Friday 28 February 2020

Morarji Desai : मोरारजी देसाई

मीठी मीठी - 430 : मोरारजी देसाई स्मरण

     आज 29 फरवरी हमार चौथूं प्रधानमंत्री, आपण सिद्धांतों दगाड़ समझौता नि करणी दिवंगत भारतरत्न मोरारजी देसाई कि जयंती छ । उनर जन्म 29 फरवरी 1896 हुणि हौछ । उनार बार में किताब " लगुल "  बै एक लघु लेख यां उद्धृत छ । देसाई ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.02.2020

Thursday 27 February 2020

Ptatha parampsra ke nam :प्रथा परम्परा के नाम पर

बिरखांत- 307 : प्रथा- परम्परा में बदलाव

     एक विख्यात जनप्रेरक ने एक टी वी चैनल पर कहा कि ‘वक्त के साथ परम्पराएं बदलनी चाहिए | महिलाओं पर लगे अनुचित प्रतिबन्ध हँटने चाहिए | इंडोनेशिया में महिला पुजारी हैं | सभी धर्मों में महिलाओं को धर्मगुरु बनना चाहिए | पुरानी परम्पराएं जिनका कोई वैधानिक आधार नहीं हो वे हटनी चाहिए |’ उन्होंने अहमदनगर के शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का भी समर्थन किया है | अभी सबरीमाला मंदिर में भी महिला प्रवेश की ना-नुकुर करने के बाद न्यायालय के आदेश से अनुमति मिल गई है परन्तु राजनीति ने दखल दे रखा है ।

     उत्तराखंड में भी विगत कुछ वर्षों में बहुत कुछ बदला है | साठ के दसक तक देवभूमि में शराब नहीं थी जो आज चाय की दुकान में भी खुलेआम मिल रही है | शराब के कारण ही रात्रि की शादी दिन में होने लगी परन्तु बरतिए- घरतिये दिन में ही डॉन हो जाते हैं | पहले बरात सायंकाल को कन्या के आंगन में पहुँच जाती थी और सायंकाल में ही धुलिअर्घ  (दुल्हे का स्वागत) होता था | पूरी रात शादी के रश्में होती थी तथा सुबह सूर्योदय के बाद दुल्हन की विदाई होती थी | वर्तमान में दिन की शादी में शराबियों के कारण बरात दिन में दो बजे के बाद ही आती है | दुल्हन की विदाई तीन बजे करनी होती है ताकि वह समय पर अपने ससुराल के आंगन पर पहुँच जाय | इस तरह आठ घंटे में होने वाली शादी अब मात्र आधे घंटे में हो रही है | इस नई परम्परा को हमने शराब के साथ स्वीकार कर लिया है और किसी को कोई आपति भी नहीं हैं |

     समाज में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद सूतक (शोक) मनाने के भी एक प्रथा है | मैंने अमरनाथ (जम्मू- कश्मीर) से अन्ना स्क्वायर समुद्र तट (तमिल नाडू) तक देश में सूतक की रश्में देखी हैं | विभिन्न स्थानों में सूतक मात्र तीन दिन से लेकर तेरह दिन तक मनाया जाता है | उत्तराखंड में यह 12 दिन का है | इस दौरान मृतक के  परिवार के एक परिजन को 12 दिन तक कोड़े  (क्वड़ - एक विशेष रश्म में इस दौरान कर्मकांड के अनुसार नित्यकर्म करना पड़ता है जिसे "क्वड़'' कहते हैं ।) में बैठना पड़ता है  | 12वे दिन पीपलपानी (जलांजलि देना ) होता है | 12 दिन के सूतक में बिरादरी में सभी शुभकार्य स्थगित कर दिए जाते हैं और पहले से तय किये कार्य रद्द कर दिए जाते हैं | सम्बंधित जनों को 12 दिन तक कार्य बंद करना पड़ता है या अवकाश लेना पड़ता है | इस दौरान यहां तक कि खेत में हल भी नहीं चलाया जाता |

