Thursday 31 August 2017

Deron ki or : डेरों की ओर

खरी खरी - 75 : कौन ले जाता है हमें डेरों की ओर ?

     पाखंड का एक बहुत बड़ा जाल है । यह एक चेन है जिसमें महिलाओं को एक -एक कर भंवर में फंसाया जाता है । बाद में वह ब्लैक मेल की जाती है और नया मैम्बर फंसाना उसकी मजबूरी हो जाती है । बस फिर एक के बाद एक फंसते चले जाते हैं ।

      पाखंडी के दो रूप हैं , एक समाज सेवा का और दूसरा गुफा का । गुफा वाले रूप को देख सब जानकर भी चुप रहने पर मजबूर होते हैं क्योंकि नेस्तानाबूद करने की धमकी सामने होती है । इस धमकी के आगे कोई टिक नहीं पता । यदि दो महिलाएं हिम्मत नहीं करती तो सिरसा का पाखंडी जेल नहीं जाता । इतने बड़े मगरमच्छ से लड़ना आसान नहीं था । इसलिए उनके अद्भुत साहस की जितनी प्रशंसा की जाय वह कम  है ।

     महिलाएं कृपया इस जाल को समझें और अपनी छोटी छोटी समस्याओं को पति के साथ मिलकर, थोड़ा संयम बरतकर सुलझायें । हमारा अहंकार (ego) हमें इन पाखंडियों के पास इस उम्मीद से ले जाता है कि शायद हमारी समस्या सुलझ जाय परंतु समस्या सुलझने के बजाय उलझती चली जाती है । 'रोजे छुटाने गए नमाज गले पड़ गई' एक पुरानी कहावत हमारी जिंदगी से लिपट जाती है ।

     हम सब का कर्तव्य है कि इन डेरों/आश्रमों की ओर मुखर हुए अपने परिचितों को दो मिनट का समय दें और इस सत्यता को समझाते हुए उन्हें इस दलदल में जाने से रोकें । यह हमारा देश और समाज के लिए किया गया एक राष्ट्रीय कर्तव्य कहा जायेगा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.09.2017

Wednesday 30 August 2017

Pradooshan ghate-tel bache :प्रदूषण घटे-तेल बचे

बिरखांत-174 :     प्रदूषण घटेगा और तेल बचेगा

   17 अगस्त 2013 को पोस्ट किये गए मेरे एक लेख की प्रसांगिकता आज चार साल बाद भी बनी हुयी है । हमने कोई बदलाव स्वीकार नहीं किया । वर्त्तमान दिल्ली सरकार जो इस लेख के पोस्ट होने के बाद बनी उसने दो बार सम- विषम (ऑड -ईवन ) का  प्रयोग कर भी लिया है परंतु नियमित नहीं हो सका ।

     सरकार के भरसक प्रयास करने पर भी रुपए का गिरना जारी है। यह स्तिथि लगातार आयत के बढ़ने और निर्यात के घटने से उत्पन्न हुई । आयात की सूची में सबसे अधिक आयात कच्चे तेल का होता है। हम कुल खपत का 80 % तेल आयात करते हैं जिसकी कीमत डालर में देनी होती है।

     देश में सड़कों पर कारों  की संख्या बहुत है जिसे घटाया नहीं जा सकता बल्कि यह संख्या दिनोदिन बढ़ती रहेगी।  वर्षों से यह अपील जारी  है कि  लोग कार -पूलिंग करें अर्थात एक ही गंतव्य स्थान तक जाने के लिए दो-चार व्यक्ति बारी-बारी से एक ही कार का उपयोग करें जिससे चार कारों की जगह सड़क पर एक ही कार चलेगी। पेट्रोल भी बचेगा और सड़क पर वाहन भीड़ भी कम होगी।  इस अपील पर बिलकुल भी अमल नहीं हुआ। कार मालिक सार्वजानिक वाहन (बस ) की कमी और समय अनिश्चितता के कारण उसका उपयोग करना  पसंद नहीं करते। 

          सरकार यदि देश के सभी महानगरों के लिए यह क़ानून बना दे कि सम और विषम संख्या की कारें बारी-बारी से सप्ताह में तीन-तीन दिन के लिए ही सड़क पर चलें अर्थात जिन कारों के अंत में 1, 3, 5 ,7 ,9  (विषम संख्या ) हो वें विषम तारीख को चलें और जिनके अंत में 2, 4, 6, 8, 0 (सम संख्या ) हो वे सम तारीख को चलें तथा रविवार को सभी वाहन चलें तो इससे सड़कों पर वाहन संख्या घट कर आधी रह जायेगी, तेल का आयात घटेगा, प्रदूषण कम होगा और प्रदूषण जनित बीमारियां कम हो जाएंगी क्योंकि बच्चों के फेफड़ों पर इस प्रदूषण का बहुत बड़ा कुप्रभाव पड़ रहा है । अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.08.2017

