Sunday 29 March 2020

Anand vihar ki bheed : आनंद विहार की भीड़ ठीक नहीं

खरी खरी - 592 : आनंद विहार की भीड़ ठीक नहीं

    दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा आई एस बी टी आनंद विहार दिल्ली पर भीड़ के कारण - बीमारी का डर, घर पहुंचने की जल्दी, धैर्य - संयम की कमी, बीमारी की गंभीरता की नासमझ ।  सरकार मिलकर काम कर रही है, उस पर भरोसा करना चाहिए । सरकार की "जहां हो वहीं रहो " बात की अनसुनी करना गलत । लोगों को 135 करोड़ जनसंख्या के हमारे देश में तुरन्त करिश्में की उम्मीद नहीं करनी चाहिए । जो लोग रात - दिन दिलोजान से जूझ रहे हैं उनके किए - कराए पर पानी न फेरें । हमारी गैर - जिम्मेदार हरकतों से सबका मनोबल टूट सकता है । सब अपनी जिम्मेदारी समझें और निर्देशों को मानें तथा जहां हैं वहीं रहें । घर में रहें , बाहर न निकलें ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
29.03.2020

Samaaj sewi kaun :समाज सेवी कौन

खरी खरी - 591 : समाजसेवी की पहचान

     समाजसेवा उतना आसान काम नहीं है जितना लोग इसे समझते हैं । हमारे चारों ओर एक बहुचर्चित शब्द है 'समाजसेवी' । किसी भी आयोजन या समारोह में माइक में खूब गुंजायमान होता है कि अमुक समाजसेवी हमारे बीच हैं । कई बार तो 01 पैसे का काम पर 99 पैसे का शोर मिश्रित अपचनीय प्रचार होता है ।

     'समाजसेवी' का वास्तविक अर्थ है जो समाज के हित में निःस्वार्थ सेवा करे और अपना मुंह खोले तथा उस दिखाई देने वाली सेवा का बखान अन्य लोग भी करें और उस सेवा से समाज का वास्तव में भला भी हो । हमारे इर्द-गिर्द कुछ लोग ऐसे अवश्य दिखाई देते हैं जिनसे हमें प्रेरणा मिलती है । ऐसे लोग प्रत्येक विसंगति को बड़ी विनम्रता से इंगित करते हैं और परिणाम प्राप्त करते हैं । आज जब देश में कोरोना वायरस के कारण भारत बंद का चौथा दिन है और देश में इस बीमारी से 887 लोग ग्रसित हो गए हैं तथा 17 लोग हमारे बीच से जा चुके हैं,  तब भी कुछ लोग सरकारी आदेशों का पालन करते हुए कुछ न कुछ समाज सेवा कर रहे हैं । ( आज प्रातः की सूचना के आधार पर विश्व में 199 देशों के 5,94,791 लोग इस रोग से ग्रसित हैं और 27,255 व्यक्ति इसके शिकार हो चुके हैं ।)  किसी व्यक्ति को घर से बाहर नहीं जाने के लिए प्रेरित करना और स्वयं बाहर न जाना भी आज देश सेवा का पर्याय बन गया है ।

     बिना समाज के लिए कुछ कार्य किये हम क्यों किसी को समाजसेवी कह देते हैं ? जो स्वयं को समाजसेवियों में गिनते हैं उन्हें एक डायरी या कापी अपने लिए भी बनानी चाहिए जिसमें स्वयं द्वारा प्रतिदिन समाज के हित में किये गए कार्य की चर्चा स्वयं लिखी जाए । हमें कुछ ही दिनों में अपने समाज- सेवी होने का प्रमाण स्वतः ही मिल जाएगा । हम 'वन्देमातरम, 'भारतमाता की जय' और 'जयहिन्द' शब्दों को तभी साकार या सार्थक कर सकते जब हम अपनी क्षमता के अनुसार समाज और देश के लिए देश के कानूनों और सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए कुछ न कुछ आंशिक योगदान देते रहें । जयहिन्द ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.03.2020

