Tuesday 30 June 2020

katha mein dhyan : कथा में ध्यान

बिरखांत - 324 : कैक रांछ कांथ में ध्यान ?

     हमार ‘चनरदा’ यूं पंक्तियोंक लेखकक एक भौत पुराण जाणी- पछ्याणी किरदार छ | इनर  नाम चन्द्र मणी, चंद्रा दत्त, चन्द्र प्रकाश, चनर देव, चनर सिंह, चान सिंह, चन्दन सिंह, चनर राम, चनराम, चनिका, चनरी आदि कुछ लै है सकूं पर लोग उनुहें चनरदा ई  कूंनी | चनरदा मसमसाणक बजाय गिच खोलनीं, कडुआहट में मिठास घोउनीं, बलाण है पैली भली-भांत तोलनीं और सच- झूठकि परख लै करनी | म्येरि कएक रचनाओं में चनरदा कतू ता ऐ गईं | आज ऊँ एक काथ सुणि बेर ऐ रईं |

    राम- रमो क बाद मील चनरदा हूं पुछौ, “भौत दिनों में नजर आछा चनरदा आज, लागें रौ कैं दूर जै रौछिया और वै रमि गछा ?”  “कां जनूं यार, याइं छी | राजकपूर कै गो, ‘जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां ?’ काथक न्यौत खै बेर ऊं रयूं  | सत्यनारायण ज्यू कि काथ छी एक मितुर क घर”, चनरदाल मुलमुलै बेर कौ |  “अच्छा काथक ताज ज्ञानल सराबोर है रौछा, तबै भौत खुशि नजर ऊं रौछा,” मील मजाक करी | “तुम जे समझो यार, क्वे ताज ज्ञान वालि बात नि हइ | वर्षों बटि सुणते ऊं रयूं, बस एकै  ज्ञान हय- लालचल वशीभूत है बेर पुजक संकल्प करो, बामणों कैं भोजन खाण खवौ, संकल्प नि निभाला तो उ व्यौपारीक चार बेक़सूर दुख पाला...आदि | काथक बहानै ल इष्ट- मितुरों दगै भेट है जींछ और ‘वील काथ करै’ क प्रचार त है ई जांछ |”

    “काथ छी तो ब्राहमण और बाबा त आयै हुनाल, उनुकैं खउण –पेउण में पुण्य मिलनेर हय बल | जजमानक दगाड़ सुणणियांल पुण्य कमा हुनल”, मील सवाल उठा | चनरदा सहमत नि हाय और झट बलाईं, “काथ सुणणी त छी पर कैक ध्यान काथ में नि छी | यास में पंडिज्यू लै टोटल पुर करैं रौछी | ‘जसी तेरी जाग्द्यो उसी म्येरि भेट-पखोव |’ शोर-शराबा देखि मील सुणणियां हैं हाथ जोड़नै कौ, “ देखो काथ ध्यानल सुणो, कथाक आखिर में  पांच सवाल पुछी जाल | जो सही उत्तर द्यल उकैं हर सही उत्तर पर बीस रुपैक इनाम दिई जाल | मील दस-दसाक दस नौट थान में धरि देईं | कुछ कम शोरक साथ काथ चलते रै |

      काथ पुरि होते ही आरती है पैली मील सुणणियां हैं पांच साधारण सवाल पुछीं –‘लीलावती और कलावती को छी, सूत जी को छी, सदानंद को छी, को ऋषियोंल को जाग पर सूत ज्यू हैं बात पुछी और बर को नगरक छी ?’ हैरानी तब है जब एक लै सवालक उत्तर ठीक नि मिल | स्पष्ट है गोछी कि कैक लै ध्यान काथ में नि छी | पंडिज्यू हैं सवाल नि पुछ  ताकि व्यास गद्दीक सम्मान बनी रौ और पंडिज्यूल लै खुद उत्तर दीण कि क्वे पहल नि करि | सौ रुपै कि जमा राशि तत्काल पंडिज्यूक सुपुर्द करि दी |”

     चनरदा अघिल बतूनै गईं, "मिकैं कैकि आस्था- श्रधा पर के कूण न्हैति, मी त  अंधश्रद्धा या अंधविश्वासक विरोध करनू | काथ में क्वे गरीब कैं भोजन करूण या कर्म करण कि चर्चा कैं लै न्हैति | बामणों कैं भोजन करूणल और पुज करणल पुण्य और वांच्छित फल  मिलण कि चर्चा कतू ता छ | ‘श्रीमद भागवद गीता’ में केवल कर्म करणक संदेश जबकि ‘य काथ’ और ‘गरुड पुराण’ में केवल बामण कैं भोजन करूणल पुण्य प्राप्तिक द्वार बताई रौछ |

     अंत में एक लौंडल सवाल पुछौ, “य काथ में पुज करण कि बात कतू ता बतायी गे, काथ करण कि बात लै कई गे पर सत्यनारायण कि काथ के छी य त बतैयै ना  ?” चनरदा बलाय, “उ लौंड क सवाल मिकैं ठीक लागौ जैक जबाब आज लै नि मिलि रय | आखिर काथ के छी जैकैं नि करण ल कएक लोगों कैं सजा भुगतण पड़ी ? य काथ कैं ‘कथा’ कि जागि पर ‘पुज’ कूंण ठीक रौल  | काथक आरम्भ है पैली एक डाव - बोट जरूर रोपण चैंछ । अंत में एक बात य लै कचोटीं -

काथ - पुराण म भजन कीर्तन म
क्वे लै नि कै सकन शराब नि पियो तुम
आस्था कम हैगे चरणामृत प्रसादम
ध्यान न्हैगो सबूंक बोतल खोजणम ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.06.2020

No comments:

Post a Comment