच्छी लगी और उसे विस्तार देकर आप मित्रों तक पहुंचाने का प्रयास है ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.06.2018

Wednesday 27 June 2018

Chanarada ki baat : चनरदाकि बात

बिरखांत- 218 : चनरदा कि बात

    चनरदा बाबाओं क पाखण्ड और उनार सेवकों क अन्धविश्वास देखि दुखी छीं । बतूं रईं, "जैल हमू कैं 'अ आ -क ख' सिखाईं, इस्कूल-कालेजों में शिक्षा दी, हाम ऊं मास्टरों-अध्यापकों -गुरुजनों कैं भुलि गोयूं । हमूं कैं दुसरि गुरुभक्ति की बिमारी लैगे । कबीर दास ज्यू ल जो साधु कि बात करी ऊं सब अदप है गईं ।

    हमर देश आब दुसार किस्मक संत, गुरु, सदगुरू, तांत्रिकों ल भरीगो । इनू में असंतों कि ज्यादै भरमार छ । हालों में कएक असंत जेल न्हैगीं । एक असंत और वीक च्यल जेल में सडैं रौ । हमार अंधविश्वासी भक्त फिर लै इनार चंगुल बै भ्यार नि ऊँ राय।  आब त बाबाओं कैं जेड सुरक्षा लै मिलैं फैगे । कुछ बाबा त मंत्री - मुख्यमंत्री लै बनि गईं । कुछ लोग बाबा कैं दूद ल नवै बेर उ दूद कि खीर पकै बेर खां रईं ।

     उत्तराखंड में चिलम- सुल्प धारी बाबा छीं, शराब- सिगरेट- सुट्ट वाल बाबा छीं ।  यूँ नशेड़ी, पाखंडी, व्यभिचारी, बाबाओं क नाम पर कलंक लगूणी असंत कैक कके भल कराल?  लोग आपणी समस्या समाधानक लिजी यूं पाखंडियों कि शरण में किलै जां रईं ?  जरा चर्चा करो धैं!"

    चनरदा ल एक भलि खबर लै बतै । उनूल बता, "परंपरा मैंस  बणूनी, मैंसों कैं परंपरा नि बनून ।  ब्याक दिन सात फ्यार सबै ल्ही रईं । यूं फ्यारांक मतलब कैकैं मालुम न्हैति ।  न क्वे पुछन, न क्वे बतून । शॉटकट करो, फटाफट करो, दाम-दक्षिण मुणी धरो, हैगो ब्या ।

      हरयाणा में नवम्बर २०१४ में एक ब्या में एक ज्वड़ल एक फ्यार ज्यादै लगा, आठ फ्यार लगाईं । आठूं फ्यार में उनूल पेड़ लगै बेर पर्यावरण बचूंण कि कसम खै । उनर य आठूं फ्यार अखबार- टीवी कि खबर बनौ । ब्योलि क बौज्यूल लै उदिन कएक डाव-बोट रोपीं । य परंपरा अपनोंण चैंछ ।

         पैली बै 'मैती आंदोलन' में उत्तराखंड में ब्योलिक दगड़ी य ई काम करछी । आब सिर्फ ज्वत कि रकम ऐठनीं, रिबन काटिए कि इंट्री फीस मांगनीं, बस । ब्योलिक सखियोंल 'मैती आंदोलन' कैं ज्यौंन धरण चैंछ ।  अघिल बिरखांत में के और बात...

   (य चनरदा को छ ? चनरदा लेखक क भौत पुराण किरदार छ ।  य हमू में बै क्वे लै है सकूं । चनरदा क सही नाम चनरिय , चनर सिंह, चन्द्र दत्त, चनर राम, चन्द्र बल्लभ के लै है सकूं पर सब उनुहैँ चनरदा ई कौनी । चनरदा ज्यौन लाश न्हैति, उ मसमसाट नि पाड़न । उ गिच खोलण कि हिम्मत धरूं और सबूं हैं सामाजिक विषमताओं पर गिच खोलण कि उम्मीद करूं । )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.06.2018