Monday 28 August 2017

Cha.atkaari nshee balatkasree : चमत्कारी नही बलात्कारी त वह

खरी खरी - 72 : चमत्कारी नहीं बलात्कारी था वह

      आज न्याय को नमन करने का दिन है । आज साहस, संयम और ईमानदारी को नमन करने का दिन है । आज 28 अगस्त 2017 एक ऐतिहासिक दिन है जब एक रसूखदार विश्वासघाती को दो रेप केस में  10 -10 साल की सजा, कुल 20 साल की सजा मिली  है । उसके अंधभक्तों के सिवाय आज पूरा देश हर्षित है । आज उस बलात्कारी की दुर्गति हुई है जिसने अपने लिए  फियादीन तैयार किये थे और पूरे तंत्र को खरीदने की गुस्ताखी की थी । आज जब वह जज के सामने रो रहा था, गिड़गिड़ा रहा था तब उसके साथ न उसके अंधभक्त थे और न उसके चरण चाटने वाले नेता थे।

     लेकिन खुद को गुरु, स्वामी, संत , महाराज और आचार्य कहलवा कर पूजा करवाने वाले, बड़े -बड़े पंडालों में आपार जन समूह के बीच उपदेश देने वाले इस बलात्कारी की भर्त्सना करने से चुप क्यों हैं ?  क्यों नहीं ये सब एक आवाज में उस जज की जयजयकार कर रहे जिसने एक पाखंडी को उसके कुकृत्य की सजा दी और बाबाओं के नाम पर धब्बा लगाया ।

     उम्मीद करनी चाहिए कि इस ऐतिहासिक न्याय के समर्थन में आज पूरा देश न्याय की जय, भारत माता की जय की हूंकार जरूर करेगा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.08.2017

Sunday 27 August 2017

Sanskaaree bahoo : संस्कारी बहू

ख़री खरी - 71 : संस्कारी बहू

सबकी सेवा कर
काम से मत डर
सुबह जल्दी उठ
रात देर से सो
बोल मत
मुंह खोल मत
चुपचाप रो
आंसू मत दिखा
सिसकी मत सुना
सहना सीख
न निकले चीख
जब सबका
हुकम बजाएगी
सेवा टहल 
लगाएगी
घर आंगन 
सजाएगी
तभी तो
संस्कारी बहू 
कहलाएगी ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.08.2017

Bhrashtachaar : भ्रष्टाचार कुंडलियां

खरी खरी- 70 : भ्रष्टाचार पर तीन कुंडलि

भ्रष्टाचार क जोर है रौ
पुर देश में चारों ओर,
आपू आपुहूँ लूट है रै
कतुक्वे करि ल्यो शोर,
कतुक्वे करि ल्यो शोर
 कालि है गे हमरि सरकार,
दफ्तर अफसर बाबू चपरासी
खूब है रै मुक्स्यार,
कूंरौ ‘पूरन’ गिच खोलो
द्यो इनुकैं धिक्कार,
ख्वलो इनरि पोलपट्टी
 नि फलण द्यो भ्रष्टाचार |

भ्रष्टाचार क दलदल में 
धंसनै जां रौ देश,
बचूणी क्वे द्यखिण नि रय
दिल में लागरै ठेस,
दिल में लागरै ठेस
चौतरफ्यां ड्यार बेमानू क,
बुकूणी कुकुर जस खुलिये
 रांछ गिच हैमानू क,
कूंरौ ‘पूरन’ अघिल बढ़ो
द्यो इनरि नकाब उतार,
पकड़ो जिबाइ जोति इनुकैं
मिट जाल भ्रष्टाचार |

काइ कमै करनै करनै 
भरी गईं स्विस बैंक,
देश क धन विदेश छिरिकि गो
न्हैगो भरि भरि टैंक,
न्हैगो भरि भरि टैंक
यां धरुहूँ जागि नि छि,
काउ धन यतु है गोछी 
वीकि सामाव को करछी ,
कूंरौ ‘पूरन’ लगौ जुगत
 वापिस ल्यौ एक एक पाइ,
देश लुटणीयां कैं भेजो जेल
कब्जे ल्यो कमै जो काइ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.08.2017

