Tuesday 16 June 2020

Kedarnath trasdi : केदारनाथ त्रासदी

बिरखांत-322 :याद रहे केदारनाथ त्रासदी

     हर साल जून का महीना आते ही 17 तारीख को केदारनाथ की वह त्रासदी याद आ जाती है जिसमें सरकारी आकंड़ों के मुताबिक 5800 लोग मारे गए या लापता हुए जिसमें 924 उत्तराखंड के बताये जाते हैं | अपुष्ट में यह आकंड़ा हजारों में है जिसमें सैकड़ों तो घोड़े- खच्चर और बिना पंजीयन के मजदूर, कुली और गाइड थे | यह प्राकृतिक आपदा 16 और 17 जून की दरम्यानी रात्रि को अचानक बादल फटने के कारण मंदाकिनी के उग्र होने से आई |

     उस क्षेत्र में यह इंतनी भयंकर आपदा थी कि जिसमें उत्तराखंड के 4219 गावों की बिजली, 1187 पेयजल योजनाएं और 2229 सड़क मार्ग अवरुद्ध हो गए | पर्वतीय क्षेत्र के उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग जिले अधिक प्रभावित हुए | आज इस घटना के सात वर्ष बाद परिस्थिति बहुत कुछ बदल गई है परन्तु आये दिन बादल फटने की घटनायें होती रहती हैं जबकि उत्तराखंड के चार धाम बद्रीनाथ,  केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का धार्मिक पर्यटन एवं प्रकृति दर्शन अविरल चल रहा है | उत्तराखंड के चार धामों को जोड़ने वाली सड़क के चौड़ीकरण को भी कुछ पर्यावरणविद् खतरनाक और प्रकृति से छेड़छाड़ बता रहे हैं ।

     उत्तराखंड एक पर्वतीय भगौलिक संरचना का राज्य होने के कारण यहां कुदरती आपदाएं कभी भी आ सकती हैं | यहां बादल फटने, भूचाल आने और भूस्खलन होने जैसी घटनाएं एक आम बात है |चातुरमास में यहां छोटे-मोटे गाड़- गधेरे भी भबक कर बिकराल रूप धारण कर लेते हैं | 16 जून 2013 की आपदा को मानव जनित आपदा भी कहा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में लोगों ने नदी के घर (सूख गए बहाव क्षेत्र ) में मकान, होटल, धर्मशाला, सड़क सहित कई अवैध निर्माण भी कर दिए थे | धार्मिक पर्यटन ने पिकनिक का रूप ले लिया था तथा वाहन संख्या अत्यधिक बढ़ गई थी |

       केदारनाथ घटना से बहुत कुछ सीखा जा सकता है जिससे आपदा आने पर जनहानि न हो | उस आपदा में हमारी सेना के सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता जिसने आपदा में घिरे हजारों तीर्थयात्रियों को दिन-रात परिश्रम करके बचाया था | हम अपनी सेना का आभार प्रकट करते हैं तथा जिसने दिवंगतों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । उक्त घटना मानव जनित थी | यदि हम अपने लालच- स्वार्थ- रातोंरात आसमान छूने की भूख को रोक लें, अपने को भ्रष्ट होने से बचा लें, सिर्फ अपने ही बारे में सोचना छोड़ दें तथा ‘जीओ और जीने दो’ के आदर्श सिद्धांत को अपना लें तो हम बहुत हद तक ऐसी त्रासदी से मानव को बचा सकते हैं | काश ! ऐसा हो |

       कुछ लोगों ने इसे बाबा केदार का क्रोध बताया जबकि सभी स्तर पर यह मानव जनित त्रासदी थी । अपनी त्रुटियों की छिपाने के लिए भगवान और प्रकृति की दोष देना सर्वथा अनुचित है । आने वाले समय में यदि मानव ने विकास की दौड़ के बहाने अंधाधुंध औद्योगिकरण जारी रखा और कार्बन उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाई तो ग्लोबल वार्मिंग के नतीजे सामने आएंगे जो हाल ही में बंगाल, ओडिसा, गुजरात और महाराष्ट्र में चक्रवाती तूफान की एक झलक थी । विश्व के तथाकथित धनी देश इस पर प्रतिवर्ष बैठक करते हैं लेकिन कार्बन उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाते । यह विकास मानव को विनाश की ओर ले जा सकता है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.06.2020

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