Tuesday 26 June 2018

Sharabiyon se डर : इतना भी न डरें शराबियों से

खरी खरी - 264 : इतना भी न डरें शराबियों से

      जो किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते वे वास्तव में उत्तम लोग हैं । आप अपने मित्र, परिवार, संबंधी, सहकर्मी को भी जनजागृति कर अपनी कैटेगरी में शामिल करें ।  किसी भी प्रकार का नशा करने वाला समाज को हानि पहुंचाता है । देखा गया है कि बलात्कार सहित अन्य अपराध करने वाला कोई न कोई नशा करता रहा है ।

     जब तबादला होकर नए स्थान पर गया तो सायँ 5 बजे एक सहकर्मी पास आकर कान पर कहने लगा, "आपसी कंट्रीब्यूसन से कभी कभी व्हिस्की मंगाते हैं, सौ रुपए निकाल । "मैंने मना किया तो वह बोला, "अबे कंगले स्टाफ में मिलकर रहना पड़ता है । निकाल सौ रुपये ।" मैंने सौ रुपये दे दिए परन्तु चुपचाप घर को चला आया । दूसरे दिन सुबह उसने सौ का नोट मेरे मुंह पर मारते हुए कहा, "हमें भिखारी समझता है । कोई मुसीबत आएगी तो हम ही काम आएंगे तेरे ।" यह बंदा यों ही उटपटांग बोलने में माहिर था ।

     मैंने कोई बहस नहीं की । मुझे किसी भी शराब पीने वाले से नफरत नहीं है । शराब पीने के बाद यदि पता चल रहा है कि उसने शराब पी है, वह समाज-परिवार का अहित कर रहा है तो वह शराबी है । वैसे शराब सहित सभी प्रकार का नशा  मानव के लिए 100% दुःखदायी, खतरनाक और अंततः आत्मघाती है । मैं जानता हूँ कई ऑफिसों में 5 बजे के बाद खूब शराब पार्टी होती है ।

     उपन्यास "छिलुक" में इसका पूर्ण विवरण है । मैं अंतिम दिन तक शराब पार्टी में शामिल न होने के कारण पता नहीं क्या क्या अपने सहकर्मियों के मुख से सुनता रहा, यहां बता नहीं सकता । स्मरण रहे शराब सहित सभी नशे ले डूबते हैं । इसलिए डरिये मत, शराब से बच कर रहिये और शराबियों से भी । मैंने अपने काम से अपने शराबी सहकर्मियों का दिल जीता जिसका आभाष मुझे तब होता था जब वे नहीं पीए हुए होते थे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.06.2018

Hamari bhasha : हमरि भाषा

मीठी मीठी - 126 : हमरि भाषा

     हमरि भाषा कुमाउनी-गढ़वाली लगभग 1100 वर्ष पुराणि छ । यैक संदर्भ हमर पास मौजूद छीं । कत्यूरी और चंद राजाओं क टैम में यौ राजकाज कि भाषा छी । आज लै करीब 400 लोग  कुमाउनी में लेखनी जनर के न के साहित्य कुमाउनी पत्रिका "पहरू" में छपि गो । भाषा संविधान क आठूँ अनुसूची में आजि लै नि पुजि रइ । प्रयास चलि रौछ । सबूं हैं निवेदन छ कि भाषा कैं व्यवहार में धरो । हमार चार साहित्यकार छीं जनूकैं साहित्य अकादमी भाषा पुरस्कार लै प्रदान हैगो ।

     "पहरू" मासिक कुमाउनी पत्रिका लिजी डॉ हयात सिंह रावत (संपादक मोब 9412924897) अल्मोड़ा दगै संपर्क करी जै सकूं । कीमत ₹20/- मासिक । य पत्रिका डाक द्वारा घर ऐ सकीं । विगत 9 वर्ष बटि म्यर पास उरातार य पत्रिका पूजैं रै । मी यैक आजीवन सदस्य छ्यूँ । बाकि बात आपूं हयातदा दगै करि सकछा । उत्तराखंडी भाषाओं कि त्रैमासिक पत्रिका "कुमगढ़ दर्शन" जो काठगोदाम बै प्रकाशित हिंछ वीक लै आपूं सदस्य बनि सकछा ।  मी यैक लै आजीवन सदस्य छ्यूँ । संपादक दामोदर जोशी 'देवांशु' मो.9411309868, मूल्य ₹ 30/-

