Wednesday 30 May 2018

Vishw tobaco nishedh diwas : विश्व तम्बाकू निषेध दिवस

बिरखांत- 214 : 31 मई, आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 

       प्रति वर्ष 31 मई को पूरे विश्व में तम्बाकू से होने वाली हानियों के बारे में जनजागृति के लिए धूम्रपान निषेध (तम्बाकू निषेध ) दिवस मनाया जाता है | इसे WNTD आर्थात world no tobacco day (वर्ल्ड नो टोबाकू डे )भी कहा जाता है | संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था, विश्व स्वाथ्य संगठन के अनुसार दुनिया में प्रतिवर्ष साठ लाख लोग कैंसर सहित तम्बाकू जनित रोगों से बेमौत मारे जाते हैं जबकि छै लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से धूम्रपान के शिकार होते हैं | वर्ष 1989 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक प्रस्ताव पास कर प्रति वर्ष 31 मई को तम्बाकू निषेध दिवस मना कर जनजागृति करने का निर्णय लिया | इस दिन प्रतिवर्ष एक नया नारा दिया जाता है |

     तम्बाकू के सभी उत्पादों में जो चार हजार रसायन होते हैं उनमें से कुछ ऐसे जहरीले होते हैं जिनके कारण सेवनकर्ता को नशा होता है | ज्योंही इन रासायनिक तत्वों की उसके रक्त में कमी आती है वह तम्बाकू अथवा धूम्रपान ढूँढने लगता है | इन जहरीले तत्वों में निकोटिन, तार तथा कार्बन -मोनो- आक्साइड मुख्य हैं जो मनुष्य के लिए बहुत घातक हैं | तम्बाकू के सेवन से हमें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक हानि होती है | प्रतिदिन दस से पचास रुपये तक धूम्रपान पर खर्च करने वाला व्यक्ति वर्ष में अपनी जेब के चार हजार से बीस हजार रुपये भष्म कर देता है और बदले में मुंह, मसूड़े, गला, फेफड़े सहित शरीर के कई अंगों के कैंसर जैसे भयानक रोगों का शिकार हो जाता है |

     कोई भी व्यक्ति नशा, धूम्रपान, तम्बाकू, गुटखा, सुरती, खैनी, जर्दा, गांजा, चरस, अत्तर, नश्वार का प्रयोग करना अपने मित्रों, सहपाठियों, सहकर्मियों, सहयात्रियों और संगत से सीखता है | कुछ लोग तो तम्बाकू -नशा- धूम्रपान को महिमामंडित भी करते हैं | देवभूमि में ‘जागर’ में डंगरियों को ‘भंगड़ी’ के रूप में सुल्पे या हुक्के में तम्बाकू या चरस- गांजा भरकर दिया जाता है, (अब शराब भी परोसी जा रही है) जिसका यह मतलब बताया जाता है कि डंगरिये में नशा पीकर आत्मज्ञान उपजता है | कीर्तन मंडली में भी सिगरेट या सुल्पे में भरकर ‘शिवजी की बूटी’ के नाम से चरस पी जाती है जिसे बाबाओं का खुलकर समर्थन और संरक्षण मिलता है | ये लोग स्वयं तो पीते हैं तथा अन्य को अप्रत्यक्ष रूप से पिलाते हैं |

      किसी बैठक या चौपाल में एक बड़ी चिलम (फरसी) में एक साथ कई लोग तम्बाकू का मिलकर सेवन करते हैं | इनमें यदि एक को टी बी (क्षय रोग) होगी तो टी बी का बैक्टीरिया ट्यूबरिकल बेसिलस अन्य सभी चिलम गुड़गुडाने वालों के फेफड़े तक पहुँच जायेगा | देवभूमि में बारातों में भी बीड़ी- सिगरेट बड़ी शान से बांटी जाती है | बरेतियों या घरेतियों को नाश्ता तथा भोजन के बाद एक ट्रे या थाली में बीड़ी- सिगरेट भी परोसी जाती है | मुफ्त में मिलती है तो सभी पीते हैं | बच्चे भी छिप- छिप कर लेते हैं | नहीं पीने वाले भी मुह पर लगा लेते हैं | ‘मुफ्त का चन्दन घिस मेरे नंदन’ वाली कहावत का प्रैक्टीकल देखने को मिलता है | इस तरह मजाक में या मुफ्त में हम धूम्रपान करना सीख जाते हैं |