 

Friday 25 August 2017

Paanch muslim veeraanganaayein : पांच मुस्लिम वीरांगनाएं

मीठी मीठी - 26 : पांच मुस्लिम वीरांगनाएं

     तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली तथा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह प्रथा के विरुद्ध घर से बाहर निकल कर संघर्ष करने वाली जिन पांच मुस्लिम वीरांगनाओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की वे हैं - सायरा बानो (उत्तराखंड), आतिया साबरी सहारनपुर (उ प्र), आफरीन रहमान जयपुर (राजस्थान), इशरत जहां हावड़ा (प बंगाल) और गुलशन परवीन रामपुर (उ प्र) । पुरुषवादी कट्टर समाज के विरुद्ध इनकी यह लड़ाई बहुत कठिन थी फिर भी इन्होंने अपनी हिम्मत को टूटने नहीं दिया ।

     मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय, शोषण और सामाजिक विषमता के खिलाफ इन पांचों महिलाओं ने लगातार तीन साल तक लड़ाई लड़ी । इस लड़ाई में इन्हें इनके परिजनों का साथ मिला । इन सबकी याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ ने एकसाथ सुना । 22 अगस्त 2017 को उच्चतम न्यायालय ने 3-2 के बहुमत से फैसला दिया कि तीन तलाक के जरिये तलाक देना अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है और यह कुर्रान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है ।

     सत्य तो यह है कि मुस्लिम समाज की महिलाएं तीन तलाक, निकाह-हलाला और बहुविवाह जैसी सामाजिक यातनाओं को एक गहरे दर्द और नाइंसाफी के साथ सह रही थीं । देश की करीब सात करोड़ विवाहित मुस्लिम महिलाओं के लिए 22 अगस्त 2017 का दिन एक बड़ी सौगात लेकर आया जिसका सेहरा इन पांचों मुस्लिम वीरांगनाओं के सिर पर बंध गया । 

      यदि ये महिलाएं न्यायालय के द्वार पर गुहार नहीं लगाती और अन्य महिलाओं की तरह घर की चौखट के अंदर मसमसाते रहती तो यह सम्मान की सौगात नहीं मिलती । इन पांचों याचिकाकर्ताओं को लाल सलाम । समाज में अभी भी महिलाओं के शोषण की कई कुप्रथाएं व्याप्त हैं जिनके विरुद्ध लड़ाई जारी रखनी होगी । सभी मुस्लिम महिलाओं को बधाई और शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.08.2017

Wednesday 23 August 2017

Ek muhalle ka 15 agast : एक मुहल्ले के 15 अगस्त

बिरखांत- 173 : एक मुहल्ले का 15 अगस्त

       कुछ हम-विचार लोगों ने मोहल्ले में 15 अगस्त मनाने की सोची | तीन सौ परिवारों  में से मात्र छै लोग एकत्र हुए | (जज्बे का कीड़ा सबको नहीं काटता है ) | चनरदा (लेखक का चिरपरिचित जुझारू किरदार ) को अध्यक्ष बनाया गया | बाकी पद पाँचों में बट गए | संख्या कम देख एक बोला, “इस ठंडी बस्ती में गर्मी नहीं आ सकती | यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह रहो और मर जाओ | यहां किसी को 15 अगस्त से क्या लेना-देना | दारू की मीटिंग होते तो मेला लग गया होता | चलो अपने घर, हो गया झंडा रोहण |” दूसरा बोला, “रुको यार | छै तो हैं, धूम-धड़ाके से नहीं मानेगा तो छोटा सा मना लेंगे और मुहल्ले के मैदान के बीच एक पाइप गाड़ कर फहरा देंगे तिरंगा |”  सबने अब पीछे न हटने का प्रण लिया और योजना तैयार कर ली | अहम सवाल धन का था सो चंदा इकठ्ठा  करने मन को बसंती कर, इन मस्तों की टोली चल पड़ी |