Tum raah dikhaate ho : तुम राह दिखाते हो

मीठी मीठी - 440 : तुम राह दिखाते हो

( 'खरी खरी' तो प्रतिदिन होती है । आज 'मीठी मीठी' एक भजन/प्रार्थना  'तुम राह दिखाते हो ।' वैसे 2 मिनट प्रभू स्मरण तो प्रतिदिन करता हूं और सबको करना भी चाहिए । प्रभू स्मरण के लिए किसी भी प्रकार के आडंबर या दिखावे की आवश्यकता नहीं है । घर के मंदिर में ही माथा टेकना सर्वोत्तम । )

तुम राह दिखाते हो

तुम ज्योति जगाते हो,

भटके हुए मेरे मन को

प्रभु जी थाह दिलाते हो ।

जब -जब मेरे 

मन में प्रभु जी

अंधियारा घिर आया,

देर नहीं की आकर तुमने

ज्ञान का दीप जलाया,

सुख-दुख जीवन 

के पहलू हैं

तुम्हीं बताते हो । तुम...

संकट के बादल छिटकाये

क्रोध की अग्नि बुझाई,

भंवर से तुमने 

मुझे निकाला

खुद पतवार बनाई,

मेरे मन की चंचल नैया को

तुम पार लगाते हो । तुम...

जीवन मेरा

सफल हो जाये

तुम्हरी कृपा पा जाऊं,

फल की आस 

जगे नहीं मन में

कर्म पै बलि बलि जाऊं,

कर्म ही मेरा दीन धरम 

संदेश बताते हो । तुम...

(आज इस प्रार्थना का वीडियो भेजने का प्रयास करूंगा । यह भजन मेरी पुस्तक " यादों की कालिका " ( 2010) में अन्य 51 कविताओं के साथ है ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल

27.03.2020

Wednesday 25 March 2020

Korona se ladane wale :कोरोना से लड़ने वाले

खरी खरी - 590 : कोरोना से लड़ने वाले

( यह एक कौकटेल कविता है । कुछ पुरानी, कुछ नई, कुछ वर्तमान की आपके दिल में उठने वाली उमड़ - घुमड़ कुछ इसी तरह चल रही है इस दौर में । जीत के लिए सबसे बड़ी दवा है हिम्मत की सुई । घर बैठकर अपने वीरों को सलाम करते हुए चलो कविता की ओर रुख करते हैं । आज भारत बंद का दूसरा दिन है । हिम्मत के साथ घर में रहो, भागेगा कोरोना । जयहिंद । )

रोने से कभी
कुछ नहीं मिलता,
रह नहीं  गए अब
आंसू  पोछने वाले ।
.
दूर क्यों जाते हो
खोजने -ढूढने उन्हें,
तुम्हारे सामने ही हैं
पीठ पीछे बोलने वाले।

भरोसा मत करो
दिल अजीज कह कर,
शरीफ से लगते हैं
छूरा घोपने वाले।

संभाल अपने को
मतलब परस्तों से,
देर नहीं लगायेंगे
भेद खोलने वाले।

साथ देने की कसम पर
यकीन मत कर इनकी,
बहाना ढूढ़ लेते हैं
साथ छोड़ने वाले।

धर्म और मजहब सब
एक ही सीख देते हैं,
मतलब जुदा निकाल लेते हैं
समाज तोड़ने वाले।

अपने घर की बात
घर में ही रहने दो,
लगाकर कान बैठे हैं
घर को फोड़ने वाले।

दो बोल प्रेम के
बोल संभल के ,
नुक्ता ढूढ़ ही लेंगे
तुझे टोकने वाले।

आजकल घर से बाहर तू
भूल से भी मत निकल,
घुस सकते हैं तुझ में
वायरस कोरोना वाले ।

एक नज़र उनकी
तरफ भी देख जी भर,
बड़ी हिम्मत से जूझ रहे हैं
क्रूर कोरोना से लड़ने वाले।