       धूम्रपान के विरोध में आयोजित एक जनजागृति कक्षा में कुछ लोगों ने पूछा, “सर खाना खाने के पश्चात् धूम्रपान की तुरंत हुड़क क्यों उठती है ?” यह सवाल सही था | ऐसा अक्सर होता है | धूम्रपान करने वालों के रक्त में निकोटिन जब तक एक निश्चित मात्रा में रहता है उन्हें कोई परेशानी नहीं होती | भोजन करते ही उनके रक्त में निकोटिन का स्तर गिरने लगता है क्योंकि निकोटिन को कलेजा (लीवर) निष्क्रिय करता है और भोजन के पश्चात लीवर में रक्त की बढ़ोतरी होने लगती है | लीवर में अधिक रक्त पहुँचने से उसका निकोटिन स्तर निष्क्रिय होने लगता है और धूम्रपान करने वाले को परेशानी अर्थात  निकोटिन की आवश्यकता महसूस होने लगती है जिस कारण वह भोजन के तुरंत बाद धूम्रपान के लिए अथवा तम्बाकू या गुटखा (या अन्य नशा) सेवन के लिए तड़पने लगता है | 
   
     जब जागो तब सवेरा | यदि आप, आपके मित्र, परिजन, संबंधी, सहकर्मी या कोई अनजान आपको धूम्रपान करते या गुटखा- तम्बाकू खाते हुए दिखें तो एक बार विनम्रता से जरूर कहिये-

“जिगर मत जला,
मत छेद कर अपने फेफड़े में,
मौत रूपी कैंसर से डर,
अपने बीबी- बच्चों की और
अपने शरीर की तरफ देख |”

      सेवन करने वाला एकबार जरूर सोचेगा | मैंने प्रयास किया और सफलता भी मिली | एक बार आप भी कह कर देखिये तो सही |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.05.2018

Tuesday 29 May 2018

हिन्दू-मुस्लिम : राग हिन्दू-मुस्लिम

खरी खरी - 246 : राग 'हिन्दू -मुस्लिम' क्यों ?

     विश्व में 56 मुस्लिम देश हैं जिनमें 12 तेल निर्यातक हैं । हम 80% तेल आयात करते हैं । हमारी 99.9 मुस्लिम देशों से दोस्ती है । हम इन देशों को कई वस्तुएं निर्यात भी करते हैं । फिर हर बात में  'हिन्दू- मुस्लिम' राग क्यों ? हमें अब स्वयं सोचना होगा । विश्व में इंडोनेशिया ( जहां आज पीएम साहब गए हैं ) के बाद सबसे अधिक मुस्लिम हमारे देश में रहते हैं ।

     हमने स्वतंत्रता आंदोलन भी मिलकर लड़ा । हमने रसखान का कृष्ण- प्रेम देखा, मिज़ाइल मैन APJ अब्दुल कलाम का सपना देखा, परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) अब्दुल हमीद की अद्भुत वीरता देखी, भारत रत्न बिस्मिल्लाखां की शहनाई सुनी, 6 भारत रत्न और 1 परमवीर चक्र का राष्ट्र-प्रेम देखा । खेल, व्यापार, सिनेमा, लेखन, कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में अनेकों ऐसे मुस्लिम देखे जिन्होंने भारत के मुकुट पर कई रत्न जड़े ।

