Tuesday 31 October 2017

Badaltee pratha-parampara : बदलती प्रथा-परम्परा

खरी खरी - 118 : हालात से बदलती हैं प्रथा-परम्परा

     हमें वक्त और हालात के अनुसार बदलना ही होगा । जब हालात दुःखदायी हो जाए या किसी खतरे की चेतावनी दे तो प्रथा परम्पराओं को भी बदलना ही होगा । जब लोग नहीं बदलते तो फिर लोग ही कहते हैं "न्यायालय शरणम गच्छामि ।"

     उच्चतम न्यायालय ने उज्जैन के महाकाल मंदिर  के ज्योतिर्लिंग में हो रहे क्षरण को रोकने के लिए एक याचिका की सुनवाई करते हुए मंदिर प्रशासन को कई आदेश दिए हैं । भष्म आरती के कंडे के अलावा शिवलिंग का उस पर चढ़ाए गए दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और फूलमाला से भी क्षरण हो रहा था । 

      न्यायालय के आदेश के बाद अब शिवलिंग में RO का जल चढ़ेगा और वह भी 500 मिलीलीटर से अधिक नहीं । भष्म आरती के दौरान शिवलिंग को सूती कपड़े से पूरी तरह ढका जाएगा । तय मात्रा से अधिक पंचामृत नहीं चढ़ाया जाएगा । चीनी पाउडर की जगह खांडसारी का प्रयोग होगा । हर शाम 5 बजे के बाद जलाभिषेक समाप्ति पर गर्भगृह और शिवलिंग को सुखाया जाएगा । 

     भलेही अखाड़ा परिषद को इस आदेश से असहजता महसूस हुई फिर भी वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करेगी । न्यायालय ने मंदिर के पंडों के रहन- सहन की तुलना भी राजे-महाराजों के साथ की जो सुसज्जित ए सी युक्त गेस्ट हाउस में रहते हैं जबकि ऐसे पवित्र स्थानों में संयम, त्याग और सौम्यता से रहने की अपेक्षा की जाती है ।

     यदि हम अपने आप को नहीं बदलेंगे और प्रथा परम्परा के नाम पर रुढ़िवाद से बंधे रहेंगे तो एक न एक दिन लोग नदियों को बचाने के लिए नदियों में धार्मिक और अन्य विसर्जन तथा नदी किनारे शवदाह जैसे मुद्दों पर भी याचक बन कर अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे । नदी में विसर्जित की जाने वाली वस्तुओं और शवदाह की राख का भू-विसर्जन होना चाहिए अर्थात इन्हें जमीन में दबाया जाना चाहिए । न्यायालय के आदेश को जनहित में उठाया गया उचित कदम समझ कर खुशी से सिरोधार्य करना चाहिए । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.11.2017

Do bharat ratn : दो भारत रत्न

मीठी - 38 : आज दो भारत रत्नों का स्मरण

      देश में 45 भारत रत्नों में बै आज द्वि भारत रत्नों का स्मरण दिवस छ । पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ज्यू क आज शहीदी दिवस छ जबकि पूर्व उप-प्रधानमंत्री और पैल गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ज्यू क जन्मदिन छ । इनार बार में पुस्तक 'महामनखी' में तीन भाषाओं में चर्चा छ । यूं द्विये महामनखियों कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.10.2015

Sunday 29 October 2017

Pradooshan se dhundhale deep : प्रदूषण से धुंधले दीप

खरी खरी - 117 : प्रदूषण से धुंधले दीप

दीपावली के बाद छपा अखबार,
शहर में प्रदूषण की मार,
दीपावली स्वच्छता का त्यौहार,
जहाँ तहाँ कूड़े का अम्बार ।

मैं आपका शहर बोल रहा,
जलन-घुटन का दुखड़ा रो रहा,
न जलाना पटाखे, दीये जलाना,
न रहे प्रदूषण ,अँधेरा मिटाना ।

जहर हवा में बच्चे को बताना,
सिकुड़ता फेफड़ा उसे समझाना,
जगमगाये दीप हरित धरा में,
न जले बारूद, एक पेड़ लगाना ।

एक दीप शहीदों के नाम जलाना
शहीदों के परिवार नहीं भुलाना,
शहीदों के बच्चों से प्यार जताना
शहीद अमर है ऐहसास जताना ।

देखो अपने वीरों का काम,
कर रहे दुश्मन का काम तमाम,
दीपावली पर जले सदा एक दीप,
अपने अमर शहीदों के नाम ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
30.10.2017

Musalmanon ke baare mein : मुसलमानों के बारे में

खरी खरी - 116 : क्या लिखूं मुसलमानों के बारे में ?