करते हैं दिल से सलूट
इन साहसी कर्मवीरों को,
अथाह हिम्मत वाले हैं
ये कोरोना को भगाने वाले ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.03.2020

Nav samvtsar :नव संवत्सर

मीठी मीठी - 438 : नव वर्ष नव- संवत्सर आरम्भ

       भारत  का नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 25 मार्च  2020 आज आरम्भ हो रहा है ।  आज भी हमें एक-दूसरे को शुभकामना देनी चाहिए । देश में मुख्य तौर से प्रति वर्ष तीन नव -वर्ष मनाये जाते हैं | पहला 1 जनवरी को जिसकी पूर्व संध्या 31 दिसंबर को मार्केटिंग के बड़े शोर-शराबे के साथ मनाई जाते है | 1 जनवरी का शुभकामना संदेश भी बड़े जोर-शोर से भेजा जाता है ।  यह नव -वर्ष भारत सहित अंतरराष्ट्रीय जगत में सर्वमान्य हो चुका है |

     दूसरे नव- वर्ष को विक्रमी सम्वत कहते हैं जो ईसा पूर्व 57 से मनाया जता  है | 2020 में वि.स. 2077 है जो 25 मार्च 2020 से आरम्भ हो रहा है । आज से ही नव संवत्सर भी आरम्भ है । तीसरा नव वर्ष साका वर्ष है जो 78 ई. से आरम्भ हुआ अर्थात यह वर्तमान 2020  से 78 वर्ष पीछे है | इसका वर्तमान वर्ष 1942 है |

      भारत एक संस्कृति बहुल देश है जहां कई संस्कृतियाँ एक साथ फल-फूल रहीं हैं | यहां लगभग प्रत्येक राज्य में अलग अलग समय पर नव वर्ष मनाया जाता है | अनेकता में एकता का यह एक विशिष्ट उदाहरण है | हमारे देश ‘भारत’ का नाम अंग्रेजी में ‘इंडिया’ है | कई लोग कहते हैं कि हमारे देश का नाम सिर्फ और सिर्फ ‘भारत’ होना चाहिए | पड़ोसी देशों के नाम अंग्रेजी में भी वही हैं जो वहां की अपनी भाषा में हैं | ‘इंडिया’ शब्द ‘इंडस’ से आया | ‘इंडस’ शब्द ‘हिंदु’ से आया और ‘हिंदु’ शब्द ‘सिन्धु’ से आया (इंडस रिवर अर्थात सिन्धु नदी ) | ग्रीक लोग इंडस के किनारे के लोगों को  ‘इंदोई’ कहते थे |

      जो भी हो यदा कदा यह प्रश्न बना रहता है कि एक देश के दो नाम क्यों ? देश में कुछ लोग ‘इंडिया’ को अमीर और ‘भारत’ को गरीब भी मानते हैं अर्थात इंडिया मतलब ‘शहरीय भारत’ और भारत मतलब ‘ग्रामीण भारत’ | हमारा देश सिर्फ ‘भारत’ ही पुकारा जाय तो अच्छा है | सभी मित्रों को नव वर्ष की शुभकामनाए ।

        वर्तमान में भारत सहित पूरा विश्व कोरोना बीमारी से ग्रस्त है । हमें इस संकट की घड़ी में 24 मार्च 2020 को रात्रि 8 बजे  प्रधानमंत्री द्वारा की गई अपील को अक्षरशः मानना है । घर से बाहर न निकलें । पूरा देश कर्फ्यू में है । हम सुनें, समझें और सहयोग करें । कहते हैं भगवान भी उसकी मदद करता है जो स्वयं की मदद करता है । अपने देश के खातिर घर से बाहर न निकलिए और परेशानी को हिम्मत से झेलिए । पुनः नव वर्ष की शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.03.2020

Monday 23 March 2020

Are wo baaher ghumane walo : वो बाहर घूमने वालों

खरी खरी - 589 : अरे वो बाहर घूमने वालो !