     कुमाउनी भाषा में कविता संग्रह, कहानि संग्रह, नाटक, उपन्यास, सामान्य ज्ञान, निबंध, अनुच्छेद, चिठ्ठी, खंड काव्य, गद्य, संस्मरण, आलेख सहित सबै विधाओं में साहित्य उपलब्ध छ । बस एक बात य लै कूंण चानू कि आपणि इज और आपणि भाषा ( दुदबोलि, मातृभाषा ) कैं कभैं लै निभुलण चैन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.06.2018

Monday 25 June 2018

Aapatkaal : आपातकाल

खरी खरी -263 : याद है आपातकाल

      आपातकाल की याद में प्रतिवर्ष 25 जून को तत्कालीन सरकार को उनके विरोधी खूब गरियाते हैं । तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान संविधान में है । यदि यह अनुचित है तो इसे हटाया क्यों नहीं जाता ? उस दौर का (25 जून 1975 से 21 मार्च 1977, 21 महीने का आपातकाल ) दूसरा पहलू भी है । वे दिन याद हैं जब बस- ट्रेन समय पर चलने लगे थे, कार्यालयों में लोग समय पर पहुंचते थे और जम कर काम करते थे , तेल- दाल- खाद्यान्न सस्ते हो गए थे, काले धंधे वाले और जमाखोर सजा पा रहे थे, देश में हर वस्तु का उत्पादन बढ़ गया था और भ्रष्टाचार का नाग कुचला जा चुका था, शिक्षा प्रोत्साहित हुई थी ।

     आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए और जनता पार्टी का राज आया परंतु यह राज मात्र 26 महीने ही रहा । आश्चर्य की बात तो यह है कि इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आ गयी । सवाल उठता है कि यदि आपत्काल बुरा था तो इंदिरा गांधी इतनी जल्दी वापस कैसे आ गयी? आपत्काल का सबसे बुरा पहलू प्रेस पर सेंसर लगाना था और नीम-हकीमों द्वारा नसबंदी आप्रेसन से बिगड़े केसों का खुलकर प्रचार भी विरोधियों ने किया था ।

        आज भी मंहगाई, भ्रष्टाचार, नारी हिंसा, दलित हिंसा, अपराध और अकर्मण्यता कम नहीं हुई है । ट्रेनों के बारे में सब जानते हैं कि कोई भी ट्रेन समय पर नहीं पहुँचती । 43 वर्ष पहले जो हुआ उससे हमने कुछ भी नहीं सीखा । आपातकाल के बारे में पक्ष-विपक्ष में आज भी जम कर बहस होती है  । यह हमारे प्रजातंत्र की खूबी है परन्तु हम सुधरते नहीं, यह दुःख तो कचोटता ही है । जिस दिन हम कर्म- संस्कृति को दिल से अपना लेंगे उस दिन हमारा देश उन देशों में मार्केटिंग करेगा जो हमारे देश में अपना बाजार ढूंढते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.06.2018

Bachchn nahar kinare : बच्चन नहर किनारे

खरी खरी -262 : किसी सुबह दिल्ली की नहर किनारे भी आओ बच्चन साब !

    हम आपसे गधे- खच्चर की बात नहीं करेंगे बच्चन साब । आप शौचालय के बारे में लोगों को अपने ढंग से समझा रहे हैं ।  आप 'मर्द' और 'कुली' बन कर देश के बिगड़ैल शौचकों का हृदय परिवर्तन करने में लगे हैं । काश ! ये हरिया और मुसद्दी आप की सुन लेते, हमारी तो नही सुनी इन्होंने दिल्ली की यमुना नहर पर ।

     बच्चन जी एक बार आप हरियाणा से आकर दिल्ली में गुजरने वाली मुनक नहर के किनारे भी आकर एक दो लमथर- घंतर नहर किनारे के शौच करने वालों को भी मार जाते तो इस नहर का भी भला हो जाता जो दिल्ली वासियों की जलपूर्ती करती है ।