    प्रथा जब बनी थी तब सन्देश भेजने में कई दिन लगते थे और गाँवों में तार (टेलीग्राम) भी देर से मिलते या भेजे जाते थे | आज तार के जगह इन्टरनेट ने ले ली जिससे सन्देश सेकेंडों में पहुँच जाता है | जब हम बदलाव स्वीकार करने के दौर से गुजर रहे रहे हैं तो यह सूतक का समय भी 5 या 7 दिन किये जाने पर मंथन होना चाहिए | मृतक का दुःख हमें जीवन भर रहेगा परन्तु हम 5 दिन का बंधन तो कम कर सकते हैं | श्रद्धांजलि अधिक से अधिक 7 दिन में होने से परिवार, सम्बंधी और मित्रगण 12 दिन के बजाय 7 दिन में ही सूतक से मुक्त हो जायेंगे | इस बदलाव पर अवश्य मंथन करके अपने विचार जरूर व्यक्त करें |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.02.2020

Wednesday 26 February 2020

Ye dangai kaun the ?ये दंगाई कौन थे ?

खरी खरी - 572 : ये दंगाई कौन थे ?

दिल्ली में ये दंगाई कौन थे ?
बताओ तो सही ये कौन थे ?
उत्तर-पूर्व दिल्ली में अमन बिगाड़ने वाले
सताइस जानों को बेमौत मारने वाले
शांतिप्रिय दिल्ली को दहलाने वाले
दो सौ लोगों को जख्मी करने वाले
घर दुकान वाहन जलाने वाले
पेट्रोल पम्प शो रूम फूंकने वाले
मौत के तांडव पर नांचने वाले
सरे आम बेखौप फायरिंग करने वाले
हिंसा -साम्प्रदायिकता फैलाने वाले
दहशत -अफ़वाह से डराने वाले
झूठे उलजलूल वीडियो भेजने वाले
खुलकर अथाह जहर उगलने वाले
हिन्दू - मुस्लिम को लड़ाने वाले
दिल्ली में दो दिन गुंडई कराने वाले
करोड़ों रुपए का नुक़सान कराने वाले
सार्वजनिक सम्पत्ति नष्ट कराने वाले
अस्पताल पर लोगों को रुलाने वाले
मोर्चरी में अपनों के शव ढूंढवाने वाले
मौतों पर आंसू निकलवाने वाले
चुप क्यों रहे बिगड़ैलों को रोकने वाले ?
कहां चले गए थे दंगा थामने वाले ?
ये सब अमन चैन के दुश्मन थे
सौहार्द भाईचारे के दुश्मन थे
ये न हिन्दू थे न मुसलमान थे
ये केवल दंगाई शैतान थे ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
27.02.2020

Tuesday 25 February 2020

Sabaermati ke darshan :साबरमती के दर्शन

खरी खरी - 571 : साबरमती के दर्शन

मैं ध्यान से देख रहा था
वो दूर सात समुद्र पार से आए
वो मेरे साबरमती आश्रम आए
लाव लस्कर समेत आए
मेरे चित्र पर माला रोपी
मेरे चरखे के पास बैठे
कपास पकड़ सूत काता
मेरे बारे में पूछताछ भी की होगी
मेरे तीनों बंदरों को देखा
इधर उधर नजर घुमा कर देखा
मेज पर रखी आगंतुक पुस्तिका देखी
पन्ना खोला कलम खोली
मेरे बारे में तो कुछ लिखा नहीं
शायद वो मुझे भूल गए होंगे
मुझे लगा उन्हें कुछ तनाव था
उनके दिल-दिमाग में चुनाव था ।
- साबरमती का गांधी