     समझ में नहीं आता कि वे कौन क्षुद्रबुद्धि लोग हैं जो बात-बात में 'हिन्दू-मुस्लिम' का राग अलाप कर हमारी गंगा- जमुनी तहजीब को जख्म देना चाहते हैं, फूलवालों की सैर में रोड़ा अटकना चाहते हैं और इसी राग से आग लगा कर राजनैतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं । हमारे लिए उन शब्दों का कोई मोल नहीं है जो करनी से मेल नहीं खाते ।

      हाल ही में हमें पीएम साहब ने ईदगाह (मुंशी प्रेमचंद ) के हामिद की याद दिलाई । हमारे समाज में गोपाल, हामिद, रोबर्ट, गुरतेज सहित 11 धर्मों के बच्चे अपने अभिभावकों के संग आपस में मिलजुलकर रहते हैं, पढ़ते -खेलते हैं । हमारी सदियों पुरानी सौहार्द- मोहब्बत की हिलोर कुछ सरारती -असामाजिक तत्वों द्वारा देखी नहीं जा सकती । इसलिये वे हमेशा कुछ न कुछ छिछोरपन करके इसे तोड़ने की फिराक में रहते हैं । इनकी यह बदनीयती कभी भी सफल नहीं होगी क्योंकि प्रत्येक भारतीय इनकी मंसा को समझ चुका है । ऐसे दौर हम देखते आये हैं क्योंकि "सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा ।" हमने मिलकर अपना संविधान बनाया है । यह हमारे सामाजिक सौहार्द का सबसे बड़ा ग्रन्थ है जिसका हमने सम्मान करना चाहिए और करेंगे भी । जयहिन्द ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.05.2018

Monday 28 May 2018

Dahej naheen : दहेज नहीं

मीठी मीठी - 117 : अब दहेज की बात न हो

    'दहेजलोभी परिवार ने दहेज नहीं मिलने पर बारात वापस गई या थाने पहुंच गई', हम आए दिन इस तरह के समाचार सुनते हैं । दहेज नहीं लेने की बात तो सब करते हैं परंतु परोक्ष रूप से दहेज के लिए दबाव भी डालते हैं । कुछ दूल्हे कहते हैं 'जो दोगे अपनी बेटी को दोगे, मुझे कुछ नहीं चाहिए' और दहेज स्वीकार कर लेते हैं ।

      बैतूल (म प्र) में हाल ही में एक दूल्हे ने दहेज में दिया हुआ सामान लेने से इनकार कर दिया । विवाह गायत्री परिवार से जुड़े रीति-रिवाजों के साथ हुआ । सभी लोग दूल्हा-दुल्हन के लिए उपहार लाये थे लेकिन दूल्हे ने दहेज में आये कपड़े, गहने और बर्तन सहित सभी सामान लेने से इनकार कर दिया और एक रुपया भी नहीं लिया । दूल्हा बोला, "मेरे लिए दुल्हन ही सबकुछ है, दहेज व्यर्थ है ।" 

      अंत में दूल्हे के आग्रह को मान लिया गया और बिना दहेज के दुल्हन की खुशी खुशी विदाई हुई । आशा है  हमारे समाज में जड़ जमाई दहेज प्रथा को उखाड़ने के लिए अविवाहित युवक इस उदाहरण से कुछ तो सीखेंगे । कुछ दूल्हे तो अवश्य ही इस मार्ग पर चल रहे हैं और चलेंगे भी । इन युवाओं को हमारी हार्दिक शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.05.2018

Aapani bhasha : आपणि भाषा

मीठी मीठी - 116 :आपणि भाषा सिखलाई कक्षा 

     27 मई 2018 हैं आपणि भाषा सिखलाई कि कक्षा रत्तै 10 बजी बटि 12 तक DPMI न्यू अशोक नगर नई दिल्ली में लागी और ब्याव 5 बजी बटि 7 बजी तक उत्तराखंड भ्रातृमण्डल (पं) अवंतिका सेक्टर - 1 रोहिणी दिल्ली क अध्यक्ष श्री एन डी लखेड़ा और उनरि टीम क आयोजन में अवंतिका में लागी ।