     कुछ मित्र ताने मारते हुए मुझ से कहते हैं, 'कभी मुसलमानों के बारे में भी लिखो, क्यों हमेशा हिन्दुओं के पीछे पड़े रहते हो ?' मित्रो, ऐसा नहीं है । मैं हिन्दू से पहले हिंदुस्तानी या भारतीय हूं और मानवीय सरोकारों से वशीभूत होकर कुछ शब्द लिख देता हूं । चार दशक से कलमघसीटी हो रही है । जन- सरोकारों पर लिखते आ रहा हूं । हर विसंगति और विषमता तथा अंधविश्वास के विरोध में लिखता- बोलता हूं ।

     कबीर के दोनों दोहे याद हैं । पहला- 'पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार; ता पर ये चाकी भली, पीस खाये संसार ।' दूसरा - 'कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लेई बनाय; ता पर मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।' मोको कहां ढूंढे रे बंदे भी याद है । 'ना तीरथ में ना मूरत में, ना काबा कैलाश में; ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना एकांत निवास में ।' बच्चन साहब की मधुशाला भी कहती है, "मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका हाला; एक है उनका मदिरालय एक ही है उनका प्याला; दोनों रहते एक न जब तक मंदिर -मस्जिद हैं जाते, बैर कराते मंदिर-मस्जिद मेल कराती मधुशाला ।"

     दोनों संप्रदायों को देश और समाज के हित में एक-दूसरे का सम्मान करते हुए मध्यमार्ग से संयम के साथ चलना चाहिए । सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन सबने मिलकर लड़ा और हिंदुस्तान का अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर कहता था, "हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।" जब फिरंगियों को लगा कि हिंदुस्तान आजाद करना ही पड़ेगा तो उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को भंग करने के कई षडयंत्र रचे और जाते -जाते अपने षड्यंत्र में सफल भी हो गए ।

     देश को स्वतंत्र हुए 70 वर्ष हो गए हैं और देश के दो मुख्य सम्प्रदायों की आपसी नफरत को बढ़ाने का षड्यंत्र आज भी जारी है । यदि यह नफरत प्यार में बदल जाएगी तो अमन-चैन के कई दुश्मनों की दुकानें बंद हो जाएंगी । फिर वे सियासत किस पर करेंगे ? ये लोग नफरत की आग जलाकर अपनी रोटी सेकते आये हैं और सेकते रहेंगे । उधर हमारे केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अहमद नकवी ने एक बयान में कहा भी है कि शांति, एकता और सौहार्द भारत के डी एन ए में है । इस ताकत के चलते शैतानी शक्तियां यहां सफल नहीं हो सकती ।

     स्पष्ट करना चाहूंगा कि ईश्वर कभी भी पशु -बलि नहीं लेता और न अल्लाह ईद में पशु -कुर्बानी लेता है । धर्म और आस्था के नाम पर किसी पशु की कुर्बानी या बलि एक अमानुषिक कृत्य है ।  सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए नफरत का पुलाव पका कर नहीं बांटा जाय । जाति-धर्म-सम्प्रदाय की लड़ाई में हमें झोंक कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से सावधान रहना ही वक्त की मांग है ताकि हम कम से कम अगली पीढ़ी को तो इस संक्रामक रोग से बचा सकें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.10.2017

