Friday 15 December 2017

Vijay diwas : विजय दिवस 16 दिसम्बर

खरी खरी - 143 : 16 दिसंबर ‘विजय दिवस’ 

      आज (16 दिसम्बर) भारतीय सैन्यबल को  सलूट करने का दिन है | आज ही के दिन 1971 में हमारी सेना ने पाकिस्तान के 93000 सैन्य-असैन्य कर्मियों से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में आत्मसमर्पण करवाया था | इस युद्ध का मुख्य कारण था करीब एक करोड़ से अधिक पूर्वी पाकिस्तानी जनता द्वारा पाकिस्तान की फ़ौज के अत्याचार से अपनी जान बचा कर भारत में शरण लेना  ।

     तब  देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थी जिन्होंने दुनिया का ध्यान भी इस समस्या की ओर खीचा | पाकिस्तान को भारत द्वारा शरणार्थियों एवं मुक्तिवाहिनी ( पाकिस्तान के अत्यचारों से लड़ने वाला संगठन) की मदद करना अच्छा नहीं लगा और उसने 3 दिसंबर 1971 को भारत की पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर एक साथ युद्ध थोप दिया | 14 दिन के इस युद्ध में पाकिस्तान छटपटाने लगा और उसके सैन्य कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल ए ए के नियाजी ने पूरे सैन्य साजो सामान के साथ भारतीय सैन्यबल के कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल जे एस अरोड़ा के सामने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया |

      इस युद्ध की पूरी बागडोर देश के चीफ आफ आर्मी, जनरल एस एच एफ जे मानेकशा (शैम मानेकशा) के हाथ थी जिन्हें 3 जनवरी 1972 को, भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर देश के राष्ट्रपति ने आजीवन फील्ड मार्शल का रैंक प्रदान किया | बाद में उन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया | 16 दिसंबर 1971 को विश्व के नक्शे में एक नए देश ‘बंग्लादेश’ का जन्म हुआ जिसके राष्ट्रध्यक्ष शेख मुजीबुर्रहमान बने |

      इस महाविजय पर पूर्व प्रधानमंत्री (तब नेता विपक्ष ) अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा को ‘दुर्गा’ का अवतार बताया | आजादी से अब तक के युद्धों में हमारे लगभग साड़े बारह हजार सैनिक शहीद हो चुके हैं जिनमें साड़े तीन हजार से अधिक सैनिक 1971 के युद्ध में शहीद हुए | इन शहीदों में 255 उत्तराखंड के थे |

     प्रतिवर्ष हम 16 दिसंबर को अपने शहीदों का स्मरण करते हुए ‘विजय दिवस’ मनाते हैं | मीडिया में इस दिवस को सूक्ष्म स्थान मिलने का हमें दुःख है | ( इन पंक्तियों के लेखक (तब उम्र 23 वर्ष) को उस 14 दिन के युद्ध में भाग लेने वाली भारतीय सेना का सदस्य होने का सौभाग्य प्राप्त है | ) भारत माता की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि । शहीदों की चिताओं पर...,

पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.12.2017

 

No comments:

Post a Comment