Saturday 13 June 2020

Aarti ke apriya shabd :आरती के अप्रिय शब्द

खरी खरी - 647 : आरती के अप्रिय शब्द बदलने चाहिए ।

     (दुखद बात यह है कि कोरोना संक्रमण में अब देश अमेरिका, ब्राजील और रूस के बाद चौथे स्थान पर है । देश में करीब 1.4 लाख से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक  को ढककर चलें, केवल दिखाने के लिए मास्क लटकाकर न चलें । हाथ धोते रहना, मास्क ठीक से लगाए रखना, देह दूरी और भीड़ से बचाव; ये चार बातें ही तो याद रखनी हैं । आज अनलौक.1 का 13वाँ दिन है । देश में 68 दिन का लौकडाउन पूरा होने के बाद 1 जून से अनलौक है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 77.31+/4.28+ लाख और देश में यही संख्या 3.09+ लाख/8.8+ हजार हो गई है ।)

         आज पुनः गणेश जी की आरती के शब्दों की बात करते हैं । हमारे समाज में चिरकाल से गणेश जी की एक आरती प्रचलन में है, "जय गणेश जय गणेश श्रीगणेश देवा..."। इस आरती की इन पंक्तियों में बदलाव होना चाहिए - 

 " अंधन को आंख देत, कोडिन को काया;

    बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।" 

आरती में तीन शब्द अप्रिय हैं, कलुषित हैं  और अप्रासंगिक हैं ।

          मेरे विचार से आरती इस प्रकार से हो - 

" सूरन को आंख देत, रोगिन को काया; 

   नारी को मातृत्व देत, सबजन को छाया ।"  

      अंधे व्यक्ति को सूर कहते हैं, सूर कहना उचित है ।  कोड़ की बात न हो, कोड़ रोग का भी उपचार होता है । प्रत्येक रोग से सभी को दूर रखने की बात हो । बांझ शब्द किसी भी विवाहिता के लिए कटु शब्द है । यहां मातृत्व की बात करें । पुत्र देत न कहें । पुत्र देत कहने से हम अपनी पुत्रियों का अपमान करते हैं । माया तो मांगनी ही नहीं चाहिए । कर्म करें, उच्च चरित्र रखें, जीओ और जीने दो का सिद्धांत अपनाएं और स्वस्थ जीवन जीएं । जिस ' छाया ' शब्द  का मैंने प्रयोग किया है उसका अर्थ है भगवान की छत्र छाया सब पर बनी रहे । मुझे उम्मीद है सभी मित्र इस बदलाव पर अवश्य मंथन करेंगे और इन तीन शब्दों ( अंधन, कोडिन  और बांझ  ) से आहत होने वाले व्यक्तियों को इन अप्रिय शब्दों से बचाएंगे तथा इनकी जगह ' सूर '  'रोगिन ' और 'मातृत्व ' शब्द प्रयोग करेंगे । इस आशय में एक ऑडियो भी पहले प्रेषित किया है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

13.06.2020

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