Friday 27 October 2017

Chhavi par kalank : देश की छवि पर कलंक

खरी खरी - 115 :  देश की छवि पर कलंक

       22 अक्टूबर 2017 को आगरा के नजदीक फतेहपुर सीकरी रेलवे स्टेसन के पास स्विट्जरलैंड के दो प्रेमी युगल नागरिकों पर कुछ असामाजिक तत्वों ने हमला कर उन्हें घायल कर दिया । बताया जा रहा है कि इस प्रेमी युगल का दिल्ली के एक अस्पताल में उपचार हो रहा है ।  उत्तर प्रदेश में असामाजिक तत्वों से योगी जी से सख्ती के साथ पेश आने की उम्मीद अब भी बनी हुई है । इस शर्मनाक घटना ने देश की छवि पर दाग लगाया है ।

    हम अपने देश को विश्व का अध्यात्मिक गुरु बताते हैं परन्तु हमारे देश में विदेशी पर्यटकों विशेषतः महिलाओं के साथ निंदनीय व्यवहार होता है | विदेशी महिलाओं पर छीटाकसी होती है, उनसे किसी भी कार्य या वस्तु की अधिक वसूली होती है चाहे वह यात्रा हो या खरीददारी | यहाँ तक कि जूता पालिश करने वाला या चप्पल पर एक टांका लगाने वाला भी उनसे दस से बीस गुना अधिक राशि वसूल करता है | देश की पुलिस सहित सभी टूर आपरेटरों एवं आम नागिरिकों को देश की बदनामी होने वाली कोई भी हरकत किसी भी टूरिस्ट से नहीं करनी चाहिए अन्यथा पहले से ही प्रदूषित पर्यावरण से व्यथित टूरिस्ट हमारे देश में कैसे और क्यों आयेंगे ?

     हम सबका कर्तव्य है कि हम ‘अतिथि देवो भव’ के अपने चिरपरिचित दर्शन को नहीं भूलें | जब भी हमें कोई व्यक्ति किसी विदेशी महिला या पुरुष  के साथ दुर्व्यवहार करता हुआ नजर आये, हमें देश की छवि को कलंकित करने वाले उस व्यक्ति को तुरंत रोकना चाहिए या पुलिस के हवाले करना चाहिए | यह हमारा अपने देश की शान के प्रति परम कर्तव्य है | 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.10.2017

Kichan romansh : किचन रोमांश

मीठी मीठी -37 : किचन रोमांश : रोमांटिक मोड में चनर दा

(शादी के लड्डू का स्वाद चख चुके मित्रों को कुछ पल के लिए टेंसन फ्री करने की जुगत है यह मीठी मीठी । इसे पढ़कर एक छिपी हुई मिठास महसूस कर सकते हैं आप ।)

     एक दिन मेरे चिर-परिचित मित्र चनर दा को किचन रोमांश का उमेड़ (खलबली) जैसा उठ गया ठैरा। वे किचन में गए जहां  पत्नी चंद्रमुखी (अब भयंकर ज्वालामुखी) चाय बना रही थी । उसके सामने जाकर भिजी बिराउ ( भीगी बिल्ली) जैसे  खड़े हो गए । उसके गरम मिजाज देखते ही रोमांश का जोश ठंडा हो गया । फिर भी हिम्मत करके उन्होंने एक चांस लेने की ठान ही ली ।  पत्नी के कंधे में एक हाथ रखकर हल्का सा दबाते- सहलाते हुए झूठ बोले, "यार बहुत ख्याल रखती हो तुम मेरा । बिन पूछे ही चाय बनाने लगी हो । पत्नी हो तो तुम जैसी ।"

     तनी हुई भृकुटि के साथ, "छोड़ो उथां जौ, मिकैं नि चैन हौ पोतड़ - पातड़" (छोड़ो उधर जाओ, मुझे नहीं चाहिए ये बनावटी नाटक) कहते हुए चनर दा को पत्नी ने एक ऐसा झटका मारा कि वे तीन कदम पीछे आकर रुके । उनके रोमांश का मर्डर हो गया ठैरा और हवा साफ हो गई ठैरी । वे हारे जुआरी की तरह किचन से जाने लगे । पत्नी बोली, "लो अब आ ही गए हो तो अपनी चाय भी ले जाओ ।" उनके रोमांश की सिहरन फुस्स हो गई थी । चाय का कप उठाया और चलते बने ।