पूरन चन्द्र कांडपाल
26.02.2020

Monday 24 February 2020

Mankhiyeki jindgi : मंखियेकी जिंदगी

खरी खरी - 570 : मनखियेकि जिंदगी

मंखियैक जिंदगी 

लै कसि छ,

हव क बुलबुल

माट कि डेल जसि छ ।

जसिक्ये बुलबुल फटि जां

मटक डेल गइ जां,

उसक्ये सांस उड़ते ही

मनखि लै ढइ जां ।

मरते ही कौनी 

उना मुनइ करि बेर धरो,

जल्दि त्यथाण लिजौ

उठौ देर नि करो ।

त्यथाण में लोग कौनी

मुर्द कैं खचोरो,

जल्दि जगौल

क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।

चार घंट बाद

मुर्द राख बनि जां,

कुछ देर पैली लाख क छी

जइ बेर खाक बनि जां ।

मुर्दा क क्वैल बगै बेर

लोग घर ऐ जानीं,

घर आते ही जिंदगी की 

भागदौड़ में लै जानीं ।

मनखिये कि राख देखि 

मनखी मनखी नि बनन,

एकदिन सबूंल मरण छ

य बात याद नि धरन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

25.02.2020

Sunday 23 February 2020

ye jahaan tahaan thookane wale : ये जहां तहां थूकने वाले

खरी खरी - 569 : ये जहां –तहां थूकने वाले

       ‘दाने-दाने में केसर’, ‘बेजोड़’ आदि शब्द-जालों के भ्रामक विज्ञापन पान मसालों के बारे में हम आए दिन देख-सुन रहे हैं | पाउच पर महीन अक्षरों में जरूर लिखा है, “पान मसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ | पान मसाला, गुट्का, तम्बाकू, खैनी, जर्दा चबाने वालों और धूम्रपान करने वालों को अनभिज्ञता के कारण अपनी देह की चिंता नहीं है परन्तु इन्होंने सड़क, शौचालय, स्कूल, अस्पताल, दफ्तर, रेल-बस स्टेशन, कोर्ट-कचहरी, थाना, गली-मुहल्ला, सीड़ी-जीना, यहां तक कि श्मशान घाट तक अपनी गंदी करतूत से लाल कर दिया है |

     बस से बैठे-बैठे बाहर थूकना, कार से थूकना, दो-पहिये या रिक्शे से थूकना इनकी आदत बन गयी है | पान-सिगरेट की दुकान पर, फुटपाथ, दिवार या कोना सब इनकी काली करतूत से लाल हो गये हैं | जहां-तहां थूकने वालों का यह नजारा राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश का है | क़ानून बना है पर उसकी अवहेलना हमारे देश में आम बात है | क़ानून बनाने वाले और क़ानून के पहरेदार भी क़ानून की परवाह नहीं करते | हरेक थूकने वाले के पीछे पुलिस भी खडी नहीं हो सकती है |

      इन थूकने वालों को देख मसमसाने के बजाय, दो शब्द इन्हें “थैंक यू” कहने की हिम्मत जुटा कर हम स्वच्छता अभियान के भागीदार तो बन सकते हैं | “थैंक यू” इसलिए कि न लड़ सकते हैं और लड़ने से बात भी नहीं बनने वाली | हम तो अपने घर के बन्दे से भी इस मुद्दे पर कुछ कहने से डरते हैं |  कुछ महीने पहले काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर जर्मनी के एक जोड़े ने बातों-बातों में मुझे रेलवे प्लेटफार्म की इस गन्दगी के बारे में इस तरह बताया, “आपके देश में सार्वजनिक सम्पति से लोगों को प्यार नहीं हैं | जहां-तहां कूड़ा फैंकने और थूकने को गलत नहीं मानते, जहां मर्जी थूक देते हैं, लघु शंका कर देते हैं, आदि-आदि | उन्होंने हमारी और भी कएक बुराइयां गिनवाई तथा कड़वे अनुभव सुनाए | उनकी बात सही थी | बहुत शर्मिंदा हुआ | क्या बचाव करता, कौनसी छतरी खोलता | हम हैं ही ऐसे |

     उस जोड़े के पास दिल्ली आने का टिकट तो था परन्तु आरक्षण नहीं था | मेरा एक बर्थ रिजर्व था | मैंने बिगड़ी तस्वीर को सुधारने की सोच के साथ कहा, “आप टी टी ई से कहें, वह आपकी मदद करेगा | यदि बर्थ नहीं मिले तो आप मेरे पास जरूर आइए |”  मैंने उन्हें अपना बर्थ और बोगी नंबर लिख कर दे दिया | मैं मन ही मन सोच रहा था, “काश ! वह जोड़ा आ जाता तो मैं छै घंटे जैसे-तैसे काट लेता परन्तु उस जोड़े को अपना बर्थ दे देता | एक घंटा बीतने पर भी वह जोड़ा नहीं आया | शायद उन्हें बर्थ मिल गया होगा | मुझे आज भी मलाल है कि मैं उस विदेशी जोड़े के सामने अपने देश की इमेज सुधारने का भागीदार नहीं बन सका |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.02.2020