     वैसे बच्चन साब देश की सभी नहरों के किनारे शौचकों का जमघट लगा रहता है चाहे वह गङ्ग नहर हो या मुनक नहर । यहां इन्हें बाल्टी या लोटा नहीं ले जाना पड़ता । नहर किनारे को भर कर ये नहर में ही धोते हैं सबकुछ । आएंगे ना आप इन्हें समझाने । हम तो आपके बुलाने पर गुजरात आये थे आप हमारे कहने पर एक बार नहर किनारे आ जाइये ना प्लीज़ । नहीं आ सकते तो किसी नहर के किनारे खड़े होकर वहीं से धतियादो इन बेशउरियों को ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.06.2018

Chainalon par bane raho : चैनलों पर बने रहो

खरी खरी - 261 : चैनलों पर बने रहो

काम कुछ करो नहीं
बस सुर्खियों में बने रहो,
टैन्ट खाली हो भलेही
सड़क पर जमे रहो,
कर्म न हो, नीति न हो
बनी रहे भयभीति मगर,
मूठ थामो झूठ की
और चैनलों पर बने रहो ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.06.2018

Thursday 21 June 2018

Bachchon kee berukhee : बच्चों की बेरुखी

बिरखांत-217 :  बच्चों में बढ़ती बेरुखी

     आजकल अक्सर हम हर किसी के मुंह से सुनते हैं कि “बच्चों में  (विशेषतः किशोर-किशोरियों में ) बहुत बदलाव आ गया है | बच्चे हमारी नहीं सुनते, बच्चे बिगड़ गए हैं, अपने मन की करते हैं, टी वी मोबाइल में खो गए हैं, किसी परिचित को नमस्ते तक नहीं करते, आदि आदि | ये सभी बातें लगभग सत्य हैं | इस बीच कुछ पारिवारिक/ सामाजिक समारोहों में जाने का अवसर मिला जहां अधिकांश परिचित समूह था जिनमें बच्चे भी थे | कुछ को छोड़ कर अधिकांश ने इस तरह मुंह फेरा कि जैसे वे जानते हीं नहीं थे अर्थात जानकर भी अनजान बन गए | उनकी चुप्पी पर हम चुप नहीं रहे | जो बिलकुल सामने से गुजरा उससे पूछ ही लिया, “कैसे हो बेटा या बेटी ?” रूखा  सा जबाब (“ठीक हूं” ) देकर आगे बढ़ गए | अभिवादन करना शायद उन्होंने आवश्यक नहीं समझा | स्पष्ट था कि वे बोलना ही नहीं चाहते थे | इस तरह की बेरुखी आजकल अधिकांश बच्चों में देखी जा सकती है | यह बेरुखी एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है अगर कोई इस बात को समझे तो |

     कुछ महीने पहले अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद के बलिदान दिवस पर एक कार्यक्रम में भी कुछ इसी उम्र के बच्चे देखे | यहां भी परिचित /अपरिचित बच्चे थे परन्तु व्यवहार बिलकुल भिन्न था | बच्चों में विनम्रता देखी, अभिवादन करने के संस्कार देखे और वह बहुत कुछ देखा जिससे निराशा के कुछ बादल छंट गए | इन्हें हमने सामाजिक जिम्मेदारी और प्रतिभागिता निभाते हुए भी देखा | यह एक दिन के लिए नहीं था बल्कि उन बच्चों में रच- बस गया था | उनमें बड़ों के प्रति विनम्र भाव था, शहीदों के प्रति श्रद्धा थी और स्वावलंबन- स्वाभिमान की चमक थी | ऐसे बच्चों को देख कर मन का प्रफुल्लित होना स्वाभाविक था |

      हमारे घरों में भी इसी उम्र के बच्चे हैं | यह तो आप /हम जानें कि वे कैसे हैं ? यदि वे मर्यादित हैं, अनुशासित और संस्कारित हैं, उनकी भाषा शिष्ट है, वे बड़ों से आदर अथवा विनम्रता से बोलते हैं, प्रात: जल्दी उठते हैं, पढ़ना- लिखना, खेलना- खाना सब समय और नियम से है, आपकी आज्ञा का पालन करते हैं, समाज- देश हित की बात को समझते हैं, सामाजिकता में उनके कदम बढ़ते हैं, त्यौहार या समारोहों में भागीदारी निभाते हैं, पर्यावरण और स्वच्छता प्रेमी हैं, अपनी वस्तुओं की कद्र करते हैं अथवा उन्हें संभाल कर रखते हैं, घरेलू काम में हाथ बटाते हैं, आज्ञा लेकर ही कहीं जाते हैं, अपने विद्यालय और अध्यापकों का आदर करते हैं तो आपके बच्चे सही दिशा में गतिमान हैं, उनका भविष्य उज्ज्वल है और वे अपने परिश्रम, लगन और हिम्मत से एक दिन अवश्य सफल होंगें तथा आपको अवश्य गौरवान्वित करेंगे |