     DPMI में शिक्षक छी पूरन चन्द्र काण्डपाल (कुमाउनी) और दर्शन सिंह रावत (गढ़वाली) । अवंतिका में उद्घाटन कक्षा छी जमें नना क अभिभावक ज्यादै छी जनूल भाषा सिखलाई मुद्द पर भौत रुचि देखै । अवंतिका में शिक्षक मंडल में शामिल छी सर्वश्री पूरन चन्द्र काण्डपाल, रमेश चंद्र घिल्डियाल, गिरीश चन्द्र बिष्ट हँसमुख, श्रीमती बिमला लखेड़ा और श्रीमती कला पांडे ।

     कुल 12 कक्षाओं कि श्रंखला में अघिल कक्षा 03 जून 2018 हुणि रत्तै 10 बजी बटि 12 बजी तक आयोजित होलि । उम्मीद छ सबै अभिभावक आपण नना कैं टैम पर भेजाल । यूं 12 कक्षा 20 मई बटि 5 अगस्त 2018 तक हर ऐतवार रत्तै 10 बजी बटि 12 बजी तक पुर NCR में कएक जाग उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा DPMI और उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली एवं सम्बद्ध संस्थाओं क सहयोगल आयोजित करी जां रईं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.05.2018

Saturday 26 May 2018

Maan kee Lash par painshan : मां की लाश पर पेंशन

खरी खरी- 245 : मां की लाश पर पेंशन

     हमने भ्रष्टाचार के बड़े बड़े अटपटे नमूने देखे-सुने हैं । सुहागन विधवा पेंशन लेती हैं, मुर्दे पेंशन लेते हैं, जवान बुढ़ापे की पेंशन लेते हैं और बड़े-बड़े धन्ना सेठ बीपीएल कार्ड होल्डर हैं । MCD में तो भूत कर्मचारी वेतन लेते देखे गए हैं । इसके अलावा भी कई लोगों ने कई प्रकार का अद्भुत भृष्टाचार देखा होगा ।

    हाल ही में बनारस ने भ्रष्टाचार का अब तक का एक अनोखा नमूना देखा । बनारस में गंगा किनारे भेलपुर, दुर्गाकुंड के पास अमरावती नाम की एक 70 वर्षीय 5 पुत्रों की जननी ने 13 जनवरी 2018 को दुनिया  को अलविदा कह दिया । उसे पेंशीनीयर पति की मृत्यु के बाद 40 हजार रुपये की मासिक पेंशन मिलती थी । पुत्रों ने मां का दाह संस्कार करने के बजाय उस पर रसायनिक लेप लगा दिया और अंगूठे पर स्याही लगा कर बैंक से लगातार पेंशन लेते रहे । जब लाश से बदबू आने लगी तो पड़ोसियों ने पुलिस बुलाई और 23 मई 2018 को सारा भेद खुल गया ।

     इन पुत्रों पर कभी अमरावती को नाज रहा होगा । इनके जन्म पर उसके घर में कासे की थाली के साथ शंख बजी होगी । इस दिवंगत मां ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसके बेटे चंद रुपयों के मोह में उसकी लाश को सड़ाकर नरपिशाच बन जाएंगे और लाश पर अपनी रोटी सेकते रहेंगे । आश्चर्य होता है आज के दौर में कुछ पुत्र कपूत बनकर मां-बाप को मार रहे हैं, उन्हें वृद्धाश्रम भेज रहे हैं, उनका कत्ल करवा रहे हैं और कहीं पर तो इतना नीचे गिर गए हैं कि उनकी लाश को सड़ाकर उससे पेंशन ले रहे हैं ।  धिक्कार है इंसान रूपी इन नरपिशाचों को जिन्होंने पुत्र के पावन रिश्ते को कलंकित करने का जघन्य अपराध किया है । हे कानून ! कहां है तू ?  न तेरा डर रहा और न तेरा खौप रहा ? क्या तू जिंदा है ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.05.2018

