खरी खरी - 118 : हालात से बदलती हैं प्रथा-परम्परा
हमें वक्त और हालात के अनुसार बदलना ही होगा । जब हालात दुःखदायी हो जाए या किसी खतरे की चेतावनी दे तो प्रथा परम्पराओं को भी बदलना ही होगा । जब लोग नहीं बदलते तो फिर लोग ही कहते हैं "न्यायालय शरणम गच्छामि ।"
उच्चतम न्यायालय ने उज्जैन के महाकाल मंदिर के ज्योतिर्लिंग में हो रहे क्षरण को रोकने के लिए एक याचिका की सुनवाई करते हुए मंदिर प्रशासन को कई आदेश दिए हैं । भष्म आरती के कंडे के अलावा शिवलिंग का उस पर चढ़ाए गए दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और फूलमाला से भी क्षरण हो रहा था ।
न्यायालय के आदेश के बाद अब शिवलिंग में RO का जल चढ़ेगा और वह भी 500 मिलीलीटर से अधिक नहीं । भष्म आरती के दौरान शिवलिंग को सूती कपड़े से पूरी तरह ढका जाएगा । तय मात्रा से अधिक पंचामृत नहीं चढ़ाया जाएगा । चीनी पाउडर की जगह खांडसारी का प्रयोग होगा । हर शाम 5 बजे के बाद जलाभिषेक समाप्ति पर गर्भगृह और शिवलिंग को सुखाया जाएगा ।
भलेही अखाड़ा परिषद को इस आदेश से असहजता महसूस हुई फिर भी वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करेगी । न्यायालय ने मंदिर के पंडों के रहन- सहन की तुलना भी राजे-महाराजों के साथ की जो सुसज्जित ए सी युक्त गेस्ट हाउस में रहते हैं जबकि ऐसे पवित्र स्थानों में संयम, त्याग और सौम्यता से रहने की अपेक्षा की जाती है ।
यदि हम अपने आप को नहीं बदलेंगे और प्रथा परम्परा के नाम पर रुढ़िवाद से बंधे रहेंगे तो एक न एक दिन लोग नदियों को बचाने के लिए नदियों में धार्मिक और अन्य विसर्जन तथा नदी किनारे शवदाह जैसे मुद्दों पर भी याचक बन कर अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे । नदी में विसर्जित की जाने वाली वस्तुओं और शवदाह की राख का भू-विसर्जन होना चाहिए अर्थात इन्हें जमीन में दबाया जाना चाहिए । न्यायालय के आदेश को जनहित में उठाया गया उचित कदम समझ कर खुशी से सिरोधार्य करना चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.11.2017