        स्वयं की रसीदें काट कर अच्छी शुरुआत की | चंदा प्राप्ति के लिए संध्या के समय प्रथम दरवाजा खटखटाया और टोली के एक व्यक्ति ने १५ अगस्त की बात बताई, “सर कार्यक्रम में झंडा रोहण, बच्चों की प्रतियोगिता एवं जलपान भी है | अपनी श्रधा से चंदा दीजिए |” सामने वाला चुप परन्तु घर के अन्दर से आवाज आई, “कौन हैं ये ? खाने का नया तरीका ढूंढ लिया है | ठगेंगे फिर मौज-मस्ती करेंगे |” चनरदा बोले, “नहीं जी ठग नहीं रहे, स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद करेंगे, बच्चों में देशप्रेम का जज्बा भरेंगे, भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देंगे जी |” फिर अन्दर से आवाज आई, “ ये अचनाक इन लोगों को झंडे के फंडे की कैसे सूझी ? अब शहीदों के नाम पर लूट रहे हैं | ले दे आ, पिंड छुटा इन कंजरों से, अड़ गए हैं दरवाजे पर |” बीस रुपए का एक नोट अन्दर से आया, रसीद दी और “धन्यवाद जी, जरूर आना हमारे फंडे को देखने, भूलना मत | 15 अगस्त, 10 बजे, मुहल्ले के मैदान में” कहते हुए चनरदा टोली के साथ वहाँ से चल पड़े ।

         खिसियाई टोली दूसरे मकान पर पहुँची और वही बात दोहराई | घर की महिला बोली, “वो घर नहीं हैं | लेन-दें वही करते हैं |” दरवाजा खटाक से बंद | टोली उल्टे पांव वापस | टोली के अंतिम आदमी ने पीछे मुड़ कर देखा | उस घर का आदमी पर्दे का कोना उठाकर खाली हाथ लौटी टोली को ध्यान से देख रहा था | टोली तीसरे दरवाजे पर पंहुची | बंदा चनरदा के पहचान का निकला और रसीद कटवा ली | चौथे दरवाजे पर अन्दर रोशनी थी पर दरवाजा नहीं खुला | टोली का एक व्यक्ति बोला, “यार हो सकता है सो गए हों या बहरे हों |” दूसरा बोला, “अभी सोने का टैम कहां हुआ है | एक बहरा हो सकता है, सभी बहरे नहीं हो सकते |” तीसरा बोला, “चलो वापस |” चौथा बोला, “यार जागरण के लिए नहीं मांग रहे थे हम | यह तो बेशर्मी की हद हो गई, वाह रे हमारे राष्ट्रीय पर्व |” पांचवे को निराशा में मजाक सूझी| बोला, “यह घोर अन्याय है | खिलाफत करो | इन्कलाब जिंदाबाद |” हंसी के फव्वारे के साथ टोली आगे बढ़ गई |

       इस तरह 10 दिन चंदा संग्रह कर तीन सौ परिवारों में से दो सौ ने ही रसीद कटवाई और कार्यक्रम- पत्र मुहल्ले में बांटा गया | 15 अगस्त की पावन बेला आ गई | मैदान में एक छोटा सा शामियाना दूर से नजर आ रहा था | धन का अभाव इस आयोजन में स्पष्ट नजर आ रहा था | लौह पाइप पर राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए बंध चुका था | देशभक्ति गीतों की गूंज ‘हम लाये हैं तूफ़ान से., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें., छोड़ो कल की बातें.. दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी | टोली के छै व्यक्ति थोड़ा निराश थे पर हताश नहीं थे | इस राष्ट्र-पर्व के प्रति लोगों की उदासीनता का रोना जो यह टोली रो रही थी उसकी सिसकियाँ देशभक्ति गीतों की गूंज में दब कर रह गई थी |

           टोली का एक व्यक्ति बोला, “इस बार जैसे-तैसे निभ जाए तो आगे से ये सिरदर्दी भूल कर भी मोल नहीं लेंगे |”  चनरदा ने उसे फटकारा, “ चुप ! ऐसा नहीं कहते, तिरंगा मुहल्ले में जरूर फहरेगा और हर कीमत पर फहरेगा |” निश्चित समय की देरी से ही कुछ लोग बच्चों सहित आए | अतिथि भी देर से ही आए और चंद शब्द मंच से बोल कर चले गए | प्रतियोगिताएं शुरू हुईं | सभी पुरस्कार चाहते थे इसलिए निर्णायकों पर धांधली, बेईमानी और भाईबंदी करने के आरोप भी लगे | कुर्सी दौड़ में महिलाओं ने रेफ्री की बिलकुल नहीं सुनी | सभी जाने-पहचाने थे इसलिए किसी से कुछ कहना नामुमकिन हो गया था | जलपान को भी लोगों ने अव्यवस्थित कर दिया | अध्यक्ष चनरदा ने सबको सहयोग के लिए आभार प्रकट किया |

        कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखने के बाद अचानक एक व्यक्ति मंच पर आया और उसने चनरदा के हाथ से माइक छीन लिया | यह वही व्यक्त था जिसने चंदे में मात्र बीस रुपए दिए थे | वह बोला, “माफ़ करना बिन बुलाये मंच पर आ गया हूं | उस दिन मैंने आप लोगों को बहुत दुःख पहुंचाया | मैं आपके जज्बे को सलाम करता हूं | आप लोगों ने स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और देशप्रेम की बुझती हुई मशाल को हमारे दिलों में पुनर्जीवित किया है | मैं पूरे सहयोग के साथ आपके सामने खड़ा हूं | यह मशाल जलती रहनी चाहिए | हर हाल में निरंतर जलती रहनी चाहिए |”

        समारोह स्थल से सब जा चुके थे | हिसाब लगाया तो आयोजन का खर्च चंदे से पूरा नहीं हुआ | सात लोगों ने मिलकर इस कमी को पूरा किया | स्वतन्त्रता दिवस सफलता से मनाये जाने की खुशी इन्हें अवश्य थी परन्तु अंत: पीड़ा से पनपी एक गूंज भी इनके मन में उठ रही थी, ‘सामाजिक कार्य करो, समय दो, तन-मन-धन दो और बदले में बुराई लो, कडुवी बातें सुनो, निंदा-आलोचना भुगतो और ‘खाने-पीने’ वाले कहलाओ | शायद यही समाज सेवा का पुरस्कार रह गया है अब |’ तुरंत एक मधुर स्वर पुन: गूंजा, ‘यह नई बात नहीं है | ऐसा होता आया है और होता रहेगा | समाज के चिन्तक, वतन को प्यार करने वाले, देशभक्ति से सराबोर राष्ट्र-प्रेमियों की राह, व्यर्थ की आलोचना से मदमाये चंद लोग कब रोक पाए हैं ?” अघली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.08.2017

Laaparwaee se maut : लापरवाही से मौत

खरी खरी - 68 : लापरवाही से दोनों जगह बेमौत मरे निर्दोष

      19 अगस्त 2017 को पुरी से हरिद्वार जा रही उत्कल एक्सप्रेस रेल दुर्घटना में 25 यात्री बैमौत मारे गए तथा 200 से अधिक घायल और अपंग हो गए । बताया जा रहा है कि यह दुर्घटना रेल कर्मियों की लापरवाही से हुई । दुर्घटना होते ही हमेशा की तर्ज़ पर कहा गया, 'अमुक स्थान पर रेल दुर्घटना हो गई है, उच्च अधिकारी घटना स्थल को रवाना हो गए हैं, घायलों को निकटवर्ती अस्पताल पहुंचाया जा रहा है...।' रेलवे की अधिकांश दुर्घटनाएं लापरवाही के कारण हो रही हैं । निर्दोष यात्रियों के हत्यारों को सख्त सजा मिलनी चाहिए जो एक नजीर बने ।

     इसी तरह गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में 10 और 11 अगस्त 2017 को ऑक्सीजन समाप्त होने के कारण 30 निर्दोष बच्चों की जान चली गई । वहां भी अस्पताल की लापरवाही से ये निर्दोष मारे गए ।

     हमारा शासन तंत्र हमेशा ही पहले इस लापरवाही पर लीपापोती करता है फिर घुमाफिरा कर जांच बैठाता है । हमारे सरकारी तंत्र में इस तरह की जानलेवा लापरवाही इसलिए होती है क्योंकि यहां कसूरवारों को बचाया जाता है जिससे बेकसूर हमेशा मरते आये हैं । जब तक सरकारी तंत्र में किसी भी लापरवाही के लिए सख्त सजा नहीं मिलेगी तब तक निर्दोषों की मौत इसी तरह होती रहेगी । कब सुधरेगा हमारा शासन तंत्र ? कितनी मानव -जनित बलि और चाहिए हमारे शासन तंत्र को ?

        इस बीच (बीती रात 22 और 23 अगस्त) को औरैया में भी एक रेल दुर्घटना हो गई है जो एक डंपर के कैफियत एक्सप्रेस ट्रेन से टकराने से हुई । करीब 60-70 यात्री घायल हो गए हैं बताया जा रहा है । यह समाचार AIR तथा कई चैनलों पर दिखाया -बताया जा रहा है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.08.2017