Saturday 22 February 2020

Taim par jagau dee : टैम पर जागो दी

खरी खरी - 568 : तय टैम पर  जगौ दी

अच्याल क्वे लै कार्यक्रम
तय टैम पर शुरू नि हुन,
जो टैम पर ऐ जानी उनार
भैटी भैटिए पटै जानी घुन ।

देर में कार्यक्रम शुरू हुंछ
तय टैमक एक घंट बाद,
य एक घंट बरबादी क
के जवाब छ तुमार पास ?

किलै बलूंछा लोगों कैं पैली
ठीक तय टैम पर बलौ,
पै कैक इंतजार नि करो
तय समय पर दी जलौ ।

तुमार देखादेखी आब क्वे लै
टैम कि परवा नि करैं राय,
जो टैम पर पुजि जानी
उनू पर लै नि तरसै राय ।

आयोजन करणियो न्यूत में
तय टैमक सम्मान करो,
क्वे टैम पर ओ झन ओ
कार्यक्रम टैम पर शुरू करो ।

जो टैम पर पुजि जानी
उनुकैं बेकार सजा नि दियो,
सोचो, भल काम करि बेर
बेकारक अपजस नि लियो ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
23.02.2020

Friday 21 February 2020

matribhasha । मातृभाषा

मीठी मीठी - 428 : मातृभाषा दिवस 21 फरवरी,
एक निवेदन -

आपणि भाषा भौत भलि
करि ल्यो ये दगै प्यार,
बिना आपणि भाषा बलाइए
नि ऊंनि दिल कि बात भ्यार।

पूरन चन्द्र कांडपाल

Bhrashtaachaar ki jad :भ्रष्टाचार की जड़

खरी खरी - 567 : भ्रष्टाचार की जड़

जड़ भ्रष्टाचार की
मजबूत इतनी हो गई,
उखड़ वह सकती नहीं
शक्ति सारी खो गई ।

रेत के पुल बन रहे हैं
नजरें घुमाए वे खड़े,
खा रहे भीतर ही भीतर
राष्ट्र को दीमक बड़े ।

डिग्रियां तो बिक रही हैं
अब सरे बाजार में,
नाव शिक्षितों की डोली
जा रही मजधार में ।

मंतरी से संतरी तक
बिक रहे हैं खुलेआम,
घोटालों के संरक्षक
घूम रहे हैं बेलगाम ।

बैंक खाली करके वो तो
छोड़ गया है देश को,
थोड़े कर्ज में जो दबा था
वो छोड़ रहा है देह को ।

भ्रष्ट लोगों के घरों में
जल रहे घी के दीये,
रोकने वाले थे जो
वे भी उन्हीं में मिल लिए ।

टूट रहा है मनोबल
कर्मठ निष्ठावान का,
चक्रव्यूह घेरे उसे है
भ्रष्ट चोर शैतान का ।

सत्यवादी सद्चरित्र का
मान पहले था जहां,
आज झूठे चोर बेईमान
पूजे जाते हैं वहां ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.02.2020

Thursday 20 February 2020

Andhvishwaas virod shiv datt sati : अंधविश्वास विरोध शिव दत्त सती

खरी खरी - 566 : अंधविश्वास क विरोध पैली लै हौछ 

(मातृभाषा दिवस पर विशेष ,21 मार्च)