   दिल्ली बंद, धारा 144, कर्फ्यू,  लॉक डाउन के बाद भी कोरोना बीमारी को गंभीरता से न लेते हुए बाहर घूमने वालों से एक विनम्र निवेदन -

खुद को तो
तुम मार रहे हो,

सबको खतरे में
डाल रहे हो,

घर में ही अपने
को रोक लो,

क्यों तुम बाहर
भाग रहे हो ?

घर में रहोना
भागे कोरोना ।

कोरोना पर नजर : विश्व- ग्रसित देश 192, कुल केस 3.78 लाख,  मृत्यु 16510 : भारत - कुल ग्रसित केस 499, मृत्यु- 9 : हाथ धोना, बाहर न जाना, भीड़ से बचना, भागे कोरोना। (24 मार्च 2020, 0600 am)। जानकारी जरूरी और सतर्कता भी जरूरी ।  हमारी लापरवाही हमारे लिए, हमारे परिवार और हमार देश के लिए घातक । जनता कर्फ्यू बढ़ाना देश हित में होगा ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.03.2020

Sunday 22 March 2020

Haath milaane se pahle। हाथ मिलाने से पहले

खरी खरी -588 :जरा सोचिए हाथ मिलाने से पहले ?

(यह खरी खरी 20 .02.2020  (565) को लिखी थी जो आज बहुत प्रासंगिक हो गई है । हाथ धोना, घर में रहना ,भीड़ से बचना ,सबसे बड़ी जागरूकता और बचाव है आज के दिन।)

       सुप्रसिद्ध शायर बशीर बद्र अब 85 वर्ष के हो गए हैं । उनका एक बहुत ही प्रचलित शेर है -

" जरा हाथ क्या मिला दिया
यों गले मिल गए तपाक से,
ये गर्म मिजाज का शहर है
जरा फासले से मिला करें ।"

     अब हम सब हाथ मिला कर एक दूसरे का अभिवादन करने लगे हैं । हाथ जोड़कर अभिवादन का रिवाज ही समाप्त हो गया । फिर भी महिलाओं से हम हाथ जोड़कर ही अभिवादन करते हैं । ' हाथ मिलाना ' एक मुहावरा भी है । वैसे हाथ के साथ जुड़े कई मुहावरे हैं - हाथ की सफाई, हाथ खींच लेना, हाथ तंग होना, हाथ थामना, हाथ पकड़ना, हाथ पीले करना, हाथ फेरना, हाथ बंटाना, हाथ बढ़ाना, हाथ मारना आदि आदि । हाथ धोना, हाथ धो बैठना, हाथ धो लेना भी मुहावरे हैं ।

      कभी कभी बड़ी मजबूरी में न चाहते हुए भी हाथ मिलाना पड़ता है । तब हम उस व्यक्ति से आंख नहीं मिलाते, सिर्फ हाथ मिलाते हैं । ' ऐसे में 'जिंदगी का अजब दस्तूर निभाना पड़ता है, दिल मिले या न मिले हाथ मिलाना पड़ता है ।' हाथ मिलाने की बात पर डाक्टर कहते हैं, ' हमारे शरीर का सबसे गंदा अंग हमारा दांया हाथ है । हम इससे खुजली भी करते हैं और नाक भी पोछते हैं । हम इसे नाक में, मुंह में और कान में भी घुसाते हैं, आंख भी छूते हैं तथा कुदरती विसर्जन करते समय भी इसकी मदद लेते हैं । हम बस के डंडे, मेट्रो के डंडे और मेट्रो एक्स्क्लेटर पर भी हाथ को रगड़ते हुए चलते हैं । ऐसा सभी करते हैं क्योंकि सब जगह हमारा दांया हाथ आगे रहता है इसलिए यह सबसे अधिक गंदा है । जो जगह हमने अपने हाथ से पकड़ी उसे हम से पहले सबने पकड़ा जिसकी वजह से ये स्थान सर्दी - जुकाम सहित अन्य कई प्रकार के वाइरसों और रोगाणुओं से भरे होते हैं ।