         ज्वताई जौस मुखड़ ( पिटे मुहरे की तरह मुखड़ा) बनाके वे कमरे में जैसे ही चाय की चुस्कि मारने लगे, अचानक ज्वालामुखी हाथ में बिस्कुट लिए सामने खड़ी होकर बोली, "लो बिस्कुट खाओ । मुंह फुला कर बैठ गए हो यहां आकर । एक ही  झटके में उतर गया रोमांश । तुम्हारी जगह मैं होती तो दुबारा कोशिश करती और एक हाथ की जगह दोनों कंधों में हाथ रखती । आये बड़े रोमियो । डरपोक कहीं के ।"  चनर दा को जैसे आक्सीजन मिल गई । ज्वालामुखी (अब चंद्रमुखी ) का हाथ अपनी तरफ खीचते हुए ,"आ इधर बैठ यार" कह कर उसे अपने पास खींच लिया ।

      चनर दा बताते हैं, "वैसे घर में किचन प्यार का इजहार करने की एक उम्दा, अब्बल और श्रेष्ठ जगह है । हेल्पर बनकर उसके बगल में खड़े होने की हिम्मत करो और हो सके तो एकाद भान -कुन मांज (बर्तन धोना) दो । कुछ उसके मन कैसी बोलो ।  थोड़ी उसकी तारीफ (झूठी ही सही) कर दो । किचन में टोका-टाकी मत करो भले ही दूध उबाल जाए, सब्जी जल जाए या नल खुला रह जाय । तब देखो अपनी चंद्रू को, बस दुनिया भूल जाओगे कुछ देर के लिए ।"

      मैं जानता हूं कुछ लोग इस साश्वत किचन प्रेम में पहले से ही डूब कर अपने हिसाब से सराबोर हैं । फिर भी चनर दा का यह टोटका एक बार आजमा तो लीजिये, लाभ ही होगा । ('कंडीसन अप्लाई - चंद्रू द्वारा जेबतरासी के चांसेज हो सकते हैं , सावधान !')

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.10.2017

Wednesday 25 October 2017

Bachchon se darane : हम बच्चों से डरने लगे हैं ।

बिरखांत-182 : हम बच्चों से डरने लगे हैं |

    आज की बिरखांत बच्चों को समर्पित है | हम अपने बच्चों से डरने लगे हैं और डर के मारे हमने अपने बच्चों से कुछ भी कहना छोड़ दिया है | आए दिन समाचार पत्र या टी वी में हम देखते हैं कि अमुक बच्चा मां या पिता के डांटने पर घर से भाग गया या फंदे पर लटक गया | इस डर के मारे हमने भी बच्चों से कुछ भी कहना छोड़ दिया जो अनुचित है | हमने बच्चों को समय देना चाहिए | प्यार से समझा कर भी बच्चे मान जाते हैं परन्तु यह कार्य शैशव काल से शुरू होना चाहिए | ज्योंही हमें बच्चों में कोई भी अवगुण नजर आने लगे, हमें धृतराष्ट्र या गांधारी नहीं बनना चाहिए | दुर्योधन के अवगुणों को उसके माता-पिता ने नजरअंदाज कर दिया था | गुरु द्रोणाचार्य की बात को भी उन्होंने अनसुना कर दिया |

        जब भी कोई हमसे हमारे बच्चे की बुराई करे हमने बुरा मानने के बजाय चुपचाप उसकी बात को जांचना-परखना चाहिए | कम उम्र के बच्चे भी हमारे दिए हुए मोबाइल या कंप्यूटर पर उत्तेजनात्मक दृश्य देख रहे हैं | देश में 13 साल से कम उम्र के 76 % बच्चे रोज यू ट्यूब में वीडियो देख रहे हैं जिन्होंने अपने अभिभावकों की अनुमति से अपने एकाउंट बना रखे हैं | 

     बच्चों की भाषा भी अशिष्ट हो गयी है | उन्हें घर का खाना कम पसंद आने लगा है | वे चाउमिन, मोमोज, बर्गर, चिप्स, फिंगर फ्राई और बोतल बंद पेय से मोटे होने लगे हैं | घर में भी हम बच्चों को  अनुशासित नहीं रख रहे हैं | प्रात: उठने से लेकर रात्रि में सोने तक बच्चों के लिए समय प्रबंधन होना बहुत जरूरी है | खेल और टी वी पर एक-एक घंटे से अधिक समय अनुचित है | 15 अगस्त या 26 जनवरी की छुट्टी देर तक सोने के लिए नहीं होती |