        अंधविश्वासक जाड़ भौत गैर छीं । कबीर ल त १४वीं सदी में पाखण्ड और अंधविश्वास का घोर विरोध करौ छै, हमार उत्तराखंडी कवियों शिवदत सती, गौरदा, गिरदा, शेरदा बटि आत्माराम गैरोला, भावानीदत्त थपलियाल, चक्रधर बहुगुणा, अदित्यराम दुदपुड़ी तक सबूल समाज में व्याप्त रूढिवाद और पाखण्ड क जम बेर विरोध करौ | साहित्य अकादमी भाषा सम्मान प्राप्त, कयेक किताबों क रचियता रामनगर निवासी मथुरादत मठपाल ज्यू द्वारा संकलित ‘दुदबोली’ में शिवदत सती ( १८४८-१९४० ई.) ग्राम भड़गांव, जिला अल्मोड़ा रचित ‘मित्र विनोद’ कि कुछ लैन आज कि बिरखांत में उनुकैं श्रधांजलि स्वरुप प्रस्तुत छीं –

ज्युन छन दुःख दियो, करो बरबाद;
मरी बेर गयाकाशी करले सराद |
मरिया की गयाकाशी, माटी लीण जायो;
ज्युना कण दुःख दियो जरा नि लजायो |
सराद में आई बेर, मारिया नि खाना;
बामण ज्यू खाई जानी बिरादर नाना |
के जाणनी पतड़िया करमों का हाल;
पर्वत रौण भलो झन पड़े मॉल |


खानदानी बामण त है गईं नौकर;
पितलिया पतड़िया है गीं घर घर |
ठगणियां बामण क मानी जले कयो;
तनरो त येसो कोणों रुजगार हयो |
नि जानना अनपढ़ यो छ पोप जाल;
पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |

आपण लिजिया सब बामण लिजानी;
यजमान बहकाई बेर बैठी-बैठी खानी |
कठुवा बामण ले रचो गरुड़ पुराण;
साँची मानी जानी सब यती अनजान |
गरुड़ पुराण छा यो बड़ो झूठो जाल ;
पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |

परबुद्धि अकल में बासी जौ कफुवा;
मरिया का लिजिय जो लागौछ ढपुवा |
नि पुजनो नि पुजनो मारिया का उती;
बामण को रुजगार लिजाण की बुती |
नि जाणनै मूरख तु ठगण की चाल;
परवत रौण भलो झन पड़े माल |

बामण ले फोड़ी दियो भारत को दान;
कुनली मिलाई बेर होई जानी रान |
बामण का घर देख विधवों को ठाल;
पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |

भटकछै तीर्थों में कती छन राम;
हिरद में ध्यान लगो उती वीको धाम |
शिवदत्त नौ छ मेरो शिबुवा कै दिनी;
बिगड़िया खापड़ी का अपयश लिनी |
कथ मरूं मरनेसू हरै गोछ काल:
परवत रौण भलो झन पड़े माल |

      शिव दत्त सती आज बटि ८० वर्ष पैली १९४० में दिवंगत है गईं | उनूल समाज में व्याप्त विषमताओं, अंधविश्वास, छुआछूत, रूढिवाद क जम बेर विरोध करौ | यसिकै लखनऊ निवासी वरिष्ठ लेखक प्रयाग दत पंत लै समाज कैं जागृत करते रौनी | आज हम विज्ञान क युग में रौनू और उई प्रथा – परम्परा कैं हमूल अपनूण या मानण चैंछ जैक क्वे वैज्ञानिक आधार हो | गरुड़ पुराण  मील लै सुणौ| मि मित्र विनोदक लेखक दगै सहमत छयूं |

(आज 21 मार्च 2020 महाशिव रात्रि लै छ । शुभकामना ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.02.2020

Maatri bhasha diwas : मातृभाषा दिवस

बिरखांत - 306 : मातृभाषा दिवस पर विशेष

        लगभग एक हजार से अधिक वर्ष पुरानी कुमाउनी-गढ़वाली भाषा जो कभी कत्यूरी और चंद राजाओं की राजकाज की भाषा थी, गोरखा आक्रमण में मार डाली गई | रचनाकार आगे आए और भाषा पुन: पनप गई |  आज इन भाषाओं के साहित्यकार हैं और बहुतायत साहित्य भी है । 21 फरवरी को देश में प्रतिवर्ष मातृभाषा दिवस विगत तीन वर्ष से मनाया जा रहा है । 17 नवम्बर 1999 को यूनेस्को ने इस दिवस को घोषित किया जिसे 2008 में  संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मान्यता दी और सभी  सदस्य राष्ट्रों से मातृभाषाओं को संरक्षण और बढ़ावा देने का आह्वान किया ।