       हम में से अधिकांश लोग भोजन से पहले हाथ नहीं धोते । शायद घर में धोते हों परन्तु किसी पार्टी में तो नहीं धोते । बिना हाथ धोए भोजन करते हैं, प्रसाद या लंगर भी छक लेते हैं और गोलगप्पे खाते हैं । आजकल एक बहुत ही खतरनाक वायरल बीमारी कोविड- 19 (कोरॉना वाइरस ) से चीन में 1800 लोग मर चुके हैं और 75 हजार रोग ग्रस्त हैं । दुनिया के 16 देशों में यह रोग दस्तक दे चुका है । इसकी कोई दवा नहीं है । बचाव का एकमात्र उपाय है स्वच्छता और अपने हाथ से उन अंगों को नहीं छूना जिनकी ऊपर चर्चा की गई है तथा हाथ धोना और किसी से भी हाथ नहीं मिलाना ।

     इस खरी खरी का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हाथ धोते रहने से हम कई बीमारियों से बचेंगे और हाथ मिलाने के बजाय हम अभिवादन हाथ जोड़कर करें तो हम सभी वायरल बीमारियों से बचेंगे । हम सचेत रहेंगे तो कुछ ही दिनों में हमारी हाथ मिलाने की आदत छूट जाएगी । यदि कोई हाथ मिलाना चाहे भी तो हम हाथ जोड़ कर उसे अभिवादन कर सकते हैं । यदि हमारा कोई लंगोटिया यार हाथ मिलाने की जिद भी करे तो हम कह सकते हैं, "यार मेरा हाथ गंदा है ।" यदि अब भी हम अपनी आदत नहीं सुधारेंगे और हाथ धोने की आदत नहीं अपनाएंगे तो किसी जान लेवा हस्त- स्पर्श हस्तांतरित वायरल बीमारी के कारण हम अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे ।

( घर में रहो, कोरोना से बचो, हाथ धोते रहो, भीड़ से बचो, स्वच्छता रखो । आज से 15 दिन का सख्त अनुशासन हमारे देश को इस क्रूर कोरोना से बचा सकता है । कल 22 मार्च 2020 को पूर्ण जनता कर्फ्यू रहा । सायं 5 बजे कोरोना से जूझने वालों का ताली - थाली बजाकर आभार व्यक्त किया  जिसका अर्थ है कि ये लोग हमारे लिए वह कार्य कर रहे हैं जो हम नहीं कर पा रहे । )

पूरन चन्द्र कांडपाल
23.03.2020

Friday 20 March 2020

Haath dhona : हाथ धोना

खरी खरी 586 - शरीर का सबसे अस्वच्छ अंग, हमारा दांया हाथ

( हाथ न मिलाएं, हाथ धोएं, घर में रहें, भीड़ से बचें )

     क्या आप जानते हैं कि मनुष्य के शरीर का सबसे अधिक अस्वच्छ अंग कौनसा है ? जी वह है हमारा दांया हाथ । एक अध्ययन के अनुसार हमारे देश में 47 % लोग शौच के बाद साबुन से हाथ नहीं धोते हैं । 62 % लोग भोजन करने से पहले और 70 % लोग भोजन पकाने से पहले हाथ नहीं धोते हैं ।