        कुछ लोग अपने अवयस्क लाडलों को स्कूटर, मोटरसाइकिल या कार चलाने की खुली छूट दे रहे हैं | गली-मुहल्ले में अक्सर यह दृश्य देख जा सकता है | अवयस्क लाडला अपने वाहन से पास ही खेल रहे बच्चों को कुचल देता है | किसी के निर्दोष बच्चे मारे गए और इस लाडले को सजा भी नहीं होती | रात में ये तरह-तरह के हॉर्न बजा कर लोगों को दुखित कर उड़नछू हो जाते हैं | पुलिस सब कुछ देखती है परन्तु चुप रहती है | ऐसे बच्चों के अभिभावकों के लाइसेंस और वाहन जफ्त होने चाहिए | हाल ही की रिपोट के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में हमारे देश में प्रति वर्ष डेड़ लाख बेक़सूर लोग मारे जाते हैं और तीन लाख लोग घायल होते हैं | इस संख्या में अवयस्क लाडलों द्वारा मारे गए निर्दोष भी शामिल हैं |

      बच्चों के साथ देशप्रेम और शहीदों की चर्चा भी होनी चाहिए | हमें अपने बच्चों के व्यवहार, बोलचाल, संगत, आदत, आहार और स्वच्छता पर अवश्य नजर रखनी चाहिए | यदि अनुशासन आरम्भ से होगा तो आगे चल कर डांटने का प्रशन ही नहीं उठेगा | बच्चों के साथ अभिभावकों का मित्रवत व्यवहार ही उन्हें उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर करता है | बच्चों के लिए समय जरूर निकालें अन्यथा एक दिन अभिभावकों को स्वयं बच्चों के साथ किये गए अपने व्यवहार-वर्ताव पर पछतावा होगा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
26.10.2017

Tuesday 24 October 2017

Nain singh rawat : नैन सिंह रावत

मीठी मीठी - 35 : नैन सिंह रावत 

     पर्वतीय क्षेत्रों में नए रास्तों की खोज करने वाले 'हिमालय पुत्र' नैन सिंह रावत की याद हमें गूगल -डूडल ने दिलाई जब गूगल ने उनका 187वां जन्मदिन शनिवार 21 अक्टूबर 2017 को मनाया । 

     गूगल ने 19वीं सदी के भारतीय खोजी नैन सिंह रावत  (जन्म 21 अक्टूबर 1830) की उपलब्धियों और उनके 187वें जन्मदिन का जश्न शनिवार को बड़ी शान से मनाया। वह तिब्बत का सर्वेक्षण करने वाले पहले व्यक्ति थे। वे एक महान अन्वेषक, सर्वेक्षक, यायावर और मानचित्र निर्माता थे ।

      तिब्बती भिक्षु के रूप में प्रसिद्ध नैन सिंह रावत कुमाऊं क्षेत्र के अपने घर पिथौरागढ़ से काठमांडू, ल्हासा और तवांग तक गए । रावत भौगोलिक अन्वेषण में प्रशिक्षित, उच्च शिक्षित और बहादुर स्थानीय पुरुषों में से एक थे। उन्होंने ल्हासा के सटीक स्थान और ऊंचाई को निर्धारित किया तथा त्सांगपो का नक्शा बनाया और थोक जालुंग की सोने की खदानों के बारे में बताया। गूगल के डूडल में रावत को चित्रित किया जाना हम सबके लिए गर्व की बात है । 

     मुझे भी इस खोजी यायावर का पता नहीं था अन्यथा मैं इनके बारे में अपनी पुस्तक "ये निराले" ( वर्ष 2002) में लिखता । "ये निराले" में 11 निराले व्यक्तियों की चर्चा है जिनमें उत्तराखंड के एकमात्र व्यक्ति हैं , 'प्रकृति प्रेमी, हिम महर्षि सुन्दरलाल बहुगुणा ।'