     दो दशक पहले कुछ मित्रों ने कहा, ‘आप हिन्दी में लिख रहे हैं अच्छी बात है परन्तु कुमाउनी मरने लगी है, इसे भी ज़िंदा रखो |’ मैंने प्रयास किया और कुमाउनी की कुछ विधाओं पर बारह (12)  पुस्तकें लिख दी | दो पुस्तकें ‘उज्याव’ (उत्तराखंड सामान्य ज्ञान, कुमाउनी में ) और ‘मुक्स्यार’ ( कुमाउनी कविताएं ) निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड सरकार ने कुमाऊं के पांच जिल्लों- अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, पिथौरागढ़ और चम्पावत के सभी पुस्तकालयों हेतु खरीदने के लिए इन सभी जिल्लों के मुख्य शिक्षा अधिकारियों को पत्रांक २२४८१-८६/पुस्तकालय/२०१२-१३ दिनांक २३ जून २०१२ के माध्यम से आदेश दिया |

      तब से 9 वर्ष बीत चुके हैं, कई स्मरण पत्र देने पर भी आज तक एक भी पुस्तक नहीं खरीदी गई | नीचे से ऊपर तक कुर्सी में बैठे हुए जिस साहब से भी कहा उसने वायदा किया परन्तु परिणाम शून्य रहा | यही नहीं दिल्ली और उत्तराखंड की कई नामचीन संस्थाओं एवं कई व्यक्तियों ने भी मेरे अनुरोध पर विद्यार्थियों के लिए लिखी गई मेरी पांच पुस्तकों (उज्याव,  बुनैद, इन्द्रैणी, लगुल, महामनखी –प्रत्येक का मूल्य मात्र 100/- ) को समाज में पहुंचाने का कई बार बचन दिया, वायदा किया परन्तु इक्का-दुक्का व्यक्तियों ने ही वायदा निभाया |

     इन पुस्तकों में मैंने सूक्ष्म शब्दों में गुमानी पंत, गिरदा, शेरदा, कन्हैयालाल डंड्रीयाल, पिताम्बरदत बड़थ्वाल, शैलेश मटियानी, सुमित्रानंदन पंत, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली, ज्योतिराम काण्डपाल, बिशनी देवी शाह, टिंचरी माई, लवराज सिंह धर्मशक्तु, सुन्दरलाल बहुगुणा, बछेंद्री पाल, गौरा देवी, विद्यासागर नौटियाल, श्रीदेव सुमन, चंद्रकुंवर बर्त्वाल सहित गंगा, हिमालय, उत्तराखंड राज्य, पर्यटन, स्वतंत्रता सेनानी, किसान, सैनिक, विद्यार्थी, अध्यापक एवं राष्ट्र के कई महापुरुषों,( 8 नोबेल, 45 भारतरत्न, 21 परमवीरचक्र, 66 अशोकचक्र ) १३ राष्ट्रपतियों, १४ प्रधानमंत्रियों तथा कई अन्य विषयों को छूने का प्रयास किया है |

     विचार गोष्ठियों एवं सम्मेलनों में अक्सर इस साहित्य को गांव-देहात तक पहुंचाने के खूब वायदे सुनता हूं परन्तु क्रियान्वयन शून्य | काश ! हम सब एक-एक पुस्तक भी अपने घर /संस्था में रखते, अपने गांव के अध्यापक- सभापति- सरपंच तक पहुंचाते तो बच्चे अवश्य जानते कि ये ‘गिरदा’-‘  या गढ़वाली’ आदि उक्त व्यक्ति कौन हैं और हमारी लिखित भाषा भी उन तक पहुंचती | हम आयोजनों  में आते हैं, भाषण देते - सुनते हैं, और वापस चल पड़ते हैं | बस यही अक्सर होता है  | निराश नहीं हूं | वसंत जरूर आएगा |

“अभी निराशा का घुप्प
अंधेरा नहीं हुआ है,
आशा के रोशन चिराग
भी हो रहे हैं;
खुदकुशी करने का मन
जब करता है कभी,
पहरे जीने की तम्मन्ना
के भी लग रहे हैं |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.02 .2020

Haath milane se pahale : हाथ मिलाने से पहले

खरी खरी - 565 :जरा सोचिए हाथ मिलाने से पहले ?