Tuesday 22 August 2017

Teen talak samapt : तीन तलाक समाप्त

मीठी मीठी - 25 : तीन तलाक समाप्त

     देश के सर्वोच्च न्यायालय ने आज 22 अगस्त 2017 को तीन तलाक की परंपरा को असंवैधानिक घोषित कर दिया । आज बराबरी के हक की जीत हुई है । आज देश की मुस्लिम महिलाएं तलाक और हलाला जैसी क्रूर प्रथाओं से मुक्त हो गई हैं । यह किसी धर्म की जीत नहीं है बल्कि यह इंसानियत और मानवता की जीत है । यह कानून की जीत है। आज कट्टरवाद के समर्थकों को इंसानियत से सीख लेने का दिन है । सभी मुस्लिम महिलाओं को हार्दिक अर्थात दिल की गहराइयों से बधाई और शुभकामना ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

22.08.2017


Monday 21 August 2017

Sarkaree skoolon mein afsar :सरकारी स्कूलों में अफसरों के बच्चे

खरी खरी -67 : सरकारी स्कूलों में अफसरों के बच्चे

       इलाहाबाद हाईकोर्ट को हार्दिक नमन जो उस न्यायालय ने  सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर एक जनहित याचिका पर १८ अगस्त २०१५ को सख्त कदम उठाया था |  तब उम्मीद जगी थी कि सरकारी स्कूलों की हालत सुधर जायेगी क्योंकि नेताओं, सरकारी अफसरों, बाबुओं, और जजों के बच्चे अब इन स्कूलों में पढेंगे | तब से इस 2 वर्ष के बीच कितने सरकारी अफसरों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाया इस बात की जानकारी उपलब्ध नहीं है ।

     तब यह भी उम्मीद जगी थी कि उत्तराखंड सहित देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में भी यह क़ानून लागू होना चाहिए | यह बात भी संज्ञान में नहीं है । यदि कोई मित्र इस बारे में जानकारी रखते हैं तो कृपया साझा करें । हम उस जनहित याचिकाकर्ता को हार्दिक धन्यवाद देते हैं जिसने इस ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया । यदि उक्त सरकारी अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएंगे तो उस स्कूल की दशा अवश्य सुधर जाएगी ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.08.2017

Saturday 19 August 2017

Naaree ka rin : नारी का ऋण

मीठी मीठी - 24 : नारी का ऋण

मानव जाति ऋणी नारी की
माने जग या ना माने,
नारी के बलिदान त्याग पर
स्थिर मानवता सब जाने ।

वैसे तो हर नारी से
मानव का कोई है रिश्ता,
हर रिश्ते में बनी है नारी
मानव के लिए एक फरिश्ता ।

लेकिन रिश्ते चार हैं ऐसे
जिन बिन जीवन है ही नहीं,
मां बहन पत्नी बेटी बन
प्रकट हुई वह सारी मही ।

मां बनकर नारी इस जग को
जीवन अमृत देती है,
कर अपना सबकुछ न्यौछावर
जग से कुछ नहीं लेती है ।

घेरे विपत्ति या सुख-दुख होवे
बहन दौड़कर आती है,
राखी दूज त्यौहार पै आकर
अमर स्नेह बरसाती है ।

जीवन रथ एक चक्र वह
बिना उसके रथ बढ़ता नहीं,
बिन भार्या जीवन एक पतझड़
जिसमें सुमन खिलता ही नहीं ।

बेटी बन जब भी नारी
जिसके घर में आई है,
हो गई कुर्बान भलेही
लाज दो घर की निभाई है ।

यदि न होती नारी जग में
मानवता नहीं टिक पाती,
अपने हर रिश्ते से जग को
ऋणी सदैव बना जाती ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.08.2017

Friday 18 August 2017

Raging : रैगिंग

खरी खरी - 66 : कैसे रुके रैगिंग ?

     एक सर्वे के अनुसार देश के विश्वविद्यालयों और शिक्षा संस्थानों में हर वर्ष नव- शिक्षार्थियों के साथ जम कर रैगिंग होती है जिससे दुःखी होकर कुछ छात्र गलत कदम उठा लेते हैं । सर्वे के अनुसार 84% छात्र-छात्रायें रैगिंग की शिकायत दर्ज नहीं कराते । शिकायत नहीं करने के मुख्य कारण निम्न हैं -

1. सीनियर विद्यार्थी शिकायत कर्ता का बायकॉट कर सकते हैं ।

2. शिकायत करने पर सीनियर पीटते हैं ।

3.शिकायत करने पर कैरियर बर्बाद होने का डर लगा रहता है ।

4. शिकायत करने पर यह भरोसा नहीं होता कि प्रशासन रैगिंग करनेवालों पर कोई कारवाई करेगा ।

5. कुछ को यह पता नहीं होता कि शिकायत कहां करें ।

6. रैगिंग भुक्तभोगियों में आंशिक छात्र इसलिए शिकायत नहीं करते क्योंकि वे  इसका आनंद उठाते हैं।