      यदि उक्त गुणों की आपके बच्चों में कमी है तो यह जरूर चिंता का विषय है | आज ही से उनके लिए समय निकालिए और उन्हें इन गुणों से विभूषित करिए क्योंकि ये बाजार से खरीद कर नहीं दिए जा सकते |धन होने पर भी बाजार से संस्कृति, सदाचार, सभ्यता, ज्ञान, खुशी, मुस्कान, भूख, नींद और भगवान नहीं खरीदे जा सकते क्योंकि ये सब बाजार में नहीं मिलते । इनकी आपूर्ति अभिभावकों को ही करनी होती है । अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.06.2018

Yog diwas 21 june : योग दिवस 21 जून

मीठी मीठी -125 : स्वस्थ रहो-तंदुरुस्त रहो, योग-सैर-व्यायाम करो ।

(आज 21 जून अंतरराष्ट्रीय 'योग' दिवस)

इक्कीस जून को हो रहा
पूरे जग में 'योग',
भारत की भूमिका प्रबल
जान गए सब लोग,
जान गए सब लोग
रामदेव अलख जगाई,
जागा भारत दुनिया में
डुगडुगी बजाई,
कह 'पूरन' कर भोग कम
मिट जाएंगे रोग,
हो भलेही व्यस्त दिनचर्या
कर नित कसरत -सैर  'योग' ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21 जून 2018
(आज सबसे बड़ा दिन भी)

Tuesday 19 June 2018

Lokjeewan darpan pustak bhaint : लोकजीवन दर्पण पुस्तक भेंट

मीठी मीठी- 126 : लोकजीवन दर्पण (पुस्तक भेंट)


    डा. जगदीश चन्द्र पंत रचित पुस्तक 'लोकजीवन दर्पण' (निबंध संग्रह) कुछ महीने पहले मुझे भेंट स्वरूप प्राप्त हुई । 102 पृष्ठ के इस संग्रह में 31 निबंध हैं । निबंधों में हास्य रस मिश्रित तीन उत्कृष्ट व्यंग्य है - 'खटारा बस', ' मुठ्ठी में क्या है' और 'प्रीतिभोज का बदलता स्वरूप'। ये तीनों ही व्यंग्य पाठक को कुतकुतैली लगाते हैं । व्यंग्य 'प्रीतिभोज...' में लेखक इस भोज के बिगड़ते स्वरूप और कुव्यवस्था को 'गिद्धभोज' कहने पर मजबूर हुआ है । लेखक ने इस कुव्यवस्था से  गुजरे जमाने के पंगत में बैठकर भोजन ग्रहण करने को उत्तम बताया है जिसमें स्नेह, आदर, शिष्टता, सरलता और भोजन के रसस्वादन के आनंद की चर्चा की है ।


    निबंध संग्रह के सभी निबंध उत्कृष्ट हैं । लेखक ने संग्रह में सामाजिक संरचना और तत्थों के साथ अपनी बात कहने का सफल प्रयास किया है । डा. पंत जी को बधाई और शुभकामना । 


(मोब. 9410121158 पर लेखक से संपर्क किया जा सकता है । सभी निबंधों की चर्चा नहीं कर पाने के लिए लेखक से क्षमा चाहता हूँ ।)


