Wednesday 24 June 2020

Hira Singh Rana Smriti : हीरा सिंह राणा स्मृति

मीठी मीठी- 477 : हीरा सिंह राणा - ताकि स्मृति बनी रहे !

      अपने दिल की व्यथा - वेदना को शब्दों से प्रकट कर गीत तक पहुंचाने वाले एक साधारण कलाकार से दिल्ली राज्य में कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष पद तक पहुंचने वाले फकीरी पसंद हीरा सिंह राणा जी 13 जून 2020 को 78 वर्ष की उम्र में इस संसार से दिवंगत हो गए । वे अपने पीछे पत्नी श्रीमती विमला राणा और पुत्र हिमांशु राणा के आलावा अपार जन - स्मृति, गीत, कुमाउनी भाषा की शब्द संपदा और एक उच्च कोटि का सरल स्वावलंबन संदेश तथा सौहार्द्र सुगंधित  सामाजिकता छोड़ गए ।

     16 सितम्बर 1942 को डढोई, मनीला (अल्मोड़ा, उत्तराखंड) में हुआ | वे विगत 60 वर्षों से अपने गीत- कविताओं के माध्यम से लोक में छाए रहे | उनके गीत उनकी पुस्तकें - 'प्योलि और बुरांश',  'मानिलै डानि ' और  'मनखों पड़ाव ' में हमारे बीच मौजूद हैं । राणा जी कुमाउनी के शीर्ष लोकगायक तो रहे, वे उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के साथ अंत तक जुड़े रहे, भाषा आन्दोलन में भी संघर्षरत रहे तथा वे राजधानी गैरसैण के समर्थक भी रहे । उनके कई कैसेट/सीडी हैं जिनमें उनके गीतों का संग्रह बतौर उनकी अमूल्य निशानी हमारे बीच हमेशा उपलब्ध रहेंगे । लोक गायन के अलावा राणा जी कुमाउनी में कविता पाठ भी करते थे । वे कएक सम्मान -पुरस्कारों से भी विभूषित थे | वर्ष 2016 से प्रतिवर्ष उन्हें पद्मश्री सम्मान दिए जाने के बारे में हमने चार बार निवेदन भी ज्ञापित किया को अनसुना रह गया परन्तु लोगों ने उनके गीत सुनकर उन्हें सबसे बड़ा सम्मान दिया ।

        ' म्येरि  मानिलै डानि,  लश्का कमर बाधा (राज्य मांग आंदोलन ),  त्यर पहाड़ म्यर पहाड़,  हाई हाई रे मिजाता, अणकसी छै तू,  ह्यूं हैगो लाल, आहा रे जमाना... आदि उनके कई कालजई  गीत हैं जो हमारे बीच गूंजते रहेंगे और लोगों के द्वारा हमेशा  गुनगुनाए जाते रहेंगी । राणा जी सही मायने में उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर थे । उनके नहीं रहने पर उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखना हम सबका सामजिक कर्तव्य है । राणा जी के इस अद्भुत कृतित्व को जीवंत रखने के लिए हम सबका सामाजिक उत्तरदायित्व है । इस हेतु मुख्य तीन बिंदुओं पर सामाजिक संस्थाओं को अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए । ये बिंदु हैं -

1. राणा जी के नाम से मानीला में उत्तराखंड सरकार द्वारा संग्रहालय बनाया जाय जहां प्रतिवर्ष उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर सामाजिक आयोजन किया जाए ।

2. राणा जी के नाम पर सरकार द्वारा एक राज्य स्तरीय पुरस्कार घोषित किया जाए जो प्रतिवर्ष किसी उत्कृष्ट कलाकार को प्रदान किया जाए;

3. राणा जी नाम से विद्यालयों के लिए एक छात्रवृती योजना आरंभ की जाए ;

     समाज के प्रबुद्ध जनों और सामाजिक संस्थाओं को इन तीन बिंदुओं का क्रियान्वयन करने हेतु उत्तराखंड सरकार से लिखित अनुरोध ज्ञापित करना चाहिए जिसे राणा जी के प्रति सम्मान समझा जाएगा ।  उपरोक्त के अलावा राणा जी के एकमात्र पुत्र हिमांशु राणा को उनकी योग्यतानुसार सरकार द्वारा नौकरी दी जाए जिसके लिए उनके पुत्र को शीघ्र निवेदन भी ज्ञापित करना चाहिए । वर्तमान में इस परिवार को आर्थिक सहयोग भी जरूरी है । इस दुख की घड़ी में हम राणा जी की पत्नी श्रीमती विमला राणा जी से सामाजिक संघर्ष करने हेतु मंथन करने की अपील भी करते हैं क्योंकि समाज ने उन्हें राणा जी के साथ कई बार कई मंचों पर सम्मानित होते हुए देखा है ।  उक्त बिंदुओं का क्रियान्वयन ही दिवंगत राणा जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी ताकि उनकी पावन स्मृति बनी रहे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.06.2020

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