     हम दिन भर सबसे हाथ मिलाते हैं, रेल- मेट्रो- बस- टैक्सी के डंडे-दरवाजे पकड़ते हैं, सीड़ियों के रैलिंग पकड़ते हैं, नाक- कान- मुंह में हाथ डालते हैं, कार्यालय के काउंटर- टेबल- खिड़की- कुंडी पर हाथ लगाते हैं, स्विच- रिमोट- मोबाइल- पैन- सार्वजनिक बेंच-कुर्सी, करंसी नोट-सिक्के आदि सब पर दिन भर हाथ रगड़ते रहते हैं । पसीना पोछते हैं, विसर्जनांग स्पर्श करते हैं, खांसते- छींकते मुंह पर हाथ रखते हैं । सारा दिन हमारा दांया हाथ इन सभी जगहों से पूरी तरह दूषित- अस्वच्छ हो जाता है ।

     गंदे हाथ से हमें जुकाम, डायरिया, हैपेटाइटिस, आंख की बीमारी, हैजा, टाइफाइड, वाइरल जैसे कई रोग हो सकते हैं । सौ बातों की एक बात यह है कि भोजन करने और खाना बनाने से पहले, स्कूल- कार्यालय से घर पहुंचते ही सबसे पहले साबुन से अच्छी तरह रगड़कर हाथ धोने चाहिए ।

अभिवादन करने के लिए हाथ मिलाने के बजाय हाथ जोड़कर अभिवादन करने की आदत डालिये । यदि हमने ऐसा कर लिया तो 90% रोगों से हमने स्वयं को बचा लिया । सोचिए मत, आज ही से हाथ धोकर इस पुनीत आदत को अपनाने हेतु अपने पीछे पड़ जाइये ।

      यह लेख 6 जुलाई 2017 को सोसल मीडिया में लिखा तथा शिल्पकार टाइम्स में भी छपा । आज इस लेख की प्रासंगिकता बढ़ गई है । वर्तमान में कोरोना बीमारी से बचाव का हाथ न मिलाना एक कारगर उपाय है । 2019 में भी लिखा और 20 फरवरी 2020 को पुनः लिखा । 

समझो और समझाओ । 


हाथ न मिलाओ । 


मुस्कराते हुए केवल


दूर से हाथ हिलाओ ।

पूरन चन्द्र कांडपाल


21.03.2020


Thursday 19 March 2020

Nirbhaya ke doshiyon को fansai : निर्भया के दोषी फांसी पर लटका ए गए

खरी खरी - 585 : निर्भया के दरिंदे लटके फांसी पर

       तीन बार फांसी टलने के बाद अंततः आज न्याय की जीत हुई । 7 साल 3 महीने 3 दिन के इंतजार के बाद आज 20 मार्च 2020 की सुबह 0530 बजे निर्भया के चारों दोषियों को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई । आज देश में निर्भया दिवस मनाया जा रहा है । फांसी के समय निर्भया के घर के बाहर काफी लोग पहुंचे थे । दिल्ली के तिहाड़ जेल के बाहर भी कई लोग इस न्याय को अंजाम पर जाते देखने - सुनने के लिए खड़े थे । आज निर्भया की आत्मा को शांति मिलेगी । निर्भया के माता - पिता और जनता का संघर्ष इस सजा को अंजाम तक पहुंचाने में काम आया । निर्भया के माता - पिता ने अदालतों, वकीलों, सरकार, मीडिया, पत्रकारों और जनता का इस न्याय संघर्ष में साथ देने के लिए दिल से अश्रुपूर्ण आभार जताया ।

     दुष्कर्म (रेप) ने हमारे देश में अब एक समस्या का रूप ले लिया है । प्रतिदिन कई  बच्चियां और महिलाएं इस जघन्य अपराध का शिकार हो रही हैं जबकि 10 में से केवल 1 केस ही कानून तक पहुंचता है क्योंकि सामाजिक डर या न्याय में देरी के कारण लोग रिपोर्ट नहीं करते जबकि प्रत्येक पीड़ित को रिपोर्ट करना चाहिए । 95 % आरोपी तो पीड़िता के रिश्तेदार, पड़ोसी, सहपाठी, सहकर्मी या पहचान वाले होते हैं । अब किस पर भरोसा करें । आज हम उस दौर से गुजर रहे हैं जब नारी वर्ग को हर किसी भी पुरुष को संदेह की दृष्टि से देखना चाहिए कि वह उसके लिए कभी भी घातक हो सकता है । 