Friday 25 May 2018

Netrdaan : नेत्रदान

मीठी मीठी - 115 : विदा लेते समय किसी को रोशनी देदो

      मृत्यु के बाद आँख की एक झिल्ली (कार्निया) का दान होता है । लोग मृत्युपरांत नेत्रदान इसलिए नहीं करते क्योंकि वे सोचते हैं मृतक के आंखों पर गढ्ढे पड़ जाएंगे । मृतक के चेहरे पर कोई विकृति नहीं आती । हमारे देश में लगभग 11 लाख दृष्टिहीन कार्निया की प्रतीक्षा कर रहे हैं और प्रतिवर्ष लगभग 25 हजार दृष्टिहीनों की बढ़ोतरी भी हो रही है ।

     कार्निया आंख की पुतली के ऊपर शीशे की तरह एक पारदर्शी झिल्ली होती है । कार्निया का कोई कृत्रिम विकल्प नहीं है । एक नेत्रदान से दो दृष्टिहीनों को रोशनी मिल सकती है । किसी भी मृतक का नेत्रदान हो सकता है भलेही वह चश्मा लगता हो, शूगर केस हो, मोतियाबिंद ऑपरेटेड हो अथवा उच्च रक्तचाप वाला हो । मृतक के आंखों पर तुरंत एक साफ कपड़े की गीली पट्टी रख देनी चाहिए ताकि कार्निया सूखे नहीं ।

      कैसे होगा नेत्रदान ?  परिवार के सदस्य अपने मृतक का नेत्रदान कर सकते हैं । मृत्यु के 6 से 8 घंटे के दौरान नेत्रदान हो सकता है । सूचना मिलते ही नेत्रबैंक की टीम बताए स्थान पर आकर यह निःशुल्क सेवा करती है । 15- 20 मिनट में मृतक का कॉर्निया उतार लिया जाता है । नेत्रदान एक पुण्यकर्म है । इस पुण्य की चर्चा परिजनों से करनी चाहिए और नेत्रदान में कोई संशय नहीं होना चाहिए । याद रखिये -

आंख चिता में जाएगी
तो राख बन जाएगी,
आंख कब्र में जाएगी
तो मिट्टी बन जाएगी,
यहां से विदा लेते समय
नेत्रों का दान करदो,
किसी को अंधकार में
रोशनी मिल जाएगी ।

(नेत्रदान के लिए कृपया 8178449226 /011-23234622 गुरु नानक नेत्र केंद्र नई दिल्ली से संपर्क किया जा सकता है ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.05.2018

Wednesday 23 May 2018

Pm sir ke man kee baat : पीएम सर के मन की बात

बिरखांत- 213 :  पी एम सर के मन की बात 

   माननीय प्रधानमंत्री जी आपके ‘मन की बात’ को हम रेडियो पर बड़े ध्यान से सुनते हैं | आपने कुपोषण, नदियों के प्रदूषण, शिक्षा- प्रसार, किसान समस्या, गरीबी, विकास आदि जैसे कई विषयों पर देश की जनता से अपने मन की बात कही है | आप यदा-कदा श्रोताओं से सुझाव भी आमंत्रित करते हैं | आपके मन में हमारे तथाकथित ‘सपेरों के देश’ को ‘माउस’ पकड़ने वालों का देश बनाने की भी लालसा है | आपकी सब बातों से जन-मानस का मनोबल बढ़ता है और निराशा दूर होती है |