     भुक्तभोगियों के अभिभावकों के अनुसार यदि विद्यार्थी रैगिंग की सूचना अपने अभिभावकों को दें और अभिभावक इस बारे में सीधे संस्थान के मुखिया से शिकायत करें तो परिणाम स्वरूप रैगिंग बंद हो सकती है । नव-शिक्षार्थियों को रैगिंग की सूचना शीघ्र अपने अभिभावकों देनी चाहिए तथा डर कर कोई अनुचित कदम नहीं उठाना चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.08.2017

Haam aajad chhyoon : हाम आजाद छ्यूँ



 हाम आजाद छ्यूं (व्यंग्य)  


    आज क माहौल में आपण इर्द- गिर्द में देखीणी कुछ आटपाट तस्वीरों कैं आज कि य व्यंग्य चिठ्ठी समर्पित छ | लगभग द्वि सौ वर्ष फिरंगियों कि गुलामी क बाद देश 15 अगस्त 1947 हुणि आजाद हौछ | 26 जनवरी 1950  हुणि हमर संविधान लागु हौछ जमें आज तक 120 है ज्यादै संसोधन लै है गईं | संविधान ल हमुकें जो आजादी दि रैछ उ पर हमूल नि सोच क्यलैकि हमार दिमाग में आपणि आजाद संहिता पैलिकै बै ड्यार डाइ बेर भै रै | हमरि य अणलेखी आजादी कि न क्वे सीमा और न क्वे रूप | औरों कि परवाह करिए बिना ज्ये हमुकैं भल लागूं या हमर मन ज्ये करुहैं करूं हम उई करनू भलेही यैल कैकैं परेशानी हो, या क्वे छटपटो, क्वे मरो या कैकै क्ये नुकसान हो ।


     आब हमरि आपण बनाई आजादी कि चर्चा करनू तो सबूं है पैली छ बलाण कि आजादी | हमुकैं क्वे लै टैम पर, क्ये लै, कत्तीकैं लै बिना सोची – समझिए खप्प पाणी खायीन जस बलाण कि पुरि छूट छ | न नान- ठुल क ख्याल और न स्यैणि- मैंस क ध्यान | हमरि भाषा जतु लै अभद्र या अश्लील हो बेरोकटोक निडर हैबेर जोर- जोरल चिल्लाण है हमूकैं क्वे रोकि नि सकन | उसी हमरि संसद में लै कुछ लोगों को असंसदीय भाषा बलाण कि छूट छ | गन्दगी फैलूण हमर जन्मसिद्ध अधिकार छ | हम कैं लै- गली, मोहल्ला, ग्वैर, सड़क, कार्यालय, सार्वजनिक स्थान, प्याऊ, जीना -सीड़ी, रेल, बस में बेझिझक थुकि सकनूं | बस में भै बेर भ्यार कैकै लै ख्वार में, द्वि पईंय क सवार में  या कार में थुकण कि हमुकैं खुल्ली छूट छ | कार चलूं रौछा तो क्ये बात नि हइ, कै लै पच्च चारी थुकि द्यो, क्वे क्ये नि कवा | जै में पड़ल उ द्वि-चार गाइ द्यल, वील हमू कैं क्ये फरक पडूं ?


     मल- मूत्र विसर्जन कि लै हमुकैं पुरि छूट छ | रेल की पटरी, नहर- नदी-सड़क क किनार, कैं लै करो क्वे रोकणी न्हैति | क्वे देखैं रौछ त देखण द्यो, तुम अणदेखी करि द्यो | क्वे बिलकुल पास बै गुजरछ तो घुना में मुनइ घुसै द्यो, देखणी थुकि बेर निकइ जाल | पेशाब त तुम कत्ती कैं लै करि सकछा | दीवाल पर, पेड़ क जड़ या तना पर, बिजुलि- टेलेफोन क खम्ब पर, ठाड़ि हई बस या कार क पहियों पर, सड़क क किनार या कुण या मोड़ पर या जां मन करो उतै | आपण घर छोडि बेर हमुकैं कैं लै कूड़- कभाड़ लाफाउण कि लै पुरि छूट छ | फल- मूंगफली या अण्डों क छिकल, बची हुयी खाण, पोस्टर- कागज, प्लास्टिक थैली, गुटका- पान मसाला पाउच, माचिस तिल्ली, बीडी- सिगरेट क डाब- ठुड्ड, डिस्पोजेबल प्लेट- गिलास, बोतल, नारियल आदि कैं लै लुढ़कै दयो | झाडू लगौ और कुड़ पड़ोस कि तरफ धकै द्यो | कुड़ क ढेर यसि जाग लगौ जां य दुसर कि समस्या बनो | घर में सफेदी करौ, मलू या बची हुई वेस्ट पार्क, सड़क या गली में खेड़ो, क्वे रोकणी न्हैति |


