बिरखांत – 191 : अन्धविश्वास एक विकट समस्या
हमारे देश में अन्धविश्वास और कट्टरवाद का विरोध करने पर कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है | दाभोलकर, गोविन्द पंसारे और कलबुर्गी इसके हाल ही में घटित उदाहरण हैं | इसी कारण बंगलादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन 1994 से वतन छोड़कर दर -दर की ठोकरें खा रही हैं | वह भारत को अपना दूसरा घर मानती हैं | उन्हें उनके देश के कट्टरवाद ने जान से मारने की धमकी दे रखी है ।
अन्धविश्वास का विरोध करने वाले हमेशा ही उन लोगों के निशाने पर रहे हैं जो इसे पोषित कर अपनी दुकान चलाते हैं | उत्तराखंड, झारखंड और असम ही नहीं हमारा पूरा देश अन्धविश्वास से ग्रसित है | भ्रष्टाचार के बाद अंधविश्वास ही देश की सबसे बड़ी विकट समस्या है |
बनारस को क्योटो बना सकेंगे या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा क्योंकि बनारस सहित देश के सभी मंदिरों में और नदियों में आज भी लाखों लीटर दूध बहाया जाता है जो देश के करोड़ों कुपोषित बच्चों के लिए पर्याप्त से भी अधिक होता | मूर्ति में तो प्रतीक के तौर पर दो बूंद दूध चढ़ाना ही पर्याप्त है ।
दिल्ली की मदर डेरी बूथों पर आज भी बूथ से ट्रे लेकर लोग अबारा कुतों को अंधभक्ति के मंत्र से ग्रसित होकर दूध पिलाते हैं जबकि पास ही बिना चप्पल -जूता पहने कूडा बीनने वाले गरीब बच्चे देखते रहते हैं |
देश की गन्दगी, नदियों की दुर्गति सहित सभी प्रकार की सामाजिक बुराइयों में भी अन्धविश्वास का ही मिश्रण है | हमने आजादी का जश्न मनाया, एक-दूसरे को शुभकामनाएं दी और अब देश को अन्धविश्वास की गुलामी से मुक्त करने के लिए हिम्मत से इसका विरोध करें और घर से शुरुआत करें तभी ‘जय भारत’ 'जयहिन्द' और ‘वन्देमातरम’ के उद्घोष का नारा भी सार्थक होगा |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.12. 2017
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