     आप ने काशी को क्योटो बनाने का सपना भी दिखाया है और ‘बुलेट’ ट्रेन चलाने की बात भी कही है परन्तु हमारे देश की जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है | काशी और हरिद्वार सहित देश की नदियों एवं मंदिरों में स्थापित  मूर्तियों में जो हजारों- लाखों लीटर दूध भगवान् के नाम पर प्रतिदिन  बहाया जाता है उसे नहीं बहाने की बात भी यदि आप कर देते तो यह दूध उन कुपोषित बच्चों के मुंह में चला जाता जो दूध की एक बूंद को तरसते हैं |  ताजा उदाहरण हरिद्वार का है |

      कुछ महीने पहले हरिद्वार में बाल्टियां भर-भर कर दूध गंगा में बहाया गया | इस आयोजन में हमारे नेता भी उपस्थित थे | यह दृश्य देश के राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों सहित कई टी वी चैनलों पर भी छाया रहा | उसी दिन उत्तरप्रदेश के हमीरपुर में चालीस हजार बच्चों के कुपोषित होने का समाचार भी छपा था |

     काश ! गंगा में बहाया गया यह दूध इन बच्चों के मुंह तक पहुँच पाता तो यह अवश्य ही कुछ हद तक इनका कुपोषण दूर होता | सर, मेरा आपसे अनुरोध है कि अगली ‘मन की बात’ में कृपया कुछ बातें अंधविश्वास के विरोध में  भी जरूर शामिल करने का कष्ट करें | साथ ही देश के धर्माचार्यों, बाबाओं एवं साधु-संत समाज से भी आग्रह करें कि वे भी देश को अंधविश्वास से बचाने की बात करें |

     आपके कहने पर यदि इनका सहयोग मिल गया तो देश को अन्धविश्वास की जंजीरों से मुक्ति मिल सकती है | आपके द्वारा चलाया गया स्वच्छता अभियान भी तभी गति पकड़ेगा जब इसमें सभी धर्माचार्य सहभागी बनेंगे | यदि हम अंधविश्वास के सांकलों से मुक्त हो गए तो हमारी नदियाँ भी कई प्रकार के विसर्जन से बच जायेंगी जिसमें मूर्ति विसर्जन भी शामिल है |

    यदि हम जल विसर्जन की जगह भू-विसर्जन अपना लें अर्थात विसर्जित की जाने वाली सभी वस्तुओं को जमीन में दबा दें ( क्योंकि पानी में भी तो ये मिट्टी में ही मिलेंगी), शव-दाह के लिए जहां उपलब्ध है सी एन जी या बिजली की फर्नेश अपना लें तो जीवन दायिनी नदियाँ और वृक्ष तो बचेंगे ही, प्रदूषण भी थमेगा और अन्धविश्वास जनित कई समस्याएं स्वत: ही हल हो जायेंगी |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.05.2018

Tuesday 22 May 2018

Poorn sharab bandi :पूर्ण शराब बंदी

खरी खरी - 243 : पूर्ण शराब बंदी हो उत्तराखंड में

  उत्तराखंड के नौंवे सी एम साहब ने 18 मार्च 2017 को शासन संभाल लिया था । शासन संभालते ही हमने उनसे अपील की थी कि राज्य में शराब बंदी करें परन्तु उन्होंने अनसुनी कर दी । उन्हें बिहार की तर्ज पर उत्तराखंड में शराब के गधेरों को बंद करना चाहिए । सड़क किनारे लगे शराब की याद दिलाने वाले बोर्ड अतिशीघ्र हटाये जाय । सायं होते ही जो चाय की दुकानें बार में परिवर्तित हो जाती हैं उन्हें छापा मार कर बंद किया जाय ।

       शराब बंदी में महिलाओं और महिला संगठनों का सहयोग लिया जाय । इस कार्य हेतु टिंचरी माई सम्मान से महिलाओं को पुरस्कृत किया जाय। टिंचरी माई ने पौड़ी में शराब की दुकान बंद करने को कहा । दुकान बंद नहीं किये जाने पर इसे आग के हवाले कर खुद एस डी एम को इसकी सूचना भी दी थी । भलेही शराब माफिया और पियक्कड़ों को यह कदम उचित नहीं लगेगा परन्तु आम जनता और महिलाएं इसका दिल से स्वागत करेंगी ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.05.2018

