Tuesday 23 June 2020

Ansuna kisaan : अनसुना किसान

खरी खरी - 653 : अनसुना रह गया हमारा किसान

      एक तरफ किसानों की आय दोगुनी और लागत से डेड़ गुना अधिक देने की बात हो रही है तो दूसरी ओर देश में लगभग बारह हजार किसान प्रति वर्ष आत्महत्या कर रहे हैं । आत्महत्या का एक कारण फसल के उचित दाम नहीं मिलना भी है । कहा तो जाता है किसान का एक भी उत्पाद बरबाद नहीं होगा और भोज्य परि संस्करण मंत्रालय इस पर नजर रखेगा । आश्वासन कब पूरे हुए है ?

     उदाहरण के लिए देश के कुछ भागों में विगत वर्ष आलू की बम्पर फसल हुई और ₹ 487/- प्रति क्विंटल आलू का समर्थन मूल्य रखा गया जबकि किसान की लागत  कम से कम ₹ 500/- प्रति क्विंटल से अधिक थी । बताया गया कि इस पर भी मात्र एक प्रतिशत ही आलू खरीदा गया । परिणाम स्वरूप किसान ने आलू सड़कों पर फेंका या चिप्स कम्पनियों को एक - दो रुपए प्रति किलो बेचा । यही उत्तम किस्म का आलू दिल्ली जैसे महानगरों में फुटकर में ₹ 10/- प्रति किलो बेचा गया । फुटकर दुकानदार ₹ 6/- प्रति किलो थोक बाजार से लाया था ।

     उधर बाजार में 15 ग्राम का हवा भरा हुआ आलू चिप्स का पाउच ₹ 5/- में बेचा जा रहा है । ₹ 5/- में 15 ग्राम आलू चिप्स बेचने वाली कम्पनी ने किसान से 1 या 2 ₹ प्रति किलो खरीद कर उसे चिप्स के रूप में ₹ 333/- प्रति किलो बेचा । यदि यह आलू सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदती तो किसान आत्महत्या क्यों करता ?  किसान- किसान कहने के बजाय जमीन में किसान को बचाने के लिए हमारे नेताओं और सरकारों को कुछ तो ईमानदारी दिखानी चाहिए । यदि यही हाल रहा तो एक दिन देश की जमीन किसान के बिना वीरान हो जाएगी और देश आलू विहीन हो जाएगा ।

ये किसान तेरे
हाल पर रोना आया,
कभी आपदा ने
तो कभी बम्पर
ने तुझे रुलाया ,
इस दौर में दर्द
तेरा अधिक बढ़ा
जब चीन से आए क्रूर
कोरॉना ने तुझे रुलाया ।

( शिमला मिर्च , प्याज और टमाटर की बंपर  फसल उगाने वाले किसानों का भी इसी तरह शोषण हुआ है और रहा है । )

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.06.2020

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