     हम नैन सिंह रावत जैसे महान अन्वेषक को नमन करते हुए उन सभी विभूतियों को प्रणाम करते हैं जिन्होंने भारत के साथ उत्तराखंड का नाम भी रोशन किया । नैन सिंह रावत जी को उनकी जयन्ती पर विनम्र श्रद्वांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.10.2017

Shabd sampada : शब्द संपदा

मीठी मीठी - 36 : शब्द सम्पदा (‘मुक्स्यार’ किताब बटि, कुमाउनी )

(यसि शब्द- संपदा सिर्फ कुमाउनी और गढ़वाली भाषा में देखण में ऐंछ, आपूं कैं पढ़ि बेर यकीन आल ।)

सिदसाद नान छी उ

दगड़ियां ल भड़कै दे ,

बूबू कि उमर क ख्याल नि कर

नना चार झड़कै दे,

मान भरम क्ये नि हय

कुकुरै चार हड़कै दे,

खेल खेलूं में अझिना अझिन

नई कुड़त धड़कै दे,

कजिय छुडूं हूं जै भैटू 

म्यर जै हात मड़कै दे,

बिराऊ गुसीं यस मरौ

दै हन्यड़ कड़कै दे, 

तनतनाने जोर लगा 

भिड़ जस दव रड़कै दे,

गिच जउणी चहा वील

पाणी चार सड़कै दे, 

बाड़ में हिटण क तमीज निहौय

डाव नउ जस टड़कै दे,

लकाड़ फोड़णियल ठेकि भरि छां

एकै सोस में सड़कै दे,

गदुव क वजन नि सै सक 

सुकी ठांगर पड़कै दे ,

बीं हूं काकड़ धरी छी 

रात चोरू ल तड़कै दे ,

लौंड क कसूर क्ये निछी

खालिमुलि नड़कै दे ,

पतरौवे कैं खबर नि लागि

बांज क डाव गड़कै  दे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

25.10.2017

Sunday 22 October 2017

Pulis diwas : पुलिस स्मृति दिवस

खरी खरी - 114 : स्मृति दिवस पर पुलिस शहीदों को नमन 

     प्रति वर्ष 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है । 20 अक्टूबर 1959 को लद्दाख के पूर्वोत्तर में हमारी पुलिस के 10 जवानों को धोखे से चीनी सैनिकों ने शहीद कर दिया था । देश भर के पुलिस मशानिदेशकों ने जनवरी 1960 के वार्षिक सम्मेलन में प्रति वर्ष 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस मना कर अपना कर्तव्य निभाते हुए जान गंवाने वाले पुलिसकर्मियों को श्रध्दांजलि देने का निर्णय लिया ।

     स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक 34 हजार 418 पुलिसकर्मियों ने कर्तव्य निभाते हुए अपने प्राण न्यौछावर किये । हम इन वीर सपूतों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । इन पंक्तियों के लेखक ने पुलिस पर कई बार लिखा भी है । पूर्व आईपीएस किरन बेदी ( वर्तमान में पुद्दुचेरी की ले.गवर्नर) पर कविता भी लिखी पुस्तक 'स्मृति लहर' में । 'ये निराले' में भी ट्रेन में डाकुओं से लड़ने वाले एक पुलिस इंसेक्टर की कहानी लिखी है 'पुलिस का अभिमन्यु ।'

     हमारे देश में पुलिस की छवि उतनी अच्छी नहीं है क्योंकि कुछ पुलिसकर्मियों ने वर्दी पर दाग लगाए हैं जिन्हें धुलना आसान नहीं । पुलिस भ्रष्टाचार भी किसी से छिपा नहीं है । लोग पुलिस पर भरोसा नहीं करते जिस कारण उन्हें जनता का स्नेह भी कम मिलता है । ऐसी बात नहीं है कि पुलिस में ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता के पहरुवे नहीं हैं परन्तु एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है । हम कई बार जब ट्रैफिक पुलिस के जवान की सड़क पर कुचले जाने का समाचार पढ़ते हैं तो बहुत दुख होता है । उग्रवादियों द्वारा शहीद कर दिए गए  इंस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा (अशोक चक्र मरणोपरांत) को कौन भूल सकता है ?