Monday 21 May 2018

Sumitranandan : सुमित्रानंदन पंत

मीठी मीठी - 114 : सुमित्रानंदन पंत स्मरण- उत्तराखंड फ़िल्म नाटक संस्थान दिल्ली

     20 मई 2018 को YWCA अशोक रोड नई दिल्ली में उत्तराखंड फ़िल्म ऐंड नाटक इंस्टिट्यूट दिल्ली द्वारा प्रकृति कवि सुमित्रानंदन पंत जी की 118वीं जयंती मनाई गई । यह कार्यक्रम सायंकाल तीन सत्रों में आयोजित किया गया ।

     कार्यक्रम के पहले सत्र में प्रकृति कवि के कृतित्व पर वरिष्ठ रंगकर्मी हेम पंत और श्रीमती जुगरान जी व्याख्यान दिया । द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन में कई कवियों ने काव्य पाठ किया जिनमें प्रमुख थे सर्वश्री दिनेश ध्यानी, रमेश घिल्डियाल, रमेश हितैषी, रंगकर्मी ठंगरियाल, पूरन चन्द्र काण्डपाल आदि । तृतीय सत्र में 'साहित्य रत्न' सम्मान से वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार ललित केशवान जी को पुरस्कृत किया गया ।

     इस आयोजन में उ फि ना इ (UFNI) की सभी वक्ताओं ने साहित्य के प्रति संस्था के रुझान की प्रशंसा की गई । संस्था द्वारा दिया जाने वाला यह द्वितीय "साहित्य रत्न" सम्मान था । संस्था के सदस्यों ने इस बीच कई गीत- संगीत कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये । संस्था की अध्यक्ष संयोगिता ध्यानी जी ने अपनी टीम का आभार जताया । संस्था के साहित्य सचिव दर्शन सिंह रावत जी ने 'साहित्य रत्न' सम्मान पर प्रकाश डाला । संस्था के प्रशासनिक अधिकारी अजय सिंह बिष्ट जी ने सहयोगी सदस्यों के साथ सुंदर मंच का संचालन किया । 

    इस अवसर पर सभागार में कई साहित्यकार, पत्रकार, कवि, लेखक, राजनेता और समाज के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे । इस सफल आयोजन के लिये UFNI के सभी सदस्य एक संगठित टीम की तरह अवश्य ही साधुवाद के पात्र हैं जो समय -समय पर उत्तराखंड की महान विभूतियों के कृतित्व का स्मरण करते रहते हैं । 'साहित्य रत्न' सम्मान की शुरुआत संस्था की  सार्थक सोच को रेखांकित करता है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.05.2018

Devbhumi veerbhumi, sharaabbhumi:देवभूमि वीरभूमि शराबभूमि

खरी खरी - 242 : देवभूमि, वीरभूमि या शराबभूमि

    शराब की याद  दिलाने के लिए उत्तराखंड सहित देश के कई राज्यों में सड़क के किनारे शराब  परोसने और इसे प्रोत्साहित करने के बड़े-बड़े बोर्ड लगे हैं । कहा जा रहा कि छतीसगढ़ में एक स्थान पर ये बोर्ड जनता के विरोध से हटाये जा रहे हैं ।  धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन  देवभूमि की रीढ़ है । शराब पीने की याद दिलाकर इसे शराबभूमि  या तामसी  भूमि तो मत बनाओ । 

     उत्तराखंड से छपने वाले एक अखबार के अनुसार उत्तराखंड में अब महिलाएं भी शराब की दुकानदार बन रही हैं । महिलाओं के कई आवेदन मिलते आये हैं और बताया जाता है कि कई महिलाओं को शराब की दुकान आबंटित हुई हैं । गौरादेवी, बछेन्द्रीपाल, बिश्नी देवी शाह, तीलू रौतेली, टिंचरी माई, कुंती वर्मा जैसी अनेक वीरांगनाओं की इस भूमि पर ये शराब बेचने वाले महिलाओं का कौनसा अवतार है?