     अधिक दुःखद तो तब होता है जब ये नरपिशाच दुधमुंही बच्चियों को इस कुकृत्य का शिकार बनाते हैं । कुछ दिन पहले इंदौर में एक 26 वर्षीय नरपिशाच ने एक 4 माह की बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसकी हत्या कर दी । यह नरपिशाच उस बच्ची के परिजनों को जानता था ।  निर्भया के दुष्कर्मी तो शैतान थे जिन्होंने सामूहिक दुष्कर्म के बाद उस लड़की के शरीर को अपने दांतों से काटा, उसके अंग - प्रत्यंग को बड़े वीभत्स तरीके से क्षत - विक्षत किया । इस घृणित कुकृत्य की सजा मौत ही थी । 

      एक सवाल यह भी है कि यह फांसी 3 बार इसलिए टली क्योंकि हमारे कानून में कहीं न कहीं लूप होल था जिसका इन दरिंदों के वकील ने 19 मार्च 2020 की रात तक खूब फायदा उठाया और केस को इतना लंबा खीचा । यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जाने कई धमकी तक दी गई । ये लूप होल शीघ्र बंद होने चाहिए । 

     समाज को अपने बच्चों पर निगाह रखनी चाहिए क्योंकि ये दरिंदे 16 दिसंबर 2012 की रात अचानक नरपिशाच नहीं बने । ये नरपिशाच अपने पीछे रोते - बिलखते पांच परिवार छोड़ गए जो जीवनभर इनके कुकर्म की सजा भोगेंगे और नरपिशाचों के संबंधी कहलाएंगे । हम सब जो निर्भया को न्याय दिलाने में निर्भया के परिवार के साथ थे, इन दरिंदो को फांसी पर लटकाए जाने के बाद एक राहत महसूस कर रहे हैं । हमारा संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ क्योंकि कई दुष्कर्मी आज भी सजा पाने की कतार में जेल के अंदर हैं या बाहर खुलेआम घूम रहे हैं । इन्हें भी सबने मिलकर सजा के अंजाम तक पहुंचाना है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

20.03.2020

Wednesday 18 March 2020

Bank karj wasool : बैंक कर्ज वसूल

बिरखांत - 310 : बैंकों की कर्ज वसूली

     हमारे देश में एक प्रश्न आम व्यक्ति के मन में गूंजता है, क्यों नहीं होता बैंकों का कर्ज वसूल ?  हमारे देश में तीन प्रकार के बैंक है –सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक और विदेशी बैंक | वर्तमान में 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हैं और कुल मिलाकर देश में लगभग 87 व्यावसायिक (कामर्सियल) बैंकों की लगभग एक लाख दस हजार से अधिक शाखाएं हैं जिनका नियंत्रण रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (भारतीय रिसर्व बैंक) द्वारा होता है और यह पूर्ण तंत्र वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है | वर्ष 1969 में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ | इससे पहले बैंक आम आदमी की पहुँच से बाहर थे | देश के प्रत्येक व्यक्ति को बैंकों से जोड़ने का कार्य निरंतर चल रहा है |

