Thursday 6 July 2017

नफरत जा पुलाव :nafarat ka pulav

खरी खरी - 5 : नफ़रत का पुलाव

अन्धविश्वास की हांडी में
झूठ-पाखण्ड का पानी डाल कर
क्रोध के चूल्हे में
ईर्ष्या का ईंधन जलाकर
घृणा वैमनस्य और
अहंकार को एक साथ मिलाकर
लालच बेमानी और
रागद्वेष ऊपर से छिड़क कर
कुटिलता अश्लीलता और
अपसंस्कृति का अर्क मिलाकर
अकर्मण्यता स्वछंदता और
अज्ञान का तड़का लगाकर
नफ़रत का जो पुलाव तुम खा रहे हो
उससे अपना चैन सकून गंवा रहे हो,
भूल गए हो इस जमीन का
तुमने अन्न जल किया
तुम्हारे पास कुछ नहीं था
सब यहीं से लिया
एक दिन चले जाओगे
मुठ्ठी  खोल कर
जिसे अपना समझते थे
उसे यहीं  छोड़ कर,
इसलिए सारे अपकृत्य त्याग
काम कुछ भले कर लो
और यदि भला न कर सको तो
अपकृत्यों से तो मुंह मोड़ लो !

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.04.2017

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