Sunday 14 June 2020

Hira Singh Rana : हीरा सिंह राणा

मीठी मीठी- 469 : हीरा सिंह राणा : शब्द - स्वर जिंदा रहेंगे ।

      अपने दिल की व्यथा - वेदना से प्रकट शब्दों को गीत तक पहुंचाने वाले एक साधारण कलाकार से दिल्ली में कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी अकादमी के उपाध्यक्ष पद तक पहुंचने वाले फकीरी पसंद हीरा सिंह राणा जी का दिल्ली में अपने निवास स्थान विनोदनगर में 13 जून 2020 को प्रातः हृदय गति रुक जाने से आकस्मिक निधन हो गया । वे अपने पीछे पत्नी विमला राणा और पुत्र हिमांशु राणा को छोड़ गए । दिल्ली के निगमबोध घाट पर 13 जून को ही उनका दाह संस्कार हुआ । दिल्ली में कोरोना संक्रमण फैलाव को रोकने के आशय से उनकी शवयात्रा में उनके अधिकांश प्रशंसक शामिल नहीं हो सके ।

        राणा जी उत्तराखंड अपने गीतों के माध्यम से लोगों के दिलों तक पहुंचने वाले लोकप्रिय गायक/कवि थे । जन कवि श्री हीरा सिंह राणा (हिरदा ) का जन्म 16 सितम्बर 1942 को मनीला (अल्मोड़ा, उत्तराखंड) में हुआ | वे विगत 60 वर्षों से अपनी गीत- कविताओं के माध्यम से लोक में छाये हुए रहे | उनकी लोकप्रियता की विशेषता यह थी कि वे अपने शब्दों को स्वर देते हुए उन्हें गीत तक पहुंचाते थे । उनकी कुछ पुस्तकें हैं- प्योलि और बुरांश, मानिलै डानि और मनखों पड़ाव में हमारे बीच हमेशा के लिए जीवित रहेंगी ।

       राणा जी कुमाउनी के शीर्ष लोकगायक थे, वे राज्य आन्दोलन से जुड़े रहे, भाषा आन्दोलन में भी संघर्षरत थे,  और राजधानी गैरसैण के समर्थक थे । उनके कई कैसेट–सीडी हैं  जिनमें उनके गीतों का संग्रह समाज में बतौर उनकी निशानी उपलब्ध रहेगा । लोक गायन के अलावा राणा जी कुमाउनी में कविता पाठ भी करते थे और कई सम्मान -पुरस्कारों से विभूषित थे | वर्ष 2016 से प्रतिवर्ष लगातार चार बार उन्हें पद्मश्री सम्मान देने हेतु मैंने निवेदन भी ज्ञापित किया जो अनसुना रह गया परन्तु लोगों ने इससे भी बढ़कर सम्मान उन्हें उनके गीत सुनकर दिया ।

       उनकी संघर्ष गाथा पुस्तक रूप में वर्ष 2014 में प्रकाशित हुई |  इस संघर्ष यात्रा ‘संघर्षों का राही’ (संपादक- वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी, प्रकाशक- उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली, परामर्श - डॉ विनोद बछेती, चेयरमैन डी पी एम आई, नई दिल्ली ) का लोकार्पण वर्ष 2014 में ही कांस्टीट्यूशन क्लब दिल्ली में डॉ बछेती के सहयोग से किया गया | इन पंक्तियों के लेखक को राणा जी के साथ काव्यपाठ करने का कई बार अवसर प्राप्त हुआ  जिनमें अल्मोड़ा, सल्ट (रानीखेत - दो बार ), नोएडा, एन सी आर दिल्ली सहित कई स्थान शामिल हैं । चंडीगढ़ में 19 जनवरी 2020 को भी राणा जी के साथ काव्यपाठ में भागीदारी निभाने का अवसर प्राप्त हुआ ।

        बहुत ही सरल, निश्चल, निष्कपट व्यवहार के धनी राणा जी जब मंच से गीत गाते थे तो लोगों की फर्माईस कभी समाप्त नहीं होती थी । लोग उनके साथ फोटो - चित्र खींचवाने के लिए लालायित रहते थे । कई बार वे फोटो शूट देते देते थक जाते थे परन्तु अपने प्रशंसकों को निराश नहीं करते थे । ' म्येरी मानिलै डानि,  लश्का कमर बाधा (राज्य मांग आंदोलन ),  त्यर पहाड़ म्यर पहाड़,  हाई हाई रे मिजाता, अणकसी छै, ह्यूं हैगो लाल, आहा रे जमाना आदि उनके कई कालजई गीत हैं जो जमाने में गूंजते रहेंगे, लोगों के द्वारा गुनगुनाए जाते रहेंगे । राणा जी सही मायने में उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर थे । इस सांस्कृतिक धरोहर के जाने से आज जनमानस दुखी है, स्तब्ध है और उनके स्मरण में व्यथित है ।  दिवंगत राणा जी को विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.06.2020

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