       सुप्रसिद्ध शायर बशीर बद्र अब 85 वर्ष के हो गए हैं । उनका एक बहुत ही प्रचलित शेर है -

" जरा हाथ क्या मिला दिया
यों गले मिल गए तपाक से,
ये गर्म मिजाज का शहर है
जरा फासले से मिला करें ।"

     अब हम सब हाथ मिला कर एक दूसरे का अभिवादन करने लगे हैं । हाथ जोड़कर अभिवादन का रिवाज ही समाप्त हो गया । फिर भी महिलाओं से हम हाथ जोड़कर ही अभिवादन करते हैं । ' हाथ मिलाना ' एक मुहावरा भी है । वैसे हाथ के साथ जुड़े कई मुहावरे हैं - हाथ की सफाई, हाथ खींच लेना, हाथ तंग होना, हाथ थामना, हाथ पकड़ना, हाथ पीले करना, हाथ फेरना, हाथ बंटाना, हाथ बढ़ाना, हाथ मारना आदि आदि । हाथ धोना, हाथ धो बैठना, हाथ धो लेना भी मुहावरे हैं ।

      कभी कभी बड़ी मजबूरी में न चाहते हुए भी हाथ मिलाना पड़ता है । तब हम उस व्यक्ति से आंख नहीं मिलाते, सिर्फ हाथ मिलाते हैं । ' ऐसे में 'जिंदगी का अजब दस्तूर निभाना पड़ता है, दिल मिले या न मिले हाथ मिलाना पड़ता है ।' हाथ मिलाने की बात पर डाक्टर कहते हैं, ' हमारे शरीर का सबसे गंदा अंग हमारा दांया हाथ है । हम इससे खुजली भी करते हैं और नाक भी पोछते हैं । हम इसे नाक में, मुंह में और कान में भी घुसाते हैं, आंख भी छूते हैं तथा कुदरती विसर्जन करते समय भी इसकी मदद लेते हैं । हम बस के डंडे, मेट्रो के डंडे और मेट्रो एक्स्क्लेटर पर भी हाथ को रगड़ते हुए चलते हैं । ऐसा सभी करते हैं क्योंकि सब जगह हमारा दांया हाथ आगे रहता है इसलिए यह सबसे अधिक गंदा है । जो जगह हमने अपने हाथ से पकड़ी उसे हम से पहले सबने पकड़ा जिसकी वजह से ये स्थान सर्दी - जुकाम सहित अन्य कई प्रकार के वाइरसों और रोगाणुओं से भरे होते हैं ।

       हम में से अधिकांश लोग भोजन से पहले हाथ नहीं धोते । शायद घर में धोते हों परन्तु किसी पार्टी में तो नहीं धोते । बिना हाथ धोए भोजन करते हैं, प्रसाद या लंगर भी छक लेते हैं और गोलगप्पे खाते हैं । आजकल एक बहुत ही खतरनाक वायरल बीमारी कोविड- 19 (कोरॉना वाइरस ) से चीन में 1800 लोग मर चुके हैं और 75 हजार रोग ग्रस्त हैं । दुनिया के 16 देशों में यह रोग दस्तक दे चुका है । इसकी कोई दवा नहीं है । बचाव का एकमात्र उपाय है स्वच्छता और अपने हाथ से उन अंगों को नहीं छूना जिनकी ऊपर चर्चा की गई है तथा हाथ धोना और किसी से भी हाथ नहीं मिलाना ।