     पुलिस से स्नेह, कर्तव्य और भरोसे की उम्मीद करते हुए एक कुंडली पुलिस को समर्पित करता हूं - 

कैसा अब माहौल बना
पुलिस भरोसे कौन,
स्तुत्य दुर्जन बन गया
रह गया सज्जन मौन,
रह गया सज्जन मौन
पुलिस पर विश्वास नहीं है
जनता है सुरक्षित
ऐसी आस नहीं है, 
कह 'पूरन' हे पुलिस जन
विश्वास जगा दे ऐसा,
मिटे सकल अपराध
किसी को फिर डर कैसा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.10.2017

Patakha dhundh : प्रकाश पर्व पर पटाखा ढूंढ

खरी खरी - 113 : प्रकाश पर्व पर पटाखा धुंध

     पौराणिक कथा के अनुसार जब श्री राम जी 14 वर्ष के वनवास के बाद भार्या और अनुज सहित अयोध्या वापस आये तो प्रजा ने घर -घर दीप प्रज्ज्वलित कर खुशियां मनाई । हमने इस प्रथा-परम्परा को आगे बढ़ाया जिसने आगे चल कर आतिशबाजी का रूप ले लिया। आज वह आतिशबाजी जी का जंजाल बन गयी जिसने सांस लेना ही दूभर कर दिया ।

     19 अक्टूबर 2017 दीपावली की रात को इस मानवजनित विभीषिका के कारण देश की राजधानी में 264 जगहों पर आगजनी हुई जिससे काफी नुकसान हुआ । दिल्ली के अग्निशमन विभाग को आग बुझाने की 204 कॉल आईं और विभाग ने बखूबी अपना कार्य किया । इस घरफूक तमाशे का अंदेशा पहले से ही विभाग को था इसलिए उसने लगभग 90 केंद्र इस सेवा के लिए तत्पर किये थे ।

     इसी तरह दीपावली की रात को दिल्ली के सफदरजंग और आरएमएल अस्पताल में क्रमशः 66 और 29 मामले पटाखा जनित आग से झुलसने के लाए गए । अधिकांश केस आंख और हाथ जलने के थे । चिकित्सकों ने कुछ को छोड़कर अन्य सभी को उपचार के बाद वापस भेज दिया । 

     उस रात तथा उसके बाद की कई रात और दिन तक देश की राजधानी बारूदी आबोहवा में घुटन के साथ जीने को मजबूर है । न्यायालय के प्रतिबंध की खुलेआम धज्जियां उड़ते हम सब ने बेबस होकर देखी । वायुप्रदूषण 9 से 10 गुना तक बढ़ गया ।

     यदि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखे नहीं फूटते तो ऐसी स्तिथि नहीं होती । न सीने में जलन होती और न सांस लेने में घुटन होती । न बच्चों के नाजुक अंग कुम्हलाते और न वृद्धों की श्वसन क्रिया अवरुद्ध होती । देर रात तक उच्च शोर के पटाखे फोड़ने वालों ने अपने क्षणिक आनंद के लिए पूरे वातावरण को जहरीला बना दिया । कुछ लोगों ने तो इसे धर्म के साथ जोड़ दिया । नुकसान के सिवाय पटाखा फोड़ने से और कुछ नहीं मिलता । हमारी पुलिस और प्रशासन इस बारूदी आबोहवा को रोकने में निष्फल क्यों रहे यह प्रश्न दो दिन बाद भी भैयादूज के दिन तक हवा में गूंज रहा है !!!

