खरी खरी - 139 : मसमसै सब रईं
मसाण जागर में
सब डुबि रईं
गणतु - पुछ्यारां क
पिछलगू बनि गईं
गांठ - पताव ताबीजों क
माव सब जपैं रईं
बकार - कुकुड़ खां रीं
परया जेब काटैं रईं
अंधविश्वास में डुबि रईं
क्वे कैकं नि रोकैं रौय
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे क्ये
नि कूं रौय ।
मैंस रात भरि
पटाखा छोड़ै रईं
हौरन - लौस्पीकर
जोरैल बजूं रईं
जागरण वाव
खूब कमू रईं
मैंसूं कि रातै कि
नीन उडूँ रईं
कानून कैं क्वे
लै नि पुछै रौय
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे
क्ये नि कूं रौय ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.12. 2017
No comments:
Post a Comment