      हमुकें आपण जानवरों कैं सड़कों में खुल छोड़ण कि पुरि छूट छ | गोरु, भैंस या सुंगर क झुण्ड दगै क्वे टकरि बेर मरो हमरि बला ल | हमूल कुकुर पाई रईं त उनुकैं सड़क या पार्क में त घुमूल | टट्टी- पेसाब करूण कै लिजी त हाम उनुकैं वां लिजानू | पार्क- सड़क में त सबूंकै हक़ हय | लोगों कैं देखि बेर आपण ज्वात- चप्पल बचै बेर हिटण चैंछ | हमरि यातायात सम्बंधी आजादी त असीमित छ | बिना इशार दिए मुड़ण, रात में प्रेशर हौरन बजूण उ लै कैकं बलूण क लिजी, तेज रफ़्तार ल वाहन चलूण, दु-पइय में पांच -छै झणियाँ कैं भटाउण, दुसर कि या कैकी लै जाग में आपण वाहन ठाड़ करण, प्रार्थना करण पर लै बस नि रोकण, बस में धूम्रपान करण, स्यैणियां कि सीटों पर बैठण, भीड़ क बहान ल बस में स्यैणियां क बदन दगै आपण बदन रगड़नै अघिल निकउण, सयाण लोगों कि अणदेखी करण, शराब पी बेर या नश करि बेर वाहन चलूनै निर्दोष नागरिकों कैं टक्कर मारि बेर रफूचक्कर हुण कि लै हमूकैं पुरि छूट छ |


     कां तक बतूं, आपणि आजादी क अणगणत छूट क हाम खूब आनंद ल्हीं रयूं | स्यैणियां कैं टकिटकि लगै बेर चाण, उनू पर कटाक्ष करण, द्विअर्थी संवाद बलाण, बहलै –फुसलै बेर उनुकैं आपण चंगुल में फ़सूण, उनर यौन शोषण करण और उनर बनी- बनाई घर उजाड़णण कि हमुकैं खुल्ली छूट छ | हमुकैं झूटि बलाण, कछरि में बयान बदलण, बयान है मुकरण, घूस दीण, धर्म-सम्प्रदाय क नाम पर जहर फोकण, असामाजिक तत्वों कैं संरक्षण दीण, क़ानून कि अवहेलना करण, रात कै देर तक पटाखा चलूण, कटिय डाइ बेर बिजुलि कि चोरि करण, सार्वजनिक स्थानों पर नश -धूम्रपान करण, कैकै लै चरित्र हनन करण, अश्लीलता देखण और पढ़ण, कन्याभ्रूण कि हत्या करण, कालाबाजारी- मिलावट और तश्करी करण, फर्जी डिग्री -प्रमाण पत्र लहीण,  फुटपाथ या बाट खोदण, सड़क पर धार्मिक काम क नाम पर तम्बू लगूण, बिना बताइये जलूस या रैली निकाउण, यातायात जाम करण, गटर क ढक्कन या पाणी क मीटर चोरण, पार्कों की सुन्दरता नष्ट करण या डाव- बोट काटण, विसर्जन क नाम पर नदियों में रंग-रोगन ज्येड़ी मूर्ति बगूण या धार्मिक कुड़ लफाउण, राजनीति में बिन तई लोटिय बनण, शहीदों और राष्ट्र भक्तों कैं भुलण और सरकारी दफ्तरों में बिन काम करिए तनख्वा ल्हीण सहित हमरि कएक स्वतंत्रता छीं |


      यूं सबै अटपाट स्वतंत्रता हमूं कैं कां ल्ही जाल ? क्ये येकै लिजी हमार अग्रज शहीद हईं ? क्ये यसै मनमर्जी क तांडव करण क लिजी हम पैद हयूं ? क्ये हमूकैं दुसार लोगों कि ज़रा लै परवा छ ? हम आपण व्यवहार कब बदलुल ?  यूं सवालों कैं हमूल अणसुणी नि करण चैन  और य व्यंग्य में वर्णित आजादी क बार में आपुहैं जरूर सवाल करण चैंछ  |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 


रोहिणी दिल्ली


18.08.2017