      बैंकों में लोग धन जमा करते हैं और वह धन देश की प्रगति पर लगाया जाता है, साथ ही नियमानुसार बैंकों से धन व्यापार या कामधंधे कि लिए ब्याज पर उद्यमियों को उधार भी दिया जाता है जिसे हम अग्रीम या एडवांस भी कहते हैं | जनता को अपना जमा किया हुआ धन मांग पर ब्याज सहित लौटाया जाता है| हमारे देश में बैंकों पर जनता को दृढ़ भरोसा है और बैंकों की विश्वसनियता उच्च स्तर की बनी हुई है |पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र एवं अन्य बैंकों का ऋण न शर्तानुसार लौटाया जा रहा है और न ही उसका ब्याज मिल रहा है | बैंकिंग भाषा में इस धन को एन पी ए (नान परफॉर्मिंग असेट या गैर उत्पादित आस्तियां ) कहते हैं | 2018 में यह रकम बढ़कर लगभग दस लाख करोड़ रुपए से भी अधिक बताई जाती है |

     बैंकों का कर्ज वसूल न होना चिंता की बात है | एन पी ए बन गयी लगभग यह पूर्ण रकम बड़ी कम्पनियों या तथाकथित बड़े धनाड्य घरानों के पास है | गरीब या आम आदमी कभी भी ऋण नहीं रोकता, वह उधार लिया हुआ ऋण हर हाल में चुकाता है | आम आदमी से ऋण वसूलने में बैंक भी देरी नहीं करते, निश्चित तारीख पर दरवाजा खटखटाने पहुँच जाते हैं | देश के इन बड़े देनदारों पर हमारे बैंक कोई कार्यवाही नहीं करते क्योंकि बड़े घराने जो हुए फिर उन पर ऊपर बैठे हुए ‘बड़ों’ का हाथ भी होता है | मरते किसान से वसूली और बड़े मगरमच्छों को खुली छूट क्यों ? हाल के दिनों में पी एम सी और यश बैंक ने जमाकर्ताओं के जो पसीने छुटाए वह भूला नहीं जाएगा ।

     क्या जनता क यह धन यों ही डूब जाएगा ? क्या क़ानून केवल गरीब या आम आदमी के लिए ही है ? क्या इस धन को वसूलने की चिंता हमारी सरकार को है ? हाल के दिनों में जो बड़े मगरमच्छ बड़े घोटाले करके देश छोड़ कर भाग गए हैं  क्या वे पकड़े जॉयेंगे ? जिन लोगों ने इन घोटालों में मदद की क्या उन्हें सजा मिलेगी ?  ये घोटाले ऑडिट में क्यों नहीं पकड़े गए ? ये प्रश्न हमारी सांस लेने वाली हवा में घुल कर घुटन महसूस करा रहे हैं क्योंकि इन प्रश्नों के पीछे न्याय की तड़फ है | सरकार को बैंकों का ऋण नहीं लौटाने वालों पर सख्त कार्यवाही  करते हुए इन प्रश्नों के उत्तर जनता को देने चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.03.2020

Tuesday 17 March 2020

Korona kabhain aapunhoon puchho :कोरोना कभैं आपुहुं पूछो

खरी खरी - 584 : कभैं आपूहैं पुछो !!


                         ( कोरोना देखि नि डरो )

भाग्य क भरौस पर

तमगा नि मिलन

पुज-पाठ भजन हवन ल

मैदान नि जितिन,

पसिण बगूण पड़ूं

जुगत लगूण पणी,

कभतै हिटि माठु माठ

कभतै दौड़ लगूण पणी ।

कोरोना देखि नि डरो

गंड -टोटकों है दूर रौ

डाक्टरों कि बात सुनो

हाथ धुण नि भुलो

भीड़ में नि घुसो

खासै काम पर भ्यार जौ

सरकारक सहयोग करो 

कोरोना देखि नि डरो ।

पढ़ीलेखी हाय

पढ़ी लेखियां जस

काम नि करें राय ,

गिचम दै क्यलै जमैं थौ

आपू हैं नि पूछैं राय,

मरि-झुकुड़ि बेर कुण नि बैठो

ज्यौना चार कभें त जुझो,

क्यलै मरि मेरि तड़फ

क्यलै है रयूं चुप

कभैं आपूहैं पुछो ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल

18. 03 .2020