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.10.2017

Friday 20 October 2017

Patakhon par poorn paabandee ho : पटाखों पर पूर्ण पाबंदी

बिरखांत - 181 : पटाखों पर हो पूर्ण पाबन्दी 

     पटाखों की पाबंदी पर पहले भी कई बार निवेदन कर चुका हूँ, ‘बिरखांत’ भी लिख चुका हूँ  | हर साल दशहरे से तीन सप्ताह तक पटाखों का शोर जारी रहता है जो दीपावली की रात चरम सीमा पर पहुंच जाता है |  शहरों में पटाखों के शोर और धुंए के बादलों से भरी इस रात का कसैलापन, घुटन तथा धुंध की चादर आने वाली सुबह में स्पष्ट देखी जा सकती है | दीपावली के त्यौहार पर जलने वाला कई टन बारूद और रसायन हमें अँधा, बहरा तथा  लाइलाज रोगों का शिकार बनाता है |

     पटाखों के कारण कई जगहों पर आग लगने के समाचार हम सुनते रहते हैं | पिछले साल छै से चौदह महीने के तीन शिशुओं की ओर से उनके पिताओं द्वारा देश के उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करते हुए कहा कि प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में बड़े होना उनका अधिकार है और इस सम्बन्ध में सरकार तथा दूसरी एजेंसियों को राजधानी में पटाखों की बिक्री के लिए लाइसेंस जारी करने से रोका जाय |

      उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करें और उन्हें पटाखों का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दें | न्यायालय ने कहा कि इस सम्बन्ध में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में व्यापक प्रचार करें तथा स्कूल और कालेजों में शिक्षकों, व्याख्याताओं, सहायक प्रोफेसरों और प्रोफेसरों को निर्देश दें कि वे पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में छात्रों को शिक्षित करें |

      यह सर्वविदित है कि सर्वोच्च न्यायालय का रात्रि दस बजे के बाद पटाखे नहीं जलाने का आदेश पहले से ही है परन्तु नव- धनाड्यों एवं काली कमाई करने वालों द्वारा इस आदेश की खुलकर अवहेलना की जाती है | ये लोग रात्रि दस बजे से दो बजे तक उच्च शोर के पटाखे और लम्बी-लम्बी पटाखों के लड़ियाँ जलाते हैं जिससे उस रात उस क्षेत्र के बच्चे, बीमार, वृद्ध सहित सभी निवासी दुखित रहते हैं |

     एक राष्ट्रीय समाचार में छपी खबर के अनुसार सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस बार देश में विदेशी पटाखों को रखना और उनकी बिक्री करना अवैध होगा | इसकी अवहेलना करने पर निकट के पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट की जा सकती है | इन विदेशी पटाखों में पोटेशियम क्लोरेट समेत कई खरनाक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो है ही इससे आग भी लग सकती है या विस्फोट हो सकता है | विदेश व्यापार  महानिदेशक ने आयातित पटाखों को प्रतिबंधित वस्तु घोषित किया है | 

     कुछ  लोग अपनी मस्ती में समाज के अन्य लोगों कों होने वाली परेशानी की परवाह नहीं करते | उस रात पुलिस भी उपलब्ध नहीं हो पाती या इन्हें पुलिस का अभयदान मिला होता है | वैसे हर जगह पुलिस भी खड़ी नहीं रह सकती | हमारी भी कुछ जिम्मेदारी होती है | क्या हम बिना प्रदूषण के त्यौहार या उत्सव मनाने के तरीके नहीं अपना सकते ? यदि हम अपने बच्चों को इस खरीदी हुई समस्या के बारे में जागरूक करें या उन्हें पटाखों के लिए धन नहीं दें तो कुछ हद तक तो समस्या सुलझ सकती है | धन फूक कर प्रदूषण करने या घर फूक कर तमाशा देखने और बीमारी मोल लेने की इस परम्परा के बारे में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए | उच्च शोर के पटाखों की बिक्री बंद होने पर भी ये बाजार में क्यों बिकते आ रहे हैं यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है |

      हम अपने को जरूर बदलें और कहें “पटखा मुक्त शुभ दीपावली” | “ SAY NO TO FIRE CRACKERS”. पटाखों के रूप में अपने रुपये मत जलाइए , इस धन से गरीबों को गिफ्ट देकर खुशी बाँटिये । इस बार उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार पटाखों की बिक्री पर पाबंदी होने से दीपावली की रात कुछ प्रदूषण कम हुआ जिसके लिए सभी नागरिक धन्यवाद के पात्र हैं । अब समय आ गया है जब पटाखों के उत्पादन, भंडारण और बिक्री पर पूर्ण पाबंदी लगनी चाहिए । आप सभी को पुनः शुभ दीपावली । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.10.2017