पूरन चन्द्र काण्डपाल

20.06.2018

Pattharbaaj kaayr : पत्थरबाज कायर

खरी खरी - 260 :   पत्थरबाजों  की कायरता

     हाल ही में कश्मीर में कई ऐसे दृश्य देखने में आए जब अलगाववादियों के बहकावे में आकर भटके हुए पत्थरबाजों ने हमारे सैनिकों पर जिस्मानी हमला किया । सैनिकों ने संयम और अनुशासन का उत्कृष्ट नमूना पेश करते हुए पत्थरबाजों पर बहुत नरमी बरती है । सैनिकों के पास हथियार भी होते हैं जिसके चैंबर की गोली ट्रैगर दबाते ही कुछ ही सेकेंड में इन सिरफिरों का काम तमाम कर सकती है । हमारी सेना बेमिसाल है, उसका अनुशासन विश्व में सर्वोपरि है । सैनिकों को विकट स्थिति में भी गोली चलाने का आदेश नहीं होता जिसे सेना निभाती है ।

     कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है । विलय पत्र में महाराजा हरिसिंह ने हस्ताक्षर किए हैं । महाराजा का राज्य गुलाम कश्मीर (ना'पाक अधिकृत कश्मीर) तक था । कश्मीर के भोलेभाले युवाओं को भड़का कर पत्थरबाज बनाने वाले अलगावववादी नेताओं को अब सीखचों नें बंद करने का समय आ गया है जिसमें अब देर नहीं होनी चाहिए । काश ! ये पत्थरबाज समझपाते कि जो लोग चंद रुपयों के बदले उनके हाथों में पत्थर थमा रहे हैं उनके अपने बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं । सैनिक पर हमला तथाकथित मानवाधिकार वालों को नजर क्यों नहीं आता ? सेना को इस मुद्दे से निपटने के लिए अधिक छूट मिलनी चाहिए ।

      हमें अपनी लाड़ली सेना पर गर्व है जो बिषम परिस्थितियों में भी वर्दी पर दाग नहीं लगने दे रही और भारत माता की रक्षा में दिलोजान से चौबीसों घंटे जुटी है । जय हिंद की सेना । आपको एक बहुत बड़ा सलूट ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.06.2018

Gurdwaron mein laudspeekar : गुरुद्वारों में लाउडस्पीकर बंद

खरी खरी - 260 : गुरुद्वारों में ध्वनि प्रदूषण बंद

     एक समाचार के अनुसार शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर (अकाल तख्त साहब अमृतसर ) जो कि सिक्खों की सर्वोच्च धर्म सभा/संस्था है ने 14 जून 2018 को एक प्रस्ताव पारित किया है कि ध्वनि विस्तारक (लाउडस्पीकर) की आवाज गुरुद्वारा परिसर से बाहर न जाय । इस तरह ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए इस प्रस्ताव की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है । हम मुक्त हृदय से इस संस्था को जयहिन्द कहते हैं, सलूट करते हैं और विनम्रता से सतश्रीअकाल कहते हैं । समाज के हित में आपने बहुत अच्छी पहल करते हुए सबको प्रफुल्लित किया है ।

       इस नेक पहल को, बाकी धार्मिक संगठनों ने भी खुले दिल से अंगीकार करना चाहिए । सभी धर्मों को हठ छोड़कर मंदिरों/मस्जिदों से लाउडस्पीकर उतरवाने के लिए समाज के हित में पहल करनी चाहिए । विशेष उत्सव पर अनुमति लेकर लाउडस्पीकर का प्रयोग हो सकता है । आज भी संत शिरोमणि कबीर के दोहे 'पाथर पूजे हरि... ' और 'कांकर-पाथर जोड़ कर...' प्रासंगिक हैं । आज समय आ गया है जब हमें प्रथा- परम्परा के नाम पर रुढ़िवाद और अंधविश्वास को किनारे करने की जरूरत है । लाउडस्पीकर के शोर से समाज को मुक्ति मिलनी ही चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.06.2018

Monday 18 June 2018

Padhi lekhiyan haal : पढ़ि लेखियां क हाल

खरी खरी - 259 : पढ़ी लेखियां क हाल

पढी लेखियां क हाल

भलेही घर क मंदिर में
राति-ब्याव दी जगूं रयूं,
फिर लै पुछ्यारूं क कूण पर
रोज यथां- उथां भटकैं रयूं,
राम-कृष्ण रामायण-गीता छोड़ि
ओझा-पंड- तांत्रिकों कैं पुजैं रयूं,
आज लै द्याप्तां क नाम पर
खूब उटपटांग पाखंड करैं रयूं ,
पुजपाठ जागरण क नाम पर
जोर-जोरैल लौस्पीकर बजूं रयूं,
बीमार बुजुर्ग विद्यार्थी नानतिन
भलेही क्वे उ रात झन स्येतण,
मी धर्म क काम करैं रयूं ।