     केवल पैसे के लिए नशे का सहारा ! !  सैनिकों की जननी और शहीदों की मां कही जाने वाले देवभूमि की नारी तू कथां अलोप है गेछै ?( तू अदृश्य क्यों हो गयी ?)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.05.2018

Sunday 20 May 2018

Bhasha seekhein : भाषा सीखें

मीठी मीठी - 113 : कुमाउनी -गढवाली कक्षा शुरुआत  (हमरि भाषा हमरि पछ्याण)

     आज 20 मई 2018 बटि ननां  कैं  कुमाउनी- गढ़वाली सिख़ूणी कक्षा कि शुरुआत हैगे जो 5 अगस्त 2018 तक चललि । DPMI में आज 24 ननां कैं हमरि भाषा क ज्ञान ओम प्रकाश आर्य ज्यूल दे जनरि मदद आनंद जोशी ज्यूल करी । आज बै दिल्ली में कएक जाग यूं कक्षा शुरु हैंगीं जां नांन हमरि भाषा कैं बलाण- लेखण सिखैं रईं । यूं कक्षा उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा DPMI और उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली सहित कएक संस्थाओं क प्रयोजन में चलैं रईं । फौन संपर्क - 9818342205 अनिल पंत, संयोजक ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.05.2018
(हमरि भाषा हमरि पछ्याण)

Saturday 19 May 2018

Karnatak : कर्नाटक

खरी खरी - 241 : कर्नाटक में जो हुआ

     हाल के दिनों में हम सबको कर्नाटक ने अपनी ओर खींचा । 12 मई 2018 को यहाँ विधानसभा चुनाव हुए और 15 मई को निकले परिणाम में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला । यहां से सत्ता के लिये उचित/अनुचित कदम उठने शुरु हुए । सत्ता का नशा है ही ऐसा । जन सेवा का नशा सिर्फ भाषण में होता है । सत्ता के लिए दलों में रस्साकसी आरम्भ हुई । संविधान की  व्याख्या अपने -अपने हिसाब और तर्क से होने लगी । गोआ, मणिपुर, मेघालय और बिहार के पन्ने भी पुनः खुल गए । इस चुनाव प्रचार में भाषा और भाव-भंगिमा ने हवा को बहुत प्रदूषित किया जिससे वातावरण में खूब कड़ुवाहट घुली ।

     राजनैतिक दलों के समर्थकों में भी खूब अनबन हुई । अशिष्ट भाषा की सीमाएं लांघी गई । यह प्रजातंत्र के लिए अच्छा नहीं था । वर्तमान से लेकर पूर्व के राज्यपालों के कृतित्व के पन्ने भी कई वरिष्ठ पत्रकारों-लेखकों ने खोले । कुल मिलाकर संविधान की पंक्तियां लोगों को न्यायालय ले गईं जहां से न्याय की किरण प्रस्फुटित हुई । जो हारे वे नाराज और जो जीते वे खुश हुए ।  इस बीच मार्केटिंग की हवा भी चली परन्तु बाजार बंद रही ।

     अंततः प्रजातंत्र की जीत हुई । अब जिन लोगों को प्रजातंत्र की अंक संख्या ने सत्ता सौंपी है उनका कर्तव्य है कि सब कडुवाहट भूलकर राज्य के हित में जी-जान से जुट जाएं तभी एक अच्छा संदेश समाज में जायेगा अन्यथा राजनीतिज्ञों के प्रति नफरत के जो अंकुर पनपने लगे हैं वे दुःखदायी होंगे जो हमारे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी हो सकती है । निराशा को भगाते हुए इतना अवश्य कहा जा सकता है कि देश में लोकतंत्र की जड़ें बहुत मजबूत हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.05.2018