     इस खरी खरी का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हाथ धोते रहने से हम कई बीमारियों से बचेंगे और हाथ मिलाने के बजाय हम अभिवादन हाथ जोड़कर करें तो हम सभी वायरल बीमारियों से बचेंगे । हम सचेत रहेंगे तो कुछ ही दिनों में हमारी हाथ मिलाने की आदत छूट जाएगी । यदि कोई हाथ मिलाना चाहे भी तो हम हाथ जोड़ कर उसे अभिवादन कर सकते हैं । यदि हमारा कोई लंगोटिया यार हाथ मिलाने की जिद भी करे तो हम कह सकते हैं, "यार मेरा हाथ गंदा है ।" यदि अब भी हम अपनी आदत नहीं सुधारेंगे और हाथ धोने की आदत नहीं अपनाएंगे तो किसी जान लेवा हस्त- स्पर्श हस्तांतरित वायरल बीमारी के कारण हम अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
20.02.2020

Tuesday 18 February 2020

Jute chappal note gajer :जूते चप्पल नोट गाजर

खरी खरी - 564 : जूते - चप्पल, नोट - गाजर


       भले ही खरी - खरी कुछ अटपटी सी लगे परन्तु अटपटी नहीं है । जो लोग जूते या चप्पल पहन कर घर के अंदर घूमते हैं या किसी के घर में घुसते हैं उन्हें कभी फुर्सत मिले तो अपने जूते - चप्पल के तले जरूर देख लें ।  तले पर गंदगी चिपकी हुई स्पष्ट नजर आएगी । इस गंदगी में कई तरह की बीमारियों के कीटाणु होते हैं और पूरे फर्स पर फ़ैल जाते हैं जो परिवार के किसी भी व्यक्ति को बीमार कर सकते हैं । जिन घरों में जूते बाहर रखने का नियम है वह बहुत अच्छी बात है ।  हमें संकल्प करना चाहिए कि हम किसी के घर में जूते - चप्पल पहन कर न घुसें । अस्पताल या ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश होने से पहले इसी कारण जूते - चप्पल बाहर उतराए जाते हैं ।

         पार्क की बैंच पर बैठ कर देखा कि कुछ जुआरी जूते के नीचे नोट दबाकर जुआ खेल रहे थे । वहीं पर घास में गुटका भी थूक रहे थे । नोटों पर पार्क की गंदगी लग रही थी । कुछ जुआरी उन्हीं नोटों को मुंह में भी डाल रहे थे । RTV या बस का कंडक्टर, सब्जी - फल बेचने वाले ये भी नोट को मुंह में पकड़ते है । शादी में दारू गटकने के बाद दूल्हे के कुछ मित्र मुंह में नोट डाल कर ढोल - बैंड वाले के मुंह से नोट खिचावाते हैं । श्मशान में पंडा भी मुर्दे के ऊपर नोट रखवाता है और देखदेखी सब रखते चले जाते हैं ।पंडा मुर्दे को चिता में रखवाता है और नोट जेब में रखता है । इस तरह जो भी नोट हमारी जेब में हैं वे सबसे अधिक रोगाणु अपने में लपेटे हुए हैं । कम से कम हम तो ऐसा न करें और बीमारी से बचें । गंदे नोट स्वीकार न करें तथा गंदे नोटों को सबसे पहले खर्च करें ।

          हम गाजर - मूली बाजार से लाकर धोने के बाद उन्हें फ्रिज में रख देते हैं । गाजर और मूली के पत्ते व तने के बीच के भाग में पेट के कीड़े के सूक्ष्म अंडे होते हैं या रोगाणु अड्डा जमाए रहते हैं । इससे पूरा फ्रिज भी दूषित होता है । अतः पत्ते और तने के बीच के भाग को काट कर ही गाजर - मूली फ्रिज में रखने चाहिए ।  हरी पत्ते वाली सब्जियों, धनिया - पोदीना में कीड़े औेर छोटे कैंचवेे चिपके रहते हैं । पालक में तो छोटे सांप भी देखे गए हैं । फ्रिज में सभी सब्जियां धोने के बाद रखने से फ्रिज बीमारी का गोदाम बनने से बच सकता है । थोड़ी सावधानी बरतने सी आज की खरी खरी आपके स्वास्थ्य के लिए मीठी मीठी बन सकती हैं ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

19.02.2020