मंदिर क पुराण गुजरि-मूर्ति -फोटो
प्लास्टिक कि थैलि में धरैं रयूं,
विसर्जना क नाम पर
य थैलि कैं गाड़ में बगूं रयूं,
एकाद डाव -वोट नि लगूं रौय
सूरज कैं रोज जल चढूं रयूं,
गाड़-गध्यार-नौव-पन्यार कैं
कुड़-कभाड़ अथरूं रयूं,
खैनी-तमाकु-गुट्क-पान खै बेर
जां- तां लाल करैं रयूं,
बिड़ी-सिगरटा टुकुड़, गुटका थैलि
कागज-पत्तर कैं लै खेड़े रयूं ,
मि पढ़ी-लेखी छयूं
पत्त नै यस किलै करैं रयूं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.06.2018

Saturday 16 June 2018

Ise ijjat n kahein : इसे इज्जत लुटना न कहें

खरी खरी - 258 : इसे 'इज्जत...' न कहें

       हम देख रहे हैं कि समाज में बलात्कार की घटनाएं थमने के बजाय बढ़ रही हैं ।बलात्कार की शिकार स्त्री- जात का असहनीय शारीरिक और मानसिक पीड़ा से मुक्त होना बहुत कठिन है | इससे भी बढ़कर है सामाजिक दंश की पीड़ा | हमारे समाज में स्त्री के साथ इस तरह की घटना होने पर ‘इज्जत लुट गई’ कह दिया जाता है जो सर्वथा अनुचित और शर्मनाक है | इस सामाजिक दंश की पीड़ा इतनी भयानक और अकल्पनीय है की कुछ पीड़ितायें तो आत्म-हत्या तक कर लेती हैं | यह ठीक नहीं है और समाज के लिए शर्म की बात है | पीड़ित को तो इसमें कोई दोष ही नहीं है फिर वह स्वयं को क्यों सजा दे ? यदि उस समय वह उस दंश के सदमे से उबर जाए तो आत्म- हत्या से बच सकती है | उस समय उसे सामाजिक, चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक उपचार के अत्यधिक जरूरत होती है |

     दुष्कर्म पीड़िता को यह सोचकर हिम्मत बांधनी होगी कि वह स्वयं को क्यों सजा दे ? उसने तो कोई अपराध नहीं किया और न उसका कोई कसूर | सिर्फ स्त्री -जात होने के कारण उसका शिकार हुआ है | उसे स्वयं को समझाना होगा कि वह एक नरपिशाच रूपी भेड़िये का शिकार हो गयी थी | उसे अपनी  पीड़ा को सहते हुए, टूटे मनोबल को पुनः जागृत कर जीना होगा और नरपिशाचों को सजा दिलाने में क़ानून की मदद करनी होगी जो बिना उसके सहयोग के संभव नहीं हो सकेगा | यों भी जंगली जानवरों द्वारा काटे जाने पर हम उपचार ही तो करते हैं | हादसा समझकर इसे भूलने के साथ- साथ इन भेड़ियों के आक्रमण से बचाव का हुनर भी अब प्रत्येक महिला को  सीखना होगा और हर कदम पर अपनी चौकसी स्वयं करनी होगी |

      बलात्कारियों को शीघ्र कठोरतम दंड मिले, यह पीड़ित के लिए दर्द कम करने की एक मरहम का काम करेगा | साथ ही अब समाज के बड़े- बुजर्गों, बुद्धिजीवियों, धर्म गुरुओं, पत्रकर- लेखकों, सामाजिक चिंतकों और महिला संगठनों को जोर-शोर से कहना पड़ेगा के इसे ‘इज्जत लुटने’ या ‘इज्जत तार तार होने’ वाली जैसी बात नहीं समझें और ‘उक्त शब्दों’ से मीडिया और टी वी चैनलों को भी परहेज करना होगा ताकि दर्द में डूबी निर्दोष पीड़िता को जीने की राह मिल सके |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.06.2018